Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 18 2-1-1-1-4 (338) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन से भिक्खू वा, गामाणुगाम दुइजमाणे नो अण्णउत्थिएण वा जाव गामाणुगाम दूइजिजा || 338 // II संस्कृत-छाया : स: भिक्षुः वा भिक्षुणी वा गुहपतिकुलं यावत् प्रवेष्टुकामः न अन्यतीर्थिकण वा अगारस्थितेन (गृहस्थेन) वा परिहारिकः अपरिहारिके ण सार्द्ध गृहपतिकुलं पिण्डपातप्रतिज्ञया प्रविशेत् वा निष्क्रमेत् वा। सः भिक्षुः वा, बहिः विचारभूमिं वा विहारभमि वा निष्क्रामन वा प्रविशन वा न अन्यतीथिकन वा गृहस्थेन वा परिहारिको वा अपरिहारिकेण सार्द्ध बहिः विचारभूमिं वा विहारभूमिं वा निष्क्रामेत् वा प्रविशेत् वा / स: भिक्षुः वा; ग्रामानुग्रामं गच्छन् न अन्यतीर्थिकेन वा यावत् ग्रामानुग्रामं गच्छेत् // 338 // III सूत्रार्थ : गृहस्थी के घर में भिक्षा के निमित्त प्रवेश करने की इच्छा रखने वाला साधु या साध्वी अन्यतीर्थी या गृहस्थ के साथ भिक्षा के लिये प्रवेश न करे, तथा दोष को दूर करने वाला उत्तम साधु पार्श्वस्थादि साधु के साथ भी प्रवेश न करे, और यदि कोई पहले प्रवेश किया हुआ हो तो उसके साथ न निकले। वह साधु या साध्वी बाहर स्थंडिल भूमि (मलोत्सर्ग के स्थान) में या स्वाध्याय भूमि में जाता हुआ या प्रवेश करता हुआ किसी अन्यतीर्थी या गृहस्थी अथवा पावस्थादि साधु के साथ न जावे, न प्रवेश करे। वह साधु या साध्वी एक व्याम से दूसरे ग्राम में जाते हुए अन्यतीर्थी यावत् गृहस्थ और पार्श्वस्थादि के साथ न जावे, गमन न करे। IV टीका-अनुवाद : वह भिक्षु याने साधु जब गृहस्थों के घरों में आहारादि के लिये जाना चाहे तब अन्य मतवाले सरजस्कादि एवं पिंडोपजीवी ऐसे गृहस्थ ब्राह्मणों के साथ न तो प्रवेश करे, और न - बाहार निकले... क्योंकि- यदि वे लोग साधु के आगे आगे जाए तब उनके पीछे-पीछे गमन करने में ईर्या-विषयक कर्मबंध और प्रवचन की लघुता हो और उनको अपनी जाति का उत्कर्ष = गौरव हो... तथा यदि उनके पीछे पीछे साधु चले तब उनको द्वेष हो और यदि दाता भद्क हो तब आहारादि का विभाग करके दे, अतः आहार अल्प हो या दुर्भिक्षादि में प्राणवृत्ति न हो... इत्यादि दोष लगतें हैं, तथा पिंडदोष को त्याग करने से उद्युक्तविहारी साधु पासत्था, अवसन्न,