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श्रुतसागर
अक्टूबर-२०१९
अनुक्रम १. संपादकीय
रामप्रकाश झा २. गुरुवाणी
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी ६ 3. Awakening
Acharya Padmasagarsuri ४. केटलाक तपागच्छीय __ आचार्योना लघु काव्यो गणि सुयशचंद्रविजयजी ५. शालिभद्र गीत
श्रीमती हिरेनाबेन अजमेरा ६. नवकार सज्झाय
साध्वी दर्शननिधि ७. गुजराती माटे देवनागरी लिपि के
हिन्दी माटे गुजराती लिपि हिन्दवी ८. प्राचीन पाण्डुलिपियों की संरक्षण विधि
राहुल आर. त्रिवेदी ९. पुस्तक समीक्षा
डॉ. हेमन्त कुमार १०. समाचार सार
शब्दमांहि सदगुरु कहइ, परगट रूप जिनधर्म। सुणत विचक्खण सरदहइ, मूढ न जाणइ मर्म ॥
प्रत क्र. ८४५३१ भावार्थ- सद्गुरु शब्दों में प्रगटरूप से जिनधर्म का उपदेश देते हैं, उसे सुनकर विचक्षण बुद्धिवाले उसको स्वीकार करते हैं, परन्तु मूर्ख व्यक्ति उसके मर्म को नहीं जान पाते हैं।
* प्राप्तिस्थान आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर, होटल हेरीटेज़ की गली में
डॉ. प्रणव नाणावटी क्लीनिक के पास, पालडी अहमदाबाद - ३८०००७, फोन नं. (०७९) २६५८२३५५
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