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श्रीमती प्रताप चैतन पुष्पांक १०
श्री दादा गुरुदेवों की ? पूजायें
रचयिताजैनाचार्य पूज्यपाद श्रीश्री १००८ श्रीमजिन हरिसागर सूरीश्वरजी महाराज
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श्रीमती प्रताप चैतन पुग्षाका
॥ जिनो जयति ॥ दादा गुरुदेवों की ४ पूजायें
खरतर गच्छाधिपति श्री सुखसागरजी म० के वर्तमान हेमेन्द्रसागर म० की आज्ञानुयायिनी स्वगीया प्र० श्री प्रतापश्री म० सा० की शिष्या गुणरत्ना वयोवृद्धा दर्शनश्री ऋद्धि श्री म० सा० की
स्मृति में
श्रीमती चन्द्रश्रीजी के सदुपदेश से कलकत्ता निवासी गुरुदेव के भक्त श्रावक-श्राविकाओं द्वारा प्रदत्त द्रव्य सहाय्य से
प्रकाशक श्री जैन श्वेताम्बर उपाश्रय कमेटी
कलकत्ता
मूल्य गुरुभक्ति
महावीर जयन्ती वीर सम्वत् २४६१
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पूज्यपाद परमोपकारी प्रातः स्मरणीय सरल हृदय स्वगीय जैनाचार्य १००८ श्री जिन हरिसागर
सूरिजी महाराज की स्वगीय आत्मा
उन्हीं की कृति समर्पित कर गंगाजी के जल से गंगाजी की पूजा रूप स्मरणांजलि
सादर समर्पित है।
चरण चंचरीका
चन्द्र श्री
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परिचय
"दादा गुरुदेवों की ४ पूजायें नामक पुस्तक आपके हाथ में है । श्री जैन शासन में प्रकाशमान ज्योतिधर महान् चमत्कार पूर्ण जीवन वाले परमोपकारी कल्पवृक्ष के समान भक्तों की इच्छाओं को सफल करने वाले दादा के समान धर्मवात्सल्य को दिखाने वाले आबाल गोपाल प्रसिद्ध 'श्री दादाजी महाराज' नाम वाले चार गुरुदेव हुए हैं। उन चारों श्री गुरुदेवों की चार पूजायें पूज्यपाद प्रातः स्मरणीय खरतरगच्छाचार्य गुरुदेव श्री १००८ श्री मजिनहरिसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब द्वारा सुन्दर सरल एवं सरस भाषा में नई लोकप्रिय तों में निर्माण की हुई हैं। श्री दादा गुरुदेव के भाविक भक्त इस से श्री दादाजी महाराज के दिव्य ऐतिहासिक जीवन चरित्र को हृदयंगम करके श्री दादा गुरु के गुणों में तन्मयता प्राप्त कर सकते हैं। ... १-पहले दादा गुरुदेव १००८ युगप्रधान श्रीमजिनदत्त सूरीश्वरजी महाराज विक्रम की बारहवीं शताब्दी में विद्यमान थे। आपके योगबल एवं तपोबल से ५२ वीर ६४ योगिनियां पंचनदी के पांच पीर आदि अनेकों देवी देवता भक्त हो गये थे। आप नवाझवृत्तिकार श्रीमद्अभयदेवसूरीश्वरजी के पट्टधर समर्थ सुविहित खरतर विधि के प्रचारक महाकवि श्रीमजिन वल्लभसूरीश्वरजी के पट्टाकाश में सूर्य के समान प्रकाशमान थे :
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स्व० जैनाचार्य श्रीजिन हरिसागरसूरिजी महाराज
नम्र सूचन इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. जिससे अन्य वाचकगण इसका उपयोग कर सकें.
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[ ख ]
आपकी जन्मभूमि धवलका (गुजरात ) थी तो स्वर्गभूमि अजमेर ( राजस्थान) में आज भी अपने चमत्कारों से प्रसिद्ध हैं। आपकी स्वर्ग-जयन्ती आषाढ़ शुक्ला १९ को अनेक ग्राम-नगरों में मनायी जाती है।
२ -- दूसरे श्री दादा गुरुदेव श्री श्री १००८ श्रीमज्जिनचन्द्र सूरीश्वरजी हुए, जो कि श्री मणिधारीजी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हैं। आप पहले दादा गुरुदेव के पट्टधर थे । आपने महत्तियाण जातिको प्रतिबोध देकर जैन बनाया। दिल्लीपति श्री मदनपाल को जैनधर्म में दीक्षित किया । श्रीमाल जाति में कई नये गोत्रों की अभिवृद्धि की आपके भव्य भाल में नरमणि चमकती थी। आपके भी कई देवी-देवता भक्त थे । आपकी जन्मभूमि विक्रमपुर ( जैसलमेर भाटीपे में ) थी एवं स्वर्गभूमि भारत की राजधानी दिल्ली में कुतुब के पास चमत्कार पूर्ण आज भी प्रसिद्धरूप से पूजी जाती है
1
३- तीसरे श्री दादा गुरुदेव श्री श्री १००८ श्रीमज्जिनकुशल सूरीश्वरजी महाराज विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में हुये । चार राजाओं के प्रतिबोधक कलिकाल केवली विरुवाले श्रीजिनचंद्र सूरीश्वरजी महाराज के आप पट्टधर थे। कई अजैनों को आपने जैन बनाये। कई देवी देवता आपकी सेवा करते थे। आपकी जन्मभूमि समियाणा ( सिवाना - मारवाड़ ) थी तो स्वर्गभूमि देरावर (सिन्ध) में प्रसिद्ध है। सोमवार पूनम - अमावश को आपके नामसे कई भक्त जन एकाशनादि करते हैं। ध्यान करने वालों को आपके दर्शन आज भी हाजरा हजूर है। चिन्ता हरने
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[ ग] के लिये आप चिन्तामणि के समान है। फाल्गुनी अमावस्या के दिन आपकी स्वर्गजयन्ती सर्वत्र मनायी जाती है। ___४-चौथे श्री दादा गुरुदेव श्री श्री १००८ श्री मज्जिनचंद्र सूरीश्वरजी महाराज सतरहवीं शताब्दीके महान शासन प्रभावक थे। आप श्रीजिनमाणिक्यसूरिजी महाराज के पट्टधर थे। आपने मुगल-सम्राट अकबर को अहिंसा के रंग में रंग दिया था । सम्राट ने आपकी प्रसन्नता के लिये अपनी भक्ति से जीवदया के कई फरमान अपने शासित प्रदेशों में प्रचारित किये थे। अकबर के अन्तिम जीवन में जो दयाधर्म की मलक इतिहास में प्रसिद्ध है वह आपके त्याग तपोबल का प्रभाव था। सिरोही की लूट से लायी हुई सहस्राधिक धातुमय जिनप्रतिमाएं मुगलों द्वारा नष्ट होने से बचाकर जैन संघ के आधीन की जो आज भी बीकानेर के श्री चिन्तामणिजी के भण्डार में सुरक्षित है और उपद्रव निवारणार्थ कभी-कभी पूजी जाती हैं । सम्राट जहाँगीर द्वारा साधु-विहार प्रतिषेधकी आज्ञा को अपने प्रभाव द्वारा आपने रद्द करवा कर जैन संघकी महान् सेवा की थी। आपने धर्मसागरोपाध्याय को चौरासी गच्छ के आचार्यों की मध्यस्थता में पराजित कर जिनशासन के कलह वृक्ष को उखाड़ डाला। शूरवीर और दानवीर परमार्हत् मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र बच्छावत जैसे आपके तेजस्वी भक्त श्रावक थे। अहमदाबाद के पोरवाड़ शिवा-सोमजी भ्राताओं ने आपकी कृपा से ही समृद्ध होकर जिनशासन की बड़ी सेवायें की। आपकी जन्मभूमि खेतसर (मारवाड़) थी तो स्वर्गभूमि बिलाड़ा प्रसिद्ध
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[ घ] है। गुजरात में पालनपुर, पाटण, अहमदाबाद, सूरत खंभात, जामनगर, बम्बई आदि नगरों में आपकी स्वर्गतिथि आश्विन बदी २ (गुजराती भा० ब० २) दादा दूज नाम से प्रसिद्ध है
और मेला भरा जाता है तथा कई स्थानों में जयन्तियाँ मनायी जाती हैं।
इन चारों दादा साहबके ऐतिहासिक शोध पूर्ण अलग अलग जीवन चरित्र हिन्दी में श्रीयुत अगरचन्दजी भँवरलालजी नाहटा ने प्रकाशित किये हैं, जिनके गुजराती में अनुवाद भी प्रकाशित हुये हैं। विशेष जानने के इच्छुक महानुभावों को उन ग्रन्थों का अवलोकन करना चाहिये।
इन परमोपकारी चार दादा गुरुदेवों की चार पूजाएं करते हुये भक्तजन इच्छित प्राप्त करें एवं शासन प्रभावना में समर्थ बनें इस भावना को रखते हुये 'श्रीदादागुरुदेव की जय" कहकर विराम लेता हूं।
प्रार्थी श्री दादागुरुदेव का सेवक
कान्तिसागर ( मोकलसर-मारवाड़)
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ॐ अहं नमः ॥श्री सुखसागर-भगवजिनहरि-पूज्य-परमगुरुभ्यो नमो नमः।
प्रथम दादा गुरु देवश्रीजिनदत्त सूरीश्वर-पूजा ॐ श्री गुरुपद स्थापना
(शार्दूल विक्रीडितम् ) ॐ अर्ह जिनदत्तरि-सुगुरो ! निष्पाप-बोधोद्धुरोदाराचार-विचार-सार-पदवी - संपादक - श्रीगुरो ! । स्फूर्जत्सत्य-सुखोदधे ! सुभगवत्भन्यात्म सञ्चिन्निधे ! भूपीठे हरिपूज्य ! देव ! दयया स्वीयावतारं कुरु ॥
* आह्वान मन्त्र के ॐ ही श्री अहं श्रीजिनदत्त-सरि-सुगुरो ! अत्रावतरावतर स्वाहा ॥
* स्थापना मन्त्र के ॐ हाँ श्रीँ अहं श्रीजिनदत्त-सरि सुगुरो। अत्र तिष्ठ २ ठः ठः ठः स्वाहा ॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
* सन्निधिकरण मन्त्र के ॐ ह्रीँ श्रीँ अहं श्रीजिनदत्त-मूरि-सुगुरो ! मम सन्निहितो भव वषट् स्वाहा ॥
१-जल पूजा
दूहाॐ अहं ध्याउं धुरे, सहज समाधि निदान । श्रीगुरुपद पूजा रचूं , प्रकटे गुरुपद ज्ञान ॥ १ ॥
गुण-गुरु गुरु सेवा सदा, मन-मेवा दातार । मन-वच-काया से करू, गुरु सेवा सुखकार ॥ २ ॥
जिन शासन वर भवन में, दृढतर थम्भ समान । खरतर विधि पालक हुए, गुरु-गुण-ज्ञान-निधान ॥३॥
श्रीजिनदत्त शिरोमणि, गुरु-पदधारी सार। पूजनतें प्रकटे सही, गुरुपद-गुण-भंडार ॥ ४ ॥ __आतम उज्ज्वल वस्त्रपे, लगा करम-मल-कीच । निर्मलता हित धोइयें, गुरु-सेवा-जल बीच ।। ५ ।।
पूज्य पुरुष-पूजन किये, प्रकटे पूज्य स्वभाव । यात पूजन कीजिये, भविजन द्रव्यऽरुभाव ॥ ६ ॥
जल-चन्दन अरु पुष्प-वर, धूप सुगन्धित वास । दीपाक्षत नैवेद्य फल, पूजा करू प्रकाश ॥ ७ ॥
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प्रथम दादागुरु देव पूजाः (तर्ज-चिन्ता चूर चिन्तामणि पास प्रभु० )
गुरुदेव की सेव सदैव करो,
निज पुण्य परम भण्डार भरो ॥ टेर ॥ जो भर सुगन्धित जल कलश, गुरु चरण कज प्रक्षालते । कर्म के सब पाप मल वे, दूर ही ते टालते ॥ ___निज रूप अनूप करो उजरो । गुरु० ॥१॥ प्रभु वीर शासन में हुए, श्री गौतमादिक गुरुवरा । संसार में जिनका विभलतर, ध्यान है मंगलधरा ॥
नित ध्यान करो सब पाप हरो । गुरु० ॥२॥ कुछ मध्य में अति हीन काल, प्रभावतें अति हीनता। होने लगी थी साधुओं में, चैत्यवास मलीनता ॥
यही आज कहे इतिहास खरो । गुरु० ॥३॥ श्री वर्द्ध मानाचार्यपद, सूरि जिनेश्वर सूर्य से । उस तिमिर परित काल में, चमके सुखरतर कार्य से ।।
उनके सत्य प्रकाश का बोध करो। गरु० ॥ ४ ॥ फिर सिंहनाद सुवाद भी, सूरि जिनेश्वरने किया। मृग चैत्यवासी भग गये. खरतर बिरुद दुर्लभ दिया । ____ उसी सुविहित पथमें भवी विचरो । गुरु० ॥ ५ ॥ दोष-लांछन रहित उनके, शांत कांति हुए सुधी। जिनचन्द्रसूरि चन्द्र से, सवेग रंग सुधानिधि ।।
उनकी सुविधि सुधा का पान करो । गुरु० ॥६॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह पट्ट उनके धीर निर्भय, अभयदेवाचार्य वर । नव अंग टीकाकार तीरथ, पास थंभण प्रकट कर ॥
उनके शरण अभय वरदान वरो । गुरु०॥ ७॥ उनके विशद पद गगन में, रवि सम तमो नाशक महा। कवि वीर जिनवल्लभ सुजस, जिनका जगत में हो रहा ॥
उनका सुजश सदा मुख से उचरो । गुरु० ॥८॥ पाखण्ड खण्डन के लिये, सामर्थ्य जो पुरा धरें। हैं संघपट्टक आदि जिनके, ग्रन्थ तत्वों से भरे ॥
पढ के तत्वरमणता, नित्य करो । गुरु० ॥६॥ प्रख्यात उनके आज भी, जिनदत्तसरि राज हैं। अतिशय भरे अवदातमय, जो भव्यजन सरताज हैं।
दादा नाम सुपावन याद करो । गुरु० ॥१०॥ दादा गुरु सुख सिन्धु हैं, भगवान हैं आधार हैं। गुरु के चरण प्रक्षालते, "हरि" होत भव जल, पार हैं। यातें प्रथम विमलजल पूजा करो । गुरु० ॥ ११ ॥
श्लोकसत्त्यामृताय सरसात्मपदाय मूलात्
तृष्णादि-दोष दलनाय मलक्षयाय । तत्तद्गुणेन विमलेन जलेन भक्त्या,
दादोपसंज्ञ जिनदत्तगुरुं यजेऽहम् ॥
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प्रथम दादागुरु देव पूजा
मंत्रॐ ह्रीँ श्रीँ अहं परम पुरुषाय परमगुरु देवाय भगवते जिनशासनोद्दीपकाय दादा श्रीजिनदत्त सूरीश्वराय जलं यजामहे स्वाहा ।।
२-चन्दन पूजा
दहा--
श्रीगुरु चन्दन वृक्षतें, त्रिविध ताप मिट जाय ।
यातें चन्दन पूजना, करो सदा सुखदाय ॥ तर्ज-जिनधर्म का डंका आलम में बजवा दिया वीर जिनेश्वर ने मिथ्यात्व कुवास को दूर किया,
__दादागुरु दत्तसूरीश्वर ने। जिनधर्म सुवास विशेष यहाँ,
फैला दिया दत्तसूरीश्वर ने ॥ टेर ॥ जब धर्म के नाम यहां भारी,
पाखण्ड जमाया जाता था। निर्भय हो उसको दूर किया,
तब युगवर दत्तसूरीश्वर ने ॥ मिथ्या० ॥२॥ जब रातमें वेश्याएँ नाटक,
जिन मन्दिर में नित करतीं थीं।
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६
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प्रथम दादागुरु देव पूजा अविधि-विधि भेद प्रकाश किया,
तब श्रीजिन दत्तसूरीश्वर ने मिथ्या०॥२॥ जब झूठे गच्छ कदाग्रह में,
गृही गण को फांदा जाता था। जिन शासन का सच्चा पथ तब,
दिखला दिया दत्तसूरीश्वरने मिथ्या०॥३॥ जिन मन्दिर में गद्दी अपनी,
मुनिनाम धारी जब रखते थे। मन्दिर-यति धर्म स्वरूप तभी,
समझाया दत्तसूरीश्वर ने मिथ्या०॥४॥ निर्गुण दुष्कुल में जन्मे को,
स्वारथहित द्रव्य को देकर के । वैसे गुरु शिष्य बनाते थे,
छुड़वाया दत्तसूरीश्वर ने मिथ्या० ॥५॥ जब विषय कषायाधोन हुए,
मुनि देव द्व्य को खाते थे. उसका भी खण्डन खूब किया,
संयमी गुरु दत्तसूरीश्वर ने ॥मिथ्या०॥६॥ सुखसागर वे भगवान बनें,
त्रिभुवन में उनका यश पसरे।
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प्रथम दादागुरु देव पूजा सुविहित आचार को पालें जो,
फरमा दिया दत्तसूरीश्वर ने । मिथ्या०॥७॥ न विषधर का ताप नहीं,
होगा चन्दन पूजा रचते । "हरि" पूज्य हुए पूजा करते,
उपदेशा दत्तसूरीश्वर ने ॥ मिथ्या०॥८॥
श्लोकदुःखोपताप हरणाय महद्गुणाय,
यद्वा द्विजिह्व कृतदोषनिवारणाय । सच्चन्दन-प्रवर-पुण्यरसेन श्रीमद्
दादोपसंज्ञजिनदत्तगुरु यजेऽहम् ॥
ॐ ही श्री अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते
जिनशासनोद्दीपकाय दादा श्रीजिनदत्त सूरीश्वराय चन्दनं यजामहे स्वाहा ।
३-पुष्प पूजा।
दूहासुमनस् सद्गुरु सेवना, सुमनस् शिवको देत । सुमनस् भविजन कीजिये, सुमनस्-पद संकेत ।।
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दादागुरु देव पूजा संग्रह (तर्ज-म आया तेरे द्वार पर कुछ लेकर जाऊँगा) श्रीगुरु सुमनस् सेवना, नित कीजे विविध प्रकार । हैं जिनदत्त सूरीश्वरु, गुरु सुमनस् शिव दातार ॥ टेर ॥ ग्यारहसौ बत्तीस में, धवलकानगर मझार । हुम्बड़कुल आकाशमें, जो प्रकटे शुभ दिनकार ॥
श्री गुरु सुमनस् ॥१॥ वाछिगसा मन्त्री श्रीमती, वाहड़दे गुण भण्डार । धन्य धन्य जगमें हुए जसु, मात-पिता जयकार ।।
श्री गुरु सुमनस् ॥२॥ श्रीधर्मदेव पाठक से दीक्षा, शिक्षा लेकर सार । लघुवय इकतालीसमें, हुए सोमचन्द्र अनगार ।।
श्री गुरु सुमनस् ॥३॥ उपस्थापना वाचना. गुरुमन्त्र विशेष प्रकार । दें अशोकचन्द्र हरिसिंह वर आचार्य विशुद्धाचार ॥
श्री गुरु सुमनस् ॥ ४ ॥ जब स्वर्ग सिधारे श्रीगुरु-जिनवल्लभ जगदाधार । श्रीदेवभद्र आचार्य ने, तब करके खूब विचार ।।
श्री गुरु सुमनस् ॥ ५॥ युगप्रधान पद योग्य हैं श्रीसोमचन्द्र अनगार। जान यही उनका किया मूरिपद का संस्कार ॥
श्री गुरु सुमनस् ॥ ६ ॥
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प्रथम दादागुरु देव पूजा नामकरण जिनदत्त सूरि, सद्गुण के अनुसार । जपते दुख दूरे टले, सुख होवे अपरम्पार ।।
श्री गुरु सुमनस् ॥ ७॥ गुरु सुमनस् सौरभका हुआ, तिहुँ लोकमें पुनितप्रचार । गुरु सुमनस पूजा कीजिये, ‘हरि' सुमनस् हो नरनार ।।
श्री गुरु सुमनस् ॥ ८॥
श्लोकसत्सौरभाय सुकुमार गुणाय दीव्यद्
रूपाय कान्त सुमनः पद दर्शनाय । प्रेङ खत्सुगन्धसुमनोभिरभिष्ठदेवं
दादोपसंज्ञजिनदत्तगुरु यजेऽहम् ॥
ॐ ह्रीँ श्री अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते जिनशासनोद्दीपकाय दादा श्रीजिनदत्त सूरीश्वराय पुष्पं यजामहे स्वाहा ।
४-धूप पूजा।
दूहासद्गुरु पूजो धूप से, वरते मंगल माल । काल अनादि कुवासना, दूर करें तत्काल ।।
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दादागुरु देव पूजा-संग्रह ( तर्ज-जमुनाजी में खेले हरि राम लला )
दादागुरु पूजो धूप धरी, दुर्गन्ध अनादिकी जाय टरी।
दादागुरु पूजो धूप धरो । टेर ।। जिनदत्तगुरु आचार्य हुए.
