Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ 66 2-1-1-4-2 (357) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन IV टीका-अनुवाद : , वह साधु या साध्वीजी म. गृहस्थों के घरों में प्रवेश करने की इच्छावाले हो तब देखे कि- वहां दूधवाली गाय को दोह रहे हो, तथा आहारादि रसोई बना रहे हो, तथा तैयार हुए चावल आदि पहले अन्य को नही दिये हुए होते तो भी प्रकृति भद्रक कोई श्रद्धालु गृहस्थ, साधुको देखकर सोचे कि- “मैं इन साधुओं को बहुत दूध दूं" ऐसा सोचकर बछडे को बहुत दुःख-कष्ट दे अथवा दोही जा रही गाय को त्रास पहुंचाए... तब साधु को संयम विराधना एवं आत्मविराधना हो... अथवा अर्ध पके हुए चावल आदि को शीघ्र से पकाने के लिये अधिक प्रयत्न करे, तब संयम विराधना हो... इत्यादि ऐसा देख करके साधु गृहस्थों के घर में आहारादि के लिये प्रवेश न करें और निकले भी नही.... ऐसी स्थिति में साधु को क्या करना चाहिये... वह अब कहतें हैं... वह साधु उस गाय को दोहना आदि देखकर एकांत (निर्जन) में जाकर खडे रहें... अर्थात् गृहस्थों का जहां आगमन न हो, या उनकी नजर न पहुंचे... वहां खड़े रहें... और वहां खड़े-खड़े जब ऐसा जाने किदूधवाली गाय दोह ली... इत्यादि... यावत् ऐसे उन घरों में प्रवेश करें एवं निकले... . अब पिंडाधिकार में ही यह बात सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्र से कहेंगे... V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि- यदि किसी गृहस्थ के घर पर गायों का दूध निकाला जा रहा है और अशन आदि चारों प्रकार का आहार पक रहा है और उस आहार में से अभी तक किसी को दिया नहीं है, तो साधु को उस घर में आहार के लिए नहीं जाना चाहिए। यदि गायों का दूध निकाल लिया गया है, आहार पक चुका है और उसमें से किसी को दिया जा चुका है, तो साधु उस घर में आहार के लिए प्रवेश कर सकता है। इसका कारण यह है कि- गायें साधु के वेश को देखकर डर जाएं और साधु को मारने दौड़े तो उससे साधु को या दोहने के लिए बैठे हुए व्यक्ति को चोट लग सकती है। और दूध निकालते समय साधु को आया हुआ देखकर गृहस्थ यह सोचे कि- साधु को भी दूध देना होगा, अतः वह गाय के बछड़े के लिए छोड़े जाने वाले दूध को भी गाय के स्तनों में से निकाल लेगा। इससे मुनि के निमित्त बछड़े को अन्तराय हो। आहार पक रहा हो और उस समय साधु पहुंच जाए तो गृहस्थ उसे जल्दी पकाने का यत्न करेगा उससे अग्नि के जीवों की विराधना (हिंसा) होगी। इस तरह कई दोष लगने की सम्भावना होने के कारण साधु को ऐसे समय में गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रवेश नहीं करना चाहिए।