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आपकी जन्मभूमि धवलका (गुजरात ) थी तो स्वर्गभूमि अजमेर ( राजस्थान) में आज भी अपने चमत्कारों से प्रसिद्ध हैं। आपकी स्वर्ग-जयन्ती आषाढ़ शुक्ला १९ को अनेक ग्राम-नगरों में मनायी जाती है।
२ -- दूसरे श्री दादा गुरुदेव श्री श्री १००८ श्रीमज्जिनचन्द्र सूरीश्वरजी हुए, जो कि श्री मणिधारीजी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हैं। आप पहले दादा गुरुदेव के पट्टधर थे । आपने महत्तियाण जातिको प्रतिबोध देकर जैन बनाया। दिल्लीपति श्री मदनपाल को जैनधर्म में दीक्षित किया । श्रीमाल जाति में कई नये गोत्रों की अभिवृद्धि की आपके भव्य भाल में नरमणि चमकती थी। आपके भी कई देवी-देवता भक्त थे । आपकी जन्मभूमि विक्रमपुर ( जैसलमेर भाटीपे में ) थी एवं स्वर्गभूमि भारत की राजधानी दिल्ली में कुतुब के पास चमत्कार पूर्ण आज भी प्रसिद्धरूप से पूजी जाती है
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३- तीसरे श्री दादा गुरुदेव श्री श्री १००८ श्रीमज्जिनकुशल सूरीश्वरजी महाराज विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में हुये । चार राजाओं के प्रतिबोधक कलिकाल केवली विरुवाले श्रीजिनचंद्र सूरीश्वरजी महाराज के आप पट्टधर थे। कई अजैनों को आपने जैन बनाये। कई देवी देवता आपकी सेवा करते थे। आपकी जन्मभूमि समियाणा ( सिवाना - मारवाड़ ) थी तो स्वर्गभूमि देरावर (सिन्ध) में प्रसिद्ध है। सोमवार पूनम - अमावश को आपके नामसे कई भक्त जन एकाशनादि करते हैं। ध्यान करने वालों को आपके दर्शन आज भी हाजरा हजूर है। चिन्ता हरने
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