Book Title: Achar Pradip
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 13
________________ Pal नाणंमि दंसणमि । १-२-२ | नो इहलोगया । ८३-१-१० | परिभूआणं ताणं। ४१-२-११ नाणं सिक्खइ नाणं । १३-२-१५ | नो दुष्कर्मपयासो। ५४-२-५ | पलिओवमट्टिईआ। ३७-१-४ नाणायारो अट्टविहो । १-२-१३ पश्चात्कर्म पुरःकर्म । ८६-१-१ नाणेण जाणई भावे। २-१-६ । पहसंतगिलाणेसु। १२-२-१५ PO नाणे दंसण चरणे। १-२-१२ | पडिबंधो लहुअत्तं । ६७-१-१२ पायच्छित्तं विणओ। ८४-२-४ नानुद्योमवता नच। ३१-१-८ | पडिभग्गस्स मयस्स व। ८८-२-१३ पावाओ विणिवत्ती। '२-१-४ निद्दाविकहापरिवज० ।१५-२-१२ पडिरूवो खलु विणओ। ८८-१-९ पावाणं च खलु भो। २१-१-४ निष्फाइया य सीसा। ८३-२-८ पडिलेहणं कुणंतो। ७२-१-१० पितृभिस्ताडितः पुत्रः। ३१-१-५ निरवज्जाहाराणं । ८५-१-४ | पढमंमि सबजीवा। ७४-२-११ II निर्जराकरणे बाह्यात् । पिंडेसणा उ सहा। ७०-२-४ ९०-१-१३ पण संलेहण पनरस। ९१-२ निस्संकि निकंखि। ३९-२-६ पुढवी आउक्काए।७२-१-१२-७२-२-१३ पणिहाणजोगजुत्तो। ६६-२-१० निस्संगया य पच्छा। ८६-१-८ पत्तं पत्ताबंधो । ७१-१-१३-७१-२-८ पुवण्हे अवरहे। ११-२-७ नीय सिज गई ठाण। १३-१-१४ | पदं सपदि कस्य। २६-२-२ | अक्ष पुवावरसंझाए। १२-१-१० नेसप्पे पंडुअए। ३६-२- पम्हुतु सारणा वुत्ता। ४९-२-१ । प्रतिपन्नस्य निर्वाहो। ४०-२-१४ PC नेसणंमि निवेसा। ३६-२-८ । परचक्रागमवहा०। ३३-२-३ । प्रदत्तस्य प्रभुक्तस्य । ९३ हरहरमहरहरमर Jain Education For Private & Personal use only N ainelibrary.org tional 191

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