Book Title: Shrutsagar 2019 10 Volume 06 Issue 05
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ISSN 2454-3705 श्रुतसागर श्रुतसागर SHRUTSAGAR (MONTHLY) October-2019, Volume : 06, Issue : 05, Annual Subscription Rs. 150/- Price Per copy Rs. 15/-/ EDITOR: Hiren Kishorbhai Doshi - BOOK-POST / PRINTED MATTER 4 + राष्ट्रसंतश्री से आशीर्वाद ग्रहण करते हुए महामहिम राष्ट्रपतिश्री आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महामहिम राष्ट्रपतिश्री के साथ गुजरात के राज्यपाल व मुख्यमंत्री का कोबा तीर्थ में पदार्पण व ज्ञानमंदिर का अवलोकन TANAVARANANATANAVANATANAYANICAL VANAVANAANANANANAANANANEL EVANANANAVANANANENAVANEL NAVANAVAYANANAVANAYANTANANEL FFARPANPNPATANGANAGAN ATANE NHATANAVARATANIANRAI JAYANANAYAYANAIEVANANAVAYANA JNANANANAVANANENENENEVANANEEL JAVENEVANAVANANANAYANENEWANEL IPANANAANAAN JANAVAVANAVANAVANAYANAYANAND FVEVENANEYANAVANENEVEVENANE INTANZANANJANANJANANANJANANAMA JAVAYANAVAVENANEVANAVANAYANAL ANANANAVANAVAVAVANI For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 SHRUTSAGAR RNI : GUJMUL/2014/66126 October-2019 ISSN 2454-3705 आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र) श्रुतसागर મૃતસાગર SHRUTSAGAR (Monthly) वर्ष-६, अंक-५, कुल अंक-६५, अक्टूबर-२०१९ Year-6, Issue- 5, Total Issue-65, October-2019 वार्षिक सदस्यता शुल्क - रु. १५०/- * Yearly Subscription - Rs.150/अंक शुल्क - रु. १५/- * Price per copy Rs. 15/ आशीर्वाद राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. * संपादक * * सह संपादक * * संपादन सहयोगी * हिरेन किशोरभाई दोशी रामप्रकाश झा राहुल आर. त्रिवेदी एवं ज्ञानमंदिर परिवार १५ अक्टूबर, २०१९, वि. सं. २०७५, आश्विन कृष्ण पक्ष-२ आराधन तकेन्द्र. हावीर म श्री अमृत पतु विद्या आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध-संस्थान एवं ग्रन्थालय) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर-३८२००७ फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फैक्स : (079) 23276249, वॉट्स-एप 7575001081 Website : www.kobatirth.org Email : gyanmandir@kobatirth.org For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अक्टूबर-२०१९ अनुक्रम १. संपादकीय रामप्रकाश झा २. गुरुवाणी आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी ६ 3. Awakening Acharya Padmasagarsuri ४. केटलाक तपागच्छीय __ आचार्योना लघु काव्यो गणि सुयशचंद्रविजयजी ५. शालिभद्र गीत श्रीमती हिरेनाबेन अजमेरा ६. नवकार सज्झाय साध्वी दर्शननिधि ७. गुजराती माटे देवनागरी लिपि के हिन्दी माटे गुजराती लिपि हिन्दवी ८. प्राचीन पाण्डुलिपियों की संरक्षण विधि राहुल आर. त्रिवेदी ९. पुस्तक समीक्षा डॉ. हेमन्त कुमार १०. समाचार सार शब्दमांहि सदगुरु कहइ, परगट रूप जिनधर्म। सुणत विचक्खण सरदहइ, मूढ न जाणइ मर्म ॥ प्रत क्र. ८४५३१ भावार्थ- सद्गुरु शब्दों में प्रगटरूप से जिनधर्म का उपदेश देते हैं, उसे सुनकर विचक्षण बुद्धिवाले उसको स्वीकार करते हैं, परन्तु मूर्ख व्यक्ति उसके मर्म को नहीं जान पाते हैं। * प्राप्तिस्थान आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर, होटल हेरीटेज़ की गली में डॉ. प्रणव नाणावटी क्लीनिक के पास, पालडी अहमदाबाद - ३८०००७, फोन नं. (०७९) २६५८२३५५ For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR October-2019 संपादकीय रामप्रकाश झा भगवान महावीर के निर्वाण कल्याण के उपलक्ष में मनाये जानेवाले प्रकाशपर्व के शुभ अवसर पर अपने पाठकों के करकमलों में श्रुतसागर का यह नवीनतम अंक प्रस्तुत करते हुए हमें असीम प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है। प्रस्तत अंक में सर्वप्रथम “गुरुवाणी” शीर्षकके अन्तर्गत आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के पत्राचारों में से एक पत्र प्रस्तुत किया है, जो दीपावलीपर्व के बारे में वाचक को भाव दीपावली क्या होती है ? उसका परिचय कराती है। द्वितीय लेख राष्टसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के प्रवचनों की पुस्तक Awakening' से संकलित किया गया है, इस अंक में अनेकांतवाद और स्यादवाद पर प्रकाश डाला गया है। अप्रकाशित कति प्रकाशन के क्रम में सर्वप्रथम पज्य गणिवर्य श्री सयशचन्द्रविजयजी म. सा. के द्वारा सम्पादित “केटलाक तपागच्छीय आचार्योना लघु काव्यो” के अन्तर्गत तपागच्छीय आचार्यों के गुणवैभव को प्रकाशित करनेवाले ६ लघु काव्यों का वर्णन किया गया है। द्वितीय कृति के रूप में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर पालडी शहरशाखा की कार्यकर्ती श्रीमती हिरेनाबेन अजमेरा के द्वारा सम्पादित कृति “शालिभद्र गीत” में जैन इतिहास में प्रसिद्ध शेठ शालिभद्र के द्वारा पूर्वभव में किए गए सुपात्रदान का वर्णन प्रस्तुत किया गया है। तृतीय लेख पूज्य साध्वी दर्शननिधि म. सा. द्वारा सम्पादित “नवकार सज्झाय" में नमस्कारमन्त्र के प्रभाव का वर्णन किया गया है। पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत बुद्धिप्रकाश, ई.१९३४, पुस्तक-८२, अंक-२ में प्रकाशित “गुजराती माटे देवनागरी लिपि के हिंदी माटे गुजराती लिपि” नामक लेख में गुजराती भाषा को देवनागरी लिपि में अथवा हिन्दी भाषा को गुजराती लिपि में लिखे जाने की उपयोगिता और औचित्य पर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत पूज्य साध्वी चन्दनबालाश्री जी म. सा. के द्वारा सम्पादित "दीपालिकाकल्प संग्रह" पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की जा रही है। इस पुस्तक में विदुषी साध्वीजी के द्वारा दीपावलीकल्प से सम्बन्धित आठ महत्त्वपूर्ण कृतियों का शुद्धि सह संकलन किया गया है। प्रस्तुत अंक से “पाण्डुलिपि संरक्षण विधि” शीर्षक के अन्तर्गत प्राचीन हस्तप्रतों की सुरक्षा और रख-रखाव से सम्बन्धित अद्यतन विधि से सम्बन्धित लेख श्रृंखला की प्रथम कड़ी प्रकाशित की जा रही है। जो प्रत्येक ज्ञानभंडार एवं हस्तप्रत संबंधी कार्य करनेवालों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे। For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अक्टूबर-२०१९ गुरुवाणी आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी योगनिष्ठश्रीना पत्रोमांझळकता भावदीवाळी दिवडा मुकाम पादरा वकील शा. मोहनलाल हिमचंदभाई। बे लण दिवसमां दिवाळी पर्व आवशे। श्रीवीरप्रभुनुं निर्वाण स्मृतिमा राखीने कर्मवैरिने जीतवा प्रयत्नशील बनवू एज आपणुं कर्त्तव्य छ। आत्मानो एक गुण प्राप्त करवाथी अन्य गुणो प्राप्त थाय छे। सर्वगुणोनुं मूल सम्यक्त्व छ। श्रीवीरप्रभुए निश्चयसम्यक्त्वनुं स्वरूप दर्शाव्यु छे तेवू सम्यक्त्व जो आत्मामां प्रगटे तो आपणा हृदयमां भावदीवाळीपर्व प्रगट्यु एम समजवू । आत्माना गुणो पोताना स्वरूपे परिणाम पामीने आत्मानी परमात्मा प्रगटावे एज साध्यकर्तव्य छ। द्रव्यदिवालीपर्व द्वारा भावदिवाळी पर्वआराधन करवू एज खास लक्ष्यमा राखq जोइए, जे सम्यक्त्वगुणे जाग्रत् थाय छे ते भावदिवालीपर्वनं यथातथ्य आराधन करी शके छे। मिथ्यात्वदशामां मंझायला जीवो मरेला छे, तेओ संमर्छिमनी पेठे स्वजीवन पूर्ण करे छे । यथाप्रवृत्तिकरणे बालजीवो ओघसंज्ञाए जे धर्म क्रियाओ करे छे तेवी शक्ति तो अभव्यजीवो पण धरावे छे। ___ मिथ्यात्वभावे मरेला मनुष्यो कंइ अन्यने जाग्रत् करवाने शक्तिमान् थता नथी। उंघेलामनुष्योज्ञानीनांवचनोनो निर्णय करवाशक्तिमान्थतानथी ।केटलाक अज्ञानीओ नैगमनयनी एकांतकल्पनाए धर्मने मानी ज्ञानीओना शुद्धधर्मने तिरस्कारी काढे छ । क्रियारूचिजीवने आगळ ज्ञानमार्गपर चढाववा ए गीतार्थोनुं कर्तव्य छ । गीतार्थी विना बाळजीवो धर्मना नामे परभावने सेवी चतुर्गतिसंसारमा परिभ्रमण करे छे। गुणोमां परिणाम विनानी एकली शुष्क क्रिया खरेखर आत्मानं हित करवा समर्थ थती नथी। सम्यक्त्व पाम्याथी जीवनी सवळी दृष्टि थवाथी ते जेजे करे छे ते सर्व सवळं परिणमे छे। धनादिक जड वस्तुओ करतां आत्मानी किम्मत जेने अनन्त गुणी विशेष भासती नथी ते सम्यक्त्वनो अधिकारी शी रीते थइ शके वारू ? सम्यक्त्व पाम्या विना आत्माना उपर रंगचोंटतो नथी। स्याद्वादनये आत्मा ओळखवो एकंइसहेज वात नथी। आरोपित धर्ममां जेनी वास्तविक धर्मबुद्धि थाय छे एवा अज्ञानीओ उपादान धर्मने सेवी शकता नथी। आ कालमां धर्मनो खरेखरो रंग लागवो ए जाण्या करता कंइक अनन्तगुणाधिक विशेषकार्य छ । साध्यनी सापेक्षा विनानो व्यवहार ते सांसरिकफल प्रदछ । ज्यारे धर्मना उपदेश संबंधी विचार करीए छीएत्यारे जणाय छे के धर्मनुंखरेखरूं स्वरूप समजवा माटे योग्य श्रोताओनी खोट मालुम पडे छे । गाडरीया प्रवाहनी रीतिए लोको धर्म सांभळे छ। For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR October-2019 उखर भूमिमां पडेली वर्षानी पेठे प्रायः धर्मना उपदेशनी प्रवृत्ति थाय छ। द्रव्यानुयोग अध्यात्म ज्ञाननो उपदेश ग्रहण करवाने श्रोता नीकळी शके विरला श्रोता मळे तेम छे। जैनधर्मपूजा प्रतिक्रमण, तप, जपादि क्रिया करनाराओ पैकी आत्मानुं शुं स्वरूप छे ते समजनारा प्रायः कोइ विरला देखाय छे, छतां पण व्यवहाराधिकार प्रमाणे फर्ज अदा करीने उपदेशप्रवृत्ति कराय छे। हाल पगे वा आव्यो छे अने केडे वा आव्यो छे । गमनागमनमा हजी अडचण पडती नथी। दवा चाले छे । जेवं प्रारब्ध बांध्यु होय छे, तेवू भोगव्या विना छूटको नथी। दीनताए भोगव्याकरतांसमभावेशूरतालावी भोगववामांरूचि, प्रवृत्ति रहेछ ।