जिनवल्लभ सद्गुरु पाटवरी ॥ दादा०॥ भविजन सुखिये जय जय उचरें,
गुरु देशना अमृत पान करी ॥दादा गु०॥१॥ जिनशेखर पर उपकार किया,
उसके अपराध सभी विसरी ॥ दादा० ।। मरुधर में प्रथम विहार किया,
विधि की वर ज्योति तभी पसरी ॥दादा०२॥ धनदेव को सद्गुरु बोध करें.
आगम विधि रीति विशेष करी ॥ दादा०॥ अजमेर में अर्णोराज नमें,
मन्दिर हित भूमिदान करी ।। दादा० ३॥ पावनगुरु बागड़ देश करें.
___ भविजन माने आनन्द घरी ॥ दादा० ॥ गुरु सन्मुख सविनय भाव भरे,
समकित सह विरति को उचरी दादा० ४॥
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प्रथम दादागुरु देव पूजा
जयदेव - सूरि उपसम्पद लें,
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११
गुरु वसतिविधि उन चित्त ठरी ॥ दादा० ॥
निज चैत्यवास जिनप्रभ छोड़ें,
जिनदत्त परम गुरु चरण परी || दादा गु०५|| महिमा मुख से नहीं जाय कही,
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महिमा मही- मण्डल खूब भरी || दाद० ॥ गुरु गुण महिमा जो भवि गावें,
सुख सम्पति उनकी सहचरी || दादा० ६ || गुरु सन्मुख धूप सुगन्धी धरो,
सब पाप पुंज तब जाय जरी || दादा० ॥ सुखसागर गुरु भगवान भजो,
गुण गावें सुर गणनाथ हरि" || दादा ०७ || श्लोकस्वीयोद्वर्व सिद्धिगतये सततं सदाशासम्पूर्त्तये दुर्गन्धदोपहतये वर-धूप- गन्धैदोदोपसंज्ञ - जिनदत्तगुरु
परिमलोत्तमकीर्तयेऽपि ।
यजेऽहम् ॥
मन्त्र
ॐ ह्रीं श्रीं अहं परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते जिनशासनोद्दीपकाय दादा श्रीजिनदत्त सूरीश्वराय धूपं यजामहे स्वाहा ||
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दादागुरु देव पूजा संग्रह ५-दीपक पूजा।
दूहागुरु दीपक पूजा करो, प्रकटे परम प्रकाश ।
दीपक गुण विस्तारतें, हृदय तिमिर हो नाश ॥ (तर्ज-प्रभुधर्मनाथ मोहे प्यारा जगजीवन मोहन गारा )
* राग वनजारा * पूजो पूजो परम गुरु प्यारे,
जिनदत्त जगत रखवारे । टेर॥ अम्बा अक्षर लिख देती, नागदेव को श्रीमुख कहेती। जो बांचे गुण अनुसारे, सो युगवर पद गुण धारे।।
पूजो पूजो परम गुरु० ॥ १ ॥ जब कोई नहीं पढ़ पाया, तब श्रीगुरु को दिखलाया। निज वास चूर्ण गुरु डारे, पढ़ चेला वचन उचारे ॥
पूजो २ परम गुरु० ॥२॥ जय जय जिनदत्त प्रधाना, मरुधर में कल्प समाना । सुर सेवक सेवा सारे, सब दुःख दुर्गति को बारें॥
पूजो २ परम गुरु० ॥ ३ ॥ गोहिल-डांभी अन्याये, मरुवासी जब दुःख पाये ॥ जशा-पोकर विप्र बिचारे, तब श्रीगुरुशरण सिधारे ।
पूजो २ परम गुरु० ॥ ४ ॥
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प्रथम दादागुरु देव पूजा गुरु ने फरमाया जाओ, राजा राठोड़ बनाओ। नीति-बल-गुण-आकारे, सीहोजी दुख विदारे ।
पूजो २ परम गुरु० ॥ ५ ॥ सीहोजी कनोज से आवें, श्रीगुरु को शीश नमावें । गुरु दे आशीष अपारे, घरे तब विजय नगारे ।
पूजो २ परम गुरु० ॥ ६ ॥ पाली में जंग जमावं, सीहोजी बल दिखलावें । गोहिल डांभी सब हारें, राठोड़ विजय विस्तारें ॥
___ पूजो २ परम गुरु० ॥ ७ ॥ सीहोजी अव्यावाधे, नवकोटी मरुधर साधे । गुरु दीपक के उजियारे, अन्धेर सुदूर निवारे ॥
पूजो २ परम गुरु०॥ ८॥ सन्तान जो मेरे होंगे, गुरु खरतर उनके होंगे। सीहोजी प्रतिज्ञा धारें, गुरु पूर्जे विविध प्रकारे ॥
पूजो २ परम गुरु० ॥६॥ गुरु सुखसागर भगवाना, सेवो भवी भव्यविधाना । सुर"गणनायक हरि" हारे, गुण-कीरति वचन विचारे॥ पूजो २ परम गुरु० ॥१०॥
श्लोकपुष्यत्तमोभर--निवारण कारणाय
ज्योतिः प्रदीप्त परमोज्ज्वल सद्गुणाय
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१४
दादागुरु देव पूजा संग्रह दिव्य प्रदीप करणेन सुभक्ति युक्तो
दादोपसंज्ञजिनदत्तगुरु यजेऽहम्
ॐ हाँ श्रीँ अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते जिनशासनोद्दीपकाय दादा श्रीजिनदत्त
सूरीश्वराय दीप यजामहे स्वाहा ।।
६--अक्षत पूजा।
दूहाउज्ज्वल अक्षत श्रीगुरु, पूजो अक्षत धार । उज्ज्वल अक्षत पद मिले, रहे न एक विकार ।।
( तर्ज-आधार मेरे प्यारे पारस प्रभु हैं आधार) अपार मेरे प्यारे, महिमा गुरु की अपार ॥ टेर ॥
दादागुरु जिनदत्त अकारण-- बन्धु भवसिंधु आधार । आधार मेरे प्यारे म० ॥१॥
अभक्ष्य त्यागी सुलतान सुत को। जीवन दान दातार। दातार मेरे प्यारे म० ॥२॥
विजली गिरी उसे पाने में रोकी। प्रतिक्रमण के मझार। मझार मेरे प्यारे म० ॥३॥
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प्रथम दादागुरु देव पूजा
दत्त सुनाम के जाप जपे ते। विजली न करती संहार । संहार मेरे प्यारे म० ॥४॥
___ वयंभ से विद्या की पुस्तक । की योगबल से स्वीकार । स्वीकार मेरे प्यारे म०॥ ५ ॥
पंच नदी पर पीर उपद्रव । करने पे पाये थे हार। हार मेरे प्यारे म० ॥६॥
रहते गुरु की खिदमतमें हाजिर। गुलाम जैसे हरबार। बार मेरे प्यारे म० ॥७॥
___ सात दिये वरदान विनय से। दादा गुरू को उदार। उदार मेरे प्यारे म० ॥ ८ ॥
भूत प्रेत ग्रह-व्यन्तर-मारी । होंगे न पीड़ा प्रचार । प्रचार मेरे प्यारे म० ॥६॥
श्लोक---
नित्याशत प्रकट सौख्यपदाय चंचच्
___चन्द्रोज्ज्वलाद्भुत गुणोत्तम सौरभाय । पुण्याक्षतैः सरलतांचित-चित्तवृत्ति
दोपसंज्ञजिनदत्त - गुरु यजेऽहम् ॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
मन्त्र--
ॐ ही श्री अर्ह परमपुरुषाय परमगुरुदेवाय भगवते
जिनशासनोद्दीपकाय दादा श्रीजिनदत्तसूरीश्वराय अक्षतं यजामहे स्वाहा ॥
७-नैवेद्य पूजा।
दूहा
गुरु पूजो नैवेद्यसे, त्रिभुवन जन गुण गाय । अनाहारपद योगत, भूख सभी मिट जाय ।।
(तर्ज-बलिहारो बलिहारी बलिहारी० ) उपकारी उपकारी उपकारी दादा गुरु उपकारी,
नर नारी पूजो श्रीगुरु भावसे जी ॥ टेर ॥
जोगणियाँ चौसठ आवे, गुरुको छलने के दावे । किन्तु छलागई वे बिचारी ॥ दादा गुरु० ॥१॥
जोर न जब चला, बोलें कर जोरे अबला । हम गुरु दासी तुम्हारी ॥ दादा गुरु० ॥ २॥ ___सात वरदान देवें, गुरु तब छोड़ देवें। हैं गुरु पूरे ब्रह्मचारी ॥ दादा गुरु० ॥ ३॥
विक्रमपुरमें भारी, चारों दिशा में मारी। फैली जब हुई हाहाकारी ॥ दादा गुरु० ॥ ४ ॥
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प्रथम दादागुरु देव पूजा १७ कोई न कार लागे, लोक हैरान भागे। श्रीगुरु शरण मझारी ॥ दादा गुरु० ॥५॥
जैनोंमें प्रकटी साता, हैं गुरु शान्ति दाता । विनोंने विनती उचारी ॥ दादा गुरु० ॥६॥
रक्षा हमारी करो, मारीको दूर करो। हम शिर आज्ञा तुम्हारी ॥ दादा गुरु० ॥ ७ ॥
समकित श्रावकदीक्षा, साधुदीक्षा सुशिक्षा । दें गुरु शान्ति अवतारी ॥ दादा गुरु० ॥ ८ ॥
किये एक लाख पर, तीस हजार वर । गुरु श्रावक गुण धारी ॥ दादा गुरु० ॥ ६ ॥
जैनेतर शुद्धि करते, संघ की वृद्धि करते। श्रीजिनशासन जयकारी ॥ दादा गुरु० ॥ १० ।।
समपरिणामी नामी, निन्दक बन्दक में स्वामी। "हरि" कहे जाऊं बलिहारी ॥ दादा गुरु० ॥ ११ ॥
श्लोक
ननाधि भोतिकगदादिविमर्दनाय,
शश्वद् बुभुक्षितपदोदयवारणाय । नैवेद्यवस्तुभिरनुत्तर-सद्रसाढ्य
दोपसंज्ञजिनदत्तगुरुं यजेऽहम् ।।
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१८
दादागुरु देव पूजा संग्रह
मन्त्र
ॐ ह्रीँ श्री अहं परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते जिनशासनोद्दीपकाय दादा श्रीजिनदत्त
सूरीश्वराय नैवेद्म यजामहे स्वाहा ॥
८-फल पूजा।
सरस सुकोमल सफल-पद, पूजो श्रीगुरु-राज। नित सुर-शिवसुख फल मिले, निजधर अविचल राज ॥
(तर्ज - केसरिया थांसु प्रीत०) वरदायी गुरु की सेवा करो रे भवी भाव से ( टेर) श्रीजिनदत्तसूरीश्वर दादा, मनवांछित फलदानी । परम प्रभावक अतिशयज्ञानी. और न जिनके सानीरे ॥
वरदायी गुरु की० ॥१॥ विचरंता बड़नगर पधारे, उत्सवमय जयकारी । श्रीजिनशासन संघ महोदय, घर - घर मंगलाचारी रे॥
वरदायी गुरु की० ॥२॥ अभिमानी ब्राह्मण ईर्षानल-जलते कुमत विचारी। मृत गैया जिनमन्दिर आगे, रख निन्दा विस्तारी रे ।।
वरदायी गुरु की० ॥३॥
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प्रथम दादागुरु देव पूजा
१६ संघ सकल व्याकुल कहे गुरुसे, रखिये लाज हमारी। तब गुरुने निज योग शक्ति मृत-गया में संचारी रे॥
वरदायी गुरु को० ॥४॥ श्रीगुरु - महिमा लख नत-मस्तक-ब्राह्मण आज्ञा धारें। संघ के सेवक अब तक भी वे-भोजक सेवा सारे रे ।
वरदायी गुरु की० ॥५॥ सुर-नर-वीर-पीर सब सेवक-ब्रह्म योग बल खींचे। श्रीसद्गुरु के चरण कमल में, निज भक्ति जल सींचे रे।।
वरदायी गुरु की० ॥६॥ सद्गुरु ध्यान करो दुःख नाशे आतम ज्योति प्रकाशे । निज अज्ञान दशा हटने से अनुभव लील विलासे रे ॥
वरदायी गुरु की० ॥ ७ ॥ सुखसागर - भगवान सुगुरुकी - पूजा भवि विरचावें । सुर 'गुणनायक हरि' गुण लायक कीरती प्रतिदिन गावेरे॥
वरदायी गुरु की० ॥ ८॥
श्लोकइष्टातिमिष्टरस पूर्णपदाय दिव्य
स्वर्गापवर्ग-सुखभोग-फलाय भक्त्या सर्वतजन्य सुरसैः सुफलै मनोज्ञ
दर्दादोपसंज्ञ-जिनदत्त गुरु यजेऽहम् ॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
मन्त्रॐ ह्रीं श्रीं अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते जिनशासनोद्दीपकाय दादा श्रीजिनदत्त
सूरीश्वराय फलं यजामहे स्वाहा
कलश सुविधि विषय परतन्त्रता-गंगा पुण्यप्रवाह । श्रीजिनदत्त महेशतें-प्रकटे तीनों राह ॥
(तर्ज-बोल वन्दे मातरम ) गुरुदेव श्रीजिनदत्त की नित प्रेम पूजा कीजियें । गुरुविमल गुण की सुधा का पान प्रतिदिन कीजिये ।।टेर। बारसौ ग्यारह विशद आषाढ़ सुद एकादशी । गुरुने किया अजमेर अनशन ध्यान हरदम कीजियें ।।
गुरुदेव श्रीजिन० ॥ १ ॥ पूज्य सीमन्धर प्रभु मुखतं, प्रथम सुरलोक में । उत्पत्ति अरु एकावतारी, जान पूजा कोजिये ॥
गुरुदेव श्रीजिन ॥२॥ दादागुरु के पट्ट उदयाचल विराजी चन्द्र से। मणिधारी श्रीजिनचन्द्र गुरु दील्ही में वन्दन कीजिये।
गुरुदेव श्रीजिन० ॥३॥
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प्रथम दादागुरुदेव पूजा
२१ क्रान्तिकर नत्याग्रही-गुरु पूजकर संसार में । कीर्तिका विस्तार पूरा-शीघ्र अपना कीजियें ॥
गुरुदेव श्रीजिन ॥ ४ ॥ उन्नीससौ नव्यासी संवत् वरवसंत सुपंचमी । चन्द्रवार सुपूर्ण रंग-वसंत का लख लीजियें ॥
गुरुदेव श्रीजिन० ॥५॥ हाथरस दादा प्रतिष्ठा योग में उपयोग से । पूज्य सद् गुरु पूज अपना-पूज्य आतम कीजिये ।।
