Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
શ્રુતસાર
વર્ષ-૨, ગંજ - રૂ, ત સં - ૨૭, મદ્રેત-૨૦૨૨
व्हासां पुस्तको
ભાં
વ્હાલાંમાઁ પુસ્તકોબિજાનીનીાં ઘાં મિત્રો હૃદયનાં ને ભલાં એ બાગછે સોહામણમાં વ્હાલાં અમારાં પુખ્ત ક ગુજ રાવબન્દબ્યોતિને શુભજ્યોતિયો ઓપતાં પુભતત્ત્વમન્દિર સબાકી સુખખાયનાં દેખડતાં સાચું મા - પરવારે ના કોઈની એકાગ્રતા કરતાં મુદાર દર્શાવતા શિવમાર્ગને પૂરમાર્થનો ઝરો કરે. આદીપિત્રૂપને દર્શાવતો સેવાધરે અનુભવ મનના આપતો વિક્ષાકથે ડરતો નહી મનનાન્તારીભર્યા નિત્સંગના સાચી રહી સાથે સાથીબંને દુઃખમાંસા ચિન્તાહ સાથે જી ખાનનજાતો આરત્યે શુભષાત્ એ નપજી નટુબીઅમારી વ્હાલતી ખાણું ખાં- સત્યનું • ભૂપેશભલા અમૃતતમાં શુભબીજ નિયંત્યનું ઉરોધમાં આકારાથી સર્વ સમાવે અંગમાં માનવ કર્વ સાયનું ખનનનાથભાગમાં જંગલવિધ મંગલ. આ ધિયાધિ સહુ રે સોવસ્તુના નક્શા ધરે ને દીલથી વાત કર શુભદિવ્યરસના રોડી, અમૃતફળોનો ટોપલો ધૂનાં ચુભવાસદે બળ આપ્ત સાચું ભલો - દિવ્યગોરા સાથી અન્તરતમાંમાબાપ બે સોહાએ પુસ્તકી જિનવાણીનો યુ નછાપ છે. ગમતું નથી તેનાવિના આશ્રમ અમારો તેરીઆ ધર્મપણપુસ્તકો લે હું નીતી સરો વાતો કરે એકાંતમાં ખાનાંમન રાખાં પુજ મઝાતી ખાપતાં એવોચતાં પુભ ભાખતાં હું માગુંછું હુંભ એટલું વ્હાલાં સદા પાસે રહો ( બુબ્ધિ” પ્રેમીપુસ્તકો" ખાનનેફરતાં વહ
k
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर
For Private and Personal Use Only
=2
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
For Private and Personal Use Only
कणचजलवजलपावरसाया प्रशायारसंडरसवीजम्मरणमराणाकबंधति या शस्त्रस्ययतणंद्यायावास्वंयहां वकसमन्वयाधीरतायाध्यातवलनंदीपनमात्मनतिगम्यस्त जलपाववाचवाधारक्तस्रावातादिपरियदाधी याचा
वहारबनतांडमुपकरणसमाबारलोडनतधानावासोतस्थासवाव्हासामान्दादिसिम्यरितासवानाचारसोडासवासाचाय महबीतायतयाजन्मजरामरणारकरचाराननिमिवकर्माणीवनंतीत्यानावामार्थप्रतिपतिसधिवातधाचार्धातारमाहीलाना
क्षाजमयादसनमविपडिवतारमाहणयामाहितासंस्माहंसावंऊगाइफलचासो एयावसावरपाउतावितादिवघ्यजति जासंतापडतिरवसागरमणमितिसूचाछीसिंपत्फयसहारशारणचाखस्यमाहात्म्यमाह श्याउकरबाद्धनाश्पयरितिबनी शायलवसिद्धायसंमतिाजमिस्त्यनंत्तरमुपवर्मिता नपाउकारितिमामात्यकाश्विदर्धताकाश्चनसूवातापियकाश्यबाद्वारका
वगतसकलवसतानाशाजाज्ञानकुलसमझत साचहत्तगवामाहावापरिनिशतानितीर्णगत पदविंशजतराव .वायायाधयनान्फत्तराधायानागततिति
धानसद्यानासमतानमितानितियरिसमावोबीमिपूर्वदितिसूबा बानिटक्तिकारयन्मादायद्याहाजिकिरिलवसिदीयायरि असेसारियामाजलधारतकिरियपियानरमा तम्हाजिणय नसनंतगमयावहिसंजामशागजहानागंरारुपसाय यदिधिवा स्यागमपक्षानादिद्याधारस्तदनतिकामगायघायागमित्यात यथयानटीकायायधिशामधयवसमाशामिरा थालिसंस्मीसवररक्षपीपघमश्वासामुदिविजयदशमादिनामामा शिवशवकनाश्रीअलवरगढमदानीश्रीकृस्वरतरछाचाश्वस्त्रीश्वीश्रीशभिनवेइसरिविभयराध्याश्रमिनलसरिगति मिश्रीनिनवंमूरिशियमदातारपधिनतालछलालधनिरुयमझानबलाश्रीश्रीश्रीरत्नसागरायाधमशिष्यवावाचनाचा
याधिामरुगांगीनामुपदेशात्रीलवरपुरवासयामाकमावीयानअलाणी गात्रीवासापछिमवरसायोनापुताबिका। maकायद्याही नसतगिनानायचाचण्या श्रीमन्नराधारानीकालिषिताविक्षारिताचासाविबनिाचामानाचिरन सान्निधिताप्रविरियतावायाचदिवाकाशयावक्रिनियमटियावाव्यमानाचनेदबारीश्रीरखा असता
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रतिलेखन पुष्पिका क्रमांक ४ मां नोंधायेल प्रतनुं अंतिम पत्र
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र
श्रुतसागर
आशीर्वाद राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा.
* संपादक मंडल *
मुकेशभाई एन. शाह कनुभाई एल. शाह
हिरेन दोशी डॉ. हेमन्त कुमार
केतन डी. शाह एवं
ज्ञानमंदिर परिवार 99 अप्रैल, २०१३, वि. सं. २०६९, चैत्र सुद-१
प्रकाशक
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर-३८२००७ फोन नं. (०७९) २३२७६२०४, २०५, २५२ फेक्स : (०७९) २३२७६२४९
___website : www.kobatirth.org email : gyanmandir@kobatirth.org
For Private and Personal Use Only
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
१. अवसरनो आनंद
२. चोवीश जिन स्तवन
३. ठक्कर फेरु एक परिचय
४. केटलीक प्रतिलेखन पुष्पिकाओ
५. देवानंदगच्छनो परिचय
६. आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरिजी का जीवन परिचय
८. समाचार सार
www.kobatirth.org
७. बुद्धिसागरसूरि साहित्य वैभव
७. ज्ञानमंदिर कार्य अहेवाल
प्राप्तिस्थान
अनुक्रम
प्रकाशन सौजन्य
हिरेन दोशी
हिरेन दोशी
हिरेन दोशी
आचार्य श्री सोमचंद्रसूरि
डॉ. हेमन्त कुमार
हिरेन दोशी
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर
तीन बंगला, टोलकनगर
डॉ. हेमन्त कुमार
परिवार डाइनिंग होल की गली में
पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ फोन नं. (०७९) २६५८२३५५
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कटारिया संघवी श्री मिश्रीमलजी नथमलजी परिवार (नैनावा निवासी ) रत्नमणी मेटल्स एन्ड ट्युन्स लि. अहमदाबाद
-
For Private and Personal Use Only
अप्रैल २०१३
-
३
५
८
१४
१७
२७
२६
३१
३२
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अवसरनो आनंद तरुवरनी जेम श्रुतसागरनो विकास वांचनना छांये बेठेला मुसाफरोने शाता आपे छे. ए जाणी, माळीने आनंद ज थाय. छेल्ला केटलाक समयथी श्रुतसागरना माध्यमे श्रुतनी भक्ति करवानो अवसर सुविशेष मळी रह्यो छे. श्रुत अने श्रुतवान्नी भक्ति करवानो ज्ञानमंदिरनो आशय अने उद्देश रह्यो छे.
चैत्र वद -१ नो दिवस ज्ञानमंदिर माटे खरेखर आनंद अने उत्सवनो दिवस छे. आ दिवसे ज्ञानमंदिर परिवारे करेली विशिष्ट श्रुतोपासनाना प्रकाशननो त्रिवेणी संगम रचायो. चैत्र वद-१ने गुडीपडवानो तहेवार खरा अर्थमां ज्ञानमंदिर परिवार माटे नूतन वर्ष जेटलो आनंददायी बनी रहेशे एमां कोई शंका नथी. अवसर पहेलो.
जेना शब्दोमां अतप्तिनी तरस अने आसक्तिना अभिशापथी ग्रसित मानव चैतन्यने पूर्ण बनाववानी प्रचंड क्षमता छे. जे शब्दोमां मानवनी साची आध्यात्मिक सिद्धिना मूळीयां धरबायेला छे. जेना पदोमां मानवनी मनोवृत्तिओने उर्ध्वगामी अने विराटमा पलटाववानी ताकात छे. जेना शब्दो मनना दुष्परिणामोनो नाश करे छे. कषायोनो उपशम करे छे. एवो शांतसुधारस ग्रंथ प्रकाशित थई रह्यो छे.
आ ग्रंथ महोपाध्याय श्री विनयविजयजी महाराजनी रचना छे. ए ग्रंथ उपर आधारित प्रवचनो पू. आचार्य श्री भद्रगुप्तसूरि म. सा.ना छे. बंन्ने महापुरुषोनी अभिव्यक्ति असरकारक छे. तो एमनी शैली वाचकोना आंतरतलने स्पर्श छे.
वात विनयविजयजी महाराजनी अने विवेचन पू. आचार्य भद्रगुप्तसूरि म.सा.नु.
वात अने विवेचननो सोना अने हीरा जेवो संगम शांतसुधारसनी उपादेयतामां वधारो करे छे. शांतसुधारसनो आ स्वाध्याय आपणी सर्व समस्यानुं समाधान छे. छेल्लां केटलांक वर्षोथी आ ज्ञानतीर्थ द्वारा विश्व कल्याण प्रकाशनना गुणसभर अने ज्ञानसभर पुस्तकोनुं पुनः संपादन-प्रकाशन थई रह्यु छे.
आ प्रवचनो त्रण भागमा प्रकाशित थई रह्यां छे. नजीकना समयमा श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र - कोबा तीर्थमां आ ग्रंथो मळी शकशे.
For Private and Personal Use Only
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अप्रैल - २०१३ अवसर बीजो.
तारे ते तीर्थ, ए अर्थमां आ ज्ञानमंदिर श्रुततीर्थ छे.
चैत्र वद - १ना दिवसे श्रुततीर्थ तरफथी स्थावर तीर्थ अने जंगम तीर्थनी उपासना स्वरूप रास पद्माकरनो बीजो भाग प्रकाशित थई रह्यो छे. आ संपादन द्वारा आपणा विसराई गयेला इतिहास अने वारसाने साहित्यना माध्यमे कागळमाथी बेठो करवानो नम्र प्रयास करवामां आव्यो छे.
आपणो भव्य भूतकाळ चैत्यपरिपाटी जेवी रचनाओमां तो आजेय वर्तमान छे. जिनालयो अने जिनबिंबोनी संख्या, प्रतिमा भरावनार अने प्रतिष्ठा करावनार जेवी केटलीय अप्रगट विगतोनो उल्लेख आ चैत्यपरिपाटी अने तीर्थ स्तवनोमांथी मळतो होय छे. तो साथ-साथे आपणी परंपरामां थयेला विशिष्ट गुरुभगवंतोना जीवननो परिचय पण मळतो होय छे.
स्थावर तीर्थोपासना :- ज्ञानमंदिरमा संगृहीत अप्रकाशित ऐतिहासिक चैत्य परिपाटी, तीर्थ स्तवनो आ विभागमा संगृहीत छे.
जंगमतीर्थोपासना :- आ विभागमा अप्रकाशित निर्वाण सज्झायो अने रासनुं संपादन करवामां आव्युं छे. अवसर चीजो
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूचिनो १४ अने १५मो भाग आ ज दिवसे प्रकाशित थई रह्यो छे.
केटलॉग पद्धतिमा जेनं स्थान शिरमोर अने अग्र क्रमांके रह्यं छे. एवी अद्यतन पद्धति द्वारा केटलॉगने माहिती सभर बनाववानो प्रयास करवामां आव्यो छे. आ कार्य बे जाडा पूंठा वच्चे देखाय छे, एटलुं सरळ नथी. आ कार्य उपर त्रण ऋतुना तडका-छांया पडे त्यारे एक भागनुं दळ संपन्न थतुं होय छे. पंडितवों अने सहयोगी मित्रोनी एक सरखी लगन अने महेनत वगर आवा विशिष्ट सूचि कार्यो संपादित के प्रकाशित थवा असंभव छे. आ त्रणेय प्रकाशनोनुं विमोचन परम पूज्य श्रुतोद्धारक परम श्रद्धेय पूज्य आचार्यभगवंत श्री पद्मसागरसूरि महाराज साहेबनी पावन निश्रामां मुंबई नजीक लोढा धाम प्रतिष्ठा महोत्सव दरम्यान थवानुं छे.
