Book Title: Abhidhan Chintamani Author(s): Hemchandracharya, Nemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan View full book textPage 8
________________ प्रस्तावना किसी भी भाषा की समृद्धि की सूचना उसके शब्दसमूह से मिलती है। भाषा ही क्या, किसी देश या राष्ट्र का सांस्कृतिक विकास भी उसकी शब्दराशि से ही आँका जा सकता है । जिस प्रकार किसी देश की आर्थिक सम्पत्ति या अर्थको उसकी भौतिकता का मापक होता है, उसी प्रकार किसी राष्ट्र का शब्दकोष उसकी बौद्धिक एवं मानसिक प्रगति का परिचायक होता है । अर्थार्जन का कारण है, । इसी प्रकार भाषा के वह भी मृत है और अर्थशास्त्र का सिद्धान्त है कि जो पूंजी कहीं छिपी रहती है या जो अर्थार्जन का हेतु नहीं है। इस प्रकार की पूंजी मृत है, अनुपयोगी है; किन्तु जिसे विधिपूर्वक व्यवसाय में लगाया जाता है, जो ऐसी पूंजी को ही सार्थक और जीवन्त कहा जाता है संसार में जो शब्दराशि इधर-उधर बिखरी पड़ी रहती है, है वह प्रयोगाभाव में भूगर्भ में छिपी हुई अर्थ-सम्पत्ति के समान निरुपयोगी । अतः इधर-उधर बिखरी हुई शब्द-सम्पत्ति को व्यवस्थित रूप देकर उसके सामर्थ्य का उपयोग कराना आवश्यक होता है । कोशकार वैज्ञानिक प्रणाली से समाज में यत्र-तत्र व्याप्त शब्दराशि को संकलित या व्यवस्थित कर कोशनिर्माण का कार्य करता है और निरुपयोगी एवं मृतशब्दावली को उपयोगी एवं जीवन्त बना देता है । यही कारण है कि प्राचीन समय से ही कोश साहित्य का प्रणयन होता आ रहा है। संस्कृत भाषा महती शब्द-सम्पत्ति से युक्त है, उसका शब्दकोश कभी न होनेवाली निधि के समान अक्षय अनन्त है । इसका भाण्डार सहस्राब्दियों से समृद्ध होता आ रहा है । अतएव शब्द के वाच्यार्थ, भावार्थ एवं तात्पर्यार्थ की प्रक्रिया के अभाव में शब्द का अर्थबोध संभव नहीं । शब्द तो भावों को ढोने का एक वाहन है। जब तक संकेत ग्रहण न हो, तब तक उसकी कोई उपयोगिता ही नहीं । एक ही शब्द संकेत भेद से भिन्न-भिन्न अर्थों का वाचक होता है । भर्तृहरि का मत है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी नियत वासना केPage Navigation
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