गुरुदेव श्रोजिन० ॥६॥ गणनाथ सुखसिन्धु गुरु भगवान सागर पूज्यवर । दिव्य करुणा पुण्यतम अवतार दर्शन कीजिये ॥
गुरुदेव श्रीजिन० ॥७॥ गुरु देव पूजा को “गणि हरिसिन्धुने" हर्षे रचो । गाते-रचाते जय महोदय- पुण्य पैदा कीजिये।
गुरुदेव श्रीजिन ॥ ८॥
श्री प्रथम-दादा शासन प्रभावकश्री जिनदत्तसूरीश्वर सदगुरु की आरती. आरति हर गुरु आरति कीजे, आरात्रिक दुखदामी । श्रीजिन दत्त सूरीश्वर दादा, साता दें अविरामी ॥१॥
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२२
दादागुरु देव पूजा-संग्रह तीजे पद परमेष्ठी स्वामी, आचारज गण धामी। सीमन्धर जगदीश्वर वाणी, एक भवे शिवगामी ॥२॥ वीर जिनेश्वर शासन वासित, संघ सकल शिवरामी । युगवर अतिशय-महिमा धारी,जगजश-कीरति जामी ॥३॥ सेवा करते सुर-नर नायक, श्री गुरु पद शिर नामी। कलियुग में कल्पद्रुम जैसे, वाञ्छित दें अभिरामी ॥४॥ जैनेतर जन जैन बनाये, सवालक्ष सुखकामी। शुद्धिका मारग दिखला कर, दूर करी सब खामी ॥५॥ सुख सागर भगवान परमगुरु, पूजो पाप विरामी । नित सुर "गणनायक हरि" कहते, श्रीगुरुचरण नमामि ॥६॥
॥मंगल दीपक॥ मंगलमय गुरु मंगल दीपक, मंगलमाला कारी। मंगल हित भविजन नित कीजे, वरते मंगलाचारी ॥१॥ सदगरु मंगल दीपक ज्योति, हृदय तिमिर दे टारी। पाप-पतंग विनाशक आतम, पुण्य प्रकाशक भारी ॥ २॥ सुख सागर भगवान परम गुरु, सर्व अमंगल हारी। मंगल दीपक करते सुर "गणनायक हरि" जयकारी ॥३॥ इति पूज्यपाद प्रातः स्मरणीय आबाल ब्रह्मचारी जैनाचर्य ___ श्री मजिनहार सागर सूरीश्वर विरचिता
प्रथम दादा गुरुदेव पूजा
समाप्ता।
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ॐ अहं नमः द्वितीय दादा गुरुदेव मणिधारी श्रीजिनचन्द्र सूरीश्वर-पूजा
श्री गुरुपद स्थापना
(शार्दूल विक्रीडितम् )
ॐ अहं पदमात्मसाद्भवति वै येषां प्रभावात्सतां, ये पूज्या अतिशायि-पुण्यचरिता आचार-सार व्रताः। ते श्रीमजिनचन्द्र - सूरि-गुरवो दादा मणीधारिणः पीठेत्रावतरन्तु पूत-मनसा भक्त्या नतः प्रार्थये ॥
* आह्वान मन्त्र * ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह मणिधारी श्रीजिनचंद्रसूरि सुगुरो ! अत्रावतरावतर स्वाहा ।
* स्थापना मन्त्र * ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह मणिधारी श्रोजिनचंद्रमूरिसुगुरो ! अत्र तिष्ठ २ ठः ठः ठः स्वाहा ।
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
* सन्निधिकरण मन्त्र के ॐ ह्रीं श्री अहं मणिधारी श्रीजिनचंद्रसूरिसुगुरो ! मम सन्निहितो भव वषट् स्वाहा ।
मङ्गलाचरण
दूहाॐ अहं जिनचन्द्रवर, मणिधारी गुरुदेव ! करू भक्ति भर भाव से, चरण कमल की सेव ॥१॥ __मणियाले दादा गुरु, सदा जागती जोत । दिल्ही में दर्शन किये, जीवन पावन होत ॥ २ ॥
जिन शासन ज्योतिर्धरा, दादा श्रीजिनदत्त । पट्ट प्रभावक आपके, मणियाले गुरु सत्त ।। ३ ।।
जिन आज्ञा सुविहित विधि, खरतर पालनहार । उपकारी गुरु देव की, जाऊँ मैं बलिहार ॥ ४ ॥
दादा दूजे भाव से, पूजे जो नर नार । मन वांछित पावें सहज, पहूंचे भवोदधि पार ॥ ५ ॥ ___ कलानिधि गुरु देव की, कृपया अपरंपार । जीवन की बढ़ती कला, होवें दूर विकार ॥ ६ ॥
जिन विरहे जिन थापना, तिम गुरु विरहे मान। द्रव्य भाव अधिकार से, पूजा सुगति निदान ।। ७ ।।
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द्वितीय दादागा व प्रजा या
२५
१--जल पूजा
दूहाविमलगुणी गुरुदेव की, दिव्य विमल गुणदान । जल-पूजा मल को हरे, भरे विमल गुणभाव ।। (तर्ज-अवधू सो जोगी गुरु मेरा० राग-आशाउरी )
गुरु की जल पूजा मलहारी,
जाऊँ मैं बलिहारी ।गुरु० ॥टेर ।। जल पावनता रहती है. गुरु हैं पावन कारी । यातें जल पूजा नित करियं, निर्मल भाव विचारी । ____ गुरु की जल पूजा मलहारी ॥१॥ जल कहते जीवन को रस को, गुरु हैं जीवन दाता । ज्ञान सरस रस सींच सींच कर, प्रकटाते सुखसाता॥ ___गुरु की जल पूजा मलहारी ॥ २ ॥
श्री जिनचन्द्र सूरि मणियाले, दादा गुरु उपकारी। जिन शासन के परम प्रभावक जग में जय जय कारी॥
___ गुरु की जल पूजा मलहारी ॥३॥ स्वस्ति श्री मय विक्रमपुर गुरु. जन्म भूमि अभिरामा। साह रासल देल्हण दे नन्दन, निर्भय जय गुणधामा ।
गुरु की जल पूजा मलहारी ॥ ४॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
umverona
ग्यारह सो सत्ताण भादो, सुद आठम शुभ लगने । सद्गुरु जनम लियो सब सुखिये, पाप लगे पर भगने ॥
गुरु की जल पूजा मलहारो ।५।। शकल पक्ष की चन्द्र-कला ज्यों, रासलनन्दन स्वामी । बालक पन में वृद्धि पाये, पुण्य कला विशरामी॥
गुरु की जल पूजा मलहारी ॥६॥ गुरु जीवन गंगाजल धारा, सुखसागर में लीना । जल पूजा करते भवि गुरु की, होते सब सुख पीना ।।
गुरु की जल पूजा मलहारी ॥ ७॥ गुरु भगवान जगत हित कारी, मणियाले जिन चन्दा । अमृतधारा नित वरसाते, दें सुखपद निरद्वंदा ॥
गुरु को जल पूजा मलहारी ॥ ८ ॥ गुरु पद-सेवा अनहद मेवा, बोध शुद्धि अधिकारी ॥ जल पूजा "हरि" गुरु की करते, धन धन वे नर नारी ।। गुरु की जलपूजा मलहारी ॥६॥
श्लोकसज्जीवनाधार रस-प्रवाही.
श्रीज नचन्द्रो मणिधारि दादा॥ तत्पादपद्मद्वितयं जलेन,
प्रक्षालयामीह सुबोध शुद्ध यै ॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
मन्त्रॐ ह्रीँ श्रीँ अहं परम पुरुषाय परमगुरुदेवाय भगवते
श्रीजिनशासनोद्दीपकाय नरमणि मण्डित भालस्थलाय दादा श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराय
जलं यजामहे स्वाहा ।।
२–चन्दन पूजा।
दूहाकेसर रंग सुगंधगुण-कपूर उज्ज्वल योग ।
गुरु चन्दन भवतापहर-पूजे धन भविलोग ।। (तजे-भीनासर स्वामी अन्तरजामी तारो पारसनाथ राग-माड) सद्गुरु मणियाले जगउजियाले ताप मिटावनहार टेर। विक्रम पुरमें बालकपन में, सद्गुरु खेलें खेल । परिजन पुरजन के मन होती, सुख की रेलपेल रे ।।
सद्गुरु मणियाले० ॥ १ ॥ परम प्रभावकता की झाँकी, कर पाते भविलोक। रोग शोक सन्ताप भूलकर. होते भाव-अशोक रे।।
सद्गुरु मणियाले० ॥ २ ।
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द्वितीय दादागुरु देव पूजा एक दिनां जिनदत्तसूरीश्वर, 'चर्चरी' ग्रंथ महान् । धर्म प्रचार विचार से भेजें, पढ़ते भविगुवान् रे ॥
सद्गुरु मणियाले० ॥३॥ देवधरादिक बोध को पाकर, छोड़ कुगुरु कुसंग । सद्गुरु का चौमासा करावे, धर सत्संग उमंग रे॥
सद्गुरु मणियाले० ॥४।। दादा दत्त की सत्य कथा सुन, रासल नंदन बाल । गुरु सतसंगो संयम रंगी, पावें ज्ञान-विशाल रे॥
सद्गुरु मणियाले ॥५॥ देख सपूत सुलक्षण सद्गुरु. मात पिता प्रतिबोध । साथ विहारी दीक्षा शिक्षा, नित देते अविरोध रे ॥
सद्गुरु मणियाले ॥६॥ बारह सो पर तीन सुसंवत, धन्य घड़ी धन योग । फागुन सुद नवमी रासलसुत, लें संयम सुख-भोग रे ।।
सद्गुरु मणियाले० ॥ ७ ॥ पद वर्षन के संयम धारी, अविकारी अवतार । धन्य गुरु धन्य ऐसे चेले, लोक करें जयकार रे ॥
सद्गुरु मणियाले० ॥ ८ ॥ सुखसागर में लीन गुरु, भगवान की सेवा-धार । चंदन शीतल शांत-सुभावी, अनुपम गुण भण्डार रे ॥
सद्गुरु मणियाले० ॥६॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह 'हरि' सद्गुरु की चंदनपूजा, बोधसुधारसकूप । सविनय साधो सिद्धि प्रकटे, परमातम पद रूप रे ।। सद्गुरु मणियाले० ॥ १० ॥
श्लोकसन्ताप-संहरि-रसप्रवाही,
श्रीजैनचन्द्रो मणिधारिदादा । तत्पादपद्मद्वितयं यजेऽहं,
सच्चन्दनेनेह सुबोधवृद्ध यै ।।
ॐ ह्रीं श्रीं अहं परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते
श्रीजिनशासनोद्दीपकाय नरमणि मण्डित भालस्थलाय दादा श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराय
चन्दनं यजामहे स्वाहा ।।
-
३--पुष्प पूजा।
दहागुरु सूरज भविफलको, विकसित करें विशेष । सुमनस् भावे पूजियें, सद्गुरु चरण हमेश ।।
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द्वितीय दादागुरु देव पूजा (तर्ज-उठो ऊठो ए परमादी जीवड़ा भजलो प्रभुवरको)
राग-रसिया पूजो पूजो रे मणिधारी दादा-चंदसूरीश्वर को ॥ टेर ॥ रासल नन्दन सुविहित, खरतर-संयम में लीना । श्रीजिनदत्त परमगुरु सेवा, अमृत - रस - पीना ।।
पूजो पूजो रे मणिधारी दादा० ॥१॥ परम गुरु के पारतंत्र्य में, शिवसाधन करते । सर्व तन्त्र-स्वातंत्र्य भाव में, निर्भय संचरते ॥
पूजो पूजो रे मणिधारी दादा० ॥२॥ बारह सो पर पाँच शुकल छठ, वैशाखे मासे । विक्रमपुर श्रीवीर जिनालय, वर भावोल्लासे ।।
___ पूजो पूजो रे मणिधारी दादा० ॥३॥ दादादत्त स्वहस्त कमल पे, सूरिपद ठाना । आठ वरष के रासलनंदन, मुनि मुनिपरधाना ।
पूजो पूजो रे मणिधारी दादा० ॥४॥ है पूजा का थान गुणी गुण, न च लिंगं न वयो । जग बोले जिनचन्द्रसूरी गुरु, जय जय चिरं जयो ।
पूजो पूजो रे मणिधारी दादा० ॥५॥ धन रासल धन देल्हण माता, धन गुरुदत्त सदा। धन जिनचन्द्रसरि मणियाले, मन वांछित वरदा ॥
पूजो पूजो रे मणिधारी दादा० ॥६॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह सुणसागर भगवान गुरु जिनचंद महिमशाली । परमातम पद बोधि विधायक प्रवचन टकशाली।
पूजो पूजो रे मणिधारी दादा० ॥७॥ 'हरि गुरुचरण कमल में सुंदर सुमनस् भावों को अकपट अर्पित कर विकसादो पुण्य प्रभावों को॥ पूजो पूजो रे मणिधारी दादा० ॥८॥
श्लोक --- बोधकदीव्यत्सुरभिप्रवाही
श्रीजैनचन्द्रो मणिधारिदादा। तत्पादपद्मद्वितयं यजेऽहं,
मनोऽभिरामैः सुमनस्समूहैः ।।
ॐ ह्रीँ श्री अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते
श्रीजिनशासनोद्दीपकाय नरमणि मण्डित भालस्थलाय दादा श्रीजनचन्द्रसूरीश्वराय
पुष्पं यजामहे स्वाहा।
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द्वितीय दादागुरु देव पूजा ४-धूप पूजा।
दूहाधूप उरधगति कह रहा, सद्गुरु के सत्संग। हो समकित शुभ वासना, पूजा धूप प्रसंग ।।
(तर्ज-सभा में मेरा तुमही करोगे निसतारा) पूजा से पाते भवी भव सिन्धु-किनारा ।
सेवा से पाते भवी भव सिन्धु किनारा ॥ टेर ॥
आठ वरस के छोटे बालक, सद्गुरु आज्ञा के प्रति पालक,
आचारज पद के संचालक, होते हैं जय जय कारा । पूजा से पाते भवी० ॥१॥
दादा दत्त गुरु-पटधारी, श्री जिनचन्द्र सूरि मणिधारी,
जश कीरति जग में विस्तारी, गुरु कृपा का फल सारा। पूजा से पाते भवी० ॥ २ ॥
दत्त गुरु ने बात सुनाई, योगिनीपुर मत जाना भाई.