पू. गुरुभगवंतनी निश्रा मळवाथी प्रकाशनना आ त्रणेय अवसरमा अनेरी अपूर्वता भळी छे.
For Private and Personal Use Only
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
महो. जयसागरकृत चोवीश जिन स्तवन
हिरेन दोशी जिन स्तवना गान विषयक कृतिओथी मध्यकालीन साहित्यनो खजानो छलोछल छे. ए खजानानी केटलीय कृतिओ आजे अप्रकाशित रही छे. जिन स्तवना ए मध्यकालीन कविओनो अत्यंत प्रिय विषय रह्यो छे. एमां भळेला अहोभाव भर्या हृदयनो भक्ति उन्मेष आपणा अहोभावने पण सबळो बनावे छे.
आवी ज भावसभर हैयानी रचना एटले चोवीश जिन स्तवन.
आम तो आ कृतिनो विषय तीर्थंकर स्तवना छे, परंतु कविए तीर्थंकर भगवंतोना गुणोनी साथे एमनुं नाम, माता-पिता, स्थान, अने लंछन जेवा माहितीपरक विषयोने पण कविए कृतिना माध्यमे वणी लीधा छे.
कविए पोते आ वात करता २जी कडीमा जणावी छे. कुल २८ कडीमां कृति विस्तरे छे. एमां प्रथमनी बे गाथा प्रस्तावना स्वरूप छे, ज्यारे छेल्ली बे गाथामां जिन नाम-स्मरणचें फळ कथन, कृतिनो रचना समय, अने पोताना नामनी साथे पोताना गच्छ-गुरुना नामनो निर्देश करे छे. प्रत परिचय :
ज्ञानमंदिरमां आ कृतिनी प्रत ४७५२२ नंबर पर नोंधायेली छे. प्रतनी किनारीनो भाग खवाई गयो छे. आ प्रतर्नु परिमाण २३ x १२ छे. १८ लाईनमा ३८ अक्षरो नोधायेला छे, प्रतमां कडी क्रमांक माटे लाल रंग वपरायो छे.
१
चोवीश जिन स्तवन सयल जिणेसर प्रणमुं पाय, सरसतिसांमण द्यो मति माय, हियडै समरूं श्री गुरु नाम, ज्युं मनवंछित सीझे काम. चोवीसे जिनवर माय-पिता, नाम-ठांम-लंछण जे हुंता, पांचै बोलै करुं प्रणांम, करिस स्तवन मुंकी अभिरांम. पहिला प्रणमुं रिखभ जिणंद, नाभिराय-मरुदेवीनंद, ऊंची काया धनुष पांचसै, वृषभलंछण वनिता वसै.
For Private and Personal Use Only
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अप्रैल - २०१३ बीजा अजित अयोध्या ठांम, गजलंछण प्रणमुं अभिराम, जितशत्रु-विजयारांणीपुत्र, जेणै जीता सगला शत्र. तीजा संभव सुख दातार, सावत्थी नयरी अवतार, पिता जितारथ सेना माय, हयलंछन सोवन मै काय. चोथा चिहुंगतगंजण सांम, विनि(नी)ता नयरी जेहनो ठांम, संबर पिता सिधारथ माय, कपिलंछण अभिनंदण राय. समरूं सुमत जिणेसर देव, लंछण क्रौंच करै जसु सेव, नयरी जास भली कोसला, मेघ पिता माता मंगला. कोसंबी नयरीधर राय, रांणी सुसिमा जेहनी माय, पद्मप्रभु छठो जिनराय, पद्मलंछण रक्तोत्पलकाय. स्वस्तिकलंछण स्वामी सुपास, तूठो टालै गर्भावास, प्रतिष्ठ नरेसर पृथवी माय, वांणारसीनयरी वर ठाय. शसिलंछण चंद्रप्रभु देव, चोसठ इंद्र करै जस सेव, महसेन पिता माता लक्ष्मणा, नयरी जेहनी चंद्रायणा. काकंदीनयरी अभिराम, लंछण मगर सुविध जिन नाम, सुग्रीव पिता माता जसु राम, पुष्पदंत बीजो तसु नाम. ११ शीतल सहिजै सुख-दातार, भद्दलपुर सांमी अवतार, दृढरथ राजा नंदा माय, श्रीवछलंछण प्रणमुं पाय. श्रेयांस थुणीयै इग्यारमो, खडगीलंछण भावै नमो, सीहपुरी राजा श्रीविष्णु, माता जेहनी सुणीयै विष्णु. चंपा नयरी वसपु(प)ज्य राय, जयादेवी रांणी जसु माय, वासुपूज्य जिन बारमो, महिषलंछन भावै नमो. कंपिलपुरराजा कृतर्वम्म, श्यामा रांणी सदा सुर्धम्म शूवरलंछण सांमी विमल, तूठौ आपै पदवी अचल. अयोध्या नगरी उत्तम ठांम, अनंतनाथ सांमीनो नाम, सीहसेन पिता सुयशा माय, सीचांणोलंछण सुखदाय.
१६
For Private and Personal Use Only
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१७
श्रुतसागर • २७
रतनपुरीराजा श्रीभांण, सुव्रता रांणी माता सुजाण, मुगतपुरीनो सूधो साथ, वज्रलंछण प्रणमुं धर्मनाथ. शांतिनाथ सोलमो जिणंद, जास प्रसंसा करै सुरिंद, मृगलंछण हथणापुर ठाम, विश्वसेन अचिरा मायनो नाम. १८ कुंथनाथ पुहवी-परसिद्ध, तूठो आपै अविचल रिद्ध, सूर राजा माता जसू सिरि, लंछन छाग प्रवर गजपुरी. १९ गजपुरनयर सुदरसण राय, देवी राणी अरि जिन माय, लंछण नंद्यावर्त प्रधांन, तीस धनुष सांमीनो मान. २० मिथुलानयरी महिमा घणी, राजा कुंभ पुत्री तसु तणी, प्रभावती रांणी तसु माय, कलसलंछन प्रणमुं मल्लि राय. २१ राजग्रही राजा श्री सुमति, पद्मावती रांणीनो पुत्त मुनिसुव्रत लंछन काछबौ, प्रणमुं भावै जिन वीसमो. २२ विप्रा रांणी राजा विजय, मिथुलानयरी नृप जाण अजय, नीलोत्पललंछन जसु संग, कनक-वर्ण नमिनो छ रांम(रंग). २३ सौरीपुरस्वामी श्रीनेमि, मुक्तवधू जिण परणी खेम, समुद्रविजय शिवादेवीनंद, संखलंछन प्रणमुं आणंद. अश्वसेन पिता वांमा माय, वांणारसीनगरी नागराय, तेवीसमो जिणेसर पास, प्रगट प्रभावै पूरै आस. श्री सिद्धारथ त्रिसला माय, कुंडनपुर लंछन मृगराय, वर्धमान जिन चोवीसमो, करजोडीनै भावै नमो. चोवीसे जिनवरना नाम, बोल्या सुध समरणना काम, भव-भव मांगें एहि ज सेव, बोधबीज साची जिण देव. संबत चवदैसैत्रांणवो, खरतरगछनायक अभिनवो, श्री जिनभद्रसूरि सुपसाय पभणै जयसागर उवज्झाय. २८ ॥ इति श्री चोवीस तीर्थकर लंछन देहमान
मातपिता स्तवन संपूर्ण।।
०
९.
For Private and Personal Use Only
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ઠક્ટ ફેટ એક પરિચય
હિરેન દોશી ઠક્કુર કે વિક્રમની ચૌદમી સદીના રાજમાન્ય જૈન શ્રાવકોમાં પ્રમુખ અને આદરણીય વ્યક્તિ હતા, શ્રી અને સરસ્વતીનો એનેરો સમન્વય એટલે શ્રાવક ઠક્કુર ફેરુ,
રત્નપરીક્ષામાં જણાવ્યા અનુસાર ઠક્કુર ફેરુ જિનેશ્વર ધર્મના પરમ ઉપાસક હતા. પોતાના માટે પરમજૈન અને જિદિપભત્તો વિશેષણ વાપરી જિનેશ્વર ભગવાનના ધર્મ પ્રત્યેનો અવિહડ અનુરાગ પ્રગટ કર્યો છે.
सिरिमालकुलत्तंसो ठक्कुर चंदो जिणिंदपयभत्तो, तस्संगरुहो फेरू जंपइ रयणाण माहप्पं ।।२।। (रत्नपरीक्षा)
એમના જીવન પરિચયને પ્રકાશિત કરતા ઉલ્લેખો ગુર્વાવલી સિવાય પ્રાયઃ કોઈ જગ્યાએ પ્રાપ્ત થતા નથી, કૃતિઓમાં આપેલા સંક્ષિપ્ત આત્મ-પરિચય અનુસાર શ્રાવક ઠક્કુર ફેરુ શ્રીમાલ જ્ઞાતીય ધાંધીયા (ધંધ)કુલીય શ્રેષ્ઠિ ઠક્કર કાલિય (કલશ)ના પૌત્ર અને ઠકુર શ્રેષ્ઠિ શ્રી ચંદના પુત્ર કન્નાણા નગરના (કન્યાનયન નિવાસી હતા.
सिरि धंधकुले आसी कन्नाणपुरम्मि सिट्ठि कालियओ, तस्सुव ठक्कुर चंदो फेरू तस्सेव अंगरुहो ||१३१।। (रत्नपरीक्षा) રત્નપરીક્ષા ગ્રંથની ૧૩રમી ગાથામાં જણાવ્યા અનુસાર એમના પુત્રનું નામ હેમપાલ હતું, પુત્રના બોધાર્થે એમણે રત્નપરીક્ષા ગ્રંથની રચના કરી, તેમજ ભ્રાતૃ અને પુત્રના બોધ માટે દ્રવ્ય પરીક્ષા નામના ગ્રંથની રચના કરી હતી. [શ્રી ફેરુ એમના ભાઈ કરતા ઉંમરમાં જ્યેષ્ઠ હોવાનું કલ્પી શકાય છે. જે શ્રી ફેરુ નાના હોત તો, અવશ્ય વડિલબંધુ તરીકેનો ઉલ્લેખ પ્રાપ્ત થાત.?]
तेणिह रयणपरिक्खा विहिया नियतणय हेमपालकए, करमुणिगुण ससि(१३७२)वरिसे अल्लावदी विजयरज्जमि ||१३२ ।।
(રત્નપરીક્ષા) एवं दव्यपरिक्खं दिसिमित्तं चंदतणयफेरेण, भणिय सुय-बंधवत्थे तेरह पणहत्तरे वरिसे ।।१४९ । ।(द्रव्यपरीक्षा) બાગડદેશની નજીક રહેલ કન્નાણા(કન્યાનયનોમાં શ્રીમાલોની સંખ્યા સૌથી
For Private and Personal Use Only
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर - २७ અધિક હતી, ત્યાંના શ્રીમાલો ખરતરગચ્છીય સુવિહત આચાર-સંપન્ન આચાર્યો અને મુનિજનોના અનુયાયી હતા, ઠક્કુર ફેરુને ખરતરગચ્છીય આચાર્ય જિનપ્રબોધસૂરિ, જિનચંદ્રસૂરિ, દાદા જિનકુશલ સૂરિ, અને વાચનાચાર્ય રાજ શેખર(પછીથી આચાર્ય રાજશેખરસૂરિ) જેવા માર્તડ વિદ્વાનોનો સહવાસ અને ઉપનિષદ્ પ્રાપ્ત થયું હતું, શક્ય છે, એમના સાંનિધ્યમાં ઠક્કર ફેરુને વિદ્યાભ્યાસ વિગેરે સંપન્ન થયું હોય
ઠક્કુર ફેરુ યુગપ્રધાન આચાર્ય શ્રી જિનચંદ્રસૂરિજીના અનન્ય ભક્ત હતા.
ઠકકુર ફેરુ યુગપ્રધાન ચોપાઈમાં પોતાના ગુરુજનની સ્તુતિ કરતાં જણાવે છે કે સદ્દગુરુની પરંપરામાં થયેલા જિનચંદ્રસૂરિજીને જે માને છે, પૂજે છે, આરાધે છે. એ શાશ્વત મુક્તિ રમણીની સાથે આનંદ કરે છે. અર્થાત્ અચિરાતુ મોક્ષ પ્રાપ્ત કરે છે.
ઠક્કુર ફેરુ પોતાના ગુરુદેવશ્રીની સ્તુતિ સ્વતંત્ર રીતે કાંઇક આ રીતે કરે છે. जिण पबोह गुरुराय चलण पंकय वर अलिवलु, नव विह जिवदय करणु भयण गय सिंह महाबलु, चंदुज्जलु गण विमलु कित्ति दस दिसिहि पसिद्धउ, दवणु पगंदिय च कसाय गुण गणिहि समिद्धउ, सूरिन्दु पगयप्पय जग सहिउ वंछिउ सुहियण निसनरहु, रिउमंत रंगमय अवहरणु पय पढमक्खरि गुरु सरहु ।।१।।
એમની સૌ પ્રથમ રચના યુગપ્રધાન ચોપાઈ છે. વિ.સં.૧૩૪૭માં મહા મહિને યુગપ્રધાન આચાર્ય જિનચંદ્રસૂરિજીના શિષ્ય વાચનાચાર્ય રાજશેખર ગણિ. કન્નાણા પધાર્યા, ત્યારે વાચનાચાર્ય રાજશેખર ગણિની પાસે પોતાના વતન કન્નાણામાં જ પ્રાકૃત-અપભ્રંશ પ્રધાન ૨૯ ગાથામાં યુગપ્રધાન ચોપાઇની રચના કરી.
