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दादागुरु देव पूजा संग्रह
( सन्निधिकरण मन्त्र) ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह श्रीजिन कुशल सूरि गुरो ? मम संनिहितो भव वषट् स्वाहा ।
१-जल पूजा।
दूहा-- ॐ अहं गुरुदेव पद, रविशशि ज्योतिविशेष हृदय तिमिर हर बोध दें, चंदन करूं हमेश ॥१॥
सकल कुशल मंगल करण, परम कुशल गुरुदेव । सेवा से मेवा मिले, साधू सदगुरु सेव ॥२॥
सुविहित खरतरवर विधि, विस्तारक सुखकार। जिन शासन भासन गुरु, पूजन परमाधार ॥३॥
दादा श्रीजिन कुशल गुरु, श्रीपद पुण्य प्रभाव । कुशल भाव पूजन कियां, विघटे अकुशल भाव ॥ ४॥
गुरु सेवा से शिष्य भी, होवे गुरुपद योग । पारस फरसन लोह भी, होत कनक गुण भोग ॥ ५ ॥
परमेष्ठी तीजे पदे, आचारज सिरताज । पूज नित भव सिन्धु से, तारक दिव्य जहाज ॥ ६ ॥
निर्मल जल चन्दन प्रमुख, द्रव्य भाव दो भेद । पूजो भविजन भाव से, दूर टरे सब खेद ॥७॥
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