इसमें है बस रही भलाई, करो नित धर्म प्रचारा। पूजा से पाते भवी० ॥३॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह ३३ भावी सूचना विशद विधानी, योग-ज्ञान बल दिव्य निशानी,
सावधानता की थी वानी, गुरु का महा उपकारा । पूजा से पाते भवी० ॥ ४ ॥
बारह सो ग्यारह आषाढी, देव शयनि ग्यारह गुणगाढे,
प्रभुक्ति चितमें अति बाढी, गुरुदत्त स्वर्गे सिधारा। पूजा से पाते भवी० ॥ ५ ॥
सदगुरु का मरणा भी जीना, हम को देता बोध प्रवीना,
करो आत्म-करतव्य अदीना, गुरुदत्त बोध उचारा । पूजा से पाते भवी० ॥६॥
गुरु ज्योति तब गुरु में प्रकटी, उदासीनता झटपट विघटी,
संचालन की शासन - शकटी, गुरु बल तेज उदारा। पूजा से पाते भवी० ॥७॥
गच्छपति गुरु श्रीजिनचन्दा, तेज तिरस्कृत सूरज चन्दा,
संघ चतुर्विध में आनंदा, फला सुवास अपारा। पूजा से पाते भवी० ॥ ८॥
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द्वितीय दादागुरु देव पूजा
सद्गुरु सुखसागर भगवाना, मणिधारी जग जुगपरधाना,
नित पूजो हरि धूप विधाना, बोधि विशोधन हारा । पूजा से पाते भवी० ॥ ६ ॥
श्लोकसदोर्धदिव्यैकगति प्रवाही
श्रीजैनचन्द्रो मणिधारिदादा। तत्पादपद्म-द्वितयं यजेऽहं
सद्भावधूपप्रतिधूपनेन ॥
मंत्रॐ ह्रीं श्रीं अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते
श्रीजिनशासनोद्दीपकाय नरमणि मण्डित भालस्थलाय दादा श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराय
धूपं यजामहे स्वाहा।
५-दीपक पूजा।
दहाशासन दीपक सदगुरु, ज्योतिर्मय जयकार । दीपक पूजा कीजियें, हो ज्योतिः विस्तार ॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
( तर्ज - केसरिया थांसुं प्रीत लगी रे सच्चा भावसुं ) जीवन उजियालेपूजो मणियाले गुरुदेवको || टेर ||
ग्राम नगर पुर पावन करता, गणपतिगुरु जिनचन्दा | जिनशासन परकाशन करते, प्रतिबोधें भवि-वृन्दा रे || जीवन उजियाले ० || १ |
त्रिभुवनगिरि मरुकोट बादली, इन्द्रादिक पुर नामी । जिनालयों में कनक कलश ध्वज, करें प्रतिष्ठास्वामी रे ॥ जीवन उजियाले ||२||
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०
1
गुरु उपदेशामृत पी श्रावक - व्रत साधु- व्रत
1
भीमपल्ली उच्चा – बब्बेरक आदिपुरों में भारी । उत्सवमय दीक्षा लें गुरु से, नर-नारी अधिकारी रे || जीवन उजियाले ० ||३||
उनमें नरपति भावी पटधर जिनपति थे जयकारी । मत्त वादी - मदमर्दनकारी, नैयायिक अविकारी रे ॥ जीवन उजियाले ० ||४||
३५
क्षेमन्धर ।
चैत्यवासी पद्मप्रभसूरि पिता साह गुरु से सुविहित बोध प्राप्त कर, हुआ भक्ति में तत्पर रे ॥ जीवन उजियाले ० ||५||
भविजन, आत्म लीनता धारी । धारें, धन धन वे नर नारी रे || जीवन उजियाले ० ||६|
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द्वितीय दादागुरु देव पूजा सागरपाडा महावनादि, स्थानों में गुरु राया। विधिचैत्यों में प्रभु प्रतिष्ठा, उत्सव ठाठ मचाया रे ॥
जीवन उजियाले० ॥ ७ ॥ अजयमेर जिनदत्त परमगुरु, स्वर्गधाम-अभिरामी । स्तूप प्रतिष्ठा की सद्गुरुने, भव्य भक्ति दिल जामी रे ।।
___ जीवन उजियाले० ॥ ८॥ सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरण का, दिव्यालोक प्रसारा । सुखसागर भगवान परमगुरु, दीपक का उजियारा रे॥
जीवन उजियाले० ॥६॥ हरि पूजित जिन शासन भासन, सदगुरु दीप समाना। दीपक पूजा पुण्य प्रकाशे, कीजें विनय विधाना रे॥
जीवन उजियाले० ॥ १० ॥
___ श्लोकआत्मावबोधोदय-भाववाही,
श्रीजैनचन्द्रो मणिधारीदादा। तत्पादपद्म-द्वितयं यजेऽहं,
प्रोद्यत्प्रदीपप्रतिदीपनेन ॥
ॐ ह्रीँ श्रीँ अहं परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते
श्रीजिनशासनोद्दीपकाय नरमणि मण्डित
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
भालस्थलाय दादा श्रीजिनचन्द्रसूरश्वराय दीपकं यजामहे स्वाहा ||
६--अक्षत पूजा । दूहा -
सरल समुज्ज्वल भावमय, सद्गुरुपद सविशेष । अक्षत पूजा साधना, कीजें अकपट बेश ||
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३७
(तर्ज - दादा देव दयालु तुम को लाखों प्रणाम ) मणिधारी महाराज तुमको लाखों परणाम । करू विनय से पूजा करके लाखों परणाम ||टेर || संघ चतुर्विध समरथ नेता, परवादी मत सफल विजेता । नेता सफल विजेता गुरुको, लाखों परणाम मणि० || १॥ पुर नरपाल में ज्योतिष मानी, गुरु हरावें पूरे ज्ञानी । ज्योतिषविद्यावाले गुरुको लाखों परणाम मणि० || २ || रूद्रपल्ली में आप पधारे, लघुवय था, थी शक्ति आपारे । दिव्य शक्ति बलशाली गुरुको, लाखों परणाम मणि || ३ || पद्मचंद्र वह सिथिलाचारी, बड़ा घमंडी चर्चाकारी । उसे हराने वाले गुरुको, लाखों परणाम मणि० ||४|| तमो द्रव्य चर्चा विस्तारी, राज सभा के सब अधिकारी ।
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३८
द्वितीय दादागुरु देव पूजा गुरुकी जय जय बोलें,गुरुको लाखों परणाम मणि०॥५॥ स्वपर समय के सद्गुरुज्ञाता,विबुधन को गुरु बोध सुहाता। विशद युक्ति बलवाले, गुरुको लाखों परणाम मणि ॥६॥ सद्गुरु सुखसागर भगवाना, सरल समुज्ज्वल भाव विधाना मार्ग दिखाने वाले, गुरुको लाखों परणाम मणि० ॥७॥ 'हरि' अक्षतविधि पूजाधारे, सद्गुरु सेवक काज सुधारें। चन्द्रसूर गुणवाले, गुरुको लाखो परणाम मणि ॥८॥
श्लोकचिदक्षतानन्दरसप्रवाही,
श्रीजैनचन्द्रो मणिधारि दादा ॥ तत्पादपद्म द्वितयं यजेऽहं,
समुज्ज्वल सरलाक्षतौघः
मन्त्र-----
ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते जिनशासनोद्दीपकाय नरमणि मण्डित भालस्थलाय दादा श्रीजनचन्द्रसूरीश्वराय
अक्षतान् यजामहे स्वाहा ॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
३६
७-नैवेद्य पूजा।
दहा
मन-मोदक मधुरातमा, श्रीसद्गुरु महाराज ।
पूजो नित नैवेद्य से, पाओ शिवपुरराज ॥ (तज-तुम्हारे पूजन को भगवान् बना मन मंदिर आलीशान )
गुरु मणिधारी वांछितदान ।
करें नित पूजो चतुर सुजान ।। टेर । जिनकी महिमा अपरंपारी, जीवन घटना जय जयकारी । श्रवण कर पीलो अमृतपान, भरे बल औजस पुण्यप्रधान ॥
गुरु मणिधारी वांछितदान० ॥१॥ विचरते मणियाले मुनिनाथ, संघ सेवा में रहता साथ । पधारे गांव सु बोरसिदान,म्लेच्छ वहँ आये काल समान ॥
गुरु मणिधारी वांछितदान० ॥ २ ॥ डरो मत धीर बनो नरनार ! तुम्हारे सद्गुरु हैं रखवार। देकर यह आश्वासन दान, सुरेखा खींची किला-समान ।।
गुरु मणिधारी वांछितदान० ॥३॥ पापी म्लेच्छ हुए गुमराह, गुरु की यौगिक शक्ति अथाह । दिया गुरु ने बस जीवनदान,हुए नर नारी निर्भय प्रान॥
गुरु मणिधारी वांछितदान० ॥ ४ ॥
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Norwervrum
द्वितीय दादागुरु देव पूजा गुरु ने महतियाण जाती, बोधे गोत्र विविधभांती। हुए वे जैन धर्म अगिवान, अहा ! गुरु बोध शक्ति विज्ञान ।।
___ गुरु मणियाले वांछितदान० ॥ ५ ॥ पूर्व दिक् तीर्थों का इतिहास, बताता महतियाण परकाश। प्रतिज्ञा उनकी एक महान्, "जिनंजिनचन्द्र नमें न आन" ।
गुरु मणियाले वांछितदान० ॥ ६ ॥ गुरु ने सिरीमालबर वंश, कई गोत्रों में अनुपम अंश । देकर पावन समकितज्ञान, बढ़ाया जैन संघ सन्मान ।
गरु मणियाले वांछितदान० ॥७॥ जो नित जपता सदगुरु नाम, पाता सुख संपति धनधाम । सुरतरु सुरमणि परतिख मान, गुरुको, सेवो हे मतिमान् ! ॥
गुरु मणिधारी वांछितदान० ॥ ८॥ न होता भूत प्रेत भय भोग, मिटते आधि-व्याधि-वियोग। करें गुरु देव परम कल्यान,घरो नित मनमें गुरु का ध्यान ॥
गुरु मणिधारी वांछितदान० ।। ६ ॥ दादा मणिधारी जिनचंद, कार्ट कोटी संकट - कंद । गुरु हैं सुखसागर भगवान, हरिगुरु पूजो धर पकवान ॥ गुरु मणिधारी वांछितदान० ॥ १० ॥
श्लोकसन्मोदकोऽयं मधुरप्रवाही,
श्रीजैनचन्द्रो मणिधारिदादा।
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दादागुरु देव पूजा - संग्रह
तत्पादपद्मद्वितयं यजेऽहं, सन्मोदकाद्य मधुरात्मभावः ॥
मन्त्र
ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह परम पुरुषाय परमगुरुदेवाय भगवते श्रीजिनशासनोद्दीपकाय नरमणि मण्डित
भालस्थलाय दादा श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराय नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥
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४१
- फल पूजा ।
दूहा --
सद्गुरु सेवा मधुर फल, जो चाखें नर नार । जनम मरण को मेटकर, हो जाते भवपार || (तर्ज- शुं कहू कथनी म्हारी राज शुं कहू कथनी म्हारी ) चरण कमल बलिहारी नाथ ! जाऊं हे मणिधारी । पूजा फल अधिकारी नाथ ! पाऊ हे मणिधारी ॥ ढेर || धन्य धरातल धन्य घड़ी वह, विचरते जब स्वामी । दरशन धन धन वे नर पाते, जो होते शिवगामी || नाथ चरण कमल वलिहारी जाऊ हे मणिधारी नाथ ॥ १ ॥
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द्वितीय दादा गुरुदेव पूजा योगिनीपुर जो अब दील्ही है. उसके पास पधारे। गुरु विचरते भावी-खींचे भविजन काज सुधारें ॥
नाथ चरण कमल बलिहारी ॥२॥ सदगुरु महिमा को सुन पाये मदनपाल महाराजा। दर्शन कर हो हर्षित विनती, करते साथ समाजा॥
नाथ चरण कमल बलिहारी० ॥३॥ योगिनीपुर में नाथ पधारो, बोधसुधा को पिलाओ। मिथ्यामत 'विष से हम मरते, आप दयालु जिलाओ ॥
नाथ चरण कमल बलिहारी ॥४॥ परमगुरु जिनदत्तने रोका, जाना कैसे होवे ?। राजा का आग्रह, फल भारी, होनी हो सो होवे ।।
नाथ चरण कमल बलिहारी ॥५॥ आप पधारे योगिनीपुर जो, दील्ही आज कहाया । सद्गुरु पद-रज पावन भूमी, तीरथ रूप मनाया ।
नाथ चरण कमल बलिहारी० ॥६॥ चंद चकोर मोर मन मेहा, त्यों सद्गुरु से नेहा । मदनपाल नृप आदिक होते, श्रावक गुरुगुण गेहा ॥
नाथ चरण कमल बलिहारी० ॥७॥ था कुलचंद्र वहां अकिंचन. किन्तु भगत था भारी। सद्गुरु महिर नजर दौलत से, हुआ धनद अवतारी ।।
नाथ चरण कमल बलिहारी० ॥८॥
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दादा गुरुदेव पूजा संग्रह मिथ्या दृष्टि देव को, सद्गुरु, समकित दें उपकारी । जिनमंदिर थंभे में था, करे शासन रखवारी ॥
नाथ चरण कमल बलिहारी० ॥६॥ सुखसागर भगवान गुरु की सेवा शफल हमेशा । 'हरि' फल पूजा भविजन, कोजे धरते भाव विशेषा ।। नाथ चरण कमल बलिहारी० ॥१०॥
श्लोकस्फर्जच्छिवोत्तमफलैकरसप्रवाही
___ श्रीजैनचन्द्रो मणिधारिदादा। तत्पादपद्म द्वितीयं यजेऽहं,
प्रधान-पुण्यात्मफलप्रदानः ॥
मन्त्रॐ हीं श्रीं अहं परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते
श्रीजिनशासनोद्दोपकाय नरमणिमण्डित भालस्थलाय दादा श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराय
फलं यजामहे स्वाहा ।
६-वस्त्र पूजा।
दूहागुरु आज्ञा वर वस्त्र ही, लाज रखे संसार | सद्गुरु पूजो वस्त्र से विनय विवेक विचार ।।
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द्वितीय दादागुरु देव पूजा
( तर्ज-सुअप्पा आप विचारो रे० )
राग भैरवी उपकारी अवतार सुपूजो उपकारी अवतार । श्रीजिनचंद परमगुरु पूजो उपकारी अवतार सुपूजो ॥टेर।
दील्ही में चौमासा ठावें, हेतु पर उपकार । आत्म-ध्यान तन्मय गुरु रहते, अप्रमाद गुणधार सुपूजो०१ __ सद्गुरुसिद्ध मदननृपसाधक, जोड़ी पुण्यअपार। अनुपम अद्भुत हुआ जगतमें, श्रीजिनधर्मप्रचार सुपूजो०२।
श्रीजिनदत्त परमगुरु पावन, वचन भविष्य विचार। अन्तसमय सदगुरु निजजाने, अभयभाव अविकार सुपूजो०३
संघ चतुर्विध को प्रतिबोधे, रत्नत्रय भण्डार | खब बढाते जाना रखना, तीन तत्वआधार सुपूजो० ४।
पण्डित मरण उदास न होना, जीवन तत्व विचार । सुविहित विधि आचारी होना. करना प्रचार सुपूजो०५
नरपति गणपति योग्य समझना, है मेरा निर्धार | शासनकी रक्षा नित करना, करना निज उद्धार सुपूजो०६
ब्रह्मतेज पूरण मणि, मेरे मस्तक रही उदार । दूध कटोरे में ले लेना, होगा जय जयकार सुपूजो ० ७/
संवत बारह सो तेवीसा, भाद्रव दूजा धार । कृष्णपक्ष चौदसको सद्गुरु, पहुँचे स्वर्ग मझार सुपूजो०८।
सदगुरु-विरही संघ चतुर्विध, करता शोक अपार।
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दादागुरु देव पूजा संग्रह जीवन तत्त्व विचार अंतमें, धारें धीरज सार सुपूजो०६
सद्गुरु सुखसागर भगवाना, समकितगुणदातार । 'हरि पूजील' मणिधारी दादा पूजो परमाधार सुपूजो०१०
श्लोकसबोध वस्त्रात्मकभाववाही,
श्रीजैनचन्द्रो मणिधारिदादा । तत्पादपद्मद्वितयं यजेऽहं,
पवित्रवस्त्रप्रतिढौकनेन ।
मन्त्र
ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते
श्रीजिनशासनोद्दीपकाय नरमणिमण्डित भालस्थलाय दादा श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराय
वस्त्रं यजामहे स्वाहा ।।
१०–ध्वज पूजा।
दहाजीवन ध्वज ऊचा रहे, श्रीसद्गुरु परसाद । ध्वज पूजा भवि कीजियें, मिटे सभी अवसाद ।।
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द्वितीय दादागुरु देव पूजा ( तर्ज-झंडा ऊंचा रहे हमारा) जीवन ध्वज गुरु जय जयकारा ।
मणिधारी जिनचन्द्र हमारा ॥ टेर ॥ जिन शाशन अति उच्च भवन में, ऊर्ध्व अधो मध तीन भुवन में। श्रीजिनचन्द्र यशध्वज धारा,जीवन ध्वज गुरु जय जयकारा१ । पथ भूलों को पथ दिखलाता, मूढजनो को बोध दिलाता। है सद्गुरु ध्वज नितअविकारा,जीवन ध्वज गुरु जय जयकारार सब को बस उत्थान बताता,ज्ञान ज्योति को ही चमकाता। पतितोंका भी सुखद सहारा, जीवन ध्वज गुरुजयजयकारा ३। सद्गुरु ध्वज की बलि बलि जावे, महापुण्य से दर्शन पावें। सद्गुरु ध्वज है प्राणाधारा, जीवन ध्वज गुरु जय जयकारा ४। वर्द्धमान ने इसे प्रचारा, अभय बनाकर भय संहारा । सद्गुरु ध्वज यह महाउदारा,जीवन ध्वज गुरु जय जयकारा ५। निजवल्लभ की शक्ति इसमें, जिनदत्तातम ज्योति इसमें । सदगुरु ध्वज है गुण भण्डारा, जीवन ध्वज गुरुजयजयकारा ६। महतियाण वर वंश बनाया, सुविहित विधि पट बस फैलाया। सदगुरु ध्वज है मोहनगारा,जीवन ध्वज गुरु जय जयकारा ७। सुखसागर भगवान इसीमें, हरि पूजित ध्वज भाव इसीमें । ध्वज जिनचन्द्र विसतारा, जीवन ध्वज गुरु जयजयकारा ८ ।
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
श्लोकध्वजानुरूपो वर मार्गवाही,
श्रीजैनचन्द्रो मणिधारिदादा। तदालये भक्तिभरात्मनाह.
मारोपयामि धजमात्मशुद्ध यै ॥
ॐ हाँ श्री अहं परमपुरुषस्य परमगुरुदेवस्य भगंवतः श्रीजिनशासनोद्दीपकस्य नरमणिमण्डित भालस्थलस्य श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वरस्य मंदिर शिखरोपरि ध्वजमारोपयामि स्वाहा
कलश
दहा
गर्व तजो सद्गुरु भजो, गौरव बढ़े अपार । गुरु सतसंगी नित बनो, पाओ भवजल पार ॥
(तर्ज-मैं आया तेरे द्वार पर० ) श्रीमणिधारी महाराज, महिमा अपरंपारी है। जिनचंद जागती जोत, जगतमें जय जयकारी है ।टेर॥
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४८
द्वितीय दादागुरु देव पूजा श्रीजिनदत्त परमगुरु कृपया षट वर्षीवय में । सा रासल देल्हण देवी नन्दन संयमधारी हैं श्रीम० ॥१॥ ___चौदह वर्षी वयमें गुरुने गणपति पद धारा । करवादि विजय निज जश कीरति जगमें विस्तारी है श्रीम०२
श्रीमहतियाण महती जाती को जैन बना करके । श्रीसंघवृद्धि करनेवाले गुरुको बलिहारी है श्रीम० ॥३॥
दल्हीपति श्रीमदनपाल महाराजा को बोधा । जैन बनाया, धर्म भावना खुब प्रचारी है श्रीम० ॥४॥
प्रतिबोधे श्रीमालवंश के गोत्र कई गुरु ने। है उनका इतिहास जीवनी उनकी भारी है श्रीम० ||५||
हा ! छब्बीस बरस की वयमें स्वर्गवास पाये। दीलही तीरथ धाम धन्य अधुना उपकारी है श्रीम० ॥६॥
भादो कृष्ण चतुरदशी गुरुकी पुण्य जयंती को । खूब मनाओ मानो फिरतो विजय हमारी है श्रीम० ।। श्रीजिनपति सूरश्वर सद्गुरु के पटधारी थे । मत्तवादीगज सिंहकेसरी कीर्ति उदारी है श्रीम० ॥८॥
खरतरगणनायक सुखसागर श्रीभगवान्गुरु । मणिधारी दादा की पूजा मंगल कारी है श्रीम० ॥९॥ ___उन्नोस सो अट्ठाणु सुद, आषाडी दूज दिने। मोकल सर में पुण्य प्रयत्न यह अवतारी है श्रीम० ॥१०॥ __दिव्य सत्य इतिहास भावसे सद्गुरु दर्शन पा। 'जिनहरि सद्गुरु-पूजा गाओ आनन्दकारी हैं श्रीम०।११॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
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* श्री *
द्वितीय दादा नरमणिमण्डित भालस्थल-श्रीजिनचंद्रसूरीश्वर सद्गुरु को
___ * आरती * जय जय मणिधारी-जग जन उपकारी।।
___ॐ जय जय मणिधारी ॥ टेर ॥ शासन थंभ समाना सद्गुरु-आरति हितकारी। दिल्ही में दरशन कर परसन-होवे नर नारी ।
ॐ जय जय मणिधारी ॥ १ ॥ मदनपाल नरपति प्रतिबोधक-संघवृद्धिकारी । महतियाण महतीजाती में समकित परचारी।
ॐ जय जय मणिधारी ॥२॥ जिनहरिपूज्य परमगुरु शरणा-भव भव सुखकारी पाउ पूजं पुण्ययोग से - जय मंगल कारी।
ॐ जय जय मणिधारी ॥३॥
इति पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय आबाल ब्रह्मचारी जैनाचार्य
श्रीमज्जिनहरिसागर सूरीश्वर विरचिता श्रीद्वितीय दादा गुरुदेव पूजा
समाप्ता.
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ॐ अहं नमः श्रोतृतीय दादा गुरुदेवश्रीजिनकुशल सूरीश्वर-पूजा
ॐ श्री गुरुपद स्थापना
(द्रुतविलम्बित वृत्तम् )
अवतरावतरात्र दयानिधे!