माणसानु चोमासु पूर्ण थवा आवशे। सूयडांगसूत्र व्याख्यानमां पूर्ण थशे । नवपदप्रकरणवृत्तिनां व्याख्यानमां बे पद पूर्ण थयां छे। भाव लावीने व्याख्यान कराय छे परंतु बाळजीवो तेमनी बुद्धिना अनुसारे ग्रहण करे छे। दरेक ठेकाणे व्याख्यान- महत्त्व अने तेनो सार खेंचनारा विरल कोइक मनुष्यो होय छे। बाकी गाडरीओ प्रवाह सर्वत्र वर्ते छ । जैनवाणीयाओने उपदेशनी असर थती होय अने ते कायम रहेती होय एम विचारतां, अवलोकतां मोटा भागे समजातुं नथी। छतां व्यवहारफर्जथी उपदेशप्रवत्ति तो सेववी पडे छे। धर्मरूचि, ज्ञानरूचि, उपदेशरूचि, साधुसेवारूचिवाळा जीवो प्रायः विरल देखाय छे, एमां शोक करवानी जरूर नथी। आगमना अनुसारे वस्तुतत्त्व विचारतां जीवोनी परिणति अनेक प्रकारनी देखाय छे तेथी उलटी समकितभावनी पुष्टि थाय छ । सं. १९७० ना आशो वदि १२. ता. १६-१०-१४ धार्मिक गद्य संग्रह भाग.१ पृष्ठ क्र.९२२-९२३ (अनुसंधान पृष्ठ क्रमांक. ३३ से) पूज्य साध्वीवर्याश्री चन्दनबालाश्रीजी ने अपने नादुरुस्त स्वास्थ्य को ही जिनशासन के लिए एक वरदान बना दिया है, विगत एक दशक से भी ज्यादा समय से इन्होंने निरन्तर अनेक उच्च दर्जे के सुसंशोधित प्रकाशनों को जिनशासन के चरणों में समर्पित करके अध्येताओं एवं आराधकों के लिए आराधना एवं आराधना का मार्ग प्रशस्त किया है। आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर परिवार का यह सौभाग्य है कि पूज्य साध्वीवर्याश्री ज्ञानमंदिर के ग्रंथों का सबसे ज्यादा उपयोग करने वाले महानुभावों में से एक हैं। पूज्य साध्वीश्रीजी के इस कार्य की सादर अनुमोदना के साथ कोटिशः वंदन। For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अक्टूबर-२०१९ Awakening Acharya Padmasagarsuri (from past issue...) The priest smiled and said, “Both the views are true but accepting any one of them as true depends on circumstances. If there is cheese in the house, accept the first view as true and if there is no cheese, accept the second view.” This is the reply of one who acts according to Syadvada. A person who believes in Syadvada must be careful at every step in life. That is why the great acharyas respected the Anekantavad and said: जेण विणा लोगस्सवि ववहारो सव्वहा न निव्वडई। तस्स भवणेक्क गरुणो णमो अणेगंतवायरस्स॥ Jena Vina logassavi vavaharo Savvaha na nivvadai Tassa bhuvanekka guruno namo aneganthavayassa I offer my adorations to Anekantavad without which the activities of life cannot go on; and which is the only giver of true light in life. The same man is husband, father, son and brother at the same time. He is the husband of his wife; father of his children; son of his father and brother of his brothers. What contradiction is there in this? The question whether a stone is big or small cannot be answered except by means of the Anekantvad. It has to be said that a stone is larger than a small pebble; and smaller than a rock. In this manner the same stone can be small or big. The Anekantvad helps us to end variety of opinions by showing unity (oneness) in variety. It helps us to see a single truth as seen from various points of view. Only by means of this philosophy the Mahashraman, Mahavir amalgamated (363) three hundred and sixty-three systems of thought and united them. (continue...) For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR October-2019 केटलाक तपागच्छीय आचार्योना लघु काव्यो गणि सुयशचंद्रविजयजी कृति परिचय सुमतिसाधुसूरिजी गीत तपागच्छीय लक्ष्मीसागरसूरिजीनी पाटे तेओ प्रभावक पुरुष हता। जैन परंपरानो इतिहास भाग- ३मां मळती नोंध मुजब तेओ जावरा गाम (मेवाड)ना व्यापारी गजपति श्रेष्ठि तथा संपूरीदेवीना पुत्र हता । बाळवये दीक्षित थई तेमणे ज्ञानाध्ययनादि वडे योग्यता प्राप्त करी अनुक्रमे पंन्यास पद, आचार्य पद तथा गच्छनायक पद मेळव्यु हतुं । प्रस्तुत कृतिमां कविए ते ज सूरिजीना गुणवैभव- वर्णन कर्यु छ । कृतिना शब्दो सरळ तथा भाववाही छे । काव्यांतनी लेखन पुष्पिकामां कविए पोते ज 'कमलसाधु गणि' ए नाम वडे पोतानो कृतिना रचयिता तथा कृति लेखक तरीकेनो उल्लेख कर्यो छे। अन्यत्र मळती नोंधमां तेमनो लक्ष्मीसागरसूरिजीनी परंपरामां थयेला साधुविजयजीना शिष्य तरीके उल्लेख मळे छे। तेमना विशेष परिचय माटे जैन परंपरानो इतिहासभाग.३ जोवा वाचकोने भलामण छे। सोमविमलसूरिजीनी सज्झाय सोमविमलसूरिजी खंभातना वतनी शेठ रूपा तथा अमरादेना पुत्र हता। नानी वये दीक्षित थयेला तेओ महासंयमी तेमज मोटा अभिग्रहधारी हता। तेमणे लीधेला अभिग्रहोनी १७ जेटली वातो लघु पौशालिक गच्छनी पट्टावलीमा नोंधायेली जोवा मळे छ । प्रस्तुत कृतिमां कविए उपरोक्त सूरिजीना जीवनचरित्र पर विशेष प्रकाश न पाथरता फक्त गुणानुवाद रूपे ज आ काव्यनी रचना करी होय तेवु जणाय छ । जो के कृति शब्दाडंबरथी रहित तेमज सरळ छे । काव्यांतमां कविए स्वपरंपराना उल्लेख पूर्वक पोतानुं नाम प्रयोजी काव्यनु समापन कर्यु छे। ___कृतिकार- जैन परंपरानो इतिहास भाग-३मां मळती नोंध मुजब तपागच्छना हेमविमलसूरिजीनी परंपरामां सौभाग्यहर्षसूरिजीना शिष्य सोमविमलजी हता। ते सोमविमलजीना हानर्षि नामना गुरुभाईनी पाट उपर उपाध्याय सकलचंद्रजी थया जेमणे प्रतिष्ठा कल्प, सत्तरभेदी पूजा, पुण्यप्रकाशनुं स्तवनादि घणी रचनाओ करी। आपणा कृतिकारश्रीए पण उपरोक्त सोमविमलसूरिजीने उद्देशीने ज प्रस्तुत कृतिनी रचना करी छे, वळी तेमनुं “सकलचंद” ए नाम साम्य पण तेमना उपा. सकलचंद्रजी For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 ॥ श्रुतसागर अक्टूबर-२०१९ होवा तरफ इशारो करे छे। जो के काव्यमा उल्लेखित विजयचंद्र गणि शिष्य' ए नोंध प्रसिद्ध उपा. सकलचंद्रजीना काव्योमां मळे तो उपरोक्त वात वधु साची गणाय। अहीं एक वात विचारवा जेवी ए पण खरी के पूर्वे गुरुओ पोतानी पाट पोताना शिष्यने ज सोंपता तेवू न हतुं। पदयोग्य साधुने पोतानी पाट सोंपवानो तत्कालिन रीवाज हतो। कदाच आ परंपरा मुजब ज हानर्षि गणिए विजयचंद्रजी गणिना शिष्य सकलचंद्रजीने पदयोग्य जाणी पोतानी पाट सोंपी होय अने तेथी ज उपाध्याय द्वारा रचित कृतिओमां मळती परंपरामां तेमणे पोतानी पाटपरंपरामा हानर्षि गणीनो ज गुरु तरीके उल्लेख को होय तेवू विचारीए तो उपाध्यायजी महाराज विजयचंद्रजीना शिष्य होवानी वातने तेमज प्रस्तुत कृतिकार होवानी वातने समर्थन मळे । ___बीजं ए पण खरुं के कृतिकारे काव्यमां क्यांय पोताना नामनी आगळ पदसूचक कोई शब्द प्रयोज्यो नथी ते वात पण प्रस्तुत कृति उपाध्याय सकलचंद्रजीए पोताना संयम जीवनना प्रारंभिक वर्षो दरम्यान रची होय ते, सूचन करता होय तेवू लागे छ । हीरविजयसूरिजी सज्झाय प्रस्तुत कृति पू. हीरविजयसूरिजीना गुणवैभवने दर्शावती लघु कृति छ। अहीं कृतिकार अज्ञात छे। जो के कृतिकारश्रीनी भाषा उपरनी पकड तथा शब्दोनी गोठवण कविनी विद्वत्ता छती करे छे। पू. हीरविजयसूरिजी म.सा. ना जीवन चरित्र पर संस्कृतादि भाषाओमां नानी-मोटी घणी कृतिओ रचाई छे तेथी सूरिजीना चरित्र पर विशेष कशुं लखवानी जरूर रहेती नथी। पण एटलुं चोक्कस के प्रस्तुत कृति द्वारा सूरिगुणस्तवनानी श्रेणीमां एक सुंदर मणकानो उमेरो थयो। विजयसेनसूरि गीत "सवाई हीर” एवा बिरुदने धारण करनारा एवा तेओ तपागच्छना प्रभावक पुरूषोमांना एक हता। पू. हीरविजयसूरिजीनी जेम तेमणे पण पोताना सत्ताकाळ दरम्यान घणी प्रतिष्ठाओ, पदप्रदान महोत्सवो, दीक्षाओ, संघयात्रा विगेरे सेंकडो धर्मानुष्ठानो कराव्या। तेमना चरित्रनी घणी वातो विजयप्रशस्ति महाकाव्य, विजयसेनसूरि निर्वाण रासादि ग्रंथोमां वर्णवायेली जोवा मळे छ। अहीं प्रकाशित कृतिमां काव्यनो महत्तम अंश सूरिजीना गुणगानमां रोकायो छ । विशेषोल्लेख रूपे फक्त सूरिजीना आचार्यपद संबंधि थोडी विगतो काव्यना आठमां तथा नवमां पद्यमां छे। जो के कृतिकार उपाध्याय सत्यसागरजी देवविजयजीना शिष्य होई सूरिजीना समकालीन छ। तेथी तेमणे आंखे देख्यो अहेवाल अहीं टांक्यो हशे तेवू चोक्कस For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11 October-2019 SHRUTSAGAR विचारी शकाय। कृतिकारनी अन्य कृतिओमां फक्त वच्छराज रास नामनी एक कृति मळे छ । कृतिकारना परिचय माटे तेमां अने तत्कालिन अन्य ग्रंथोमांथी तेमनुचरित्र तपासबुंजोईए। राजसागरसूरि गुरु सज्झाय भास तथा गुरु [परंपरा] स्वाध्याय तेओ सागरगच्छना आद्य भट्टारक हता। तेमनी एक पाटपरंपरा जैन परंपराना इतिहासमां नीचे मुजब मळे छ। ___पू. लक्ष्मीसागरसूरि→महो. विद्यासागरजी-पं.जीवर्षि गणि-उपा. धर्मसागरजी-पं.लब्धिसागरजी → मुनि मुक्तिसागरजी। अहीं परंपरामा उल्लेखित मुनि मुक्तिसागरजीने उपाध्याय पद प्राप्त थता तेओ उपाध्याय राजसागरजीना नामे प्रसिद्ध थया। मूळे तेओ शिरपुर नगरना साह देवदास- कोडियदेवी (प्रस्तुत कृतिनी नोंध मुजब कोडिमदे) ना पुत्र हता। तेमणे पोताना भाई तथा मातानी साथे पू. धर्मसागरजीना वरद हस्ते चारित्र ग्रहण कर्यु । तेओ पोते समर्थवादी-विद्वान तो हता ज साथे विशिष्ट मंत्रसाधनानो पण तेमनामां समन्वय हतो। ते वखते अमदावादना नगरशेठ तरीके पंकायेला शेठ श्रीशांतिदास झवेरीना उत्कर्षमां तेमनी मंत्रसाधनानो मोटो फाळो हतो। अने तेथी ज शेठ शांतिदासे ऋणमुक्त थवा माटे ज पू. देवसूरिजी पासेथी पदस्थापना माटेनो वासक्षेप मंगावी मुक्तिसागरजीने उपाध्याय पद अपाव्यु हतुं। त्यार पछी काळांतरे आचार्यपद प्राप्त थता तेओ राजसागरसूरिजीना नामे प्रसिद्ध थया। ___ प्रस्तुत कृतिमां कविए उपरोक्त पू. राजसागरसूरिजीना गुणवैभव वर्णव्यो छे । विशेषमां सूरिजीना माता-पिताना नामोल्लेखनी तथा कविनी गुरु परंपरा वर्णना सिवायनी ऐतिहासिक कशी माहिती काव्यमां नथी। वळी कृतिकारनो परिचय पण अन्यत्र क्यांय मळतो नथी तेथी कृतिकार अंगे पण कशु लखाय तेम नथी। पाछळनी बीजी कृति “गुरुपरंपरा स्वाध्याय' ते उपरोक्त सूरिजीनी पाटपरंपरा वर्णवती कृति छे। विशेषमां अहीं काव्यमां २ नामो जोवा मळे छे । जेमांनं एक नाम नेमिसागरजीनं छे। जेओ राजसागरसरिजीना संसारी पक्षे भाई छे। ज्यारे बीजु नाम श्रुतसागरजीन छे। जेओ प्रस्तुत कृतिना रचयिता तो छ ज साथे साथे धर्मसागरजीना शिष्य, समर्थ विद्वान तथा राजसागरसूरिजी द्वारा स्थापित सागरपक्षना समर्थक होवाना प्रमाणो मळे छे। जो के आ बीजी कृतिमां पण कविए सूरिजीना विशेष गुणोनी संकलना सिवाय कशुं प्रयोज्यु नथी। For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 12 श्रुतसागर अक्टूबर-२०१९ विजयदेवेन्द्रसूरिजी भास विजयजिनेन्द्रसूरिजीनी पाटे बिराजमान विशिष्ट पुन्यशाळी एवा विजयदेवेन्द्रसूरिजी मारवाड सेवानना वासी शेठ अमीचंद सरूपादेना पुत्र हता। तेमणे घणी अंजनशलाका प्रतिष्ठा करावी होवाना शिलालेखो मळे छ । वळी तेमना राज्यमां लखायेला सचित्र विज्ञप्ति पत्रो पण तेमनी पुन्यप्रतिभानो बोलतो पुरावो छ । प्रस्तुत कृति ते ज पुन्यपुरुषना चरित्र पर आलेखायेली भास संज्ञक रचना छ । कृतिमां महअंशे सूरिगुणवैभव ज वर्णवायो छे। जो के रचनाकार वीरविजयजी होवाथी कृतिपदार्थ सामान्य होवा छतां अद्भुत रीते पीरसायो छ । सरळ शब्दो, सुंदर प्रासो तथा सौ साथे गाई शके तेवी तर्ज कविना अनुभवना परिपाकरूप देखाय छे। विशेषे तो कृति नानी होवा छतां शुभवीरनी होई ध्यानार्ह छ । श्री कमलसाधु गणि कृत सुमतिसाधुसूरिजी गीत ॥GO॥ अविचल परिमल बहुल सुकोमल, नंदनवन जिम सोहइ रे। तिम जिनशासनि सुहगुर गिरूआ, मानव मन अति मोहइ रे गाउ रे गोरी गुणमणि-आगर, सागर परि गंभीरू रे। गछनायक श्रीसुमतिसाधुसूरि, मंदरगिरि जिम धीरू रे ॥२॥गाउ रे... नयणे नवदल कमल हरावइ, निलवटि तपइ दिणिंदू रे। जाणे जीतउ सहिगुरि श्रीमुखि, गयणंगणि गिउ चंदू रे ॥३॥गाउ रे... मधुरपणइं मधु मधुरुं भणीइ, अमीअ महारस गिणीइ रे। जव गुरुवाणी श्रवणे सुणीइ, तव ए रस अवगणीइ रे ॥४॥गाउ रे... लखिमीसागरसूरिचा सीसू, भविआं ए गुरु वंदउ रे। साह गजराज-कुलमंडण महीअलि, जां दुं तां चिरनंदउरे ॥५॥गाउ रे... ॥ इति श्रीतपागच्छनायक श्रीसुमतिसाधुसूरीणां गीतं कृतं पं. कमलसाधुगणिभिः लिखितं स्वपरोपकाराय॥ छ॥छ। श्री सकलचंद्रजी कृत श्री सोमविमलसूरि स्वाध्याय O॥ सरसति सांमणि मनि धरीजी, प्रणमी गौतम पाय। गाइसु तपगछ राजीउजी, नरवर सेवइं पाय, सखीजी वंदं ए गणधार... ॥१॥ ॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 13 October-2019 SHRUTSAGAR जिण जीतु मार-विकार सखीजी, प्रवचनमात आधार, सखीजी....(द्रुपद) अष्ट विधान पूरइ भलांजी, विद्या चौद निधान । आगम-अरथ सवि जाणताजी, गुरुजी जगह प्रधान ॥२॥सखीजी... जंबू वयर अनइ वलीजी, थूलिभद्र मुनिवर सार । तुम वंदि ते वंदीआजी, जे गुरु जगमांहिं सार ॥३॥सखीजी... जंगमतीरथ जांणीइजी, महिमा मेरू समान। गुण छत्रीस अलंकर्याजी, जिनशासन सुलतान ॥४॥सखीजी... लोचन अमीअ कचोलडाजी, मुख जिसउं पूनिमचंद। अमृत जिसी(सिइं) देसनाजी, मोहइ नरवर इंद ॥५॥सखीजी... सा. रूपा-कुलि हंसलुजी, अमरादे मात मल्हार । भवीअणना मन मोहताजी, प्रतिपूजा द्रु-तार ॥६॥सखीजी... कर जोडि इम वीनवइजी, विजयचंद्र गणि, सीस। श्रीय सोमविमलसूरिजी चिरंजयुजी, सकलचंद्र दिइ आसीस ॥७||सखीजी... अज्ञात कृत हीरविजयसूरिजी सज्झाय ॥ ॐ नमः ॥१॥ ॥२॥ ॥३॥ वंदिय वीर जिणेसर राय, पणमिय गोयम गणहर पाय । थुणसुं हीरविजयसूरिंद, सोहगवल्ली केरउ कंद नाथी-कूख-सरोवरहंस, सा. कुंरा-कुलअंबर-हंस । भविककुमुद-पडिबोहण-चंद, वंदउ हीरविजयसूरिंद चरण-करणगुण-पूरि देह, मंगलकमला केरउ गेह। मोहमहातम-हरण-दिणिंद, वंदउ हीरविजयसूरिंद वाणी जास सुधा-आसार, कोप-महादव-टालणहार । मयणकंस-गंजण-गोविंद, वंदउ हीरविजयसूरिंद गुणमणि-रोहण नाणनिहाण, आगम सयल वखाणइं जाण । धीरपणइ जि(जी)त मेरू निगं(गिरी)द, वंदउ हीरविजयसूरिंद जस परिमल दह दिशि महमहइं, कीरति त्रिभुवनि जस गहगहई। जसु दरिसन दिठइं आणंद, वंदउ हीरविजयसूरिंद ॥४॥ ॥५॥ ॥६॥ For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 14 श्रुतसागर अक्टूबर-२०१९ इम थुणिउ मई तपगछराय, तप संयम जस निरमल काय। नमइ निरंतर नरवर-विं(वृ)द, वंदउ हीरविजयसूरिंद ॥इति श्री हीरविजयसूरि स्वाध्यायः॥ मुनि हस्तिविजय पठनार्थं ॥छ॥ ॥७॥ श्री सत्यसागर उपाध्याय कृत विजयसेनसूरि गीत o आवउ रे सखी गुरु वंदियइ रे, श्रीविजयसेनसूरि राय रे। तपगछभूषण चिरं जयउ रे, जेहना सुर नर सेवइं पाय रे॥१॥आवउ रे....(आंकणी) बालपणि बुद्धि आगलउ रे, गुरु सकल-विद्याभंडार रे। श्रीय हीरविजयसूरि जाणीउ रे, जिणसासण(न)नु आधार रे ॥२॥आवउ रे... जिहां जिहां गछपति संचरइरे, तिहां उच्छव मंगलमाल रे। गौतम गणधर अभिनवउ रे, इम बोलइ बाल-गोपाल रे ॥३॥आवउ रे... गुणग्राहक गुणपारखी रे, श्रीपूज्य विधाता आज रे। अतीत अनागत श्रुतबलइ रे, ए तउ जाणइ सघला काज रे ॥४॥आवउ रे... सासन-सुरइ गुरु सीखव्यउ रे, ए तउ तपगछसंघ-गोवाल रे। ध्यान सफल हवइ कीजयइ रे, जिम सोहम गछप्रतिपाल रे ॥५॥आवउ रे... रजत सोवन मणि मोतीए रे, हीरा माणिक रचना कोडि रे। अहिव सूहव पूरिं साथिया रे, गुण गाइं बे कर जोडिरे ॥६॥आवउ रे... धन नारदपुरीय वखाणीयइ रे, धन मात पिता गुरु सार रे।। रतनपुरुष जिहां अवतरिउ रे, इम लोकवाणी अवतार रे ॥७॥आवउ रे... संवत सोलअट्ठावीसमइ (१६२८) रे, तिहां गणधरपद विस्तार रे। अकिमपुरि साहइं खरचीउं रे, मूलइ धन सोवन नहीं पार रे ॥८॥आवउ रे... अट्ठाई महोछव वली करइ रे, पारिख वछराज निज घरि रंगिरे। अवर संघ धन वावरइ रे, जिणसासण उच्छव चंगिरे ॥९॥आवउ रे... सत्यसागर पंडित कहइ रे, बहु प्रतपउ ए गणधार रे। श्रीय हीरविजय पट्टोधरु रे, जगि अविचल महिमाकार रे ॥१०॥आवउ रे... श्री मुनिसागर कृत राजसागरसूरि गुरु सज्झाय भास O॥ ॥ श्री विमलाचल देव, देखत पाप गयो री - ए ढाल ॥ For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 15 ॥४||राज... SHRUTSAGAR October-2019 शांतिजिनेसर देव, चरण प्रणाम करी री। तपगछपति गुण गाउं, ऊलट अंग धरी री ॥१॥ राजसागर सूरिंद, वंदई पाप गयो री। दुरगति कीधी दूर, मुगतिनो मार्ग लह्यो री ॥२॥राज... कुमति-कंद-निकंद, गयवर तुं हि कह्यो री। भविअणनिं हितकार, जिनमत सुद्ध लह्यो री ॥३॥राज... गौतम सरिखो एह, गुरुजी मुझनई मल्यो री। जे समरइं तुझ नाम, तस घरि सफल फल्यो री धन्य ते देस विदेस, जी(जि)हां गुरु विहार करइ री। धन्य धन्य ते नर नारि, तुझ गुण चित्त धरि(इं) री ॥५॥राज... देवीदास-कुलचंद, मात देवलदे जण्यो री। तुं गुरुजी चिरंजीव, विद्या सकल भण्यो री ॥६॥राज... विजयसेनसूरि पाटि, प्रगट प्रताप थयो री। राजसागरसूरिंद, तइ जयवाद लह्यो री ॥७॥राज... श्रुतसागर उवझाय, वादीराय भयो री। सकल-पंडित-परधान, शांतिसागर जयो री ॥८॥राज... तस पदकमल विशाल, मधुकर सार कह्यो री। मुनिसागर गुण गाय, मइ गुरु सुद्ध लह्यो री ॥९॥राज... श्री श्रुतसागर कृत गुरु [परंपरा स्वाध्याय] राग-गोडी शांति जिणेसर प्रणमीइं मनमोहन, सूरतिपुर उद्योतकार लाल मनमोहन । श्रीराजसागरसूरीसरू मनमोहन, तपगछ को सिणगार मनमोहन ॥१॥ श्रीविजयसेनसूरि राजीओ मनमोहन, पाटि उदओ भाण लाल मनमोहन। सागरवंश दीपावीओ मनमोहन, सूत्र सिद्धांतनो जाण लाल मनमोहन ॥२॥ श्रीविद्यासागर वाचकु मनमोहन, प्रतिबोध्यो भविलोक लाल मनमोहन। देश विदेशइं जाणीओ मनमोहन, गुण गाइं नर थोक लाल मनमोहन ||३|| For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अक्टूबर-२०१९ महिमंडल महिमा घणो मनमोहन, श्रीधर्मसागर उवझाय लाल मनमोहन । श्रुतकेवलि जगि जाणीओ मनमोहन, कनकवर्ण सम काय लाल मनमोहन ॥४॥ लब्धिनिधान गुरु गौतम मनमोहन, श्रीलब्धिसागर उवझाय लाल मनमोहन । सुंदर रूप अनोपम मनमोहन, वादीराय कहाय लाल मनमोहन ॥५॥ श्रीनेमिसागर वाचक जयो मनमोहन, प्रणमइं सुर नर इंद लाल मनमोहन। श्रुतसागर प्रभु वीनवइं मनमोहन, श्रीराजसागरसूरिंद लाल मनमोहन ॥६॥ श्री वीरविजयजी कृत विजयदेवेन्द्रसूरिजी भास ॥ वाजे वाजे ढोल निसांण, वाजे रे सरणाइ सरला सादनी-ए देशी॥ जगवल्लभ जगपूज्य, भविजनने पडिबोहता। चरण-करण-गुणखांण, निर्मल ज्ञाने सोहता मनोहर रूपनिधांन, वली जिनभक्ति-प्रिय सदा। जेहना चरणनी सेव, संघ सकल करे मुदा ॥२॥ गुरुसेवा-कल्पवेल, सेवंता गछपति थया। प्रबल पुन्यने योग, वैरी झांखा थइ गया एहवो महिमावंत, गछपतियां अति दीपतो। विजयदेवेंद्रसूरिराय, तप-तेजें अरिगण जीपतो ॥४॥ राय राणा सामंत सेठ, मंत्रि आदे से सहु। सा. अमीचंदकुलभाण, सरुपादेसुत प्रतपो बहु श्रीशुभवीरनी वांण, गुरुमुखथी जे सांभले। धर्म आराधीने तेह, शिवरमणीने जइ वरे ॥६॥ ॥१॥ ॥३॥ ॥५॥ " क्या आप अपने ज्ञानभंडार को समृद्ध करना चाहते हैं ? आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा में विभिन्न प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित | बहुमूल्य पुस्तकों का अतिविशाल संग्रह है, जो हम ज्ञानभंडारों को भेंट में देते हैं। भेंट में | देने योग्य पुस्तकों की सूची तैयार है। यदि आप अपने ज्ञानभंडार को समृद्ध करना चाहते हैं, तो यथाशीघ्र संपर्क करें। पहले आने वाले आवेदन को प्राथमिकता दी जाएगी। ग्रंथपाल मा For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 17 October-2019 SHRUTSAGAR कवि मूंज कृत शालिभद्र गीत श्रीमती हिरेनाबेन अजमेरा जीवना परिभ्रमणमां प्रधान कारण होय तो ते छे पर पदार्थ प्रतेनी आसक्ति। आ आसक्तिना बंधनथी मुक्त थवा माटे जिनेश्वर परमात्माए दानधर्मनी प्ररूपणा करी छ। नानकडी पण सामग्री- उत्कृष्ट भावे करेलुं सुपात्रदान ते सामग्री करतां करोड़ो गणुं फळ आपवा समर्थ छ । तेनुं एक प्रसिद्ध अने प्रबळ उदाहरण शालिभद्र छे । आ संदर्भे आज लगी अनेक गद्य-पद्यबद्ध कृतिओ रचाई गई छे । शालिभद्रना जीवनथी जैन जगतमां भाग्ये ज कोई अजाण हशे । तेमना जीवन पर प्रकाश पाथरती अने दानधर्मनो महिमा दर्शावती प्रायः अप्रगट एक कृतिनुं अहीं संपादन करवामां आवे छे। ___आ कृतिने संपादन करवानो हेतु सुपात्र दान-महिमा अने चारित्र-भावनानी पुष्टि छ । कृतिना आमुख लेखनमां शोधपरक अने नोंधपूर्ण सहयोग आपवा बदल पंडित श्री गजेन्द्रभाई शाहनो आभार । शास्त्राज्ञा विरुद्ध कांइ पण लखाइ गयु होय तो मिच्छामि दुक्कडम् । कृति परिचय प्रस्तुत कृति मारुगुर्जर भाषामां ३४ पद्योमा रचायेली छ । प्रतिलेखक द्वारा २७मी गाथानो पाठ भूलथी २८ नंबरनी गाथा तरीके लखाई गयेल, जेने पाछळथी मिटावेल होवाथी कृतिनुं गाथा प्रमाण कुल ३४ थाय छे । अमे संपादनमा प्रतिलेखकनी ते क्षतिने सुधारीने क्रम आप्यो छे । कृतिमां गाथा १५-१८ दुहारूप छे,त्यार बाद बीजी ढाल छ । तेमां पण आंकणी पूर्वनी ज दर्शावेली छे । गाथा क्रमांक सळंग छे । आम आ कृतिमां बे ढाल कही सकाय । कृतिना प्रारंभे मंगलाचरण अने अंते रचना प्रशस्ति उपलब्ध नथी। प्रत १७मी सदी उत्तरार्धनी होवाना अनुमाने कृतिनी रचना ते पूर्वेनी होवानी अटकळ थाय छ । कृतिना शब्द, प्रास अने रचना उपरथी कर्ता सारा कवि होय तेम जणाय छे। शालिभद्रने सरोवरमा क्रीडा करता राजहंसनी उपमा अने ३२ स्त्रीओने कुसुमनी उपमा तथा मोक्ष संदर्भे शालिभद्रने एक कडीमां कमललुब्ध भ्रमरनी उपमा कविए आपी छे । उपमायुक्त आंकणी पण कृतिनी शोभामां अभिवृद्धि करे छे। सालिभद्र जिसउ मान सरोवर, राजहंस लीला करतउ। बत्रीस रमणीवर कुमर मनोहर, मनवंछित सुख भोगवतउ ॥२॥सालि०... For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18 श्रुतसागर अक्टूबर-२०१९ कमल कसुंभ सुगंध लुब्धि जिसउ, भमर भमई रसिरंग रातउ। सालिभद्र सिवसुख गुणदायक, पूरबलउ भव संभरातउ ॥३॥सालि०.. कथासार पूर्वभवमां संगमना जीवे सुपात्रदान करी महान पुन्यनु उपार्जन कर्यु, तेना प्रभावे आ भवमां अपार सुख-साह्यबी अने रिद्धि सिद्धि भोगववाना योग सर्जाया। रात दिवस रंग रागमां, मोज शोख अने सुख वैभवमां महालता एवा शालिभद्र एक दिवस बधु त्यजीने संयम अंगीकार करे छे अने पराधीन दशामांथी मुक्त थवा वैराग्यना रंगे रंगाइ जाय छ। त्यागनुं जीवन अपनावी सर्व कर्म खपावी समाधिपूर्वक पांचमा अनुत्तर विमानमां देवपणे उत्पन्न थाय छे । भविष्यमा ३३ सागरोपमनुं आयुष्य पूर्ण करी, उत्तम कुलमां जन्म लइ अने धर्मराधना करी अजर-अमर मोक्ष पदना भागी बनशे । शालिभद्रना जीवनमाथी ५ आश्चर्यकारक प्रसंगो तारवीने अत्रे प्रस्तुत कराय छेa) मनुष्यलोकमा रहीने स्वर्गना सुखो भोगववा। b) राजा जेवा राजा ने पण करियाणा तरीके मानवू । c) सोना, हीरा, माणेक जेवा अलंकारोने एक दिवस पहेरीने निर्माल्य समजीने कुवामां नांखवा। d) शालिभद्रनी रिद्धि जोवा श्रेणिक महाराजा स्वयं तेमना घरे पधारे छे अने मान आपे छे तेमां पण अपमान लागे। _____e) अंते आ बधुं त्यजी त्यागना पंथे चाली नीकळवू अने माखण जेवी कायाने कठोर संयम जीवन द्वारा ओगाळी नाखी मोक्षनी अत्यंत निकट पहोंचवारूप सर्वार्थसिद्ध विमानना भागी बनवू. ___ कर्मे शूरा अने धर्मे पण शूरा एवा धन्ना-शालिभद्रजीनी जोडी एक आदर्श अणगार तरीके गवाय छे । पुण्य बांधता पण आवड्यु अने पुण्य त्यागता पण आवड्यु । आQ साहस कोइ विरला ज करी शके । कथा प्रसिद्ध छे एटले वधु जणावानी जरूरत रहेती नथी. कर्ता परिचय कृतिने अंते 'भणइ मूंज' उल्लेख परथी कर्ता मूंज होवानुं अनुमान थाय छे ते सिवाय कर्ता विषे अन्य कोई माहिती प्राप्त थती नथी। For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१॥ SHRUTSAGAR 19 October-2019 प्रत परिचय प्रस्तुत प्रत आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबामां हस्तप्रत क्रमांक १२८३४६ पर उपलब्ध छ । आ प्रतनी लंबाई २८ अने पहोळाई १२ छ । आ एकमात्र प्रतना आधारे आ कृतिनुं संपादन करवामां आवेलु छे । आ प्रतमां लहियाए बे कृतिओ लखी छे, जेमां शालिभद्र काव्य बीजा नंबरे छे। आ प्रतनी ऊपरनी पंक्तिओमां सामान्य प्रकारे कलात्मक मात्राओ जोवा मळे छ । प्रत पडिमात्रा अने मध्यफुल्लिका युक्त छे। अशुद्ध पाठने हटाववा हरतालनो उपयोग थयेल छे। अंक अने दंड गेरु लाल रंगथी अंकित छे । प्रतनुं लेखन सुंदर अने सुवाच्य छे। आ प्रतनी नकल आपवा बदल ज्ञानमंदिरना व्यवस्थापकोनो खूब खूब आभार । on श्री गुरूभ्यो नम : गोभद्र घरणि रयणि सुपनंतरि, सालिखेत्र पेखि नींद भरे । पूरव भवंतरि दिधला तणउ फल अवतरियउ सुभद्राउ घरे सालिभद्र जिसउ मान सरोवर, राजहंस लीला करतउ। बत्रीस रमणीवर कुमर मनोहर, मनवंछित सुख भोगवतउ ॥२॥सालि० आंकणी० कमल कसुंभ सुगंध लुब्धि जिसउ, भमर भमई रसिरंग रातउ। सालिभद्र सिवसुख गुणदायक, पूरबलउ भव संभरातउ ॥३॥सालि०... एक दिवसि तिणि राजग्रह नयरइं, वात अपूरब वाजीलइ। रतनकंबल वेचइ विणजारओ, दूरि दिसंतरि आविय लइ ॥४॥सालि०... श्रेणिक श्रीमुखि पूछण लागउ, एक कंबल तुम्हे किम देसउ। सवालाख सोनइ छइ सामी, जो देस्यउ तउ तुम्ह लेसउ ॥५॥सालि०... इणि सोनइ गज तुरिय ज लेस्यउ, राइ भणइ संभलि राणी। चलणा देव कहइ सुणि सामी, श्रेणिक राइ हुं कांइ परणी ॥६॥सालि०... हसति रमति चलीय उखणि(?), जारओ रतनकंबल लेइ भेटीयला। सुभद्रा कहइ, अम्ह वहू बत्रीसइ, सोल कंबल काइं आणीयला ॥७॥सालि०... सोल कांबल सुभद्राए लीधा, फाडि बत्रीस किया तिण वार। एक एक कंबल वइंहची तइं आप्या, पाइ पूछी नाख्या कूया मझार ॥८॥सालि०... रतन काबल सुभद्रा ए लीधी, चलणा सांभलियउ तिणवार। एक कंबल राजाइं नव लीधउ, जोउ रे पुरुषा अवतार ॥९॥सालि०... For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१५॥ श्रुतसागर अक्टूबर-२०१९ गर्भवास हुं कांइ न गाली, झोली तूटी कांइ न मुई। सुभद्रा सेठ तणी विवहारणी, बत्रीसई तेत्रीसमी हुं कांई न हुई ॥१०॥सालि०... रतनकंबल लेवानइं कारण, श्रेणक मोकलियो ति वार । एक कंबल मोल लेइनइं आपउ, इम बोलइ सुभद्रा सेठाणि तिण वार ॥११॥सालि०... सेवक तब ते आवीनइं जोवइ, ते तउ पडीया कूया मझार । ततक्षण आवी राय वीनव्या, कूआ निरमायल श्रेणकराइ साधार ॥१२॥सालि०... पाइ पालउ परिवारइं श्रेणिक, पुहतलउ डर (?) सुभद्रा घरे। तलिया तोरण विंदन माला, नगर महोच्छव विवह पुरे ॥१३॥सालि०... माणिक मोती हीर प्रवाला, रतन पीरोजा थाल भरइ। अघडित सोनो लेईअ सुभद्रा, श्रेणिकराइंनइं भेटि करइं ॥१४॥सालि०... दूहाः माणिक मोती राखिज्यो, सोना रूपा धन्न । सालिभद्र देखालिनइ, तुम्ह घरि जेय रतन सुभद्रा चाली मिंदरई, उठउ कुमर संजूघ । तुझ घरि राजा आवियउ, सुदेखण लोडइ पूत ॥१६॥ ल्यउ क्रियाणा द्यउ धन्न, घालउ इणि भंडारि । जिसकी छत्रछाया वसइ, सु राजा ऊभओ बारि कुमर भणइ माता सुणउ, हम पूणि माथइ राइ। अजेसु पूरा पुन्नि नइं, कोइ करउ उपाय ढाल मात वचन सालिभद्रजी सांभली, सेज थकी उठ्यउ तिणि वार। सात सूरिज जिम उजल दीठउ, हरख्याउ श्रेणिकराइ तिवार ॥१९।।सालि०... आयउ कुमर लियउ उछरंगिइं, प्रघलण लागउ सघलउ अंग। बोलइ राजा खरउ विचार, धनि धनि सालिभद्र अवतार ॥