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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ अप्रैल - २०१३ लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने मांडला जेल से लिखा था कि यदि मुझे पहले यह पता होता कि आप कर्मयोग पर लिख रहे हैं तब में अपना कर्मयोग कभी नहीं लिखता, आपके इस ग्रन्थ को पढ़कर मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ। पूज्य आचार्यश्रीजी ने गद्य और पद्य में समान रूप से लेखनकार्य किया है। उनके अनेक काव्यग्रन्थ भी हैं। उन्होंने काव्य, गजल, भजन, पद, स्तवन, गहुंली आदि की रचना के साथ ही साथ पूजाओं की भी रचना की है। अपने साधुजीवन काल में उन्होंने अपने भक्तों तथा शिष्यों को सम्बोधित करते हुए अनेक प्रेरक पत्र भी लिखा है। श्रीमदजी प्रतिदिन डायरी लिखा करते थे। जीवनचरित्र, प्रतिमालेख एवं अन्य विद्वानों के पदों के भावार्थ भी उनके लेखन का महत्त्वपूर्ण अंग रहा है। उनके द्वारा रचित ग्रन्थों का अवलोकन करने पर स्वतः यह निष्कर्ष निकलता है कि उनका लेखनकार्य विविध विषयों पर विस्तृत रूप से हुआ है। उनके ग्रन्थों एवं प्रवचनों का प्रकाशन समय-समय पर होता रहा है और जिज्ञासु आत्माएँ अपनी जिज्ञासा की तृप्ति करती रही हैं। तीर्थ स्थापना - निरन्तर सबका कल्याण चाहने वाले एवं मधुर वक्ता श्रीमद्जी ने अपनी योगसाधना भी अक्षुण्ण रखी थी। योगसाधना के क्रम में शासनरक्षक श्री घंटाकर्ण महावीरदेव का साक्षात्कार हुआ । श्रीमद्जी ने महुडी में इस प्रभावकदेव की स्थापना विक्रम संवत् १९७५ में करवाई। एकान्तवादी जैनों ने उनका विरोध किया तो उसका महत्त्व समझाने हेतु 'श्रीघंटाकर्ण महावीर' नामक ग्रन्थ की रचना की। आज इस तीर्थ की यात्रा करने हजारों जैन/जैनेतर प्रतिदिन आते हैं। अद्भुत भविष्यवाणी - विक्रम संवत १९६७ में ब्रिटिश शासन विश्व में अपना ध्वज लहरा रहा था। भारत की आजादी हेतु खूब जोरदार लड़ाई चल रही थी। संदेश प्रसारण एवं प्रेषण की व्यवस्था नहिवत् थी और विज्ञान के विकास का प्रारम्भिक समय ही चल रहा था तब श्रीमद्जी द्वारा विज्ञान के विकास सम्बन्धित की गई भविष्यवाणी आज अक्षरशः पूर्ण हो रही है। विज्ञान के क्षेत्र में अप्रत्याशित विकास हुआ है और आज समस्त विश्व की खबरें हम घर बैठे साक्षात देख व सुन सकते हैं तथा हम क्षणभर में सम्पूर्ण विश्व के साथ सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं। विश्व के इतिहास में ऐसी सचोट भविष्यवाणियाँ बहुत कम हुई हैं। धर्मोन्नति और समाजहित - श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी महाराज धर्मोन्नति, समाजहित आदि का कार्य भी सतत करते रहे थे। उनकी प्रेरणा से अनेक For Private and Personal Use Only
SR No.525277
Book TitleShrutsagar Ank 2013 04 027
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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