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प्रथम दादागुरु देव पूजा
जयदेव - सूरि उपसम्पद लें,
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११
गुरु वसतिविधि उन चित्त ठरी ॥ दादा० ॥
निज चैत्यवास जिनप्रभ छोड़ें,
जिनदत्त परम गुरु चरण परी || दादा गु०५|| महिमा मुख से नहीं जाय कही,
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महिमा मही- मण्डल खूब भरी || दाद० ॥ गुरु गुण महिमा जो भवि गावें,
सुख सम्पति उनकी सहचरी || दादा० ६ || गुरु सन्मुख धूप सुगन्धी धरो,
सब पाप पुंज तब जाय जरी || दादा० ॥ सुखसागर गुरु भगवान भजो,
गुण गावें सुर गणनाथ हरि" || दादा ०७ || श्लोकस्वीयोद्वर्व सिद्धिगतये सततं सदाशासम्पूर्त्तये दुर्गन्धदोपहतये वर-धूप- गन्धैदोदोपसंज्ञ - जिनदत्तगुरु
परिमलोत्तमकीर्तयेऽपि ।
यजेऽहम् ॥
मन्त्र
ॐ ह्रीं श्रीं अहं परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते जिनशासनोद्दीपकाय दादा श्रीजिनदत्त सूरीश्वराय धूपं यजामहे स्वाहा ||