२०॥सालि०... रतन जडत माहे तोरण दीठा, हीरे रतने को नही पार। गोभद्रसेठ तणउ घर दीठउ, आवी प्रसंसइ राजनह सभा मझार ॥२१॥सालि०... श्रेणिकराजा मनमांहि हरख्यु, तेतउ बोलइ अमृत वाणि । ॥१७॥ ॥१८॥ For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR October-2019 राजगृही नयरी मांहि इसा विवहारीया, जोवउ रे अम्ह पुण्य प्रमाण।।२२।सालि०... मनि वइरागिइं सालिभद्र पुर्यउ, दिनि दिनि छाडइ एक ज नारि। मनि लूखइ ते रहवा लागउ, जाण्यउ मनि संसार असार ॥२३।।सालि०... एक दिवसि धन्ना अंतेउर, नाहण करावइ प्रियनउ सार। तिणि अवसरि दु:ख हियडइ साल्यउ, नयणथी नीर पड्यउ तिणि वार ॥२४॥सालि०... ?? नी?? उन्हउ जाणी, धनउ बोलइ मधुरी वाणि। किण कारणि तइं आंसू नांख्यउ, तूं तउ सुंदरि सुगण सुजाणि ॥२५।।सालि०... इच्छिउं सारइं सालिभद्र भाई, दिनि दिनि छाडइ एक जा नारि । बत्रीसइ दिहाडइ ग्रिहवास छंडी, ते तउ लेसइ संजम भार ॥२६।।सालि०... सुण हे कामण हसकरी बोलइ, ते तउ कायर अछइ अपार। एक सांमठी कांइ न छोडइ, अजी न मुंकइ लालची लार ॥२७||सालि०... सुणि हो प्रीतम कामणि बोलइ, जे संजम लेता सोहिलउ होइ। थे तउ हो सामि एक न छोडइ, इम बोलई नारी वचन ज सोइ ॥२८॥सालि०... रहि रे नारी हाथ मलाए, ससा पुरस उठ्यउ एहवउ जाणि। सालिभद्र जाई बोलावइ हुं धनउ तउं आगे वाणि ॥२९।।सालि०... विरता सालिभद्र धन उछेवे, बिहुँ छोड्या अरथ भंडार। अंतेउर परहरी जु आथि, धनउ सालिभद्र वे साथि ॥३०॥ सालि०... कनक माल विलगी इक रोवइ, इक विष भरि इक कर मोडइ। इक अबला इधकी आलोवइ, इक उपरि कंकण फोडइ ॥३१॥सालि०... इम विलपंति अंतेउर मेल्ही, चाल्या बे वे गुण भंडार। सुखसागरनइं तरिवा काजइं, जाण्यउ मुनि संसार अपार ॥३२॥सालि.... धनउ सालिभद्र चारित पाली, त्यां हत उपाड्यउ अमर विमाण। नरनारि जे नित नित ध्यावइ, ते पामइं वंछित कल्याण ॥३३॥ सालि०... एकइ छोडी आठ जे नारी, बीजइ रे बत्रीसइ नारि। जे विपुलगिरइं जाई संजम लीयउ, भणइ ज धनि ते नर नारि ॥३४||सालि०... इति गीतं समाप्तं ॥छ॥ श्री॥ * * * For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 22 श्रुतसागर अक्टूबर-२०१९ श्रीवृद्धिविजयजी कृत नवकारसज्झाय साध्वी दर्शननिधि नमस्कार महामंत्र आदि-मंगलना स्वरूपमां अनेक आगमो अने ग्रंथोमां मळे छे। नमस्कार महामंत्र जैनत्वना प्रतिक स्वरूपे छे जे जैन होय ते ओछामा ओछो आ महामंत्रनो पाठ तो अवश्य मुखपाठ करी ले छे । नमस्कार महामंत्र ए मात्र मंत्र नथी परंतु द्वादशांगी- आदिम सूत्र छ। तेनुं नाम श्री पंचमंगल महाश्रुतस्कंध पण छे। महामंत्रनी आराधनाथी निर्जरा सधाय छ । कर्मनो क्षय थाय छ । आत्मानी विशुद्धि थाय छे। सूता-जागता, बेसता-उठता, हालता-चालता ज्यारे पण मन थाय तेनुं स्मरणजाप-ध्यान करी शकाय छे। आधुनिकयुगनी प्रजा आर्थिक, व्यावहारिक अने सामाजिक चिंताना भारने लीधे चित्तनी स्थिरता अने शांति गमावी बेठी छे। तेओने साची शांति मेळववा माटे नवकार ए श्रेष्ठ मंत्र छ । जन्म समये नवकारने पामनारनो आ भव सुधरे छे, तेमज मृत्यु समये नवकारने पामनारनां भवोभव सुधरे छ । नवकारमंत्र विषे ज्ञानीओ कहे छे के, कर्मने नहि कर्मनी परंपराने तोडवा माटे श्री नवकारमंत्र छ। दुःखने नहि दुःखनी परंपराने तोडवा माटे श्री नवकारमंत्र छ । मरणने नहि मरणनी परंपराने तोडवा माटे श्री नवकारमंत्र छ । जन्मने नहि जन्मनी परंपराने तोडवा माटे श्री नवकारमंत्र छ। पापने नहि पापनी परंपराने तोडवा माटे श्री नवकारमंत्र छ । कषायने नहि कषायनी परंपराने तोडवा माटे श्री नवकारमंत्र छ। विषयने नहि विषयनी परंपराने तोडवा माटे श्री नवकारमंत्र छ । संसारने नहि संसारनी परंपराने तोडवा माटे श्री नवकारमंत्र छ। आवा श्रेष्ठ अने महाप्रभावशाळी नवकारमंत्र पर अत्यार सुधी हज्जारो कृतिओ सर्जाई चुकी छे। तेमांथी प्रायः अप्रगट एक देशी भाषामय पद्यबद्ध कृतिनुं अहीं संपादन करवामां आवी रह्यु छ। कृति परिचय प्रस्तुत सज्झाय प.पू. वृद्धिविजयजी म.सा. द्वारा मारुगुर्जर भाषामां रचायेली छे। For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 23 SHRUTSAGAR October-2019 तेनी १४ गाथाओ छ । कृतिना अंते रचना वर्षनो उल्लेख नथी। आ कृतिमां श्री नमस्कार महामंत्रना अद्भुत प्रभावथी श्रीमती, शिवकुमार विगेरेने जे लाभ थयो एनुं रोचक वर्णन छ। कर्ताए कृतिनी शरूआतमां ज नवकारमंत्रने “सकलऋद्धिसुखदायकनायक महामंत्र” एवं श्रेष्ठ बिरुद आप्यु छ । एटले के नवकारमंत्र सकल ऋद्धि अने सुखने आपनार छे एवो भाव छ। आ रीते अहीं नवकारने ज मंगल स्वरूपे समर्यो छे । जो के नवकारना महिमा रूप होवाथी संपूर्ण कृति एक मंगलरूप छे। आ कृतिमां आ लोकमां अने परलोकमां नवकारमंत्रने कोने-कोने फळ्यो एनी वात छे। १४ ज गाथानी नानकडी कतिमां श्रीमति, शिवकुमार, जिणदास, चंड-पिंगल चोर, डंडि चोर, भीलडी, राजसिंग कुमार, शुक राजा, श्रीपाल राजा जेवा (९) दृष्टांतोनो समावेश करी दीधेल छ। गाथा क्र. २ थी गाथा क्र.१३ सुधीनी गाथाओमां नवकारमंत्र कोने कोने फळ्यो तेनुं वर्णन छे १४ मी गाथामां नवकारमंत्रने कामधेनु तेम ज चिंतामणिनी उपमा आपी छ। जे वांछित सुखने आपनार छे, आवो श्रेष्ठ नवकारमंत्र मोक्षनी इच्छावाळा दरेक व्यक्तिए गणवो जोईए, आराधवो जोईए कारण के आ नवकारमंत्र सर्व पापोनो नाश करनार छ । गाथा क्र. २ अने ४ मां १-१ ज पंक्ति छ । कर्ता परिचय आ कृतिना कर्ता पू. सत्यविजयजी म.सा.ना शिष्य पू. वृद्धिविजयजी म.सा. छ। जीवविचार स्तवन, त्रिषष्टिशलाका पुरुष विचार स्तवन, नवतत्त्व विचार स्तवन, पंचमीतिथि स्तुति, ६ कायआयुष्य सज्झाय, २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन विगेरे कर्तानी अन्य रचनाओ छ। कर्तानो समय अन्य कृतिओना आधारे वि. सं. १७१२नी आसपासनो छे । ते सिवाय कर्ता विषे अन्य विशेष कोई माहिती प्राप्त थवा पामी नथी। प्रत परिचय प्रस्तुत कृतिनुं संपादन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर-कोबानी हस्तप्रत क्रमांक-९४८६९ना आधारे कर्यु छ । अनुमाने आ प्रत १९मी सदीनी जणाय छे । प्रतना अक्षर सुवाच्य छ । प्रतमां कुल २ पत्रो छ । प्रथम पत्रमा ५ पंक्ति अने बीजा पत्रमा १० पंक्ति छ । दरेक पंक्तिमा ३८ थी मांडीने ४२ अक्षर छ । प्रत एकंदरे सारी छ। नवकार सज्झाय सकलऋद्धिसुखदायकनायक, महामंत्र श्रीनवकार। इहलोक परलोके कवणने फलिओ, ते सुणज्यो अधिकार रे ॥१॥ भवियां श्री नवकार आराधो.. For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 24 अक्टूबर-२०१९ ॥२॥आंकणी ॥३॥भ०... ॥४॥भ०... ॥५॥भ०... ॥६॥भ०... ॥७॥भ०... श्रुतसागर आरज देश उत्तम कुलि पांमी, शिवपूर मारग साधो रे। भवियां श्री नवकार आराधो भरत खेत्रिं पोतनपूर नगरई, श्रावक गुण अभिराम । सुगुप्त नामइं विवहारी पूत्री, श्राविका श्रीमति नाम रे कपटें मिथ्यामती ते परण्यो, न चली मनमां लिगार रे विषधर धरी ते घटमां घाल्यो, मारवा श्रीमती बाल। श्री नवकार तणे प्रभावे, सर्प हुओ फूलमाल रे यशोभद्र श्रावक रत्नपूरीनो, बेटो शिवकुमार। योगीने जीतीने पाम्यो, सोवनपूरी सो सार रे बलराजा बीजोरा माटइं, माणस नित्य मरावइं। जिणदास श्रावक मारी निवारी, श्री नवकार प्रभावइंरे वसंतपूरे जितशत्रु राजा, चंडपिंगल तिहां चोर। कलावति गणिका संभलावइं, आंणी मनमां जोर रे चोर मरी राजकुमर हुओ, कलावती बोलावें। जातिस्मरण पाम्यो पुरंदर, श्रीनवकार महिमाइं रे शत्रुमर्दन मथूरानो राजा, डुंडि चोर सदीव । जिणदत्त श्रीनवकार सुणावई, चोर हुओ जख्यदेव रे पुष्करवरद्वीप त्रीजो जाणो, पर्वत तिहां चउपास। श्रीदमसार साधि सीखवीओ, भीलडी लडी मंत्रसार रे ते परभवें मणीमंदिर नगरे, हुओ राजसिंग कुमार। भीलडी रत्नवती रायकुमरी, पद्मपूरे अवतार रे शुकराजा श्रीपाल नरेसर, राजऋद्धि बहु पामें। इम अनेक वली जगमांहि जूओ, जय वरें सघलें काम रे कामधेनुं चिंतामणि सरिखू, वांछित सुख दातार । रत्नविजय बूध सत्यविजय केरो, वृद्धिविजय गुण गाय रे इति श्रीनवकार सज्झाय ॥८॥भ०... ॥९॥भ०... ॥१०॥भ०... ॥११॥भ०... ॥१२॥भ०... ॥१३॥भ०... ॥१४॥