SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महो. जयसागरकृत चोवीश जिन स्तवन हिरेन दोशी जिन स्तवना गान विषयक कृतिओथी मध्यकालीन साहित्यनो खजानो छलोछल छे. ए खजानानी केटलीय कृतिओ आजे अप्रकाशित रही छे. जिन स्तवना ए मध्यकालीन कविओनो अत्यंत प्रिय विषय रह्यो छे. एमां भळेला अहोभाव भर्या हृदयनो भक्ति उन्मेष आपणा अहोभावने पण सबळो बनावे छे. आवी ज भावसभर हैयानी रचना एटले चोवीश जिन स्तवन. आम तो आ कृतिनो विषय तीर्थंकर स्तवना छे, परंतु कविए तीर्थंकर भगवंतोना गुणोनी साथे एमनुं नाम, माता-पिता, स्थान, अने लंछन जेवा माहितीपरक विषयोने पण कविए कृतिना माध्यमे वणी लीधा छे. कविए पोते आ वात करता २जी कडीमा जणावी छे. कुल २८ कडीमां कृति विस्तरे छे. एमां प्रथमनी बे गाथा प्रस्तावना स्वरूप छे, ज्यारे छेल्ली बे गाथामां जिन नाम-स्मरणचें फळ कथन, कृतिनो रचना समय, अने पोताना नामनी साथे पोताना गच्छ-गुरुना नामनो निर्देश करे छे. प्रत परिचय : ज्ञानमंदिरमां आ कृतिनी प्रत ४७५२२ नंबर पर नोंधायेली छे. प्रतनी किनारीनो भाग खवाई गयो छे. आ प्रतर्नु परिमाण २३ x १२ छे. १८ लाईनमा ३८ अक्षरो नोधायेला छे, प्रतमां कडी क्रमांक माटे लाल रंग वपरायो छे. १ चोवीश जिन स्तवन सयल जिणेसर प्रणमुं पाय, सरसतिसांमण द्यो मति माय, हियडै समरूं श्री गुरु नाम, ज्युं मनवंछित सीझे काम. चोवीसे जिनवर माय-पिता, नाम-ठांम-लंछण जे हुंता, पांचै बोलै करुं प्रणांम, करिस स्तवन मुंकी अभिरांम. पहिला प्रणमुं रिखभ जिणंद, नाभिराय-मरुदेवीनंद, ऊंची काया धनुष पांचसै, वृषभलंछण वनिता वसै. For Private and Personal Use Only
SR No.525277
Book TitleShrutsagar Ank 2013 04 027
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy