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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २७ की प्रतिभा को चार चाँद लगा दिया। दूसरी घटना विक्रम संवत् १९६२ में अहमदाबाद के पत्रकार वाडीलाल मोतीलाल शाह ने अपने मुखपत्र हितेच्छु में महानिशीथसूत्र में से कमलप्रभाचार्य का दृष्टांत लेकर मूर्तिपूजा के विरोध में लेख प्रकाशित किया तथा उसी समय मथुरा में स्वामी दयानन्द जन्मशताब्दी के अवसर पर एक श्वेताम्बर स्थानकवासी साध्वीजी का लेख 'अमे मूर्तिपूजामा केम मानता नथी पढ़ा गया। उन प्रसंगों को ध्यान में रखकर मुनिश्री ने एक ग्रन्थ 'जैनधर्ममां मूर्तिपूजानुं विधान' की रचना की। उन्हीं दिनों एक प्रखर विद्वान और कुशल वक्ता स्थानकवासी जैन साधु श्री अमीऋषिजी से अहमदाबाद में अचानक मुलाकात हुई और मुर्तिपूजा की चर्चा निकल पड़ी। श्री अमीऋषिजी ने कहा- यदि आप शास्त्रों के आधार पर मूर्तिपूजा सिद्ध कर देंगे तो मैं अभी अपने सम्प्रदाय को त्यागकर आपका शिष्य बन जाऊँगा। दोनों विद्वानों के बीच चर्चा हुई और अनेक साक्ष्यों के आधार पर श्री बुद्धिसागरजी ने जैनशास्त्र में मूर्तिपूजा का विधान है, यह सिद्ध करके श्री अमीऋषिजी को सन्तुष्ट कर दिया। श्री अमीऋषिजी ने भी अपने वचन का पालन करते हुए उनका शिष्यत्व ग्रहण किया और मुनिश्री के प्रथम शिष्य श्री अजितसागरजी के नाम से विख्यात हुए। तीसरी घटना विक्रम संवत् १९८० में पंजाब की है जहाँ लाला लाजपतराय जैनधर्म विरोधी कई बातें कर रहे थे। तब श्रीमद्जी ने उनकी बातों का प्रतिकार करने हेतु एक ग्रन्थ 'लाल लाजपतराय अने जैनधर्म की रचना की। इस प्रकार उनके जीवनकाल में जब कभी भी ऐसा प्रतीत हुआ कि जैनधर्म या मूर्तिपूजा के विरोध में कहीं कोई गलत प्रचार कर रहा है, तब उन्होंने अपनी लेखनी के सहारे करारा जवाब देकर जैनधर्म एवं मूर्तिपूजा की महत्ता को सदैव स्थापित किया। साहित्य सर्जन - विक्रम संवत् १९५७ से १९८१ के दौरान पूज्यश्री ने नियमित लेखन कार्य जारी रखा। अपने साधुजीवन के २४ वर्षों में श्रीमद बुद्धिसागरसूरिजी ने विविध विषयों पर लगभग १०८ ग्रन्थों की रचना कर अपनी विद्वत्ता एवं जैनधर्म के प्रति कटिबद्धता को प्ररूपित किया है। उनके द्वारा रचित ग्रन्थों में कर्मयोग, अध्यात्म महावीर, जैनोपनिषद्, शिष्योपनिषद्, आत्मदर्शन गीता, प्रेमगीता, गुरुगीता, जैनगीता, अध्यात्मगीता, श्री जैन महावीर गीता, कृष्णगीता आदि जैनधर्म व सिद्धांतों को समझने में सामान्य जनों के लिये बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुए। उनके कर्मयोग नामक ग्रन्थ का स्वागत करते हुए For Private and Personal Use Only
SR No.525277
Book TitleShrutsagar Ank 2013 04 027
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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