આ વાત યુગપ્રધાન ચોપાઇમાં આલેખાઈ છે. तेरह सइतालइ(१३४७) महमासि, रायसिहर वाणारिय पासि, चंद तणुभवि इय चउपईय, कन्नाणइ गुरुभत्तिहि कहिय ।।२७।।
(युगप्रधान चतुःपदिका) શ્રાવક ઠક્કુર ફેરુના જન્મ અને મૃત્યુની કોઈ ચોક્કસ સંવત ઇત્યાદિ પ્રાપ્ત થતી નથી.
For Private and Personal Use Only
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૧૦
अप्रैल - २०१३ એમના દ્વારા પ્રાપ્ત થતી કૃતિઓનો આંશિક પરિચય વિ. સં. ૧૩૭માં વિજયાદશમીના દિવસે પ્રાકૃતમાં ૨૦૫ ગાથાઓમાં વાસ્તુશાસ્ત્ર સંબંધી વાસ્તુસાર નામના ગ્રંથની રચના કરી, ગૃહ-પ્રકરણ, બિંબપરીક્ષા, અને પ્રાસાદ-પ્રકરણ એમ ત્રણ ખંડમાં વિભાજિત વાસ્તુસાર મધ્યકાલીન શિલ્પશાસ્ત્ર અને તત્કાલીન શૈલી ઉપર નવો જ અભ્યાસ આપે છે. તો વિ. સં.૧૩૭પમાં ૧૪૯ ગાથાઓમાં ભારતીય સાહિત્યના અદ્ભૂત ગ્રંથ સમાન દ્રવ્ય પરીક્ષા (મુદ્રાશાસ્ત્ર સંબંધી) ની રચના કરી. ગણિત વિષયક ગણિતસાર નામના મહત્ત્વપૂર્ણ ગ્રંથની ૩૧૧ ગાથામાં રચના કરી, ખરતરગચ્છીય મુનિશ્રી કાંતિસાગરજી મહારાજે ઠકુર ફેરુના નામે ભૂગર્ભપ્રકાશ (વિ. સં. ૧૩૭૬, શ્લોક ૩૧ ભાષા સંસ્કૃત) નામનો એક ગ્રંથ પણ ઉલ્લેખિત કર્યો છે. જે હજુ સુધી ક્યાંયથી પ્રાપ્ત થયો નથી. ઠક્કર ફેરુની રચનાઓ પ્રાકૃત પ્રધાન રહી છે. માત્ર યુગપ્રધાન ચોપાઈની ભાષામાં પ્રાકૃત અને અપ્રભંશની છાંટ ઉતરી આવી છે. એમની કૃતિઓમાં વિર્ય વિષય લોકોપયોગી અને લોકવ્યવહાર પ્રધાન હોવાથી ઠક્કુર ફેરુએ પ્રાકૃત ભાષાની બહુ સરળ શૈલીનો જ ઉપયોગ કર્યો છે.
ઠક્કુર ફેરુ કજ્ઞાણાના નિવાસી હતા, પરંતુ પાછળથી દિલ્લીમાં આવીને રહ્યા, ઠકકુર ફેરુ અલ્લાઉદ્દીન ખીલજીના રાજ્યદરબારમાં ઉચ્ચ-પદે પ્રતિષ્ઠિત હતા, અલ્લાઉદ્દીન ખીલજીના કોશાગારનો કાર્યભાર ઠકુર ફેરુ સંભાળતા હતા, આ વાત એમણે દ્રવ્યપરીક્ષા અને રત્નપરીક્ષા નામના ગ્રંથની રચનાના પ્રારંભમાં જણાવી છે. દ્રવ્ય પરીક્ષા ગ્રંથના ઉલ્લેખાનુસાર દિલ્લીની ટંકશાળમાં કામ કરતાં કરતાં મુદ્રાઓ(દ્રવ્ય)ના અનુભવના આધારે અને રત્નપરીક્ષા ગ્રંથના ઉલ્લેખ અનુસાર અલ્લાઉદ્દીન ખીલજીને રત્નાગારમાં રત્નોનું પોતાની આંખે કુશળ પરીક્ષકો દ્વારા રત્નના યથાર્થ સ્વરૂપ અને શ્રેષ્ઠતાનું જ્ઞાન પ્રાપ્ત કરીને, રત્નોની વિવિધ પ્રકારે પરીક્ષાઓ ફરી, એની સત્યતાની ખાતરી કરીને એમાંથી મળેલા અનુભવોને આધારે આ ગ્રંથોની રચના કરી છે.
जे नाणा मुद्दाई सिरि ढिल्लिय टंकसाल कज्जठिए, अणुभूय करिवि-पत्तिउ वन्हि मुहे जह पयाउ घियं ।।२।।
(દ્રવ્ય પરીક્ષા) अल्लावदीणकलिकाल चक्कवट्टिस्स कोसमज्झत्थं, रयणायरु ब्व रयणुच्चयं च नियदिट्ठिए दट्टुं ।।४।।
(ત્નપરીક્ષા)
For Private and Personal Use Only
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्रुतसागर २७
w
कृतिनुं नाम युगप्रधान चौपाई
ज्योतिषसार
वस्तुसार प्रकरण
रत्नपरीक्षा
धातूत्पत्ति प्रकरण
द्रव्यपरीक्षा
गणितसार
भूगर्भप्रकाश
www.kobatirth.org
ઠક્કુર ફેરુની અન્ય રચનાઓ
रचना काल
વિ. સં. ૧૩૯૪
वि. सं. १३७२
વિ. સં. ૧૩૭૨
वि. सं. १३७२
वि. सं. १३७५
વિ. સં. ૧૯૬
માયા
પ્રાવૃત્ત
अपभ्रंश
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ગયા विषय
२९
स्तुति
प्राकृत
२४२
प्राकृत
२८२
प्राकृत
१३२
प्राकृत
५७
प्राकृत
१४९
प्राकृत
३११
संस्कृत ७५
For Private and Personal Use Only
११
ज्योतिष
शिल्पस्थापत्य
रत्नविज्ञान
धातुवाद
मुद्राशास्त्र
गणित
भूगर्भशास्त्र
યુગપ્રધાન ગુર્વાવલિમાં શ્રાવક ઠક્કુર ફેરુનો એક પ્રસંગ મળે છે.
નાગોરમાં વિ. સં. ૧૩૭૫માં વૈશાખ વિદ આઠમના દિવસે શ્રાવક ઠક્કુર અચલસિંહે તીર્થયાત્રામાં કોઈ અવરોધ કે અટકાવ ન કરી શકે એ હેતુથી મહાપ્રતાપી બાદશાહ કુતુબુદ્દીન સુલતાન પાસેથી તીર્થયાત્રાનું ફરમાન પ્રાપ્ત કર્યું.
તીર્થયાત્રા માટે દરેક સંઘોમાં પત્રિકાઓ મોકલી. ઠેક-ઠેકાણેથી શ્રાવકો આચાર્ય શ્રી જિનચંદ્રસૂરિના સાનિધ્યમાં નાગોરમાં એકત્રિત થયા, શુભ મુહૂર્ત સકલ શ્રી સંઘે હસ્તિનાપુર અને મથુરાની યાત્રાનો પ્રારંભ કર્યો, આ સંઘમાં શ્રીમાલવંશના શ્રાવકો અને ઉકેશવંશના અસંખ્ય શ્રાવકો જોડાયા.
શ્રી ફેરુએ પણ શ્રી સંઘ સાથે હસ્તિનાપુરની તીર્થયાત્રા કરી, ત્યાંથી સંઘે મથુરા તીર્થ તરફ પ્રયાણ કર્યું, દિલ્લી નજીક તિલપથ નામના સ્થાનમાં સંઘે વિશ્રામ કર્યો, આચાર્ય શ્રી જિનચંદ્રસૂરિ મહારાજનો પ્રભાવ સહન ન થવાથી, દ્રમકપુરીય કોઈક આચાર્ય મહારાજે બાદશાહ કુતુબુદ્દીનને કાન ભંભેરણી કરી, કે આચાર્ય જિનચંદ્રસૂરિ તમારી આજ્ઞા વગર સોનાનું છત્ર ધરાવે છે, અને સોનાનાં સિંહાસન ઉપર બેસે છે. આ વાત સાંભળી મલેચ્છ સ્વભાવી બાદશાહે સંઘને રોકી, બધાને કેદ કર્યા. બાદશાહે આચાર્ય મહારાજ અને સાથે રહેલા
૧. (મુનિ શ્રી કાંતિસાગરજીના લેખમાંથી સાભાર)
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अप्रैल · २०१३ સંઘની તપાસ કરી, પણ વાત સાચી ન નીકળતાં કુતુબુદ્દીને દીવાનને આદેશ આપ્યો કે આવી ખોટી વાત કરનાર દંડને પાત્ર છે, એમને દંડ આપો.
રાજાના માણસોથી પકડાઇ જવાના ડરે ગુપ્તસ્થાનમાં સંતાયેલા ચૈત્યવાસી દ્રમકપુરીય આચાર્યને રાજપુરૂષો પકડી, રાજસભામાં હાજર કર્યા, સાચું પૂછવામાં આવતાં જવાબ ન આપી શકવાથી અધિકારી જનોએ આચાર્ય શ્રી જિનચંદ્રસૂરિ તેમજ લાખ્ખો હિંદુ-મલેચ્છ વિગેરે સભાસદોની હાજરીમાં જ લાકડીના પ્રહાર, મુઠીના પ્રહારથી દંડ ફટકારી, બંદીખાનામાં નાંખી દીધા, બાદશાહ તરફથી આ. જિનચંદ્રસૂરિને સ્વચ્છ વિહારની અનુમતિ પ્રાપ્ત થઇ. પણ આ બનાવથી આ. જિનચંદ્રસૂરિજીને બહુ માનસિક પરિતાપ થયો.
દયાળુ સ્વભાવના આચાર્ય મહારાજે દ્રમકપુરીય આચાર્યને છોડાવવા માટે સાધુરાજ તેજપાલ, ખેતસિંહ, સંઘપતિ ઠક્કર અચલસિંહ, તેમજ ઠક્કુર ફેરુ આદિને બોલાવ્યા, દ્રમકપુરીય આચાર્યને છોડાવ્યા વગર આ સંઘ આગળ નહીં વધે, માટે ક્રમકપુરીયાચાર્ય ને છોડાવી લાવો, એવો નિશ્ચય જણાવ્યો ત્યારે સાધુરાજ તેજપાલ, ઠકુર અચલસિંહ, અને ઠકુર ફેરુ વિગેરે પ્રધાન શ્રાવકોએ દ્રમકપુરીય આચાર્યને છોડાવી પૌષધશાળામાં ઉતાર્યા.
આ ઘટના ઉપરથી એક વાત સ્પષ્ટ થાય છે. કે સુલતાન કુતુબુદ્દીનની રાજ્ય સભામાં ફેરુનું સ્થાન બહુ આદરપૂર્ણ અને વિશિષ્ટ હતું. ગુર્નાવલીમાં ફેરુનો છેલ્લો ઉલ્લેખ વિ. સં. ૧૩૮૦નો મળે છે.
ગુર્નાવલીમાં જણાવ્યા અનુસાર દિલ્લી-નિવાસી, શ્રીમાલ કુળમાં જન્મેલા, જિનશાસનની શોભામાં અભિવૃદ્ધિ કરનાર શેઠ સાધુ હરુના દિકરા સાધુ રાયપતિએ શત્રુંજય-ગીરનાર આદિ તીર્થયાત્રાનો સંઘ કાઢ્યો હતો.
આ સંઘના વર્ણનમાં દિલ્લી નિવાસી મુખ્ય શ્રાવકોની નામાવલીમાં પણ ઠક્કર ફેરુનો નામોલ્લેખ મળે છે. એટલે ઠક્કુર ફેરુ વિ. સં. ૧૩૮૦ સુધી નિશ્ચિત પણે હયાત હતા.
સૌ-પ્રથમ ઠક્કુર ફેરુને સાહિત્ય જગતમાં લાવવાનું પુણ્યકાર્ય મોહનલાલ દલીચંદ દેસાઇ એ કર્યું, જૈન સાહિત્યનો સંક્ષિપ્ત ઇતિહાસ (વિ.સ.૧૯૮૯માં પ્રકાશિત)માં પેજ નં.૪૩૧-૪૩૨ પર ઠક્કર ફેરુનો ઉલ્લેખ મળ્યો.
શ્રી દેસાઇના મંતવ્ય અનુસાર ઠક્કુર ફેરુએ જ્યોતિષસાર, દ્રવ્ય પરીક્ષા, અને રત્નપરીક્ષાની રચનાની સાથે તેના પર વૃત્તિઓ પણ કરી.
