Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Shwetambar Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचारांग सूत्र ॥श्री आगम-गुण-मञ्जूषा ।। ॥श्री सागम-गुण-४५।।। Il Sri Agama Guna Manjusa Il (सचित्र) प्रेरक-संपादक अचलगच्छाधिपति प.पू.आ.भ.स्व. श्री गुणसागर सूरीश्वरजी म.सा. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HOROS555555555555555555555555555 ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय 555555555555555555555555555QUOTE | ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय | ११ अंगसूत्र के जीवन चरित्र है, धर्मकथानुयोग के साथ चरणकरणानुयोग भी इस सूत्र मे सामील है । इसमे ८०० से ज्यादा श्लोक है। श्री आचारांग सूत्र :- इस सूत्र मे साधु और श्रावक के उत्तम आचारो का सुंदर वर्णन है । इनके दो श्रुतस्कंध और कुल २५ अध्ययन है। द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, श्री अन्तकृद्दशांग सूत्र :- यह मुख्यत: धर्मकथानुयोग मे रचित है। इस सूत्र में श्री धर्मकथानुयोग और चरणकरणानुयोगोमे से मुख्य चौथा अनुयोग है। उपलब्ध श्लोको शत्रुजयतीर्थ के उपर अनशन की आराधना करके मोक्ष मे जानेवाले उत्तम जीवो के छोटे छोटे चरित्र दिए हए है। फिलाल ८०० श्लोको मे ही ग्रंथ की समाप्ति हो जाती 5 कि संख्या २५०० एवं दो चुलिका विद्यमान है। है। श्री सूत्रकृतांग सूत्र :- श्री सुयगडांग नाम से भी प्रसिद्ध इस सूत्र मे दो श्रुतस्कंध और २३ अध्ययन के साथ कुलमिला के २००० श्लोक वर्तमान में विद्यमान है । १८० श्री अनुत्तरोपपातिक दशांग सूत्र :- अंत समय मे चारित्र की आराधना करके क्रियावादी, ८४ अक्रियावादी, ६७ अज्ञानवादी अपरंच द्रव्यानुयोग इस आगम का अनुत्तर विमानवासी देव बनकर दूसरे भव मे फीर से चारित्र लेकर मुक्तिपद को प्राप्त मुख्य विषय रहा है। करने वाले महान् श्रावको के जीवनचरित्र है इसलीए मुख्यतया धर्मकथानुयोगवाला यह ग्रंथ २०० श्लोक प्रमाणका है। श्री स्थानांग सूत्र :- इस सूत्र ने मुख्य गणितानुयोग से लेकर चारो अनुयोंगो कि बाते आती है। एक अंक से लेकर दस अंको तक मे कितनी वस्तुओं है इनका रोचक वर्णन श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र :- इस सूत्र मे मुख्यविषय चरणकरणानुयोग है। इस आगम है, ऐसे देखा जाय तो यह आगम की शैली विशिष्ट है और लगभग ७६०० श्लोक है। में देव-विद्याघर-साधु-साध्वी श्रावकादि ने पुछे हुए प्रश्नों का उत्तर प्रभु ने कैसे दिया इसका वर्णन है । जो नंदिसूत्र मे आश्रव-संवरद्वार है ठीक उसी तरह का वर्णन इस सूत्र श्री समवायांग सूत्र :- यह सूत्र भी ठाणांगसूत्र की भांति कराता है । यह भी मे भी है । कुलमिला के इसके २०० श्लोक है। संग्रहग्रंथ है । एक से सो तक कौन कौन सी चीजे है उनका उल्लेख है। सो के बाद देढसो, दोसो, तीनसो, चारसो, पांचसो और दोहजार से लेकर कोटाकोटी तक ११) श्री विपाक सूत्र :- इस अंग मे २ श्रुतस्कंध है पहला दुःखविपाक और दूसरा कौनसे कौनसे पदार्थ है उनका वर्णन है। यह आगमग्रंथ लगभग १६०० श्लोक प्रमाण सुखविपाक, पहेले में १० पापीओं के और दूसरे में १० धर्मीओ के द्रष्टांत है मुख्यतया मे उपलब्ध है। धर्मकथानुयोग रहा है । १२०० श्लोक प्रमाण का यह अंगसूत्र है। श्री व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र (भगवती सूत्र) :- यह सबसे बडा सूत्र है, इसमे ४२ १२ उपांग सूत्र शतक है, इनमे भी उपविभाग है, १९२५ उद्देश है। इस आगमग्रंथ मे प्रभु महावीर के प्रथम शिष्य श्री गौतमस्वामी गणधरादि ने पुछे हुए प्रश्नो का प्रभु वीर ने समाधान १) श्री औपपातिक सूत्र :- यह आगम आचारांग सूत्र का उपांग है । इस मे चंपानगरी किया है। प्रश्नोत्तर संकलन से इस ग्रंथ की रचना हुइ है। चारो अनुयोगो कि बाते का वर्णन १२ प्रकार के तपों का विस्तार कोणिक का जुलुस अम्बडपरिव्राजक के ७०० शिष्यो की बाते है। १५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। अलग अलग शतको मे वर्णित है। अगर संक्षेप मे कहना हो तो श्री भगवतीसूत्र रत्नो का खजाना है। यह आगम १५००० से भी अधिक संकलित श्लोको मे उपलब्ध है। श्री राजप्रश्नीय सूत्र :- यह आगम सुयगडांगसूत्र का उपांग है। इसमें प्रदेशीराजा का ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र :- यह सूत्र धर्मकथानुयोग से है। पहले इसमे साडेतीन करोड अधिकार सूर्याभदेव के जरीए जिनप्रतिमाओं की पूजा का वर्णन है। २००० श्लोको से भी अधिक प्रमाण का ग्रंथ है। कथाओ थी अब ६००० श्लोको मे उन्नीस कथाओं उपलब्ध है। १७) श्री उपासकदशांग सूत्र :- इसमें बाराह व्रतो का वर्णन आता है और १० महाश्रावको Gorak45555555555555555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा G555555555555555555555555555555ory OG5555555555555555555555555555555555555555555555553535959595959OLICE Gan Education Interna rnww.iainelibrary.orp) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३) श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र :- यह ठाणांगसूत्र का उपांग है। जीव और अजीव के बारे मे अच्छा विश्लेषण किया है। इसके अलावा जम्बुद्विप की जगती एवं विजयदेव कि हुइ पूजा की विधि सविस्तर बताई है। फिलाल जिज्ञासु ४ प्रकरण, क्षेत्रसमासादि जो पढ़ते है वह सभी ग्रंथे जीवाभिगम अपरग्च पन्नवणासूत्र के ही पदार्थ है। यह आगम सूत्र ४७०० श्लोक प्रमाण का है। ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय ४) श्री प्रज्ञापना सूत्र- यह आगम समवायांग सूत्र का उपांग है। इसमे ३६ पदो का वर्णन है। प्रायः ८००० श्लोक प्रमाण का यह सूत्र है। ५) ६) श्री सुर्यप्रज्ञप्ति सूत्र : श्री चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र :- इस दो आगमो मे गणितानुयोग मुख्य विषय रहा है। सूर्य, चन्द्र, ग्रहादि की गति, दिनमान ऋतु अयनादि का वर्णन है, दोनो आगमो मे २२००, २२०० श्लोक है। ७) श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र :- यह आगम भी अगले दो आगमों की तरह गणितानुयोग है। यह ग्रंथ नाम के मुताबित जंबूद्विप का सविस्तर वर्णन है । ६ आरे के स्वरूप बताया है । ४५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। ९) ८) श्री निरयावली सूत्र :- इन आगम ग्रंथो में हाथी और हारादि के कारण नानाजी का दोहित्र के साथ जो भयंकर युद्ध हुआ उस मे श्रेणिक राजा के १० पुत्र मरकर नरक मे गये उसका वर्णन है। श्री कल्पावतंसक सूत्र :- इसमें पद्मकुमार और श्रेणिकपुत्र कालकुमार इत्यादि १० भाइओं के १० पुत्रों का जीवन चरित्र है। १०) श्री पुष्पिका उपांग सूत्र :- इसमें १० अध्ययन है। चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिका देवी, पूर्णभद्र, माणिभद्र, दत्त, शील, जल, अणाढ्य श्रावक के अधिकार है। ११) श्री पुष्पचुलीका सूत्र :- इसमें श्रीदेवी आदि १० देवीओ का पूर्वभव का वर्णन है। १२) श्री वृष्णिदशा सूत्र :- यादववंश के राजा अंधकवृष्णि के समुद्रादि १०पुत्र, १० मे पुत्र वासुदेव के पुत्र बलभद्रजी, निषधकुमार इत्यादि १२ कथाएं है। अंतके पांचो उपांगो को निरियावली परचक भी कहते है। दश प्रकीर्णक सूत्र १) श्री चतुशरण प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में अरिहन्त, सिद्ध, साधु और गच्छधर्म के आचार के स्वरूप का वर्णन एवं चारों शरण की स्वीकृति है । २) श्री आतुर प्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस आगम का विषय है अंतिम आराधना और मृत्युसुधार ३) श्री भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में पंडित मृत्यु के तीन प्रकार ( १ ) भक्त परिज्ञा मरण (२) इंगिनी मरण (३) पादोपगमन मरण इत्यादि का वर्णन है । ६) श्री संस्तारक प्रकीर्णक सूत्र :- नामानुसार इस पयन्ने में संथारा की महिमा का वर्णन है । इन चारों पयन्ने पठन के अधिकारी श्रावक भी है। ७) श्री तंदुल वैचारिक प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने को पूर्वाचार्यगण वैराग्य रस के समुद्र के नाम से चीन्हित करते है । १०० वर्षों में जीवात्मा कितना खानपान करे इसकी विस्तृत जानकारी दी गई है। धर्म की आराधना ही मानव मन की सफलता है। ऐसी बातों से गुंफित यह वैराग्यमय कृति है। ८) श्री चन्दाविजय प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु सुधार हेतु कैसी आराधना हो इसे इस पयन्ने में समजाया गया है। ९) श्री देवेन्द्र-स्तव प्रकीर्णक सूत्र :- इन्द्र द्वारा परमात्मा की स्तुति एवं इन्द्र संबधित अन्य बातों का वर्णन है। १०) श्री मरणसमाथि प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु संबधित आठ प्रकरणों के सार एवं अंतिम आराधना का विस्तृत वर्णन इस पयन्ने में है। १०B) श्री महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में साधु के अंतिम समय में किए जाने योग्य पयन्ना एवं विविध आत्महितकारी उपयोगी बातों का विस्तृत वर्णन है। MO६५६६५६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ श्री आगमगुणमंजूषा H Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 乐乐乐乐玩玩乐乐听听听听听听圳坂圳乐乐听听听听的 १०८) श्री गणिविद्या प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में ज्योतिष संबधित बड़े ग्रंथो का सार है। ३) उपरोक्त दसों पयन्नों का परिमाण लगभग २५०० श्लोकों में बध्य हे। इसके अलावा २२ अन्य पयन्ना भी उपलब्ध हैं। और दस पयन्नों में चंदाविजय पयन्नो के स्थान पर गच्छाचार पयन्ना को गिनते हैं। श्री नियुक्ति सूत्र :- चरण सत्तरी-करण सत्तरी इत्यादि का वर्णन इस आगम ग्रन्थ में ७ है। पिंडनियुक्ति भी कई लोग ओघ नियुक्ति के साथ मानते हैं अन्य कई लोग इसे अलग आगम की मान्यता देते हैं । पिंडनियुक्ति में आहार प्राप्ति की रीत बताइ हें। ४२ दोष कैसे दूर हों और आहार करने के छह कारण और आहार न करने के छह कारण इत्यादि बातें हैं। छह छेद सूत्र श्री आवश्यक सूत्र :- छह अध्ययन के इस सूत्र का उपयोग चतुर्विध संघ में छोट बडे सभी को है । प्रत्येक साधु साध्वी, श्रावक-श्राविका के द्वारा अवश्य प्रतिदिन प्रात: एवं सायं करने योग्य क्रिया (प्रतिक्रमण आवश्यक) इस प्रकार हैं : (१) सामायिक (२) चतुर्विंशति (३) वंदन (४) प्रतिक्रमण (५) कार्योत्सर्ग (६) पच्चक्खाण (१) निशिथ सूत्र (२) महानिशिथ सूत्र (३) व्यवहार सूत्र (४) जीतकल्प सूत्र (५) पंचकल्प सूत्र (६) दशा श्रुतस्कंध सूत्र इन छेद सूत्र ग्रन्थों में उत्सर्ग, अपवाद और आलोचना की गंभीर चर्चा है । अति गंभीर केवल आत्मार्थ, भवभीरू, संयम में परिणत, जयणावंत, सूक्ष्म दष्टि से द्रव्यक्षेत्रादिक विचार धर्मदष्टि असे करने वाले, प्रतिपल छहकाया के जीवों की रक्षा हेतु चिंतन करने वाले, गीतार्थ, परंपरागत क उत्तम साधु, समाचारी पालक, सर्वजीवो के सच्चे हित की चिंता करने वाले ऐसे उत्तम मुनिवर जिन्होंने गुरु महाराज की निश्रा में योगद्वहन इत्यादि करके विशेष योग्यता अर्जित की हो ऐसे * मुनिवरों को ही इन ग्रन्थों के अध्ययन पठन का अधिकार है। दो चूलिकाए १) श्री नंदी सूत्र :- ७०० श्लोक के इस आगम ग्रंन्थ में परमात्मा महावीर की स्तुति, संघ की अनेक उपमाए, २४ तीर्थकरों के नाम ग्यारह गणधरों के नाम, स्थविरावली और पांच ज्ञान का विस्तृत वर्णन है। चार मूल सूत्र श्री दशवकालिक सूत्र :- पंचम काल के साधु साध्वीओं के लिए यह आगमग्रन्थ अमृत सरोवर सरीखा है। इसमें दश अध्ययन हैं तथा अन्त में दो चूलिकाए रतिवाक्या व, विवित्त चरिया नाम से दी हैं । इन चूलिकाओं के बारे में कहा जाता है कि श्री स्थूलभद्रस्वामी की बहन यक्षासाध्वीजी महाविदेहक्षेत्र में से श्री सीमंधर स्वामी से चार चूलिकाए लाइ थी। उनमें से दो चूलिकाएं इस ग्रंथ में दी हैं। यह आगम ७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री अनुयोगद्वार सूत्र :- २००० श्लोकों के इस ग्रन्थ में निश्चय एवं व्यवहार के आलंबन द्वारा आराधना के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी गइ है । अनुयोग याने शास्त्र की व्याख्या जिसके चार द्वार है (१) उत्क्रम (२) निक्षेप (३) अनुगम (४) नय यह आगम सब आगमों की चावी है। आगम पढने वाले को प्रथम इस आगम से शुरुआत करनी पड़ती है। यह आगम मुखपाठ करने जैसा है। ॥ इति शम्॥ श्री उत्तराध्ययन सूत्र :- परम कृपालु श्री महावीरभगवान के अंतिम समय के उपदेश इस सूत्र में हैं । वैराग्य की बातें और मुनिवरों के उच्च आचारों का वर्णन इस आगम ग्रंथ में ३६ अध्ययनों में लगभग २००० श्लोकों द्वारा प्रस्तुत हैं। ) Gain Education International 2010_03 Mora :58498499934555555555; आगमगुणमजूषा-5555555555555555555555555 ) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOKO ALLA RURU RAREO ai i ferox (9) (3) KC国乐国为乐明明明明明明明明乐明明明明明F%%%%明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明军5B Introduction 45 Agamas, a short sketch I Eleven Angas : Acäränga-sutra : It deals with the religious conduct of the monks and the Jain householders. It consists of 02 Parts of learning, 25 lessons and among the four teachings on entity, calculation, religious discourse and the ways of conduct, the teaching of the ways of conduct is the main topic here. The Agama is of the size of 2500 ślokas. Sayagadanga-sutra : It is also known as Sütra-Kytänga. It's two parts of learning consist of 23 lessons. It discusses at length views of 363 doctrine-holders. Among them are 180 ritualists, 84 nonritualists, 67 agnostics and 32 restraint-propounders, though it's main area of discussion is the teaching of entity. It is available in the size of 2000 ślokas. Thápānga-sūtra : It begins with the teaching of calculation mainly and discusses other three teachings subordinately. It introduces the topic of one dealing with the single objects and ends with the topic of eight objects. It is of the size of 7600 ślokas. Samavāyanga-sutra : This is an encompendium, introducing 01 to 100 objects, then 150, 200 to 500 and 2000 to crores and crores of objects. It contains the text of size of 1600 Slokas. Vyakhya-prajñapti-sutra : It is also known as Bhagavati-sutra. It is the largest of all the Angas. It contains 41 centuries with subsections. It consists of 1925 topics. It depicts the questions of Gautama Ganadhara and answers of Lord Mahavira. It discusses the four teachings in the centuries. This Agama is really a treasure of gems. It is of the size of more than 15000 ślokas. Jäätādharma-Kathanga-sutra : It is of the form of the teaching of the religious discourses. Previously it contained three and a half crores of discourses, but at present there are 19 religious discourses. It is of the size of 6000 ślokas. Upasaka-dasānga-sutra : It deals with 12 vows, life-sketches of 10 great Jain householders and of Lord Mahavira, too. This deals with the teaching of the religious discourses and the ways of conduct. It is of the size of around 800 Slokas. (8) Antagada-dasänga-sutra : It deals mainly with the teaching of the religious discourses. It contains brief life-sketches of the highly spiritual souls who are born to liberate and those who are liberating ones: they are Andhaka Vrsni, Gautama and other 9 sons of queen Dharini, 8 princes like Akşobhakumara, 6 sons of Devaki, Gajasukumāra, Yadava princes like Jali, Mayāli, Vasudeva Krsna, 8 queens like Rukmini. It is available of the size of 800 Slokas. Anuttarovavayi-daśãnga-sútra: It deals with the teaching of the religious discourses. It contains the life-sketches of those who practise the path of religious conduct, reach the Anuttara Vimana, from there they drop in this world and attain Liberation in the next birth. Such souls are Abhayakumāra and other 9 princes of king Srenika, Dirghasena and other 11 sons, Dhanna Anagara, etc. It is of the size of 200 ślokas. (10) Prasna-vyakarana-sūtra : It deals mainly with the teaching of the ways of conduct. As per the remark of the Nandi-satra, it contained previously Lord Mahāvira's answers to the questions put by gods, Vidyadharas, monks, nuns and the Jain householders. At present it contains the description of the ways leading to transgression and the self-control. It is of the size of 200 ślokas. (11) Vipaka-sütrānga-sūtra : It consists of 2 parts of learning. The first part is called the Fruition of miseries and depicts the life of 10 sinful souls, while the second part called the Fruition of happiness narrates illustrations of 10 meritorious souls. It is available of the size of 1200 ślokas. 图纸娱乐明明明明明明明明明明垢玩垢圳明明听听听听听听听听听听听垢乐明明明明明明明明明听听听听听听听听 (5) (6) (1) II Twelve Upangas Uvaväyi-sütra : It is a subservient text to the Acāranga-sutra. It deals with the description of Campā city, 12 types of austerity, procession-arrival of Koñika's marriage, 700 disciples of the monk Ambada. It is of the size of 1000 ślokas. Rayapaseni-sutra : It is a subservient text to Süyagađanga-sutra. It depicts king Pradesi's jurisdiction, god Suryabha worshipping the Jina idols, etc. It is of the size of 2000 ślokas. (7) (2) www.Lainelibrary XXXX XXXXL PITJUGET TOYOX Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DEFFFFFFFFFFFFFFFFFFFhible Gamin nh* HIFThe ha EEEEEEEEEEEE开F听听听听听听听听明明Ow (3) Jivābhigama-sutra : It is a subservient text to Thāṇānga-sūtra. It one Vasudeva, his son Balabhadra and his son Nişadha. deals with the wisdom regarding the self and the non-self, the Jambo continent and its areas, etc. and the detailed description of the III Ten Payanna-sutras : veneration offered by god Vijaya. The four chapters on areas, society, (1) Aurapaccakhāņa-sūtra : It deals with the final religious practice etc. published recently are composed on the line of the topics of this and the way of improving (the life so that the) death (may be Sutra and of the Pannavaņa-sutra. It is of the size of 4700 Slokas. improved). Pannavaņā-sutra : It is a subservient text to the Samavāyānga- (2) Bhattaparinna-sutra : It describes (1) three types of Pandita death, sätra. It describes 36 steps or topics and it is of the size of 8000 (2) knowledge, (3) Ingini devotee ślokas. (4) Pādapopagamana, etc. (5) Sürya-prajfapti-sutra and (4) Santhäraga-payannā-sutra : It extols the Samstäraka. Candra-prajñapti-sätra : These two falls under the teaching of the calculation. They depict the solar and the lunar transit, the ** These four payannás can also be learnt and recited by the Jain movement of planets, the variations in the length of a day, seasons, householders. ** northward and the southward solstices, etc. Each one of these Āgamas are of the size of 2200 Slokas. (5) Tandula-viyaliya-payanna-sūtra : The ancient preceptors call this Jambadvipa-prajñapti-sutra : It mainly deals with the teaching Payanna-sutra as an ocean of the sentiment of detachment. It of the calculations. As it's name indicates, it describes at length the describes what amount of food an individual soul will eat in his life objects of the Jambu continent, the form and nature of 06 corners of 100 years, the human life can be justified by way of practising a (ära). It is available in the size of 4500 Slokas. religious life. Nirayávali-pacaka : (6) Candāvijaya-payannā-sūtra : It mainly deals with the religious (8) Nirayávali-sütra : It depicts the war between the grandfather and practice that improves one's death. the daughter's son, caused of a necklace and the elephant, the death (7) Devendrathui-payanna-sutra : It presents the hymns to the Lord of king Greñika's 10 sons who attained hell after death. This war is sung by Indras and also furnishes important details on those Indras. designated as the most dreadful war of the Downward (avasarpini) (8) Maranasamadhi-payanna-sutra : It describes at length the final age. religious practice and gives the summary of the 08 chapters dealing (9) Kalpāvatamsaka-sutra : It deals with the life-sketches of with death. Kalakumara and other 09 princes of king Sreņika, the life-sketch of (9) Mahäpaccakhāņa-payanna-sutra : It deals specially with what a Padamakumpra and others. monk should practise at the time of death and gives various beneficial (10) Pupphiya-upanga-sutra : It consists of 10 lessons that covers the informations. topics of the Moon-god, Sun-god, Venus, queen Bahuputrikā, (10) Gaņivijaya-payanna-sūtra : It gives the summary of some treatise Purnabhadra, Manibhadra, Datta, sila, Bala and Aņāddhiya. on astrology (11) Pupphacultya-upanga-sutra : It depicts previous births of the 10 These 10 Payannās are of the size of 2500 ślokas. queens like Sridevi and others. Besides about 22 Payannās are known and even for these above (12) Vahnidaśa-upanga sätra : It contains 10 stories of Yadu king 10 also there is a difference of opinion about their names. The Gacchācāra Andhakavrşni, his 10 princes named Samudra and others, the tenth is taken, by some, in place of the Candāvijaya of the 10 Payannās. 明明明明明明乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐国乐乐乐乐手乐乐乐乐乐明與乐乐乐乐乐乐乐乐FFFF乐乐乐明 XOXOFF $ farmark ** F YOX Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOKOK YU BALLU BURU VERLO PLA Xoxo (1) (2) IV Six Cheda-sūtras (1) Vyavahāra-sūtra, (2) Nisītha-Sutra, (3) Mahānisitha-sūtra, (4) Pancakalpa-satra, (5) Daśāśruta-skandha-Sotra and (6) Bhatkalpa-sutra. These Chedasätras deal with the rules, exceptions and vows. The study of these is restricted only to those best monks who are (1) serene, (2) introvert, (3) fearing from the worldly existence, (4) exalted in restraint, (5) self-controlled, (6) rightfully descerning the subtlety of entity, territories, etc. (7) pondering over continuously the protection of the six-limbed souls, (8) praiseworthy, (9) exalted in keeping the tradition, (10) observing good religious conduct, (11) beneficial to all the beings and (12) Who have paved the path of Yoga under the guidance of their master. VI Two Colikas Nandi-sutra : It contains hymn to Lord Mahavira, numerous similies for the religious constituency, name-list of 24 Tirtharkaras and 11 Ganadharas, list of Sthaviras and the fivefold knowledge. It is available in the size of around 700 Slokas. Anuyogadvāra-sutra : Though it comes last in the serial order of the 45 Ágamas, the learner needs it first. It is designated as the key to all the Agamas. The term Anuyoga means explanatory device which is of four types: (1) Statement of proposition to be proved, (2) logical argument, (3) statement of accordance and (4) conclusion. * It teaches to pave the righteous path with the support of firm resolve and wordly involvements. It is of the size of 2000 ślokas. ** ********* V Four Molas atras (1) Dajavaikalika-sutra : It is compared with a lake of nectar for the monks and nuns established in the fifth stage. It consists of 10 lessons and ends with 02 Colikas called Rativakya and Vivittacariya. It is said that monk Sthūlabhadra's sister nun Yakşă approached Simandhara Svāmi in the Mahavideha region and received four Calikas. Here are incorporated two of them. (2) Uttaradhyayana-sutra : It incorporates the last sermons of Lord Mahavira. In 36 lessons it describes detachment, the conduct of monks and so on. It is available in the size of 2000 Slokas. . (3) Anuyogadvara-sutra: It discusses 17 topics on conduct, behaviour, etc. Some combine Piryaniryukti with it, while others take it as a separate Agama. Pindaniryukti deals with the method of receiving food (bhiksă or gocari), avoidance of 42 faults and to receive food, 06 reasons of taking food, 06 reasons for avoiding food, etc. Avašyaka-sútra: It is the most useful Agama for all the four groups of the Jain religious constituency. It consists of 06 lessons. It describes 06 obligatory duties of monks, nuns, house-holders and housewives. They are: (1) Samayika, (2) Caturvimšatistava, (3) Vandana, (4) Pratikramana, (5) Kāyotsarga and (6) Paccakhana. 