Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 64 2-1-1-4-1 (356) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन - इसका कारण पूर्व सूत्रों में स्पष्ट कर दिया गया है प्रथम तो आहार में दोष लगने की संम्भावना है, दूसरे में अन्य भिक्षओं का अधिक आवागमन होने से उनके मन में द्वेष भाव उत्पन्न होने की तथा अन्य जीवों की विराधना होने की सम्भावना है और तीसरे में वाचना, पृच्छना आदि स्वाध्याय के पांचों अङ्गों में अन्तराय पड़ने की सम्भावना है। क्योंकि- वहां गीत आदि होने से स्वाध्याय नहीं हो सकेगा। इस तरह संखडि में जाने के कारण अनेक दोषों का सेवन होता है, ऐसा जानकर उसका निषेध किया गया है। इसके अतिरिक्त आगम सूत्रो में भी संखडि में जाने का निषेध किया है, प्रस्तुत अध्ययन के द्वितीय उद्देशक में भी संखडि में जाने का निषेध किया है। परन्तु, प्रस्तुत सूत्र में निषेध के साथ अपवाद मार्ग में विधान भी किया गया है जैसे कि- यदि संखडि में जाने का मार्ग जीव-जन्तुओं एवं हरितकाय या बीजों से व्याप्त नहीं है, अन्य मत के भिक्षु भी वहां नहीं है और आहार भी निर्दोष, भक्ष्य एवं एषणीय है तो साधु उसे ग्रहण कर सकता है। परन्तु, वृत्तिकार का कथन है कि- प्रस्तुत सूत्र अवस्था विशेष के लिए है। उसमें बताया गया है कियदि साधु थका हुआ है अर्थात् लम्बा विहार करके आया है, बीमारी से तुरन्त या तपश्चर्या से जिसका शरीर कृश हो गया है, वह भिक्षु इस बात को जान ले कि- संखडि में जाने से किसी दोष के लगने की सम्भावना नहीं है, तो वह वहां से भिक्षा ले सकता है। - इससे स्पष्ट होता है कि- उत्सर्ग मार्ग में सामिष एवं निरामिष किसी भी तरह की संखडि में जाने का विधान नहीं है। अपवाद मार्ग में भी उस संखडि में जाने एवं आहार ग्रहण करने का आदेश दिया गया है कि- जहां जाने का मार्ग निर्दोष हो और निर्दोष एवं एषणीय निरामिष भक्ष्य आहार मिल सकता हो, परंतु अन्य संखडि में, जहां जाने का मार्ग जीवजन्तु से युक्त हो, जहां सामिष भोजन बना हो एवं निरामिष भोजन भी सदोष हो या अन्यमत के भिक्षु भिक्षार्थ आए हों तो वहां अपवाद मार्ग में भी जाने का आदेश नहीं हैं। प्रश्न पूछा जा सकता है कि- जब साधु अपवाद मार्ग में संखडि में जा सकता है, तो सामिष संखडि में बना हुआ क्यों नहीं ग्रहण कर सकता ? इसका समाधान यह है कि- यहां अपवाद कारण विशेष से है अथवा साधु की शारीरिक स्थिति के कारण है, परन्तु वहां बने हुए सभी तरह के आहार को लेने के लिए नहीं है। यदि संखडि में जाने का मार्ग ठीक नहीं है और आहार भी सामिष है या निरामिष आहार भी सदोष है तो शारीरिक दुर्बलता के समय भी साधु को वहां जाने का आदेश नहीं है। प्रस्तुत सूत्र में वह भी बताया है कि- संखडि में जाने से स्वाध्याय के पांचों अङ्गो में व्यवधान पड़ता है। स्वाध्याय चलते हुए करने का निषेध है, स्वाध्याय तो एक स्थान पर बैठकर ही किया जा सकता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि- संखडि में जाने पर कुछ देर के