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चतुर्थदादागुरु देव पूजा सरसा सुखसागर वरभूमि, हापाणई मनभाना। मंत्रीकर्म बधाई बांटे, धन धन गुरु भगवानारे गुरु० ॥१३॥ हरि गुरु दीपक चौद भुवनमें, पाप पतंग जराना । दीपक पूजाकर नितभविजन,आतम ज्योतिजगानारेगुरु०१४
श्लोक -- दिल्हीश्वराकवरबोधि-युगप्रधान
दादाभिधानसुगुरो जिनचन्द्रसूरेः । पादारविन्द-युगलंप्रकटप्रकाश,
दीपप्रदीप करणेन सदा यजेऽहम् ॥
मन्त्रॐ ह्रीँ श्रीँ अहं परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते
श्रीजिनशासनोद्दीपकाय अकबर सम्राट प्रतिबोधकाययुगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराय
दीपं यजामहे स्वाहा
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३-अक्षतपुजा।
दूहाद्रव्य भाव अक्षत गुरु, अक्षतपद अभिराम । अक्षत पूजा कीजिये, हो अक्षत धन-धाम ।।
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