明明明明明明明明明與乐乐乐为历历明明明明明明明明兵兵兵兵兵兵兵兵乐乐乐乐玩玩乐乐明步兵兵玩乐乐乐恩 * O YOK LOXOV L FT STATUTEUT- O 20:10 03 www.ainelibrary.org Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ H OMkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkો સરળ ગુજરાતી ભાવાય જાજા જા જા જા IT TT TT TT TT " - - - LC8乐听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明FO શ્રી ઋષભદેવસ્વામિને નમ:- શ્રી ગોડીજી - જિરાવલ્લા - સર્વોદય પાર્શ્વનાથેભ્યો નમ: - શ્રી મહાવીરાય નમ: - શ્રી ગૌતમ - સુધર્માદિ સર્વ ગણધરેભ્યો નમ:- સદ્દગુરુદેવાય નમ: ૪૫ આગમનો સંક્ષિપ્ત ભાવાર્થ સંકલન : અચલગચ્છાધિપતિ પ. પૂ. આ. ભ. શ્રી ગુણસાગરસૂરિ મ. સા. આગમ ૧ ચરણાનુયોગપ્રધાન આચારાંગ સૂત્ર - ૧ | (નોધ: દ્વાદશાંગીની રચના કરતાં પ્રથમ આચારાંગની રચના કરાય છે. દરેક ગણધરોની રચયિતા - પંચમ ગણધર શ્રી સુધર્મા સ્વામી દ્વાદશાંગીમાં બીજા અંગોના નામ જુદા જુદા હોય છે. પણ પહેલા અંગનું નામ તો આચારાંગ જ રાખવામાં આવે છે.) અન્યનામ: આચાર, વેદ, આકર, આશ્વાસ, આદર્શ, આચીર્ણ, આમોક્ષ વિ. છે. શ્રુતસ્કંધ ---- -------- ૨ પ્રથમ શ્રુતસ્કંધ અધ્યયન --- --- ૨૫ (૧) અધ્યયન: શસ્ત્રપરિજ્ઞા (જીવ - સંયમ) ઉદ્દેશક - (૧) જીવ - અસ્તિત્ત્વ ઉદ્દેશક ચૂલિકા ------------ ---- ૪ ઉત્થાનિકા. પદ - - - - - ૧૮,૦૦૦ પૂર્વભવના સ્થાનનું અજ્ઞાન. પૂર્વભવ અને પરભવ અજ્ઞાન. ઉપલબ્ધ પાઠ ------ ----- ૨૫૦૦ શ્લોક પ્રમાણ પૂર્વભવ અને પરભવ જાણવાનો હેતુ. મૂળપાઠ ગદ્યસૂત્ર સંખ્યા ---- -- ૪૦૧ આત્મવાદી આદિ. મૂળપાઠ પઘસૂત્ર સંખ્યા ------- ૧૫૪ કર્મબંધ પરિજ્ઞા. કર્મબંધ પરિજ્ઞાવાળા જ મુનિ હોય છે. (૧) બ્રહ્મચર્ય શ્રુતસ્કંધમાં સાતમું અધ્યયન (મહાપરિજ્ઞા અધ્યયન લુપ્ત) (૨) પૃથ્વીકાય ઉદ્દેશક : અહિંસા: પૃથ્વીકાયના હિંસક, જીવોનું અસ્તિત્ત્વ, અધ્યયન ---- હિંસાથી વિરતમુનિ, અવિરત દ્રવ્યલિંગી, પૃથ્વીકાયની હિંસા, તેના હેતુ, તેનું ફળ, ઉદ્દેશક ----- ફળના જાણનારા, એમાં અંધ થયેલાનું ઉદાહરણ, મૂર્ણિતનું ઉદાહરણ આપવામાં સૂત્રસંખ્યા --- આવ્યું છે. તથા હિંસાથી નિવૃત્ત થવાનો ઉપદેશ છે. ગાથા - - - - - (૩) અપૂકાય ઉદ્દેશક : આમાં અપૂકાય જીવોનું અસ્તિત્ત્વ, હિંસાથી વિરત થનાર છે. મુનિ, અવિરતદ્રવ્યલિંગી, અપૂકાયની હિંસાના હેતુ, તેનું ફળ અને અપૂકાયે આશ્રિત આચારાંગ શ્રુતસ્કંધમાં ૧૬ અધ્યયન ઘણાં જીવોનું વર્ણન છે, તથા અપૂકાયની હિંસાથી નિવૃત્ત થવાનો ઉપદેશ છે. ઉદ્દેશક ---- -------- ૩૪ (૪) અગ્નિકાય ઉદ્દેશક : એમાં અગ્નિકાય જીવોનું અસ્તિત્ત્વ, એની વેદના આદિનું ચૂલિકા ---- ----- -- ૪ વર્ણન છે. તથા એમની હિંસાથી નિવૃત્ત થનાર મુનિ, અવિરત દ્રવ્યલિંગી, તેના હેતુ, કે સૂત્રસંખ્યા ફળ આદિનું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે. અને અગ્નિકાયની હિંસાથી નિવૃત્ત થવાનો ગાથા ----- - ઉપદેશ છે. (૫) વનસ્પતિકાય ઉદ્દેશક : આમાં અણગારના લક્ષણ, સંસારનું સ્વરૂપ વગેરે જણાવીને રે SC男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男 શ્રી ભાનમગુorખંજૂષા - 8 F S S M MMS M SS. 编听听听听乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明劣明明明明明明明明明明明明明明听听听听听23 ? = 'છે P - Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26.9%%%%%%% %%%%%%%%%%%% An Irath allaL国勇勇馬男男男男男男男男55555 5 88 HOSTC8乐明明明明明明明明明明乐乐国乐乐国乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐纸兵纸所乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐乐乐乐SC વનસ્પતિકાયની બાબત જણાવી છે. વનસ્પતિકાયની હિંસાથી વિરતમુનિ, અવિરત શરુઆત કરીને સોળ પ્રકારના ભાવો જણાવી લોકસંજ્ઞાના ત્યાગની વાત છે. દ્રવ્યલિંગી, તેનું ફળ વગેરેનું વર્ણન કરી માનવ શરીર સાથે વનસ્પતિકાયની તુલના (૨) ભાવ ઉદ્દેરાક: જન્મ, જરા, મમત્વ વગેરે જુદાજુદા વર્ણનો પછી અહિંસાનો ઉપદેશ કરવામાં આવી છે. આપવામાં આવ્યો છે. (૬) ત્રસકાય ઉદ્દેશક : એમાં વિવિધ ત્રસજીવો, તેના ભિન્ન-ભિન્ન સુખદુઃખો, તેના (૩) અક્રિયા ઉદ્દેશકઃ આમાં અપ્રમાદનો ઉપદેશ, સમભાવ, આત્મગુપ્ત, રૂપવિરક્તિ, લક્ષણો તથા પૃથ્વીકાય વગેરેના આશ્રિત ત્રસાયિક જીવોનું વર્ણન છે. તેમજ અન્ય તીર્થિઓની માન્યતાનું વર્ણન કરી પ્રપંચમુક્ત મુનિની વાત છે. ત્રસકાયિકની હિંસાથી વિરત મુનિ, અવિરતદ્રવ્યલિંગી, ત્રસકાય હિંસાના હેતુ અને (૪) કષાયવમન ઉદ્દેશક : એમાં કષાય વમનની વાત જણાવી જેને બેગ ગાઇસેસર્વે ફળ જણાવી અંતે ત્રસકાયની હિંસાથી નિવૃત્ત થવાને ઉપદેશ છે. નાળg, ગે સર્વેનાજીદ બેન ના એ આચારાંગ સૂત્રના ખૂબ પ્રસિદ્ધ સૂત્રના અંતે (૭) વાયુકાય ઉદ્દેશક : એમાં વાયુકાયિકની હિંસાથી નિવૃત્ત થનાર સમર્થ વ્યક્તિનું કષાયજ્ઞાનનું સુંદર વર્ણન છે. વર્ણન છે તેમજ અહિંસક, સંયમી, વિરત મુનિ, અવિરતદ્રવ્યલિંગી, હિંસાનું ફળ, (૪) અધ્યયન: સમ્યકત્વ હિંસાપ્રચુર કર્મફળ વગેરેની વાત છે. તથા સમ્મીનું લક્ષણ બતાવી છેલ્લે છ- (૧) સમ્યકત્વવાદ ઉદ્દેશક: આમાં અહિંસા સત્યધર્મ છે, ધર્મની દઢતા, ધર્મનો ઉપદેશ, કાયજીવોની હિંસાના સર્વથા ત્યાગી મુનિની વાત જણાવી છે. ભોગીના જન્મ-મરણ, રત્નત્રયની આરાધના અને અપ્રમાદીનું વર્ણન છે. (પ્રથમ અધ્યયન પૂર્ણ) (૨) ધર્મપ્રવાહી પરીક્ષા : એમાં કર્મબંધ અને કર્મક્ષય હેતુઓમાં સમાનતા, ધર્મમાં (૨) અધ્યયનઃ લોકવિજય અપ્રમાદ, નરકમાં જન્મ-મરણ, વ્યુતવલી અને કેવલીની સમાનતાનું કથન, કર્મવેઠના (૧) સ્વજન ઉદ્દેશક : આમાં સંસારનું મૂળ કારણ, વિષયી જીવ, વિવેકહીનતા, અનિત્ય વગેરે વાતો છે. અને અારણ ભાવનાનું વર્ણન કરી આત્મોપદેશ આપવામાં આવ્યો છે. ' (૩) અનવદ્ય તપ ઉદ્દેશક : આમાં ઉપેક્ષાભાવવાળો વિજ્ઞ છે, અહિંસા, દુઃખ પરિક્ષા, (૨) અદઢતા ઉદ્દેશક: આમાં મુક્તિ, દ્રવ્યલિંગી, અ-મમત્વ, અહિંસા અને મુક્તિના આશા- પંડિત, દુઃખ ક્રોધમૂલક છે વગેરે વાતો છે. માર્ગનો ઉપદેશ આપવામાં આવ્યો છે. (૪) સંક્ષેપવચન ઉદ્દેશક: આમાં સંયમ - તપશ્ચર્યામાં વૃદ્ધિ, વીરમાર્ગ, તપથી કૃશતા, (૩) મદનિષેધ ઉદ્દેશકઃ એમાંગોત્રમદનો નિષેધ, સંયમનો ઉપદેશ, વિષયીની વિપરીત નિષ્કર્મદર્શી વગેરેની વાતો છે. પ્રરૂપણા, સંપત્તિ, મોહ, બાલજીવ વગેરેનું વર્ણન છે. (૫) અધ્યયન: લોકસાર (અવંતિ) (૪) ભોગાસક્તિ ઉદ્દેશક: આમાં ભોગથી થનારા રોગો, સંપત્તિમોહ, સ્ત્રીમોહ, કામ- (૧) એક્યર ઉદ્દેશક : આમાં હિંસા (અર્થ-અનર્થ) ની હિંસક ગતિ, વિષયેચ્છાત્યાગ, ઈચ્છાની ભયંકરતા, સ્ત્રીથી સાવધાની વગેરે વાત જણાવી અશરણ ભાવના, એકત્વ મોહ, બાલજીવ, કુરાગ્રબિંદુનું ઉદાહરણ, મોહથી જન્મમરણ, સંશયથી સંસારજ્ઞાન, ભાવના, ભોગથી વિરતિ, સંયમનું પાલન વગેરે વર્ણન છે. આસક્તિથી નરક વગેરે વાતો છે. (૫) લોકનિશ્રા ઉદ્દેશકઃ આમાં આહાર અને તેનું પરિણામ, ન મળવાથી શોક અને (૨) વિરતમુનિ ઉદ્દેશક : આમાં નિર્દોષ આહાર, નશ્વર શરીર, રત્નત્રય આરાધના, મળવાથી હર્ષ, આહાર સંગ્રહનો નિષેધ, કય-વિકયની વાત જણાવી કામભોગ, પરિગ્રહ મહાભય અને અપરિગ્રહની વાતો છે. કામી વ્યક્તિ, વિષયમૃદ્ધ, આસક્તિ, સાવઘચિકિત્સાનો નિષેધ વગેરે વાત જણાવી (૩) અપરિગ્રહ ઉદ્દેશક : આમાં અપરિગ્રહ, સમતાધર્મ, સંયમના ચાર ભાંગા, આત્મદમન, તપોધન વગેરેની વાતો છે. (૬) અ-મમત્વ ઉદ્દેશક: એમાં અહિંસક - હિંસક, અસંયત વક્તા, રતિ- અરતિ, (૪) અવ્યક્ત ઉદ્દેશક : એમાં અવ્યક્ત (અ-ગીતાર્થ) એકલવિહારી, હિત- શિક્ષા રુક્ષ શુક આહાર, સુવસુ-દુર્વસુ મુનિવગેરે જુદા જુદા પ્રકારના વર્ણનો કરી બાલાજીવ આપવાથી થતો કોપ, કર્મક્ષય માટેનો પ્રયત્ન વગેરે વાતો છે. માટે ઉપદેશ આપવામાં આવ્યો છે. (૫) હદોપમ ઉદ્દેશક: એમાં આચાર્યને જળાશયની ઉપમા આપી છે અને અહિંસાના (૩) અધ્યયન: શીતોષ્ણીય (૧) ભાવસુખ ઉદ્દેશક : આમાં ભાવનિદ્રા, ભાવ જાગરણ, અમુનિ-મુનિના વર્ણનથી જOF #FFFFF ફર્ક | શ્રી ભાગમગુખમંગૂષા - ૨ F i le 虽乐乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐坊乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明TO Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROO %%%%%%%%%%%%%%%%%% ARM 12autil multu国男男男男男%%%%% %%%%%%%%%%% % % GO乐乐乐乐乐乐买买买买买乐听听听听听听听听听听听听乐乐乐玩玩乐乐明明听听听听听听乐乐乐玩5CM મનોવિજ્ઞાનની વાતો છે. આચાર તથા ઈંગિત મરણનું મહત્ત્વ વગેરે વાતો છે. (૬) ઉન્માર્ગવર્જન ઉદ્દેશક: આમાં આજ્ઞાધર્મ, તત્ત્વદર્શન, સ્વસિદ્ધાંત અને પરસિદ્ધાંતનું (૭) પડિમા પાદપોપગમન ઉદ્દેશક : આમાં અલ પરીષહ અને લજજાપરીષહ ન છે જ્ઞાન, ગતિ-આગતિ, મુક્ત આત્માનું સ્વરૂપ વગેરે વર્ણન છે. સહન કરી શકે તો એક કટીવસ્ત્ર લેવાનું વિધાન, અચેલ તપ, પાદપોપગમન મરણની (૬) અધ્યયન: ધૂત વિધિ વગેરે વાતો છે. (૧) સ્વજન વિધૂનન ઉદ્દેશક : આમા મુક્તિમાર્ગનું ક્યન, સોળ રોગો, ધૂતવાદ વગેરેનું (૮) ભક્ત, ઈંગિત, પાદપોપગમન મરણ ઉદ્દેશક: એમાં નામ પ્રમાણે વિધિની વાતો છે. વર્ણન છે. (૯) અધ્યયન: ઉપધાન મૃત (૨) કર્મવિધૂનન ઉદ્દેશક : આમાં કુશીલ મહામુનિ, સમ્યક્દષ્ટિ, એકચર્યા વગેરે વાતો (૧) ચર્યા ઉદ્દેશક: આમાં ભગવાન મહાવીરના વિહારપરીષહની ક્ષમતા તથા તેમના ઉપદેશની વાત સાથે દેવદૂષ્ય વસ્ત્રનો ત્યાગ વગેરે વાતો છે. (૩) ઉપકરણ-શરીર વિધૂનન ઉદ્દેશક: એમાં અચેલ પરીષહ, કષાય મુક્તિ, અરતિ (૨) શય્યા ઉદ્દેશક: એમાં ભગવાન મહાવીર સ્વામીએ વિવિધ વસતિઓમાં કરેલા વગેરેનું વર્ણન છે. વિહાર વગેરેનું વર્ણન છે. (૪) ગૌરવત્રિક વિધૂનન ઉદેરાક : આમાં કુશિષ્ય, બાલ, પાપશ્રમણની વાતો કરી અંતે (૩) પરીષહ ઉદ્દેશક : આમાં ભગવાન મહાવીરનો લાદેશમાં વજભૂમિ તથા શુભ સંયમનો ઉપદેશ આપવામાં આવ્યો છે. ભૂમિમાં વિહાર અને તે દરમિયાન થયેલા પરીષહોનું વર્ણન છે. (૫) ઉપસર્ગ-સન્માન વિધૂનન ઉદ્દેશક: એમાં ઉપસર્ગસહન, ધર્મોપદેશ, કષાય વિજય (૪) આતંકિત ઉદ્દેશક: એમાં ભગવાન મહાવીરની તપશ્ચર્યા, અપ્રમત્ત જીવન વગેરેનું અને અંતે પારગામી (પાદપોપગમન) મુનિનું વર્ણન છે. વર્ણન છે. (૭) અધ્યયન મહાપરિઘ દ્વિતીય સુતસ્કંધ આ અધ્યયન અનુપલબ્ધ છે. આચારાંગ નિર્યુક્તિમાં આના આઠ ઉદ્દેશકો બતાવ્યા (૧) પ્રથમ ચૂલિકા છે, જ્યારે સમવાયાંગ ટીકામાં સાત ઉદ્દેશકો કહ્યા છે. વળી એને આઠમું અધ્યયન માન્યું છે. (૧) અધ્યયન : પિડેષણા (૮) અધ્યયન વિમોક્ષ પહેલા ઉદ્દેરાકમાં આહાર માટેના વિધાનો, પરઠવવાની વાત અને વિહાર વગેરેના કે (૧) અસમનોશ વિમોક્ષ ઉદ્દેશક : એમાં ભિક્ષુનો વ્યવહાર, આશુપ્રજ્ઞ મુનિ વગેરેનું વર્ણન વિધિ-નિષેધની વાતો છે. બીજા ઉદ્દેશકમાં સામૂહિક ભોજ, મૃતક ભોજ, ઉત્સવભોજ તેમજ અન્ય બાબતોના કા (૨) અકલ્પનીય વિમોક્ષ ઉદ્દેશક: એમાં ઔદેશિક વિગેરે છ દોષ સહિત આહાર, વસ્ત્ર, વિધિ-નિષેધની વાતો છે. પાત્ર, વસતિ ગ્રહણ કરવાનો નિષેધ વગેરે વાતો છે. ત્રીજા ઉદ્દેશકમાં રોગોત્પત્તિની સંભાવનામાં સંબડી ભોજન લેવાનો નિષેધ, સંદિગ્ધ (૩) અંગચેષ્ટાભાષિત ઉદ્દેશક : આમાં ઠીક્ષા, સમતા, અપરિગ્રહી, દિનચર્યા, એકચર્યા આહારનો નિષેધ, વરસાદ, ધુમ્મસ, ડમરી વગેરે સમયમાં ભિક્ષા માટે પ્રવેશ વિધિ, શૌચ વગેરેની વાતો છે. સ્વાધ્યાય ભૂમિ, વિહાર ભૂમિ વગેરે વાતો છે. (૪) વેહાનાદિ મરણ ઉદ્દેશક : આમાં ત્રણ વસ્ત્રધારી, એકપાત્રધારી મુનિનો આચાર, ચોથા ઉદ્દેશકમાં નિર્દિષ્ટ ફળોમાં આહાર લેવાનો નિષેધ, ગાયો દોહવાતી હોય ત્યાં S. જીર્ણવસ્ત્ર ત્યાગ તથા અસહ્ય શીતાદિકના ઉપસર્ગ થવાથી વૈહાનસ મરણ સ્વીકારવાની શું કરવાનું માર્ગમાં જીવ-જંતુ હોય કે ઘણી જ ભીડ હોય તો શું કરવાનું વગેરે વાતો છે. વાત છે. પાંચમાં ઉદ્દેશકમાં અગ્રપિંડ લેવાનો નિષેધ, ભિક્ષા માટે સમમાર્ગથી જવાનું વિધાન, (૫) ગ્લાન-ભક્ત-પરિશા ઉદ્દેશક : આમાં બે વસ્ત્ર અને એકપાત્ર ધારી શ્રમણનો માર્ગમાં અશુભ યુગલોથી લિપ્ત શરીરને લૂંછવાના વિધિ વગેરે વાતો છે. આચાર અને સેવાના ચાર ભાંગા વગેરે વાતો છે. છઠા ઉદ્દેશકમાં કૂકડા વગેરે દાણ ચરતા હોય, દેશિક (કલત્રય) થયેલો હોય (૬) એકત્વ ભાવનાઈગિત મરણ ઉદ્દેશક: આમાં એકવસ્ત્ર અને એક પાત્રધારીશ્રમણનો MC5555555555555555555555555555555555555555555555555555555555555 ROO શ્રી મામrળમકૃષr - 3 FMMM MMMMMFFFFF Mાઈ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . e 片贵兵與美国国兵兵兵兵乐乐国乐乐乐明明听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐GISM C%%%%%% % %%% %%%%%%男 u retal alg国男男男男男男男%%%%%%% % %% % વગેરે જુદી જુદી સાત વાતોમાં આહાર લેવાનો નિષેધ છે. (૫) અધ્યયન: વોષણા સાતમા ઉદેરાકમાં ઊંચા સ્થાન પર, પૃથ્વીકાય, જલકાય, અગ્નિકાય, વનસ્પતિકાય, (૧) વસ્ત્રગ્રહણ વિધિ ઉદ્દેશક : એમાં છ પ્રકારના વસ્ત્ર, ચાર પ્રકારની ચાદર, ચાર વસ્ત્ર ત્રસકાય વગેરે ઉપર મૂકેલો આહાર લેવાનો નિષેધ તથા પાણી લેવાનો વિધિ વગેરે વાતો પડિમા વગેરેની વિસ્તૃત ચર્ચા સાથે નિગ્રંથ મુનિએ લેવાના વિષે વિધિનિષેધો આપ્યા કરવામાં આવી છે. આઠમા ઉદ્દેશકમાં કેરી વગેરેનું અપ્રાસુક (સચિત્ત) લેવાનો નિષેધ તથા બીજી (૨) વસ્ત્રધારણ વિધિ ઉદ્દેશક: એમાં ભિક્ષા સમયે, સ્વાધ્યાય સ્થાનમાં, શૌચ સ્થળમાં ચૌદ જેટલી વસ્તુ અપ્રાસુક કે અપક્વ હોય તો લેવાના નિષધની વાત જણાવી છે. જતી વખતે બધા વસ્ત્રો સાથે લઈ જવાનું વિધાન તથા અટવીમાં ચોર વગેરેના ઉપદ્રવો નવમા ઉદ્દેશકમાં આહારની વિધિ, પાણી પીવાની વિધિ, માંસાહારી ઘરના આહારનો વખતે સમભાવ રાખવાની વાતો છે. ત્યાગ વગેરે વાતો જણાવી છે. (૬) અધ્યયન : પારૈષણા દસમા ઉદેરાકમાં શ્રમણસમૂહ માટે પ્રાપ્ત થયેલા આહારની પરિભોગવિધિ તથા એના એક ઉદ્દેશકમાં ત્રણ પ્રકારના પાત્રનું વિધાન, નિગ્રંથ મુનિ માટે પાત્રવિધાન શેરડી વગેરે અલ્પ ખાદ્ય પણ અધિક ત્યાજ્ય પદાર્થોનું વર્ણન છે. તથા ચાર પાત્રપડમા વગેરેનું વર્ણન છે. અગિયારમા ઉદ્દેશકમાં ગ્લાન માટે સાત પ્રકારની પિડેષણા અને સાત પ્રકારની (૭) અધ્યયન અવગ્રહ પ્રતિમા પારૈષણાની વિધિઓ બતાવી છે. પહેલા ઉદ્દેશકમાં અદત્તાદાનનો સર્વથા નિષેધ, સાથી મુનિઓની વસ્તુઓ (૨) અધ્યયન: રાÀષણા આશાપૂર્વક લેવાનું વિધાન, સોય, કાતર વગેરે પરત આપવાની વિધિ વગેરે વાતો છે. - પહેલા ઉદ્દેશકમાં ઉપાશ્રય આદિમાં ઉતરવાના વિધિ-નિષેધની સવિસ્તર માહીતિ બીજા ઉદ્દેશકમાં આમ્રવન, રોરડીવન, લસણવન, સાત અવગ્રહ પડિયા વગેરેનું વર્ણન છે. આપવામાં આવી છે. - દ્વિતીય ચૂલિકા બીજા ઉદેશક્યાં વિવિધ સ્થાનોમાં ઉતરવા માટે સવિસ્તરમાહીતિ આપવામાં આવી છે. (૮) અધ્યયનઃ સ્થાન ત્રીજા ઉદેશમાં શય્યાતર ઘર અને એ સંબંધી વીગતો તથાચાર સંસ્મારક પડિમાનો (૧) સ્થાન સપ્તકક : એના એક ઉદ્દેરાકમાં ચાર પ્રકારની સ્થાન (ધ્યાન યોગ જગ્યા) નિષેધ આપવામાં આવ્યો છે. ની પડિમાનું વર્ણન છે. ક' (૨) અધ્યયન ઈર્યા (૯) અધ્યયન: નિષાધિકા પહેલા ઉદ્દેશકમાં ચોમાસામાં વિહારના નિષેધ અને વિશેષ વિધાનોનું વર્ણન છે. (૨) નિશીપિકા સપ્તકક : એના એક ઉદ્દેશકમાં નિષાધિકા (સ્વાધ્યાય માટેના સ્થાન)નું બીજા ઉદ્દેશમાં નાવમાં બેઠા પછી આવતા ઉપસર્ગો અને વિવિધ વિહારમાર્ગોની વર્ણન તથા બેસવાના વિધિની વાત જણાવી છે. વાત છે. (૧૦) અધ્યયનઃ ઉચ્ચાર પ્રશ્રવણ - ત્રીજા ઉદ્દેશકમાં ગુરુદેવ, આચાર્ય, ઉપાધ્યાય સાથે વિવેકપૂર્વક બોલવાની વાત (૩) ઉચ્ચાર – પ્રશ્રવણ સતેજક : આમાં અંડિલભૂમિમાં મલોત્સર્ગ (શૌચ) જવાના તથા પથિકોને પ્રશ્નોના ઉત્તર આપવાનો નિષેધ વર્ણિત છે. વિધિ-નિષેધો બતાવ્યા છે તથા ઓગણીસ જેટલા સ્થાનોમાં મલોત્સર્ગ કરવાના (૪) અધ્યયન: ભાષા જાત નિષેધો છે. (૧) વચનવિભક્તિ ઉદ્દેશક : આમાં સોળ પ્રકારના વચનોનો વિવેકપૂર્વક પ્રયોગ તથા (૧૧) અધ્યયન: રાબ્દ ચાર પ્રકારની ભાષા અને એનું સૈકાલિક રૂપ વગેરેનું વર્ણન છે. (૪) શબ્દ સર્તકક : આમાં મૃદંગ, વીણા, તાલ, શંખ વગેરે વાઘ સાંભળવા. જવાનો (૨) કોધાદિ ઉત્પત્તિ વર્જન ઉદ્દેરાક : એમાં રોગી માટે, આહાર સંબંધી, મનુષ્ય-પશુ નિષેધ તથા સંગીત વગેરે સાંભળવાનો નિષેધ અને વાજિંત્ર વાગતા હોય તેવા ૧૪ સંબંધી, ફળ અને ધાન્ય સંબંધી, સ્પર્શ, રસ, ગંધ, રૂપ, શબ્દ અદિ સંબંધી સાવઘ | (ચૌદ) સ્થાનોમાં જવાનો નિષેધ છે. નિરવઘ ભાષાપ્રયોગનું વર્ણન છે. (૧૨) અધ્યયન રૂપ (૫) રૂપ સકક: એમાં ગૂંથેલી માળા વગેરે અને કિલ્લો, દરિયાકાંઠો, બગીચો, મેં OMy F\M N k% %%9A%AF % શ્રી બાગમગુનમંજૂષ - જ F VF\ \ 5 % % C玩玩乐乐乐乐乐所乐乐乐乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐听听国乐乐听听听听听听听$$$$$$$$$$NC Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ {{{{ વિવાહસ્થળ, કલહસ્થળ, વધસ્થળ વગેરે સ્થળોએ અવલોકન કરવાનો નિષેધ છે. (૧૩) અધ્યયન : પરક્રિયા (૬) પરક્રિયા સપ્તકક : આમાં ગૃહસ્થ પાસે પગપ્રમાર્જન, મર્દન, સ્પર્શ, માલીરા તેમજ લેપન કરાવવું, પગ ધોવડાવવા તથા કાંટો, રસી વગેરે કઢાવવા જેવા શરીરના જુદા જુદા ૧૩ (તેર) વિષયોનું વર્ણન તથા ચિકિત્સાની વીગતો જણાવવામાં આવી છે. (૧૪) અધ્યયન : અન્યોન્યક્રિયા સરળ ગુજરાતી ભાવાર્થ © (૧) અન્યોન્ય સપ્તકક : એમાં સાધુ પાસે પગ પ્રમાર્જન વગેરે વાતો છે. તૃતીય ચૂલિકા (૧૫) અધ્યયન : ભાવના આમાં ભગવાન મહાવીર સ્વામીના ચ્યવન, જન્મ, દીક્ષા, મોક્ષ તથા ભગવાનના કુટુંબી જનના ત્રણ ત્રણ નામ તથા પાંચ મહાવ્રતની પાંચ ભાવનાઓનું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે. ચતુર્થ ચૂલિકા (૧૬) અધ્યયન : વિમુક્તિ એમાં અનિત્ય ભાવના તેમજ મુનિને હાથી, પર્વત, સર્પ- કાંચળી અને સમુદ્ર વગેરે જુદી-જુદી ઉપમાઓ આપી છે તથા અંતકૃત્ મુનિ અને મોક્ષગામી મુનિનું વર્ણન છે. श्री आगमगुणमंजूषा ५ 19 Page #13 --------------------------------------------------------------------------  Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * આચારાંગ સૂત્ર: ભગવાન મહાવીરના ઉપસર્ગોનું વર્ણન : ૧) સંગમદેવ દ્વારા એક જ રાત્રિમાં જુદા-જુદા વીસ ઉપસર્ગો. ૨ - ૩) ગોરાળાના કારણે થયેલો ઉપસર્ગ. ૪) કટપૂતના વ્યંતરી દ્વારા રીત ઉપસર્ગ. ૫) ગોવાળિયા. દ્વારા કાનમાં ખીલા ઠોક્વાનો ઉપસર્ગ. ૬) ચોર સમજીને જેલવાસ. ૭) અનાર્ય દેશમાં થયેલા ઉપસર્ગો. મક લાવાર સૂત્ર : भगवान महावीर के उपसर्गों का वर्णन। १) संगमदेव द्वारा एक ही रात्रिमें विविध बीस उपसर्ग। २-३) गौशाला के कारण उपसर्ग । ४) कटपूतना नामक व्यंतरी द्वारा शीत उपसर्ग। ५) ग्वाल द्वारा कान में कील ठोकने का उपसर्ग। ६) चोर समझकर जेलवास दिया। ૭) બનાર્થ વૈશ મે’ ૩પસf | *Acaranga-sutra: Hindrances to Lord Mahāvīra: 1. Sangamadeva caused 20 various hindrances in a single night. 2-3 Hindrance caused due to the cow-pen. 4. Cold-hindrance caused by a semi-divine goddess called Kataputanā. 5. A cowherd fastening pegs in Lord's ear. 6. Imprisonment on a false aligation as a thief. 7. Hindrances in the non-aryan countries. Page #15 --------------------------------------------------------------------------  Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * આચારાંગ સૂત્ર: ભગવાન મહાવીરના ઉપસર્ગોનું વર્ણન: ૧) સંગમદેવ દ્વારા એક જ રાત્રિમાં જુદા-જુદા વીસ ઉપસર્ગો. ૨- ૩) ગોશાળાના કારણે થયેલો ઉપસર્ગ. ૪) કટપૂતના વ્યંતરી દ્વારા શીત ઉપસર્ગ. ૫) ગોવાળિયા દ્વારા કાનમાં ખીલા ઠોકવાનો ઉપસર્ગ. ૬) ચોર સમજીને જેલવાસ. ૭) અનાર્ય દેશમાં થયેલા ઉપસર્ગો. કલાવારસૂત્ર : भगवान महावीर के उपसर्गों का वर्णन। १) संगमदेव द्वारा एक ही रात्रिमें विविध बीस उपसर्ग । ૨- રૂ) ગૌશક્તિા છે કારણ ૩પસfl. ४) कटपूतना नामक व्यंतरी द्वारा शीत उपसर्ग। ५) ग्वाल द्वारा कान में कील ठोकने का उपसर्ग । ૬) વોર સમર નેસ્તવાસ વિત્યા | ૭) અનાર્ય ફેશ મેં પસર્ગ. *Acārānga-sutra: Hindrances to Lord Mahāvīra: 1. Sangamadeva caused 20 various hindrances in a single night. 2-3 Hindrance caused due to the cow-pen. 4. Cold-hindrance caused by a semi-divine goddess called Kataputanā. 5. A cowherd fastening pegs in Lord's ear. 6. Imprisonment on a false aligation as a thief. 7. Hindrances in the non-aryan countries. Vain Education International 2010_03 For Prvate & Personal Use Only www.ainelibrary.org Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HORO55555555555) पदम अंगसुतं - आयारो पढमो सुबक्संघो १ अन्झयणं सत्यपरिण्णा उद्देसक १-२ [ 25599hhhh hhhhhh 乐乐听听听听听听听听明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐国乐乐听听听听听听听听乐5CM सिरि उसहदेवसामिस्स णमो। सिरि गोडी - जिराउला - सव्वोदय - पासणाहाणं णमो। णमोत्थुणं समणस्स भगवओ महइ महावीर वद्धमाणसामिस्स । सिरि गोयम - सोहम्माइ सव्व गणहराणं णमो। सिरि सुगुरु - देवाणं णमो॥ पंचमगणहर-भयवं-सिरिसुहम्मसामिविरइयं पढमं अंगं आयारंगसुत्तं पढमो सुयक्खंधो १ पढमं अज्झयणं 'सत्थपरिणा' पढमो उद्देसओ १. सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं इहमेगेसिंणो सण्णा भवति । तं जहा पुरत्थिमातो वा दिसातो आगतो अहमंसि, दाहिणाओ वा दिसाओ आगतो अहमंसि, पच्चत्थिमातो वा दिसातो आगतो अहमंसि, उत्तरातो वा दिसातो आगतो अहमंसि, उड्डातो वा दिसातो आगतो अहमंसि, अधेदिसातो वा आगतो अहमंसि, अन्नतरीतो दिसातो वा अणुदिसातो वा आगतो अहमंसि, एवमेगेसिं णो णातं भवति । अत्थि मे आया उववाइए, णत्थि मे आया उववाइए, के अहं आसी, के वा इओ चुते पेच्चा भविस्सामि । २. से जं पुण जाणेज्जा सह सम्मुइयाए॥ परवागरणेणं अण्णेसिं वा अंतिए सोच्चा, तं जहा पुरत्थिमातो वा दिसातो आगतो अहमंसि एवं दक्खिणाओ वा पच्चत्थिमाओ वा उत्तराओ वा उड्ढाओ वा अहाओ वा अन्नतरीओ दिसाओ वा अणुदिसाओ वा आगतो अहमंसि, एवमेगेसिंणातं भवति । अत्थि मे आया उववाइए जो इमाओ दिसाओ वा अणुदिसाओ वा अणुसंचरति सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अणुदिसाओ सो हं । ३. से आयावादी लोगावादी कम्मावादी किरियावादी । ४. अकरिस्सं च हं, काराविस्सं च हं, करओ यावि समणुण्णे भविस्सामि । ५. एयावंति सव्वावंति लोगंसि कम्मसमारंभा परिजाणितव्वा भवंति । ६. अपरिण्णायकम्मे खलु अयं पुरिसे जो इमाओ दिसाओ वा अणुदिसाओ वा अणुसंचरति, सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अणुदिसाओ सहेति, अणेगरूवाओ जोणीओ संधेति, विरूवरूवे फासे पडिसंवेदयति । ७. तत्थ खलु भगवता परिण्णा पवेदिता । इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण-माणण-पूयणाए जाती-मरण-मोयणाए दुक्खपडिघातहेतुं । ८. एतावंति सव्वावंति लोगंसि कम्मसमारंभा परिजाणियव्वा भवंति । ९. जस्सेते लोगंसि कम्मसमारंभा परिणाया भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे त्ति बेमि। ★★★|| सत्थपरिणाए पढमो उद्देसओ समत्तो||*** बीओ उद्देसओ १०. अट्टे लोए परिजुण्णे दुस्संबोधे अविजाणए। अस्सिं लोए पव्वहिए तत्थ तत्थ पुढो पास आतुरा परितावेति । ११. संति पाणा पुढो सिता। १२. लज्जमाणा पुढो पास । 'अणगारा मो' त्ति एगे पवयमाणा, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं पुढविकम्मसमारंभेणं पुढविसत्थं समारंभमाणो अणेगरूवे पाणे विहिंसति । १३. तत्थ खलु भगवता परिण्णा पवेदिता-इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणण-पूयणाए जाती-मरण-मोयणाए दुक्खपडिघातहेउं से सयमेव पुढविसत्थं समारंभति, अण्णेहिं वा पुढविसत्थं समारंभावेति, अण्णे वा पुढविसत्थं समारंभंते समणुजाणति । तं से अहिताए, तं से अबोहीए। १४. से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाए सोच्चा भगवतो अणगाराणं इहमेगेसिंणातं भवति एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु निरए । इच्चत्थं गढिए लोए, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं पुढविकम्मसमारंभेणं पुढविसत्थं समारभमाणे अण्णे वऽणेगरूवे पाणे विहिंसति । १५. से बेमि अप्पेगे अंधमन्भे अप्पेगे अंधमच्छे, अप्पेगे पादमब्भे २, अप्पेगे गुप्फमब्भे २, अप्पेगे जंघमन्भे २, अप्पेगे जाणुमब्भे २, अप्पेगे ऊरूमब्भे २, अप्पेगे कडिमब्भे २, अप्पेगे णाभिमब्भे २, अप्पेगे उदरमब्भे २, अप्पेगे पासमब्भे २, अप्पेगे पिट्ठिमब्भे २, अप्पेगे उरमब्भे २, अप्पेगे हिययमब्भे २, अप्पेगे थणमब्भे २, अप्पेगे खंधमन्भे २, अप्पेगे बाहुमब्भे २, अप्पेगे हत्थमन्भे २, अप्पेगे अंगुलिमब्भे २, अप्पेगे णहमब्भे २, अप्पेगेगीवमब्भे २, अप्पेगे हणुमब्भे २, अप्पेगे होट्ठमब्भे २, अप्पेगे दंतमब्भे २, अप्पेगे जिब्भमब्भे २, अप्पेगे तालुमब्भे २, अप्पेगे गलमन्भे २, अप्पेगे गंडमब्भे २, अप्पेगे कण्णमब्भे २, अप्पेगे णासमब्भे २, अप्पेगे अच्छिमब्भे २, अप्पेगे भमुहमब्भे २, अप्पेगे णिडालमन्भे २, अप्पेगे सीसमन्भे २, अप्पेमे संपणारए, अप्पेगे उद्दक्या-१६. एत्थ सत्थं समास्भमाणस्स इच्चेसे आरंभा अपरिणाता भवंति। एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स इच्चेते.आरंभा परिण्णाता भवंति । १७. तं परिण्णाय मेहावीणेव सयं पुढविसत्थं समारभेज्जा, णेवऽण्णेहिं पुढविसत्थं समारभावेज्जा, णेवण्णे पुढविसत्थं समारभंते समणुजाणेज्जा। १८. जस्सेते पुढविकम्मसमारंभा परिण्णाता भवंति से हु मुणी परिणायकम्मे त्ति बेमि। ।। सत्थपरिणाए बियओ उद्देसओ समत्तो ॥★★★तइओ उद्देसओ ★★★१९. से बेमि से जहा वि अणगारे उज्जुकडे णियागपडिवण्णे अमायं कुम्वमाणे वियाहिते। २०. जाय सद्धाए णिक्खतो । સૌજન્ય :- પ. પૂ. સાધ્વીશ્રી ધૈર્યપ્રભાશ્રીજી મ.સા. ના શિષ્ય પ. પૂ. સાધ્વીશ્રી ગુણમાલાશ્રીજી મ.સા. ના શિષ્યા પ. પૂ. સાધ્વીશ્રી હિતપ્રજ્ઞાશ્રીજી ની પ્રેરણાથી શ્રેષ્ઠિવર્ય જેઠાભાઈ ખીમજી લાપસીયા કચ્છ સાંયરા 雪雪雪雪第55$$$$$历历乐%%%% 3PHTHAT'S $$$$ $$$步步步步步功新 GO乐乐乐听听听听乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听QLO Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) आयारो प.सु. १ अ. सत्थपरिण्णा उद्देसक ३-४.५ [२] C}听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐$ 乐 तमेव अणुपालिया विजहित्ता विसोत्तियं । २१. पणया वीरा महावीहिं। २२. लोगं च आणाए अभिसमेच्चा अकुतोभयं । सेबेमि णेव सयं लोगं अब्भाइक्खेज्जा, णेव अत्ताणं अब्भाइक्खेज्जा । जे लोगं अब्भाइक्खति से अत्ताणं अन्भाइक्खति, जे अत्ताणं अन्भाइक्खति से लोग अब्भाइक्खति । २३. लज्जमाणा पुढो पास। 'अणगारा मो' त्ति एगेपवयमाणा, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं उदयकम्मसमारंभेणं उदयसत्थं समारंभमाणे अण्णेवऽणेगवेपाणे विहिंसति। २४. तत्थ खलुभगवता परिण्णा पवेदिता इमस्स चेव जीवितस्स परिवंदण-माणण-पूयणाए जाती-मरण-मोयणाए दुक्खपडिघातहेतुं से सयमेव उदयसत्थं समारभति, अण्णेहिं वा उदयसत्थं समारभावेति, अण्णे वा उदयसत्थं समारभंते समणुजाणति । तं से अहिताए तं से अबोधीए । २५. से त्तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाए सोच्चा भगवतो अणगाराणं इहमेगेसिंणातं भवति-एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु निरए। इच्चत्थं गढिए लोए, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं उदयकम्मसमारंभेणं उदयसत्थं समारभमाणे अण्णे वऽणेगरूवे पाणे विहिंसति । २६. से बेमि संति पाणा उदयणिस्सिया जीवा अणेगा । इहं च खलु भो अणगाराणं उदयं जीवा वियाहिया। सत्थं चेत्थ अणुवीयि पास। पुढो सत्थं पवेदितं। अदुवा अदिण्णादाणं। २७. कप्पइणे कप्पइणे पातुं, अदुवा विभूसाए। पुढो सत्थेहिं विउद्धृति।