આમ શ્રી ફેરુ વિક્રમની ૧૪મી સદીમાં એક વિશિષ્ટ શ્રાવક-શ્રમણોપાસક
For Private and Personal Use Only
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
श्रुतसागर २७
१३
હતા, આચાર્ય શ્રી જિનચંદ્રસૂરિ મહારાજના અગ્રગણ્ય શ્રાવકોમાં એમનું સ્થાન હતું. પોતાના હૃદયમાં રહેલું આત્મીય ગુરુભગવંત પ્રત્યેનું બહુમાન યુગપ્રધાન ચોપાઈના શબ્દોમાં ઉતરી આવ્યું છે.
પોતાના ભાઈ અને પુત્રના બોધ માટે કરેલી દ્રવ્યપરીક્ષાની રચનાથી શ્રી ફેરુનું સ્વજન-વાત્સલ્ય પણ જણાઈ આવે છે. તત્કાલીન શાસકો ઉપર માત્ર આચાર્ય ભગવંતોનો જ નહીં પણ શ્રી ફૈરુ જેવા વિશિષ્ટ કોટિના શ્રાવક જનનો પણ અનોખો પ્રભાવ રહ્યો છે. એ શ્રી ફેરુના જીવન પ્રસંગથી જાણી શકાય છે.
જિનાજ્ઞા વિરૂદ્ધ કાંઇ પણ લખાઇ ગયું હોય તો મિચ્છામિદુક્કડમ્ માંગુ છું.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
અભિપ્રાય
તમારા તરફથી મોકલેલ શ્રુતસાગરના અંકો મળ્યા. શ્રુતસાગરમાં વિશેષ લેખો, ઐતિહાસિક પ્રશસ્તિ- પુષ્પિકાઓ, હસ્તપ્રત ઉપરથી કૃતિ સંપાદન ઇત્યાદિ ઘણી સુંદર સામગ્રીઓનો સંગ્રહ થયો છે. આવું જ પ્રકાશન ભવિષ્યમાં સંસ્થા દ્વારા થયા કરે એ જ શાસનદેવને અભ્યર્થના.
આચાર્ય શ્રી સોમચંદ્રસૂરિ
શ્રી સંચાલક ગણ! ધર્મલાભ
તમારું જ્ઞાનમંદિર અમારા જેવા લોકોને બહુ જ ઉપયોગી થાય છે, થતું રહ્યું છે, તે બદલ તમને બધાયને લાખ લાખ ધન્યવાદ ઘટે છે. શ્રુત ઉપાસનામાં સહયોગ કરીને આ સંસ્થા દ્વારા તમે સહુ ધણી કર્મનિર્જરાના ભાગી થાવ છો.
અસ્તુ
આચાર્ય શ્રી શીલચંદ્રસૂરિ
મળ્યા.
શ્રુતસાગર સંપાદકશ્રી! ધર્મલાભ
છત્રધર પૃષ્ઠભાગમાં હોય એવા વિરલ જોવા મળે તેવા ફોટોગ્રાફ્સ જોવા
શ્રુતસાગરમાં સુંદર સામગ્રી પીરસાય છે. ધન્યવાદ!
આચાર્ય શ્રી મુનિચંદ્રસૂરિ
For Private and Personal Use Only
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
કેટલીક પ્રતિલેખન પુષ્પિકાઓ
હિરેન દોશી
વિક્રમની ૧૭ મી સદીની કેટલીક પુષ્પિકાઓ અત્રે પ્રસ્તુત છે. આ પ્રતિલેખન પુષ્પિકાઓ જ્ઞાનમંદિરમાં સંગૃહીત પ્રતોના આધારે અહીં પ્રગટ થાય છે. આ પ્રતિલેખન પુષ્પિકાઓ પ્રાયઃ ક્યાંય નોંધાયેલ નથી. પ્રતિલેખન પુષ્પિકાઓનો ઐતિહાસિક સામગ્રીમાં નોંધ-પાત્ર ફાળો રહ્યો છે. પુષ્પિકાઓના આધારે ઐતિહાસિક તથ્યોને ઉજાગર કરવાના આશયથી જ શ્રુતસાગરના ૨૫ મા અંકમાં કેટલીક પ્રતિલેખન પુષ્પિકાઓ એના સાર સાથે પ્રસ્તુત કરી હતી. આ અંકમાં મૂળ પુષ્પિકાઓ જ ઉતારી છે. પુષ્પિકાઓમાં મળતી નોંધ અને તથ્યોનો વિશેષ પરિચય વાચકોએ સ્વયં મેળવી લેવો.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
9. मेघकुमार स्वाध्याय, पत्र संख्या ४, प्रत क्रमांक - ३९६७३ सकलवाचकशिरोमणि पंडित श्री २१ महोपाध्याय श्री २१ भानुचंद्रगणि शिष्य सकल पंडितश्री २१ श्री श्री श्री देवचंद्रगणि भ्रातृ विवेकचंद्रगणि शिष्य पंडित श्रीश्रीश्री तेजचंद्रगणि भ्रातृ पंडित श्री श्री श्री जिनचंद्रगणि शिष्य गणि जीवनचंद्रेण लिखितं । । । ।मुनि दानचंद्रलिखितं । | | | श्राविका अगरबाई पठनार्थं ।
२. उर्ध्व-अधोलोक परिमाण विचार,
पत्र संख्या - १, प्रत क्रमांक ५३०७३
।। नंदातरिक्षर्तुशशांक वर्षे (१६०९) तैषाद्यपक्षे दशमी शुभानिक श्रियायुतो जेसलमेरदुग्रे विचारपत्र लिलिखे वृषा (षी ?) य ।। श्री जिनमाणिक्यसूरिविजयनि श्रीविजयराजोपाध्यायांतेवासिना पद्ममंदिरेण सा. धर्मसिद्धिगणिनी कृते ।।
-
३. सम्यक्त्वस्तवन सह बालावबोध,
पत्र संख्या ४, प्रत क्रमांक ४४४३२
।। संवत् १६१४ वर्षे आसाढवदि १५ (३०) दिने बृहस्पतिवारे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरि विजयराज्ये वा. श्रीगुणशेखरगणि शिष्य पं. जयविजयगणिना लिखता ।। ।। प्रतिरीयं साध्वी दयामंजरिगणिनी शिष्य साध्वी विजयलि(ल)क्ष्मी वाचनार्थं || || श्रीरस्तुलेखकस्य ।।
४. उत्तराध्ययनसूत्र बृहद्वृत्ति, पत्र संख्या - २३७, प्रत क्रमांक - १४१ संवत् १६१६ वर्षे आसोसुदि विजयदशमी दिने सोमवासरे श्रवणनक्षत्रे श्रीअलवरगढ
For Private and Personal Use Only
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१५
श्रुतसागर - २७
महादुर्गे श्रीबृहत्खरतरगच्छे धीश्वर श्रीश्रीश्री ४ जिनचंद्रसूरिविजयराज्ये श्रीजिनभद्रसुरिगुर्वान्वये श्रीजिनचंद्रसूरि शिष्य महाभाग्यभूषित भालस्थललब्धनिरुपमज्ञानबल श्रीश्रीश्रीरत्नसागरोपाध्याय शिष्यलेश वाचनाचार्य चारित्रमेरुगणिनामुपदेशेन श्रीअलवरपुरवासतव्य ऊकेशवंशीय छजलांणीगोत्रीय सा. सिउधर भार्या पुण्यप्रभाविकाश्राविका पेथाही निज भगिनी श्रा. चाउं पुण्यार्थं श्रीउत्तराध्ययनबृहद् टीका लेखिता।। विहारिता च सा विबुधनजनैर्वाच्यमांना!! || चिरं नंदतु।। ।। लेखिता प्रतिरियं तावत् यावच्चंद्र दिवाकरौ।। || यावज्जैनेंद्रधर्मोऽयं वाच्यामांना च नंदतु।।
७. श्रीजीवविचार बालावबोध (अपूर्ण),
पत्र संख्या - १, प्रत क्रमांक - ४८७८१ ।। संवत् सोलसतरोत्तर (१६१७) वर्षे वैशाखसुदि अष्टमी बुधे पूज्य उपाध्यायश्रीश्रीश्रीविनयभंडनगणींद्र शिष्य पंडित सौभाग्यमंडनगणि लखितं श्री राजनगरे श्रीउसवालज्ञातीय लघुशाखायां सा. नाना भार्या श्राविका नारिंगदे पुत्री श्राविका गांगबाई पठनार्थ ।।
६. ऋषिमंडल स्तोत्र, पत्र संख्या - १, प्रत क्रमांक - १०७८६ || संवत् १६३० वर्षे कार्तिकमासे शुक्लपक्षे अष्टम्यां तीथौ भूमवासरे श्रीधानौध बंदिरे लिखितमिदं ।। संघपती रूपसी सुत भीमराजेन श्री तपागच्छनायक भट्टारकपुरंदरसुंदर श्री५श्री हीरविजयसूरीश्वर आचार्य श्री श्री विजयसेनसूरि बहुपरिवारे सयुत विजयराज्ये पं. श्रीजगर्षिगणि शिष्य ऋषि श्रीविजयमुनि पठनार्थमिदमलेखि परोपकाराय ।।
७. चौपाइ संग्रह, पत्र क्रमांक - ३७, प्रत क्रमांक - १४१९५ ।। सं. १६४५ वर्षे आसाढवदि ४ मंगलवासरे पिफलगवे भ. श्रीश्रीश्री भावसुंदरसूरि तत्पट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरि तत्शिष्येन लपी(लीपि)कृता।। ।।साकडिग्राम मध्ये लखितं ।।
८. अभयकुमार चौपाइ, पत्र संख्या - १४, प्रत क्रमांक - २०३६५ संवत् १६६६ वर्षे आसू(सो)सुदि १० गुरुवारे श्रीबृहत्खरतरगच्छे युगप्रधानजिनचंद्रसरिविजयराज्ये श्रीसागरचंद्रसूरि शाखायां तत्शिष्य वा. श्रीमहिमराजगणि तत्शिष्य वा. श्री सोमसुंदरगणि तत्शिष्य वा. साधुलाभगणि
For Private and Personal Use Only
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
१६
www.kobatirth.org
अप्रैल २०१३
तत्शिष्य वा. चारुधर्मगणि तत्शिष्य मुख्यवाचनाचार्य श्रीसमयकलशगणिवराणांमंतेवासी पं. श्रीधर्मगणि लिखितं । । । । शिष्यमुख्य चिरं मानसिंह पठनार्थे शुभं भवतु || || सिणलीमध्ये लीपि चक्रे ।।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
९. शालिभद्ररास, पत्र संख्या-६, प्रत क्रमांक - १३८१७
।। संवत् १६७५ वर्षे मार्गशीर्ष सित ७ शनिवारे झालावाड देशे मालवाणि ग्रामे पंडित श्री ५ श्री संघविजयगणि चरणारविंदषट्पदायमान गणि देवविजयोऽलिखत् । ।
१०. पार्श्वनाथ चरित्र, पत्र संख्या - १९७, प्रत क्रमांक - १२३६२ || संवत् १६८१ वर्षे आश्विनी सिताष्टम्यां भृगुवासरे पुष्यनक्षत्रे श्रीमत्तपागणगगनविकाशननभोमणि सकलभट्टारकशिरोमणि श्रीमत्साह कमा कुलसदनमणि निजयशोभरनिर्जितनिशामणि भट्टारक श्री ५ श्री विजयसेनसूरीश्वर शिष्य पंडित श्री संघविजयगणि शिष्य गणि देवविजयो लिलेख || ।। स्ववाचनाय ||
-
-
११. षट्पंचाशिका बालावबोध, पत्र संख्या ८, प्रत क्रमांक - १३५१३ तपागच्छाधिराज परमगुरु भट्टारक श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्री विजयसेनसूरीश्वराणां विजयराज्ये महोपाध्याय श्री श्री श्री श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्री मुनिविजयगणि शिष्य वाचकचक्रचक्रवर्तिभालतिलकायमान तपागच्छगगनांगण नभोमणि महोपाध्याय श्रीश्रीश्रीश्रीश्री देवविजयगणि विरचित श्रीअर्हन्नामसहस्त्रसमुच्चये दशमोधिकार ।। संपूर्ण || शिष्य गणि धर्मविजयेन लिपीकृता परोपकाराय श्री सूरति बंदिरे । । 1। संवत् १६९५ वर्षे चैत्रवदि ३ बुधे सुश्राविका पुण्यप्रभाविका श्राविका तेजबाई पठनार्थम् ।।
१२. साधारणजिन स्तवन सह अवचूरि,
पत्र संख्या ४, प्रत क्रमांक - २९५२१
For Private and Personal Use Only
।। सं. १६९७ चैत्रसुदि २ बुधे श्रीअंचलगच्छेश श्री ५ कल्याणसागरसूरींद्रविजयिनि राज्ये श्रीपालीताणाशाखायां श्रीकमलशेखरवाचकानां शिष्य श्रीसत्यशेखरवाचकप्रवराणां शिष्य दक्षवाचनाचार्य श्रीविवेकशेखरगणि परमगुरुणामंतेवासि वा. श्रीविजयशेखरगणि शिष्य विद्याशेखर कृते लिखितं ।।
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
દેવાનંદિત ગચ્છની એક ધાતુપ્રતિમાનો લેખ
આચાર્ય શ્રી સોમચંદ્રસૂરિ
સાધુ ભગવંતોને સંસ્કૃત, પ્રાકૃત વિગેરેના અધ્યયનની જેમ વિહાર પણ એક અધ્યયન માટેનું સાધન છે. જુદા-જુદા ક્ષેત્રોમાં વિહાર કરતા જુદા-જુદા સ્વભાવની વ્યક્તિઓનો, તે-તે ક્ષેત્રની બોલી-રહેણીકરણીનો, તેમજ સાંસ્કૃતિક વારસાનો પરિચય થાય છે. પ્રસ્તુત લેખમાં વિહાર દરમ્યાન વિભિન્ન ચૈત્યોના દર્શન કરતા જે અભ્યાસ યોગ્ય નોંધો મળી તે વિર્ગના ઉપયોગને માટે રજુ કરીશું, તેમાં સૌ પ્રથમ દેવાનંદિતગચ્છ સંબંધિ ઐતિહાસિક ધાતુપ્રતિમા લેખ જોઇશું.