कुशलसूरिगुरो ! सुख सागर ! ।। जिनमते भगवन् ! हरि-पूज्य हे !
करुणया परमं कुशलं कुरु ॥
( आह्वान मन्त्र) ॐ हाँ श्रीँ अर्ह श्रीजिन कुशल सूरि गुरो ! अत्रावतरावतर स्वाहा।
(स्थापना मन्त्र) ॐ ह्रीँ श्रीँ अहं श्रीजिन कुशल सरि गुरो ? अत्र तिष्ठ २ ठः ठः ठः स्वाहा।
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
( सन्निधिकरण मन्त्र) ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह श्रीजिन कुशल सूरि गुरो ? मम संनिहितो भव वषट् स्वाहा ।
१-जल पूजा।
दूहा-- ॐ अहं गुरुदेव पद, रविशशि ज्योतिविशेष हृदय तिमिर हर बोध दें, चंदन करूं हमेश ॥१॥
सकल कुशल मंगल करण, परम कुशल गुरुदेव । सेवा से मेवा मिले, साधू सदगुरु सेव ॥२॥
सुविहित खरतरवर विधि, विस्तारक सुखकार। जिन शासन भासन गुरु, पूजन परमाधार ॥३॥
दादा श्रीजिन कुशल गुरु, श्रीपद पुण्य प्रभाव । कुशल भाव पूजन कियां, विघटे अकुशल भाव ॥ ४॥
गुरु सेवा से शिष्य भी, होवे गुरुपद योग । पारस फरसन लोह भी, होत कनक गुण भोग ॥ ५ ॥
परमेष्ठी तीजे पदे, आचारज सिरताज । पूज नित भव सिन्धु से, तारक दिव्य जहाज ॥ ६ ॥
निर्मल जल चन्दन प्रमुख, द्रव्य भाव दो भेद । पूजो भविजन भाव से, दूर टरे सब खेद ॥७॥
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५२ mmmmmmmmmmmmmmmmmam
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तृतीय दादागुरु देव पूजा श्री गुरुपद पूजा करो, विशद भाव जलधार। पाप ताप मल दूर हो, आतम शान्ति अपार ॥ ८ ॥
(तजै-तुमको लाखों प्रणाम्) हो परम प्रभावक कुशल गुरु को लाखों प्रणाम । पाप ताप मलहारि गुरु को लाखों प्रणाम । टेर ॥
जिन शासत में जीवन दाता,
खरतर सुविहित विधि विधाता, कुशल कुशल गुण वाले गुरु को लाखों प्रणाम ॥१॥
वीर जिनेश्वर पाट पचासे,
परमेष्ठी पद पुण्य विलासे, युग प्रधान पद वाले गुरु को लाखों प्रणाम ॥२॥
भारत मरुधर मंडल पावन,
जन्म भूमि समियाणा धन धन, तीर्थ बनाने वाले गुरु को लाखों प्रणाम ॥३॥
ओसवाल वर वंश विभूषण,
पुनित छाजेड गोत्र अदूषण, कुल उजवालन वाले गुरु को लाखों प्रणाम ॥४॥
मंत्री जेल्हागर गुरु ताता.
सती जयतसिरी सद्गुरु माता, मन को हरने वाले गुरु को लाखों प्रणाम ॥ ५ ॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह विक्रम तेरह–संतीसा में
लगन घड़ी शुभ पुण्य दिशा में, जन्म सुपाने वाले गुरु को लाखों प्रणाम ॥६॥
बालक पन में पुण्य प्रभावे,
व्यवहारिक गुण ज्ञान उपावे, कुशल नाम अभिरामी गुरु को लाखों प्रणाम ॥ ७ ॥
पुण्यवान् गुणवान् सुनिर्भय,
सुख सागर भगवान महोदय, मार्ग बताने वाले गुरु को लाखों प्रणाम ।। ८ ।।
विशद भाव जल जीवन धारा,
'जिन हरि' पूजो नित अविकार, पूज्य कुशल पदवाले गुरु को लाखों प्रणाम ॥ ६ ॥
(काव्यम्) यः पाप---संताप-मलापहारी,
दादा-भिधानः कुशलाख्य-मूरिः। तत्पाद-पद्म-द्वितीयं नमामि,
जलेन भक्त्या स्नपयामि नित्यम् ।।
मंत्रॐ ह्रीं श्रीं अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते जिन शासनोद्दीपकाय श्रीजिनकुशल
सूरीश्वराय जलं यजामहे स्वाहा ।
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तृतीय दादागुरु देव पूजा
२–चन्दनपूजा
भव-भय-रोग हरें गुरु, चन्दन पूजा योग ।
आतम-शान्ति अनन्तगुण, प्रगटे शिवसुख भोग॥ ( तर्ज-भिनासर स्वामो अंतरजामी तारो पारसनाथ )
राग माढ भव रोग निवारे बोध प्रचार श्रीगुरु गुण भण्डार । हाँ...''श्री गुरु गुण भण्डार भव रोगनिवारें ॥टेर ॥ तेरह से सेतालीस फागुन, सुदिसातम सुखकार । कुशलकीरति दश वर्ष के बालक, पण्डित बर अनगाररे
भवरोग निवारें ॥१॥ कलिकाल केवली नप प्रतिबोधक, गुरुजिनचन्द्र सूरीन्द । पावन बोधि विशोधित आतम, सेवितपद अरविन्दरे ॥
__ भवरोग निवारः ॥ २॥ गुरुगम आगम तत्व विवेकी, निजपरमत के जाण । षड् दर्शन निज दर्शन कारक, तारक मुनि गुणखाण रे ।।
भवरोग निवार० ॥ ३ ॥ तपजत संयमी ज्ञानी ध्यानी, प्रकटित पुण्य प्रताप । श्रीजिन शासन रक्षकशिक्षक, दूर हरें दुःख ताप रे ॥
भवरोग निवारें ॥४॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह परम अहिंसक धर्म प्रचारक, सत्य विचारकसार । अस्तेय वृत्ति ब्रह्मव्रतीवर, अकिंचन अविकाररे॥
भवरोग निवारे० ॥५॥ सुविहित सद्गुरु पारतंत्र्य में, प्रतिदिन वर्तनहार । धीर-वीर-गंभीर सुजीवन, जग जन तारणहाररे ।।
भवरोग निवारें० ॥६॥ जन्मभूमि गुरुदीक्षा भूमि समियाणा सुखधाम । सुखसागर भगवानमहोदय, गुरु पूजो अविरामरे ।।
भवरोग निवारें ॥७॥ कुशल मंगलकारी कुशलगुरु हैं, बावना चन्दनरूप । वन्दन पूजन करते भविजन, हो। 'हरि' गुण भूपरे ॥
भवरोग निवारे ॥ ८॥
(काव्यम् ) भवरोगहारी परमोपकारी
दादाभिधानः कुशलाख्यसरिः । तत्पादपद्र-द्वितयं-नमामि
सच्चन्दनेनेह सदायजेऽहम् ॥
मंत्रॐ ह्रीँ श्री अहं परम पुरुषाय परमगुरु देवाय भगवते
श्रीजिनशासनोद्दीपकाय श्रीजिनकुशल सूरीश्वराय चन्दनं यजामहे स्वाहा ।।
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तृतीय दादागुरु देव पूजा
३ पुष्पपूजा।
गुरु वसन्त ऋतु रूप हैं, भविजन जीवन फूल । गुरुपद पूजो फूल से, शूल होय सब फूल ॥
( तजे-आई वसंत बहाररे प्रभु पूजो मगन में ) कुशलकरण गुरुराजरे, नमो भविजन भावे ।
भविजन भावे शुभगुण आवे, नमोकुशल गुरु राज़रे नमो भविजन भावे० ॥ टेर ॥ श्री जिनचन्द्र सूरीश्वर सदगुरु,
पदसंगी जयकाररे नमो भविजन भावे ।। कुशल कीरति मुनिनायक लायक,
होवे गुण आगाररे नमो भविजन भावे० ॥१॥ तेरह से पिचहत्तर माघे,
सुद बारस शुभयोगरे नमो भविजन भावे ॥ जसु कीरतिरति अनुपम सौरभ,
फैली भुबनाभोगरे नमो भविजन भावे० ॥२॥ डालामउ कन्यानयरे,
आशिकानर भट्टरे नमो भविजन भावे ।। वागड जाबालिपुर निवासी,
संघ भक्ति गह गहरे नमो भविजन भावे ॥३॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह नगर नगीना संघ प्रमुख श्री,
विजयसिंह सुभक्तरे नमो भविजन भावे । सेद-रूडा अरु दिल्ही के,
अचलसिंह संजुत्तरे नमो भविजन भावे ॥४॥ पंच शबद के बाजे बाजे,
गाजे गगन घन गाजरे नमो भविजन भावे । मंगल गीत मधुर धुनि मंजुल,
गावे भक्त समाजरे नमो भविजन भावे० ॥ ५ ॥ नंदी दिव्यमहोत्सव पूर्वक,
श्रीनागोर मझाररे नमो भविजन भावे । वाचना चारज पद श्री गुरु दें,
कुशल कीरति को साररे नमो भविजन भावे ॥६॥ गुरु वसन्त जन जीवन पावन,
फूल प्रफुल्लित होतरे, नमो भविजन भावे । जग में जिससे अतिमनोहर,
प्रसरे परिमल पूररे नमो भविजन भावरे ॥ ७ ॥ वाचना चारज कुशल कुशल गुरु,
सुखसागर भगवानरे नमो भविजन भावे । "हरि' गुरु पूजो हृदय कमल में, पावो कुशल निधानरे-नमो भविजन भावे०। ८॥
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५८
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तृतीय दादागुरु देव पूजा
( काव्यम् )
भव्य - प्रसून प्रतिबोधकारी, दादाभिधानः कुशलाख्य सूरिः ।
तत्पाद - पद्म - द्वितयं नमामि
प्रसून - पूजैः परिपूजयामि ॥
मन्त्र
ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते श्रीजिनशासनोद्दीपकाय श्री जिनकुशल सूरीश्वराय पुष्पं यजामहे स्वाहा ।
४ धूप पूजा ।
दूहा -
1
हैं गुरु धर्म दशांगयुत उरध सिद्ध गति भाव । पूजो धूप दशांग से, गुरुपद गुरुपद दाव ||
तर्ज - ( हो उमराव थारी बोली प्यारी लागे )
हो गुरुराज पद शुभ भावधरी नित पूजो नर नार । हो गुरुराज पूजा करते भविजन होवें भव पार || भवपार हो जी नर नार || ढेर ||
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दादागुरु देव पूजा संग्रह कुशल कीरति मुनिराजकी, कुशल कीर्ति विस्तार । जब छाई जग में यहां, जन बोले जयकार ।। हो गुरुराज श्रीजि शासन भासन कारी सुखकार ॥
हो गुरुराज० ॥१॥ नरपति बोधक सदगुरु, गणपति श्रीजिनचन्द्र । आयु शेष निज जानते. आतम-ध्यान-अमंद ।। हो गुरुराज निजपद योग्य कुशल को देख अविकार
हो गुरुराज० ॥ २ ॥ श्री राजेन्द्राचार्य को, दें गुरु आज्ञा लेख । कशल कशल पद योग्य है, यामें मीन न मेख ॥ हो गुरुराज जग उपकारी जानी महिमा हितकार॥
हो गुरुराज० ॥३॥ आराधक गुरुदेव के, श्रमणोपासक वीर । विजयसिंह को दें गुरु, लेखाज्ञा तदबीर ।। हो गुरुराज पुण्य प्रकाश विराजित देवें बोधसार ।।
हो गुरुराज० ॥ ४ ॥ संघ चतुर्विध साथ में, करते धर्मप्रचार । कोसाणा में श्रीगुरु, पहुँचे स्वर्ग मझार ॥ हो गुरुराज श्रीजिनचन्द्र विरह में छाया अन्धकार॥
हो गुरुराज० ॥ ५ ॥
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तृतीय दादागुरु देव पूजा तेरहसो सतहत्तरे, ग्यारस मिति वदि जेठ कुम्भ लगन निश्चित करें. संघ सर्व जग जेठ॥ हो गुरुराज पाटण पुण्य महोत्सव जाऊँ बलिहार
॥ हो गुरुराज ॥६॥ तेजपाल दानी गुणी, रूडपाल सहलोग । आमंत्रं श्री संघ को, पूर्व पुण्य-धनयोग ।। हो गुरुराज शोभा पाटणकी क्या वरणं थी अपार
॥हो गुरुराज० ॥ ७॥ श्री राजेन्द्राचार्य तब, लेखाज्ञा अनुसार । कुशलकोति मुनिराज का, करें नाम संस्कार ।। हो गुरुराज श्रीजिन कुशल सूरीश्वरकी होजयकार
॥हो गुरुराज० ॥ ८ ॥ श्रीजिन कुशल सूरीश्वर, दादा युग परधान । अतिशयधारी पूज्यवर, सुख सागर भगवान ।। हो गुरुराज पद 'हरि' पूजो भावे होवो भवपार
॥हो गुरुराज० ॥६॥
(काव्यम् ) धर्म-प्रचारी वर-बोधकारी
दादाभिधानः कुशलाख्यसरिः। तत्पाद - पद्म--द्वितयं नमामि
दशांग-धूपं सुपरिक्षिपामि ।।
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दादागुरु देव पूजा साह
मन्त्र
ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते श्रीजिनशासनोद्दीपकाय श्रीजिन सूरीश्वराय धूपं यजामहे स्वाहा ।।
५-दीपक पूजा।
ने
।
मन सुपात्र गुण वृत्तिकर, सद्गुरु धरम सनेह । ज्ञान उजेला नित करे, दीपक पूजा एह ॥
(तर्ज-जिन मत का डंका आलम में ) अज्ञान तिमिर अति दूर किया,
गुरु दीपक कुशल सूरीश्वर ने । वर ज्ञान प्रकाश प्रचार किया,
गुरु दीपक कशल सूरीश्वर ने । जिनचन्द्र परम गुरु विरह हुआ,
अंधेरा सब जग छाया था। ज्योतिर्मय पद परकाश किया,
गुरु दीपक कुशल सूरीश्वर ने ।
अज्ञान तिमिर० ॥१॥ अति दिच्य सुपंचाचार विधि,
स्वाधीन समाराधन करके ।
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६२ तृतीय दादागुरु देव पूजा निज हितकर उपदेश दिया,
गुरु दीपक कुशल सूरीश्वर ने।
अज्ञान तिमिर० ॥ २॥ पंचेन्द्रिय विषम विषय त्यागी.
नव विधवर ब्रह्म गुपतिधारी । कर पंचसमिति दी शुभ शिक्षा,
गुरु दीपक कुशल सूरीश्वर ने ॥
अज्ञान तिमिर० ॥३॥ अध्यातम सम्यक् भाव भरें,
सविवेक महावत पंच धरे । अपना परका कल्याण किया,
गरु दीपक कशल सूरीश्वर ने ॥
अज्ञान तिमिर० ॥४॥ हैं दुश्मन चार कषाय उन्हें,
झट तीनों गुप्ति में कैद किये। संयम पथ सुन्दर शुद्ध किया,
गुरु दीपक कुशल सूरीश्वर ने।
अज्ञान तिमिर० ॥ ५॥ युग धर्म विकाश विशेष किया,
जग में जीवन संचार किया। कर दी प्रभावना शासन की,
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
गुरु दीपक कुशल सूरीश्वर ने ॥
अज्ञान तिमिर० ॥६॥ छत्तीस महागुण धारक हो,
दुर्गुण सब दूर भगा करके। शुभ काम नाम अनुसार किये,
गुरु दीपक कुशल सूरीश्वर ने ॥
अज्ञान तिमिर० ॥ ७॥ गुरु दीपक पूजा करते हैं,
भव वन में वे न भटकते हैं। 'हरि' मार्ग बताया उन्नति का,
गुरु दीपक कुशल सूरीश्वर ने ॥ अज्ञान तिमिर ॥ ८॥
( काव्यम्) यो दीपकोऽज्ञानतमोऽपहारी,
दादाभिधानः कुशलाख्य-सूरिः तत्पाद-पद्म-द्वितयं नमामि,
सद्दीप-पूजां विदधे सुभक्त्या । ॐ ह्रीँ श्रीँ अहं परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते जिन शासनोद्दीपकाय श्री जिन कुशल सूरीश्वराय दीपं यजामहे स्वाहा ।
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तृतीय दादा गुरुदेव पूजा
६--अक्षत पूजा।
दूहाअक्षत पद गुरुदेव का, अक्षत पद दातार । अक्षत पूजा कीजिये, अक्षत गुण भंडार ॥
(राग गजल) कुशल गुरुराज पद पूजा, कुशल पद दान देती है। कुशल गुरुराज की महिमा, अजब आनन्द देती है ।।
___कुशल गुरु० ॥ टेर ॥ मरु गुर्जर व सौराष्ट्र, सवालख सिन्धु पंजाबे । सुगुरु पद पावनी भूमी, अजब आनन्द देती है ॥
कुशल गुरु० ॥ १ ॥ सदा देशे पुरे ग्रामे, सुगुरु ने निज विहारों से। प्रवृत्ति धर्म की की वो, अजव आनन्द देती है।
कुशल गुरु० ॥२॥ सदा से जो विधर्मी थे, गुरु से धर्म पाकर वे । हुए धर्मी कथा उनकी, अजब आनन्द देती है।
कुशल गुरु० ॥ ३॥ गुरु उपदेश से निकले, हजारों संघ तीर्थों के। प्रतिष्ठाएँ हुई भारी, अजब आनन्द देती है।
कुशल गुरु० ॥ ४॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
६५
गुरु उपदेश पाकर के, हुए साधु कई साध्वी । उन्हीं की जो गिनी संख्या, अजब आनंद देती है ।
कुशल गुरु० ||५||
हजारों स्त्री पुरुष जिनसे हुए बारह व्रती सच्चे । गुरु उपदेश की शैली, अजय आनंद देती है ।
हजारों मूर्तियों की भी प्रभु की मूर्तियाँ भी वे
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कुशल गुरु० ||६||
प्रतिष्ठा की गुरुवर ने । अजब आनंद देती है ||
कुशल गुरु० ||७||
गुरु के भक्त थे गुरुवर अतः मूर्तियोंकी की । प्रतिष्ठा आज भी उनकी, अजब आनन्द देती है |
।
कुशल गुरु० ||८||
गुरु थे आप सुख सागर, गुरु भगवान उपकारी । "हरि" गुरुदेव की पूजा, अजब आनन्द देती है | कुशल गुरु ० ||६||
( काव्यम् )
सदाक्षताचार-विचारकारी,
दादा - भिधानः कुशलाख्य – सूरिः ।
----
तत्पाद - पद्मद्वितयं नमामि, तथाक्षतैः साधु नतो यजेऽहम् ॥
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तृतीय दादागुरु देव पूजा
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मन्त्रॐ हाँ श्री अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते श्रीजिन शासनोद्दीपकाय श्री जिन कुशल सूरीश्चराय अक्षतं यजामहे स्वाहा ।
७-नैवेद्य पूजा
दहासरस मधुर उपदेश सुन श्री गुरुका सु विशेष ।
सरस मधुर नैवेद से पूजो गुरु हमेश ॥ ( तर्ज- महावीर तुम्हारी मोहनमूर्ति देखी मन ललचाय ) जिन कुशल सूरीश्वर ज्ञानी गुरु की जाउ मैं बलिहार । पूजू नित सविनय भावे गुरुकी जाउं बलिहार ॥ टेक ।। गुरु ज्ञानी जग उपकारी, आगम उपदेश विहारी। आगम उपदेश विचारी, गुरु की जाउ मैं बलिहार ॥
जिन कुशल ॥१॥ सत-भंगीनय परणामी, वरस्याद वाद गुणखाणी । अमृत सम सुखकरवाणी, गुरु की जाउ मैं बलिहार ॥
जिन कुशल || २॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
६७
नवतत्व बोध विस्तारी, समझावें गुरु उपकारी । हेयादिक भाव विचारी, गुरु की जाउ मैं बलिहार || जिन कुशल || ३ || षड् द्रव्य यथारथ तत्त्वे, जड़ चेतन पावन सत्त्वे । सुविवेक रहा सम्यक्त्वे, गुरुकी जाउ मैं बलिहार | जिन कुशल ॥ ४ ॥ मिथ्यात्वतिमिर भर नासे, आतमगुणपुण्य प्रकाशे । श्रीसद् गुरुबोध विलासे, गुरुकी जाउ मैं बलिहार | जिन कुशल || ५ || गुरु रवि शशि दीपक जैसे, गुरु सुरमणिसुरतरुजैसे | गुरुसागर सुरगिरि जैसे, गुरुकी जाउ मैं बलिहार || जिन कुशल || ६ || गुरु आसातनको टाली, गुरु आज्ञा जिसने पाली । उसने गुरु पदवी पाली, गुरुकी जाउ' मैं बलिहार | जिन कुशल ॥ ७ ॥ गुरु सुखसागर भगवाना, गुरु जगमें युग परधाना । 'हरि' सेवो शुद्ध विधाना गुरुकी जाउं मैं बलिहार ॥ जिन कुशल ॥ ८ ॥
( काव्यम् )
सुधासमान प्रतिबोधकारी दादाभिधानः कुशलाख्यसूरिः ||
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तृतीय दादागुरु देव पूजा तत्पाद पद्मद्वितयं नमामि ढौकेऽथ नैवेद्यमहं सुभक्त्या ।।
मंत्रॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते श्रीजिनशासनोद्दीपकाय श्रीजिनकुशल
सूरीश्वराय नैवेद्य यजामहे स्वाहा !
८--फल पूजा।
दूहा
परम पुण्य कल्याण फल, दायी श्री गुरुदेव ।
फल पूजा मैं नित करु, सफल सत्य गुरुसेव ॥ ( तर्ज-भवभय हरणा शिव सुख करणा सदाभजो ब्रह्मचारा मैं वारि जाउ) फल पूजा सद गुरुकी करते, प्रगटे अति सुख साता। मैं वारी जाउ प्रगटे अति सुख साता ।। टेर ।। श्रीजिनकुशलसूरीश्वरदादा, मनवांछित फलदाता । मैं वारी जाउ मनवांछित फल दाता ॥ १ ॥ चन्द्र चकोर मोर मन बादल, गुरु भविजन मन भाता । मैं वारि जाउं गुरु भविजन मन भाता ॥२॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह दर्शन वन्दन करते तन मन-पाप मिट जाता। मैं वारि जाउं पाप ताप मिट जाता ॥ ३ ।। बिन गुरु नर निगुरा कहलावे-भव भटकत दुःख पाता । मैं वारि जाउ भव भवकत दुःख पाता ॥ ४ ॥ गुरु आज्ञावर्ती हो प्राणी, अगम निगम गुणज्ञाता। मैं वारि जाउं अगम निगम गुण ज्ञाता ॥ ५ ॥
चैत्यवन्दनवर कुलकसुटीका, गुरु साहित्य प्रख्याता। मैं वारि जाउं गुरु साहित्य प्रख्याता ॥ ६ ॥ गुरुसाहित्यउदितआदित्यकी, ज्योतिजगसुखदाता। मैं वारि जाउं ज्योति जग सुख दाता ॥७॥ गुरु पारस फरसत नर लोहा, वर सुवरन बनजाता। मैं वारि जाउं वर सुवरन बन जाता ॥ ८ ॥ सुखसागर भगवान सुगुरु हरि, पूजो भवभयत्राता। में वारि जाउं पूजो भव भय त्राता ॥ ६ ॥
(काव्यम् ) कल्याण-कल्पद्रु फल प्रदायी
दादाभिधानः कुशलाख्यसूरिः ॥ तत्पाद-पद्मद्वितयं नमामि
फलेन पूजांसु समाचरामि ।।
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तृतीय दादागुरु देव पूजा
मन्त्र
ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह परम पुरुषाय परमगुरु देवाय भगवते
जिनशासनोद्दीपकाय श्रीजिनकुशल सूरीश्वराय फलं यजामहे स्वाहा ।।
५-वस्त्र पूजा।
दूहासद्गुण उज्वल पुण्यतम, सद्गुरुवस्त्र विशेष । पाप ताप जड़ता हरे, पूजो विधि युत वेश ।।
(तर्ज-छोटे से बलमा मोरे आंगने में ) श्री जिन कुशल सूरीन्द, दादा जय जयकारी श्रीजिन शासन सार, दादा विधि विस्तारी ॥ टेर ॥
शुद्धदेव-गुरु-धर्म, दादा रूप बतावे । समकित गुण आधार, दादा जाउं बलिहारी ।
श्री जिन कुशल० ॥ १ ॥ दोष रहित वीतराग, दादा देव हमारे। और संसारी देव, दें भव भय विस्तारी ॥
श्री जिन कुशल ॥२॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
पंच महाव्रत धार, दादा सुविहित साधु । सद गुरु है वे सार आत्म के हित कारी || श्री जिन कुशल ० ॥ ३ ॥
धर्म अहिंसा मूल, दादा जिन आज्ञा में । धारक जो नर नार, होबे वे भवपारी ॥
श्री जिन कुशल ० ॥ ४ ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्म, दादा त्याग करावे | समकित वर दे दान, अनहद आनन्द कारी ॥
७१
श्री जिन कुशल० ॥ ५ ॥
निश्चय अरु व्यवहार, दादा भेद बतावे । निश्चय धरो दिन बीच, वर्तो थे व्यवहारी ॥ श्री जिन कुशल० || ६ ||
सुख सागर भगवान दादा कुशल गुरु की । महिमा अपरम्पार, गावे सब नर नारी ॥
श्री जिन कुशल ० || ७ ||
॥
गुरु आज्ञा परिधान, भविजन जो कर पावे । सुर गणपति हरितास, गावे कीरति भारी || श्री जिन कुशल० ॥ ८ ॥
( काव्यम् )
यः सद्गुणालंकृत पुण्य भावः दादाभिधानः कुशलाख्यसूरिः ।
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तृतीय दादा गुरुदेव पूजा तत्पाद पद्म द्वितयं नमामि वस्त्रेण पूजां विदधे सुभक्त्या ।।
मंत्रॐ ह्रीँ श्री अहं परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते जिनशासनोद्दीपकाय श्रीजिनकुशल
सूरीश्वराय वस्त्रं यजामहे स्वाहा ।।
१०-ध्वज पूजा।
दूहा----
जिनशासन पावन-भवन सद्गुरु ध्यान अनूप । ध्वज पूजाकर भविक जन-हो- त्रिभुवन भूप ॥ ( तर्ज-त्रीस वरष घरमा वस्था मन मोहनजी ) गुण गिरुआ गुरु पूजिये-मन मोहनजी । निज भरिये पुण्य भंडार-भव भय हरियेरे ॥
मन मोहनजी ॥ टेर ॥ कुशल सूरि गुरु राजरे-मन मोहनजी । करदेश विदेश विहार-धर्म प्रचारीरे मन मोहनजी ।
गण गिरुआ० ॥१॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह संघ चतुर्विध साथमें-मन मोहनजी । जीते वादी वृन्द-आनन्द कारीरे मनमोहनजी
गुणगिरुआ० ॥२॥ ग्यासुद्दीन आदिकहुए मनमोहनजी। बादशाह महा भाग-गुरु गुण रागीरे मनमोनजी
गुणगिरुआ० ॥३॥ म्लेच्छ उपद्रव जोकरे मनमोहनजी । दे प्रति रोधक फरमान-गुरु पर तापीरे मनमोहनजी
गुणगिरुआ० ॥ ४ ॥ जैनेतर शुद्धिकरें मनमोहनजी।। संख्या पच्चास हजार गुरु प्रभावीरे मनमोहनजी
गुणगिरुआ० ॥ ५ ॥ दशवर्षों तक गुरु रहें मनमोहनजी। श्री जेसलघर शृंगार-बोध अपारीरे मनमोहनजी
गुणगिरुआ ॥ ६ ॥ तीस वरष साध रहे मनमोहनजी । गुरु आज्ञा पालनहार-हो अनगारीरे मनमोहनजी
गुणगिरुआ० ॥ ७॥ बार वरस युगवर रहे मनमोहनजी । खरतर गण नायकखास-पुण्य प्रकाशीरे मनमोहनजी
गुणगिरुआ० ॥ ८॥
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तृतीय दादागुरु देव पूजा तेरह सो नव्यासिये-मनमोहनजो । फागुण अमावसजाण-गुरु-गुणखाणीरे मनमोहनजी
गुणगिरुआ० ॥३॥ सिन्धु मुख्य देराउरे-मनमोहनजी । गुरुस्वर्ग सिधारे हत दुःख अपारीरे मनमोहनजी
गुणगिरुआ० ॥१०॥ रीहड हरिपालादिने मनमोहनजी । स्वर्गोत्सव किया अपार "हरि" जयकारीरे मनमोहनजी
गुरु गिरुआ० ॥११॥
( काव्यम्) ध्वजायमानो गुरु-जैन-संधे
दादाभिधानः कुशलाख्य-सूरिः । तत्पाद-पद्म-द्वितयं नमामि
ध्वज प्रतिष्टामहमाचरामि ।।
मन्त्रॐ ह्रीँ श्री अहं परम पुरुषाय परम गुरु देवाय भगवते श्रीजिनशासनोद्दीपकाय श्रीजिन कशलसूरीश्वराय ध्वजं यजामहे स्वाहा ।
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
कलश
दहा--- सद्गुरु-पद-परतंत्रता, निजस्वतंत्रताहेतु । पूजन कर आराधिये गुरु भवजल निधिसेतु ॥
(तर्ज-तुम्हें नाथ नैया तिरानी पड़ेगी ) गुरु तुम्हें नैया तिरानी पड़गी
तिरानी पड़ेगी तिरानी पड़ेगी गुरु तुम्हें नैया तिरानी पड़ेगी । टेर ॥
स्वर्गसिधारे खेवनहारे। पर संघ-नैया तिरानी पड़ेगी ॥ गुरु० १ ॥
सुखमरिकी समयसुन्दरकी। नैया के जैसे तिरानी पड़ेगी || गुरु० २ ॥
बोथर गुजरमलकी जैसे। नैया हमारी तिरानी पड़ेगी ॥ गुरु० ३॥ ___ लखमीपति दूगडकी जैसे। विपति हमरी मिटानी पड़ेगी || गुरु० ४ ।।
केइ हजारों भक्त उवारे । बाँह हमारी पकड़नी पड़ेगी ।। गुरु० ५ ॥
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तृतीय दादागुरु देव पूजा
शरणागत प्रतिपालक अपनी । सत्य प्रतिष्ठा निभानी पड़ेगी ।। गुरु० ६ ॥
श्रीजिन कुशल गुरु सुख सागर । शान्ति लहर को चलानी पड़ेगी ॥ गुरु० ७॥ ____ गुरु भगवान तुम्हें बस ध्याउ। अपनी दयाको दिखानी पड़ेगी । गुरु० ८ ॥
उन्नीससे चोराणु सरग दिन । अरजी ध्यानमें लानी पड़ेगी ।। गुरु० ६ ॥
विक्रम पुरवर दर्शन पाउं । अपनी झांकी दिखानी पड़ेगी ॥ गुरु० १० ॥ ___हरि" गुरु पूजा संघ चतुर्विध । मंगल माला दिखानी पड़ेगी ॥ ११ ॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
७७
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|| श्री ॥
तृतीय दादा परम प्रभावक-श्रीजिनकुशल सद्गुरु की
* आरती * जय जय गुरुदेवा, सेवा दे सुख मेवा ।
ॐ जय जय गुरु देवा ॥ टेर ॥ आरति हरणी आरतिगुरुकी, पावन पद देवा । परम कुशल करणी गुणभरणी, सदगुरु पद सेवा ।।
ॐ जय जय गुरुदेवा ।। १ ।। गुरुदीपक गुरुरविशशिज्योति-जगतमें सुखदेवा। दय तिमिर भरदूरनिवारे-दिव्यनर चमकेवा ।।
__ ॐ जय जय गुरुदेवा ॥ २ ॥ जिन हरि पूज्य कुशल गरु दादा-निर्भय समरेवा। वांछितपूरे संकट चुरे-सबदेवी देवा ।।
ॐ जय जय गुरुदेवा ॥ ३ ॥
इति पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय आबाल ब्रह्मचारी जैनाचार्य
श्रीमजिनहरिसागर सूरीश्वर विरचिता श्रीतृतीय दादा गुरुदेव पूजा
समाप्ता
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D
* ॐ अहं नमः
श्री चतुर्थ दादा गुरुदेव श्रीमदकवरशाहि प्रतिबोधकश्री जिन चन्द्रसूरीश्वर पूजा
श्री गुरुपद स्थापना ॥ ( शार्दूलविक्रीडितम् )
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•
( १ )
ॐ अर्ह प्रणिधान तत्परमना याचेऽधुना साञ्जलि:श्रीमच्छ्रीजिनचन्द्रसूरिभगवन् हेतूर्यदादागुरो ! |
|
भव्यानां सुखसागरोन्नति कृते गाढा - धकारोच्छिदे, पीठेऽस्मिन्नमृतात्मनावतरतु प्रौढप्रभावो भवान् ॥
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( आह्वान मन्त्र )
ॐ ह्रीँ श्रीँ अहं अकबरशाहि प्रतिबोधक युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरि सुगुरो ! अत्रावतरा वतर
स्वाहा ।
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
७६
(स्थापना मन्त्र) ॐ ह्रीँ श्री अर्ह अकबरशाहि प्रतिबोधक युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रमरि सुगुरो अत्र त्रिष्ठ ठः ठः ठः स्वाहा ।
(सन्निधिकरण मन्त्र ) ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अकबरशाहि प्रतिबोधक युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरि सुगुरो ! मम संनिहितो भव वषट् स्वाहा।
मङ्गलाचरण
ॐ अर्ह गुरुदेव हैं, श्रीजिनचन्द्र महान् । अकबर बोधक पूज्यतम, पूजो युग परधान ॥ १ ॥ युग प्रधान जिनचन्द्र की. महिमा अपरंपार । महा महोदय नित करें, सुखसागर विस्तार ॥२॥ श्री जिन वीर परंपरा, गुण रतनों की माल । हैं चिन्तामणि सद्गुरु, दें वांछित तत्काल ॥३॥ सुविहित खरतर साधना, साधक-सिद्ध महान् । चोथे दादा चन्द को, पूजो विविध विधान ॥ ४ ॥
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८०
चतुर्थ दादागुरु देव पूजा जिन माणिक गुरु राजके, पावनतम पटधार । सद्गुरु श्री जिनचंद की, सेवा सुखभण्डार ॥ ५ ॥ गंगा जल निर्मल गुरु, गुरु चन्दन अनुरूप । गुरु सुमनस विकसित करें, भरे सुवास अनूप ॥ ६ ॥ गुरु ज्योति भविजीवको, गुरु अक्षतपद देत । गुरु भवभूख हरें सदा, गुरु शिवफल संकेत ॥ ७ ॥ गुरु पूजे गुरु गुण मिले जग गौरव बढ जाय । तन्मय हो आराधिये, लट भँवरी के न्याय ॥ ८ ॥
१-जल पूजा।
दहा
द्रव्य भाव जल रूप हैं, सद्गुरु निर्मल आप ।
जल पूजा भवि कीजिये, मिटे त्रिविध सन्ताप ॥१॥ (तर्ज-भिनासर स्वामी अन्तर जामी तारो पारस नाथ )
राग-माढ गुरु ज्ञान की गंगा, सेवो चंगा
भाव सुरंगा धार ।। टेर ॥ श्रीजिन वीर हिमालय पावन, सदगुरु गंग-प्रवाह । गौतम-सौधर्मादिक सेवो, शिवपुर सारथवाह रे ।
गुरु ज्ञान की गंगा० ॥ १ ॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह श्रीउद्योतन सद्गुरु चेला, चौरासी गुणवान । चौरासी गच्छ-हेतु उनमें, वर्द्धमान प्रधान रे॥
___ गुरु ज्ञान की गंगा० ॥ २ ॥ श्री वर्द्धमान गुरुपद सेवी, सूरिजिनेश्वर ओर । बुद्धिसागर सूरि सद्गुरु, ज्ञान-क्रिया गुण जोर रे॥
गुरु ज्ञान की गंगा० ॥२॥ पाटण दुर्लभराज सभाग, शिथिलाचारी साध । जीते गुरुने पावन पाया, 'खरतर' विरुद अबाध रे ॥
गुरु ज्ञान की गंगा० ॥ ४ ॥ पटधर श्रीजिनचन्द्र गुरुपद, नवांगवृत्तिकार । अभयदेव पदे जिनवल्लभ, जिनशासन शृंगार रे ॥
गुरु ज्ञान की गंगा० ॥ ५॥ पटधर पहेले दादा श्री जिन-दत्त प्रभाव अमाप । उनके चन्द्रसूरि मणियाले, दूजे दादा आप रे ॥
गुरु ज्ञान की गंगा० ॥ ६॥ पट्ट परंपर तीजे दादा, कुशल कला अभिराम । श्रीजिन कुशल गुरुपद पूजो, पूरे वांछित काम रे।।
गुरु ज्ञान की गंगा० ॥७॥
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चतुर्थ दादागुरु देव पूजा पट्टानुक्रम श्रीजिनमाणिक, सद्गुरु गुण भण्डार । पट्टप्रभावक चौथे दादा, जगमें जय जयकार रे॥
गुरु ज्ञान की गंगा० ॥ ८॥ दादा गुरु सुखसागर सांचे, पूज्येश्वर भगवान् । अकवर भाव अहिंसक हेतु, युगपरधान महान रे॥
गुरु ज्ञान की गंगा० ॥ ६ ॥ हरि गुरु श्रीजिनचंद्र सूरीश्वर, दादा चरणसरोज । भक्ति विमल जल सींचो फैले, निज आतम बल ओज रे॥ गुरु ज्ञान की गंगा० ॥ १० ॥
श्लोकदिल्हीश्वराकवरबोधि-युगप्रधान,
दादाभिधान सुगुरोर्जिनचन्द्रसूरेः । पादारविन्दयुगलं विमलात्मभावं, दिव्यञ्जलेन विमलेन सदा यजेहम् ।
मन्त्रॐ ह्रीँ श्रीँ अहं परम पुरुषाय परमगुरुदेवाय भगवते श्रीजिनशासनोद्दीपकाय अकबर सम्राट प्रतिबोधकाय युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराय
जलं यजामहे स्वाहा ।
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
२-चन्दन पूजा।
