Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन // 2 // // 3 // श्रीमद् विजय राजेन्द्र-सूरीश्वरान् नमाम्यहम् ये अभिधानराजेन्द्र - कोषः व्यरचि हर्षतः भवाब्धितारकान् वन्दे श्रीयतीन्द्रसूरीश्वरान् तथा च कविगुणाढ्यान् विद्याचन्द्रसूरीश्वरान् गच्छाधिनायकान् नौमि श्रीहेमेन्द्रसूरीश्वरान् येषां शुभाशिषा कार्य सुगमं सुन्दरं भवेत् गुरुबन्धु श्री सौभाग्य-विजयादि-सुयोगतः हितेश-दिव्यचन्द्राणां शिष्याणां सहयोगतः जयप्रभाऽभिधः सोऽहं श्रीराजेन्द्रसुबोधनीम् आहोरीत्यभिधां कुर्वे टीकां बालावबोधिनीम् टीका-मंगलाचरणम् // 6 // युग्मम् जयत्यनादिपर्यन्तमनेकगुणरत्नभृत् . न्यक्कृताशेषतीर्थेशं तीर्थं तीर्थाधिपैर्नुतम् / / 9 / / अनादि-अनंत स्थितिवाला, अनेक गुण-रत्नों से भरा हुआ, सकल कुमतवादीओं का निराकरण करनेवाला एवं तीर्थंकरों ने भी जिस को प्रणाम कीयां है ऐसा यह तीर्थ याने जिनमत चिरकाल जयवंत रहो !!! नमः श्री वर्धमानाय सदाचारविधायिने / . प्रणताशेषगीर्वाण चूडारत्नार्चितांहये // 2 // नमस्कार कर रहे सकल देव-देवेंद्रों के चूडामणि से पूजित चरणवाले एवं सदाचार का आचरण करनेवाले श्री वर्धमान स्वामीजी को मेरा नमस्कार हो ! आचारमेरोगदितस्य लेशतः, प्रवच्मि तच्छेषिकचूलिकागतम् / आरिप्सितेऽर्थे गुणवान् कृती सदा, जायेत निःशेषमशेषितक्रियः // 3 // चौदपूर्वधर नियुक्तिकार श्री भद्रबाहुस्वामीजी कहतें हैं कि- श्री महावीर स्वामीजी ने मेरू समान पंचाचार-सम्यक् चारित्र का उपदेश दिया है किंतु मैं तो अभी अपनी अल्पसन्मति के द्वारा उस मेरू की चूलिका के समान प्रमाण से अतिशय अल्प ही आचार को कहता हूं... क्योंकि- थोडा भी गुणवाला मुमुक्षु साधु क्रमशः संपूर्ण गुणवान् होता है कृतकृत्य होता है, क्योंकि- यह संयमानुष्ठान का अल्प आचरण भी द्वितीया के चंद्रवत् क्रमशः पूर्णता को प्राप्त करता है...