દેવાનંદિતગચ્છ :- આ ગચ્છની શરૂઆત ક્યારે થઇ તેની સ્પષ્ટ નોંધ ક્યાંય મળતી નથી પરંતુ પૂ. ત્રિપુટી મહારાજ ‘જૈન પરંપરાનો ઇતિહાસ ભાગ-૨' માં પ્રસ્તુત ગચ્છ સંબંધી જે વિગત નોંધે છે તેનો વાચકોની જાણ માટે અક્ષરશઃ ઉતારો કર્યો છે. ‘આ ગચ્છનાં દેવાનંદિત અને દેવાનંદ એમ ૨ નામો છે. પુષ્પિકાઓમાં આ ગચ્છ માટે શ્વેતાંબર મહાગચ્છ મહાવીર પ્રણિત નંદિતગચ્છ એવું વિશેષણ મળે છે. આથી નક્કી થાય છે કે આ ગચ્છ શ્વેતાંબરગચ્છ છે.
આની ઉત્પત્તિ માટે સ્પષ્ટ કોઇ હકીકત મળતી નથી એટલે વિશે સંશોધન કરવાની જરૂર છે. આમ છતા આ ગચ્છ માટે અમે ચાર અનુમાન કર્યા છે. ૧. વનવાસી ગચ્છના અંતિમ આચાર્ય શ્રીવિમલચંદ્રસૂરિના ગુરૂભાઇના શિષ્યની પરંપરામાં દેવાનંદગચ્છ વડગચ્છનો સગોત્રીય ગચ્છ હશે.
૨. આચાર્ય ઉદ્યોતનસૂરિએ વડ નીચે એક જ મુહૂર્તમાં ૮ સાધુઓને આચાર્ય પદવી આપી તે પૈકીના એક આચાર્યની આ પરંપરા હશે.
૩. દેવાનંદગચ્છ અને દેવાચાર્યગચ્છ એક હશે. આ રીતે પણ દેવાનંદગચ્છ વડગચ્છો અગોત્રીય હશે.
૪. આચાર્ય અભયદેવસૂરિની પરંપરામાં ૪૧મી પાટે આચાર્ય દેવાનંદ થયા છે તેમના નામથી તે ગચ્છ હશે.’
જૈન પુસ્તક પ્રશસ્તિ (સંપા. જિનવિજયજી) સંગ્રહમાં દેવાનંદિતગચ્છના ઉલ્લેખવાળી ૨ પુષ્પિકાઓ*છે તે સિવાય પ્રાયઃ ધાતુ પ્રતિમા લેખસંગ્રહોમાં આ ગચ્છના ઉલ્લેખવાળા કોઇ લેખો હશે ખરા. આવી થોડી સામગ્રી એકત્રિત કરી આ ગચ્છ સંબંધી વિશેષ માહિતી મેળવી શકાય.
પ્રસ્તુત લેખ ટાણાના ચંદ્રપ્રભસ્વામીના ચૈત્યની ધાતુ પ્રતિમાનો છે. લાંછન
For Private and Personal Use Only
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१८
अप्रैल - २०१३ પ્રાયઃ ઘસાઇ ગયું છે. છતા શાંતિનાથ પ્રભુનું હશે તેવું અનુમાન છે. મૂર્તિ પણ પ્રાયઃ ૧૧” જેટલી છે. પ્રતિમાનું મુખ પૂજાથી ઘસાઇ ગયું છે. બાકીની પ્રભુજીની આકૃતિ એકંદરે સુંદર છે.
श्री शांतिनाथ भगवान श्रीदेवानंदितगच्छे पितृ सहदेव मातृ पाही श्रेयसे सुत राजसीहेन प्रतिमा कारिता। सं. १२६२ वर्षे माघ सु. ....? श्री नरचंद्रोपाध्याय प्रतिष्ठितं ।।
સમ્રાટું સંપ્રતિ સંગ્રહાલયમાં સંગૃહીત ધાતુ પ્રતિમાઓમાં ઉ૫૧માં ક્રમાંકે નોંધાયેલ શાંતિનાથ ભગવાનની ઘાતુ પ્રતિમામાં દેવાનંદગચ્છનો ઉલ્લેખ મળે છે. દેવાનંદગચ્છીય આચાર્ય સિંહદત્તસૂરિ મહારાજ દ્વારા આ પ્રતિમા પ્રતિષ્ઠિત छ. २॥ साथे धातु प्रतिमानो लेप प्रस्तुत छ. - संपा.
शांतिनाथ भगवान, पंचतीर्थी, प्रतिमा क्रमांक - ६७१ सं. १३०३ वर्षे माघ सुदि १४ सोमे दैवानंदितगच्छे श्रे. लाला भार्या सिंगारदेवि पुण्यार्थं सुत हरिपालादिभिः श्रीशांतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसिंहदत्तसूरिभिः ।।
देवानंदगच्छनी प्रतिलेखन पुष्पिका*
प्रमाणांर्तभाव, सं. ११९४, [जेसलमेर बृहद् भाण्डा) - प्रमाणांतर्भावः समाप्तः श्रीदेवानंदगच्छान्वयशिशिरकरे काशिभव्यारविन्दे सूरावुद्योतनाख्ये प्रतपति तपने वादिकुमुदावलीनां । हा(?) राज्ये सानुभावा समभवदमला साधुकूर्चालवाणी वंधा विद्यारविन्दस्थितचरण युगा सद्यशोवर्द्धनाख्या।। तत्पुत्रौ साधुशिष्यौ गुरुपरिचरणप्राप्त.. ज्येष्टोऽसौ देवभद्रोऽपरलघुकवयाः सद्यशोदेवनामा । एनामुन्नाम्यमानां कतिपयरचना बौद्धमीमांसकानां व्यालेखिष्टां विशिष्टां निजगुरुपदवीमीप्समानौ प्रतीतां ।।
संवत् ११९४ भाद्रपद वापभट्टीय चतुर्विंशतिस्तुति वृत्ति, सं. १९११, सुरत, हुकुममुनि ज्ञानभंडार]
((१) इति चतुर्विशतिकावृत्तिः समाप्ता ||छ ।।
............]
For Private and Personal Use Only
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर - २७
जैनसिद्धान्ततत्त्वशतपत्रमकरंदास्वादमधुपेन देवानन्दितगच्छस्वच्छहृदय मुनिमुखमंडनेन श्वेतांबरव्रतिव्रातताराश्वेतरुचिना वाचनाचार्य पंडितगुणाकरेण इयं संसारार्णवनिमज्जमानजनपारनयनमंगिनी साहित्यविचारवेदग्ध्य हृदयोल्लासपंकजप्रबोधचन्द्रिका चतुर्विशतिजिनानां स्तुतिवृत्तिर्लिखापितेति ।।छ।।
श्रीवैद्यनाथामकृतांतकस्य स्नानेन कस्मीरजकर्दमेन् । स्वर्गायते दर्भवती सदा या तस्यां लिलेख स्थितराणकेन ।। विक्रम संवत् १२११ पोष सुदि १४ सोमे।। शुभं भवतु ।। मंगलमस्तु।। लेखकपाटकयोश्च ।।छ।। (२) शोभनस्तुतिवृत्तिप्रान्तेइति चतुर्विशतिकावृत्तिः समाप्ता ।।छ।। श्वेतांबरमहागच्छ महावीरप्रणीत देवानंदितगच्छोद्योतकर वाचनाचार्य पंडि. गुणाकरगणिना चतुर्विंशतिजिनानां स्तुति वृत्तिर्लिखापिता ||छ।। श्री वैद्यनाथेन जिनेश्वरैश्च तपोधनैर्दर्भवती. ।। विक्रम सं. १२११ पौष यदि ८ बुधे ।।छ।। शवमस्तु ।। मंगलमस्तु ।।
ઠાણાંગ બની સાક્ષીએ દેહમાંથી જીવને નીકળવાના પાંચ સ્થાનો
૧. જીવ પગથી નીકળે તો નરક ગતિ પામે. ૨. જીવ સાથળથી નીકળે તો તિર્યંચ ગતિ પામે. ૩. હૃદય અને છાતીના ભાગેથી જીવ નીકળે તો દેવગતિ પામે. ૪. મસ્તક ભાગેથી જીવ નીકળે તો દેવ ગતિ પામે. પ. સર્વાગથી જીવ નીકળે તો મોક્ષ ગતિ પામે. पंचविहे जीवस्स णिज्जाणमग्गे पण्णत्ते, तं जहा - पाएहिं, ऊरूहिं, उरेणं, सिरेणं, सवंगेहिं । पाएहिं णिज्जायमाणे णिरयगामी भवइ, ऊरूहिं णिज्जायमाणे तिरियगामी भवइ, उरेणं णिज्जायमाणे मणुयगामी भवइ, सिरेणं णिज्जायमाणे देवगामी भवइ, सव्वंगेहिं णिज्जायमाणे सिद्धिगइ पज्जवसाणे पण्णत्ते । (स्थानांगसूत्र,स्थान-५, उद्देश-३.)