दूहा --- द्रव्य-भाव चन्दन समा, सद्गुरु गुण अभिराम । चन्दन पूजा कीजिये, होत शांति सुखधाम । ( तर्ज-मेरे राम अयोध्या बुलालो मुझे ) गुरु चंद सुचंदन रूप जयो।
कर पूजन शांति सुधाम भयो । टेर । मरु खेतसर में ओशवंशी गोत्र रीहड सन्मति । श्रीवंत शाह-प्रधान सिरिया धर्मपत्नी थी सती ॥
गुरु माता-पिता पद पुण्य जयो।
गुरु चन्द सुचंदन रूप जयो ॥१॥ परमेष्ठि-निधि-सर-चन्द्र संवत् चैतवद वर बारसे । जन्मे सुलक्षण रूप - राजित पूर्ण तेजो - भार से ॥
सुलतान कुमार सुनाम जयो।
गुरु चंद सुचंदन रूप जयो ॥२॥ गणनाथ जिन माणिक्य सूरीश्वर पधारे खेतसर । सोलसो पर चार संवत धर्म कार्य हुए प्रवर ॥
सुलतान कुमार विरागी जयो। गुरु चंद सुचंदन रूप जयो ॥३॥
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चतुर्थ दादागुरु देव पूजा विनय विधि वर युक्ति से निज जनक जननी आज्ञया । दिव्य उत्सव साधु - पद पाये परम गुरु - सेवया ॥
सुमतिधीर सुनाम विशेष जयो ।
गुरु चंद सुचंदन रूप जयो ॥ ४॥ बाल वयमें गुरु - विनय से पुण्य विद्या प्राप्त की। बुद्धि वैभव कीर्ति अपनी सब दिशामें व्याप्त की।
गुरु ज्ञान महान प्रधान जयो।
गुरु चंद सुचंदन रूप जयो ॥ ५ ॥ देराउरसे जाते जेशलमेर गुरु माणिक्य वर । स्वर्गवासी होगये निज कीर्ति छोड़गये अमर ॥
सद्गुरु पद सुमतिधीर जयो।
गुरु चंद सुचंदन रूप जयो ॥ ६ ॥ युग चंद्र रस भू भादवा सुद वार गुरु नवमी सुखद । श्री गुणप्रभ-मूरिवरने सरिमंत्र दिया विशद ॥
नृप माल महोत्सवकारी जयो।
गुरु चंद सुचंदन रूप जयो ॥ ७॥ साधु सुमतिधीर वर विख्यात नाम हुए तभी। गणनाथ श्री जिनचंद्र सूरिराज जय बोलें सभी॥
सुखसागर गुरु भगवान जयो । गुरु चंद सुचंदन रूप जयो ।। ८ ।।
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
८५
नृप नगर जेशलमेर धन धन सूरिगुणप्रभ वेगडा | माणिक्य गुरु पद धन्य धन जिनचंद्र गुरु गुणमें बड़ा || 'हरि' चंदन पूजा भाव जयो । गुरु चंद सुचंदन रूप जयो ॥ ६ ॥
श्लोक
दिल्हीश्वराकबरबोधि-युगप्रधान,
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दादाभिधानसुगुरोर्जिनचन्द्रसूरेः ।
पादारविन्दयुगलं वरचन्दनेन,
सद्वन्दनानतमनाः सततं यजेऽहम् ॥
मन्त्र
ॐ ह्रीँ श्रीँ अहं परमपुरुषाय परमगुरुदेवाय भगवते श्रीजिनशासनोद्दीपकाय पादशाह अकबर प्रतिबोधकाय युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराय चन्दनं यजामहे स्वाहा ।
३ – पुष्प पूजा ।
दूहा -
द्रव्य भाव विकशित विमल - मंजुल गुरु पद फूल | नित फूलों से पूजियें - सुर- शिवसुख अनुकूल |
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चतुर्थ दादागुरु देव पूजा
(तर्ज-प्रभु धर्मनाथ मोहे प्यारा, जगजीवन मोहनगारा )
(राग-बनझारा ) जिनचन्द्र गुरु जयकारी, नित पूजो जग उपकारी । गुण ज्ञान-क्रिया-अविकारी,निज जीवन विकसित कारी।।टे।। गुरु जेशलमेर विराजें, गणनायक पद-गुण ताजे । सोलह सो बारह-साले, चौमासा धर्म-प्रचारी ।।
जिन चन्द्र गुरु जयकारी० ॥ १ ॥ वच्छावत सिंह संग्रामा, मन्त्री विनती गुणधामा । गुरु बीकानेर पधारे, उत्सव के ठाठ अपारी ॥
जिन चन्द्र गुरु जयकारी० ॥२॥ मन्त्री घुडशाला भारी, गुरु संयम शुद्धाचारी । मत्थेरण शिथिलाचारी, गुरु साधु क्रिया सुधारी ॥
जिन चन्द्र गुरु जयकारी० ॥ ३ ॥ गुरु महेवा में चौमासी, तपस्या होवे छम्मासी॥ जिन शासन जगति प्रकाशे, गुरु योग-तपोबलधारी ॥
जिनचन्द्र गुरु जयकारी० ॥ ४ ॥ ग्रामानुग्राम विहारे, गुरु पाटण नगर पधारे। वहां सागर चर्चाकारी, विजयी गुरु जय विस्तारी॥
जिनचन्द्र गुरु जयकारी० ॥ ५ ॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह सोलह सो सतरे वरसे, कार्तिक सुद सातम दिवसे । सब गच्छी थे मध्यस्था, गुरु जय जय कोर्ति उचारी ॥
जिनचन्द्र गुरु जयकारी० ॥६॥ सागर ने अति अभिमाने, कई ग्रंथ लिखे मनमाने । वे जलशरणागति पाये, गुरु महिमा अपरंपारी ॥
जिनचन्द्र गुरु जयकारी० ॥७॥ जिनचन्द्र गुरु सुखसिध. भगवान अकारण बन्धु । है चरण-शरण सुखकारा, पूजों भवि सुमनस् धारी ॥
जिनचन्द्र गुरु जयकारी० ॥८॥ कमनीय कुसुम वरमाला, पूजो गुरु पुण्य विशाला। हरि सद् गुरु की बलिहारी, दें विकसित पद अविकारी ॥
जिनचन्द्र गुरु जयकारी० ॥६॥
श्लोक
दिल्हीश्वराकबरबोधि-युगप्रधान,
दादाभिधान सुगुरो र्जिनचन्द्रसूरेः। पादारविन्द युगलं कुसुमोपचारैः,
सत्सौरभैरनुदिनं प्रणतो यजेऽहम् ॥
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८८
८८
चतुर्थ दादागुरु देव पूजा
मन्त्र--
ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते श्रीजिनशासनोद्दीपकाय अकवर सम्राट प्रतिबोधकाय युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराय
पुष्पाणि यजामहे स्वाहा।
४-धूप पूजा।
दूहा
द्रव्य-भाव सौरभमयी, सद्गुरु श्रीजिनचन्द ।
सौरभमय वर धूप से, पूजो परमानन्द ॥ (तर्ज-केसरिया थांसु प्रीत लगी रे सच्चा भावसु)
सुरभित गुण बोधा, सद्गुरु जिनचन्दा सदा पूजियें ॥टेर ॥
थंभण-पारस भेटें सदगुरु, खंभायत चौमासा। प्रभु प्रतिष्ठा साधु-दीक्षा, बहुविध धर्म प्रकाशा रे ॥ १॥
अमदावादे सदगुरु पासे सारंगधर सतवादी । श्रावक लावे गुरु महिमाहित, मानी पण्डित वादीरे सुर०।२।
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दादागुरु देव पूजा संग्रह ___ एक समस्या मक्खी लाते, त्रिभुवन कांपा भारी। चित्रलिखा वह जलकुंडेमें, बुध बोला बलिहारीरे सुर० ॥३॥
बीकानेर सुपाश्य प्रतिष्ठा, महिमराजको दीक्षा । पटधारी जो आगे होंगे. पा सद्गुरु से शिक्षारे सुर० ॥४॥
श्रीनाडोल नगर में सद्गुरु, मुगल सैन्य भयभागे। सद्गुरुभ्यान अभयपददाता जीवन ज्योति जागेरे सुर०॥५॥
मेवातादिक विकट देशमें, होकर सदगुरु भावे । हस्तीनापुर सौरिपुरादिक, भेटे पुण्य प्रभावे रे सुर० १६॥
पुर जालोरे अरु पाटण में, गुरु शास्त्रारथ जीते । राजनगरमें खरतर दृढ़ता, करें परमगुरु प्रीतेरे सुर० ॥७॥
चार दिशाके महासंघ सह, गुरु सिद्धाचल भेटे। निजपर दर्शन शुद्धि करते, कुमति कुवासना मेटे रे सुर०॥८॥ ___सतत विहारी सदगुरु चउविध, संघ महोदय करते। पंचमहाव्रत अरु बारहवत, अभयभाव नित भरतेरे सुर०॥९। __सदगुरु सुखसागर भगवाना, गुरु 'हरि पूज्य प्रधाना। गुरु सौरभभर धूप सु पूजा, करो भविक गुणवानारे सुर०॥१०॥
श्लोकदिल्हीश्वराकबरबोधि-युगप्रधान,
दादाभिधान सुगुरोर्जिनचन्द्रसूरेः। पादारविन्दयुगलं कलयाभिरामं
सद्गन्धिधूप करणेन सदा यजेऽहम् ।
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चतुर्थदादागुरु देव पूजा
ॐ ह्रीँ श्री अर्ह परमपुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते श्रीजिनशासनोद्दीपकाय अकबर सम्राट प्रतियोधकाय युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराय
धूपं यजामहे स्वाहा।
५---दीपक पूजा।
दृहाद्रव्य भाव दीपक गुरु, पूजो दीपक धार । लोकालोक विलोककर, पावो सुखभण्डार ।।
(कुबजाने जादु डारा)
राग-सोरठा जिनचन्द्र जगत सुखदाना रे।
गुरु दीपक ज्योति प्रधाना । विबुधनके मुखतें गुरु महिमा, सम्राट अकबर जाना। मंत्री कर्मचन्द्र वच्छावत, आमन्त्रण फरमाना रे गुरु०॥१॥ खंभायत अतिदूर, निकट में चौमासे का आना। पदचारी हैं सद्गुरु तो भी, होगा धर्म महानारे गुरु० ॥२॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह सविनय विनती-पत्र गुरु को, भेजे चतुर सुजाना। महा धरम का लाभ समझगुरु, शुभ शुकने प्रस्थानारे० ॥३॥ आषाढी सुद आठम विचरे, तेरस गुरु गुणवाना । राजनगर में संघ महोदय, स्वागत सुखदविधानारे गुरु० ॥४॥ सद्गुरु संघ उभय यह निश्चय, अपवादें थिर ठाना । धर्मोन्नति राजाग्रह संगत, चौमासे का जानारे गुरु० ॥५॥ सिधपुर-पाटण अरु पालणपुर, सद्गुरु का पधराना। सुन आमंत्रे राव सिरोही-स्वामी श्रीसुरताना रे गुरु० ॥६॥ जीव अमारी आठ दिवस नित पूनम अभय प्रधाना। पर्यषण गुरु करें सिरोही, उत्सव पुण्य खजानारे गुरु० ॥७॥ जाबालीपुर शेष चौमासा, अकवर का फरमाना । मिगसर पुष्ये गुरु गामानु, गाम विहार बितानारे गुरु०॥८॥ रोहीठठाकुर गुरु उपदेशें, दें जीवाभयदाना। जेशल जोधपुरादि भारी, संघ करें सनमाना रे गुरु०॥६॥ बिलाडे गुरु अरु मेडते, मंत्री सुत अगिवाना । पंचशब्द वे बाजे बाजे, साथे विजय निशानारे गुरु०॥१०॥ गुरु नागोर पधारें मंत्री, मेहा उत्सव ठाना । बीकानेरी संघ गुरु को, वांदे विनय विधानारे गुरु०॥११॥ बापेउ पडिहारा माला-सर रिणीपुर नाना । सदगुरुस्वागत संघचतुर्विधजीवतजनम प्रमानारे गुरु०॥१२॥
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१२
चतुर्थदादागुरु देव पूजा सरसा सुखसागर वरभूमि, हापाणई मनभाना। मंत्रीकर्म बधाई बांटे, धन धन गुरु भगवानारे गुरु० ॥१३॥ हरि गुरु दीपक चौद भुवनमें, पाप पतंग जराना । दीपक पूजाकर नितभविजन,आतम ज्योतिजगानारेगुरु०१४
श्लोक -- दिल्हीश्वराकवरबोधि-युगप्रधान
दादाभिधानसुगुरो जिनचन्द्रसूरेः । पादारविन्द-युगलंप्रकटप्रकाश,
दीपप्रदीप करणेन सदा यजेऽहम् ॥
मन्त्रॐ ह्रीँ श्रीँ अहं परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते
श्रीजिनशासनोद्दीपकाय अकबर सम्राट प्रतिबोधकाययुगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराय
दीपं यजामहे स्वाहा
-
३-अक्षतपुजा।
दूहाद्रव्य भाव अक्षत गुरु, अक्षतपद अभिराम । अक्षत पूजा कीजिये, हो अक्षत धन-धाम ।।
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
(तर्ज-जावो जावो हे मेरे साधु रहो गुरु के संग ) पूजो पूजो हे भविजन सद्गुरु अक्षत भाव अभंग पूजो पूजोजिनचंदसूरीश्वर दादा प्रेम अभंग ॥ टेर ॥ कर्मचंद्र मंत्री अगिवानी, मिलकर श्रावक संघ । श्री लाहोर नगर पधरावे, महा महोत्सव रंग पूजो ॥१॥ वर वाजिंत्र विजयध्वज आगे हाथी मत्त तुरंग। राज पुरुष सद्गुरु स्वागत में आये महा उमंग पूजो० ॥२॥ सोलह सो अडतालीस फागुन सुद बारस दिन चंग। अकबर परिजन सह गुरु दर्शन करता भाव सुरंग पूजो० ॥३॥ थे इकतीस यशस्वी पण्डित साध सद्गुरु संग । महती महिमा लख गुरुवर को दुनिया रह गई दंग पूजो०॥४।। दिव्य धरम-प्रवचन जगहितकर पावन गंग तरंग । सुन अकबर तन मन से बोला धन सदगुरु सतसंग पूजो०॥॥ शाल दुशाले सोना मुहरें मणि-रत्नों के नंग। अकबर भेट धरे गुरु त्यागें, धन निस्पृह निस्संग पूजो०॥६॥ त्यागी जीवन सब से ऊचा, हैं गुरु आप उत्तंग। दर्शन पा हर्षित मन मेरो, धन दिन आज प्रसंग पूजो०॥७॥ करुं प्रार्थना सद्गुरु देना, दर्शन दान अभंग। नित प्रतिबोध सुनाना प्रगटे, दया धरम दृढ रंग पूजो०॥८॥ अकबर को दें धर्मलाभ गुरु, मंत्री मन उच्छरंग। परवत शाह सुगुरु पधरावें, उत्सव अद्भुत ढंग पूजो०॥६॥
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चतुर्थ दादागुरु देव पूजा सुखसागर भगवान परमगुरु, जय-विजयी सरवंग । अक्षत भावे 'हरिनित पूजो, जीतो जीवन जंग पूजो०॥१०॥
श्लोकदिल्हीश्वराकबरबोधि-युगप्रधान
दादाभिधान सुगुरो र्जिनचन्द्रसूरेः । पादारविन्द युगलं प्रकटप्रभावि,
भन्याक्षतैविनयभावनतो यजेऽहम् ।
ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह परमपुरुषाय परमगुरुदेवाय भगवते श्रीजिनशासनोद्दीपकाय अकबर सम्राट प्रतिबोधकाय युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरीश्वराय
अक्षतं यजामहे स्वाहा।
७-नैवेद्य पूजा
दूहाद्रव्य-भाव पोषण करें, सद्गुरु-वर-परसाद । नित पूजो नैवेद्य से, भागे भूख अनाद ।।
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
( तर्ज-कमली वाले ने० ) जिन धर्म का डंका आलम में, बजवाया चंद सूरीश्वरने । अकबर जिनमत अनुरागी कियासदगुरु जिनचंद्रसूरीश्वरने।
॥ टेर॥ अकबर सुत शाहि सलीम सुता. मूला में जनमी दोष महा। शांति हित शांति सनात्र रचाई, सद्गुरु चन्दसूरीश्वरने ।
जिन० ॥१॥ दश सहस रुपैये मंदिर में, अकवर ने सादर भेंट किये । जिन शासन गौरव खूब बढाया, श्रीगुरु चंद सूरीश्वरने ॥
जिन० ॥ २ ॥ निधि वेद ऋतु भू मित वर्षे,अकबर आग्रह को लेकर के। लाहोर में चौमासा ठाया, गुरुवर जिनचन्द सूरीश्वरने ॥
जिन० ॥३॥ म्लेच्छों से तीरथ रक्षा हित,अकबर को पावन बोध दिया। तीरथ-रक्षा फरमान-पत्र, लिखवाये चन्द सूरीश्वरने ॥
