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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २७ २१ की नजर गई और देखते-देखते ही बालक ने एक छलाँग में वहाँ पहुँचकर भैंसों को मारकर अलग किया और जैनसाधुओं को बचाया। अभी बहेचरदासजी राहत के दो श्वांस भी नहीं ले पाये थे तभी जैनसन्तों ने कहा- अरे भाई ! ये तो मूक प्राणी हैं, इन्हें क्यों कष्ट दे रहे हो, किसी भी प्राणी को मारना हिंसा है और हिंसा महापाप है, अहिंसा परमधर्म है। जैन सन्तों की चमत्कारपूर्ण वाणी बहेचरदास के हृदय में हिलोरें लेने लगी, कानों में बार-बार अहिंसा ... पीड़ा ... महापाप .... आदि शब्द गूंजने लगे। इन दो शब्दों का इनके हृदय पर इतना प्रभाव पड़ा कि तत्काल उस बालक ने जैन सन्त रविसागरजी महाराज साहब के चरणों में अपना शीश नमाया और तबसे उनके सान्निध्य में अपना जीवन समर्पित कर दिया | इस छोटी सी घटना ने गाँव के निरक्षर किसान परिवार में जन्मे बहेचरदास को जैन नभोमण्डल के देदीप्यमान नक्षत्र के रूप में स्थापित कर दिया। ज्ञान ग्राहकता - विजापुर के जैन उपाश्रय में पूज्य रविसागरजी महाराज के सान्निध्य में बहेचरदासजी ने जैनधर्म की तप-त्याग की बातें सुनी और उसी दिन से रात्रिभोजन व कंदमूल का त्याग कर दिया, नियमित जिनपूजा, देवदर्शन, गुरुवंदन आदि नियम का पालन करने लगे। प्रतिदिन पाठशाला जाना शुरु किया और अल्पावधि में ही पंचप्रतिक्रमण, चारप्रकरण, स्तुति, स्तवन आदि का अभ्यास पूर्ण कर लिया। उन दिनों विजापुर के शेठ श्री नथुराम मंछाचंद दोशी और उनकी धर्मपत्नी जडावबेन ने बहेचरदासजी को जैनधर्म के रंग में रंगने में सक्रिय योगदान दिया। संस्कारदाता माता-पिता की छत्रछाया में बहेचरदासजी ने जैनधर्म के सूत्रों के साथ संस्कृत उर्दू और अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान प्राप्त किया। श्री रविसागरजी महाराज साहब द्वारा महेसाणा में स्थापित श्री यशोविजयजी जैन संस्कृत पाठशाला में विशेष शिक्षा प्राप्त करने हेतु बहेचरदासजी को शेठ श्री नथुराम दोशी ने भिजवाया | बहेचरदास के रूप में पहुँचे बालक ने उस पाठशाला के विद्यार्थी से जैन साधु और प्रथम जैनाचार्य होने का गौरव प्राप्त कर जैनशासन के यशस्वी आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वर के रूप में ख्याति प्राप्त की। उनकी वांचनशक्ति अद्भुत थी, उन्होंने जैनधर्म-दर्शन के अतिरिक्त वैदिक एवं बौद्ध धर्म के ग्रन्थों का भी खूब अध्ययन किया। योगनिष्ठ जैनाचार्य - महेसाणा में विद्याभ्यास के क्रम में बहेचरदासजी ने श्री रविसागरजी महाराज एवं उनके शिष्यपरिवार की खूब लगन के साथ सेवासुश्रुषा की। इस बीच श्री रविसागरजी महाराज ने उन्हें तप-साधना के अनेक सूत्र दिये जिसके बल पर भविष्य में वे जैनशासन के महान योगनिष्ठ जैनाचार्य बने। For Private and Personal Use Only
SR No.525277
Book TitleShrutsagar Ank 2013 04 027
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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