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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR October-2019 कल्पों में उल्लिखित विषयों का ही वर्णन है। इस कल्प की विशेषता यह है कि इसमें तंदुलवेयालियपयन्ना का उदाहरण देकर श्री भद्रबाहुस्वामी द्वारा चंद्रगुप्त राजा के सोलह स्वप्नों के फलादेश, कल्कीराजा की जन्मकुंडली आदि का भी वर्णन मिलता है। दीपावलिकापर्व व्याख्यान- श्री लक्ष्मीसूरि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित इस कृति में भी संप्रतिराजा को आर्य सुहस्तिसूरि द्वारा दीपालिकापर्व के माहात्म्य को बताने के क्रम में महावीरस्वामी का संक्षिप्त जीवनचरित्र, गौतमस्वामी का भगवान से वियोग होने पर किया गया विलाप आदि का वर्णन है। व्याख्यान में यह भी बताया गया है कि परमात्मा की अन्तिम देशना और गौतमस्वामी को केवलज्ञान की प्राप्ति के बीच की अवधि में किए गए तप आदि का पुण्य कितना महान होता है। गुरु से दीपालिकापर्व का माहात्म्य जानकर संप्रतिराजा भी दीपालिकापर्व की आराधना में तत्पर हो गए। दीपमालिका व्याख्यान- श्री उमेदचंद्र विरचित संस्कृत भाषामय इस कृति में भी उपरोक्त कृतियों में वर्णित विषयों का ही वर्णन किया गया है। विशेषतः अग्रहिलग्रहिल राजा का दृष्टांत, भद्रबाहु द्वारा चंद्रगुप्त राजा के स्वप्नों के फलादेश, अवसर्पिणी काल में हुए दश आश्चर्य आदि का वर्णन किया गया है। दीपालिका व्याख्यान- श्री गणसागरगणि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित इस कृति में भी पूर्व के कल्पों में वर्णित विषयों का ही प्रतिपादन किया गया है। आर्य सुहस्तिसूरि द्वारा संप्रतिराजा के प्रश्नों के उत्तर में कही गई बातों का विवेचन किया गया है। प्रकाशन के अन्त में परिशिष्ट के अन्तर्गत अपापापुरी संक्षिप्त कल्प, श्री जिनसुंदरसूरि द्वारा विरचित दीपालिकाकल्प का गुजराती भाषान्तर तथा कृति में रहे हए विशेष पदार्थरूप महावीरस्वामी के निर्वाण के बाद के भावि २४ जिनों की उत्पत्ति का काल, भावि तीर्थंकरों का साक्षीपाठ, मतान्तर, छ आरा के अवसर्पिणी तथा उत्सर्पिणी काल आयुष्य प्रमाण आदि कोष्ठक दिए गए हैं। भिन्न-भिन्न आरा में मनुष्य तथा पंचेंद्रिय तिर्यंच युगलिकजीवों की स्थिति, व्यवहार आदि के वर्णन के साथ ही सभी कृतियों के श्लोक अकारादि अनुक्रम, संस्कृत कल्पों में उद्धत विशेष नामानुक्रम तथा प्राकृत कल्पों में उद्धृत विशेष नामानुक्रम आदि भी दिए गए हैं, जो वाचकों-संशोधकों के लिए सहायक सिद्ध होंगे। पुस्तक की छपाई बहुत सुंदर ढंग से की गई है। आवरण भी कृति के अनुरूप बहुत ही आकर्षक बनाया गया है। श्रीसंघ, विद्वद्वर्ग व जिज्ञासु इसी प्रकार के और भी उत्तम प्रकाशनों की प्रतीक्षा में हैं। भविष्य में भी जिनशासन की उन्नति एवं इतिहाससर्जन के उपयोगी ग्रन्थों के प्रकाशन में इनका अनुपम योगदान प्राप्त होता रहेगा, ऐसी प्रार्थना करते हैं। (अनुसंधान पृष्ठ क्रमांक. ७ पर) For Private and Personal Use Only
SR No.525351
Book TitleShrutsagar 2019 10 Volume 06 Issue 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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