Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan

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Page 575
________________ 536 2-4-1 (541) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन आचाराङ्गसूत्रे श्रुतस्कन्ध-२ चूलिका - 4 ___ विमुक्ति // भावना अध्ययन स्वरूप तीसरी चूलिका कही, अब चौथी चूलिका विमुक्ति-अध्ययन कहतें हैं... यहां परस्पर इस प्रकार संबंध है कि- तीसरी चूलिका में महाव्रतों की पच्चीस भावनाएं कही है, अब इस चौथी चुलिका में भी अनित्य भावना कहतें हैं... इस संबंध से आइ हुई इस चौथी चूलिका = विमुक्ति-अध्ययन के चार अनुयोग द्वार होते हैं... उनमें उपक्रम के अंतर्गत अर्थाधिकार कहतें हैं... इस अध्ययन में 1. अनित्यत्व अधिकार, 2. पर्वत अधिकार, 3. रूप्य अधिकार, 4. भुजगत्वक् अधिकार, 5. समुद्र अधिकार यह पांच अधिकार है, उनका स्वरुप सूत्र से ही कहेंगे... नामनिष्पन्न निक्षेप में "विमुक्ति" नाम के नाम आदि निक्षेप उत्तराध्ययन में रहे हुए विमोक्ष अध्ययन की तरह जानना चाहिए... नि. 346 जो मोक्ष है वह हि विमुक्ति है.. अतः विमुक्ति नाम का मोक्ष की तरह निक्षेप होतें हैं... यहां ग्रंथ में भाव-विमुक्ति का अधिकार है और वह भाव विमुक्ति देश एवं सर्व के भेद से दो प्रकार से है... उनमें देश से विमुक्ति साधु से लेकर भवस्थ केवलज्ञानी पर्यंत के जीव... और सर्व विमुक्ति = सिद्धात्माओं के जीव... क्योंकि- सिद्धात्माओं के आठों कर्मो का विनाश हो गया है... अब सूत्रानुगम में संहिता की पद्धति से सूत्र का शुद्ध उच्चारण करना चाहिये... सूत्र // 1 // // 541 // अणिच्चमावासमुर्विति जंतुणो अलोयए सुच्चमिणं अणुत्तरं। विउसिरे विष्णु अगारबंधणं अभीरू आरंभ-परिग्गहं चए // 541 / / // संस्कृत-छाया : अनित्यमावासमुपयान्ति जन्तवः, प्रलोकयेत् सत्यमिदं अनुत्तरम् /

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