भ०... For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 25 SHRUTSAGAR October-2019 गुजराती माटे देवनागरी लिपि के हिन्दी माटे गुजराती लिपि? हिन्दवी (गतांकथी आगळ..) माथां छेल्ले बंधातां । आ आखी लीटीओ प्हेली दोराती थई गई अने दोरेली लीटीओ तळे डाबी बाजुनी आकृतिओ झडपथी लखवा जतां, आगली आकृति तेम पछीनी आकृति साथे सांधीने लखवा जतां, ए आकृतिमां अजाणतां ज अल्पाल्प फेरफार पडता गया अने अल्पाल्प फेरफारना समुच्चय रूप जमणी बाजुनी आकृति घडावा पामतां, तेमां पूरती प्रवाहिता देखाई, एटले वधु फेरफार थता अटकी गया अने ए ज रूप बंधाईने फेलायां । गुजराती लिपिनी समुत्क्रांति आम डगले डगले सिद्ध थवा पामेली छे। वळी छेवटे सिद्ध थयेलां आ रूपो कोई विद्वाने, कोई विद्वानोना जथाए, कोई विद्यापीठे, कोई सरकारे फरमावेलां अने एवं फरमान मळतां प्रजाए अपनावेलां, ए प्रमाणे नथी बनेलुं । प्रजानी स्वतंत्र स्वयम्भू यदृच्छात्मक हेयोपादेय वृत्तिए ए आखी घटना अनायासे काळे करीने मूक संकेते घडी लीधी छे । प्रजा बुद्धिना गर्भमा रहेली विवेचना अने सुरुचिए कारण कार्य सारा नरसानी स्फुट संवेदना विना आ नवी आकृतिओ उपजावी अने स्वीकारी छ। ____ आम बुद्धिगर्भ अस्फुट बळोए घडावा पामेली लिपि प्रजाए फेरववी एवो हुकम करवानी हकुमत कोईना पण हाथमां होई शके खरी? द्रव्योत्पादननी प्रवत्तिओ बुद्धिसत्त्वनी सपाटी उपरथी जन्मेली होय तेने माटे कोई साधु-संन्यासी फरमावे। “बच्चा, छोड दे, तप कर, तपस्या द्वारा मोक्ष पावेगा!” अने संसारी श्रद्धाळु होय ते तेनो त्याग करे, एम बनवू शक्य छे । जे प्रवृत्ति संवेदनाना क्षेत्रमा स्फुट विचारणाना वर्तुलमां बुद्धितत्त्वनी सपाटी उपरनी होय, तेना उपर आवी आण चाली पण शके; मोक्ष मेळववानी अभिलाषा घणी व्यक्तिओने पूरतुं मनोबळ पण आपी रहे, गमे तेवा अघरा त्याग पण आ प्रकारे हजारो माणसो करी नाखे अने तेमना दाखला पाछळ आखी जनता तणाय। अहीं सामी बाजुए लालच देखाडवामां आवे छे खरी, पण ते विषे आगळ चालती कलममां एटलं ज कहेतुं प्राप्त थाय छे के बुद्धिगर्भमां निगूढ वसती विवेचना अने सुरुचि उपर एवो कोईपण अमल चाले नहीं। नहीं चाले साधुसंतनो, नहीं चाले राजा-राज्यनो, नहीं चाले विद्वान विद्वमंडल के विद्यापीठनो। For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 26 श्रुतसागर अक्टूबर-२०१९ लिपिमां आवश्यक सुधारावधारा करवा जतां पणजेम बने तेम ओछां नवां चिह्नोथी संतोष मानवो, वळी तेने परिचित चिह्नोना वर्गनां अने तेमने बनतां निकट घडवां, एवा एवां वलण वा मर्यादाओ स्वीकारीने ज निष्णातो पोतानी भलामणो आगळ करे छे, तेनुं कारण आ आखी बाबतना जीवनधर्म तेओ समजता होय छे, ते ज। लीजुं व्यवहारु पगथियु पण चडीए वा उतरीए। आवी आवी मागणी कया अभ्युदयने माटे करवामां आवे छे ? देशनुं ऐक्य वधारवानी खातर। आपणा खण्ड-काय देश ऐक्य हाल मातृभाषाओ चाली रही छे तेमांथी जेटली घटाडी शकाय एटलं वधे, ए तो देखीती बाबत छे । तो पण ऐक्याभिलाषिओ क्यांय एकाद मातृभाषाने पण घटाडवानो आग्रह करता तो शोध्या जडे एम नथी। एवी वात उच्चारवी ज मिथ्या, एटली बधी अशक्य, एम तेओ दरेकेदरेक जाणे छ। लिपिओ पण घटाडवी तो अशक्य, ए उपर आवी गयु । प्रजास्मिताना जमानामां मोडी जेवी लिपिने पण अमारी पोतानी गणीने प्रजा कोटे वळगाडे छे, त्यारे दरेक हिन्दवीए मातृभाषा साथे अने उपरांत हिन्दी पण शीखवी एवा आग्रह पूरतो ज 'गुजरातीने देवनागरीमां छापवू, ए आ ऐक्यवांछुओनो आग्रह छ । बधुं ज गुजराती देवनागरीमां छापq एटली हद लगी तो ए भावनावादीओ पण जाय एम नथी। केटलीक गुजराती चोपडीओ अने केटलांक गुजराती छापां देवनागरीमां छापवां ए ज कोईना पण आग्रहनो वधारेमां वधारे व्यवहारु अर्थ होई शके।। पण विचार करो के गुजरातीओमां देवनागरी लिपिज्ञान फेलातां हिन्दी भाषाज्ञान वधवामां विशेष वेग आवतो नथी। हिन्दी- ज्ञान तो ए भाषाने ज वधारे जण जाणे तेम तेम गुजरातीओमां फेलाय। लिपिनी आडखीली महत्वनी छे नहीं। वळी ए नडतर दूर करवानो वधारे स्हेलो रस्तो प्हेला आपणे त्यां शाळाखाताए योजेलो हतो ज। जूनी वाचनमालानी नीजी चोपडीमां देवनागरी लिपि दाखल करी हती, अने चार चोपडी भणी ले तेने ए लिपि पण आवडी जाय एम राखेखें हतुं । (क्रमशः) * शाळाखातानुं आ डगलुं पछी संस्कृत भणवाना आरंभ वखते एटली प्राथमिक नडतर निकळी गई होय, एवी दीर्घदृष्टिनुं हतुं. ते वखते समज्या वगर संस्कृत श्लोकोना मोपाठ नित्यपाठ आदिना रिवाज सारी पेठे चालता हता. हिन्दी व्रज आदि शीखवामांय ठीक पडशे. एवी गणतरी ते वखते हशे तोय छेक गाण रूप. For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 27 October-2019 SHRUTSAGAR प्राचीन पाण्डुलिपियों की संरक्षण विधि राहुल आर. त्रिवेदी देश-समाज व संस्कृति की अमूल्य धरोहररूप संसार में कुछ ऐसी चीजें होती हैं, जिनका समय-समय पर संरक्षण न किया जाय तो उन्हें खो देने की नौबत आ जाती है। भौतिक चकाचौंध व सुख पाने की भागदौड़ में हम क्या थे? हम कहाँ थे? हमारी परंपरा क्या थी? हमारी कला क्या थी? और हमारी साहित्य विरासत क्या थी? ऐसी अनेक बातों से हम दिन-प्रतिदिन दूर होते जा रहे हैं। यदि ऐसा ही चलता रहा तो हम अपनी बहुमुल्य सांस्कृतिक धरोहर से हाथ धो बैठेंगे। जी, आप सही सोच रहे है। यहाँ बात हो रही है धर्मशास्त्र, नीति, भाषा, काव्य, संगीत, आयुर्वेद, ज्योतिष, ज्ञान-विज्ञान आदि विविध विषयक ज्ञान-साहित्य की परंपरा को हम तक पहुँचाने वाली सदियों पुरानी पाण्डुलिपियों की, जो संस्कृति के मुख्य आधार हैं। परन्तु समय, सत्ता, ज्ञान का अभाव या समाज की उदासीनता आदि कारणों से आज लुप्तप्राय होती जा रही हैं। यद्यपि इसको लेकर आज कहीं-कहीं जागृति आने लगी है, फिर भी देव-मंदिरों, घरों, ग्रंथालयों आदि में रखी हुई जीर्ण, फफूंदग्रस्त, खंडित, दीमकभक्षित पोथियों को कैसे सुरक्षित रखना, जीव-जंतु, प्राकृतिक आपदा, प्रदूषण के गहरे असर आदि से इन्हें कैसे बचाया जाए? आदि से संबंधित एवं रख-रखाव की योग्य जानकारी के अभाव में आज यह अमूल्य धरोहर नष्ट होती जा रही है। वर्तमान काल में इन पाण्डुलिपियों का संरक्षण करना एक कठिनतम कार्य है। हमारा फर्ज है कि जिस प्रकार महापुरुषों ने इस धरोहर को हम तक पहुँचाया है, उसे हम भी सुरक्षित रूप में अगली पीढी तक पहुँचाएँ। आज इस हेतु जरुरी तकनीक भी उपलब्ध है, जिसका हम पूरा-पूरा लाभ उठा सकते हैं। बस, जरूरत है जागरूकता लाने की। इस ज्ञान की विरासत को बचाने की पहल अगर अभी न कर पाए तो शायद बहुत देर हो जाएगी। इसी प्रकल्प को लेकर प्राचीन ग्रंथ विरासत के विशाल संग्रह को धरानेवाले आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर ने एक योजना बनाई है कि इस श्रुतसागर पत्रिका के माध्यम से सभी लोगों को इस प्रक्रिया से अवगत करवाया जाए, जिससे वे भी उनके पास रही अमूल्य धरोहररूप पाण्डुलिपियों को सुरक्षा प्रदान करें। वैसे संरक्षण की बात एवं कार्य का स्वरूप तो बहुत बड़ा है फिर भी यथाशक्य मुख्य-मुख्य महत्त्वपूर्ण जानकारियों को देने का यहाँ प्रयास किया जा रहा है। संस्था की उपलब्धियों और गतिविधियों के विषय में हमारे द्वारा पूर्व में लिखे गए For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 28 श्रुतसागर अक्टूबर-२०१९ लेखों के आधार पर बहुत से विद्वज्जनों ने हमारी संस्था के योगदान को ध्यान में लिया है, परखा है, समझा-जाना है। इसी अनुसंधान में हस्तप्रत संरक्षण की बात को लेकर भी विद्वज्जनों की ओर से जिज्ञासा व्यक्त की गई है। श्रुतप्रेमी प.पू. मुनिचंद्रसूरि म.सा. की ओर से हस्तप्रत संरक्षण से सम्बन्धित एक पत्र मिला, जिसमें उन्होंने हस्तप्रत के संरक्षण विषयक कुछ प्रश्न किए, जैसे हस्तप्रत को टिश्यु पेपर से कैसे मजबूत किया जाता है ? इसमें कितना खर्च आता है? इसके लिए क्या-क्या सामग्री अपेक्षित है? आदि। इन प्रश्नों के उत्तर उन्हें दे दिए गए हैं, परन्तु अन्य वाचकों को भी इस विषय में जानकारी प्राप्त हो सके, इस हेतु से वाचकों की जिज्ञासा की पूर्ति के लिए यहाँ पाण्डुलिपि संरक्षण की एक छोटी सी लेखमाला चलाने का प्रयास किया जा रहा है। हम आशा करते हैं कि आप इस महत्त्वपूर्ण नए विषय का स्वागत करेंगे। इस संस्था की सदैव यह भावना रही है कि श्रुतसंरक्षण-संवर्धन से सम्बन्धित जानकारियों का जितना प्रचार-प्रसार होगा उतना ही हम सबके लिए, देश-धर्म-समाज व संस्कृति के लिए हितकर रहेगा। प्रस्तुत विषयज्ञान का प्राप्तिस्रोत__भारत सरकार के मानवसंसाधन एवं सांस्कृतिक मंत्रालय ने फरवरी-२००३ में संस्कृति के संरक्षक, तत्त्वचिंतक तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयीजी के करकमलों से राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन, (National Mission For Manuscripts)(NMM) की स्थापना की। जिसका मुख्य उद्देश्य था कि भारतभर में रही पाण्डुलिपियों का संरक्षण करना। वर्तमान समय में राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन (एन.एम.एम.) लिपि प्रशिक्षण, संपादन तथा हस्तप्रत संरक्षण (कन्जर्वेशन) के प्रशिक्षण आदि बहुआयामी कार्य कर रही है। इस मिशन के तत्कालीन निदेशक श्री प्रतापानंदजी झा आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर की मुलाकात हेतु पधारे थे। संस्था में संग्रहित विशाल पाण्डुलिपि संग्रह को एवं उनके संरक्षण आदि हेतु किए गये अतिविशिष्ट प्रयासों को देखकर वे अत्यंत प्रसन्न व प्रभावित हुए थे। उन्होंने इसीसे प्रेरित होकर अपने मिशन द्वारा चलाए जा रहे पाण्डुलिपि के संरक्षण विषयक प्रशिक्षण वर्गों में संस्था के कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने का प्रस्ताव रखा। हम इनके सदैव आभारी रहेंगे कि उनके सत्प्रयासों से संस्था को एक नई, आधुनिक व अनुकरणीय हस्तप्रत संरक्षण पद्धति की जानकारी मिली। जिसका लाभ आप जैसे ज्ञानपिपासु वाचकों को भी दिया जा रहा है। (क्रमशः) For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 29 प्रकाशक SHRUTSAGAR October-2019 पुस्तक समीक्षा डॉ. हेमन्त कुमार पुस्तक नाम - दीपालिकाकल्प संग्रह संपादिका - साध्वी श्री चन्दनबालाश्रीजी भद्रंकर प्रकाशन, अहमदाबाद प्रकाशन वर्ष - वि.