२८. एत्थ वि तेसिंणो णिकरणाए। २९. एत्थ सत्थं समारभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति । एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिणाया भवंति । ३०. तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं उदयसत्थं समारभेज्जा, णेवण्णेहिं उदयसत्थं समारभावेज्जा, उदयसत्थं समारभंते वि अण्णे ण समणुजाणेजा। ३१. जस्सेते उदयसत्थसमारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णातकम्मे त्ति बेमि | || सत्थपरिण्णाए तइओ उद्देसओ समत्तो॥★★★चउत्थो उद्देसओ ३२. से बेमि-णेव सयं लोगं अब्भाइक्खेज्जा, णेव अत्ताणं अब्भाइक्खेज्जा । जे लोगं अब्भाइक्खति से अत्ताणं अब्भाइक्खति, जे अत्ताणं अब्भाइक्खति से लोगं अब्भाइक्खति । जे दीहलोगसत्थस्स खेत्तण्णे से असत्थस्स खेत्तण्णे, जे असत्थस्स खेत्तण्णे से दीहलोगसत्थस्स खेतण्णे । ३३. वीरेहि एयं अभिभूय दिलृ संजतेहिं सता जतेहिं सदा अप्पमत्तेहिं । जे पमत्ते गुणट्टिते से हु दंडे पवुच्चति । तं परिण्णाय मेहावी इदाणी णो जमहं पुव्वमकासी पमादेणं । ३४. लज्जमाणा पुढो पास । 'अणगारा मो' त्ति एगे पवदमाणा, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं अगणिकम्मसमारंभेणं अगणिसत्थं समारंभमाणे अण्णे वऽणेगरूवे पाणे विहिंसति । ३५. तत्थ खलु भगवता परिण्णा पवेदिता इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण-माणण-पूयणाए जाती-मरण-मोयणाए दुक्खपडिघातहेतुं से सयमेव अगणिसत्थं समारभति, अण्णेहिं वा अगणिसत्थं समारभावेति, अण्णे वा अगणिसत्थं समारभमाणे समणुजाणति । तं से अहिताए, तं से अबोधीए। ३६. से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाए सोच्चा भगवतो अणगाराणं इहमेगेसिंणातं भवति-एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु निरए। इच्वत्थं गढिए लोए, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं अगणिकम्मसमारंभेणं अगणिसत्थं समारभमाणे अण्णे वऽणेगरूवे पाणे विहिंसति । ३७. से बेमि संति पाणा पुढविणिस्सिता तणणिस्सिता पत्तणिस्सिता कट्ठणिस्सिता गोमयणिस्सिता कयवरणिस्सिया । संति संपातिमा पाणा आहच्च संपयंति य। अगणिं च खलु पुट्ठा एगे संघातमावज्जति। जे तत्थ संघातमावज्जति ते तत्थ परियावज्जति । जे तत्थ परियावज्जति ते तत्थ उद्दायति । ३८. एत्थ सत्यं समारभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाता भवंति । एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाता भवन्ति । ३९. जस्स एते अगणिकम्मसमारंभा परिण्णाता भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे त्ति बेमि ।★★★|| सत्थपरिण्णाए चउत्थो उद्देसओ सम्मत्तो | *पंचमो उद्देसओ ४०. तं णो करिस्सामि समुट्ठाए मत्ता मतिमं अभयं विदित्ता तं जे णो करए एसोवरते, एत्थोवरए, एस अणगारे त्ति पवुच्चति । ४१. जे गुणे से आवट्टे, जे आवट्टे से गुणे । उ8 अहं तिरियं पाईणं पासमाणे रूवाइं पासति, सुणमाणे सद्दाई सुणेति । उढे अहं तिरियं पाईणं मुच्छमाणे रूवेसु मुच्छति, सद्देसु यावि । एस लोगे वियाहिते। एत्थ अगुत्ते अणाणाए पुणो पुणो गुणासाते वंकसमायारे पमत्ते गारमावसे । ४२. लज्जमाणा पुढो पास । 'अणगारा मो' त्ति एगे पवदमाणा, जमिणं विरूवरूवेहि सत्थेहि वणस्सतिकम्मसमारंभेणं वणस्सतिसत्थं समारभमाणे अण्णे वऽणेगरूवे पाणे विहिंसति । ४३. तत्थ खलु भगवता परिण्णा पवेदिता-इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण-माणण-पूयणाए जाती-मरण-मोयणाए दुक्खपडिघातहेतुं से सयमेव वणस्सतिसत्थं समारभति, अण्णेहिं वा वणस्सतिसत्थं समारभावेति, अण्णे वा 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听2C 园 YOO9555555555555555555 श्री आगमगणमंजूषा - ३ 5555555555555555555555555 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FORO555555555555 (१) आयारो प.स.१ अ. सत्थपरिण्णा उद्देसक ६-७ [३] 国军事历历万事项? Hos明明5折折乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听D वणस्सतिसत्थं समारभमाणे समणुजाणति । तं से अहियाए, तं से अबोहीए। ४४. सेत्तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाए सोच्चा भगवतो अणगाराणं इहमेगेसिं णायं भवति एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णिरए। इच्चत्थं गढिए लोए, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वणस्सतिकम्मसमारंभेणं वणस्सतिसत्थं ॥ समारभमाणे अण्णे वऽणेगरूवे पाणे विहिंसति। ४५. से बेमि इमं पि जातिधम्मयं, एयं पि जातिधम्मयं; इंम पि वुड्डिधम्मयं, एयं पि वुड्डिधम्मयं; इमं पि चित्तमंतयं, एयं पि चित्तमंतयं; इमं पि छिण्णं मिलाति, एयं पि छिण्णं मिलाति; इंम पि आहारगं, एयं पि आहारगं; इमं पि अणितियं, एयं पि अणितियं; इमं पि असासयं, एयं पि असासयं; इमं पि चयोवचइयं, एयं पि चयोवचइयं; इमं पि विप्परिणामधम्मयं, एयं पि विप्परिणामधम्मयं । ४६. एत्थ सत्थं समारभमाणस्स इच्चेते आरंभा ' अपरिण्णाता भवंति । एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति। ४७. तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं वणस्सतिसत्थं समारभेज्जा, णेवऽण्णेहिं वणस्सतिसत्यं समारभावेज्जा, णेवऽण्णे वणस्सतिसत्थं समारभते समणुजाणेज्जा। ४८. जस्सेते वणस्सतिसत्थसमारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे त्ति बेमि।★★★|| सत्थपरिण्णाए पंचमोउद्देसओ सम्मत्तो॥★★★छट्ठो उद्देसओ ४९.से बेमि संतिमे तसा पाणा, तं जहा अंडया पोतया जराउया रसया संसेयया सम्मुच्छिमा उब्भिया उववातिया । एस संसारे त्ति पवुच्चति मंदस्स अवियाणओ। णिज्झाइत्ता पडिलेहित्ता पत्तेयं परिणिव्वाणं सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं ॥ भूताणं सव्वेसिंजीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं अस्सातं अपरिणिव्वाणं महब्भयं दुक्खं ति बेमि। तसंति पाणा पदिसो दिसासुय। तत्थ तत्थ पुढो पास आतुरा परिताति । संति पाणा पुढो सिता। ५०. लज्जमाणा पुढो पास। 'अणगारा मो' त्ति एगे पवदमाणा, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं तसकायसमारंभेणं तसकायसत्थं समारभमाणे अण्णे वऽणेगरूवे पाणे विहिंसति । ५१. तत्थ खलु भगवता परिण्णा पवेदिता-इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण-माणण-पूयणाए जाती-मरण-मोयणाए दुक्खपडिघायहेतुं से सयमेव तसकायसत्थं समारभति, अण्णेहिं वा तसकायसत्थं समारभावेति, अण्णे वा तसकायसत्थं समारभमाणे समणुजाणति। तं से अहिताए, तं से अबोधीए। ५२. सेत्तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाए सोच्चा भगवतो अणगाराणं इहमेगेसिंणातं भवति एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु निरए। इच्वत्थं गढिए लोए, जमिणं विरूवरूवेहि सत्येहिं तसकायकम्मसमारंभेणं तसकायसत्थं समारभमाणे अण्णे वऽणेगरूवे पाणे विहिंसति। से बेमि अप्पेगे अच्चाए वधेति, अप्पेगे अजिणाए वधेति, अप्पेगे मंसाए वहेति, अप्पेगे सोणिताए वधेति, अप्पेगे हिययाए वहिति, एवं पित्ताए वसाए पिच्छाए पुच्छाए वालाए ॥ सिंगाए विसाणाए दंताए दाढाए नहाए ण्हारुणीए अट्ठिए अट्ठिमिजाए अट्ठाए अणट्ठाए। अप्पेगे हिसिंसु मे त्ति वा, अप्पेगे हिंसंति वा, अप्पेगे हिसिस्संति वाणे वधेति । ५३. एत्थ सत्थं समारभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति। एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति । ५४. तं परिण्णाय मेधावी णेव सयं तसकायसत्यं समारभेज्जा, णेवण्णेहिं तसकायसत्थं समारभंते समणुजाणेज्जा । ५५. जस्सेते तसकायसत्थसमारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णातकम्मे त्ति बेमि ।★★★| सत्थपरिण्णाए छट्ठो उद्देसओ सम्मत्तो| सत्तमो उद्देसओ ५६. पभू एजस्स दुगुंछणाए आतंकदंसी अहियं तिक णच्चा । जे अज्झत्थं जाणति से बहिया जाणति, जे बहिया जाणति से अज्झत्थं जाणति । एतं तुलमण्णेसिं । इह संतिगता दविया णावकंखंति जीविउं । ५७. लज्जमाणा पुढो पास। 'अणगारा मो' त्ति एगे पवदमाणा, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वाउकम्मसमारंभेणं वाउसत्थं समारभमाणे अण्णे वऽणेगरूवे पाणे विहिंसति । ५८. तत्थ खलु भगवता परिण्णा पवेदिता इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण-माणण-पूयणाए जाती-मरण-मोयणाए दुक्खपडिघातहेतुंसेसयमेव वाउसत्थं समारभति, अण्णेहिं वा वाउसत्थं समारभावेति, अण्णे वा वाउसत्यं समारभंते समणुजाणति । तं से अहियाए, तं से अबोधीए। ५९. से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाए सोच्चा भगवतो अणगाराणं इहमेगेसिंणातं भवति एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णिरए । इच्वत्थं गढिए लोगे, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वाउकम्मसमारंभेणं वाउसत्थं समारभमाणे अण्णे वऽणेगरूवे पाणे विहिंसति । ६०. से बेमि संति संपाइमा पाणा आहच्च संपतंति य । फरिसं च खलु पुट्ठा एगे संघायमावति । जे तत्थ संघायमावति ते तत्थ परियाविनंति। जे तत्थ परियाविज्जति ते तत्थ उद्दायंति। एत्थ सत्थं समारभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाता %听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐圈 Mord5555 55555555555 श्री आयमगुणमंजूषा-३०9555555555555555 5 555OOK Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बफफफका (१) आयारो - प. सु. २ अ. लोगविजओ उद्देसक १-२-३ - [४] 155555555555FFEROL CIC乐乐乐乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐C भवंति । एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाता भवंति । ६१.तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं वाउसत्थं समारभेज्जा, णेवऽण्णेहिं वाउसत्थं समारभावेज्जा, णेवऽण्णे वाउसत्थं समारभंते समणुजाणेज्जा । जस्सेते वाउसत्थसमारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे त्ति बेमि । ६२. एत्थं पि जाण उवादीयमाणा, जे आयारे ण रमंति आरंभमाणा विणयं वयंति छंदोवणीया अज्झोववण्णा आरंभसत्ता पकरंति संगं । से वसुमं सव्वसमण्णागतपण्णाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज्जं पावं कम्मंणो अण्णेसिं। तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं छज्जीवणिकायसत्थं समारभेज्जा, णेवण्णेहिं छज्जीवणिकायसत्थं समारभावेज्जा, णेवण्णे छज्जीवणिकायसत्थं समारभंते समणुजाणेज्जा । जस्सेते छज्जीवणिकायसत्थसमारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे त्ति बेमि । ।। सत्थपरिण्णा समत्ता ।। २ बीअं अज्झयणं 'लोगविजयो पढमो उद्देसओ ६ ३.जे गुणे से मूलठ्ठाणे, जे मूलट्ठाणे से गुणे । इति से गुणट्ठी महता परितावेण वसे पमत्ते। तं जहा माता मे, पिता मे, भाया मे, भगिणी मे, भज्जा मे, पुत्ता मे, धूता मे, सुण्हा मे, सहि-सयण-संगंथ-संथुता मे, विवित्तोवकरण-परियट्टण-भोयण-अच्छायणं मे । इच्वत्थं गढिए लोए वसे पमत्ते अहो य राओ य परितप्पमाणे कालाकालसमुट्ठायी संजोगट्ठी अट्ठालोभी आलुपे सहसक्कारे विणिविट्ठचित्ते एत्थ सत्थे पुणो पुणो । ६४. अप्पं च खलु आउं इहमेगेसिं माणावाणं । तं जहा सोतपण्णाणेहिं परिहायमाणेहिं चक्खुपण्णाणेहि परिहायमाणेहिं घाणपण्णाणेहिं परिहायमाणेहिं रसपण्णाणेहिं परिहायमाणेहिं फासपण्णाणेहिं परिहायमाणेहिं अभिकंतं च खलु वयं सपेहाए ततो से एगया मूढभावं जणयंति। जेहिं वा सद्धिं संवसति ते वणं एगदा णियगा पुव्विं परिवदंति, सो वा ते णियगे पच्छा परिवदेज्जा । णालं ते तव ताणाए वा सरणाए वा, तुम पि तेसिंणालं ताणाए वा सरणाए वा । से ण हासाए, ण किड्डाए, ण रतीए, ण विभूसाए। ६५. इच्चेवं समुट्ठिते अहोविहाराए अंतरं च खलु इमं सपेहाए धीरे मुहृत्तमविणोपमादए। वओ अच्चेति जोव्वणंच। ६६.जीविते इहजेपमत्ता सेहता छेत्ता भेत्ता लुंपित्ता विलुंपित्ता उद्दवेत्ता उत्तासयिता अकडं करिस्सामि त्ति मण्णमाणे। जेहिं वा सद्धिं संवसति ते व णं एगया णिगया पुव्विं पोसेति, सो वा ते णियगे पच्छा पोसेज्जा । णालं ते तव ताणाए वा सरणाए वा, तुमं पि तेसिंणालं ताणाए वा सरणाए वा । ६७. उवादीतसेसेण वा संणिहिसण्णिचयो कज्जति इहमेगेसिं माणवाणं भोयणाए। ततो से एगया रोगसमुप्पाया समुप्पज्जति । जेहिं वा सद्धिं संवसति ते व णं एगदा णियगा पुव्विं परिहरंति, सो वा ते णियए पच्छा परिहरेज्जा । णालं ते तव ताणाए वा सरणाए वा, तुम पि तेसिंणाल ताणाए वा सरणाए वा । ६८. एवं जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सातं अणभिक्वंतं च खलु वयं सपेहाए खणं जाणाहि पंडिते! जाव सोतपण्णाणा अपरिहीणा जाव णेत्तपण्णाणा अपरिहिणा जाय घाणपण्णाणा अपरिहीणा जाय जीहपण्णाणा अपरिहीणा जाव फासपण्णाणा अपरिहीणा, इच्चेतेहिं विरूवरूवेहिं पण्णाणेहिं अपरिहीणेहिं आयर्ल्ड सम्म समणुवासेज्जासि त्ति बेमि । लोगविजयस्स पढमो उद्देसओ सम्मत्तो || बीओ उद्देसओ★★★६९. अरतिं आउट्टे से मेधावी खणंसि मुक्के । ७०. अणाणाए पुट्ठा वि एगे णियटृति मंदा मोहेण पाउडा। 'अपरिग्गहा भविस्सामो' समुट्ठाए लद्धे कामेऽभिगाहति । अणाणाए मुणिणो पडिलेहेति । एत्थ मोहे पुणो पुणो सण्णा णो हव्वाए णो पाराए । ७१. विमुक्का हु ते जणा जे जणा पारगामिणो, लोभमलोभेण दुगुंछमाणे लद्धे कामे णाभिगाहति । विणा वि लोभं निक्खम्म एस अकम्मे जाणति पासति, पडिलेहाए णावकंखति, एस अणगारे त्ति पवुच्चति । ७२. अहो य रातो य परितप्पमाणे कालाकालसमुट्ठायी संजोगट्ठी अट्ठालोभी आलुपे सहसक्कारे विणिविट्ठचित्ते एत्थ सत्थे पुणो पुणो। ७३. से आतबले, से णातबले, से मित्तबले, से पेच्चबले, से देवबले, से रायबले, से चोरबले, से अतिथिबले, से किवणबले, से समणबले, इच्चेतेहिं विरूवरूवेहिं कज्जेहिं दंडसमादाणं सपेहाए भया कज्जति, पावमोक्खो त्ति मण्णमाणे अदुवा आसंसाए । ७४. तं परिणाय मेहावी णेव सयं एतेहिं कज्जेहिं दंडं समारभेज्जा, णेव अण्णं एतेहिं कज्जेहिं दंडं समारभावेज्जा, णेवऽन्ने एतेहिं कज्जेहिं दंडं समारभंते समणुजाणेज्जा । एस मग्गे आरिएहिं पवेदिते जहेत्थ कुसले णोवलिपज्जासि त्ति बेमि ।।। लोगविजयस्स बिइओ उद्देसओ सम्मत्तो।।***तइओ उद्देसओ★★★ ७५. से असई उच्चागोए, असइंणीयागोए । णो हीणे, णो अतिरित्ते । णो पीहए । इति संखाए के गोतावादी ? के माणावादी ? कंसि वा एगे गिज्झे ? तम्हा पंडिते णो हरिसे, णो कुज्झे । ७६. भूतेहिं जाण पडिलेह सातं । समिते एयाणुपस्सी । तं जहा अंधत्तं बहिरत्तं मूकत्तं काणत्तं 9乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听% 5C JOj历步步步步勇玉$$$$ $$ $$ $ 听到PHP/MINI $$$$$$$$$$ $$$为$$$$ $$OC) Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 95 (१) आयारो प. सु. २ अ. लोगविजओ उद्देसक ३-४-५ [५] कुंटत्तं खुज्जत्तं वडभत्तं सामत्तं सबलत्तं । सह पमादेणं अणेगरूवाओ जोणीओ संधेति, विरूवरूवे फासे पडिसंवेदयति । ७७. से अबुज्झमाणे हतोवहते जाती-मरणं अणुपरियट्टमाणे । जीवियं पुढो पियं इहमेगेसिं माणवाणं खेत्त-वत्थु ममायमाणाणं । आरत्तं विरत्तं मणि कुंडलं सह हिरण्णेण इत्थियाओ परिगिज्झ तत्थेव रत्ता । ण एत्थ तवो वा दमो वा नियमो वा दिस्सति । संपुण्णं बाले जीविउकामे लालप्पमाणे मूढे विप्परियासमुवेति । ७८. इणमेव णावकंवंति जे जणा धुवचारिणो । जातीमरणं परिण्णांय चर संकमणे दढे ॥ १॥ णत्थि कालस्स णागमो । सव्वे पाणा पिआउया सुहसाता दुक्खपडिकूला अप्पियवधा पियजीविणो जीवितुकामा । सव्वेसिं जीवितं पयं । ७९ तं परिगिज्झ दुपयं चउप्पयं अभिजुंजियाणं संसिंचियाणं तिविधेण जा वि से तत्थ मत्ता भवति अप्पा वा बहुगा वा से तत्थ गढिते चिट्ठति भोयणा । ततो से एगंदा विप्परिसिहं संभूतं महोवकरणं भवति । तं पि से एगदा दायादा विभयंति, अदत्तहारो वा सेऽवहरति, रायाणो वा से विलुंपंति, णस्सति वा से, विणस्सति वा से, अगारदाहेण वा से डज्झति । इति से परस्सऽट्ठाए कूराई कम्माई बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासमुवेति। मुणिणा हु एतं पवेदितं । अणोतरा एते, णो य ओहं तरित्तए । अतीरंगमा एते, णो व तीरं गमित्तए । अपारंगमा एते, णो य पारं गमित्तए । आयाणिज्जं च आदाय तम्मि ठाणे ण चिट्ठति । वितह पप्प खेत्तण्णे तम्मि ठाणम्मि चिट्ठति ॥२॥ ८०. उद्देसो पासगस्स णत्थि । बाले पुण णिहे कामसमणुण्णे असमितदुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव आवट्टं अणुपर त्ति बेमि । ★★★ ॥लोगविजयस्स ततीयो उद्देसओ सम्मत्तो ॥ ★★★ चउत्थो उद्देसओ ८१ ततो से एगया रोगसमुप्पाया समुप्पज्जति । जेहिं वा सद्धिं संवसति ते व णं एगया णियगा पुव्विं परिवयंति, सो वा ते णियए पच्छा परिवएज्जा। णालं ते तव ताणाए वा सरणाए वा, तुमं पि तेसिं णालं ताणाए वा सरणाए वा । ८२. जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सायं, भोगामेव अणुसोयंति, इहमेगेसिं माणवाणं तिविहेण जा वि से तत्थ मत्ता भवति अप्पा वा बहुया वा से तत्थ गढिते चिट्ठति भोयणाए । ततो से एगया विप्परिसिहं संभूतं महोवकरणं भवति । तं पि से एगया दायादा विभयंति, अदत्तहारो वा सेऽवहरति, रायणो वा से विलुंपंति, णस्सति वा से, विणस्सति वा से, अगारदाहेण वा से डज्झति । इति से परस्स अट्ठाए कूराई कम्माई बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासमुवेति । ८३. आसं च छंदं च विगिंच धीरे । तुमं चेव तं सल्लमाहट्टु । जेण सिया तेण णो सिया । इणमेव णावबुज्झंति जे जणा मोहपाउडा । ८४. थीभि लोए पव्वहिते । ते भो ! वदंति एयाई आयतणाई । से दुक्खाए मोहाए माराए णरगाए नरगतिरिक्खाए । सततं मूढे धम्मं णाभिजाणति । ८५. उदाहु वीरे अप्पमादो महामोहे, अलं कुसलस्स पमादेणं, संत्तिमरणं सपेहाए, भेउरधम्मं सपेहाए । णालं पास। अलं ते एतेहिं । एतं पास मुणि ! महब्भयं । णातिवातेज्ज कंचणं । ८६. एस वीरे पसंसिते जे पण णिविज्जति आदाणा । ण मे देति ण कुप्पेज्जा, थोवं लब्धुं ण खिसए । पडिसेहितो परिणमेज्जा । एतं मोणं समणुवासेज्जासि त्ति बेमि।★★★ ॥ लोगविजयस्स चउत्थो उद्देसओ सम्मत्तो ॥ ★★★ पंचमो उद्देसओ ★★★ ८७. जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं लोगस्स कम्मसमारंभा कज्जंति । तं जहा अप्पणो से पुत्ताणं धूताणं सुण्हाणं णातीणं धातीणं राईणं दासाणं दासीणं कम्मकराणं कम्मकरीणं आदेसाए पुढो पहेणाए सामासाए पातरासाए संणिहिसंणिचयो कज्जति इहमेगेसिं माणवाणं भोयणाए । ८८. समुट्ठिते अणगारे आरिए आरियपणे आरियदंसी अयं संधी ति अदुक्खु । से णाइए, णाइआवए, न समणुजाणए । सव्वामगंधं परिण्णाय णिरामगंधे परिव्वए । अदिस्समाणे कय - विक्कसु । से ण किणे, ण किणावए, किणतं ण समुणुजाणए । से भिक्खू कालण्णे बालपणे मातण्णे खेयण्णे खणयण्णे विणयण्णे समयण्णे भावणे परिग्गहं अममायमाणे कालेणुट्टाई अपडिण्णे । दुहतो छित्ता णियाइ । ८९. वत्थं पडिग्गहं कंबलं पादपुंछणं उग्गहं च कडासणं एतेसु चेव जाणेज्जा । लद्धे आहारे अणगारो मातं जाणेज्जा। से जहेयं भगवता पवेदितं । लाभो त्ति ण मज्जेज्जा, अलाभो त्ति ण सोएज्जा, बहुं पि लब्धुं ण णिहे। परिग्गहाओ अप्पाणं अवसक्केज्जा । अण्णहा णं पासए परिहरेज्जा । एस मग्गे आरिएहिं पवेदिते, जहेत्थ कुसले गोवलिपिज्जासि त्ति बेमि । ९०. कामा दुरतिक्कमा । जीवियं दुप्पडिबूहगं । कामकामी खलु अयं पुरिसे, से सोयति जूरति तिप्पति पिड्डति परितप्पति । ९१. आयतचक्खू लोगविपस्सी लोगस्स अहेभागं जाणति, उद्धं भागं जाणति, तिरियं भागं जाणति, गढिए अणुपरिमाणे । संधिं विदित्ता इह मच्चिएहिं, एस वीरे पसंसिते जे बद्धे पडिमोयए । ९२. जहा अंतो तहा बाहिं, जहा बाहिं तहा अंतो। अंतो अंतो श्री फ्र Moon Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 395555555555555[ 1555555555OUrog Cs乐乐乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明C网 पूतिदेहंतराणि पासति पुढो वि सवंताई। पंडिते पडिलेहाए। से मतिमं परिण्णाय मा य हुलालं पच्चासी। मा तेसु तिरिच्छमप्पाणमावातए।९३. कासंकसे खलु अयं पुरिसे, बहुमायी, कडेण मूढे, पुणोतं करेति लोभं, वेरं वड्डेति अप्पणो। जमिणं परिकहिज्जइ इमस्स चेव पडिबूहणताए। अमरायइ.महासड्ढी । अट्ठमेतं तु पेहाए। अपरिणाए कंदति । ९४. से तं जाणह जमहं बेमि । तेइच्छं पंडिए पवयमाणे से हंता छेत्ता भेत्ता लुंपित्ता विलुपित्ता उद्दवइत्ता 'अकडं करिस्सामि' त्ति मण्णमाणे, जस्स वि य णं करेइ । अलं बालस्स संगेणं, जे वा से कारेति बाले । ण एवं अणगारस्स जायति त्ति बेमि। लोगविजयस्स पंचमो उद्देसओ सम्मत्तो || छट्ठो उद्देसओ XXX९५. सेत्तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाए तम्हा पावं कम्मं णेव कुज्जा ण कारवे । ९६. सिया तत्थ एकयरं विप्परामुसति छसु अण्णयरम्मि कम्पति । सुहट्ठी लालप्पमाणे सएण दुक्खेण मूढे विप्परियासमुवेति । सएण विप्पमाएण पुढो वयं पकुव्वति जंसिमे पाणा पव्वहिता । ९७. पडिलेहाए णो णिकरणाए। एस परिण्णा पवुच्चति कम्मोवसंती। जे ममाइयमति जहाति से जहाति ममाइतं । से हु दिट्ठपहे मुणी जस्स णत्थि ममाइतं । तं परिण्णाय मेहावी विदित्ता लोगं, वंता लोगसण्णं, से मतिमं परक्कमेज्जासि त्ति बेमि । ९८.णारतिं सहती वीरे, वीरे णो सहती रतिं । जम्हा अविमणे वीरे तम्हा वीरेण रज्जति ||३||९९. सद्दे फासे अधियासमाणे णिव्विंद णंदि इह जीवियस्स। मुणी मोणं समादाय धुणे कम्मसरीरगं । पंतं लूहं सेवंति वीरा सम्मत्तदंसिणो । एस ओघंतरे मुणी तिण्णे मुत्ते विरते वियाहिते त्ति बेमि । १००. दुव्वसुमुणी अणाणाए, तुच्छए गिलाति वत्तए। १०१. एस वीरे पसंसिए अच्चेति लोगसंजोगं । एस णाए पवुच्चति । जं दुक्खं पवेदितं इह माणवाणं तस्स दुक्खस्स कुसला परिण्णमुदाहरंति, इति कम्मं परिण्णाय सव्वसो । जे अणण्णदंसी से अणण्णारामे, जे अणण्णारामे से अणण्णदंसी। १०२. जहा पुण्णस्स कत्थति तहा तुच्छस्स कत्थति । जहा तुच्छस्स कत्थति तहा पुण्णस्स कत्थति। अवि य हणे अणातियमाणे। एत्थं पिजाण सेयं तिणत्थि। केऽयं पुरिसे कं च णए। १०३. एस वीरे पसंसिए जे बद्धे पडिमोयए, उड्ढं अहं तिरियं दिसासु, से सव्वतो सव्वपरिण्णाचारीण लिप्पति छणपदेण वीरे ।१०४.से मेधावी जे अणुग्घातणस्स खेत्तण्णे जे य बंधपमोक्खमण्णेसी। कुसले पुण णो बद्धे णो मुक्के। से जंच आरभे, जं चणारभे, अणारद्धं च ण आरभे। छणं छणं परिण्णाय लोगसण्णं च सव्वसो। १०५. उद्देसो पासगस्सणत्थि। बाले पुण णिहे कामसमणुण्णे असमितदुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव आवर्ल्ड अणुपरियट्टति त्ति बेमि ॥बीयमज्झयणं लोगविजयो सम्मत्तं ॥ ३ तइअं अज्झयणं 'सीओसणिज्ज पढमो उद्देसओ १०६. सुत्ता अमुणी मुणिणो सया जागरंति । लोगंसि जाण अहियाय दुक्खं । समयं लोगस्स जाणित्ता एत्थ सत्योवरते । १०७. जस्सिमे सदा य रूवा य गंधा य रसा य फासा य अभिसमण्णागता भवंति से आतवं णाणवं वेयवं धम्मवं बंभवं पण्णाणेहिं परिजाणति लोगं, मुणी ति वच्चे धम्मविदु त्ति अंजू आवट्टसोए संगमभिजाणति । सीतोसिणच्चागी से णिग्गंथे अरति-रतिसहे फारुसियं णो वेदेति, जागर-वेरोवरते वीरे! एवं दुक्खा पमोक्खसि । १०८. जरा-मच्चुवसोवणीते णरे सततं मूढे धम्म णाभिजाणति । पासिय आतुरे पाणे अप्पमत्तो परिव्वए। मंता एवं मतिमं पास, आरंभजं दुक्खमिणं ति णच्चा, मायी पमायी पुणरेति गन्भं । उवेहमाणो सद्द-रूवेसु अंजू माराभिसंकी मरणा पमुच्चति । १०९. अप्पमत्तो कामेहिं, उवरतो पावकम्मेहिं, वीरे आतगुत्ते खेयण्णे । जे पज्जवजातसत्थस्स खेतण्णे से असत्थस्स खेतण्णे जे असत्थस्स खेतण्णे से पज्जवजातसत्थस्स खेतण्णे। ११०. अकम्मस्स ववहारोण विज्जति। कम्मुणा उवाधि जायति । १११. कम्मं च पडिलेहाए कम्ममूलं च जं छणं, पडिलेहिय सव्वं समायाय दोहिं अंतेहिं अदिस्समाणे तं परिण्णाय मेधावी विदित्ता लोग वंता लोगसण्णं से मतिमं परक्कमेज्जासित्ति बेमि।।। सीओसणिज्जस्स पढमो उद्देसओ सम्मत्तो॥XXबीओ उद्देसओ★★★११२. जातिं च बुद्धिं च इहऽज्ज पास, भूतेहिं जाण पडिलेह सातं । तम्हाऽतिविज्जं परमं ति णच्चा सम्मत्तदंसी ण करेति पावं ॥४॥ ११३. उम्मुंच पासं इह मच्चिएहिं, आरंभजीवी उ भयाणुपस्सी। कामेसु गिद्धा णिचयं करेति, संसिच्चमाणा पुणरेति गम्भं ।।५।। ११४. अवि से हासमासज्ज, हंता णंदीति मण्णति । अलं बालस्स संगणं, वेरं वड्डेति अप्पणो॥६॥११५. तम्हाऽतिविजं परमं ति णच्चा, आयंकदंसी ण करेति पावं के । अग्गं च मूलं च विगिंच धीरे, पलिछिदियाणं णिक्कम्मदंसी ॥७॥११६. एस मरणा पमुच्चति, से हु दिट्ठभये मुणी। लोगंसि परमदंसी विवित्तजीवी उवसंते समिते GO听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明2 HOROS555555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूवा-59555555555555555555555OOR Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LO395555555555555 (१) आयारो - प. सु. ३ अ. सीओसणिज्नं उद्देसक २-३.४/४ अ. सम्मत्तं उद्देसक १ [७] 9555555555 O OK CEC%听听听听听听乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐SO र सहिते सदा जते कालकंखी परिव्वए। बहुं च खलु पावं कम्मं पगडं । ११७. सच्चंसि धितिं कुव्वह । एत्थोवरए मेहावी सव्वं पावं कम्मं झोसेति । ११८. अणेगचित्ते, खलु अयं पुरिसे, से केयणं अरिहइ पूरइत्तए। से अण्णवहाए अण्णपरियावाए अण्णपरिग्गहाए जणवयवहाए जणवयपरिवायाए जणवयपरिग्गहाए। ११९. आसेवित्ता एयमढे इच्चेवेगे समुट्ठिता । तम्हा तं बिइयं नासेवते णिस्सारं पासिय णाणी। उववायं चयणं णच्चा अणण्णं चर माहणे। से ण छणे, न छणावए, छणतं णाणुजाणति । णिव्विंद णंदि अरते पयासु अणोमदंसी णिसण्णे पावेहि कम्मेहि। १२०. कोधादिमाणं हणिया य वीरे, लोभस्स पासे णिरयं महंतं । तम्हा हि वीरे विरते वधातो, छिदिज्ज सोतं लहुभूयगामी ।।८।। १२१. गंथं परिण्णाय इहऽज्ज वीरे, सोयं परिणाय चरेज दंते। उम्मुग्ग लद्धं इह माणवेहिं, णो पाणिणं पाणे समारभेज्जासि ॥९॥ त्ति बेमि। ॥सीओसणिजस्स बीओ उद्देसओ सम्मत्तो | तईओ उदेसआ★★★१२२. संधिं लोगस्स जाणित्ता आततो बहिया पास। तम्हा ण हंता ण विघातए। जमिणं अण्णमण्णवितिगितिगिंछाए पडिलेहाए ण करेति पावं कम्मं किं तन्थ मुणी कारणं सिया ? । १२३. समयं तत्थुवेहाए अप्पाणं विप्पसादए । अणण्णपरमं णाणी णो पमादे कयाइ वि । आतगुत्ते सदा वीरे जातामाताए जावए ॥१०॥ विरागं रूवेहिं गच्छेज्जा महता खुड्डएहिं वा । आगतिं गतिं परिण्णाय दोहिं वि अंतेहिं अदिस्समाणेहिं से ण छिज्जति, ण भिज्जति, ण डज्झति, ण हम्मति कंचणं सव्वलोए। १२४. अवरेण पुव्वं ण सरंति एगे किमस्स तीतं किं वाऽऽगमिस्सं । भासंति एगे इह माणवा तु जमस्स तीतं तं आगमिस्सं ॥११॥णातीतमटुं ण य आगमिस्सं अटुं णियच्छंति तथागता उ। विधूतकप्पे एताणुपस्सी णिज्झोसइत्ता । का अरती के आणंदे ? एत्थंपि अग्गहे चरे । सव्वं हासं परिच्चज्ज अल्लीणगुत्तो परिव्वए । १२५. पुरिसा ! तुममेव तुमं मित्तं, किं बहिया मित्तमिच्छसि ? जं जाणेज्जा उच्चालयितं तं जाणेज्जा दूरालयितं, जं जाणेज्जा दूरालइतं तं जाणेज्जा उच्चालयितं । १२६. पुरिसा ! अत्ताणमेव अभिणिगिज्झ, एवं दुक्खा पमोक्खसि । १२७. पुरिसा ! सच्चमेव समभिजाणाहि । सच्चस्स आणाए से उवट्ठिए मेधावी मारं तरति । सहिते धम्ममादाय सेयं समणुपस्सति । दुहतो जीवियस्स परिवंदणमाणण-पूयणाए, जंसि एगे पमादेति । सहिते दुक्खमत्ताए पुट्ठो णो झंझाए । पासिमं दविए लोगालोगपवंचातो मुच्चति त्ति बेमि ।