For Private and Personal Use Only
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी का
जीवन परिचय
डॉ. हेमन्त कुमार जैनजगत नभोमण्डल में देदीप्यमान नक्षत्र के समान महान जैनाचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब ने अपनी योगसाधना के बल पर आत्मा में अन्तर्निहित अनन्त शक्तियों को उजागर कर जगत के उपकार के लिये अनेक प्रकार के सत्कर्मों द्वारा जैनधर्म की उत्कृष्ट मंगलमयी ध्वजा को लहराया।
जिस पावन भूमि के कण-कण में जैनधर्म एवं जैन सिद्धान्त समाहित है, वैसी गुजरात की हरितिमा भूमि के विजापुर गाँव में आज से १४० वर्ष पूर्व विक्रम संवत् १९३० माघ कृष्णपक्ष १३ (महाशिवरात्रि) की अंधकारमयी रात्रि में पिता श्री शिवदास के आंगन में माता श्री अम्बाबाई की कुक्षि से पांचवें सन्तान के रूप में एक प्रकाशपुंज का अवतरण हुआ, जिसका नाम बहेचरदास रखा गया। किसान परिवार में जन्मे बालक का बालपन गाँव के बाग-बगीचों, खेत-खलिहानों में और नदी के किनारे व्यतीत हुआ।
बहेचरदासजी का शारीरिक और बौद्धिक विकास अत्यन्त तेजस्वी था। माता-पिता एवं बड़ों का आदर, विनय-विवेकयुक्त व्यवहार से सबके प्रिय बालक थे। बालपन से ही एकान्तप्रिय, चिन्तनशील और परोपकारी भावनाओं से परिपूर्ण बहेचरदासजी ने प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के ही प्राथमिक शाला में प्राप्त की। अपने परिवार में शिक्षा ग्रहण करने हेतु विद्यालय जाने वाले ये प्रथम व्यक्ति थे। सातवीं कक्षा तक इन्होंने वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त कर सभी शिक्षकों का हृदय जीत लिया था। नया जानने एवं नया पढ़ने के लिये सदैव उत्सुक रहते थे। शिक्षा के प्रति इनके अन्दर इतना अधिक लगन था कि वे बाल्यावस्था से ही सरस्वतीमंत्र की साधना करते थे। बालपन में ही काव्यसजन की शुरुआत भी कर दी थी और माँ शारदे की कृपा से वह विधा बाद में इतनी विकसित हुई कि उन्होंने संस्कृतगुर्जर भाषा में आत्मलक्षी लगभग १०८ विशिष्ट ग्रन्थों की रचना की। ___वैराग्य का बीज अन्तर में तो था ही संयोग मिला एक अप्रत्याशित घटना का | जब बहेचरदासजी की आयु १५ वर्ष की थी तभी एक अजीब सी घटना ने इनके जीवन में अप्रत्याशित परिवर्तन कर दिया। गाँव में दो भैंस आपस में लड़ रहे थे और तभी उस मार्ग से जैनसाधुओं का दल गुजर रहा था, लोगों को लगा कि अब जैनसाधुओं के साथ कुछ अनहोनी होकर ही रहेगी तभी बालक बहेचरदास
For Private and Personal Use Only
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर - २७
२१ की नजर गई और देखते-देखते ही बालक ने एक छलाँग में वहाँ पहुँचकर भैंसों को मारकर अलग किया और जैनसाधुओं को बचाया। अभी बहेचरदासजी राहत के दो श्वांस भी नहीं ले पाये थे तभी जैनसन्तों ने कहा- अरे भाई ! ये तो मूक प्राणी हैं, इन्हें क्यों कष्ट दे रहे हो, किसी भी प्राणी को मारना हिंसा है और हिंसा महापाप है, अहिंसा परमधर्म है। जैन सन्तों की चमत्कारपूर्ण वाणी बहेचरदास के हृदय में हिलोरें लेने लगी, कानों में बार-बार अहिंसा ... पीड़ा ... महापाप .... आदि शब्द गूंजने लगे। इन दो शब्दों का इनके हृदय पर इतना प्रभाव पड़ा कि तत्काल उस बालक ने जैन सन्त रविसागरजी महाराज साहब के चरणों में अपना शीश नमाया और तबसे उनके सान्निध्य में अपना जीवन समर्पित कर दिया | इस छोटी सी घटना ने गाँव के निरक्षर किसान परिवार में जन्मे बहेचरदास को जैन नभोमण्डल के देदीप्यमान नक्षत्र के रूप में स्थापित कर दिया।
ज्ञान ग्राहकता - विजापुर के जैन उपाश्रय में पूज्य रविसागरजी महाराज के सान्निध्य में बहेचरदासजी ने जैनधर्म की तप-त्याग की बातें सुनी और उसी दिन से रात्रिभोजन व कंदमूल का त्याग कर दिया, नियमित जिनपूजा, देवदर्शन, गुरुवंदन आदि नियम का पालन करने लगे। प्रतिदिन पाठशाला जाना शुरु किया
और अल्पावधि में ही पंचप्रतिक्रमण, चारप्रकरण, स्तुति, स्तवन आदि का अभ्यास पूर्ण कर लिया। उन दिनों विजापुर के शेठ श्री नथुराम मंछाचंद दोशी और उनकी धर्मपत्नी जडावबेन ने बहेचरदासजी को जैनधर्म के रंग में रंगने में सक्रिय योगदान दिया। संस्कारदाता माता-पिता की छत्रछाया में बहेचरदासजी ने जैनधर्म के सूत्रों के साथ संस्कृत उर्दू और अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान प्राप्त किया। श्री रविसागरजी महाराज साहब द्वारा महेसाणा में स्थापित श्री यशोविजयजी जैन संस्कृत पाठशाला में विशेष शिक्षा प्राप्त करने हेतु बहेचरदासजी को शेठ श्री नथुराम दोशी ने भिजवाया | बहेचरदास के रूप में पहुँचे बालक ने उस पाठशाला के विद्यार्थी से जैन साधु और प्रथम जैनाचार्य होने का गौरव प्राप्त कर जैनशासन के यशस्वी आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वर के रूप में ख्याति प्राप्त की। उनकी वांचनशक्ति अद्भुत थी, उन्होंने जैनधर्म-दर्शन के अतिरिक्त वैदिक एवं बौद्ध धर्म के ग्रन्थों का भी खूब अध्ययन किया।
योगनिष्ठ जैनाचार्य - महेसाणा में विद्याभ्यास के क्रम में बहेचरदासजी ने श्री रविसागरजी महाराज एवं उनके शिष्यपरिवार की खूब लगन के साथ सेवासुश्रुषा की। इस बीच श्री रविसागरजी महाराज ने उन्हें तप-साधना के अनेक सूत्र दिये जिसके बल पर भविष्य में वे जैनशासन के महान योगनिष्ठ जैनाचार्य बने।
For Private and Personal Use Only
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
२२
अप्रैल २०१३
महान संयमी - जैनधर्म में भगवान महावीर द्वारा प्ररूपित संयमव्रत ग्रहण करना और उसका पूर्णरूपेण पालन करना महान सौभाग्य की बात है। जैनसन्तों के सान्निध्य में रहकर शिक्षा प्राप्त करना एवं जैनशास्त्रों के अध्ययन से उनका मन विरक्ति की ओर प्रवाहित हो रहा था तभी वि. सं. १९५६ में गुजरात में भयानक अकाल पड़ा। बहेचरदासजी तब अहमदाबाद में थे, उस समय शेठ श्री नथुराम दोशी का पत्र आया कि आपके माता-पिता का स्वर्गवास आश्विन मास में चार-पाँच दिनों के अन्तराल में हो गया है। मृत्यु तो देह का होता है, यह ज्ञान बहेचरदासजी ने अपने अन्तर में तो पहले से ही पाल रखा था, वे विरक्त भाव से विजापुर पहुँचे और माता-पिता की सांसारिक विधियों का सादगी के साथ पूर्ण कर वापस पालनपुर पहुँचे। श्री रविसागरजी महाराज के शिष्य श्री सुखसागरजी महाराज पालनपुर में बिराजमान थे। उनकी वन्दना करके उनसे दीक्षा प्रदान करने की विनती की। विक्रम संवत् १९५७ मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष षष्ठी के दिन पालनपुर के नवाब और जैन श्रीसंघ के द्वारा भव्य दीक्षा महोत्सव का आयोजन किया गया जिसमें बहेचरदासजी को मुनिश्री बुद्धिसागरजी के रूप में पहचान मिली। नवदीक्षित मुनिश्री बुद्धिसागरजी दीक्षा ग्रहण करने के समय से ही अप्रमत्त संयमपालन, तपआराधना, योग-साधना, शास्त्रों का गहन अध्ययन आदि प्रारम्भ किया और जीवनपर्यन्त उनका अविच्छिन्न रूप से पालन किया । इनकी निष्कलंक ब्रह्मचर्ययुक्त प्रतिभा और तपोमय योगसिद्धि की सुवास सर्वत्र फैलने लगी । अपरिग्रही और अनासक्त जीवनशैली के धनी श्री बुद्धिसागरजी गोचरी में शुष्क आहार, एकासणा तप करते हुए साहित्य - सर्जन में आकंठ डूबे रहे ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
4
इनके निर्मल और यशोमय जीवन से प्रेरित होकर पादरा के जैन श्रीसंघ ने चतुर्विध श्रीसंघ की उपस्थिति में इन्हें विक्रम संवत् १९७० मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन इन्हें आचार्यपद पर स्थापित किया ।
For Private and Personal Use Only
जैनधर्म एवं मूर्त्तिपूजा के प्रबल समर्थक दीक्षाजीवन का प्रथम चातुर्मास सुरत में व्यतीत किया, उस समय जयमल पद्मींग नामक एक खिस्ती ने अपने प्रवचन में जैनधर्म के विरुद्ध बातें की। जैनशासन को अपने जीवन के कण-कण में समाहित करचुके और जैनधर्म के पंचमहाव्रत को आत्मसात करचुके श्री बुद्धिसागरजी महाराज को जब इस बात की जानकारी मिली तब उन्होंने 'जैनधर्म अने ख्रिस्ती धर्मनो मुकाबलो नामक ग्रन्थ की रचना कर उसका मुंहतोड़ जवाब दिया । इस ग्रन्थ के प्रकाशित होते ही जयमल पद्मींग सुरत से गायब हो गये। मुनिजीवन के प्रथम सोपान पर धर्मरक्षा के लिये मिली सफलता ने मुनिश्री
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर - २७ की प्रतिभा को चार चाँद लगा दिया।
दूसरी घटना विक्रम संवत् १९६२ में अहमदाबाद के पत्रकार वाडीलाल मोतीलाल शाह ने अपने मुखपत्र हितेच्छु में महानिशीथसूत्र में से कमलप्रभाचार्य का दृष्टांत लेकर मूर्तिपूजा के विरोध में लेख प्रकाशित किया तथा उसी समय मथुरा में स्वामी दयानन्द जन्मशताब्दी के अवसर पर एक श्वेताम्बर स्थानकवासी साध्वीजी का लेख 'अमे मूर्तिपूजामा केम मानता नथी पढ़ा गया। उन प्रसंगों को ध्यान में रखकर मुनिश्री ने एक ग्रन्थ 'जैनधर्ममां मूर्तिपूजानुं विधान' की रचना की। उन्हीं दिनों एक प्रखर विद्वान और कुशल वक्ता स्थानकवासी जैन साधु श्री अमीऋषिजी से अहमदाबाद में अचानक मुलाकात हुई और मुर्तिपूजा की चर्चा निकल पड़ी। श्री अमीऋषिजी ने कहा- यदि आप शास्त्रों के आधार पर मूर्तिपूजा सिद्ध कर देंगे तो मैं अभी अपने सम्प्रदाय को त्यागकर आपका शिष्य बन जाऊँगा। दोनों विद्वानों के बीच चर्चा हुई और अनेक साक्ष्यों के आधार पर श्री बुद्धिसागरजी ने जैनशास्त्र में मूर्तिपूजा का विधान है, यह सिद्ध करके श्री अमीऋषिजी को सन्तुष्ट कर दिया। श्री अमीऋषिजी ने भी अपने वचन का पालन करते हुए उनका शिष्यत्व ग्रहण किया और मुनिश्री के प्रथम शिष्य श्री अजितसागरजी के नाम से विख्यात हुए।
तीसरी घटना विक्रम संवत् १९८० में पंजाब की है जहाँ लाला लाजपतराय जैनधर्म विरोधी कई बातें कर रहे थे। तब श्रीमद्जी ने उनकी बातों का प्रतिकार करने हेतु एक ग्रन्थ 'लाल लाजपतराय अने जैनधर्म की रचना की।
इस प्रकार उनके जीवनकाल में जब कभी भी ऐसा प्रतीत हुआ कि जैनधर्म या मूर्तिपूजा के विरोध में कहीं कोई गलत प्रचार कर रहा है, तब उन्होंने अपनी लेखनी के सहारे करारा जवाब देकर जैनधर्म एवं मूर्तिपूजा की महत्ता को सदैव स्थापित किया।