सं. २०६७ मूल्य - २५०/भाषा - संस्कृत एवं प्राकृत भारतीय संस्कृति अध्यात्मप्रधान होने के कारण यहाँ प्रत्येक पर्व की अपनीअपनी एक विशेषता है तथा अधिकांश पर्व प्रायः किसी न किसी महापुरुष के जीवन में घटित प्रसंगों से जुड़े हुए हैं। तात्पर्य यह है कि कई भारतीय पर्व महापुरुषों से जुड़े हुए हैं और उनके जीवन में घटित घटनाओं की स्मृति में स्थापित हैं। यहाँ हमारा अभिप्राय विशेषतया नैतिक एवं धार्मिक-आध्यात्मिक पर्यों से है। यों तो भारतवर्ष में प्रत्येक जाति एवं धर्म में रौढिक एवं सामाजिक अनेक पर्व हैं, जिसमें से कुछ तो परम्परागत है जिसे भारतीय जनसमुदाय आज भी अपनाए हए है। इन पर्यों से लोगों को मनोविनोद एवं इन्द्रियपोषण की सामग्री सहजतापूर्वक प्राप्त हो जाती है। किन्तु उन पर्यों में न तो विवेक जागृत होता है और न आध्यात्मिकता का विकास होता है। जैन शासन के सभी पर्व आत्मविकास की साधना में अनेक प्रकार से सहायभूत होते हैं। अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीरस्वामी के निर्वाण कल्याणक के साथ जुड़ा हुआ दीपावली पर्व अनेक आत्माओं के जीवन को अपूर्व आध्यात्मिक प्रकाश से आलोकित करता है। इस पर्व को केन्द्रित करके अनेक महापुरुषों ने संस्कृत, प्राकृत, गुजराती भाषा में गद्य एवं पद्य के स्वरूप में अनेक ग्रंथों की रचना की है, जिसे दीपालिकाकल्प, दीपोत्सवकल्प, अपापाकल्प, दीवालीकल्प आदि नामों से जाना जाता है। विविध कर्तृक दीपावली के कल्प अद्यपर्यन्त भिन्न-भिन्न प्रकाशकों द्वारा भिन्नभिन्न रूप से छपे हुए थे। संग्रहात्मक संपादन उपलब्ध नहीं था। जो साध्वी श्री चन्दनबालाश्रीजी म. सा. ने किया है। मात्र प्रकाशन ही नहीं, अपितु साध्वीवर्याने उसे संशोधन पूर्वक प्रकाशित किया है। इस संग्रह में वर्तमान में प्रचलित महत्त्वपूर्ण ८ कृतियाँ हैं, जो विभिन्न कर्तृक एवं विभिन्न भाषामय हैं। पूर्व में भिन्न-भिन्न विद्वानों द्वारा संपादित एवं अलग-अलग प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित दीपालिकाकल्पों को एक ही ग्रंथ में उपलब्ध कराकर इन्होंने सामान्य जनों के ऊपर बहत बड़ा उपकार किया है। प्रस्तुत ग्रंथ में कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य विरचित दीपोत्सवकल्प, श्री For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 30 श्रुतसागर अक्टूबर-२०१९ विनयचंद्रसूरि विरचित दीपालिकाकल्प, श्री जिनप्रभसूरि विरचित दीपोत्सवकल्प, श्री जिनसुंदरसूरि विरचित दीपालिकाकल्प, अज्ञात कर्तृक दीपालिकाकल्प, श्री लक्ष्मीसूरि विरचित दीपावलिकापर्व व्याख्यान, श्री उमेदचंद्र विरचित दीपमालिका व्याख्यान एवं उपाध्याय श्री गणसागरगणि विरचित दीपालिका व्याख्यान नामक कृतियों को संग्रहित किया गया है। इन कृतियों में वर्णित विषय निम्न प्रकार हैं - ___ दीपोत्सवकल्प- श्री हेमचंद्राचार्य द्वारा संस्कृत भाषा में रचित इस कृति में दीपोत्सव महिमा, भगवान महावीर का जीवन चरित्र, उनकी अन्तिम देशना, राजा पुण्यपाल के आठ स्वप्नों के फलादेश, पांचवें आरे में श्रीसंघ की स्थिति, छठे आरे की स्थिति, भावि ६३ शलाकापुरुषों के नाम आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है। दीपालिकाकल्प- श्री विनयचंद्रसूरि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित इस कृति में उज्जयिनी नगर में आर्य सुहस्तिसूरि को संप्रतिराजा के द्वारा देखने, संप्रतिराजा को जातिस्मरण ज्ञान होने, गुरु को अपने पूर्व भव की बात कहकर उन्हें राज्यशासन संभालने हेतु निवेदन करने, आर्य सुहस्तिसूरिजी द्वारा भगवान महावीर के चरित्र का वर्णन, विष्णुकुमार मुनि व नमुचि मंत्री की कथा, दीपालिकापर्व का माहात्म्य आदि का विस्तार से वर्णन किया गया है। दीपोत्सवकल्प- श्री जिनप्रभसूरि द्वारा प्राकृत भाषा में रचित इस कृति का अन्य नाम अपापाबृहत्कल्प है। इममें आर्य सुहस्तिसूरि द्वारा संप्रतिराजा को दीपालिकापर्व का महत्त्व दर्शाते हए भगवान महावीर का संक्षिप्त जीवन चरित्र, मध्यमापावापुरी में अन्तिम चातुर्मास के समय सोलह प्रहर तक देशना देने, पुण्यपाल राजा के आठ स्वप्नों के फलादेश, अग्रहिलग्रहिल राजा का दृष्टांत, युधिष्ठिर आदि का वर्णन, गौतम गणधर द्वारा प्रभु से पूछे जाने पर कि आपके पश्चात् क्या-क्या होगा, इसके उत्तर में प्रभु द्वारा किए गए संपूर्ण परिस्थिति के वर्णन आदि का विस्तार पूर्वक विवेचन किया गया है। देवशर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोधित करने हेतु गौतमस्वामी को भेजने, काशी और कौशल देश के नव मल्लकी तथा नव लच्छकी जाति के राजाओं द्वारा रत्नमयी दीपोत्सव करने आदि का भी विस्तृत वर्णन किया गया है। दीपालिकाकल्प- श्री जिनसुंदरसूरि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित इस कृति में भी संप्रतिराजा द्वारा आर्य सहस्तिसरि से पूछे गए दीपालिकापर्व के माहात्म्य और आर्य सहस्तिसरि द्वारा वीर परमात्मा का संक्षिप्त जीवन चरित्र, पुण्यपाल राजा के आठ स्वप्नों के फलादेश, भगवान महावीर द्वारा कलियुग का वर्णन, अणहिलपुर पाटण में चौलुक्य वंश में कुमारपाल राजा तथा आचार्य हेमचंद्रसूरिजी का वर्णन, कल्की राजा का वर्णन, भाईबीज पर्व की उत्पत्ति आदि का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। दीपालिकाकल्प- अज्ञात कर्तृक प्राकृत भाषामय इस कृति में भी पूर्व के For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR October-2019 कल्पों में उल्लिखित विषयों का ही वर्णन है। इस कल्प की विशेषता यह है कि इसमें तंदुलवेयालियपयन्ना का उदाहरण देकर श्री भद्रबाहुस्वामी द्वारा चंद्रगुप्त राजा के सोलह स्वप्नों के फलादेश, कल्कीराजा की जन्मकुंडली आदि का भी वर्णन मिलता है। दीपावलिकापर्व व्याख्यान- श्री लक्ष्मीसूरि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित इस कृति में भी संप्रतिराजा को आर्य सुहस्तिसूरि द्वारा दीपालिकापर्व के माहात्म्य को बताने के क्रम में महावीरस्वामी का संक्षिप्त जीवनचरित्र, गौतमस्वामी का भगवान से वियोग होने पर किया गया विलाप आदि का वर्णन है। व्याख्यान में यह भी बताया गया है कि परमात्मा की अन्तिम देशना और गौतमस्वामी को केवलज्ञान की प्राप्ति के बीच की अवधि में किए गए तप आदि का पुण्य कितना महान होता है। गुरु से दीपालिकापर्व का माहात्म्य जानकर संप्रतिराजा भी दीपालिकापर्व की आराधना में तत्पर हो गए। दीपमालिका व्याख्यान- श्री उमेदचंद्र विरचित संस्कृत भाषामय इस कृति में भी उपरोक्त कृतियों में वर्णित विषयों का ही वर्णन किया गया है। विशेषतः अग्रहिलग्रहिल राजा का दृष्टांत, भद्रबाहु द्वारा चंद्रगुप्त राजा के स्वप्नों के फलादेश, अवसर्पिणी काल में हुए दश आश्चर्य आदि का वर्णन किया गया है। दीपालिका व्याख्यान- श्री गणसागरगणि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित इस कृति में भी पूर्व के कल्पों में वर्णित विषयों का ही प्रतिपादन किया गया है। आर्य सुहस्तिसूरि द्वारा संप्रतिराजा के प्रश्नों के उत्तर में कही गई बातों का विवेचन किया गया है। प्रकाशन के अन्त में परिशिष्ट के अन्तर्गत अपापापुरी संक्षिप्त कल्प, श्री जिनसुंदरसूरि द्वारा विरचित दीपालिकाकल्प का गुजराती भाषान्तर तथा कृति में रहे हए विशेष पदार्थरूप महावीरस्वामी के निर्वाण के बाद के भावि २४ जिनों की उत्पत्ति का काल, भावि तीर्थंकरों का साक्षीपाठ, मतान्तर, छ आरा के अवसर्पिणी तथा उत्सर्पिणी काल आयुष्य प्रमाण आदि कोष्ठक दिए गए हैं। भिन्न-भिन्न आरा में मनुष्य तथा पंचेंद्रिय तिर्यंच युगलिकजीवों की स्थिति, व्यवहार आदि के वर्णन के साथ ही सभी कृतियों के श्लोक अकारादि अनुक्रम, संस्कृत कल्पों में उद्धत विशेष नामानुक्रम तथा प्राकृत कल्पों में उद्धृत विशेष नामानुक्रम आदि भी दिए गए हैं, जो वाचकों-संशोधकों के लिए सहायक सिद्ध होंगे। पुस्तक की छपाई बहुत सुंदर ढंग से की गई है। आवरण भी कृति के अनुरूप बहुत ही आकर्षक बनाया गया है। श्रीसंघ, विद्वद्वर्ग व जिज्ञासु इसी प्रकार के और भी उत्तम प्रकाशनों की प्रतीक्षा में हैं। भविष्य में भी जिनशासन की उन्नति एवं इतिहाससर्जन के उपयोगी ग्रन्थों के प्रकाशन में इनका अनुपम योगदान प्राप्त होता रहेगा, ऐसी प्रार्थना करते हैं। (अनुसंधान पृष्ठ क्रमांक. ७ पर) For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 32 अक्टूबर-२०१९ समाचारसार राष्ट्रपति एवं राष्ट्रसंत का आत्मीय मिलन महामहिम राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंदजी ने श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के ज्ञानभंडार एवं संग्रहालय का अवलोकन किया दि. 