जिन० ॥ ४॥ काश्मीर विजय को जाते हुए, अकबर ने गुरु दर्शन चाहा। दे आशीर्वाद प्रसन्न किया, उपकारी चन्द-सूरीश्वरने ।
जिन० ॥ ५॥ आषाढी नवमी से पूनम, तक अपने बारह सूबों में । अकबर से जीवदया फरमान, लिखाये चन्द सूरीश्वरने ॥
जिन० ॥६॥
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चतुर्थ दादागुरु देव पूजा
दिन दश पनरे अरुवीस पचीस, तथा महिनादो महिना की । ओरों से भी जीवदया करवाई चन्द सूरीश्वरने ॥ जिन० ॥ ७ ॥
नृप
काश्मीर विजय में अकबर ने गुरु शिष्य बड़े निज साथ लिये । त्यागी जीवन की महिमा को, दिखलाई चन्द सूरीश्वरने || जिन० ॥ ८ ॥ श्रीनगर अमारी आठ दिनों तक करवाई गुरू शिष्योंने । निज दिव्य ज्ञान गुण गरिमा को दिखलाया चन्द सूरीश्वरने । जिन० ॥ ६ ॥
अकबर ने गुण रंजित होकर, वर 'युगप्रधान ' पद खूब दिया । जिन शासन डंका बजवाया, सुख सागर चंद सूरीश्वरने || जिन० ॥ १० ॥ जीवाभय दान विधान गुरु, भगवान की पूजा नित्य करो । हरि अभय बनो जय विजय वरो, फरमाया चंद सूरीश्वरने ॥ जिन० ॥ ११ ॥
।
श्लोक
दिल्हीश्वराकवर बोधि-युगप्रधान
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दादाभिधान सुगुरोर्जिनचन्द्र सूरेः ।
पादारविन्द युगलं परम प्रसादं
नैवेद्यवस्तुभिरहं प्रणतो यजेऽहम् ॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह ६७
मंत्रॐ ह्रीँ श्रीँ अहं परमपुरुषाय परमगुरुदेवाय भगवते श्रीजिन शासनोद्दीपकाय अकबर सम्राट प्रतिबोधकाय युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरीश्वराय
नैवेद्य यजामहे स्वाहा।
८-फल पूजा।
दूहा-- द्रव्य-भाव सुखफल सदा-द सद्गुरु महाराज । उत्तम फल से पूजिये-घटे विघन घन गाज ।। (तर्ज-बेड़ापार लगाना,-प्रभुजी भूल न जाना ) गुरु सुरतरु अधिकाना, पूजो जुग परधाना।
सद्गुरु सुख-फलदाना, पूजो चतुर सुजाना ।।टेर। अकबर सन्मानित पद पाये, त्रिभुवन में जयनाद गुंजाये। मन्त्रीश्वर उत्सव विरचाये, गुरु परम पुण्यवाना ॥
पूजो जुग० ॥१॥ बड़े शिष्य गुरु के जयकारी,महिमराज महिमा अविकारी। सूरी पद के थे अधिकारी, जिन सिंहसूरि महाना ॥
पूजो जुग० ॥२॥
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.१८
चतुर्थ दादागुरु देव पूजा श्री जयसोमऽरु रत्ननिधाना, उपाध्याय पावन पद पाना । गुणी गुण का वह था सनमाना, संघ सकल मनभाना ।।
पूजो जुग० ॥ ३ ॥ पंडित श्रीगुणविनय महोदय, समयसुंदर थे कविवर निर्भय॥ दिव्य वाचनाचार्य यशोमय, पद पाये पुण्य प्रधाना ।।
पूजो जुग० ॥ ४ ॥ धन अवसर धन सद्गुरु राया,धन अकबर यह भाव उपाया। धन मन्त्रीश्वर कर्म कहाया, शासन शोभ बढ़ाना ।
पूजो जुग० ॥ ५ ॥ गुरु पद पुण्य महोत्सव अकबर, श्रीखंभात अखाते जलचर। जीवों को दें अभयदान वर,-जारी किये फरमाना ।
___ पूजो जुग० ॥ ६॥ श्री लाहौर नगर में मुखकर, अभय अमारी पटह बजाकर। सदगुरु बोध प्रभाव भाव भर,-भरा स्व पुण्य खजाना ।।
पूजो जुग० ॥ ७॥ नव हाथी नव गांव अनुक्तर, हय शत पंच विशेष मनोहर । सवा कोड धन जाचक जन-कर, दें मन्त्रीश्वर दाना ।।
पजो जुग० ॥ ८॥ युगप्रधानगुरुजयजयकारा, पुलकितमनजगजन ललकारा । सुखसागर गुरु प्राण-आधारा, जय जय गुरु भगवाना॥
पूजो जुग० ॥६॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह ६६ भव्य भाव की दिव्य निशानी-सद्गुरु पूजा शिव फलदानी। हरि गुरु पूजो जुगपरधाना-सीधे शिवपुर जाना ।
पूजो जुग० ॥ १० ॥
श्लोक-- दिल्हीश्वराकबरबोधि-युगप्रधान,
दादाभिधानसुगुरोजिनचन्द्रसूरेः । पादारविन्दयुगलं सफलं फलोधैः.
सदभक्तिभावरसपर्णमना यजेऽहम् ।।
मन्त्रॐ ह्रीँ श्रीँ अहं परम पुरुषाय परमगुरु देवाय भगवते
श्रीजिनशासनोद्दीपकाय अकबर सम्राट प्रतिबोधकाय युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरीश्वराय
फलं यजामहे स्वाहा ॥
8-वस्त्र पूजा।
दहा---
द्रव्य भाव गुरु वस्त्र हैं-रखें हमारी लाज । पूजो सद्गुरु वस्त्र से-सिद्ध होयँ सब काज ।।
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१०० चतुर्थ दादागुरु देव पूजा
(तर्ज-महावीर तुम्हारी मोहन मूरति देखी मन ललचाय) जिनचंद गुरु जयकारी पूजो युगपरधान महान ।। टेर ।
गुरु योग-तपो बल धारी, बकरी संख्या त्रिविस्तारी। अकबर आश्चर्य अपारी-पाया,धन गुरुवर विज्ञान जि०॥१॥
काजी निजटोपी उडाई, गुरु रजोहरण से लाई। अद्भुत महिमा दिखलाई,धन धनसद्गुरु महिमावानजि०२
शासन रक्षक गुरु राया, अमावस पूनम गाया । पूरण वर चाँद दिखाया, थे गुरु पूरे पहुँचवान जि० ॥३॥
चोरों ने ग्रन्थ चुराये, गुरु महिमा अंध बनाये । सब चोर लगे गुरु पाये, त्यागी चोरी पाप प्रधान जि०||४||
तप संयम गुण तदवीरा, गुरु पंच नदी के पीरा । थे सधे असुर-सुर-वीरा, गुरु के सेवक भझिमान जि० ॥५॥
अकबर सम्राट सनरा. जोधाणपति सिंह' मूरा । बीकाणपतिराय पूरा,सद्गुरु परम भक्त गुणवान् जि०॥६॥
श्री जहांगीर फरमाना, साधु-विहार अटकाना । देबोध सुमुक्त कराना,गुरुकी शासन सेव महान् जि० ॥७॥
साह शिवा-सोम दो भाई, निर्धनता दूर भगाई। गुरु सेवा मेवा पाई, सेवो सद्गुरु सदा सुजान जि० ॥८॥
गुरु सुखसागर भगवाना, गुरु अशरण शरण प्रधाना। हरिगुरुपूजोसुविधिविधाना,पावोगुरु-पदगुरु गुणज्ञानजि०६
१-जोधपुर के महाराजा श्रीसूरसिंहजी २-बीकानेर के महाराजा श्रीरायसिंहजी गुरु महाराज के भक्त थे।
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दादा गुरुदेव पंज्ञा सग्रह ""
श्लोक
दिल्हीश्वराकबर बोधि-युगप्रधान दादाभिधान सुगुरोर्जिनचन्द्र सूरेः ।
पादारविन्द युगलं परमं पवित्र,
सद्वस्त्रढोकन परोऽनुदिनं यजेऽहम् ॥
मन्त्र
ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते श्रीजिनशासनोद्दीपकाय अकबर सम्राट प्रतिबोधकाय युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराय वस्त्रं यजामहे स्वाहा
१०- ध्वज पजा ।
दूहा
द्रव्य भाव ध्वज रूप हैं.... सद्गुरु शासन गेह | ध्वज पूजा कर भविक जन-जन म सफल विधि एह ।। ( तर्ज - तीरथ नी आशातना नवि करिये ) सद्गुरु की कर पूजना भवि भावे, हारे गुरु पावन पदवी पावे । हांरे गुरु ज्ञान कला प्रकटावे, हांरे आसातना टार स०||टेर । !
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चतुथदादागुरु देव पूजा युगपरधान गुणी गुरु जिनचंदा, हारे उपकारी भाव अमंदा । हारे गुरु ज्योति सूरज चंदा, हारे मेटे भव भव के सब फंदा ।
___ हारे गुरु तारणहार सद्० ॥१॥ जिन दर्शन अभिरामता गुरु भासे,हारे प्रभु प्रतिमा भावोल्लासे । हारे गुरु पुण्य प्रतिष्ठा प्रकासे,हारे उत्सव विधि खूब विलासे।
हारे उनका नहीं पार-सद् ॥२॥ शाह शिवाजी सोमजी दो भाई, हारे राजनगरे पुण्यकमाई। हारे प्रभुमंदिर ज्योति जगाई, हारे गुरु परतिष्ठा अधिकाई।।
हारे खोले धन भण्डार-सद् ॥३॥ बीकानेर पुरे गुरु जयकारा, हारे शत्रुजय सम अवतारा । हारे जिनचैत्य उत्तंग उदारा, हारे परतिष्ठा और अपारा ॥
हारे उत्सव बलिहार- सद्० ॥ ४ ॥ श्रीचिंतामणि देव के भण्डारी, हारे जिन प्रतिमा गुप्त हजारी। हारे गुरु अकबर बोध प्रचारी,हारे लाये महिमा अधिक अपारी॥
__ हारे दे उपद्रव टार--सद् ॥ ५ ॥ सीरोही प्रमुखे पुरे गुरुराया, हारे परतिष्ठा ठाठ रचाया । हारे लंपक मत रोक लगाया, हारे जिनशासनझंड जमाया ।
___ हारे गुरु धन अवतार--सद् ॥६॥ खंभाते बीकाण में सुखकारा, हारे वर ग्रन्थ सुरन भंडारा । हारे साहित्य किया विसतारा, हारे गुरु ज्ञान क्रिया बल धारा॥
हारे पूरे पंचाचार--सद् ॥ ७॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह
१०३
गुरु उपदेशें तीर्थ के संघ भारी, हारे तीरथ तारे भवपारी । हारे सिद्धाचलवर गिरनारी, हांरे आबू प्रमुखा उपकारी । हारे यात्रा हितकर - सद्० ॥ ८ ॥
सुखसागर हैं सद्गुरु भगवाना, हांरे पूजो सद्गुरु युग परधाना । हांरेनिज जन्मको सफल बनाना, हांरे हरिगुरुशासन ध्वजमाना । हांरे बोलो जय जयकार --सद्०॥६॥ श्लोक
दिल्हीश्वराकबर बोधि-युगप्रधान - दादाभिधान सुगुरो जिनचन्द्रसूरेः ।
पादारविन्दयुगलोत्तम दिव्यदेशे,
पुण्यध्वजं सुप्रति रोपयितास्मि भक्त्या ।।
मन्त्र
ॐ ह्रीं श्रीं अहं परमपुरुषाय परमगुरुदेवाय भगवतः श्रीजिनशासनोद्दीपकस्य अकबर सम्राट् प्रतिबोधकस्य युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरीश्वरस्य मंदिरोपरि ध्वजां आरोपयामि स्वाहा ।
* कलश
दूहा -
गुरु भज निगुरापन तजो, गौरव बढे विशेष । उपकारी गुरुदेव हैं, दें गुण- ज्ञान हमेश ||
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१०४ चतुथ दादागुरु देव पूजा
(तर्ज-तेजतरणि सम राजे०) पूजो जग जयकारी गुरु हैं पूजो जग जयकारी ॥ टेक ।। तीर्थ कर विरही जीवों को, धर्म बोध दातारी गुरु हैं । देश विदेश विहारी स्वामी, उपकारी अवतारी गुरु हैं। ॥१॥ शासन सेवा खूब बजा कर-युगप्रधान पदधारी गुरु हैं । नगर बौलाडे या बेणातट आये गुण अविकारी गुरु हैं० ॥२॥ अंत समय निज जान-त्रिविध कर अनशन भाव उचारी गुरु हैं परमेष्ठी वर ध्यान समाधि-हुए स्वरग अधिकारी गुरु हैं० ॥३॥ आसोवद दिन दूज सोलहसो-सत्तर समय गुणधारी गुरु हैं । पाडत मरण महोत्सव किन्तु संघमें शोक अपारी गुरु हैं०॥४॥ सिंह समाना सूरीश्वर जिनसिंह-सुगुरु पटधारी गुरु हैं | धन कर्मेन्दु मंत्री धन गुरु, ज्योति जगति विसतारी गुरुहै ०॥५॥ अकबर शाह विशेष दयामय हुआ धरम अधिकारी ।। जन परभावक पूज्य परम गुरु भाव जयंती धारी गुरु हैं। ॥६॥ खरतर गण नायक सुखसागर-सद्गुरुकी बलिहारी गुरु हैं। गुरु भगवान भजो भवी भावे-भवोदधिपार उतारी गुरु हैं०॥७॥ संवत् गज निधि निध भू वर्षे-मोकलसर मनुहारी गुरु हैं० । श्रावण वद दिन दूज गुरु की-पूजा मंगलकारी गुरु हैं। ॥८॥ जिनहरि सागरसूरि गुरु गुण-गाये पावनकारी गुरु हैं । युगप्रधान जिनचन्द्र चरण कज,पूजा जय जयकारी गुरु हैं॥६॥
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दादागुरु देव पूजा संग्रह १०५
* श्री के
चतुर्थ दादा युगप्रधान-श्रीजिनचंद्रसूरीश्वर-सद्गुरु की
__® आरती जय जय गुरु राया, पुण्योदय से पाया ।
ॐ जय जय गुरु राया ।। टेर ॥ अकबर भाव अहिंसक हेतु-सब जग सुखदाया । आरति गुरु गुण आरतिकारी-गावो तजमाया।
ॐ जय जय गुरुराया ॥ १ ॥ परम प्रभावक सदगुरु श्रावक कर्म योग गाया। सिद्ध और साधककी जोड़ो कार्यसिद्ध पाया।
ॐ जय जय गुरुराया ।। २॥ ठाम ठाम गुरु थम विराजे-भवि पूजे पाया । जिनहरि पूज्य परमगुरु पूजो-पाओमन चाह्या।
__ॐ जय जय गुरु राया ॥ ३॥ इति पूज्यपाद प्रातः स्मरणीय आबाल ब्रह्मचारी जैनाचार्य
श्रीमज्जिनहरिसागर सूरीश्वर विरचिता
श्रीचतुर्थ दादा गुरुदेव पूजा
समाप्ता
१-मन्त्रीश्वर कर्मचंदजो वच्छावत ।
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ओम * श्री जिनकुशलसूरि स्तवन *
[ तर्ज-- तेरे द्वार खड़ा भगवन् ] हे अशरण शरण आधार दरस दे दो रे दादा, दरस देदो रे दादा हे महामहिमा अवतार, परम गुरु ज्ञान गुण भण्डार ( दरस० ) टेर धम मूल मारग दिखलाकर--अधर्म दूर भगाया रे। जिन जीवन ज्योति पावन-शासन जैन जगाया रे। अहिंसक भाव विकास विशेष, मिटाया भव भय भाव कलेश ॥ १ ॥ द०॥ ब्रह्म योग बलधारी भारी महिमा अपरंपार-दुखियों को सुखिया कर देते, आप रूप अविकार रे–नजर दौलत गुरु निधान, जगत में मंगलमूल विधान ।। २॥ दरस० ।। जब जब पडे विकट संकट में दादा लाज रखी रे -दुःख का आज समय सहायक बन-कीर्ति रखी अखी रे। सुनो हे तारणहार महान, कुशल गुरु जग में युगपरधान ॥३॥ दरस ।। आतम सुधी परमातम भारी सर्वोदय अधिकारी। सद्गुरु चरण शरण पाते जन - धन उनकी बलिहारी रे। वही हो सुखसागर भगवान–परमगुरु पूजे हरि गुणवान ॥ ४ ॥ दरस ।। नित्य कवीन्द्र गुरु दिव्य कौतियाँ सुन-सुन कर सुख पाऊँ। काम बना दो सद्गुरु मेरे चरणों में शीष नमाऊँ रे। है तीन भुवन शिर भूप, दादा सुरमणि सुरतरु रूप ॥ दरस० ॥५॥ इति
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुस्तक मिलने का पता:(१) श्री जैन श्वेताम्बर पंचायती मन्दिर 136, कॉटन स्ट्रीट कलकत्ता-७ (2) श्री जैन भवन पी-२५ बी, कलाकार स्ट्रीट कलकत्ता-७ For Private And Personal Use Only