साहित्य सर्जन - विक्रम संवत् १९५७ से १९८१ के दौरान पूज्यश्री ने नियमित लेखन कार्य जारी रखा। अपने साधुजीवन के २४ वर्षों में श्रीमद बुद्धिसागरसूरिजी ने विविध विषयों पर लगभग १०८ ग्रन्थों की रचना कर अपनी विद्वत्ता एवं जैनधर्म के प्रति कटिबद्धता को प्ररूपित किया है। उनके द्वारा रचित ग्रन्थों में कर्मयोग, अध्यात्म महावीर, जैनोपनिषद्, शिष्योपनिषद्, आत्मदर्शन गीता, प्रेमगीता, गुरुगीता, जैनगीता, अध्यात्मगीता, श्री जैन महावीर गीता, कृष्णगीता आदि जैनधर्म व सिद्धांतों को समझने में सामान्य जनों के लिये बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुए। उनके कर्मयोग नामक ग्रन्थ का स्वागत करते हुए
For Private and Personal Use Only
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२४
अप्रैल - २०१३ लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने मांडला जेल से लिखा था कि यदि मुझे पहले यह पता होता कि आप कर्मयोग पर लिख रहे हैं तब में अपना कर्मयोग कभी नहीं लिखता, आपके इस ग्रन्थ को पढ़कर मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ।
पूज्य आचार्यश्रीजी ने गद्य और पद्य में समान रूप से लेखनकार्य किया है। उनके अनेक काव्यग्रन्थ भी हैं। उन्होंने काव्य, गजल, भजन, पद, स्तवन, गहुंली आदि की रचना के साथ ही साथ पूजाओं की भी रचना की है। अपने साधुजीवन काल में उन्होंने अपने भक्तों तथा शिष्यों को सम्बोधित करते हुए अनेक प्रेरक पत्र भी लिखा है। श्रीमदजी प्रतिदिन डायरी लिखा करते थे। जीवनचरित्र, प्रतिमालेख एवं अन्य विद्वानों के पदों के भावार्थ भी उनके लेखन का महत्त्वपूर्ण अंग रहा है। उनके द्वारा रचित ग्रन्थों का अवलोकन करने पर स्वतः यह निष्कर्ष निकलता है कि उनका लेखनकार्य विविध विषयों पर विस्तृत रूप से हुआ है। उनके ग्रन्थों एवं प्रवचनों का प्रकाशन समय-समय पर होता रहा है और जिज्ञासु आत्माएँ अपनी जिज्ञासा की तृप्ति करती रही हैं।
तीर्थ स्थापना - निरन्तर सबका कल्याण चाहने वाले एवं मधुर वक्ता श्रीमद्जी ने अपनी योगसाधना भी अक्षुण्ण रखी थी। योगसाधना के क्रम में शासनरक्षक श्री घंटाकर्ण महावीरदेव का साक्षात्कार हुआ । श्रीमद्जी ने महुडी में इस प्रभावकदेव की स्थापना विक्रम संवत् १९७५ में करवाई। एकान्तवादी जैनों ने उनका विरोध किया तो उसका महत्त्व समझाने हेतु 'श्रीघंटाकर्ण महावीर' नामक ग्रन्थ की रचना की। आज इस तीर्थ की यात्रा करने हजारों जैन/जैनेतर प्रतिदिन आते हैं।
अद्भुत भविष्यवाणी - विक्रम संवत १९६७ में ब्रिटिश शासन विश्व में अपना ध्वज लहरा रहा था। भारत की आजादी हेतु खूब जोरदार लड़ाई चल रही थी। संदेश प्रसारण एवं प्रेषण की व्यवस्था नहिवत् थी और विज्ञान के विकास का प्रारम्भिक समय ही चल रहा था तब श्रीमद्जी द्वारा विज्ञान के विकास सम्बन्धित की गई भविष्यवाणी आज अक्षरशः पूर्ण हो रही है। विज्ञान के क्षेत्र में अप्रत्याशित विकास हुआ है और आज समस्त विश्व की खबरें हम घर बैठे साक्षात देख व सुन सकते हैं तथा हम क्षणभर में सम्पूर्ण विश्व के साथ सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं। विश्व के इतिहास में ऐसी सचोट भविष्यवाणियाँ बहुत कम हुई हैं।
धर्मोन्नति और समाजहित - श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी महाराज धर्मोन्नति, समाजहित आदि का कार्य भी सतत करते रहे थे। उनकी प्रेरणा से अनेक
For Private and Personal Use Only
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२५
श्रुतसागर - २७ पाठशाला, धर्मशाला, मन्दिर, सेनेटोरियम आदि की स्थापना हुई है। छरी पालित यात्रासंघ, उपधान तप आदि अनेक धार्मिक कार्यों के आयोजन करवाये गये। पूज्यश्री अपने सतत विहारक्रम में विविध भाषाओं में लिखित हजारों हस्तलिखित एवं मुद्रित पुस्तकों को संगृहीत कर विजापुर जैनसंघ को अर्पित किया और उसकी सुव्यवस्था हेतु श्रीसंघ ने एक विशाल ज्ञानमन्दिर की स्थापना करवाई। आप शिक्षा के प्रचार प्रसार हेतु सदैव जाग्रत रहे। आपने एक ऐसे ज्ञानमन्दिर की कल्पना की थी, जो आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण एवं शास्त्रों से समृद्ध हो तथा उसके संचालन हेतु पर्याप्त स्थाई फंड हो। आपकी कल्पना को राष्ट्रसन्त आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज ने आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर की स्थापना कर साकार किया है।
शिष्य परिवार - इनके मुख्य शिष्यों में श्री अजितसागरसूरि, श्री ऋद्धिसागरसुरि, श्री कीर्तिसागरसूरिजी आदि हैं। आज तपागच्छ के सागर समुदाय में विद्यमान विशाल साधु-साध्वी उनके शिष्य परिवार के सदस्य हैं।
विरल विभूति श्री बुद्धिसागरसूरिजी माटी से महामानव तक की विराट यात्रा का नाम है। वैष्णव किसान परिवार में जन्मे बालक पर एक जैन सन्त का इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उसका जीवन जैनत्व के अद्वितीय प्रकाशपुंज से आलोकित हो गया। सतत् स्वाध्याय, प्रभुभक्ति, गुरुजनों के प्रति आदर, साहित्यसृजन, योगसाधना और चारित्र्यनिष्ठा उनके जीवन का प्रमुख अंग था । आपके साहित्य में भी इन गुणों की झलक मिलती है। योगसाधना ने इनके जीवन को अद्भुत रूप प्रदान किया। इनके उदगार इनके आत्मानन्दी होने की गवाही देते हैं। इनकी योगसाधना ने इन्हें योगनिष्ठ आचार्य के रूप में प्रसिद्ध कर दिया । __ परम पूज्य आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब की १४०वीं जयन्ती का वर्ष मनाया जा रहा है, इस मंगलमय वर्ष में पूज्यश्री के गुणों का स्मरण करते हुए उनके पावन चरणों में हम उन्हीं के द्वारा रचित पंक्तियों के माध्यम से उनकी वन्दना करके अपना जीवन कृतार्थ करें
पगलां पड्यां त्हारां अहो ज्यां तीर्थ ते मारे सदा तव पादनी धूलि थकी, न्हातो रहुं भावे मुदा तव पाद पद्मे लोटतां, पापो कर्या रेहवे नहि, तें चित्तमा जे मानीयु, ते मान्य तो मारे सही...।
For Private and Personal Use Only
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
१
२
३
४
५
१०
११
१२
१३
१४
१५
१६
१७
१६
जीवकप्रबोध
७-८ जैनधातु प्रतिमा लेख संग्रह
( भाग १-२ )
ग्रंथनुं नाम
कृष्णगीता
चेटकबोध
अध्यात्मगीता
आत्मस्वरूप
आत्मसमाधिशतक
बुद्धिसागरसूरि साहित्य वैभव
संस्कृत साहित्य सर्जन
योगप्रदीप
शुद्धोपयोग
प्रजासमाज कर्तव्य
प्रेमगीता
महावीर गीता
www.kobatirth.org
संघ कर्तव्य
शोकविनाशक ग्रंथ
श्रेणिक सुबोध
सुदर्शना सुबोध
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विषय
अध्यात्म संबंधी
आत्म तत्त्वनो परिचय
समाधि भावनी प्राप्तिना उपाय
गीतानो स्याद्वाद दृष्टिए परिचय
भगवान महावीरे चेडा राजाने आपल हितोपदेश
जीव तत्त्वनी शक्तिनो परिचय ऐतिहासिक द्रष्टिए महत्त्वपूर्ण धातु प्रतिमा लेखोनुं संकलन
प्रजाना कर्तव्यनो अने नियमोनो परिचय प्रेमना विविध आयामोनो परिचय निश्चय अने व्यवहार विशे महावीरनुं चिंतन अने निरूपण
योगना स्वरूप अने महात्म्यनो परिचय आत्मगुणो अने श्रेणिकना जीवननो गहन
अभ्यास
वैराग्यना कारण रूप शोकनो परिचय राजा श्रेणिक अने तेना अभ्यंतर गुणोनो
परिचय
सुदर्शनाना माध्यमे भगवान महावीरना उपदेशनो परिचय
For Private and Personal Use Only
संघनी भक्ति, संघनी रक्षा, अने संघना कर्तव्यनो परिचय
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्रुतसागर - २७
१८
१९
२१
२२
२३
२४
२५
२६
२० आत्मप्रकाश
२७
२८
ग्रंथनुं नाम
२९
३०
३१
३२
३३
३४
३५
ज्ञानदीपिका
आत्मतत्त्व दर्शन
| आत्मानुशासन
जैनोपनिषद
दयाग्रंथ
परमात्मदर्शन
|परमात्मज्योति
प्रतिज्ञापालन
योगदीपक याने योग समाधि
विजापुर वृत्तांत (लघु)
शिष्योपनिषद
समाधिशतक
www.kobatirth.org
साम्यशतक
| आत्मदर्शन गीता
| गुणानुरागकुलक
जैनगीता
ध्यान विचार
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विषय
जीव तत्त्व अने शिव तत्त्वनो पद्यात्मक
परिचय
अन्य दर्शनोनी साक्षीए आत्मतत्त्वनी
विचारणा
२७
आत्म तत्त्व अने सप्तभंगीनो
| समालोचनात्मक स्वरूप परिचय शुभ परिणाम के स्थिरीकरण का उपाय जैनधर्मनो राष्ट्र अने विश्वव्यापी परिचय
आत्म तत्त्व अने अहिंसानो विशिष्ट
परिचय
परमात्म प्राप्तिना उपायो
परमात्म प्राप्तिना उपायो
उदाहरण सहित प्रतिज्ञापालनना सुंदर पद्यो
देहात्म भेद अने ब्रह्मावस्थानो परिचय अन्य ग्रंथोने आधारे विजापुरनो ऐतिहासिक परिचय
गुजराती साहित्य सर्जन
शिष्यनी योग्यता अने गुणोनो परिचय पुद्गलप्रेम अने परमात्मप्रेमनुं स्वरूप समत्वनी प्राप्तिना उपायो
आत्मदर्शनना उपायो गुणद्रष्टि केळववाना उपायो
| जैन तत्त्वोना प्रकारो अने एनो परिचय
ध्यानना चार प्रकारोनो विस्तृत परिचय
| ३६- ३८ अध्यात्म महावीर भाग १ थी ३ | भगवान महावीर विशेनुं चिंतन
३९
अध्यात्म शांति
| अध्यात्म संबंधी
For Private and Personal Use Only
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
२८
४०
४१
४२
50 30
४३
४४
३
४५
४६
४७
| ४८
| ४९
५०
६४
ग्रंथनाम
अध्यात्म भजनसंग्रह
अध्यात्म व्याख्यानमाळा
६५
६६
अनुभव पच्चीशी
अनुभव बहोंतरी
आत्मशक्ति प्रकाश
आत्मप्रदीप
आत्मदर्शन
आत्मशिक्षा भावना
आनंदघनपद भावार्थ
ईशावास्योपनिषद
कक्कावली सुबोध
५१
कर्मयोग
५२
| कन्याविक्रयनिषेध
५३
गच्छमत प्रबंध
५४-५५ गहुलीसंग्रह भाग १ थी २
| ५६-५७ गुरुगीत गहुंली भाग १ थी २ गुरुबोध
५८
५९
घंटाकर्ण महावीर
६०
चिंतामणी
६१
६२
६३
www.kobatirth.org
चेतन शक्ति
चोमासी देववंदन
| जैनधर्मनी प्राचीन अने
अर्वाचीन स्थिति
जैनधर्म शंका-समाधान
| जैनधर्म- ख्रिस्ती धर्मनो संवाद
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विषय
आध्यात्मिक पद्य
आध्यात्मिक प्रवचन
आध्यात्मिक पद्य
आध्यात्मिक पद्य
आत्मतत्त्व चिंतन
आत्मतत्त्व चिंतन
आत्मतत्त्व चिंतन
अप्रैल २०१३
| आत्माने हितशिक्षा
| आनंदघनना पदोनो अर्थ
| उपनिषद् अने स्याद्वादनो परिचय जैनतत्त्व अने मानवना उत्थाननो परिचय
For Private and Personal Use Only
-
मानव विकास अने महात्म्यनो परिचय सामाजिक 'दूषण अने पतननो परिचय
विविध गच्छोनो ऐतिहासिक परिचय गहुली संग्रह
गहुली संग्रह
| गुरुतत्त्वनो परिचय
घंटाकर्ण महावीरनो परिचय
आचार सूत्रो
चैतन्यना महिमानो परिचय
देववंदन आराधना विधि
जैन धर्मनो तुलनात्मक परिचय
जैनधर्म अने ख्रिस्तीधर्मनो मुकाबलो जैन धर्म अने ख्रिस्ती धर्मनो तुलनात्मक
परिचय
प्रश्नोत्तर
आगम साक्षी मूर
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२९
८७
श्रुतसागर • २७
ग्रंथनु नाम |जैनसूत्रमा मूर्तिपूजा ६८ तत्त्वविचार
तत्वज्ञान दीपिका ७० तत्त्वबिंदु ७१ तीर्थयात्रानुं विमान
