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SHRUTSAGAR
October-2019 गुजराती माटे देवनागरी लिपि के हिन्दी माटे गुजराती लिपि?
हिन्दवी (गतांकथी आगळ..)
माथां छेल्ले बंधातां । आ आखी लीटीओ प्हेली दोराती थई गई अने दोरेली लीटीओ तळे डाबी बाजुनी आकृतिओ झडपथी लखवा जतां, आगली आकृति तेम पछीनी आकृति साथे सांधीने लखवा जतां, ए आकृतिमां अजाणतां ज अल्पाल्प फेरफार पडता गया अने अल्पाल्प फेरफारना समुच्चय रूप जमणी बाजुनी आकृति घडावा पामतां, तेमां पूरती प्रवाहिता देखाई, एटले वधु फेरफार थता अटकी गया अने ए ज रूप बंधाईने फेलायां । गुजराती लिपिनी समुत्क्रांति आम डगले डगले सिद्ध थवा पामेली छे। वळी छेवटे सिद्ध थयेलां आ रूपो कोई विद्वाने, कोई विद्वानोना जथाए, कोई विद्यापीठे, कोई सरकारे फरमावेलां अने एवं फरमान मळतां प्रजाए अपनावेलां, ए प्रमाणे नथी बनेलुं । प्रजानी स्वतंत्र स्वयम्भू यदृच्छात्मक हेयोपादेय वृत्तिए ए आखी घटना अनायासे काळे करीने मूक संकेते घडी लीधी छे । प्रजा बुद्धिना गर्भमा रहेली विवेचना अने सुरुचिए कारण कार्य सारा नरसानी स्फुट संवेदना विना आ नवी आकृतिओ उपजावी अने स्वीकारी छ। ____ आम बुद्धिगर्भ अस्फुट बळोए घडावा पामेली लिपि प्रजाए फेरववी एवो हुकम करवानी हकुमत कोईना पण हाथमां होई शके खरी? द्रव्योत्पादननी प्रवत्तिओ बुद्धिसत्त्वनी सपाटी उपरथी जन्मेली होय तेने माटे कोई साधु-संन्यासी फरमावे। “बच्चा, छोड दे, तप कर, तपस्या द्वारा मोक्ष पावेगा!” अने संसारी श्रद्धाळु होय ते तेनो त्याग करे, एम बनवू शक्य छे । जे प्रवृत्ति संवेदनाना क्षेत्रमा स्फुट विचारणाना वर्तुलमां बुद्धितत्त्वनी सपाटी उपरनी होय, तेना उपर आवी आण चाली पण शके; मोक्ष मेळववानी अभिलाषा घणी व्यक्तिओने पूरतुं मनोबळ पण आपी रहे, गमे तेवा अघरा त्याग पण आ प्रकारे हजारो माणसो करी नाखे अने तेमना दाखला पाछळ आखी जनता तणाय। अहीं सामी बाजुए लालच देखाडवामां आवे छे खरी, पण ते विषे आगळ चालती कलममां एटलं ज कहेतुं प्राप्त थाय छे के बुद्धिगर्भमां निगूढ वसती विवेचना अने सुरुचि उपर एवो कोईपण अमल चाले नहीं। नहीं चाले साधुसंतनो, नहीं चाले राजा-राज्यनो, नहीं चाले विद्वान विद्वमंडल के विद्यापीठनो।
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