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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ दादागुरु देव पूजा-संग्रह तीजे पद परमेष्ठी स्वामी, आचारज गण धामी। सीमन्धर जगदीश्वर वाणी, एक भवे शिवगामी ॥२॥ वीर जिनेश्वर शासन वासित, संघ सकल शिवरामी । युगवर अतिशय-महिमा धारी,जगजश-कीरति जामी ॥३॥ सेवा करते सुर-नर नायक, श्री गुरु पद शिर नामी। कलियुग में कल्पद्रुम जैसे, वाञ्छित दें अभिरामी ॥४॥ जैनेतर जन जैन बनाये, सवालक्ष सुखकामी। शुद्धिका मारग दिखला कर, दूर करी सब खामी ॥५॥ सुख सागर भगवान परमगुरु, पूजो पाप विरामी । नित सुर "गणनायक हरि" कहते, श्रीगुरुचरण नमामि ॥६॥ ॥मंगल दीपक॥ मंगलमय गुरु मंगल दीपक, मंगलमाला कारी। मंगल हित भविजन नित कीजे, वरते मंगलाचारी ॥१॥ सदगरु मंगल दीपक ज्योति, हृदय तिमिर दे टारी। पाप-पतंग विनाशक आतम, पुण्य प्रकाशक भारी ॥ २॥ सुख सागर भगवान परम गुरु, सर्व अमंगल हारी। मंगल दीपक करते सुर "गणनायक हरि" जयकारी ॥३॥ इति पूज्यपाद प्रातः स्मरणीय आबाल ब्रह्मचारी जैनाचर्य ___ श्री मजिनहार सागर सूरीश्वर विरचिता प्रथम दादा गुरुदेव पूजा समाप्ता। For Private And Personal Use Only
SR No.020167
Book TitleDada Gurudevo ki Char Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisagarsuri
PublisherJain Shwetambar Upashray Committee
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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