विषय मूर्तिपूजानो आगम साक्षीए परिचय जीव तत्त्वनो परिचय जैन तत्त्वोना प्रकारो अने एनो परिचय जैन तत्त्वोना प्रकारो अने एनो परिचय तीर्थनी सेवा, अने तीर्थनी आशातनाना प्रकारोनुं वर्णन पूज्यश्रीन धर्म अने जीवन संबंधे व्यापक
धार्मिक गद्य संग्रह
चिंतन
८८
७३-७४/ पत्र सदुपदेश भाग १ थी ३ । पत्रना माध्यमे पूज्यश्रीनी चिंतन
कणिकाओ ७५-७६) पूजासंग्रह भाग १-२ विविध पूजाओ® संकलन ७७-८ भजनपद संग्रह भाग १ थी ११ आध्यात्मिक पद्य
| भारत सहकार-शिक्षण काव्य प्रकृतिना वरदानथी अने राष्ट्रनी उन्नति | मित्र-मैत्री
मित्र अने मैत्रीना निस्वार्थ संबंधनो
परिचय | मुद्रित जैन श्वेताम्बर ग्रंथ गाइड| विविध विषयोनी सूचि मंगलपूजा
विविध पूजाओगें संकलन यशोविजयजी निबंध पू. महोपाध्यायजी म. सा.नो परिचय रविसागर चरित्र
जीवन परिचय | लाला लजपतराय अने जैनधर्म | | लजपतरायना आक्षेपो अने पूज्यश्रीनो
शास्त्रनी साक्षीए जवाब वचनामृत (मोटुं)
श्रावक धर्मनो परिचय वचनामृत (नानु)
श्रावक धर्मनो परिचय | वास्तुपूजा
विविध पूजाओगें संकलन विजापुरवृत्तांत
विजापुरनो बृहद् परिचय सत्यस्वरूप
| सत्यनी गवेषणा अने सत्यनो परिचय | साबरमती गुण शिक्षण काव्य | नदीना गुणोमांथी मळती मनुष्यजातिने
| प्रेरणा
For Private and Personal Use Only
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३०
अप्रैल - २०१३ ग्रंथतुं नाम
विषय १०१ | सुखसागर गीता
जीवन परिचय सुखसागर चरित्र
जीवन परिचय १०३ | संघप्रगति महामंत्र संघ समृद्धिना उपाय अने नूतन
अभिगमो सांवत्सरिक क्षमापना क्षमा धर्मनो परिचय १०५ | स्तवन संग्रह
जिन गुण स्तवना १०६ | षड्द्रव्य विचार
द्रव्यानुयोगनो विशिष्ट परिचय १०७- | श्रावकधर्म स्वरूप (भाग १-२) | भाव श्रावकना सत्तर गुणोनो विशिष्ट १०८
परिचय
बुद्धिसागर तू ही सोही
श्री मुकेशभाई एन. शाह बुद्धिसागर तेरा जनम दिवस है, मुबारक हो सब को आज, जनमजात का योगी तू था, तेरी ना है और कोई जात
वीजापर का बेचर था त, अंबामाई का था तु लाल, शिवरात्रि के मंगल दिन पर, शिवदासने दी थी तेरी मिशाल सूरज को ही बे नकाब करके, रविसागरने कर दिया कमाल रचकर तूने अल्पकाल में, कर्मयोग और १०८ ग्रंथ विशाल,
मधुपुरी का वीर भी था तू, और बोरीज का महावीर भी था तू,
पद्मप्रभु का प्यारा जोगी, घंटाकर्ण का उजागर भी था तू छोटे बडों का छत्तीस कोम का, प्यारा जोगीश्वर भी था तू, हिंदुस्तान का मस्त सपूत था, जिनशासन का रखवाला भी था तू
१४० साल पहले आया था तू जगमें, नाम ले तेरा निशदिन सब कोइ वटवा के परम शांतिवनमें अहालेक तेरी, बुद्धिसागर तू ही सोही
॥सोहम् ।।
For Private and Personal Use Only
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
આચાર્યશ્રી કૈલાસસાગરસૂરિ જ્ઞાનમંદિર, કોબા
સંક્ષિપ્ત કાર્ય અહેવાલ માર્ચ-૧૩ જ્ઞાનમંદિરના વિવિધ વિભાગોના કાર્યોમાંથી માર્ચમાં થયેલાં મુખ્ય-મુખ્ય કાર્યોની ઝલક નીચે પ્રમાણે છે ૧. હસ્તપ્રત કેટલૉગ પ્રકાશન કાર્ય અંતર્ગત કેટલૉગ નં. ૧૪ તથા ૧૫ માટેનું ક્વેરી,
યુનિક કાર્ય પૂ. હાલ ફુલ રીપોર્ટના આધારે પ્રફ કાર્ય ચાલુ છે. તે સિવાય કુલ ૧૬૧ પ્રતો સાથે કુલ ૪૧૪ કૃતિલિંક થઈ અને આ માસાંત સુધીમાં કેટલોગ નં. ૧૬
માટે ૧૬૫૪ લિંકનું કાર્ય પૂર્ણ થયું. ૨. હસ્તપ્રત સ્કેનીંગ પ્રોજેક્ટ હેઠળ હસ્તપ્રતોના ૯૧૧૨૨ પૃષ્ઠો સ્કેન કરવામાં આવ્યાં. ૩. વિના કલ્યાણ ગ્રંથ પુનઃ પ્રકાશન પ્રોજેક્ટ હેઠળ ૬૭૪ પાનાઓની ડબલ એન્ટ્રી
કરવામાં આવી. ૪. લાયબ્રેરી વિભાગમાં જુદા-જુદા ૭ દાતાઓ તરફથી ૪૪૭ પુસ્તક ભેટ સ્વરૂપે પ્રાપ્ત થયાં તેમજ જુદા જુદા પુસ્તક વિક્રેતાઓ પાસેથી ૪૬૬૨૫ની કિંમતના પુસ્તકો
ખરીદવામાં આવ્યાં. ૬. લાયબ્રેરી વિભાગમાં પ્રકાશન એન્ટ્રી અંતર્ગત કુલ ૨૧૫ પ્રકાશન, ૫૨૩ પુસ્તકો
તથા પ્રકાશનો સાથે ૨૦૬ કૃતિ લીંક કરવામાં આવી, તેમજ ૧૨૩ કૃતિઓ તથા ૧૭ પ્રકાશન કૃતિલિકની સંપૂર્ણ માહિતી સુધારવામાં આવી. ૭. મેગેઝિન વિભાગમાં ૧૧૯ મેગેઝિન અંકોના ૪૧૦ પેટાંકની સંપૂર્ણ માહિતી ભરવામાં
આવી તથા તેની સાથે યોગ્ય કૃતિ લિંક કરવામાં આવી. ૮. ૧૨ વાચકોને હસ્તપ્રત તથા પ્રકાશનોના ૩૩૬૫ પાનાની પ્રીન્ટ કોપી ઉપલબ્ધ
કરાવવામાં આવી. આ સિવાય વાચકોને કુલ ૬૦૭ પુસ્તકો ઈશ્ય થયાં તથા ૪૩૨ પુસ્તકો જમા લેવામાં આવ્યાં. વાચક સેવા અંતર્ગત પૂ. સાધુ-સાધ્વીજી ભગવંતોને તથા વિદ્વાનોને નીચે પ્રમાણે માહિતી આપવામાં આવી. a. ડ. કવિનભાઈ શાહને વિવિધ ગ્રંથોમાંથી વેલી સંબંધિત સાહિત્ય શોધી ઝેરોક્ષ કરી આપી. 6. સેક્ટર-૧૫માં આવેલ સરકારી કોલેજના એમ.એ ના વિદ્યાર્થીઓને સંસ્કૃત સાહિત્ય સંબંધી માહિતી આપી તેમજ જરૂરી પુસ્તકો ઈશ્ય કર્યું. c. પ્રીતિબેન પંચોલી અને સોનિયા પટેલને સંસ્કૃત, પ્રાકૃત અપ્રકાશિત ગ્રંથની
માહિતી આપી. ૯. સમ્રાટ સંપ્રતિ સંગ્રહાલયની મુલાકાતે ૯૯૮ યાત્રાળુઓ પધાર્યા.
અભ્યાસ-મુલાકાત સૌરાષ્ટ્ર યુનિવર્સીટી, રાજકોટના ગ્રંથાલય અને માહિતી વિજ્ઞાન (BLIST & MLIsC)ના વિદ્યાર્થી ભાઈ-બહેનોએ અભ્યાસ મુલાકાત લીધી.
For Private and Personal Use Only
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अधिष्ठायक देव-देवियों की भव्य कुलिका निर्माण हेतु
शिलान्यास चढ़ावा कार्यक्रम सम्पन्न परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब एवं उनके शिष्य परम पूज्य ज्योतिर्विद आचार्यदेव श्रीमद अरुणोदयसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब की निश्रा में श्री शान्तिधाम जैनतीर्थ क्टवा, अहमदाबाद में दिनांक १० मार्च, २०१३ को अधिष्ठायक देव-देवियों की नूतन देवकुलिका निर्माण के प्रथम सोपान स्वरूप शिल्यान्यास चढ़ावा कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब के शुभाशीर्वाद एवं उनके शिष्य परम पूज्य ज्योतिर्विद् आचार्य श्रीमद् अरुणोदयसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब तथा पंचांग गणितज्ञ परम पूज्य पंन्यास श्री अरविन्दसागरजी महाराज साहब के मंगलकारी मार्गदर्शन में निर्मित होने वाली नूतन देवकुलिकाएँ जैन शिल्प व स्थापत्य कलायुक्त होंगी। ___ अधिष्ठायक देव-देविओं की कुलिका निर्माण हेतु शिलान्यास चढ़ावा कार्यक्रम में सोने में सुगंध जैसा गुरुगुण वन्दना का एक और कार्यक्रम आयोजित किया गया था। परम पूज्य योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी महाराज साहब की १४०वीं जयन्ती के पावन अवसर पर उनके गुणों को स्मरण करने हेतु गुरुगुण वन्दना का विशिष्ट कार्यक्रम भी आयोजित किया गया।
परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब, उनके शिष्य परम पूज्य ज्योतिर्विद् आचार्य श्री अरुणोदयसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब, परम पूज्य गणिवर्य श्री प्रशान्तसागरजी महाराज साहब एवं अन्य मुनिवरों की पावन सन्निधि में यह कार्यक्रम बड़े ही हर्षोल्लासपूर्वक मनाया गया।
लोढाधाम पुनित प्रतिष्ठा महोत्सव परम श्रद्धेय पूज्य पाद गुरुदेवश्री आचार्य पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. की शुभ निश्रा में ता. २६ अप्रैल २०१३, शुक्रवार के दिन श्री लोढाधाम तीर्थ - मुंबई में श्री सीमंधरस्वामी की पावन प्रतिष्ठा एवं श्रुतभक्ति स्वरूप कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूचि खंड १४-१७, शांतसुधारस भाग १ से ३ (गुजराती) व रासपद्माकर ग्रंथ - २ का विमोचन समारोह मनाया जायेगा.
For Private and Personal Use Only
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
For Private and Personal Use Only
तडो| नितन बलामायबाप ! जन्मजरामर बात । २ संतापल दी सामग्री धर्मनी।मूरष जेके तिस विश्दीस रिक याच उगमादिसति विषमं मारना हईडगमारा धर्म एका बापडा / देव रक सेडा गयाराव केरी माडली ते घरका मुगतिमनिऊंगा ही ऊं। जिहां ब इनिश्चल सुरक॥ च॥ मुनिने राज् घोर धरा वैता र गिरिजई काउसग्ग कर। मेहली माया सिबे काश्मिी। मुगति मा रिबेरू मनिगम ॥७॥ भो सरच्या व्युपरिवार। बेरू मुनिवरनु सुष्षु विचारा ईकाइ लोग हई ॐ । स चाली निं ते त्यां रोरामा आउनई विमान पुती मजगी को भातून नवीकली!घरित्र्याच्या सुरतक गयाच लीगएमा हा के नाम तिस्सुं परिणाम नल से शालितनुं नाम होइ फुं नविली के दि॥२१॥ चच वीनती के अवरमा एक लीमे दुली निरधारा एक बार में साद मुंजोई। जिमच्ााइड इनिनिदाई॥२१॥ चालीसा २६३५नो निश्चलभनि करी] लिई माताम निःश्वरी नया ऊपा डी जो ऊं जामा सहर पईघर पूजा म बेरू की धुनिश्चलमन्तात मही मुगतिषु धन्य शालिन मरेन सिद्दि। पाम्या नंती रिद्वि ॥ १३ एक नार हो सितारा पुनरपि लेसर संयम सातपकर सजाई वन्नइरही। मुगतिनारितेवर-मरस हो । हाम शालि त धन्ना तामा। गुएा नवि जाएं पार। बुद्विहीन मई मूर बई। बोल्ट लगा॥२१५ अलग बिन इंजरणाचा हा भ्यांवंडितराजासा हा एक जेादर । ते ममारकाज ॥ २१६ पता जयशेषर शिशाघ लहइ म विशितापादि जिन रयानामनिशुद्धिं प्रभुं निशिदी ॥ २१ ॥ शुक नामदई इते। उपबंधु कधारकरी शालि सन्तानुचरित्रादवितेरुपवित्र सामदित नर नारी कश्मनश्रुि
श्रवापेण साधु मुनिव२५ साप नवनिधि आवश्घ रिते दत ॥ २१० इति श्री शालित रासः संतल संवत् १६०५ वर्षे मार्ग शीसित वा निवारेका लावाडिदेशे मालवा ग्रामे पंडित श्रीश्रीसंघ विजया गलिचरणार विदषड्पदायमान गणिदेव चिंजयोऽलिख॥ श्रीरसु मुद॥ कल्याणमभु लेखपाल काथाः
शालि रा
६.
किमर सीडरुटर
काम x
प्रतिलेखन पुष्पिका क्रमांक ९ मां नोंधायेल संघविजयगणिना शिष्य देवविजयगणिना हस्ताक्षरोमां लखायेल शालिभद्ररासनुं अंतिम पत्र
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir મહાવરને મહાવીર એ આઈ ના દીન 2 = અિભીતિત્ય ચાઈનિને ભજો. - કેળવણીનાશમાંa- દેશદેશના રનવાનેરાન વમૉડલું- હુનાનુંસાનજધા માંડયું જણ નીતિપારિઝમબાપાલાસું છે.સ્વિારે ધાતડરના એધમાઝમવાલ્વઋછે. નાન ના ૨જા રૉજનારે લખણનોતિના માનાં જીબri: +, -નોમાં જે જોકે,''ખ:ોખાનના તજઈપ છે. હલનેઈ«ને ધnક્રમક ઑતા. નિયમસર ફાર્યકરવાનો પ્રવૃત્તિધારણ બાળપણાંકરિરરરકુટ- ફર્મવીર દીનવીર ધર્મબીરખને તેથીપુરોમાં મામલો નૈવામાં આવે છે. મહાપુરૂનbધનચરિતો.ખાણુણ મુખ્યતાએ અવલોકી કાર્ય * BOOK-POST / PRINTED MATTER प्रकाशक आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा, गांधीनगर - 382007 wોન નં. (071) 2227604, 206, ૨૬ર વન : (076) 232742 E-mail : gyanmandir@kobatirth.org website : www.kobatirth.org For Private and Personal Use Only