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तृतीय दादागुरु देव पूजा तेरहसो सतहत्तरे, ग्यारस मिति वदि जेठ कुम्भ लगन निश्चित करें. संघ सर्व जग जेठ॥ हो गुरुराज पाटण पुण्य महोत्सव जाऊँ बलिहार
॥ हो गुरुराज ॥६॥ तेजपाल दानी गुणी, रूडपाल सहलोग । आमंत्रं श्री संघ को, पूर्व पुण्य-धनयोग ।। हो गुरुराज शोभा पाटणकी क्या वरणं थी अपार
॥हो गुरुराज० ॥ ७॥ श्री राजेन्द्राचार्य तब, लेखाज्ञा अनुसार । कुशलकोति मुनिराज का, करें नाम संस्कार ।। हो गुरुराज श्रीजिन कुशल सूरीश्वरकी होजयकार
॥हो गुरुराज० ॥ ८ ॥ श्रीजिन कुशल सूरीश्वर, दादा युग परधान । अतिशयधारी पूज्यवर, सुख सागर भगवान ।। हो गुरुराज पद 'हरि' पूजो भावे होवो भवपार
॥हो गुरुराज० ॥६॥
(काव्यम् ) धर्म-प्रचारी वर-बोधकारी
दादाभिधानः कुशलाख्यसरिः। तत्पाद - पद्म--द्वितयं नमामि
दशांग-धूपं सुपरिक्षिपामि ।।
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