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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 12 श्रुतसागर अक्टूबर-२०१९ विजयदेवेन्द्रसूरिजी भास विजयजिनेन्द्रसूरिजीनी पाटे बिराजमान विशिष्ट पुन्यशाळी एवा विजयदेवेन्द्रसूरिजी मारवाड सेवानना वासी शेठ अमीचंद सरूपादेना पुत्र हता। तेमणे घणी अंजनशलाका प्रतिष्ठा करावी होवाना शिलालेखो मळे छ । वळी तेमना राज्यमां लखायेला सचित्र विज्ञप्ति पत्रो पण तेमनी पुन्यप्रतिभानो बोलतो पुरावो छ । प्रस्तुत कृति ते ज पुन्यपुरुषना चरित्र पर आलेखायेली भास संज्ञक रचना छ । कृतिमां महअंशे सूरिगुणवैभव ज वर्णवायो छे। जो के रचनाकार वीरविजयजी होवाथी कृतिपदार्थ सामान्य होवा छतां अद्भुत रीते पीरसायो छ । सरळ शब्दो, सुंदर प्रासो तथा सौ साथे गाई शके तेवी तर्ज कविना अनुभवना परिपाकरूप देखाय छे। विशेषे तो कृति नानी होवा छतां शुभवीरनी होई ध्यानार्ह छ । श्री कमलसाधु गणि कृत सुमतिसाधुसूरिजी गीत ॥GO॥ अविचल परिमल बहुल सुकोमल, नंदनवन जिम सोहइ रे। तिम जिनशासनि सुहगुर गिरूआ, मानव मन अति मोहइ रे गाउ रे गोरी गुणमणि-आगर, सागर परि गंभीरू रे। गछनायक श्रीसुमतिसाधुसूरि, मंदरगिरि जिम धीरू रे ॥२॥गाउ रे... नयणे नवदल कमल हरावइ, निलवटि तपइ दिणिंदू रे। जाणे जीतउ सहिगुरि श्रीमुखि, गयणंगणि गिउ चंदू रे ॥३॥गाउ रे... मधुरपणइं मधु मधुरुं भणीइ, अमीअ महारस गिणीइ रे। जव गुरुवाणी श्रवणे सुणीइ, तव ए रस अवगणीइ रे ॥४॥गाउ रे... लखिमीसागरसूरिचा सीसू, भविआं ए गुरु वंदउ रे। साह गजराज-कुलमंडण महीअलि, जां दुं तां चिरनंदउरे ॥५॥गाउ रे... ॥ इति श्रीतपागच्छनायक श्रीसुमतिसाधुसूरीणां गीतं कृतं पं. कमलसाधुगणिभिः लिखितं स्वपरोपकाराय॥ छ॥छ। श्री सकलचंद्रजी कृत श्री सोमविमलसूरि स्वाध्याय O॥ सरसति सांमणि मनि धरीजी, प्रणमी गौतम पाय। गाइसु तपगछ राजीउजी, नरवर सेवइं पाय, सखीजी वंदं ए गणधार... ॥१॥ ॥१॥ For Private and Personal Use Only
SR No.525351
Book TitleShrutsagar 2019 10 Volume 06 Issue 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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