13-10-2019 को प्रातःकाल 11:00 बजे भारत के राष्ट्रपति महामहिम श्री राम नाथ कोविंदजी का शुभागमन धर्मपत्नी सह श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र में हुआ। उन्होंने राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के दर्शन एवं सत्संग का लाभ लिया। महामहिम राष्ट्रपतिजीने 15 करोड 51 लाख मंत्रों से अभिमंत्रित सरस्वती माता के दर्शन कर उनके चरणों में अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये। ज्ञानतीर्थ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर एवं कलातीर्थ सम्राट् सम्प्रति संग्रहालय में संग्रहित ज्ञान विरासत एवं पुरातात्त्विक वस्तुओं का उन्होंने अत्यंत रसपूर्वक अवलोकन किया। ____ उन्होंने बताया कि यहाँ का संग्रह देखकर उन्हें अत्यन्त प्रसन्नता हुई है। भारत को पुनः विश्वगुरु का स्थान प्राप्त कराने में भारतीय संस्कृति और सभ्यता के संरक्षक तथा देश के अमूल्य विरासत की सुरक्षा करनेवाले इस तरह के केन्द्रों का बहुत बड़ा योगदान सिद्ध होगा। ऐसे स्थानों में ही भारतीय संस्कृति और सभ्यता का वास्तविक ज्ञान सुरक्षित राष्ट्रपति महोदय ने राष्ट्रसंतश्री से कहा कि आप तो विश्वगुरु हैं, मैं तो आपसे कुछ कह नहीं सकता, फिर भी यह निवेदन करता हूँ कि इस विरासत को यहाँ कुछ ही लोगों तक सीमित न रखते हुए समस्त विश्व को इस विषय में जानकारी प्राप्त हो और इस धरोहर का लाभ सबको मिल सके, ऐसा कार्य करना चाहिए। यहाँ के कार्य से प्रभावित होकर राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि यह “श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र" नहीं, बल्कि सही अर्थ में “भारत आराधना केन्द्र” है। महामहिम राष्ट्रपतिजी के साथ उनकी धर्मपत्नी एवं गुजरात राज्य के राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रतजी शर्मा तथा उनकी धर्मपत्नी व गुजरात राज्य के मुख्यमंत्रीश्री विजयभाई रुपाणीजी भी पधारे थे। सभी ने इस संस्था का अवलोकन कर अत्यन्त संतोष व्यक्त किया। For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ SHRUTSAGAR October-2019 इस शुभ अवसर पर राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा की निश्रा में आचार्य श्री अमृतसागरसूरीश्वरजी म. सा., आचार्य श्री अरुणोदयसागरसूरीश्वरजी म. सा., आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी म. सा., गणिवर्य श्री प्रशांतसागरजी म. सा., मुनिश्री कैलासपद्मसागरजी म. सा., मुनिश्री पुनितपद्मसागरजी म. सा., मुनिश्री भुवनपद्मसागरजी म. सा., मुनिश्री हर्षपद्मसागरजी म. सा., मुनिश्री ऋषिपद्मसागरजी म. सा., मुनिश्री पार्श्वपद्मसागरजी म. सा. आदि सभी गुरु भगवंत उपस्थित थे। इस प्रसंग पर शेठी आणंदजी कल्याणजी पेढी के प्रमुख शेठ श्री संवेगभाई लालभाई, श्री शंखेश्वर तीर्थ पेढी के प्रमुख श्री श्रीयकभाई एवं संस्था के प्रमुख श्री सुधीरभाई महेता, अन्य ट्रस्टीगण एवं जैन समाज के अग्रणी श्रेष्ठिगण तथा बड़ी संख्या में भक्तगण उपस्थित थे। श्री शेरीसातीर्थ के प्रांगण में पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा के पावनकारी सान्निध्य में यात्रिक भवन तथा भाताघर का उद्घाटन सम्पन्न दि. 2 अक्टूबर 2019 बुधवार को शेरीसा तीर्थ में पूज्य राष्ट्रसन्त श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा तथा पूज्य आचार्य श्री हेमचन्द्रसागरसूरि की पावनकारी निश्रा में लाभार्थी मायाबेन वसन्तभाई झवेरी के करकमलों से शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी द्वारा निर्मित यात्रिक भवन तथा भाताघर का उद्घाटन सानन्द सम्पन्न हुआ। इस शुभ अवसर पर शेठ श्री संवेगभाई लालभाई (श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी के प्रमुख) श्री श्रीयकभाई शेठ (श्री जीवणदास गोडीदास पेढ़ी) एवं अनेक श्रेष्ठीवर्य उपस्थित थे। ___ कार्यक्रम का सुन्दर संचालन शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढ़ी के ट्रस्टी श्री श्रीपालभाई शाह ने किया। उन्होंने इस कार्यक्रम में पधारे हुए गुरु भगवंत एवं महानुभावों का स्वागतभरा अभिनन्दन किया। इस अवसर पर शेठ श्री संवेगभाईने कहा कि “शेरीसा तीर्थ के ट्रस्टी श्री सचिनभाई के सहयोग से तीर्थ में नवीनीकरण का कार्य सम्पन्न हुआ है। ट्रस्टमंडल तथा लाभार्थी परिवार की आग्रहभरी विनती को स्वीकार कर परम पूज्य राष्ट्रसन्तश्री यहाँ पधारे, यह सचमुच पुण्योपार्जन करानेवाला अवसर है। इसके मुख्य लाभार्थी मायाबेन वसन्तभाई झवेरी, जो मेरी मामी हैं, उन्होंने अत्यन्त सरल और सुन्दर भावना से इस तीर्थ में लाभ लिया है। उनके इस कार्य की मैं खूब-खूब अनुमोदना करता हूँ।” For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अक्टूबर-२०१९ श्री कल्पेशभाई वी. शाह ने कहा कि “आज अत्यन्त प्रसन्नता का अवसर है, सुकृत के सर्जन का अवसर है। शेरीसा जैसे प्राचीन तीर्थ में मायाबेन वसन्तभाई झवेरी ने जो लाभ लिया है, इसके लिए उन्हें तीर्थमाता कहना योग्य है। इस अवसर पर पूज्य गुरुदेवश्री लम्बा विहार करके यहाँ पधारे, यह हमारा अहोभाग्य है। मैं लाभार्थी परिवार की तथा श्री सचिनभाई के पुरुषार्थ की हृदय से अनुमोदना करता हूँ।” इस पावन अवसर पर पूज्य गुरुदेवश्री ने कहा कि “वर्तमान जीवन प्रभु की कृपा से मिला है। इतनी बड़ी दुनिया में प्रभु का शासन मिलना और प्रभु की प्राप्ति होना यह हमारा सौभाग्य है। सुकृत कार्यों से अनेक आत्माओं को सुन्दर प्रेरणा मिलती है। इस प्राचीन तीर्थभूमि में नई ऊर्जा और शुभभाव जाग्रत करने की शक्ति है। परमात्मा ने चार प्रकार से धर्म बतलाया है, जिसमें सर्वप्रथम शब्द “दान” है और यह दान मोक्ष का बीज है। पुण्यशाली परिवार जिन्होंने यह सुन्दर लाभ लिया है, मैं उनको अन्तर से आशीर्वाद प्रदान करता हूँ और यह शुभकामना देता हूँ कि उनके हाथों से ऐसे अनेक सुकृत होते रहें। इस अवसर पर विशेष रूप से उल्लेख करते हुए पूज्यश्री ने कहा कि भारत के विभिन्न संघों के जिनालयों के जीर्णोद्धार तथा रक्षणकार्य में जिनका मुख्य सहयोग प्राप्त होता रहा है, ऐसे शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी तथा शेठ जीवणदास गोडीदास पेढी, दोनों के सभी ट्रस्टियों तथा कार्यकर्ताओं को मैं खूब-खूब आशीर्वाद और शुभकामना प्रदान करता हूँ। इसी प्रकार शासन के कार्य करते रहें, परमात्मा की कृपा इनके ऊपर बरसती रहे, यही शुभ भावना है।" इस अवसर पर राष्ट्रसन्त पूज्य गुरुदेवश्री के साथ मुनि पुनितपद्मसागरजी तथा बालमुनि पार्श्वपद्मसागरजी म.सा. पधारे और प्रातः शुभमुहूर्त में मंगल मंत्रोच्चार के साथ लाभार्थी परिवार के हाथों से दोनों भवनों का लोकार्पण हुआ। * . * - पंडित की लाता भली, भली न मरख वात। उन लाते सख ऊपजे, इन वाते घर जाय(त)। प्रत क्र. ०२७९२ भावार्थ :- विद्वान पुरुष यदि क्रोध में आकर लात भी मारे तो अच्छा है, | परन्तु मूर्ख व्यक्ति मीठी बातें भी करे तो अच्छा नहीं है। क्योंकि विद्वान व्यक्ति की | लात से भी सुख प्राप्त होता है, लेकिन मूर्ख व्यक्ति की बातों से घर बिगड़ जाता है। For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शेरीसातीर्थ में पूज्य राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा की निश्रा में नवनिर्मित यात्रिक भवन व भाताघर के उद्घाटन का प्रसंग श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी के प्रमुख श्री संवेगभाई लालभाई एवं शेठ जीवणदास गोडीदास शंखेश्वर तीर्थ के प्रमुख श्री श्रीयकभाई की पावन उपस्थिति में संपन्न हुआ NAVANDANANJANAVANANAVANATAVANI VANAVANATAVANANANANANANA યાત્રિક ભવન JNAVANENEVANATANAYENAVANAVAL VANEVANANEVANANAN: ANAVANANAVANA ANAVANA मागमा मनकामनामानन NAANANDANAMANANJANIANTANAMANANANDANANDANANT ANTAVANAMAVANANATANAMAVANALL AAMANAVANAMAVANAANAWATANJANVAL RUARIAGUARANPAAUGURURAMPARANPPAPARAUNUARY 35 For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Registered Under RNI Registration No. GUJMUL/2014/66126 SHRUTSAGAR (MONTHLY). Published on 15th of every month and Permitted to Post at Gift City SO, and on 20th date of every month under Postal Regd. No. G-GNR-334 issued by SSP GNR valid up to 31/12/2021. दीपावलीपर्व व ज्ञानपंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ BOOK-POST / PRINTED MATTER प्रकाशक श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा जि. गांधीनगर 382007 फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फेक्स (079)23276249 Website : www.kobatirth.org email: gyanmandir@kobatirth.org Printed and Published by: HIREN KISHORBHAI DOSHI, on behalf of SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.&Dist. Gandhinagar, Pin-382007, Gujarat. And Printed at: NAVPRABHAT PRINTING PRESS, 9, Punaji Industrial Estate, Dhobighat, Dudheshwar, Ahmedabad-380004 and Published at : SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.& Dist. Gandhinagar, Pin-382007, Gujarat. Editor : HIREN KISHORBHAI DOSHI 36 For Private and Personal Use Only