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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८० चतुर्थ दादागुरु देव पूजा जिन माणिक गुरु राजके, पावनतम पटधार । सद्गुरु श्री जिनचंद की, सेवा सुखभण्डार ॥ ५ ॥ गंगा जल निर्मल गुरु, गुरु चन्दन अनुरूप । गुरु सुमनस विकसित करें, भरे सुवास अनूप ॥ ६ ॥ गुरु ज्योति भविजीवको, गुरु अक्षतपद देत । गुरु भवभूख हरें सदा, गुरु शिवफल संकेत ॥ ७ ॥ गुरु पूजे गुरु गुण मिले जग गौरव बढ जाय । तन्मय हो आराधिये, लट भँवरी के न्याय ॥ ८ ॥ १-जल पूजा। दहा द्रव्य भाव जल रूप हैं, सद्गुरु निर्मल आप । जल पूजा भवि कीजिये, मिटे त्रिविध सन्ताप ॥१॥ (तर्ज-भिनासर स्वामी अन्तर जामी तारो पारस नाथ ) राग-माढ गुरु ज्ञान की गंगा, सेवो चंगा भाव सुरंगा धार ।। टेर ॥ श्रीजिन वीर हिमालय पावन, सदगुरु गंग-प्रवाह । गौतम-सौधर्मादिक सेवो, शिवपुर सारथवाह रे । गुरु ज्ञान की गंगा० ॥ १ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020167
Book TitleDada Gurudevo ki Char Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisagarsuri
PublisherJain Shwetambar Upashray Committee
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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