Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 590
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी-हिन्दी-टीका 2-4-11 (551) 551 निग्रह करनेवाला सद् एवं असद् का विवेकी विद्वान् मुनि ही संसार-समुद्र को तैरकर मोक्षनगर * में पहुंचता है... v सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में समुद्र का उदाहरण देकर संसार के स्वरुप को स्पष्ट किया गया है। समुद्र में अपरिमित जल है, अनेक नदियां आकर मिलती है। इसलिए उसे भुजाओं से तैर कर पार करना कठिन है। उसी तरह यह संसार भी समुद्र के तुल्य कहा गया है..... I सूत्र // 11 // // 559 // जहा हि बद्धं इह माणवेहिं __जहा य तेसिं तु विमुक्ख आहिए। अहा तहा बन्ध-विमुक्ख जे विऊ ... से ह मुणी अंतकडेत्ति वुच्चइ // 559 // II संस्कृत-छाया : यथा हि बद्धं इह मानवैः यथा च तेषां तु विमोक्ष: आख्यातः / यथा तथा बन्ध-विमोक्षयोः यः वेत्ता सः खलु मुनिः अन्तकृदिति उच्यते // 559 // III सूत्रार्थ : जिस प्रकार मनुष्य यहां कर्म बांधते हैं और जिस प्रकार उन कर्मो का विनाश होता है इत्यादि बाते सूत्र में कही गइ है अतः जो मुनि यथार्थ रूप से कर्मो के बंध एवं मोक्ष का स्वरूप जानता है वह हि मुनि-श्रमण संसार का अंतकृत् कहा गया है.... IV टीका-अनुवाद : ___ जिस प्रकार इस संसार में मिथ्यात्व आदि हेतुओं से प्रकृति-स्थित आदि स्वरूप बांधे हुए कर्मो से मनुष्य संसार में भटकता है... इत्यादि तथा जिस प्रकार सम्यग्दर्शन, ज्ञान एवं मोक्ष को अच्छी तरह से जानने वाला ही मुनि कर्मो का विनाश करता है...

Loading...

Page Navigation
1 ... 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608