XXX॥सीओसणिज्जस्स तृतीयोद्देशक: || चउत्थो उद्देसओ ★★★१२८. से वंता कोहं च माणं च मायं च लोभं च । एतं पासगस्स दंसणं उवरतसत्थस्स पलियंतकरस्स, आयाणं सगडब्भि । १२९. जे एगं जाणति से सव्वं जाणति, जे सव्वं जाणति से एगे जाणति । सब्वतो पमत्तस्स भयं, सव्वतो अप्पमत्तस्स णत्थि भयं । जे एगणामे से बहुणामे, जे बहुणामे से एगणामे। दुक्खं लोगस्स जाणित्ता, वंता लोगस्स संजोगं, जंति वीरा महाजाणं । परेण परं जंति, णावकंखंति जीवितं । एगं विगिंचमाणे पुढो विगिंचइ, पुढो विगिंचमाणे एगं विगिंचइ सड्डी आणाए मेधावी । लोगं च आणाए अभिसमेच्चा अकुतोभयं । अत्थि सत्थं परेण परं, णत्थि असत्थं परेण परं। + १३०. जे कोहदंसी से माणदंसी, जे माणदंसी से मायदंसी, जे मायदंसी से लोभदंसी, जे लोभदंसी से पेज्जदंसी, जे पेजदंसी से दोसदंसी, जे दोसदंसी से मोहदंसी, जे मोहदंसी से गब्भदंसी, जे गब्भदंसी से जम्मदंसी, जे जम्मदंसी से मारदंसी, जे मारदंसी से णिरयदंसी, जे णिरयदंसी से तिरियदंसी, जे तिरियदंसी से दुक्खदंसी। से मेहावी अभिणिवट्टेज्जा कोधं च माणं च मायं च लोभं च पेजं च दोसंच मोहं च गन्भं च जम्मं च मारं च णरगं च तिरियं च दुक्खं च । एयं पासमस्स दंसणं उवरयसत्थस्स पलियंतकरस्स आयाणं निसिद्धा सगडब्भि । १३१. किमत्थि उवधी पासगस्स, ण विज्जति ? णत्थि त्ति बेमिमा सीतोसणिज्ज ततियमज्झयणं सम्मत्तं ॥ चउत्थं अज्झयणं 'सम्मत्तं पढमो उद्देसओ★★★ १३२. से बेमि जे य अतीता जे य पडुप्पण्णा जे य आगमिस्सा अरहता भगवंता ते सव्वे एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेति, एवं परूवेति सव्वे पाणा सव्वे भूता सव्वे जीवा सव्वे सत्ता ण हंतव्वा, ण अज्जावेतव्वा, ण परिघेधत्तव्वा, ण परितावेयव्वा, ण उद्दवेयव्वा । एस धम्मे सुद्धे णितिए सासए समेच्च लोयं खेतण्णेहिं पवेदिते । तं जहा उट्ठिएसु वा अणुट्ठिएसुवा, उवट्ठिएसु वा अणुवट्ठिएसु वा, उवरतदंडेसु वा अणुवरतदंडेसु वा, सोवधिएसु वा अणुवहिएसु वा, संजोगरएसु वा असंजोगरएसु वा । १३३. तच्चं चेतं तहा चेतं 9乐听听听听明听听听听听听听听乐$$$$$明明明明明玩乐乐乐听听乐乐明明明明明明明明明明明明明明明FOTO MO:555555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा-1555555555555555555555555 HORORK Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOR945555 (१) आयारो - प. सु. ४ अ. सम्मत्तं - उद्देसक २.३.४ [८] ... 5555555555Forg MOOCs玩乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐明明明明明明明明明乐乐乐CD अस्सिं चेतं पवुच्चति । तं आइत्तु ण णिहे ण णिक्खिवे, जाणित्तु धम्मं जहा तहा। दिटेहिं णिव्वेयं गच्छेज्जा । णो लोगस्सेसणं चरे । जस्स णत्थि इमा णाती अण्णा तस्स कतो सिया। दि8 सुतं मयं विण्णायं जमेयं परिकहिज्जति । समेमाणा पलेमाणा पुणो पुणो जातिपकप्ती । अहो य रातोय जतमाणे धीरे सया आगतपण्णाणे, पमत्ते बहिया पास, अप्पमत्ते सया परक्कमेज्जासि त्ति बेमि | |सम्मत्तस्स पढमो उद्देसओ सम्मत्तो ||★★★बीओ उद्देसओ १३४. जे आसवा ते परिस्सवा, जे परिस्सवा ते आसवा । जे अणासवा ते अपरिस्सवा, जे अपरिस्सवा ते अणासवा । एते य पए संबुज्झमाणे लोगं च आणाए अभिसमेच्चा पुढो पवेदितं आघाति णाणी इह माणवाणं संसारपडिवण्णाणं संबुज्झमाणाणं विण्णाणपत्ताणं । अट्ठा वि संता अदुवा पमत्ता । अहासच्चमिणं ति बेमि । णाऽणाममो मच्चुमुहस्स अस्थि । इच्छापणीता चंकाषिकेया कालगहीता णिचये णिचिट्ठा पुढो मुढोजाइंफ्कप्पेति । १३५. इहमेगेसिंत्तत्थ तत्थ संथवोभवति । अहोववातिए फासे पडिसंवेदयंति। चिट्ठे कूरेहिं कम्मेहिं चिट्ट परिविचिट्ठति । अचिट्ठे कूरेहिं कम्मेहिं णो चिट्ट परिविचिट्ठति । एगे वदंति अदुवा वि णाणी, णाणी वदंति अदुवा वि एगे। १३६. आवंती के आवंती लोयंसि समणा य माहणा य पुढो विवादं वदंति से दिटुं च णे, सुयं च णे, मयं च णे, विण्णायं च णे, उड्डे अहं तिरियं दिसासु सव्वतो सुपडिलेहितं च णे 'सव्वे पाणा सव्वे जीवा सव्वे भूता सव्वे सत्ता हंतव्वा, अज्जावेतव्वा, परिघेत्तव्वा, परितावेतव्वा, उद्दवेतव्वा । एत्थ वि जाणह णत्थेत्थ दोसो'। अणारियवयणमेयं । १३७. तत्थ जे ते आरिया ते एवं वदासी से दुद्दिढ़ च भे, दुस्सुयं च भे, दुम्मयं च भे, दुव्विण्णायं च भे, उड्ढे अहं तिरिय दिसासु सव्वतो दुप्पडिलेहितं च भे, जं णं तुब्भे एवं आचक्खह, एवं भासह, एवं पण्णवेह, एवं परूवेह 'सव्वे पाणा सव्वे भूता सव्वे जीवा सव्वे सत्ता हंतव्वा, अज्जावेतव्वा, परिघेत्तव्वा, परितावेयव्वा, उद्दवेतव्वा । एत्थ वि जाणह णत्थेत्थ दोसो।' अणारियवयणमेयं । १३८. वयं पुण एवमाचिक्खामो, एवं भासामो, एवं पण्णवेमो, एवं परूवेमो 'सव्वे पाणा सव्वे भूता सव्वे जीवा सव्वे सत्ता ण हंतव्वा, ण अज्जावेतव्वा, ण परिघेत्तव्वा, ण परियावेयव्वा, ण उद्देवेतव्वा । एत्थ वि जाणह णत्थेत्थ दोसो।' आरियवयणमेयं । १३९. पुव्वं णिकाय समयं पत्तेयं पुच्छिस्सामो हं भो पावादुया ! किं भे सायं दुक्खं उताहु असायं ? समिता पडिवण्णे या वि एवं बूया सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं भूताणं सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं असायं अपरिणिव्वाणं महब्भयं दुक्खं ति त्ति बेमि ।★★★सम्मत्तस्स बीओ उद्देसओ सम्मत्तो ॥★★★ तईओ उद्देसओ १४०. उवेहेणं बहिता य लोकं । से सव्वलोकंसि जे केइ विण्णू । अणुवियि पास णिक्खित्तदंडा जे केइ सत्ता पलियं चयंति णरा मुतच्चा धम्मविदु त्ति अंजू आरंभजं दुक्खमिणं ति णच्चा । एवमाहु सम्मत्तदंसिणो । ते सव्वे पावादिया दुक्खस्स कुसला परिण्णमुदाहरंति इति कम्मं परिण्णाय सव्वसो। १४१. इह आणाकंखी पंडिते अणिहे एगमप्पाणं सपेहाए धुणे सरीरं, कसेहि अप्पाणं, जरेहि अप्पाणं । जहा जुन्नाई कट्ठाइं हव्ववाहो पमत्थति एवं अत्तसमाहिते अणिहे । १४२. विगिंच कोहं अविकंपमाणे इमं निरुद्धाउयं सपेहाए । दुक्खं च जाण अदुवाऽऽगमेस्सं । पुढो फासाइं च फासे । लोयं च पास विप्कंदमाणं । जे णिव्वुडा पावेहि कम्मेहिं अणिदाणा ते वियाहिता । तम्हाऽतिविज्जो णो पडिसंजलेज्जासि त्ति बेमि ।*सम्मत्तस्स तइओ उद्देसओ सम्मत्तो ||चउत्थो उद्देसओ १४३. आवीलए पवीलए णिप्पीलए जहित्ता पुव्वसंजोगं हिच्चा उवसमं । तम्हा अविमणे वीरे सारए समिए सहिते सदा जते। दुरणुचरो मग्गो वीराणं अणियट्टगामीणं । विगिंच मंस-सोणितं । एस पुरिसे दविए वीरे आयाणिज्जे वियाहिते जे धुणाति समुस्सयं वसित्ता बंभचेरंसि । १४४. णेत्तेहिं पलिछिण्णेहिं आताणसोतगढिते बाले अव्वोच्छिण्णबंधणे अणभिक्कंतसंजोए । तमंसि अविजाणओ आणाए लभो णत्थि त्ति बेमि । १४५. जस्स णत्थि पुरे पच्छा मज्झे तस्स कुओ सिया ? । से हु पन्नाणमंते बुद्धे आरंभोवरए। सम्ममेतं ति पासहा । जेण बंधं वहं घोरं परितावं च दारुणं । पलिछिदिय बाहिरगं च सोतं णिक्कम्भदंसी इह मच्चिएहिं। कम्मुणा सफलं दटुं ततो णिज्जाति वेदवी। १४६. जे खलु भो वीरा समिता सहिता सदा जता संथडदंसिणो आतोवरता अहा तहा लोगं उवेहमाणा पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं इति सच्चंसि परिविचिट्ठिसु । साहिस्सामो णाणं वीराणं समिताणं सहिताणं सदा जताणं संथडदंसीणं आतोवरताणं अहा तहा लोकमुवेहमाणाणं किमत्थि उवधी पासगस्स, ण विज्जति ? णत्थि त्ति बेमि। । चउत्थमज्झयणं सम्मत्तं ।। ५पंचमं अज्झयणं 'आवंती' अहवा 'लोगसारो' पढमो उद्देसओ १४७. आवंती केआवंती लोयंसि विप्परामसंति अट्ठाए अणट्ठाए व, एतेसु चेव विप्परामसंति । गुरू से कामा। 055555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा- 755555555555555555555555555$OORS g乐听听乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听心 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ POR95555555555555 (१) आयारो - प.सु. ५ अ. लोगसारो उद्देसक १.२.३-४ [१] 历牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙NO MERIO555555 $$$$听听听听听听听乐 听听听听听听听听听听听听乐听听听听听听 听听听听听听听听听听听听 ततो से मारस्स अंतो । जतो से मारस्स अंतो ततो से दूरे। १४८. णेव से अंतो णेव से दूरे। से पासति फुसितमिव कुसग्गे पणुण्णं णिवतितं वातेरितं । एवं बालस्स जीवितं मंदस्स अविजाणतो। कूराणि कम्माणि बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासमुवेति, मोहेण गम्भं मरणाइ एति । एत्थ मोहे पुणो पुणो। १४९. संसयं परिजाणतो संसारे परिणाते भवति, संसयं अपरिजाणतो संसारे अपरिण्णाते भवति । जे छेये सागारियं ण से सेवे । कट्ट एवं अविजाणतो बितिया मंदस्स बालिया। लद्धा हुरत्था पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा अणासेवणयाए त्ति बेमि । पासह एगे रूवेसु गिद्धे परिणिज्जमाणे । एत्थ फासे पुणो पुणो। १५०. आवंती केआवंती लोयंसि आरंभजीवी एतेसु चेव आरंभजीवी । एत्थ वि बाले परिपच्चमाणे रमति पावेहि कम्महिं असरणं सरणं ति मण्णमाणे। १५१. इहमेगेसिं एगचरिया भवति । से बहुकोहे बहुमाणे बहुमाए बहुलोभे बहुरते बहुणडे बहुसढे बहुसंकप्पे आसवसक्की पलिओछण्णे उद्वितवादं पवदमाणे, मा मे केइ अदक्खु अण्णाणपमाददोसेणं । सततं मूढे धम्मं णाभिजाणति । अट्ठा पया माणव ! कम्मकोविया, जे अणुवरता अविज्जाए पलिमोक्खमाहु, आवळं अणुपरियद॒ति त्ति बेमि | ***॥ आवंतीए पढमो उद्देसओ सम्मत्तो॥★★★बीओ उद्देसओ १५२. आवंती केआवंती लोगंसि अणारंभजीवी, एतेसु चेव अणारंभजीवी । एत्थोवरते तं झोसमाणे अयं संधी ति अदक्खु, जे इमस्स विग्गहस्स अयं खणे त्ति अन्नेसी। एसमग्गे आरिएहिं पवेदिते। उठ्ठितेणोपमादए जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सातं । पुढोछंदा इह माणवा है ।पुढो दुक्खं पवेदितं । से अविहिंसमाणे अणवयमाणे पुट्ठो फासे विप्पणोल्लए। एस समियापरियाए वियाहिते। १५३. जे असता पावेहि कम्मेहिं उदाहु ते आतंका फुसंति ई । इति उदाहु धीरे । ते फासे पुट्ठोऽधियासते। से पुव्वं पेतं पच्छा पेतं भेउरधम्म विद्धंसणधम्म अधुवं अणितियं असासतं चयोवचइयं विप्परिणामधम्मं । पासह एयं रूवसंधिं । समुपेहमाणस्स एगायतणरतस्स इह विप्पमुक्कस्स णत्थि मग्गे विरयस्स त्ति बेमि । १५४. आवंती केआर्वती लोगंसि परिग्गहावंती, से अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा एतेसु चेव परिग्गहावंती। एतदेवेगेसिं महब्भयं भवति । लोगवित्तं च णं उवेहाए । एते संगे अविजाणतो । १५५. से सुपडिबुद्धं सूवणीयं ति णच्चा पुरिसा ! परमचक्खू । विपरिक्कम । एतेसु चेव बंभचेरं त्ति बेमि । से सुतं च मे अज्झत्थं च मे - बंधपमोक्खो तुज्झज्झत्थेव । १५६. एत्थ विरते अणगारे दीहरायं तितिक्खते । पमते बहिया पास, अप्पमत्तो परिव्वए । एयं मोणं सम्मं अणुवासेज्जासि त्ति बेमि ।***॥ आवंतीए बीओ उद्देसओ समत्तो ||★★★ तईओ उद्देसओ १५७. आवंती केआवंती लोगंसि अपरिग्गहावंती, एएसुचेव अपरिग्गहावंती। सोच्वा वई मेधावी पंडियाणं निसामिया । समियाए धम्मे आरिएहिं पवेदिते । जहेत्थ मए संधी झोसिते एयमण्णत्थ संधी दुज्झोसए भवति । तम्हा बेमिणो णिहेज्ज वीरियं । १५८. जे पुव्वुठ्ठाई णो पच्छाणिवाती। जे पुव्वुट्ठाई पच्छाणिवाती । जे णो पुवुट्ठाई णो पच्छाणिवाती । से वि तारिसए सिया जे परिण्णाय लोगमण्णेसिति । एवं णिदाय मुणिणा पवेदितं । इह आणाकंखी पंडिते अणिहे पुव्वावररायं जतमाणे सया सीलं सपेहाए सुणिया भवे अकामे अझंझे । १५९. इमेण चेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झेण बज्झतो ? जुद्धारिहं खलु दुल्लभं । जहेत्थ कुसलेहिं परिण्णाविवेगे भासिते । चुते हु बाले गब्भातिसु रज्जति । अस्सिं चेतं पवुच्चति रूवंसि वा छणंसि वा । से हु एगे संविद्धपहे मुणी अण्णहा लोगमुवेहमाणे १६०. इति कम्मं परिण्णाय सव्वसो से ण हिंसति, संजमति, णो पगब्भति, उवेहमाणे पत्तेयं सातं, वण्णादेसी णारभे कंचणं सव्वलोए एगप्पमुहे विदिसप्पतिण्णे णिव्विण्णचारी अरते पयासु । से वसुमं सव्वसमण्णागतपण्णाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज्ज पावं कम्मं तं णो अण्णेसी। १६१.जं सम्मं ति पासहा तं मोणं ति पासहा, जं मोणं ति पासहा तं सम्मं ति पासहा। ण इमं सक्वं सिढिलेहिं अद्दिज्जमाणेहिं गुणासाएहिं वंकसमायारेहिं पमत्तेहिं गारमावसंतेहिं । मुणी मोणं समादाय धुणे सरीरगं । भ पंतं लूहं सेवंति वीरा सम्मत्तदंसिणो । एस ओहंतरे मुणी तिण्णे मुत्ते विरते वियाहिते त्ति बेमि। ** आवंतीए ततिओ उद्देसओ सम्मत्तो॥*** चउत्थो उद्देसओ १६२. गामाणुगाम दूइज्जमाणस्स दुज्जातं दुप्परक्वंतं भवति अवियत्तस्स भिक्खुणो। वयसा वि एगे बुइता कुप्पंति माणवा । उण्णतमाणे य णरे महता मोहेण मुज्झति। संबाहा बहवे भुज्जो २ दुरतिक्कमा अजाणतो अपासतो। एतं ते मा होउ। एयं कुसलस्स दंसंणं । तद्दिट्ठीए तम्मुत्तीए तप्पुरकारे तस्सण्णी तण्णिवेसणे, जयं विहारी चित्तणिवाती पंथणिज्झाई पलिबाहिरे पासिय पाणे गच्छेज्जा । से अभिक्कममाणे पडिक्कममाणे संकुचेमाणे पसारेमाणे विणियट्टमाणे संपलिमज्जमाणे। REEEEEEEEEEEE श्री आगमगणमंजषा- 94544 For Personal use only GTVCF%乐乐于玩乐乐乐明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FIC www.jainelibrary.ore URS Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FAGR95555 (१) आयारो - प. सु. ५ अ. लोगसारो- उद्देसक ४-५-६ [१०] 15555555555550og 1555555598GORY 555555555 HOTO乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐场乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听纸505C १६३. एगया गुणसमितस्स रीयतो कायसंफासगणुचिण्णा एगतिया पाणा उद्दायंति, इहलोगवेदणवेज्जावडियं । जं आउट्टिकयं कम्मं तं परिण्णाय विवेगमेति । एवं 5 से अप्पमादेण विवेगं किट्टति वेदवी । १६४. से पभूतदंसी पभूतपरिणाणे उवसंते समिए सहिते सदा जते द8 विप्पडिवेदेति अप्पाणं-किमेस जणो करिस्सति ? एस से परमारामो जाओ लोगंसि इत्थीओ । मुणिणा हु एतं पवेदितं । उब्बाधिज्जमाणे गामधम्मेहिं अवि णिब्बलासए, अवि ओमोदरिय कुज्जा, अवि उड्डे ठाणं ठाएज्जा, अवि गामाणुगाम दूइज्जेज्जा, अवि आहारं वोच्छिदेज्जा, अवि चए इत्थीसु मणं । पुव्वं दंडा पच्छा फासा, पुव्वं फासा पच्छा दंडा | इच्चेते कलहासंगकरा भवंति। पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्ज अणासेवणाए त्ति बेमि। १६५. से णो काहिए, णोपासणिए, णोसंपसारए, णो मामए, णो कतकिरिए, वईगुत्ते अज्झप्पसंवुडे परिवज्जए सदा पावं । एतं मोणं समणुवासेज्जासि त्ति बेमि । । आवंतीए चउत्थो उद्देसओ सम्मत्तो ।*** पंचमो उद्देसओ १६६. से बेमि, तं जहा अवि हरदे पडिपुण्णे चिट्ठति समंसि भोमे उवसंतरए सारक्खमाणे । से चिट्ठति सोतमज्झए। से पास सव्वतो गुत्ते । पास लोए महेसिणो जे य पण्णाणमंता पबुद्धा आरंभोवरता । सम्ममेतं ति पासहा । कालस्स कंखाए परिव्वयंति त्ति बेमि । १६७. वितिगिंछसमावन्नेणं अप्पाणेणं णो लभति समाधिं । सिता वेगे अणुगच्छंति, असिता वेगे अणुगच्छंति । अणुगच्छमाणेहिं अणणुगच्छमाणे कहं ण णिविज्ने ? १६८. तमेव सच्चं णीसंकं जं जिणेहिं पवेदितं ।। १६९. सहिस्सणं समणुण्णस्स संपव्वयमाणस्स समियं ति मण्णमाणस्स एगदा समिया होति १, समियं ति मण्णमाणस्स एगदा असमिया होति २, असमियं ति मण्णमाणस्स एगया समिया होति ३, असमियं ति मण्णमाणस्स एगया असमिया होति ४, समियं ति मण्णमाणस्स समिया वा असमिया वा समिया होति उवेहाए ५, असमियं ति मण्णमाणस्स समिया वा असमिया वा असमिया होति उवेहाए ६ । उवेहमाणो अणुवेहमाणं बूया-उवेहाहि समियाए, इच्वेवं तत्थ संधी झोसितो भवति । से उहितस्स एतस्स गतिं समणुपासह । एत्थ वि बालभावे अप्पाणं णो उवदंसेज्जा । १७०. तुमं सि णाम तं चेव जं हंतव्वं ति मण्णसि, तुमं सि णाम तं चेव जं अज्जावेतव्वं ति मण्णसि, तुम सि णाम तं चेव जं परितावेतव्वं ति मण्णसि, तुम सि णाम तं चेव जं परिघेतव्वं ति मण्णसि, एवं तं चेव जं उद्दवेतव्वं ति मण्णसि । अंजू चेय पडिबुद्धजीवी। तम्हा ण हता, ण वि घातए। अणुसंवेयणमप्पाणेणं जं हंतव्वं णाभिपत्थए। १७१.जे आता से विण्णाता, जे विण्णाता से आता । जेण विजाणति से आता । तं पडुच्च पडिसंखाए। एस आतावादी समियाए परियाए वियाहिते त्ति बेमि।*** आवंतीए पंचमो उद्देसओ सम्मत्तो॥★★★ छट्ठो उद्देसओ १७२. अणाणाए एगे सोवठ्ठाणा, आणाए एगे णिरुवट्ठाणा । एतं ते मा होतु । एतं कुसलस्स दंसणं । तद्दिट्ठीए तम्मुत्तीए तप्पुरक्कारे तस्सण्णी तण्णिवेसणे अभिभूय अदक्खू । अणभिभूते पभूणिरालंबणताए, जे महं अबहिमणे। पवादेण पवायं जाणेज्जा सहसम्मुइयाए परवागरणेणं अण्णेसिं वा सोच्चा। १७३. णिद्देसं णातिवत्तेज्ज मेहाती सुपडिलेहिय सव्वओ सव्वताए सम्ममेव समभिजाणिया। इह आरामं परिण्णाय अल्लीणगुत्तो परिव्वए। निट्ठियट्ठि वीरे आगमेणं सदा परक्कमेज्जासि त्ति बेमि। १७४. उड्डे सोता अहे सोता तिरियं सोता वियाहिता । एते सोया वियक्खाता जेहिं संगं ति पासहा ॥१२|| आवट्टमेयं तु पेहाए एत्थ विरमेज्ज वेदवी। १७५. विणएतु सोतं निक्खम्म एस महं अकम्मा जाणति, पासति, पडिलेहाए णावकंखति। १७६. इह आगतिं गतिं परिण्णाय अच्चेति जातिमरणस्सवडुमगं वक्खातरते । सव्वे सरा नियटृति, तक्का जत्थ ण विज्जति, मती तत्थ ण गाहिया। ओए अप्पतिट्ठाणस्स खेत्तणे। सेण दीहे, ण हस्से, ण वट्टे, ण तंसे, ण चउरंसे, ण परिमंडले, ण किण्हे, ण णीले, ण लोहिते, ण हालिदे, ण सुक्किले, ण सुरभिगंधे, ण दुरभिगंधे, ण तित्ते, ण कडुए, ण कसाए, ण अंबिले, ण महुरे, ण कक्खडे, ण मउए, ण गरुए, ण लहुए, ण सीए, ण उण्हे, ण णिद्रे, ण लुक्खे, ण काऊ, ण रुहे, ण संगे, ण इत्थी, ण पुरिसे, ण अण्णहा। परिण्णे, सण्णे। उवमा ण विज्जति । अरूवी सत्ता । अपदस्स पदं णत्थि। सेण सहे, ण रूवे, ण गंधे, ण रसे, ण फासे, इच्चेतावंति त्ति बेमि।★★★||पंचमं अज्झयणं आवंती समत्ता॥ छट्टमज्झयणं "धुयं पढमो उद्देसओ १७७. ओबुज्झमाणे इह माणवेसु आघाइ से णरे, जस्स इमाओ जातीओ सव्वतो सुपडिलेहिताओभवंति आघाति से णाणमणेलिसं 9 से किट्टति तेसिं समुट्ठिताणं निक्खित्तदंडाणं समाहिताणं पण्णाणमंताणं इह मुत्तिमग्गं । १७८. एवं पेगे महावीरा विप्परक्कमंति। पासह एगेऽवसीयमाणे अणत्तपण्णे 55555555 5$$$$$$$$$! TOP: 0 5555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा-१०4555555555555555555555555EO-ORK Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOR955 5 5555 (९) आयारो - प. सु. ६ अ. धुर्य उद्देसक १-२-३-४[११] 国55岁$$$$2EX 5555555For 15555 2C$听听听听听听听听乐$$$$$乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听CE से बेमि से जहा वि कुम्मे हरए विणिविट्ठचित्ते पच्छण्णपलासे, उम्मुग्गं से णो लभति। भंजगा इव संनिवेसं नो चयंति । एवं पेगे अणेगरूवेहिं कुलेहिं जाता रूवेहिं + सत्ता कलुणं थणंति, णिदाणतो ते ण लभंति मोक्खं । १७९. अह पास तेहिं कुलेहिं आयत्ताए जाया गंडी अदुवा कोढी रायंसी अवमारियं । काणियं झिमियं चेव कुणितं खुज्जितं तहा ।।१३।। उदरिं च पास मुइं च सूणियं च गिलासिणिं । वेवई पीढसप्पिं च सिलिवयं मधुमेहणिं ||१४|| सोलस एते रोगा अक्खाया अणुपुव्वसो । अह णं फुसंति आतंका फासा य असमंजसा ॥१५॥ १८०. मरणं तेसिंसपेहाए उववायं चयणं च णच्चा परिपागं च सपेहाए तं सुणेह जहा तहा । संति पाणा अंधा तमंसि वियाहिता । तामेव सइं असई अतियच्च उच्चावचे फासे पडिसंवेदेति । बुद्धेहिं एयं पवेदितं । संति पाणा वासगा रसगा उदए उदयचरा आगासगामिणो । पाणा पाणे किलेसंति। पास लोए महब्भयं । बहुदुक्खा हु जंतवो। सत्ता कामेहिं माणवा । अबलेण वह गच्छंति सरीरेण पभंगुरेण । अट्टे से बहुदुक्खे इति बाले पकुव्वति । एते रोगे बहू णच्चा आतुरा परितावए । णालं पास । अलं तवेतेहिं । एतं पास मुणी ! महब्भयं । णातिवादेज्ज कंचणं । १८१. आयाण भो ! सुस्सूस भो ! धूतवाद पवेदयिस्सामि । इह खलु अत्तत्ताए तेहिं तेहिं कुलेहिं अभिसेएण अभिसंभूता अभिसंजाता अभिणिव्वट्टा अभिसंवुड्ढा अभिसंबुद्धा अभिणिक्खंता अणुपुव्वेण महामुणी । १८२. तं परक्कमंतं परिदेवमाणा मा णे चयाहि इति ते वदंति । छंदोवणीता अज्झोववण्णा अक्कंदकारी जणगा रुदंति । अतारिसे मुणी ओहं तरए जणगा जेण विप्पजढा । सरणं तत्थ णो समेति । किह णाम से तत्थ रमति । एतं णाणं सया समणुवासेन्जासि त्ति बेमि । । षष्ठसयाध्ययनस्य प्रथम: ||★★★ बीओ उद्देसओ ★★★१८३. आतुरं लोगमायाए चइता पुव्वसंजोगं हेच्चा उवसमं वसित्ता बंभचेरंसि वसु वा अणुवसु वा जाणित्तु धम्मं अहा तहा अहेगे तमचाइ कुसीला वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं विउसिज्ज अणुपुव्वेण अणधियासेमाणा परीसहे दुरहियासए। कामे ममायमाणस्स इदाणिं वा मुहुत्ते वा अपरिमाणाए भेदे । एवं से अंतराइएहिं कामेहिं आकेवलिएहिं, अवितिण्णा चेते। १८४. अहेगे धम्ममादाय आदाणप्पभिति सुप्पणिहिए चरे अप्पलीयमाणे दढे सव्वं गेहिं परिण्णाय । एस पणते महामुणी अतियच्च सव्वओ संग ‘ण महं अत्थि' त्ति, इति एगो अहमंसि, जयमाणे, एत्थ विरते अणगारे सव्वतो मुंडे रीयंते जे अचेले परिवुसिते संचिक्खति ओमोयरियाए। से अकुढे व हते व लूसिते वा पलियं पगंथं अदुवा पगंथं अतहेहिं सद्दफासेहिं इति संखाए एगतरे अण्णतरे अभिण्णाय तितिक्खमाणे परिव्वए जे य ॐ हिरी जे य अहिरीमणा। १८५. चेच्चा सव्वं विसोत्तियं फासे फासे समितदंसणे । एते भो णगिणा वुत्ता जे लोगंसि अणागमणधम्मिणो । आणाए मामगं धम्मं । एस उत्तरवादे इह माणवाणं वियाहिते । एत्थोवरते तं झोसमाणे आयाणिज्जं परिण्णाय परियारण विगिंचति । १८६. इह एगेसिं एगचरिया,होति । तत्थितराइतरेहि कुलेहिं सुद्धसणाए सव्वेसणाए से मेधावी परिव्वए सुब्भिं अदुवा दुन्भिं । अदुवा तत्थ भेरवा पाणा पाणे किलेसंति । ते फासे पुट्ठो धीरो अधियासेज्जासि त्ति बेमि ★★★|| षष्ठस्य द्वितीय:॥★★★तईओ उद्देसओ १८७. एतं खु मुणी आदाणं सदा सुअक्खातधम्मे विधूतकप्पे णिज्झोसइत्ता । जे अचेले परिवुसिते तस्सणं भिक्खुस्सणो एवं भवति परिजुण्णे मे वत्थे, वत्थं जाइस्सामि, सुत्तं जाइस्सामि, सूइंजाइस्सामि, संधिस्सामि, सीविस्सामि, उक्कसिस्सामि, वोक्कसिस्सामि, परिहिस्सामि, पाउणिस्सामि । अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सीतफासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंस-मसगफासा फुसंति, एगतरे अण्णयरे विरूवरूवे फासे अधियासेति अचेले लाघवं आगममाणे । तवे से अभिसमण्णागए भवति । जहेतं भगवता पवेदितं । तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए सम्मत्तमेव समभिजाणिया। एवं तेसिं महावीराणं चिरराइं पुव्वाइं वासाइं रीयमाणाणं दवियाणं पास अधियासियं । १८८. आगतपण्णाणाणं किसा बाहा भवंति पयणुए य मंससोणिए। विस्सेणिं कट्ट परिणाय एस तिण्णे मुत्ते विरते वियाहिते त्ति बेमि । १८९. विरयं भिक्खुं रीयंतं चिररातोसियं अरती तत्थ किं विधारए ? संधेमाणे समुट्ठिते। जहा से दीवे असंदीणे एवं से धम्मे आरियपदेसिए। ते अणवकंखमाणा अणतिवातेमाणा दइता मेधाविणो पंडिता । एवं तेसिं भगवतो अणुट्टाणे म जहा से दियापोते । एवं ते सिस्सा दिया य रातो य अणुपुव्वेण वायित त्ति बेमि ।★★★l षष्ठस्य तृतीयः ॥★★चउत्थो उद्देसओ १९०. एवं ते सिस्सा दिया य रातो य अणुपुव्वेण वायिता तेहिं महावीरेहिं पण्णाणमंतेहिं तेसंतिए पण्णाणमुक्लब्भ हेच्चा उवसमं फारुसियं समादियंति । वसित्ता बंभचेरंसि आणं तं णोल Motor LELE LELEArchaururu555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा ११5555555555555555555555555OOR Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YO0555555555555 (१) आयारो - प. सु. ६ अ. धुर्य उद्देसक ४-५/८ अ. विमोक्खो उद्देसक-१ [१२] का 国步步步步步步步步步步步 MOR95555555555555555555555555555555555555555555555555OTod त्ति मण्णमाणा आघायं तु सोच्चा णिसम्म समणुण्णाजीविस्सामो' एगे णिक्खम्म, ते असंभवंता विडज्झमाणा कामेसु गिद्धा अज्झोववण्णा समाहिमाघातमझोसयंता सत्थारमेव फरुसंवदंति। १९१.सीलमंता उवसंता संखाए रीयमाणा । असीला अणुवयमाणस्स बितिया मंदस्स बालिया। णियट्टमाणा वेगे आयारगोयरमाइक्खंति, णाणभट्टा दंसणलूसिणो । णममाणा वेगे जीवितं विप्परिणामेति । पुट्ठा वेगे णियटृति जीवितरसेव कारणा। णिक्खंतं पितेसिं दुणिक्खंतं भवति । बालवयणिज्जा हु ते णरा पुणो पुणो जाति पकप्पेति । अधे संभवंता विद्दायमाणा, अहमंसीति विउक्कसे। उदासीणे फरुसं वदंति, पलियं पगंथे अदुवा पगंथे अतहेहिं । तं मेधावी जाणेज्जा धम्मं । १९२. अधम्मट्ठी तुम सि णाम बाले आरंभट्ठी अणुवयमाणे, हणमाणे, घातमाणे, हणतो यावि समुणुजाणमाणे । घोरे धम्मे उदीरिते। उवेहति णं अणाणाए। एस विसण्णे वितद्दे वियाहिते त्ति बेमि । १९३. किमणेण भो जणेण करिस्सामि त्ति मण्णमाणा एवं पेगे वदित्ता मातरं पितरं हेच्चा णातओ य परिग्गहं वीरायमाणा समुट्ठाए अविहिंसा सुव्वता दंता। पस्स दीणे उप्पइए पडिवतमाणे । वसट्ठा कायरा जणा लूसगा भवंति । १९४. अहमेगेसिं सिलोए पावए भवति से समणविन्भंते समणविभंते । पासहेगे समण्णागतेहिं असमण्णागए णममाणेहिं अणममाणे विरतेहिं अविरते दवितेहिं अदविते। १९५. अभिसमेच्चा पंडिते मेहावी णिट्ठियढे वीरे आगमेणं सदा परिक्कमेज्जासि त्ति बेमि ।|| षष्ठस्य चतुर्थः ॥ पंचमो उद्देसओ १९६. से गिहेसु वा गिहतरेसु वा गामेसु वा गामंतरेसु वा णगरेसु वा णगरंतरेसु वा जणवएसुवा जणवयंतरेसु वा संतेगतिया जणा लूसगा भवंति अदुवा फासा फुसंति। ते फासे पुट्ठो धीरो अधियासए ओए समितदसणे। दयं लोगस्स जाणित्ता पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं आइक्खे विभए किट्टे वेदवी । से उठ्ठिएसु वा अणुट्ठिएसु वा सुस्सूसमाणेसु पवेदए संतिं विरतिं उवसमं णिव्वाणं सोयवियं अज्जवियं मद्दवियं लाघवियं अणतिवत्तियं सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं भूताणं सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं, अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइक्खेज्जा। १९७. अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइक्खमाणे णो अत्ताणं आसादेज्जा णो परं आसादेज्जा णो अण्णाइं पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं आसादेज्जा । से अणासादए अणासादमाणे वज्झमाणाणं पाणाणं भूताणं जीवाणं सत्ताणं जहा से दीवे असंदीणे एवं से भवति सरणं महामुणी । एवं से उहिते ठितप्पा अणिहे अचले चले अबहिलेस्से परिव्वए। संखाय पेसलं धम्मं दिट्ठिमं परिणिव्वुडे । १९८. तम्हा संगं ति पासहा। गंथेहिं गढिता णरा विसण्णा कामक्कंता । तम्हा लूहातो णो परिवित्तसेज्जा । जस्सिमे आरंभा सव्वतो सव्वताए सुपरिण्णाता भवंति जेसिमे लूसिणो णो परिवित्तसंति, से वंता कोधं च माणं च मायं च लोभं च । एस तिउट्टे वियाहिते त्ति बेमि । कायस्स वियोवाए एस संगामसीसे वियाहिए। से हु पारंगमे मुणी। अवि हम्ममाणे फलगावतट्ठी कालोवणीते कंखेज कालं जाव सरीरभेदो त्ति बेमि माधुयनामयं छट्ठमज्झयणं सम्मत्तं ॥ ८ अट्ठमं अज्झयणं विमोक्खो' पढमो उद्देसओ१९९. से बेमि समणुण्णस्स वा असमणुण्णस्स वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पादपुंछणं वा णो पाएज्जा, णो णिमंतेज्जा, णो कुज्जा वेयावडियं परं आढायमाणे त्ति बेमि । धुवं चेतं जाणेज्जा असणं वा जाव पादपुंछणं वा, लभिय णो लभिय, भुंजिय णो भुंजिय, पंथं वियत्ता विओकम्म, विभत्तं धम्मं झोसेमाणे समेमाणे वलेमाणे पाएज्जा वा, णिमंतेज्ज वा, कुज्जा वेयावडियं । परं अणाढायमाणे त्ति बेमि । २००. इहमेगेसिं आयारगोयरे णो सुणिसंते भवति । ते इह आरंभट्ठी अणुवयमाणा, हण पाणे घातमाणा, हणतो यावि समणुजाणमाणा, अदुवा अदिन्नमाइयंति, अदुवा वायाओ विउंजंति, तं जहा अत्थि लोए, णत्थि लोए, धुवे लोए, अधुवे लोए, सादिए लोए, अणादिए लोए, सपज्जवसिए लोए, अपज्जवसिए लोए, सुकडे ति वा दुकडे ति वा कल्लाणे ति वा पावए ति वा साधू ति वा असाधू ति वा सिद्धी ति वा असिद्धी ति वा निरए ति वा अनिरए ति वा। जमिणं विप्पडिवण्णा मामगं धम्मं पण्णवेमाणा । एत्थ वि जाणह अकस्मात् । २०१. एवं तेसिंणो सुअक्खाते णो सुपण्णते धम्मे भवति । से जहेतं भगवया पवेदितं आसुपण्णेण जाणया पासया। अदुवा गुत्ती वइगोयरस्स त्ति बेमि । २०२. सव्वत्थ संमतं पावं । तमेव उवातिकम्म एस महं विवेगे वियाहिते। गामे अदुवा रण्णे, णेव गामे णेव रणे, धम्ममायाणह पवेदितं माहणेण मतिमया । जामा तिण्णि उदाहडा जेसु इमे आरिया संबुज्झमाणा समुट्ठिता, जे णिव्वुता पावेहि कम्मेहिं अणिदाणा ते वियाहिता । २०३. उड्डे अधं तिरियं दिसासु सव्वतो सव्वावंति च णं पाडियक्कं जीवेहि कम्मसमारंभे णं । तं परिण्णाय मेहावी व सयं एतेहिं काएहिं दंडं GO乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐$555C xe:555555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा-१२0555555555555555555555555555GOFE Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FORO55555555555 (१) आयारो - प. सु. ८ अ. विमोक्खो उद्देसक - २-३-४ [१३] 95555555555550xx O乐乐听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听F5格 समारंभेज्जा, णेवऽण्णेहिं एतेहिं काएहिं दंडं समारभावेज्जा, णेवण्णे एतेहिं काएहिं दंडं समारभंते वि समणुजाणेज्जा । जे चऽण्णे एतेहिं काएहिं दंडं समारभंति तेसिं पि वयं लज्जामो । तं परिण्णाय मेहावी तं वा दंडं अण्णं वा दंडं णो दंडभी दंड समारभेज्जासि त्ति बेमि ।★★★|| अष्टमस्य प्रथमः ।।★★★ बीओ उद्देसओ २०४. से भिक्खू परक्कमेज वा चिट्ठज्ज वा णिसीएज्ज वा तुयट्टेज वा सुसाणंसि वा सुण्णागारंसि वा रुक्खमूलंसि वा गिरिगुहसि वा कुंभारायतणंसि वा हुरत्था वा, कहिचि विहरमाणं तं भिक्खु उवसंकमित्तु गाहावती बूया आउसंतो समणा ! अहं खलु तव अट्ठाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पाणाइं भूताई जीवाइं सत्ताइं समारंभ समुहिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेतेमि आवसहं वा समुस्सिणामि, से भुंजह वसह आउसंतो समणा ! । तं भिक्खू गाहावतिं समणसं सवयसं पडियाइक्खे आउसंतो गाहावती ! णो खलु ते वयणं आढामि, णो खलु ते वयणं परिजाणामि, जो तुम मम अट्ठाए असणं वा ४ वत्थं वा ४ पाणाई ४ समारंभ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेतेसि आवसहं वा समुस्सिणासि । से विरतो आउसो गाहावती ! एतस्स अकरणयाए। २०५. से भिक्खू परक्कमेन वा जाव हुरत्था वा कहिचि विहरमाणं तं भिक्खु उवसंकमित्तु गाहावती आतगताए पेहाए असणं वा ४ वत्थं वा ४ पाणाई ४ समारंभ जाव आहट्ट चेतेति आवसह वा समुस्सिणाति तं भिक्खु परिघासेतुं । तं च भिक्खू जाणेज्जा सहसम्मुतियाए परवागरणेणं अण्णेसिंवा सोच्चा अयं खलु गाहावती मम अट्ठाए असणं वा ४ वत्थं वा ४ पाणाई ४ समारंभ चेतेति आवसहं वा समुस्सिणाति । तं च भिक्खू पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा अणासेवणाए त्ति बेमि । २०६. भिक्खुं च खलु पुट्ठा वा अपुट्ठा वा जे इमे आहच्च गंथा फुसंति, से हंता हणह खणह छिंदह दहह पचह आलुंपह विलुपह सहसक्कारेह विप्परामुसह । ते फासे पुट्ठो धीरो अहियासए । अदुवा आयारगोयरमाइक्खे तक्किया णमणेलिसं । अदुवा वइगुत्तीए गोयरस्स अणुपुव्वेण सम्म पडिलेहाए आयगुत्ते । बुद्धेहिं एयं पवेदितं । २०७. से समणुण्णे असमणुण्णस्स असणं वा ४ वत्थं वा ४ णो पाएज्जा णो णिमंतेज्जा णो कुज्जा वेयावडियं परं आढायमाणे त्ति बेमि । २०८. धम्ममायाणह पवेदितं माहणेण मतिमता समणुण्णे समणुण्णस्स असणं वा ४ वत्थं वा ४ पाएज्जा णिमंतेज्जा कुज्जा वेयावडियं परं आढायमाणे त्ति बेमि ।★★★। अष्टमस्य द्वितीय : तईओ उद्देसओ २०९. मज्झिमेणं वयसा वि एगे संबुज्झमाणा समुट्ठिता सोच्चा वयं मेधावी पंडियाण णिसामिया । समियाए धम्मे आरिएहिं पवेदिते । ते अणवकंखमाणा, अणतिवातेमाणा, अपरिग्गहमाणा, णो परिग्गहावंति सव्वावंति च णं लोगंसि, णिहाय दंडं पाणेहिं पावं कम्मं अकुव्वमाणे एस महं अगंथे वियाहिते। ओए जुइमस्स खेतण्णे उववायं चयणं च णच्चा । २१०. आहारोवचया देहा परीसहपभंगुणो । पासहेगे सव्विदिएहिं परिगिलायमाणेहिं । ओए दयं दयति जे संणिधाणसत्थस्स खेत्तण्णे, से भिक्खू कालण्णे बालण्णे मातण्णे खणयण्णे विणयण्णे समयण्णे परिग्गहें अममायमाणे कालेणुट्ठाई अपडिण्णे दुहतो छेत्ता णियाति। २११. तं भिक्खं सीतफासपरीवेवमाणागातं उवसंकमित्तु गाहावती बूया आउसंतो समणा ! णो खलु ते गामधम्मा उब्बाहंति ? आउसंतो गाहावती ! णो खलु मम गामधम्मा उब्बाहति । सीतफासं णो खलु अहं संचाएमि अहियासेत्तए । णो खलु मे कप्पति अगणिकायं उज्जालित्तए वा पज्जालित्तए वा कायं आयावित्तए वा पयावित्तए वा अण्णेसिं वा वयणाओ। २१२. सिया एवं वदंतस्स परो अगणिकायं उज्जालेत्ता पज्जालेत्ता कायं आयावेज्जा वा पयावेज्जा वा । तं च भिक्खू पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा आणासेवणाए त्ति बेमि ।*॥ अष्टमस्य तृतीयः॥★★★ चउत्थो उद्देसओ २१३.जे भिक्खू तिहिं वत्थेहिं परिवुसिते पायचउत्थेहिं तस्स णं णो एवं भवति चउत्थं वत्थं जाइस्सामि । २१४. से अहेसणिज्जाई वत्थाई जाएज्जा, अहापरिग्गहियाइं वत्थाई धारेज्जा, णो धोएज्जा, णो रएज्जा, णो धोतरत्ताई वत्थाइं धारेज्जा, अपलिउंचमाणे गामंतरेसु, ओमचेलिए। एतं खुवत्थधारिस्स सामग्गियं । अह पुण एवं जाणेज्जा ‘उवातिकते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवण्णे', अहापरिजुण्णाई वत्थाइं परिट्ठवेज्जा, अहापरिजुण्णाइं वत्थाइं परिठ्ठवेत्ता अदुवा संतरुत्तरे, अदुवा ओमचेले, अदुवा एगसाडे, अदूवा अचेले । लाघवियं आगममाणे । तवे से अभिसमण्णागते भवति । जहेतं भगवता पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वताए सम्मत्तमेव समभिजाणिया । २१५. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति 'पुट्ठो खलु अहमंसि, नालमहमंसि सीतफासं अहियासेत्तए', से वसुमं TO乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听CO 步步为5万岁万岁万岁万岁万岁万岁万岁岁乐乐场馬斯加-Fi $$$$$$$$$$$$ $$$五):O Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A (१) आयारा प. सु. ८ अ. विमाक्खा उद्दसक ४-५-६ ७ १४ सव्वसम्मण्णागतपण्णाणेणं अप्पाणेणं केइ अकरणयाए आउट्टे । तवस्सिणो हु तं सेयं जं सेगे विहमादिए । तत्थावि तस्स कालपरियाए । से वि तत्थ वियंतिकारए । इच्चेतं विमोहायतणं हियं सुहं खमं णिस्सेसं आणुगामियं ति बेमि । ★ ★ ★ ॥ अष्टमस्य चतुर्थः ॥ ★★★ पंचमो उद्देसओ २१६. जे भिक्खू दोहिं वत्थेहिं. परिवसिते पायततिएहिं तस्स णं णो एवं भवति ततियं वत्थ जाइस्सामि । २१७. से अहेसणिज्जाई वत्थाई जाएज्जा जाव एवं खु तस्स भिक्खुस्स सामग्गियं । अह पुण एवं जाणेज्जा 'उवातिक्कंते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवण्णे', अहापरिजुण्णाइं वत्थाइं परिट्ठवेज्जा, अहापरिजुण्णाई वत्थाइं परिद्ववेत्ता अदुवा एगसाडे, अदुवा अचेले लाघवियं आगममाणे । तवे से अभिसमण्णागते भवति । जहेयं भगवता पवेदितं । तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वयाए सम्मत्तमेव समभिजाणिया । २१८. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति पुट्ठो अबलो अहमंसि, णालमहमंसि गिहंतरसंकमणं भिक्खायरियं गमणाए । से सेवं वदंतस्स परो अभिहडं असणं वा ४ आहड दलएज्जा, से पुव्वमेव आलोएज्जा आउसंतो गाहावती ! णो खलु में कप्पति अभिहडं असणं वा ४ भोत्तए वा पातए वा अण्णे वा एतप्पगारे । २१९. जस्स णं भिक्खुस्स अयं पगप्पे अहं च खलु पडिण्णत्तो अपडिण्णत्तेहिं गिलाणो अगिलाणेहिं अभिकंख साधम्मिएहिं कीरमाणं वेयावडियं साति ज्जिस्सामि, अहं चावि खलु अपडिण्णत्तो पडिण्णत्तस्स अगिलाणो गिलाणस्स अभिकंख साधम्मियस्स कुज्जा वेयावडियं करणाए । आहट्टु परिण्णं आणक्खेस्सामि आहडं च सातिज्जिस्सामि १, आ परिण्णं आणक्खेस्सामि आहडं च नो सातिज्जिस्सामि २, आहड्ड परिण्णं नो आणक्खेस्सामि आहडं च सातिज्जिस्सामि ३, आहट्टु परिण्णं णो आणक्खेस्सामि आडचणो सातिज्जिसामि ४। लाघवियं आगममाणे । तवे से अभिसमण्णागते भवति । जहेतं भगवता पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वताए सम्मत्तमेव समभिजाणिया । एवं से अहाकिट्टितमेव धम्मं समभिजाणमाणे संते विरते सुसमाहितलेस्से । तत्थावि तस्स कालपरियाए । से तत्थ वियंतिकारए । इच्चेतं विमोहायतणं हितं सुहं खमं णिस्सेसं आणुगामियं ति बेमि। ★ ★ ★ ॥ अष्टमस्य पञ्चमः ॥ ★★★ छट्टो उद्देसओ २२०. जे भिक्खू एगेण वत्थेण परिवुसिते पायबितिएण तस्स एवं भवति बितियं वत्थं जाइस्सामि । २२१. से अहेसणिज्जं वत्थं जाएज्जा, अहापरिग्गहितं वत्थं धारेज्जा जाव गिम्हे पडिवन्ने अहापरिजुण्णं वत्थं परिट्ठवेज्जा, अहापरिजुण्णं वत्थं परिट्ठवेत्ता अदुवा एगसाडे अदुवा अचेले लाघवियं आगममाणे जाव सम्मत्तमेव समभिजाणिया । २२२. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति गो अमंस, ण मे अत्थि कोइ, ण याहमवि कस्सइ । एवं से एगाणियमेव अप्पाणं समभिजाणेज्जा लाघवियं आगममाणे । तवे से अभिसमण्णागते भवति । जयं भगवता पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वताए सम्मत्तमेव समभिजाणिया । २२३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा ४ आहारेमाणे णो वामातो हणुयातो दाहिणं हणुयं संचारेज्जा आसाएमाणे, दाहिणातो वा हणुयातो वामं हणुयं णो संचारेज्जा आसादेमाणे । से अणासादमाणे लाघवियं आगममाणे । तवे से अभिसमण्णागते भवति । जहेयं भगवता पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वयाए सम्मत्तमेव समभिजाणिया । २२४. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति 'से गिलामि च खलु अहं इमंसि समए इमं सरीरगं- अणुपुव्वेण परिवहित्तए' से आणुपुव्वेण आहारं संवट्टेज्जा, आणुपुव्वेण आहारं संवट्टेत्ता कसाए पतणुए किच्चा समाहियच्चे फलगावयट्टी उट्ठाय भिक्खू अभिणिव्वुडच्चे अणुपविसित्ता गामं वा णगरं वा खेडं वा कब्बडं वा मडंबं वा पट्टणं वा दोणमुहं वा आगरं वा आसमं वा संणिवेसं वाणिगमं वा रायहाणिं वा तणाई जाएज्जा, तणाई जाएता से त्तमायाए एगंतमवक्कंमिज्जा, एगंतमवक्कमित्ता अप्पंडे अप्पपाणे अप्पबीए अप्पहरिए अप्पोसे अप्पोदए अप्पुत्तिंगपणग-दगमट्टिय-मक्कडासंताणए पडिलेहिय पडिलेहिय पमज्जिय पमज्जिय तणाइं संथरेज्जा, तणाई संघरेत्ता एत्थ वि समए इत्तिरियं कुज्जा । तं सच्चं सच्चवादी ओए तिण्णे छिण्णिकहंकहे आतीतट्टे अणातीते चिच्चाण भेदुरं कायं संविधुणिय विरूवरूवे परीसहोवसग्गे अस्सिं विस्संभणयाए भेरवमणुचिण्णे । तत्थावि तस्स कालपरियाए । से वि तत्थ वियंतिकारए। इच्चेतं विमोहायतणं हितं सुहं खमं णिस्सेसं आणुगामियं त्ति बेमि । ★★★ ॥ अष्टमस्य षष्ठः ॥ ★★★ सत्तमो उद्देसओ २२५. जे भिक्खू अचेले परिवुसिते तस्स णं एवं भवति चाएमि अहं तणफासं अधियासेत्तए, सीतफासं अधियासेत्तए, तेउफासं अधियासेत्तए, दसं-मसगफासं अधियासेत्तए, एगतरे अण्णतरे विरूवरूवे फासे अधियासेत्तए, हिरिपडिच्छादणं च हं णो संचाएमि अधियासेत्तए । एवं से कप्पति कडिबंधणं धारित्तए । २२६. अदुवा तथ ॐ श्री आगमगुणमंजूषा - १४ Xe 纸纸 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOR9555555555555 (१) आयारो - प. सु.८ अ. विमोक्खो उद्देसक - ७-८ [१५] OTO乐乐乐乐乐玩玩乐乐听听听听听听听听听听听乐玩玩乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听5 परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सीतफासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंस-मसगफासा फुसंति, एगतरे अण्णतरे विरूवरूवे फासे अधियासेति अचेले लाघवियं आगममाणे । तवे से अभिसमण्णागते भवति । जहेतं भगवया पवेदितं तमेव अभिसमेच्च सव्वतो सव्वयाए सम्मत्तमेव समभिजाणिया। २२७. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति अहं च खलु अण्णेसिं भिक्खूणं असणं वा ४ आहट्ट दलयिस्सामि आहडं च सातिज्जिस्सामि १, जस्सणं भिक्खुस्स एवं भवति अहं च खलु अण्णेसिं भिक्खूणं असणं वा ४ आहट्ट दलयिस्सामि आहडं च णो सातिज्जिस्सामि २, जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति-अहं च खलु असणं वा ४ आहट्ट णो दलयिस्सामि आहडं च सातिज्जिस्सामि ३, जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति-अहं च खलु अण्णेसिं भिक्खूणं असणं वा ४ आहट्ट णो दलयिस्सामि आहडं च णो सातिज्जिस्सामि ४ , जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति अहं च खलु तेण अहातिरित्तेण अहेसणिज्नेण अहापरिग्गहिएण असणेण वा ४ अभिकंख साहम्मियस्स कुज्जा वेयावडियं करणाय अहं वा वि तेण अहातिरित्तेण अहेसणिज्जेण अहापरिग्गहिएण असणेण वा ४ अभिकंख साहम्मिएहिं कीरमाणं वेयावडियं सातिज्जिस्सामि ५ लाघवियं आगममाणे जाव सम्मत्तमेव समभिजाणिया। २२८. जस्सणं भिक्खुस्स एवं भवति 'से गिलामि च खलु अहं इमम्मि समए इमं सरीरगं अणुपुव्वेणं परिवहित्तए' से अणुपुव्वेणं आहारं संवढेजा, अणुपुव्वेणं आहारं संवदेत्ता कसाए पतणुए किच्चा समाहियच्चे फलगावयट्ठी उट्ठाय भिक्खू अभिणिव्वुडच्चे अणुपविसित्ता गाम वा जाव रायहाणिं वा तणाई जाएज्जा, तणाई जाएत्ता सेत्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अप्पंडे जाव तणाई संथरेज्जा, तणाई संथरेत्ता एत्थ वि समए कायं च जोगं च इरियं च पच्चक्खाएज्जा । तं सच्चं सच्चवादी ओए तिण्णे छिण्णकहकहे आतीतढे अणातीते चेच्चाण भेउरं कायं संविहुणिय विरूवरूवे ॥ परीसहुवसग्गे अस्सिं विसंभणताए भेरवमणुचिण्णे। तत्थावि तस्स कालपरियाए। से तत्थ वियंतिकारए । इच्चेतं विमोहायतणं हितं सुहं खमं णिस्सेसं आणुगामियं त्ति बेमि।★★★|| अष्टमस्य सप्तमः ||*** अट्ठमो उद्देसओ २२९. अणुपुव्वेण विमोहाइं जाइं धीरा समासज्ज । वसुमंतो मतिमंतो सव्वं णच्चा अणेलिसं ॥१६॥ २३०. दुविहं पि विदित्ता णं बुद्धा धम्मस्स पारगा। अणुपुव्वीए संखाए आरंभाय तिउट्टति ॥१७।। २३१. कसाए पयणुए किच्चा अप्पाहारो तितिक्खए। अह भिक्खू गिलाएज्जा आहारस्सेव अंतियं ।।१८॥ २३२. जीवियं णाभिकंखेज्जा मरणं णो वि पत्थए। दुहतो वि ण सज्जेजा जीविते मरणे तहा ॥१९|| २३३. मज्झत्थो णिज्जरापेही समाहिमणुपालए । अंतो बहिं वियोसज्ज अज्झत्थं सुद्धमेसए ॥२०॥ २३४. जं किंचुवक्कम जाणे आउखेमस्स अप्पणो । तस्सेव अंतरद्धाए खिप्पं सिक्खेज्ज पंडिते ॥२१॥ २३५. गामे अदुवा रण्णे थंडिलं पडिलेहिया । अप्पपाणं तु विण्णाय तणाई संथरे मुणी ॥२२॥ २३६. अणाहारो तुवट्टेज्जा पुट्ठो तत्थ फ हियासए। णातिवेलं उवचरे माणुस्सेहिं वि पुट्ठवं ।।२३।। २३७. संसप्पगा यजे पाणा जे य उड्ढमहेचरा। भुंजते मंससोणियं ण छणे ण पमज्जए॥२४॥२३८. पाणा देहं विहिंसंति ठाणातो ण वि उब्भमे । आसवेहिं विवित्तेहिं तिप्पमाणोऽधियासए॥२५॥२३९. गंथेहिं विवित्तेहिं आयुकालस्स पारए। पगहिततरगं चेतं दवियस्स वियाणतो ॥२६।। २४०. अयं से अवरे धम्मे णायपुत्तेण साहिते। आयवज्ज पडियारं विजहेज्जा तिधा तिधा ॥२७॥ २४१. हरिएसुण णिवज्जेज्जा थंडिलं मुणिआ सए। वियोसज्ज अणाहारो पुट्ठो तत्थऽधियासए ॥२८॥ २४२. इंदिएहिं गिलायंतो समियं साहरे मुणी। तहावि से अगरहे अचले जे समाहिए ।।२९।। २४३. अभिक्कमे पडिक्कमे संकुचए पसारए। कायसाहारणट्ठाए एत्थं वा वि अचेतणे॥३०॥२४४. परिकम्मे परिकिलंते अदुवा चिट्टे अहायते। ठाणेण परिकिलंते णिसीएज्ज य अंतसो॥३१॥२४५. आसीणेऽणेलिसं मरणं इंदियाणि समीरते। कोलावासं समासज्ज वितहं पादुरेसए॥३२॥ २४६. जतो वजं समुप्पज्जे ण तत्थ अवलंबए। ततो उक्केस अप्पाणं सव्वे फासेऽधियासए॥३३।। २४७. अयं चाततरे सिया जे अणुपालए। सव्वगायणिरोधे वि ठाणातोण वि उब्भमे ॥३४॥ २४८. अयं से उत्तमे धम्मे पुवठ्ठाणस्स पग्गहे । अचिरं पडिलेहित्ता विहरे चिट्ठ माहणे ॥३५॥२४९. अचितं तु समासज्ज ठावए तत्थ अप्पगं । वोसिरे सव्वसो कार्य ण मे देहे परीसहा ॥३६॥ २५०. जावज्जीवं परीसहा उवसग्गा य इति संखाय । संवुडे देहभेदाए इति पण्णेऽधियासए ॥३७|| २५१. भिदुरेसुण रज्जेज्जा कामेसु बहुतरेसु वि।' इच्छालोभ ण सेवेज्जा धुववण्णं सपेहिया ॥३८॥२५२. सासएहिं णिमंतेज्जा दिव्वमायं ण सद्दहे । तं पडिबुज्झ माहणे सव्वं नूमं विधूणिता ॥३९।। २५३. सव्वद्वेहिं GQ明明听听听听听听听听乐乐玩玩乐乐乐折折折乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐 exerc5555555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १५4555555555555555555555555555OF Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूजफफफफफफफफ55555 (१) आयागे प.सु.८ अ. विमोक्खो उद्देसक-/९ अ. उवहाणसुर्य उद्देसक १.२ [१६] 5 5555555555ooz FOTO 乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐 PRORO55555555555555555555555555 अमुच्छिए आयुकालस्स पारए । तितिक्खं परमं णच्चा विमोहण्णतरं हितं ॥४०॥त्ति बेमि । । अष्टम विमोक्षाध्ययनं समाप्तम् ॥ ९ नवमं अज्झयणं 'उवहाणसुयं' पढमो उद्देसओभर५४. अहासुतं वदिस्सामि जहा से समणे भगवं उट्ठाय । संखाए तंसि हेमंते अहुणा पव्वइए रीइत्था ॥४१|| २५५. णो चेविमेण वत्थेण पिहिस्सामि तंसि हेमंते । से पारए आवकहाए एतं खु अणुधम्मियं तस्स ॥४२॥ २५६. चतारि साहिए मासे बहवे पाणजाती आगम्म । अभिरुज्झ कायं विहरिंसु आरूसियाणं तत्थ हिसिंसु॥४३॥ २५७. संवच्छरं साहियं मासं जंण रिक्कासि वत्थगं भगवं । अचेलए ततो चाई तं वोसज्ज वत्थमणगारे ॥४४॥ २५८. अदु पोरिसिं तिरियभित्तिं चक्खुमासज्ज अंतसो झाति । अह चक्खुभीतसहिया ते हंता हंता बहवे कंदिसु ॥४५॥ २५९. सयणेहिं वितिमिस्सेहि इत्थीओ तत्थ से परिण्णाय। सागारियं न से सेवे इति से सयं पवेसिया झाति ॥४६॥ २६०. जे केयिमे अगारत्था मीसीभावं पहाय से झाति । पुट्ठो वि णाभिभासिंसु गच्छति णाइवत्तत्ती अंजू ॥४७।। २६१. णो सुकरमेतमेगेसिं णाभिभासे अभिवादमाणे । हयपुव्वो तत्थ दंडेहिं लूसियपुव्वो अप्पपुण्णेहिं ॥४८॥ २६२. फरिसाइं दुत्तितिक्खाइं अतिअच्च मुणी परक्कममाणे । आघात-णट्ट-गीताई दंडजुद्धाइं मुट्ठिजुद्धाई ।।४९।। २६३. गढिए मिहुकहासु समयम्मि णातसुते विसोगे अदक्खु । एताइं से उरालाइं गच्छति णायपुत्ते असरणाए॥५०|| २६४. अवि साधिए दुवे वासे सीतोदं अभोच्चा णिक्खंते । एगत्तिगते पिहितच्चे से अभिण्णायदंसणे संते ॥५१।। २६५. पुढविं च आउकायं च तेउकायं च वायुकायं च । पणगाइं बीयहरियाई तसकायं च सव्वसो णच्चा ॥५२॥ २६६. एताइं संति पडिलेहे चित्तमंताई से अभिण्णाय । परिवज्जियाण विहरित्था इति संखाए से महावीरे ॥५३॥ २६७. अदु थावरा य तसत्ताए तसजीवा य थावरत्ताए। अदुवा सव्वजोणिया सत्ता कम्मुणा कप्पिया पुढो बाला॥५४॥ २६८.भगवं च एवमण्णेसि सोवधिए हु लुप्पती बाले । कम्मं च सव्वसो णच्चा तं पडियाइक्खे पावगं भगवं ॥५५।। २६९. दुविहं समेच्च मेहावी किरियमक्खायमणेलिसिंणाणी । आयाणसोतमतिवातसोतं जोगं च सव्वसो णच्चा ॥५६।। २७०. अतिवत्तियं अणाउट्टि सयमण्णेसिं अकरणयाए। जस्सित्थीओ परिण्णाता सव्वकम्मावहाओ सेऽदक्खू ॥५७।। २७१. अहाकडं ण से सेवे सव्वसो कम्मुणा य अदक्खू । जं किंचि पावगं भगवं तं अकुव्वं वियर्ड भुंजित्था ॥५८।। २७२. णासेवइय परवत्थं परपाए वि से ण भुंजित्था । परिवज्जियाण ओमाणं गच्छति संखडिं असरणाए ।।५९।। २७३. मातण्णे असणपाणस्स णाणुगिद्धे रसेसु अपडिण्णे । अच्छिं पि णो पमज्जिया णो वि य कंडुयए मुणी गातं ।।६०।। २७४. अप्पं तिरियं पेहाए अप्पं पिट्ठओ उप्पेहाए। अप्पं बुइए पडिभाणी पंथपेही चरे जतमाणे ॥६॥ २७५. सिसिरंसि अद्धपडिवण्णे तं वोसज्ज वत्थमणगारे । पसारेत्तु बाहुं परक्कमे णो अवलंबियाण कंधंसि ॥६२।। २७६. एस विधी अणुक्कंतो माहणेण मतीमता । बहुसो अपडिण्णेण भगवया एवं रीयं(य?)ति ||६३|| त्ति बेमि नवमस्य प्रथमः ॥★★★ बीओ उद्देसओ २७७. चरियासणाई सेज्जाओ एगतियाओ जाओ बूइताओ। आइक्खं ताई सयणासणाइं जाइं सेवित्थ से महावीरे ॥६४।। २७८. आवेसण-सभा-पवासु पणियसालासु एगदा वासो। अदुवा पलियट्ठाणेसु पलालपुंजेसु एगदा वासो॥६५॥ २७९. आगंतारे आरामागारे नगरे वि एगदा वासो। सुसाणे सुण्णगारे वा रुक्खमूले वि एगदा वासो।।६६।। २८०. एतेहिं मुणी सयणेहिं समणे आसि पतेलस वासे । राइंदिवं पि जयमाणे अप्पमत्ते समाहिते झाती ॥६७॥ २८१. णि पिणो पगामाए सेवइया भगवं उठाए । जग्गावतीय अप्पाणं ईसिं साईय अपडिण्णे ॥६८।। २८२. संबुज्झमाणे पुणरवि आसिंसु भगवं उठाए । णिक्खम्म एगया राओ बहिं चक्कमिया मुहुत्तागं ॥६९।। २८३. सयणेहिं तस्सुवसग्गा भीमा आसी अणेगरूवा य । संसप्पगा य जे पाणा अदुवा पक्खिणो उवचरंति ।।७०|| २८४. अदु कुचरा उवचरंति गामरक्खा य सत्तिहत्था य । अदु गामिया उवसग्गा इत्थी एगतिया पुरिसा य ॥७१।। २८५. इहलोइयाई परलोइयाइं भीमाइं अणेगरूवाई । अवि सुब्भिदुब्भिगंधाइं सद्दाई अणेगरूवाई ।।७२।। २८६. अधियासए सया समिते फासाइं विरूवरूवाइं । अरति रति अभिभूय रीयति माहणे अबहुवादी ॥७३।। २८७. स जणेहिं तत्थ पुच्छिंसु एगचरा वि एगदा रातो । अव्वाहिते कसाइत्था पेहमाणे समाहिं अपडिण्णे |७४।। २८८. अयमंतरंसि को एत्थ अहमंसि त्ति भिक्खू आहट्ट । अयमुत्तमे से धम्मे तुसिणीए सकसाइए झाति ॥७५|| २८९. जंसिप्पेगे पवेदेति सिसिरे मारुए पवायते । तंसिप्पेगे अणगारा हिमवाते णिवायमेसंति ।।७६।। २९०. संघाडीओ पविसिस्सामो एधा य समादहमाणा। पिहिता वा सक्खामो अतिदक्खं हिमगसंफासा ।।७७|| २९१. तंसि भगवं अपडिपणे अधे विगडे अधियासते दविए। rores555555555555554श्री आगमगुणमजूषा- १६955555555555555555555555555POK Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 300555555555 (१) आयारो-प.सु.९ अ. उवहाणसुर्य उद्देसक-२-३-४१७] 55555555555 गणिक्खम्म एगदा रातो चाएति भगवं समियाए॥७८॥ २९२. एस विही अणुक्तो माहणेण मतीमता। बहुसो अपडिण्णेणं भगवया एवं रीयं(य?)ति ॥७९॥ ति बेमि। | | नवमस्य द्वितीयः ।।* *मैतईओ उद्देसओ २९३. तणफास सीतफासे य तेउफासे य दंसमसगेय।अहियासते सया समिते फासाइं विरूवरूवाई ॥८०॥ २९४. अह दुच्चरलाढमचारी वज्जभूमिं च सुब्भभूमिं च । पंतं सेज सेविंसु आसणगाई चेव पंताई ॥८१॥ २९५. लाढेहिं तस्सुक्सग्गा बहवे जाणवया लूसिंसु । अह लूहदेसिए भत्ते कुक्कुरा तत्थ हिसिंसु णिवतिसु ॥८२।। २९६. अप्पे जणे णिवारेति लूसणए सुणए डसमाणे। छुच्छुकारेति आहेतु समणं कुक्कुरा दसंतु त्ति ॥८३|| २९७. एलिक्खए जणे भुज्जो बहवे वज्जभूमि फरुसासी। लढिं गहाय णालीयं समणा तत्थ एव विहरिंसु ॥८४॥ २९८. एवं पि तत्थ विहरंता पुट्ठपुव्वा अहेसि सुणएहिं। संलुचमाणा सुणएहिं दुच्चरगाणि तत्थ लाढेहिं ।।८५।। २९९. णिधाय डंडं पाणेहिं तं वोसज्ज कायमणगारे। अह गामकंटए भगवं ते अधियासए अभिसमेच्चा ॥८६॥ ३००. णाओ संगामसीसे वा पारए तत्थ से महावीरे। एवं पि तत्थ लाहिं अलद्धपुन्वो वि एगदा गामो ||८७॥३०१. उवसंकमंतमपडिण्णं * गामंतियं पि अपत्तं । पडिणिक्खमित्तु लूसिंसु एत्तातो परं पलेहि त्ति ॥८८॥ ३०२. हतपुव्वो तत्थ डंडेणं अदुवा मुट्ठिणा अदु फलेणं। अदुलेलुणा कवालेणं हंता ॐ हंता बहवे कंदिसु ।।८९॥ ३०३. मंसूणि छिण्णपुव्वाइं उट्ठभियाए एगदा कायं । परिस्सहाई लुंचिंसु अदुवा पंसुणा अवकरिंसु ॥९०॥ ३०४. उच्चालझ्य णिहणिंसु अदुवा आसणाओ खलइंसु।वोसट्टकाए पणतासी दुक्खसहे भगवं अपडिण्णे ॥९१॥३०५. सूरो संगामसीसे वा संवुडे तत्थ से महावीरे। पडिसेवमाणो # फरुसाइं अचले भगवं रीयित्था ।।९२।। ३०६. एस विही अणुक्तो माहणेण मतीमता | बहुसो अपडिण्णेणं भगवया एवं रीयति ॥९३| त्ति बेमि। ★★★॥ नवमस्य तृतीयः ||★★★ चउत्थो उद्देसओ ३०७. ओमोदरियं चाएति अपुढे वि भगवं रोगेहिं । पुढे व से अपुढे वा णो से सातिज्जती तेइच्छं ॥९४॥३०८. संसोहणं च वमणं च गायब्भंगणं सिणाणं च । संबाहणं न से कप्पे दंतपक्खालणं परिण्णाए ॥९५॥ ३०९. विरते य गामधम्मेहिं रीयति माहणे अबहुबादी। सिसिरंसि एगदा भगवं छायाए झाति आसी य ।।१६।। ३१०. आयावइ य गिम्हाणं अच्छति उक्कुडए अभितावे । अदु जावइत्थ लूहेणं ओयण-मंथु-कुम्मासेणं ॥९७॥ ३११. एताणि तिण्णि पडिसेवे अट्ठ मासे अ जावए भगवं । अपिइत्थ एगदा भगवं अद्धमासं अदुवा मासं पि॥९८।। ३१२. अवि साहिए दुवे मासे छप्पि के मासे अदुवा अपिवित्था। राओवरातं अपडिण्णे अण्णगिलायमेगता भुंजे ॥९९॥ ३१३. छटेण एगया भुंजे अदुवा अट्टमेण दसमेण । दुवालसमेण एगदा मुंजे पेहमाणे समाहिं अपडिण्णे ॥१००॥ ३१४. णच्चाण से महावीरे णो वि य पावगं सयमकासी । अण्णेहिं वि ण कारित्था कीरंतं पि णाणुजाणित्था ॥१०१॥ ३१५. गाम पविस्स णगरं वा घासमेसे कडं परट्ठाए। सुविसुद्धमेसिया भगवं आयतजोगताए सेवित्था ॥१०२॥ ३१६. अदु वायसा दिगिछत्ता जे अण्णे रसेसिणो सत्ता। घासेसणाए चिट्ठते सययं णिवतिते य पेहाए।।१०३।। ३१७. अदु माहणं व समणं वा गामपिंडोलगं च अतिहिं वा । सोवाग मूसियारिं वा कुक्कुरं वा वि विहितं पुरतो॥१०४।। ३१८. वित्तिच्छेदं वज्जेतो तेसऽप्पत्तियं परिहरंतो। मंदं परक्कमे भगवं अहिंसमाणो घासमेसित्था॥१०५॥ ३१९. अवि सूइयं व सुक्कं वा सीयपिंडं पुराणकुम्मासं । अदु बक्कसं पुलागं वा लद्धे पिंडे अलद्धए दविए ॥१०६।। ३२०. अवि झाति से महावीरे आसणत्थे अकुक्कुए झाणं । उड्डे अधे य तिरियं च पेहमाणे समाहिमपडिण्णे ॥१०७।। ३२१. अकसायी विगतगेही य सद्द-रूवेसऽमुच्छिते झाती । छउमत्थे वि विप्परक्कममाणे ण पमायं सइं पि कुश्वित्था॥१०८।। ३२२. सयमेव अभिसमागम्म आयतजोगमायसोहीए। अभिणिव्वुडे अमाइल्ले आवकहं भगवं समितासी॥१०९॥ ३२३. एस विही अणुक्कतो ॐ माहणेण मतीमता । बहुसो अपडिण्णेणं भगवया एवं रीयति ।।११०॥ त्ति बेमि।। ओहाणसुयं समत्तं । नवममध्ययनं समाप्तम् ॥9 ॥ ब्रह्मचर्याणि' आचाराङ्गस्य प्रथमः श्रुतस्कन्धः समाप्तः। आयारंगसुत्ते बीओ सुयक्खंधो पढमा चूला ॥ १ पढमं अज्झयणं 'पिंडेसणा' पढमो उद्देसओ ॐ नम: ३२४. से भिक्खूवा भिक्खूणी वा गाहावतिकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठेसमाणे सेजं पुण जाणेज्जा असणंवा पाणं वा खाइमंवा साइमंवा पाणेहिं वा पणएहिंवा बीएहिं हरिएहिंवा संसत्तं उम्मिस्सं सीओदएण वा ओसित्तं रयसा वा परिघासिय, तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा परहत्थंसि वा परपायंसि वा अफासुयं अणेसणिज्जं ति YO'EF听听听听听听听听听听听听乐乐乐明明玩乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听 Q$听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 KOR9555555555 Mero5555555555555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा- १७5555555555555555555555$OOR Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HOSTC$乐明乐乐乐乐乐玩乐玩玩乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听 AGR955555555555 (१) आयारो - बी. सु. १ अ. पिडेसणा उद्देसक १२१८] 国% %%%%%%%%RMOS मण्णमाणे लाभे वि संते णो पडिगाहेज्जा । से य आहच्च पडिगाहए सिया, से त्तमादाय एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमित्ता अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अप्पंडे अप्पपाणे अप्पबीए अप्पहरिते अप्पोसे अप्पुदए अप्पुत्तिंग-पणग-दगमट्टिय-मक्कडासंताणए विगिचिय विगिचिय उम्मिस्सं विसोहिय विसोहिय ततो संजतामेव भुंजेज वा पिएज्ज वा । जं चणो संचाएज्जा भोत्तए वा पात्तए वा सेत्तमादाय एगंतमवक्कमेज्जा, २ त्ता अहे झामथंडिलंसि वा अद्विरासिसि वा किट्टरासिसि वा तुसरासिसि वा गोमयरासिसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि पडिलेहिय पडिलेहिय पमज्जिय पमज्जिय ततो संजयामेव परिट्ठवेज्जा । ३२५. से भिक्खू वा भिक्खूणी वा गाहावति जाव पविढे समाणे से ज्जाओ पुण ओसहीओ जाणेज्जा कसिणाओ सासियाओ अविदलकडाओ अतिरिच्छच्छिण्णाओ अव्वोच्छिण्णाओ तरुणियं वा छिवाडिं अणभिक्ताभज्जितं पेहाए अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । से भिक्खू वा २ जाव पविढे समाणे से ज्जाओ पुण ओसहीओ जाणेज्जा अकसिणाओ असासियाओ विदलकडाओ तिरिच्छच्छिण्णाओ वोच्छिण्णाओ तरुणियं वा छिवाडिं अभिक्कंतभज्जियं पेहाए फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेजा । ३२६. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा पिहुयं वा बहुरजं वा भुज्जियं वा मंथु वा चाउलं वा चाउलपलंबं वा सई भज्जियं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा । से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जा पिहुयं वा जाव चाउलपलंब वा असई भज्जियं दुक्खुत्तो वा भज्जियं तिक्खुत्तो वा भज्जियं फासुयं एसणिज्जं लाभे संतेजाव पडिगाहेज्जा। ३२७. से भिक्खू वा २ गाहावतिकुलं जाव पविसित्तुकामे णो अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा परिहारिओ वा अपरिहारिएण सद्धिं गाहावतिकुलं पिंडवायपडियाए पविसेज वा णिक्खमेज्ज वा । ३२८. से भिक्खू वा २ बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा णिक्खममाणे वा पविसमाणे वा णो अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा परिहारिओ वा अपरिहारिएण सद्धिं बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा णिक्खमेज्ज वा पविसेज्ज वा। ३२९. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे णो अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा परिहारिओ अपरिहारिएण वा सद्धिंगामाणुगामं दूइज्जेज्जा। ३३०. से भिक्खू वा २ जाव पविढे समाणे णो अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा परिहारिओ अपरिहारियस्स वा असणं वा ४ देज्जा वा अणुपदेज्जा वा । ३३१. से भिक्खू वा २ जाव पविढे समाणे से जं पुण जाणेज्जा असणं वा ४ अस्सिंपडियाए एणं साहम्मियं समुहिस्स पाणाई भूताइं जीवाइं सत्ताइं समारंभ समुद्दिस्स कीतं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसट्ठ अभिहडं आहट्ट चेतेति, तं तहप्पगारं असणं वा ४ पुरिसंतरकर्ड बा अपुरिसंतरकर्ड वा बहिया णीहडं वा अणीहडं वा अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा आसेवितं वा अणासेवितं वा अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा । एवं बहवे साहम्मिया एगं साहम्मिणिं बहवे ] 9 साहम्मिणीओ समुद्दिस्स चत्तारि आलावगा भाणितव्वा । ३३२. १. से भिक्खू वा २ जाव पविढे समाणे से जं पुण जाणेज्जा असणं वा ४ बहवे समण-माहण अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय पगणिय समुद्दिस्स पाणाइं जाव सत्ताई समारंभ आसेवियं वा अणासेवियं वा अफासुयं अणेसणिज्नं ति मण्णमाणे लाभे संते जाव णो पडिगाहेजा। २. से भिक्खू वा २ जाव पविढे समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा असणं वा ४ बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स पाणाई ४ जाव आहट्ट चेतेति, तं तहप्पगारं असणं वा ४ अपुरिसंतरकर्ड अबहिया णीहडं अणत्तट्ठियं अपरिभुत्तं अणासेवितं अफासुयं अणेसणिज्जं जाव णो पडिगाहेज्जा । अह पुण एवं जाणेज्जा पुरिसंतरकडं बहिया णीहडं अत्तट्ठियं परिभुत्तं आसेवितं फासुयं एसणिज्जं जाव पडिगाहेज्जा । ३३३. से भिक्खू वा २ गाहावतिकुलं पिंडवातपडियाए पविसित्तुकामे से ज्जाइं पुण कुलाइं जाणेज्जा इमेसु खलु कुलेसु णितिए पिंडे दिज्जति, णितिए अग्गपिंडे दिज्जति, णितिए भाए दिज्जति, णितिए अवड्ढभाए दिज्जति, तहप्पगाराई कुलाइं णितियाइं णितिउमाणाई णो भत्ताए वा पाणाए वा पविसेज्ज वा णिक्खमेज्ज वा। ३३४. एयं खलू तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं ॐ जं सव्वदे॒हिं समिते सहिते सदा जए त्ति बेमि ।***|| आचारस्य द्वितीयश्रुतस्कन्धे पिण्डैषणाध्ययनस्य प्रथमोद्देशक: समाप्तः ॥XXXबीओ उद्देसओ ॐ ३३५. से भिक्खू वा २ गाहावतिकुलं पिंडवातपडियाए अणुपविढे समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा, असणं वा ४ अट्ठमिपोसहिएसु वा अद्धमासिएसु वा मासिएसु वा दोमासिएसु वा तेमासिएसु वा चाउमासिएसु वा पंचमासिएसु वा छम्मासिएसु वा उऊसु वा उदुसंधीसु वा उदुपरियट्टेसु वा बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण Q听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听劣听听听听听听听乐Q %%% 495555555555 me:5555555555555555॥ श्री आगमगुणमंजूषा- 27 5 ##OOK Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ N 5 5 5 5 5 5 55555 XXKKKK¶¶¶¶¶¶_ (१) आयारो बी. सु. १ अ. पिंडेसणा उद्देसक २-३ [१९] वणी गातो उक्खातो परिएसिज्जमाणे पेहाए, दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए, तिहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए, कुंभीमुहातो वा कलोवातितो संणिहिसंणिचयातो वा परिएसिज्जमाणे पेहाए, तहप्पगारं असणं वा ४ अपुरिसंतरकडं जाव अणासेवितं अफासुर्य अणेसणिज्जं जाव णो पडिगाज्जा । अह जाना पुरिसंतरकडं जाव आसेवितं फासुयं जाव पडिगाहेज्जा । ३३६. से भिक्खू वा २ जाव अणुपविट्टे समाणे से ज्जाइं पुण कुलाई जाणेज्जा, तंजहा उग्गकुलाणि वा भोगकुलाणि वा राइणकुलाणि वा खत्तियकुलाणि वा इक्खागकुलाणि वा हरिवंसकुलाणि वा एसियकुलाणि वा वेसियकुलाणि वा गंडागकुलाणि वा कोट्टागकुलाणि वा गामरक्खाणि वा बोक्कसालियकुलाणि वा अण्णतरेसु वा तहप्पगारेसु अदुगुछिएसु अगरहितेसु असणं वा ४ फासूयं जाव पडिगाहेज्जा । ३३७. से भिक्खू वा २ जाव अणुपविट्टे समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा असणं वा ४ समवाएसु वा पिंडणियरेसु वा इंदमहेसु वा खंदमहेसु वा एवं रुद्दमहेसु वा मुगुंदमहेसु वा भूतमहेसु वा महेसु वा नागमहेसु वा धूभमहेसु वा चेतियमहेसु वा रुक्खमहेसु वा गिरिमहेसु वा दरिमहेसु वा अगडमहेसु वा तलागमहेसु वा दहमहेसु वा णदिमहेसु वा सरमहेसु वा सागरमहेसु वा आगरमहेसु वा अण्णतरेसु वा तहप्पगारेसु विरूवरूवेसु महामहेसु वट्टमाणेसु बहवे समण-माहण- अतिहि किवण-वणीमए एगातो उक्खातो परिएसिज्जमाणे दोहिं जाव संणिहिसंणिचयातो वा परिएसिज्जमाणे पेहाए तहप्पगारं असणं वा ४ अपुरिसंतरगयं जाव णो पडिगाहेज्जा । अह पुण एवं जाणेज्जा-दिण्णं जं तेसिं दायव्वं, अह तत्थ भुंजमाणे पेहाए गाहावतिभारियं वा गाहावतिभगिणिं वा गाहावतिपुत्तं वा गाहावतिधूयं वा सुण्हं वा धातिं वा दासं वा दासि वा कम्मकरं वा कम्मकरिं वा से पुव्वामेव आलोएज्जा आउसो त्ति वा भगिणि त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं भोयणजायं ? से सेवं वदंतस्स परो असणं वा ४ आहट्टु दलज्जा, तहप्पगारं असणं वा ४ सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्ना, फासुयं जाव पडिगाहेज्जा । ३३८. से भिक्खू वा २ परं अद्धजोयणमेराए संखडिं संखडिपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। से भिक्खू वा २ पाईणं संखडिं णच्चा पडीणं गच्छे अणाढायमाणे, पडीणं संखडिं णच्चा पाईणं गच्छे अणाढायमाणे, दाहिणं संखडिं णच्चा उदीणं गच्छे अणाढायमाणे, उदीणं संखडिं णच्चा दाहिणं गच्छे अणाढायमाणे । जत्थेव सा संखडी सिया, तंजहा गामंसि वा नगरंसि वा खेडंसि वा कब्बडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आगरंसि वा आसमंसि वा संणिवेसंसि वा जाव रायहाणिसि वा संखडिं संखडिपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । केवली बूया आयाणमेतं । संखडिं संखडिपडियाए अभिसंधारेमाणे आहाकम्मियं वा उद्देसियं वा मीसज्जायं वा कीयगडं वा पामिच्चं वा अच्छेज्जं वा अणिसद्धं वा अभिहडं वा आहट्टु दिज्जमाणं भुंजेज्जा, अस्संजते भिक्खुपडियाए खुड्डियदुवारियाओ महल्लियाओ कुज्जा, महल्लियदुवारियाओ खुड्डियाओ कुज्जा, समाओ सेज्जाओ विसमाओ कुज्जा, विसमाओ सेज्जओ समाओ कुज्जा पवाताओ सेज्जाओ णिवायाओ कुज्जा, णिवायाओ सेज्जाओ पवाताओ कुज्जा, अंतो वा बहिं वा कुज्ना उवस्सयस्स हरियाणि छिदिय २ दालिय २ संधारगं संथारेज्जा, एस खलु भगवया मीसज्जाए अक्खाए । तम्हा से संजते णियंठे तहप्पगारं पुरेसंखडिं वा पच्छासंखडिं वा संखडिं संखडिपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । ३३९. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वहिं समिते सहिते सदा जए त्ति बेमि।★★★ ॥ पिण्डैषणाध्ययनस्य द्वितीय उद्देशकः समाप्तः ॥ ★★★ तईओ उद्देसओ ३४०. से एगतिओ अण्णतरं संखडिं असित्ता पिबित्ता छड्डेन वा, वमेज्ज वा, भुत्ते वा से णो सम्मं परिणमेज्जा, अण्णतरे वा से दुक्खे रोगातंके समुप्पज्जेज्जा । केवली बूया आयाणमेतं । इह खलु भिक्खू गाहावतीहिं वा गाहावतीणीहिं वा परिवायएहिं वा परिवाइयाहिं वा एगज्झं सद्धिं सोडं पाउं भो वतिमिस्सं हुरत्था वा उवस्सयं पडिलेहमाणे णो लभेज्जा तमेव उवस्यं सम्मिस्सीभावमावज्जेज्जा, अण्णमणे वा से मत्ते विप्परियासियभूते इत्थिविग्गहे वा किलीबे वा, तं भिक्खु उवसंकमित्तु बूया- आउसंतो समणा ! अहे. आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा रातो वा वियाले वा गामधम्मनियंतियं कट्टु रहस्सियं मेहुणधम्मपरियारणाए आउट्टामो। तं चेगइओ सातिज्जेज्जा । अकरणिज्जं चेतं संखाए, एते आयाणा संति संचिज्जमाणा पच्चवाया भवंति । तम्हा से संजए णियंठे तहप्पगारं पुरेसंखडिं वा पच्छासंखडिं वा संखडिं संखडिपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । ३४१. से भिक्खू वा २ अण्णतरं संखडि सोच्चा णिसम्म संपहावति उस्सुयभूतेणं अप्पाणेणं, धुवा संखडी । णो संचाएति तत्थ इतराइतरेहिं T 76 श्री आगमगुणमजूषा - १९ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRO:195555555555 1555 5555EOSong 乐乐555555乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听MC कुलेहिं सामुदाणियं एसियं वेसियं पिंडवातं पडिगाहेता आहारं आहारेत्तए । माइट्ठाणं संफासे । णो एवं करेजा। से तत्थ कालेण अणुपविसित्ता तत्थितराइतरेहि कुलेहि सामुदाणियं एसियं वेसियं पिंडवातं पडिगाहेत्ता आहारं आहारेज्जा। ३४२. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण जाणेज्जा गामं वा जाव रायहाणिं वा, इमंसि खलु गामंसि वा जाव रायहाणिसि वा संखडी सिया, तं पियाइं गामं वा जाव रायहाणिं वा संखडिं संखडिपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गेमणाए। केवली बूया-आयाणमेतं । आइण्णोमाणं संखडिं अणुपविस्समाणस्स पाएण वा पाए अकंतपुव्वे भवति, हत्थेण वा हत्थे संचालियपुव्वे भवति, पाएण वा पाए आवडियपुव्वे भवति, सीसेण वा सीसे संघट्टियपुव्वे भवति, काएण वा काए संखोभितपुव्वे भवति, दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलुणा वा कवालेण वा अभिहतपुव्वे भवति, सीतोदएण वा ओसित्तपुव्वे भवति, रयसा वा परिघासितपुव्वे भवति, अणेसणिज्जे वा परिभुत्तपुव्वे भवति, अण्णेसिं वा दिज्जमाणे पडिगाहितपुव्वे भवति । तम्हा से संजते णियंठे तहप्पगारं आइण्णोमाणं संखडि संखडिपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । ३४३. से भिक्खू वा २ जाव पविढे समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा असणं वा ४ 'एसणिज्जे सिया, अणेसणिज्ने सिया' । वितिगिंछसमावण्णेण अप्पाणेण असमाहडाए लेस्साए तहप्पगारं असणं वा ४ लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । ३४४.१ से भिक्खू वा २ गाहावतिकुलं पविसित्तुकामे सव्वं भंडगमायाए गाहावतिकुलं पिंडवातपडियाए पविसेज्ज वा णिक्खमेज वा। २ से भिक्खू वा २ बहिया विहारभूमि वा वियारभूमि वा णिक्खममाणे वा पविस्समाणे वा सव्वं भंडगमायाए बहिया विहारभूमि वा वियारभूमि वा णिक्खमेज्ज वा पविसेज वा। ३ से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे सव्वं भंडगमायाए गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। ३४५. से भिक्खू वा २ अह पुण एवं जाणेज्जा, तिव्वदेसियं वा वासं वासमाणं पेहाए, तिव्वदेसियं वा महियं संणिवदमाणि पेहाए, महावाएण वा रयं समुद्भुतं पेहाए, तिरिच्छं संपातिमा वा तसा पाणा संथडा संणिवतमाणा पेहाए, से एवं णच्चा णो सव्वं भंडगमायाए गाहावतिकुलं पिंडवायपडियाए पविसेज वा णिक्खमेज्ज वा, बहिया विहारभूमि वा वियारभूमि वा णिक्खमेज्ज वा पविसेज वा, गामाणुगामं वा दूइज्जेज्जा । ३४६. से भिक्खू वा २ से ज्जाइं पुणो कुलाइं जाणेज्जा, तंजहा खत्तियाण वा राईण वा कुराईण वा रायपेसियाण वा रायवंसट्ठियाण वा अंतो वा बाहिं वा गच्छंताण वा संणिविट्ठाण वा णिमंतेमाणाण वा अणिमंतेमाणाण वा असणं वा ४ लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। ३४७. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं ★★★|| पिण्डैषणाध्ययनस्य तृतीय उद्देशकः समाप्तः॥★★★ चउत्थो उद्देसओ ३४८. से भिक्खू वा २ जाव पविढे समाणे से ज्ज पुण जाणेज्जा, मंसादियं वा मच्छादियं वा मसंखलं वा मच्छखलं वा आहेणं वा पहेणं वा हिंगोलं वा संमेलं वा हीरमाणं पेहाए, अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया बहुहरिया बहुओसा बहुउदया बहुउत्तिंग-पणग-दगमट्टिय-मक्कडासंताणगा, बहवे तत्थ समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा उवागता उवागमिस्संति, अच्चाइण्णा वित्ती, णोपण्णस्स णिक्खमण-पवेसाए, णो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणा-ऽणुप्पेह-धम्माणु-योगचिंताए । से एवं णच्चा तहप्पगारं पुरेसंखडि वा पच्छासंखडिं वा संखडिं संखडिपडियाए णो अभिसंधारेज्न गमणाए । से भिक्खू वा २ जाव पविढे समाणे से जं पुण जाणेज्जा मंसादियं वा जाव संमेलं वा हीरमाणं पेहाए अंतरा से मग्गा अप्पंडा जाव संताणगा, णो जत्थ बहवे समण-माहण जाव उवागमिस्संति, अप्पाइण्णा वित्ती, पण्णस्स णिक्खमण-पवेसाए, पण्णस्स वायण पुच्छण-परियट्टणाऽणुप्पेह-धम्माणुयोगचिंताए । सेवं णच्चा तहप्पगारं पुरेसंखडि वा पच्छासंखडि वा संखडिं संखडिपडियाए अभिसंधारेज गमणाए। ३४९. से भिक्खू वा २ गाहावति जाव पविसित्तुकामे से जं पुण जाणेज्जा, खीरिणीओ गावीओ खीरिज्नमाणीओ पहाए, असणं वा ४ उवक्खडिज्जमाणं पेहाए, पुरा अप्पजूहिते। सेवं णच्चा णो गाहावतिकुलं पिंडवायपडियाए णिक्खमेज्ज वा पविसेज्ज वा । सेत्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एर्गतमक्कमित्ता अणावायमसंलोए चिट्ठज्जा । अह पुण एवं जाणेज्जा, खीरिणीओ गावीओ खीरियाओ पेहाए, असणं वा ४ उवक्खडितं पेहाए, पुरा पजूहिते। सेवं णच्चा ततो संजयामेव गाहावतिकुलं पिंडवातपडियाए णिक्खमेज्ज वा पबिसेज्ज वा। ३५०. भिक्खागा णामेगे एवमासु समाणा वा वसमाणा वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे-खुड्डाए खलु अयं गामे, संणिरुद्धाए, णो महालए, से हता भयंतारो बाहिरगाणि गामाणि भिक्खायरियाए वयह । संति तत्थेगतियस्स भिक्खुस्स पुरेसंथुया वा पच्छासंथुया वा परिवसंति, तंजहा गाहावती वा गाहावतिणीओ MO.959555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - २०955555555555555555555555555OOR 5C乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明听听听听听听听听听听听听22 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROHO$$$$$$$$$5 (१) आयारो - बी. सु.१ अ. पिंडेसणा उद्देसक ४,५ २१] 4545555555$$sexOR CO$$$$$$乐乐乐乐乐$坎明明明明明明明明$$$$$$$$$$$乐乐明$$$$$$$$$$$$$6C वा गाहावतिपुत्ता वा गाहावतिधूताओ वा गाहावतिसुण्हाओ वा धातीओ वा दासा वा दासीओ वा कम्मकरा वा कम्मकरीओ वा। तहप्पगाराई कुलाइं पुरेसंथुयाणि वा पच्छासंथुयाणि वा पुव्वामेव भिक्खायरियाए अणुपविसिस्सामि, अवियाईत्थ लभिस्सामि पिंडं वा लोयं वा खीरं वा दहिं वा णवणीतं वा घयं वा गुलं वा तेल्लं' वा महुँ वा मज्ज वा मंसं वा संकुलि फाणितं वा पूयं वा सिहरिणिं वा, तं पुव्वामेव भोच्चा पिच्चा पडिग्गहं च संलिहिय संमज्जिय ततो पच्छा भिक्खूहिं सद्धि गाहावतिकुलं पिंडवातपडियाए पविसिस्सामि वा णिक्खमिस्सामि वा । माइट्ठाणं संफासे । णो एवं करेज्जा । से तत्थ भिक्खूहि सद्धिं कालेण अणुपविसित्ता तत्थितरातियरेहिं कुलेहिं सामुदाणियं एसितं वेसितं पिंडवातं पडिगाहेत्ता आहारं आहारज्जा। ३५१. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं ***॥ प्रथमस्य चतुर्थोद्देशक: समाप्त: ॥ पंचमो उद्देसओ ३५२. से भिक्खू वा २ जाव पविठू समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा, अग्गपिंडं उक्खिप्पमाणं पेहाए, अग्गपिंडं णिक्खिप्पमाणं पेहाए, अग्गपिंड हीरमाणं पेहाए, अग्गपिंडं परिभाइज्जमाणं पेहाए, अग्गपिंडं परिभुज्जमाणं पेहाए, अग्गपिंड परिठ्ठविज्जमाणं पेहाए, पुरा असिणादि वा अवहारादि वा, पुरा जत्थऽण्णे समणमाण-अतिहि-किवण-वणीमगा खद्धं खद्धं उवसंकमंति, से हंता अहमवि खद्धं २ उवसंकमामि। माइट्ठाणं संफासे। णो एवं करेज्जा । ३५३. से भिक्खूवा २ जाव समाणे अंतरा से वप्पाणि वा फलिहाणि वा पागाराणि वा तोरणाणि वा अग्गलाणि वा अग्गलपासगाणि वा, सति परक्कमे संजयामेव परक्कमेना, णो उज्जुयं गच्छेज्जा । केवली बूया आयाणमेतं । से तत्थ परक्कममाणे पयलेज वा पवडेज वा, से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा तत्थ से काए उच्चारेण वा पासवणेण वा खेलेण वा सिंघाणएण वा वंतेण वा पित्तेण वा पूएण वा सुक्केण वा सोणिएण वा उवलित्ते सिया। तहप्पगारं कायं णो अणंतरहियाए पुढवीए, णो ससणिद्धाए पुढवीए, णो ससरक्खाए पुढवीए, णो चित्तमंताए सिलाए, णो चित्तमंताए लेलूए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपतिहिते सअंडे सपाणे जाव संताणए णो(?) आमज्जेज वा, णो(?) पमज्जेज वा, संलिहेज्ज वा णिल्लिहेज्ज वा उव्वलेज्ज वा उव्वट्टेज वा आतावेज वा पयावेज्न वा । से पुव्वामेव अप्पससरक्खं तणं वा पत्तं वा कट्टं वा सक्करं वा जाएज्जा, जाइत्ता सेत्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, २ ता अहे झामथंडिल्लंसि वा जाव अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि पडिलेहिय २ पमज्जिय २ ततो संजयामेव आमज्जेज वा जाव पयावेज वा । ३५४. से भिक्खू वा २ जाव पविढे समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा गोणं वियालं पडिपहे पेहाए, महिसं वियालं पडिपहे पेहाए एवं मणुस्सं असं हत्थिं सीहं वरघं विगं दीवियं अच्छं तरच्छं परिसरं सियालं बिरालं सुणयं कोलसुणयं कोकंतियं चित्ताचेल्लड़यं वियालं पडिपहे पेहाए सति परक्कमे संजयामेव परक्कमज्जा, णो उज्जुयं गच्छेज्जा । ३५५. से भिक्खू वा २ जाव समाणे अंतरा से ओवाए वा खाणुं वा कंटए वा घसी वा भिलुगा वा विसमे वा विज्जले वा परियावज्जेज्जा । सति परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा , णो उज्जुयं गच्छेज्जा । ३५६. से भिक्खू वा २ गाहावतिकुलस्स दुवारबाहं कंटगबोंदियाए पडिपिहितं पेहाए तेसिं पुवामेव उग्गह अणणुण्णविय अपडिलेहिय अप्पमज्जिय णो अवंगुणेज्ज वा पविसेज वा णिक्खमेज्ज वा । तेसिं पुव्वामेव उग्गहं अणुण्णविय पडिलेहिय पमज्जिय ततो संजयामेव अवंगुणेज्ज वा पविसेज वा णिक्खमेज्ज वा। ३५७. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से ज्ज पुण जाणेज्जा, समणं वा माहणं वा गामपिंडोलगं वा अतिहिं वा पुव्वपविट्ठ पेहाए णो तेसिं संलोए सपडिदुवारे चिट्ठज्जा । केवली बूयाआयाणमेतं । पुरा पेहा एतस्सहाए परो असणं वा ४ आहट्ट दलएज्जा । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पतिण्णा, एस हेतू, एस उवएसे जंणो तेसिं संलोए सपडिदुवारे ॥ चिट्ठिज्जा । सेत्तमादाए एगंतमवक्कमेज्जा, २ त्ता अणावायमसंलोए चिट्ठज्जा । से से परो अणावातमसंलोए चिट्ठमाणस्स असणं वा ४ आहटु दलएज्जा, से सेवं वदेज्जा आउसंतो समणा ! इमे भे असणे वा ४ सव्वजणाए णिसटे, तं भुंजह व णं परिभाएह व णं । तं चेगतिओ पडिगाहेत्ता तुसिणीओ उवेहेज्जा-अवियाई एयं के ममामेव सिया। माइट्ठाणं संफासे । णो एवं करेज्जा । सेत्तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, २त्ता से पुवामेव आलोएज्जा आउसंतो समणा । इमे भे असणे वा ४ सव्वजणाए ॐ णिसढे, तं भुंजह व णं परियाभाएह व णं । से णमेवं वदंतं परो वदेज्जा-आउसंतो समणा । तुमं चेव णं परिभाएहि। से तत्थ परिभाएमाणे णो अप्पणो खद्धं २ डायं २ ऊसद २ रसिय २ मणुण्णं २ णिद्धं २ लुक्खं २ । से तत्थ अमुच्छिते अगिद्धे अगढिए अणज्झोववण्णे बहुसममेव परिभाएज्जा। से णं परिभाएमाणं परो वदेज्जा $5乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听CC Ro 5 555555 श्री आगमगणमंजूषा -२१ OOK Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KO195555555555 (ए) आयारो- बी. सु.१ अ. पिंडेसणा उद्देसक-१-६७.[२२] 5555555555FONOR र आउसंतो समणा ! मा णं तुमं परिभाएहि, सव्वे वेगतिया भोक्खामो वा पाहामो वा । से तत्थ भुंजमाणे णो अप्पणो खद्धं खद्धं जाव लुक्खं । से तत्थ अमुच्छिए ४ बहुसममेव भुजेज्ज वा पाएज्ज वा । से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जा, समणं वा माहणं वा गामपिंडोलग वा अतिहिं वा पुव्वपविट्ठ पेहाए णो ते उवातिक्कम्म पविसेज वा ओभासेज वा। सेत्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, २ ता अणावायमसंलोए चिट्ठज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा पडिसेहिए व दिपणे वा. तओ तम्मि णिवट्टिते संजयामेव पविसेज वा ओभासेज्ज वा । ३५८. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं ।★★★। पिण्डैषणाध्ययनस्य पञ्चम: ||★★★ छट्ठो उद्देसओ ३५९. से भिक्खूवा २ जाव समाणे से ज्ज पुण जाणेज्जा, रसेसिणो बहवे पाणा घासेसणाए संथडे संणिवतिएपेहाए, तंजहा कुक्कुडजातियं वा सूयरजातियं वा, अग्गपिंडंसि वा वायसा संथडा संणिवतिया पेहाए, सति परक्कमे संजया णो उज्जुयं गच्छेज्जा । ३६०. से भिक्खू वा २ जाव समाणे णो गाहावतिकुलस्स दुवारसाहं अवलंबिय २ चिट्ठज्जा, णो गाहावतिकुलस्स दगछड्डणमेत्तए चिट्ठज्जा, णो गाहावतिकुलस्स चंदणिउयए चिट्ठज्जा, णो गाहावतिकुलस्स असिणाणस्स वा वच्चस्स वा संलोए सपडिदुवारे चिट्ठज्जा, णो गाहावतिकुलस्स आलोयं वा थिग्गलं वा संधि वा दगभवणं वा बाहाओ पगिज्झिय २ अंगुलियाए वा उद्दिसिय २ ओणमिय २ उण्णमिय २ णिज्झाएज्जा । णो गाहावतिं अंगुलियाए उद्दिसिय २ जाएज्जा, णो गाहावतिं अंगुलियाए चालिय २ जाएजा, णो गाहावतिं अंगुलियाए तज्जिय २ जाएज्जा, णो गाहावतिं अंगुलियाए उक्खुलंपिय २ जाएज्जा, णो गाहावतिं वंदिय २ जाएज्जा, णी व णं फरुसं वदेज्जा । अह तत्थ कंचि भुजमाणं पेहाए तंजहा गाहावतिं वा जाव कम्मकरिं वा से पुव्वामेव आलोएज्जा आउसो ति वा भइणी ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णतरं भोयणजातं ? से सेवं वदंतस्स परो हत्थं वा मत्तं वा दव्विं वा भायणं वा सीतोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पधोएज्ज वा। से पुव्वामेव आलोएज्जा आउसो ति वा भगिणी ति वा मा एतं तुम हत्थं वा मतं दव्विं वा भायणं वा सीतोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेहि वा पधोवाहि वा, अभिकंखसि मे दातुं एमेव दलयाहि। से सेवं वदंतस्स परो हत्थं वा ४ सीतोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेत्ता पधोइत्ता आहट्ट दलएज्जा । तहप्पगारेणं पुरोकम्मकतेणं हत्थेण वा ४ असणं वा ४ अफासुयं अणेसणिज्जंजावणोपडिगाहेजा। अह पुणेवं जाणेज्जा णो पुरेकम्मकतेणं, उदउल्लेणं। तहप्पगारेणं उदउल्लेण हत्थेण वा ४ असणं वा ४ अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा । अह पुणेवं जाणेज्जा-णो उदउल्लेण, ससणिद्धेण । सेसं तं चेव । एवं ससरक्खे मट्टिया ऊसे हरियाले हिंगुलुए मणोसिला अंजणे लोणे-गेरूय वण्णिय ॥ सेडिय सोरठ्ठिय पिठ्ठ कुक्कुस उक्कुट्ठ असंसटेण । अह पुणेवं जाणेज्जा णो असंसटे संसटे। तहप्पगारेण संसटेण हत्थेण वा ४ असणं वा ४ फासुयं जाव पडिगाहेज्जा। अह पुण एवं जाणेज्जा-असंसढे, संसठे। तहप्पगारेण संसटेण हत्थेण वा ४ असणं वा ४ फासुयं जाव पडिगाहेज्जा। ३६१. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जा पिहुयं वा बहुरयं वा जाव चाउलपलंब वा अस्संजए भिक्खुपडियाए चित्तमंताए सिलाए जाव मक्कडासंताणाए कोट्टिसु वा कोट्टेति वा कोट्टिस्संति वा उप्फणिसु वा ३। तहप्पगारं पिहुयं वा जाव चाउलपलंबं वा अफासुयं जावणोपडिगाहेज्जा। ३६२. से भिक्खूवा २ जाव समाणे से ज्नं पुण जाणेज्जा-बिलं वालोणं उब्भियं वा लोणं अस्संजए भिक्खुपडियाए चित्तमंताए सिलाए जाव संताणाए भिदिसु वा भिदंति वा भिदिस्संति वा रुचिंसु वा ३, बिलं वा लोणं उब्भियं वा लोणं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा। ३६३. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से ज्ज पुण जाणेज्जा-असणं वा ४ अगणिणिक्खित्तं, तहप्पगारं असणं वा ४ अफासुयं लाभे संते णोपडिगाहेज्जा । केवली बूया-आयाणमेतं । अस्संजए भिक्खुपडियाए उस्सिंचमाणे वा निस्सिंचमाणे वा आमज्जमाणे वा पमज्जमाणे वा उतारेमाणे वा उयत्तमाणे अगणिजीवे हिंसेज्जा । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पतिण्णा, एस हेतू, एस कारणं, एसुवदेसे-जंतहप्पगारं असणं वा ४ अगणिणिक्खित्तं अफासुयं अणेसणिज्नं लाभे संते णो पडिगाहेजा। ३६४. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं ★★★| पिण्डैषणाध्ययनस्य षष्ठोद्देशक: समाप्तः ||★★★ सत्तमो उद्देसओ ३६५. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जा-असणं वा ४ खंधंसि वा थमंसि वा मंचंसि वा मालंसि वा पासादसि वा हम्मियतलंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि उवणिक्खिते सिया। तहप्पगारं मालोहडं असणं वा ४ अफासुयं णो पडिगाहेज्जा। केवली बूया-आयाणमें। SO乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听配 excFF55555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - २२5555555555555555555555555 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROI05555555555555 (१) आयारो - बी. सु. १ अ. पिंडेसणा उद्देसक ७, ८२३] 155555555555SOSORY 5555555555555555555FOXO 明明明明明明明明乐乐明$$$$$$$$$$$$$$ अस्संजए भिक्खुपडियाए पीढं वा फलगं वा णिस्सेणिं वा उदूहलं वा अवहट्ट उस्सविय दुहेज्जा । से तत्थ दुहमाणे पयलेज वा पवडेज वा। से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा पादं वा बाहुं वा ऊरुं वा उदरं वा सीसं वा अण्णतरं वा कायंसि इंदियजायं लूसेज्ज वा पाणाणि वा ४ अभिहणेज्ज वा, वत्तेज्ज वा, लेसेज्ज वा, संघसेज वा, संघट्टेज्ज वा, परियावेज्ज वा, किलामेज वा, उद्दवेज्ज वा?, ठाणाओ ठाणं संकामेज्ज वा, जीवियाओ ववरोवेज्ज वा? | तं तहप्पगारं मालोहडं असणं वा ४ लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । ३६६. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जा-असणं वा ४ कोट्ठिगातो वा कोलेज्जातो वा अस्संजए भिक्खुपडियाए उक्कुज्जिय अवउज्जिय ओहरिय आहट्ट दलएज्जा। तहप्पगारं असणं वा ४ मालोहडं ति णच्चा लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । ३६७. से भिक्खु वा २ जाव समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा असणं वा ४ मट्टिओलित्तं । तहप्पगारं असणं वा ४ जाव लाभे संते णोपडिगाहेज्जा। केवली बूया-आयाणमेयं । अस्संजए भिक्खुपडियाए मट्टिओलित्तं असणं वा उब्भिंदमाणे पुढवीकार्य समारंभेज्जा, तह तेउ-वाउ-वणस्सति-तसकायं समारंभेज्जा, पुणरवि ओलिंपमाणे पच्छाकम्मं करेज्जा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जंतहप्पगारं मट्टिओलित्तं असणं वा ४ अफासुयं लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । ३६८. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से ज्ज पुण जाणेज्जा असणं वा ४ पुढविक्कायपतिकृितं । तहप्पगारं असणं वा ४ अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण जाणेज्जा असणं वा ४ आउकायपतिकृितं तह चेव । एवं अगणिकायपतिठ्ठितं लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । केवली बूया-आयाणमेयं । अस्संजए भिक्खुपडियाए अगणिं उस्सिक्किय णिस्सिक्किय ओहरिय आहट्ट दलएज्जा । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिठ्ठा ४ जाव णो पडिगाहेज्जा । से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जा असणं वा ४ अच्चुसिणं अस्संजए भिक्खुपडियाए सूवेण वा विहुवणेण तालियंटेण वा पत्तेण वा साहाए वा साहाभंगेण वा पेहुणेण वा पेहुणहत्थेण वा चेलेण वा चेलकण्णेण वा हत्थेण वा मुहेण वा फुमेज्ज वा वीएज्जा वा । से पुव्वामेव आलोएज्जा-आउसो त्ति वा भगिणि त्ति वा मा एतं तुमं असणं वा ४ अच्चुसिणं सूवेण वा जाव फुमाहि वा वीयाहि वा, अभिकंखसि मे दाउं एमेव दलयाहि । से सेवं वदंतस्स परो सूवेण वा जाव वीइत्ता आहट्ट दलएज्जा, तहप्पगार असणं वा ४ अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा । से भिक्खू वा २ समाणे से जं पुण जाणेज्जा वणस्सतिकायपतिहितं । तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वणस्सतिकायपतिद्वितं अफासुयं लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । एवं तसकाए वि। ३६९. से भिक्खू वा जाव समाणे से ज्जं पुण पाणगजायं जाणेज्जा, तंजहा उस्सेइमं वा संसेइमं वा चाउलोदगं वा अण्णतरं वा तहप्पगारं पाणगजातं अधुणाधोतं अणंबिलं अव्वोक्तं अपरिणतं अविद्धत्थं अफासुयं जाव णो पडिगाहेजा। अह पुणेवं जाणेज्जा चिराधोतं अंबिलं वंक्कतं परिणतं विद्धत्थं फासुयं जाव पडिगाहेज्जा । ३७०. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से ज्जं पुण पाणगजातं जाणेज्जा, तंजहा तिलोदगं वा तुसोदगं वा जवोदगं वा आयामं वा सोवीरं वा सुद्धवियडं वा, अण्णसरं वा तहप्पगारं पाणगजातं पुव्वामेव आलोएज्जा-आउसो त्ति वा भगिणि त्ति वा दाहिसि मे एतो अण्णतरं पाणगजातं ? से सेवं वदंतं परो वदेज्जा-आउसंतो समणा ! तुमं चेवेदं पाणगजातं पडिग्गहेण वा उस्सिंचियाणं ओयत्तियाणं गिण्हाहि । तहप्पगारं पाणगजातं सयं वा गेण्हेज्जा, परो वा से देज्जा, फासुयं लाभे संते पडिगाहेज्जा । ३७१. से भिक्खू वा जाव समाणे से ज्जं पुण पाणगं जाणेज्जा-अणंत-रहिताए पुढवीए जाव संताणए उद्धट्ट उद्धटु णिक्खिते सिया। अस्संजते भिक्खुपडियाए उदउल्लेण वा ससणिद्धेण वा सकसाएण वा मत्तेण वा सीतोदएण वा संभोएत्ता आहट्ट दलएज्जा। तहप्पगारं पाणगजायं अफासुयं लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। ३७२. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा २ सामग्गियं । ★★★| पिण्डैषणाध्ययनस्य सप्तम उद्देशक: समासः ||★★★ अट्ठमो उद्देसओ ३७३. फ से भिक्खूवा २ जाव समाणे से ज्जं पुण पाणगजातं जाणेज्जा, तंजहा अंबपाणगंवा अंबाडगपाणगंवा कविठ्ठपाणगंवा मातुलुंगपाणगं वा मुद्दियापाणगंवा दालिमपाणगं वा खजूरपाणगं वा णालिएरपाणगं वा करीरपाणगं वा कोलपाणगं वा आमलगपाणगं वा चिंचापाणगं वा, अण्णतरं वा तहप्पगारं पाणगजातं सअट्ठियं सकणुयं सबीयगं अस्संजए भिक्खुपडियाए छव्वेण वा दूसेण वा वालगेण वा आवीलियाण परिपीलियाण परिस्साइयाण आह१ दलएज्जा। तहप्पगारं पाणयजायं अफासुयं 8 लाभे संते णो पडिगाहेजा । ३७४. से भिक्खू वा २ जाव पविढे समाणे से आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसु वा परियावसहेसु वा अण्णगंघाणि वा GO$$$$明明明明明听听乐听听听听听听听听听听劣劣明明明明明明明明明乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听心 फिफफफफफफ5555555555555555 श्री आगमगुणमंजषा -235555555555555555555555555557-ORK Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HOR955555555 (१) आयारो. बी. सु.१ अ. पिंडेसणा उद्देसक ८,९ [२४] C乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明 पाणगंधाणि वा सुरभिगंधाणि वा आघाय से तत्थ आसायपडियाए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे 'अहो गंधो, अहो गंधो' णो गंधमाघाएज्जा। ३७५. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा सालुयं वा विरालियं वा सासवणालियं वा, अण्णतरं वा तहप्पगारं आमगं असत्थपरिणतं अफासुयं लाभे संते णो म पडिगाहेज्जा । ३७६. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जा पिप्पलिं वा पिप्पलिचुण्णं वा मिरियं वा मिरियचुण्णं वा सिंगबेरं वा सिंगबेरचुण्णं वा, अण्णतरं वा तहप्पगारं आमगं असत्थपरिणयं अफासुयं लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । ३७७. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण पलंबजातं जाणेज्जा, तंजहाअंबपलंबं वा अंबाडगपलंबं वा तालपलंबं वा झिज्झिरिपलंबं वा सुरभिपलंबं वा सल्लइपलंबं वा, अण्णतरं वा तहप्पगारं पलंबजातं आमगं असत्थपरिणतं अफासुयं अणेसणिज्जं जाव लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। ३७८. से भिक्खूवा २ जाव समाणे से जं पुण पवालजातं जाणेज्जा, तंजहा आसोत्थपवालं वाणग्गोहपवालं वा पिलंखुपवालं वा णिपूरपवालं वा सल्लइपवालं वा, अण्णतरं वा तहप्पगारं पवालजातं आमगं असत्थपरिणतं अफासुयं अणेसणिज्जं जाव णो पडिगाहेज्जा। ३७९. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण सरडुयजायं जाणेज्जा, तंजहा सरडुयं वा कविट्ठसरडुयं वा दालिमसरडुयं वा, बिल्लसरडुयं वा, अण्णतरं वा तहप्पगारं सरडुयजातं आमं असत्थपरिणतं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा । ३८०. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण मंथुजातं जाणेज्जा, तंजहा उंबरमंथु वा णग्योहमथुवा पिलक्खुमंथु वा आसोट्ठमथुवा, अणतरं वा तहप्पगारं मंथुजातं आमयं दुरुक्कं साणुबीयं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्ना। ३८१. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा आमडागं वा पूतिपिण्णागं वा मधुं वा मज्जं वा सप्पिं वा खोलं वा पुराणगं, एत्थ पाणा अणुप्पसूता, एत्थ पाणा जाता, एत्थ पाणा संवुड्डा, एत्थ पाणा अवक्वंता, एत्थ पाणा अपरिणता, एत्थ पाणा. अविद्धत्था, णो पडिगाहेज्जा । ३८२. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जा उच्छुमेरगं वा अंककरेलुयं वा णिक्खारगं वा कसेरुगं वा सिंघाडगं वा पूतिआलुगं वा, अण्णतरं वा तहप्पगारं आमं असत्थपरिणयं जाव णो पडिगाहेज्जा। ३८३. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जा उप्पल वा उप्पलणालं वा भिसं वा भिसमुणालं वा पोक्खल वा पोक्खलथिभगं वा, अण्णतरं वा तहप्पगारं जाव णो पडिगाहेज्जा । ३८४. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जा अग्गबीयाणि वा मूलबीयाणि वा खंधबीयाणि वा पोरबीयाणि वा अग्गजायाणि वा मूलजायाणि वा खंधजायाणि वा पोरजायाणि वा णण्णत्थ तक्कलिमत्थएण वा तक्कलिसीसेण वा णालिएरिमत्थएण वा खजूरिमत्थएण वा तालमत्थएण वा, अण्णतरं वा तहप्पगारं आमं असत्थपरिणयं जावणो पडिगाहेज्जा।३८५. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा उच्छु वा काणं अंगारिगं संम8 वइदूमितं वेत्तग्गगं वा कदलिऊसुगं वा अण्णतरं वा तहप्पगारं आमं असत्थपरिणयं जाव णो पडिगाहेज्जा । ३८६. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से ज्जं पुणं जाणेज्जा लसुणं वा लसुणपत्तं वा लसुणणालं वा लसुणकंदं वा लसुणचोयगं वा, अण्णतरं वा तहप्पगारं आमं असत्थपरिणतं जाव णो पडिगाहेज्जा । ३८७. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा अच्छियं वा कुभिपक्वं तेंदुगं वा वेलुगं वा कासवणालियं वा, अण्णतरं वा तहप्पगारं आमं असत्थपरिणतं जाव णो पडिगाहेज्जा। ३८८. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा कणं वा कणकुंडगं वा कणपूयलिं वा चाउलं वा चाउलपिढें वा तिलं वा तिलपिढे वा तिलपप्पडगंवा, अण्णतरं वा तहप्पगारं आमं असत्थपरिणतं जाव लाभे संते णोपडिगाहेज्जा । ३८९. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं।★★★॥ पिण्डैषणाध्ययनस्य अष्टमोद्देशक: समासः॥ * *णवमो उद्देसओ ३९०. इह खलु पाईणं वा पडीणं दाहिणं वा उदीणं वा संतेगतिया सड्ढा भवंति गाहावती वा जाव कम्मकरी वा म । तेसिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवति जे इमे भवंति समणा भगवंतो सीलमंता वयमंता गुणमंता संजता संवुडा बंभचारी उवरया मेहुणातो धम्मातो णो खलु एतेसिं के कप्पति आधाकम्मिए असणे वा पाणे वा खाइमे वा साइमे वा भोत्तए वा पातए वा । से ज्जं पुण इमं अम्हं अप्पणो अट्ठाए णिट्ठितं, तंजहा असणं वा ४, सव्वमेयं क समणाणं णिसिरामो, अवियाइं वयं पच्छा वि अप्पणो सयट्ठाए असणं वा ४ चेतिस्सामो। एयप्पगारं णिग्योसं सोच्चा णिसम्म तहप्पगारं असणं वा ४ अफासुयं अणेसणिज्जं जाव लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । ३९१. से भिक्खू वा २ जाव समाणे वा वसमाणे वा गामाणुगामं वा दूइज्जमाणे, से जं पुण जाणेज्जा गाम वा जाव GOO乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 FOR9555555 KOLKOH$$$55555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा-२४555545 4 545485 O OR Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १) आयारो - बी. सु. १ अ. पिंडेसणा उद्देसक ९,१० [२५] 步步步步步步为5% 5 US 乐乐乐听听听听听听听听乐乐乐蛋蛋乐乐乐乐乐步听听乐乐明明明明明明明明听听乐乐坊乐乐乐乐乐听听听听 रायहाणिं वा, इमंसि खलु गामंसि वा जाव रायहाणिसि वा संतेगतियस्स भिक्खुस्स पुरेसंथुया वा पच्छासंथुया वा परिवसंति, तंजहा-गाहावती वा जाव कम्मकरी वा। तहप्पगाराइं कुलाइं णो पुव्वामेव भत्ताए वा पाणाए वा णिक्खमेज्ज वा पविसेज्ज वा । केवली बूया-आयाणमेतं । पुरा पेहा एतस्स परो अट्ठाए असणं वा ४ उवकरेज वा उवक्खडेज्ज वा । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जंणो तहप्पगाराई कुलाइं पुव्वामेव भत्ताए वा पाणाए वा पविसेज वा णिक्खमेज्ज वा । सेत्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमित्ता अणावायमसंलोए चिट्ठेजा, से तत्थ कालेणं अणुपविसेज्जा, २ त्ता तत्थितरातिरेहिं कुलेहिं सामुदाणियं एसितं वेसियं पिंडवायं एसित्ता आहारं आहारेज्जा । ३९२. अह सिया से परो कालेण अणुपविट्ठस्स आधाकम्मियं असणं वा ४ उवकरेज्जा वा उवक्खडेज वा । तं चेगतिओ तुसिणीओ उवेहेज्जा, आहडमेयं पच्चाइक्खिस्सामि । मातिट्ठाणं संफासे। णो एवं करेजा। से पुव्वामेव आलोएज्जा आउसो ति वा भइणी ति वा णो खलु मे कप्पति आहाकम्मियं असणं वा ४ भोत्तए वा पायए वा, मा उवकरेहि, मा उवक्खडेहिं। से सेवं वदंतस्स परो आहाकम्मियं असणं वा ४ उवक्खडेत्ता आहट्ट दलएजा। तहप्पगारं असणं वा ४ अफासुयं लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। ३९३. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा, मंसं वा मच्छं वा भज्जिज्जमाणं पेहाए तेल्लपूयं वा आएसाए उवक्खडिज्जमाणं पेहाए णो खद्धं खद्धं उवसंकमित्तु ओभासेज्जा णण्णत्थ गिलाणाए। ३९४. से भिक्खू वा २ जाव समाणे अण्णतरं भोयणजातं पडिगाहेत्ता सुब्भि सुब्भिं भोच्चा दुब्भिं दुब्भि परिट्ठवेति । मातिट्ठाणं संफासे । णो एवं करेजा। सुन्भिं वा दुन्भिं वा सव्वं भुंजे, ण छड्डए। ३९५. से भिक्खू वा २ जाव समाणे अण्णतरं वा पाणगजायं पडिगाहेत्ता पुप्फ पुप्फ आविइत्ता कसायं कसायं परिट्ठवेति । माइट्ठाणं संफासे । णो एवं करेज्जा । पुप्फ पुप्फे ति वा कसायं कसाए ति वा सव्वमेयं भुंजेज्जा, ण किंचि वि परिट्ठवेज्जा । ३९६. से भिक्खू वा २ बहुपरियावण्णं भोयणजायं पडिगाहेता साहम्मिया तत्थ वसंति संभोइया समणुण्णा अपरिहारिया अदूरगया। तेसिं अणालोइया अणामंतिया परिठ्ठवेति । मातिट्ठाणं संफासे । णो एवं करेज्जा । सेत्तमादाए तत्थ गच्छेज्जा, २ त्ता से पुव्वामेव आलोएज्जा-आउसंतो समणा ! इमे मे असणे वा ४ बहुपरियावण्णे, तं भुंजह व णं परिभाएह वणं । से सेवं वदंतं परो वदेज्जा आउसंतो समणा! आहारमेतं असणं वा ४ जावतियं २ सरति तावतियं २ भोक्खामो वा पाहामो वा । सव्वमेयं परिसडति सव्वमेयं भोक्खामो वा पाहामो वा । ३९७. से भिक्खू वा २ से जं पुण जाणेज्जा असणं वा ४ परं समुद्दिस्स बहिया णीहडं तं परेहिं असमणुण्णातं अणिसिटुं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा । तं परेहिं समणुण्णातं समणुसटुं फासुयं लाभे संते जाव पडिगाहेजा। ३९८. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय ।★★★|| पिण्डैषणाध्ययनस्य नवमोद्देशकः समाप्तः ॥★★★ दसमो उद्देसओ ३९९. से म एगतिओ साहारणं वा पिंडवातं पडिगाहेत्ता ते साहम्मिए अणापुच्छित्ता जस्स जस्स इच्छइ तस्स तस्स खद्धं खद्धं दलाति । मातिट्ठाणं संफासे । णो एवं करेज्जा। से त्तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, गच्छित्ता पुव्वामेव एवं वदेज्जा आउसंतो समणा ! संति मम पुरेसंथुया वा पच्छासंथुया वा, तंजहा आयरिए वा उवज्झाए वा पवत्ती वा थेरे वा गणी वा गणधरे वा गणावच्छेइए वा, अवियाई एतेसिं खद्धं खद्धं दाहामि ? सेणेवं वदंतं परो वदेज्जा कामं खलु आउसो ! अहापज्जत्तं निसिराहि । जावइयं २ परो वदति तावइयं २ णिसिरेज्जा। सव्वमेतं परो वदति सव्वमेयं णिसिरेज्जा। ४००. से एगइओ मणुण्णं भोयणजातं पडिगाहेत्ता पंतेण भोयणेण पलिच्छाएति 'मामेतं दाइयं संतं दणं सयमादिए, तं जहा आयरिए वा जाव गणावच्छेइए वा' । णो खलु मे कस्सइ किंचि वि दातव्वं सिया । माइट्ठाणं संफासे। णो एवं करेज्जा । से तमायाए तत्थ गच्छेज्ना, २ ता पुव्वामेव उत्ताणए हत्थे पडिग्गहं कट्ट इमं खलु इमं खलु त्ति आलोएज्जा। णो किंचि वि विणिगृहेज्जा। ४०१. से एगतिओ अण्णतरं भोयणजातं पडिगाहेत्ता भद्दयं भद्दयं भोच्चा विवण्णं विरसमाहरिति । मातिट्ठाणं संफासे। णो एवं करेज्जा । ४०२. से भिक्खू वा २ से जं पुण जाणेज्जा अंतरुच्छुयं वा उच्छुगंडियं वा उच्छुचोयगं वा उच्छुमेरगं वा उच्छुसालगं वा उच्छुडालगं वा सबलिं वा संबलिथालिगं वा, अस्सिं खलु पडिग्गाहियंसि अप्पे भोयणजाते बहुउज्झियधम्मिए, तहप्पगारं अंतरुच्छुयं वा जाव सबंलिथालिगं वा अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा । ४०३. से भिक्खू वा २ से जं पुण जाणेज्जा बहुअट्ठियं वा मंसं मच्छं वा बहुकंटगं, अस्सिं खलु पडिग्गाहितंसि अप्पे भोयणजाते बहुउज्झियधम्मिए, तहप्पगारं बहुअट्ठियं वा मंसं मच्छं वा बहुकंटगं लाभे संते णोपडिगाहेज्जा $听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FC HEL 55555555 श्री आगमगुणमजूषा - २५ 5 555555 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ***** (१) आयारो बी. सु. १ अ. पिडेसणा उद्देसक १०,११ [२६] 7 । ४०४. से भिक्खू वा २ जाव समाणे सिया णं परो बहुअट्ठिएण मंसेण उवणिमंतेज्जा आउसंतो समणा ! अभिकंखसि बहुअट्ठियं मंसं पडिगाहेत्तए ? एतप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म से पुव्वामेव आलोएज्जा आउसो ति वा भइणी ति वा णो खलु मे कप्पति बहुअट्ठियं मंसं पडिगाहेत्तए । अभिकखसि मे दाउं, जावतितं तावतितं पोग्गलं दलयाहि, मा अट्टियाई । से सेवं वदंतस्स परो अभिहट्टु अंतो पडिग्गहगंसि बहुअट्ठियं मंसं परियाभाएत्ता णिहट्टु ढलएज्जा । तहप्पगारं पडिग्गहगं परहत्थंसि वा परपायंसि वा अफासुयं अणेसणिज्जं लाभे संते जाव णो पडिगाहेज्जा से य आहच्च पडिगाहिते सिया, तं णो हि त्ति वएज्जा, णो धि त्ति वएज्जा, गो अह ति वज्जा से तमादाय एगंतमवक्कमेज्जा, २त्ता अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अप्पंडे जाव संताणए मंसगं मच्छगं भोच्चा अट्टियाई कंटए गहाय से त्तमायाए एगंतमवक्कमेजा, २ त्ता अहे झामथंडिल्लंसि वा जाव पमज्जिय पमज्जिय परिट्ठवेज्जा, ४०५. से भिक्खू वा २ जाव समाणे सिया से परो अभिहट्टु अंतो पडिग्गहए बिलं वा लोणं उब्भियं वा लोणं परियाभाएत्ता णीहट्टु दलएज्जा । तहप्पगारं पडिग्गहगं परहत्थंसि वा परपायंसि वा अफासुयं असणिज्जं जाव पडिगाहेज्जा | से य आहच्च पडिग्गाहिते सिया, तं च णातिदूरगते जाणेज्ना, से त्तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, २ त्ता पुव्वामेव आलोएज्जा आउसो ति वा भइणी ति वा इमं किं ते जाणता दिण्णं उदाहु अजाणता ? से य भणेज्जा णो खलु मे जाणता दिण्णं, अजाणता; कामं खलु आउसो ! इदाणिं णिसिरामि, तं भुजहव णं परियाभाएह व णं । तं परेहिं समणुण्णायं समणुसट्टं ततो संजतामेव भुंजेज्ज वा पिएज्ज वा । जं च णो संचाएति भोत्तए वा पायए वा, साहम्मिया तत्थ वसंति संभोइया समणुण्णा अपरिहारिया अदूरगया तेसिं अणुप्पदातव्वं सिया । णो जत्थ साहम्मिया सिया जहेव बहुपरियावण्णे कीरति तहेव कायव्वं सिया । ४०६. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणी वा सामग्गियं । ★★★ ॥ पिण्डैषणाध्ययनस्य दशमोद्देशकः समाप्तः ॥ ★★★ इक्कारसमोउद्देसओ ४०७. भिक्खाजा णामेगे एवमाहंसु समाणे वा वसमाणे वा गामाणुगामं वा दूइज्जमाणे मणुण्णं भोयणजातं लभित्ता-से य भिक्खू गिलाइ, से हंदह णं तस्साहरह, से य भिक्खू णो भुंजेज्जा तुमं चेवणं भुंज्जासि । से 'गतितो भोक्खामि' त्ति कट्टु पलिउंचिय २ आलोएज्जा, तंजहा इमे पिंडे, इमे लोए, इमे तित्तए, इमे कडुयए, इमे कसाए, इमे अंबिले, इमे महुरे, णो खलु एतो किंचि गिलाणस्स सदति त्ति । माइठ्ठाणं संफासे । णो एवं करेज्जा । तहाठितं आलोएज्जा जहाठितं गिलाणस्स सदति त्ति, तं जहा तित्तयं तित्तए ति वा, कडुयं २, कसायं २, अंबिलं २, महुरं २ । ४०८. भिक्खागा णामेगे एवमाहंसु समाणे वा वसमाणे वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे वा मणुण्णं भोयणजातं लभित्ता- से -य भिक्खू गिलाइ, से हंदह णं तस्साहरह, से य भिक्खू णो भुंजेज्जा आहरेज्जासि णं णो खलु मे अंतराए आहरिस्सामि । ४०९. इच्चेयाइं आयतणाई उवातिकम्म अह भिक्खू जाणेज्जा सत्त पिंडेसणाओ सत्त पाणेसणाओ । १ तत्थ खलु इमा पढमा पिंडेसणा- असंसट्टे हत्थे असंसट्टे मत्ते । तहप्पगारेण असंसट्टेण हत्थेण वा मत्तएण वा असणं वा ४ सयं वा णं जाएजा परो वा से देज्जा, फासूयं पडिगाहेज्जा । पढमा पिंडेसणा । २ अहावरा दोच्चा पिंडेसणा-संसट्टे हत्थे संसट्टे मत्ते, तहेव दोच्चा पिंडेसणा । ३ अहावरा तच्चा पिंडेसणा इह खलु पाईणं वा ४ संतेगतिया सड्ढा भवति गाहावती वा जाव कम्मकरी वा । तेसिं च णं अण्णतरेसु विरूवरूवेसु भायणजातेसु उवणिक्खित्तपुव्वे सिया, तंजहा थालंसि वा पिढरगंसि वा सरगंसि वा परगंसि वा वरगंसि वा । अह पुणेवं जाणेज्जा असंसट्टे हत्थे संसट्टे मत्ते, संसट्टे वा हत्थे असंसट्टे मत्ते । से य पडिग्गहधारी सिया पाणिपडिग्गहए वा, से पुव्वामेव आलोएज्जा आउसो ति वा भगिणी ति वा एतेण तुमं असंसट्टेण हत्थेण संसट्टेण मत्तेण संसद्वेण वा हत्थेण असंसद्वेण मत्तेण अस्सिं पडिग्गहगंसि वा पाणिसि वा णिहट्टु ओवित्तु दलयाहि । तहप्पगारं भोयणजातं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देज्जा, फासूयं एसणिज्जं जाव लाभे संते पडिगाहेज्जा । तच्चा पिंडेसणा । ४ अहावरा चउत्था पिंडेसणा-से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण जाणेज्जा पिहूयं वा जाव चाउलपलंबं वा, अस्सिं खलु पडिग्गाहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे अप्पे पज्जवजाते । तहप्पगारं पिहुयं वा जाव चाउलपलंबं वा सयं वा णं जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा । चउत्था पिंडेसणा । ५ अहावरा पंचमा पिंडेसणा-से भिक्खू वा २ जाव समाणे उवहितमेव भोयणजातं जाणेज्जा, तंजहा- सरावंसि वा डिडिमंसि वा कोसगंसि वा | अह पुणेवं जाणेज्जा - बहुपरियावण्णे पाणीसु दगलेवे । तहप्पगारं असणं वा ४ सयं वा णं जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा । पंचमा पिंडेसणा । ६ अहावरा छट्ठा श्री आगमगुणमंजूषा २६ 666666666 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HO305555555555555 (1) आयारो - बी. सु. १ अ. पिंडेसणा-उद्देसक ११/२ अ. सेज्जा उद्देसक १ [२७] 55555555555sgory पिंडेसणा-से भिक्खू वा २ उम्गहियमेव भोयणजायं जाणेज्जा जं च सयट्ठाए उग्गहितं जं च परट्ठाए उग्गहितं तं पादपरियावण्णं तं पाणिपरियावण्णं फासुयं जाव 卐 पडिगाहेज्जा । छट्ठा पिडेसणा। ७ अहावरा सत्तमा पिडेसणा-से भिक्खू वा २ जाव समाणे बहुउज्झितधम्मियं भोयणजायं जाणेज्जा जं चऽण्णे बहवे दुपयचउप्पय-समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा णावकखंति तहप्पगारं उज्झितधम्मियं भोयणजायं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देजा जाव पडिगाहेजा। सत्तमा पिंडेसणा । इच्चेयाओ सत्त पिंडेदणाओ। ८ अहावराओ सत्त पाणेसणाओ। तत्थ खलु इमा पढमा पाणेसणा- असंसढे हत्थे असंसढे मत्ते । तं चेव भाणियव्वं, णवरं चउत्थाए णाणत्तं, से भिक्खू वा २ जाव समाणे से ज्ज पुण पाणगजातं जाणेज्जा, तंजहा तिलोदगंवा तुसोदगं वा जवोदगं वा आयामं वा सोवीरं वा सुद्धवियडं वा, अस्सिं खलु पडिग्गाहितंसि अप्पे पच्छाकम्मे, तहेव जाव पडिगाहेज्ना। ४१०. इच्वेतासिं सत्तण्हं पिंडेसणाणं सत्तण्हं पाणेसणाणं अण्णतरं पडिमं पडिवज्जमाणे णो एवं वदेज्जा-मिच्छा पडिवण्णा खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्मा पडिवण्णे । जे एते भयंतारो एताओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरंति जो य अहमंसि एवं पडिमं पडिवज्जित्ताणं विहरामि सव्वे पेते उ जिणाणाए उवट्ठिता अण्णोण्णसमाहीए एवं च णं विहरंति । ४११. एवं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं । ।। पिष्डैषणाध्ययनं प्रथमं समाप्तम्भ र बीयं अज्झयणं 'सेज्जा' पढमो उद्देसओ ४१२. से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा उवस्सयं एसित्तए, अणुपविसित्ता गामं वा णगरं वा जाव रायहाणिं वा से जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा सअंडं सपाणं जाव संताणयं, तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा सेज वा णिसीहियं वा चेतेज्जा। से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा अप्पंडं जाव संताणगं, तहप्पगारे उवस्सए पडिलेहित्ता पमज्जित्ता ततो संजयामेव ठाणं वा ३ चेतेजा। ४१३. से ज्ज पुण उवस्सयं जाणेज्जा-अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई ४ समारंभ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेतेति। तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा जाव आसेविते वा २ णो ठाणं वा ३ चेतेज्जा। एवं बहवे साहम्मिया एणं साहम्मिणि जबहवे साहम्मिणीओ। ४१४. १ से भिक्खू वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय २ समुद्दिस्स तं चेव भाणियव्वं । २ से भिक्खू वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणेज्ना-बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स पाणाई ४ जाव चेतेति। तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव अणासेविते णो ठाणं वा ३ चेतेजा। अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडे जाव आसेविते। पडिलेहित्ता पमजित्ता ततो संजयामेव ठाणं वा ३ चेतेज्जा ।४१५. से भिक्खू वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा-अस्संजए भिक्खुपडियाए कडिए वा उक्कंबिए वा छते वा लेत्ते वा घट्टे वा मढे वा संमढे वा संपधूविए वा। फतहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव अणासेविए णो ठाणं वा ३ चेतेजा। अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडे जाव आसेविते, पडिलेहित्ता पमज्जित्ता ततो + संजयामेव जाव चेतेज्जा । ४१६. से भिक्खू वा २ से ज्ज पुण उवस्सयं जाणेज्जा- अस्संजते भिक्खुपडियाए खुड्डियाओ दुवारियाओ महल्लियाओ कुज्जा जहा पिंडेसणाए जाव संथारगं संथारेज्जा बहिया वा णिण्णक्खु । तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरगडे जाव अणासेविए णो ठाणं वा ३ चेतेज्जा । अह पुणेवं जाणेज्जाहै पुरिसंतरकडे जाव आसेविते, पडिलेहित्ता पमज्जित्ता ततो संजयामेव जाव चेतेज्जा। ४१७. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उक्स्सयं जाणेज्जा-अस्संजए भिक्खुपडियाए उदकपसूताणि कंदाणि वा मूलाणि वा पत्ताणि वा पुष्पाणि वा फलाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा ठाणाणो ठाणं साहति बहिया वा णिण्णक्खु । तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव णो ठाणं वा ३ चेतेज्जा । अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडे जाव चेतेजा। ४१८. से मिक्खू का २ से ज्ज पुण उवस्सयं जाणेज्जा अस्संजते भिक्खुपडियाए पीढं वा फलगं वा णिस्सेणिं वा उदूखलं वा ठाणातो ठाणं साहरति बहिया वा णिण्णक्खु । तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव णो म ठाणं वा ३ चेतेज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडे जाव चेतेजा। ४१९. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा, तंजहा खंधंसि वा मंचंसि वा मालंसि वा पासायंसि वा हम्मियतलंसि वा अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि णण्णत्थ आगाढागाढेहिं कारणेहिं ठाणं वा ३ चेतेजा। से य आहच्च चेतिते 8 सिया, णो तत्थ सीतोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा हत्याणि वा पादाणि वा अच्छीणि वा दंताणि वा मुहं वा उच्छोलेज वा पधोएज्ज वा णो तत्थ ऊसटुं 听听听听听听乐乐所$$$$$$$$$乐乐乐乐乐坊乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听乐乐5FGO 過乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 Source-44555555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा - २0555555555555555555555555555OOR Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SRC5555555555555 (१) आयारो - बी. सु.२ अ. सेज्जा उद्देसक १२८] 历5555555552 555555555555555555555555555555555555555555555555520 पकरेज्जा, तंजहा उच्चारं वा पासवणं वा खेलं वा सिंघाणं वा वंतं वा पित्तं वा पूर्ति वा सोणियं वा अण्णतरं वा सरीरावयवं । केवली बूया आयाणमेतं । से तत्थ ऊसटुं ॐ पकरेमाणे पयलेज्ज वा पवडेज वा, से तत्थ पयलमाणे पवडमाणे वा हत्थं वा जाव सीसं वा अण्णतरं वा कार्यसि इंदियजातं लूसेज्जा, पाणाणि वा ४ अभिहणेज्ज वा जाव ववरोवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिठ्ठा ४ जं तहप्पगारे उवस्सए अंतलिक्खजाते णो ठाणं वा ३ चेतेज्जा । ४२०.से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा सइत्थियं सखुटुं सपसुभत्तपाणं । तहप्पगारे सागारिए उवस्सएणो ठाणं वा ३ चेतेजा। ४२१. आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावतिकुलेण सद्धिं संवसमाणस्स । अलसगे वा विसूइया वा छड्डी वा णं उब्बाहेज्जा, अण्णतरे वा से दुक्खे रोगातंके समुप्पज्जेज्जा। अस्संजते कलुणपडियाए तं भिक्खुस्स गातं तेल्लेण वा घएण वा णवणीएण वा वसाए वा अभंगेज्ज वा मक्खेज वा, सिणाणेण वा कक्केण वा लोद्धेण वा वण्णेण वा चुण्णेण वा पउमेण वा आघंसेज वा पघंसेज्ज वा उव्वलेज वा उव्वट्टेज वा, सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पहोएज्ज वा सिणावेज वा सिंचेज वा दारुणा वा दारुपरिणामं कट्ट अगणिकायं उज्जालेज वा पज्जालेज्ज वा उज्जालेत्ता पज्जालेत्ता ? कायं आतावेज्ज वा पयावेज्ज वा । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पतिण्णा ४ जं तहप्पगारे सागारिए उवस्सए णो ठाणं वा ३ चेतेज्जा। ४२२. आयाणमेयं भिक्खुस्स सागारिए उवस्सए संवसमाणस्स । इह खलु गाहावती वा जाव कम्मकरी वा अण्णमण्णं अक्कोसंति वा वहंति वा संभंति वा उद्दवेति वा । अह भिक्खूणं उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा एते खलु अण्णमण्णं अक्कोसंतु वा, मा वा अक्कोसंतु, जाव मा वा उद्दवेंतु । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जंतहप्पगारे सागारिए उवस्सए णो ठाणं वा ३ चेतेज्जा । ४२३. आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावतीहिं सद्धिं संवसमाणस्स । इह खलु गाहावती अप्पणो सअट्ठाए अगणिकायं उज्जालेज वा पज्जालेज्ज वा विज्झावेज वा । अह भिक्खू उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा-एते खलु अगणिकायं उज्जालेंतु वा मा वा उज्जालेंतु, पज्जालेंतु वा मा वा पज्जालेंतु, विज्झावेंतु वा मा वा विज्झावेंतु । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा ३ चेतेजा। ४२४. आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावतीहिं सद्धिं संवसमाणस्स । इह खलु गाहावतिस्स कुंडले वा गुणे वा मणी वा मोत्तिए वा हिरण्णे वा सुवण्णे वा कडगाणि वा तुडियाणि वा तिसरगाणि वा पालंबाणि वा हारे वा अद्धहारे वा एगावली वा मुत्तावली वा कणगावली वा रयणावली वा तरुणियं वा कुमारिं अलंकियविभूसियं पेहाए अह भिक्खू उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा, एरिसिया वाऽऽसी ण वा एरिसिया इति वा णं बूया, इति वा णं मणं साएज्जा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा ३ चेतेजा। ४२५. आयाणमेतं भिक्खुस्स गाहावतीहिं सद्धिं संवसमाणस्स । इह खलु गाहावतिणीओ वा गाहावतिधूयाओ वा गाहावतिसुण्हाओ वा गाहावतिधातीओ वा गाहावतिदासीओ वा गाहावतिकम्मकरीओ वा, तासिं च णं एवं वृत्तपुव्वं भवति-जे इमे भवंति समणा भगवंतो जाव उवरता मेहुणातो धम्मातो णो खलु एतेसिं कप्पति मेहुणधम्मपरियारणाए आउद्वित्तए, जा य खलु एतेसिं सद्धिं मेहुणधम्मपरियारणाए आउद्देज्जा पुत्तं खलु सा लभेज्जा ओयस्सिं तेयस्सिं वच्चस्सिं जसस्सिं संपरायियं आलोयदरिसणिज्जं । एयप्पगारं णिग्धोसं सोच्चा णिसम्मा तासिं च णं अण्णतरी सड्डी तं तवस्सिं भिक्खुं मेहुणधम्मपरियारणाए आउट्टावेज्जा । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं तहप्पगारे सागारिए उवस्सए णो ठाणं वा ३ चेतेज्जा। ४२६. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं । ॥ पढमा सेज्जा समत्ता ||★★★ बीओ उद्देसओ ४२७. गाहावती नामेगे सुइसमायारा भवंति, भिक्खू य असिणाणए मोयसमायारे से सेगंधे दुग्गंधे पडिकूले पडिलोमे यावि भवति, जं पुव्वकम्मं तं पच्छाकम्मं जं पच्छाकम्मं तं पुव्वकम्मं, ते भिक्खुपडियाए वट्टमाणा करेज्ज वा णो वा करेज्जा । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा ३ चेतेज्जा। ४२८. आयाणमेतं भिक्खुस्स गाहावतीहिं सद्धिं संवसमाणस्स। इह खलु गाहावतिस्स अप्पणो सयट्ठाए विरूवरूवे भोयणजाते उवक्खडिते सिया, अह पच्छा भिक्खुपडियाए असणं वा ४ उवक्खडेज वा उवकरेज वा, तं च भिक्खू अभिकंखेज्जा भोत्तए वा पातए वा वियट्ठितए वा म । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं णो तहप्पगारे उवस्सए ठाणं वा ३ चेतेजा। ४२९. आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावतिणा सद्धिं संवसमाणस्स । इह खलु ॐ गाहावतिस्स अप्पणो सयट्ठाए विरूवरूवाई दारुयाई भिण्णपुव्वाई भवंति, अह पच्छा भिक्खुपडियाए विरूवरूवाई दारुयाई भिदज्ज वा किणेज्ज वा पामिच्चेज्ज वा 明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听乐乐QG MO05555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - २८555555555555555555555020% Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ EC乐乐明明乐乐听听乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐听听听听听听听听 AGROFF555555555 (१) आयारो. बी. सु. २ अ. सेज्जा उद्देसक २ (२९] 1555555555555OOR दारुणा वा दारुपरिणामं कट्ट अगणिकायं उज्जालेज वा पज्जालेज्ज वा, तत्थ भिक्खू अभिकखेज्जा आतावेत्तए वा पयावेत्तए वा वियद्वित्तए वा । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा ३ चेतेज्जा। ४३०. से भिक्खू वा २ उच्चारपासवणेणं उब्बाहिज्जमाणे रातो वा वियाले वा गाहावतिकुलस्स दुवारबाहं अवंगुणेज्जा, तेणो य तस्संधिचारी अणुपविसेज्जा, तस्स भिक्खुस्स णो कप्पति एवं वदित्तए अयं तेणे पविसति वा णो वा पविसति, उवल्लियति वा णो वा उवल्लियति, आपतति वा णो वा आपतति, वदति वा णो वा वदति, तेण हडं, अण्णेण हडं, तस्स हडं, अण्णस्स हडं, अयं तेणे, अयं उवचरए, अयं हंता, अयं एत्थमकासी । तं तवस्सिं भिक्खं अतेणं तेणमिति संकति । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जाव णो चेतेज्जा। ४३१. से भिक्खू वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा, तं जहा तणपुंजेसु वा पलालपुंजेसु वा सअंडे जाव संताणए। तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा सेज वा णिसीहियं वा चेतेज्जा । से भिक्खू वा २ सेज पुण उवस्सयं जाणेज्जा तणपुंजेसु वा पलालपुंजेसु वा अप्पंडे जाव चेतेज्जा। ४३२. से आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसु वा परियावसहेसु वा अभिक्खणं २ साहम्मिएहिं ओवयमाणेहिं णो ओवतेजा। ४३३. से आगंतारेसु वा ४ जे भयंतारो उडुबद्धियं वा वासावासियं वा कप्पं उवातिणित्ता तत्थेव भुज्जो संवसंति अयमाउसो कालातिकंतकिरिया वि भवति । ४३४. से आगंतारेसु वा ४ जे भयंतारो उडुबद्धियं वा वासावासियं वा कप्पं उवातिणावित्ता तं दुगुणा दुगुणेण अपरिहरित्ता तत्थेव भुज्जो संवसंति अयमाउसो उवट्ठाणकिरिया यावि भवति । ४३५. इह खलु पाईणं वा ४ संतेगतिया सड्ढा भवंति, तंजहा गाहावती वा जाव कम्मकरीओ वा, तेसिंचणं आयारगोयरेणो सुणिसंते भवति, तं सद्दहमाणेहिं तं पत्तियमाणेहिं तं रोयमाणेहिं बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स तत्थ २ अगारीहिं अगाराई चेतिताइं भवंति, तंजहा आएसणाणि वा आयतणाणि वा देवकुलाणि वा सहाणि वा पवाणि वा पणियगिहाणि वा पणियसालाओ वा जाणगिहाणि वा जाणसालाओ वा सुधाकम्मंताणि वा दब्भकम्मंताणि वा वब्भकम्मंताणि वा वव्वकम्मंताणि वा इंगालकमंताणि वा कट्टकम्मंताणि वा सुसाणकम्मंताणि वा गिरिकम्मंताणि वा कंदरकम्मंताणि वा संतिकम्मंताणि वा सेलोवट्ठाणकम्मंताणि वा भवणगिहाणि वा । जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा तेहिं ओवतमाणेहिं ओवतंति अयमाउसो ! अभिक्कंतकिरिया या वि भवति । ४३६. इह खलु पाईणं वा जाव ४ तं रोयमाणेहिं बहवे समणमाण-अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स तत्थ २ अगारीहि अगाराइं चेतिताइभवंति, तंजहा आएसणाणि वा जाव गिहाणिवा, जे भयंतारोतहप्पगाराइं आएसणाणि वाजाव गिहाणि वा तेहिं अणोवतमाणेहिं ओवयंति अयमाउसो अणभिक्कंतकिरिया यावि भवति। ४३७. इह खलु पाईणं वा ४ संतेगइया सड्ढा भवंति, तंजहा गाहावती वा जाव कम्मकरीओ वा, तेसिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवति-जे इमे भवंति समणा भगवंतो सीलमंता जाव उवरता मेहुणाओ धम्माओ णो खलु एतेसिं भयंताराणं कप्पति आधाकम्मिए उवस्सए वत्थए, से ज्जाणिमाणि अम्हं अप्पणो सयट्ठाए चेतियाई भवंति, तं जहा आएसणाणि वा जाव गिहाणि वा सव्वाणि ताणि समणाणं णिसिरामो, अवियाइं वयं पच्छा वऽप्पणो सयट्ठाए चेतेस्सामो, तंजहा आएसणाणि वा जाव गिहाणि वा । एतप्पगारं णिग्योसं सोच्चा णिसम्म जे भयंतारोतहप्पगाराई आएसणाणि वा जाव गिहाणि वा उवागच्छंति, २ त्ता इतरातितरेहिं पाहुडेहिं वटुंति, अयमाउसो ! वज्जकिरिया यावि भवति । ४३८. इह खलु पाईणं वा ४ संतेगतिया सड्डा भवंति, तेसिं च णं आयारगोयरे जाव तं रोयमाणेहिं बहवे समणमाहण जाव पगणिय २ समुद्दिस्स तत्थ २ अगारीहि अगाराइं चेतियाइं भवंति, तंजहा आएसणाणि वा जाव गिहाणि वा, जे भयंतारो तहप्पगाराई आएसणाणि वा जाव गिहाणि वा उवागच्छंति, २ त्ता इयराइयरेहिं पाहुडेहिं वटुंति,? अयमाउसो ! महावज्जकिरिया यावि भवति । ४३९. इह खलु पाईणं वा ४ जाव तं रोयमाणेहिं बहवे समणजाते समुद्दिस्स तत्थ २ अगारीहिं अगाराइं चेतिताइं भवंति, तंजहा आएसणाणि वा जाव गिहाणि वा, जे भयंतारो तहप्पगाराई आएसणाणि वा जाव गिहाणि वा उवागच्छंति, २ ता इतरातितरेहिं पाहुडेहिं वटुंति,? अयमाउसो! सावज्जकिरिया यावि भवति । ४४०. इह खलु पाईणं वा ४ जाव तं रोयमोणहिं एगं समणजातं समुद्दिस्स तत्थ २ अगारीहि अगाराइं चेतिताई भवंति, तंजहा आएसणाणि वा जाव गिहाणिवा महता पुढविकायसमारंभेणं जाव महता तसकायसमारंभेणं महता संरंभेणं महता समारंभेणं महता आरंभेणं महता विरूवरूवेहिं MOTKO555555555555555555555555555555555555555555555556FOR M 5 55555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - २०555555555555555555555556xOR Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 555555555555551 KORR95555555555 (१) आयारो - बी. सु. २ अ. सेज्जा उद्देसक ३ [३०] 155555555555FONORY पावकम्मकिच्चेहि, तंजहा छावणतो लेवणतो संथार-दुवार-पिहणतो, सीतोदगए वा परिट्ठवियपुव्वे भवति, अगणिकाए वा उज्जालियपुव्वे भवति, जे भयंतारो 卐 तहप्पगाराई आएसणाणि वा जाव गिहाणि वा उवागच्छंति इतराइतरेहिं पाहुडेहिं दुपक्खं ते कम्म सेवंति, अयमाउसो ! महासावजकिरिया यावि भवति । ४४१. इह खलु पाइणं वा ४ जाव तं रोयमाणेहि अप्पणो सयट्ठाए तत्थ २ अगारीहिं अगाराइं चेतियाई भवंति, तंजहा आएसणाणि वा जाव गिहाणि वा महता ॐ पुढविकायसमारंभेणं जाव अगणिकाये वा उज्जालियपुव्वे भवति, जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव गिहाणि वा उवागच्छंति इतराइतरेहिं पाहुडेहिं एगपक्खं ते कम्मं सेवंति, अयमाउसो! अप्पसावज्जकिरिया यावि भवति । ४४२. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं ।★★★| सेज्जाए बीओ उद्देसओ समत्तो॥ तइओ उद्देसओ ४४३. से यणो सुलभे फासुए उंछे अहेसणिज्जे, णो य खलु सुद्धे इमेहिं पाहुडेहिं, तंजहा छावणतो लेवणतो संथार दुवार-पिहाणतो पिंडवातेसणाओ । से य भिक्खू चरियारते ठाणरते णिसीहियारते सेज्जा-संथार-पिंडवातेसणारते, संति भिक्खुणो एवमक्खाइणो उज्जुकडा 4 णियागपडिवण्णा अमायं कुव्वमाणा वियाहिता । संतेगतिया पाहुडिया उक्खित्तपुव्वा भवति, एवं णिक्खित्तपुव्वा भवति, परिभाइयपुव्वा भवति, परिभुत्तपुव्वा भवति, परिट्टवियपुव्वा भवति, एवं वियागरेमाणे समिया वियागरेइ ? हंता भवति । ४४४. से भिक्खू वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा खुड्डियाओ खुड्डदुवारियाओ णितियाओ संणिरुद्धाओ भवंति, तहप्पगारे उवस्सए राओ वा वियाले वा णिक्खममाणे वा पविसमाणे वा पुराहत्थेण पच्छापाएण ततो संजयामेव णिक्खमेज्ज वा पविसेज वा केवली बूया आयाणमेतं । जे तत्थ समणाण वा माहणाण वा छत्तए वा मत्तए वा डंडए वा लट्ठिया वा भिसिया वा णालिया वा चेले वा चिलिमिली वा चम्मए वा चम्मकोसए वा चम्मच्छेदणए वा दुबद्धे दुणिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले, भिक्खू य रातो वा वियाले वा णिक्खममाणे वा पविसमाणे वा पयलेज वा पवडेज वा, से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा पादं वा जाव इंदियजातं वा लूसेज वा पाणाणि वा ४ अभिहणेज्ज वा जाव ववरोवेज वा, अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जंतहप्पगारे उवस्सए पुराहत्थेण पच्छापादेण ततो संजयामेव णिक्खमेज्ज वा पविसेज वा। ४४५. से आगंतारेसु वा ४ अणुवीयी उवस्सयं जाएज्जा भ जे तत्थ ईसरे जे तत्थ समाधिट्ठाए ते उवस्सयं अणुण्णवेज्जा कामं खलु आउसो ! अहालंदं अहापरिषणातं वसिस्सामो, जाव आउसंतो, जाव आउसंतस्स उवस्सए, जाव साहम्मिया, एत्ताव ता उवस्सयं गिहिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो। ४४६. से भिक्खू वा २ जस्सुवस्सए संवसेज्जा तस्स पुव्वामेव णामगोत्तं. जाणेज्जा, तओ पच्छा तस्स गिहे णिमंतेमाणस्स वा अणिमंतेमाणस्स वा असणं वा ४ अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा। ४४७. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा सागारियं सागणियं सउदयं, णो पण्णस्स णिक्खमण-पवेसाए णो पण्णस्स वायण जाव चिंताए, तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा ३ चेतेज्जा । ४४८. से भिक्खू वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा गाहावतिकुलस्स मज्झंमज्झेणं गंतुं वत्थए पडिबद्धं वा, णो पण्णस्स णिक्खमण जाव चिंताए, तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा ३ चेतेज्जा। ४४९. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा इह खलु गाहावती वा जाव कम्मकरीओ वा अण्णमण्णं अक्कोसंति वा जाव उद्दवेति वा, णो पण्णस्स जाव चिंताए । से एवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा ३ चेतेजा। ४५०. से भिक्खू वा से जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा इह खलु गाहावती वा जाव कम्मकरीओ वा अण्णमण्णस्स गातं तेल्लेण वा घएण वा णवणीएण वा वसाए वा अब्मंगे(गें)ति वा मक्खे(क्खें)ति वा, णो पण्णस्स जाव चिंताए, तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा ३ चेतेज्जा। ४५१. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा इह खलु गाहावती वा जाव कम्मकरीओ वा अण्णमण्णस्स गायं सिणाणेण वा कक्केण वा लोद्धेण वा वण्णेण वा चुण्णेण वा पउमेण वा आघसंति वा पघंसंति वा उव्वलेति वा उव्वट्टेति वा, णो पण्णस्स णिक्खमण-पवेसे जाव णो ठाणं वा ३ चेतेजा। ४५२. से भिक्खू वा २ सेज पुण उवस्सयं जाणेज्जा इह खलु गाहावती वाजाव कम्मकरीओ वा अण्णमण्णस्स गायं सीतोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण ॐ वा उच्छोलेति वा पधोवेति वा सिंचंति वा सिणावेति वा, णो पण्णस्स जाव णो ठाइ। ४५३. इह खलु गाहावती वा जाव कम्मकरीओ वा णिगिणा ठिता णिगिणा उवल्लीणा मेहुणधम्मं विण्णवेति रहस्सियं वा मंतं मंतेति, णो पण्णस्स जाव णो ठाणं वा ३ चेतेज्जा। ४५४. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा आइण्णं reO5555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - ३० 55555555555555555555555 FOTO 乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听乐乐中乐乐乐乐乐乐听听听听听听SC 乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听心思 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YO9555555555555 (१) आयारो - बी. सु. २ अ. सेन्जा उद्देसक ३ [३१] 国五步步步步步步5555888 TOTO乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听国乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐$55 सलेक्खं, णोपण्णस्स जाव णो ठाणं वा ३ चेतेज्जा। ४५५. १ से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा संथारगं एसित्तए । सेज पुण संथारगं जाणेज्जा सअंडं जाव संताणगं, तहप्पगारं संथारगं लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। २ से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा अप्पंडं जाव संताणगं गरुयं, तहप्पगारं संथारगं लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। ३ से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा अप्पंडं जाव संताणगं लहयं अप्पडिहारियं तहप्पगारं संथारगं लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। ४ से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा अप्पंडं जाव संताणगं लहुयं पडिहारियं णो अहाबद्धं, तहप्पगारं लाभे संते णो पडिगाहेजा। ५ से भिक्खू वा २ से जं पुण संथारगं जाणेज्जा अप्पंडं जाव संताणगं लहुयं पडिहारियं अहाबद्धं, तहप्पगारं संथारगं जाव लाभे संते पडिगाहेज्जा। ४५६. इच्चेताई आयतणाई उवातिकम्म अह भिक्खू जाणेज्जा इमाहिं चरहिं पडिमाहिं संथारगं एसित्तए १ तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उद्दिसिय २ संथारगं जाएज्जा, तंजहाइक्कडं वा कढिणं वा जंतुयं वा परगं वा मोरगं वा तणगं वा कुसंवा कुच्चगं वा वव्वगं वा पलालगं वा। से पुवामेव आलोएज्जा-आउसो ति वा भगिणी ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णतरं संथारगं ? तहप्पगारं संथारगं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देज्जा, फासुयं एसणिज्जं जाव लाभे संते पडिगाहेज्जा । पढमा पडिमा। २ अहावरा दोच्चा पडिमा से भिक्खू वा २ पेहाए संथारगं जाएज्जा, तंजहा गाहावतिं वा जाव कम्मकरि वा। से पुवामेव आलोएज्जा आउसो ति वा भगिणी ति वा दाहिसि मे एतो अण्णतरं संथारगं ? तहप्पगारं संथारगं सयं वा णं जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा । दोच्चा पडिमा। ३ अहवरा तच्चा पडिमा से भिक्खू वा २ जस्सुवस्सए संवसेज्जा जे तत्थ अहासमण्णागते, तंजहा इक्कडे वा जाव पलाले वा, तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुए वा णेसज्जिए वा विहरेज्जा । तच्चा पडिमा। ४ अहावरा चउत्था पडिमा सेभिक्खू वा २ अहासंथडमेव संथारगं जाएज्जा, तंजहा-पुढविसिलं वा कट्ठसिलं वा अहासंथडमेव, तस्स लाभे संवसेज्ना, तस्स अलाभे उक्कुडुए वा णेसज्जिए वा विहरेज्जा । चउत्था पडिमा। ४५७. इच्वेताणं चउण्हं पडिमाणं अण्णतरं पडिमं पडिवज्जमाणे तं चेव जाव अण्णोण्णसमाहीए एवं च णं विहरति । ४५८. १ से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा संथारगं पच्चप्पिणित्तए। सेनं पुण संथारगं जाणेज्जा अप्पंडं जाव संताणगं, तहप्पगारं संथारगंणो पच्चप्पिणेज्जा। २ से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा संथारगं पच्चप्पिणित्तए । से ज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा अप्पंडं जाव संताणगं, तहप्पगारं संथारगं पडिलेहिय २ पमज्जिय २ आताविय २ विणिद्धणिय २ ततो संजतामेव पच्चप्पिणेज्जा। ४५९. से भिक्खू वा २ समाणे वा वसमाणे वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे वा पुव्वामेव पण्णस्स उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेज्जा। केवली बूया-आयाणमेयं अपडिलेहियाए उच्चार-पासवणभूमीए, भिक्खू वा २ रातो वा वियाले वा उच्चार-पासवणं परिट्ठवेमाणे पयलेज वा पवडेज्ज वा, से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा पायं वा जाव लूसेज्जा पाणाणि वा ४ जाव ववरोएज्जा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं पुव्वामेव पण्णस्स उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेज्जा। ४६०. १ से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा सेज्जासंथारगभूमि पडिलेहित्तए, अण्णत्थ आयरिएण वा उवज्झाएण वा चाव गणावच्छेइएण वा बालेण वा वुड्डेण वा सेहेण वा गिलाणेण वा आएसेण वा अंतेण वा मज्झेण वा समेण वा विसमेण वा पवाएण वा णिवातेण वा पडिलेहिय २ पमज्जिय २ ततो संजयामेव बहुफासुयं सेज्जासंथारगं संथरेजा। २ से भिक्खू वा २ बहुफासुयं सेज्जासंथारगं संथरित्ता अभिकंखेज्जा बहुफासुए सेज्जासंथारए दुहित्तए। से भिक्खू वा २ बहुफासुए सेज्जासंथारए दुहमाणे पुव्वामेव ससीसोवरियं कायं पाए य पमज्जिय २ ततो संजयामेव बहुफासुए सेज्जासंथारए दुहेज्जा, द्रुहित्ता ततो संजयामेव बहुफासुए सेज्जासंथारए सएज्जा। ३ से भिक्खू वा २ बहुफासुए सेज्जासंथारए सयमाणे णो अण्णमण्णस्स हत्थेण हत्थं पादेण पादं काएण कायं आसाएजा । से अणासायए अणासायमाणे ततो संजयामेव बहुफासुए सेनासंथारए सएज्जा । ४६१. से भिक्खू वा २ ऊससमाणे वा णीससमाणे वा कासमाणे वा छीयमाणे वा जंभायमाणे वा उड्डोए वा वातणिसग्गे वा करेमाणे पुत्वामेव आसयं वा पोसयं वा पाणिणा परिपिहेत्ता ततो संजयामेव ऊससेज वा जाव वायणिसगं वा करेजा। ४६२. से भिक्खू वा २ समा वेगदा सेज्जा भवेज्जा, विसमा वेगया सेज्जा भवेज्जा, पवाता वेगया सेज्जा भवेज्जा, णिवाता वेगया सेज्जा भवेज्जा, ससरक्खा वेगया है सेना भवेज्जा, अप्पसरक्खा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सदंस-मसगा वेगदा सेज्जा भवेज्जा, अप्पदंस-मसगा वेगदा सेज्ना भवेज्जा, सपरिसाडा वेगदा सेज्जा भवेज्जा, O乐乐明$$$$$$$$听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听$$$$$$2C Rec555555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा - ३१ 15555555555555555555555557.OR Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KOR955555555 (१) आयारो - बी. सु. ३ अ. इरिया उद्देसक १ [३२] 55555555555RExog HCFCs听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐 अपरिसाडा वेगदा सेज्जा भवेज्जा, सउवसग्गा वेगदा सेज्जा भवेज्जा, णिरुवसग्गा वेगदा सेज्जा भवेज्जा, तहप्पगाराहिं सेज्जाहिं संविजमाणाहिं पग्गहिततरागं विहारं विहरेज्जा । णो किंचि वि गिलाएज्जा। ४६३. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वदे॒हिं सहिते सदा जतेज्जासि त्ति बेमि सेज्जा समत्ता ॥ ३ तईयं अज्झयणं 'इरिया' पढमो उद्देसओ ४६४. अब्भुवगते खलु वासावासे अभिपवुढे, बहवे पाणा अभिसंभूया, बहवे बीया अहुणुब्भिण्णा, अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया जाव संताणगा, अणण्णोकंता पंथा, णो विण्णाया मग्गा, सेवं णच्चा णो गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, ततो संजयामेव वासावासं उवल्लिएज्जा । ४६५. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण जाणेज्जा गाम वा जाव रायहाणिं वा, इमंसि खलु गामंसि वा जाव रायहाणिसि वा णो महती विहारभूमी, णो महती वियारभूमी, णो सुलभे पीढ-फलग-सेज्जा-संथारए, णो सुलभे फासुए उंछे अहेसणिज्जे, बहवे जत्थ समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा उवागता उवागमिस्संति च, अच्वाइण्णा वित्ती, णो पण्णस्स णिक्खमण जाव चिंताए । सेवं णच्चा तहप्पगारं गाम वा णगरं वा जाव रायहाणिं वा णो वासावासं उवल्लिएज्जा । ४६६. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण जाणेज्जा गामं वा जाव रायहाणिं वा, इमंसि खलु गामंसि वा जाव रायहाणिसि वा महती विहारभूमी, महती वियारभूमी, सुलभे जत्थ पीढ़-फलग-सेज्जा संथारए, सुलभे फासुए उंछे अहेसणिज्जे, णो जत्थ बहवे समण जाव उवागमिस्संति य, अप्पाइण्णा वित्ती, जावई रायहाणिं वा ततो संजयामेव वासावासं उवल्लिएज्जा । ४६७. अह पुणेवं जाणेज्जा चत्तारि मासा वासाणं वीतिकंता, हेमंताण य पंच-दसरायकप्पे परिवुसिते, अंतरा से मग्गा बहुपाणा जाव संताणगा, णो जत्थ बहवे समण जाव उवागमिस्संति य, सेवं णच्चा णो गामाणुगाम दूइज्जेज्जा। ४६८. अह पुणेवं जाणेज्जा चत्तारि मासा वासाणं वीतिक्कंता, हेमंताण य पंच-दसरायकप्पे परिवुसिते अंतरा से मग्गा अप्पंडा जाव संताणगा, बहवे जत्थ समण जाव उवागमिस्संति य । सेवं णच्चा ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। ४६९. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे पुरओ जुगमायं पेहमाणे दटूण तसे पाणे उद्धट्ट पादं रीएज्जा, साहट्ट पादं रीएज्जा, वितिरिच्छं वा कट्ट पादं रीएज्जा, सति परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, णो उज्जुयं गच्छेज्जा, ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा । ४७०. से भिक्खू वा २ गामाणुगाम दूइज्जमाणे, अंतरा से पाणाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा उदए वा मट्टिया वा अविद्धत्था, सति परक्कमे जाव णो उज्जुयं गच्छेज्जा, ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। ४७१. से भिक्खूवा २ गामाणुगाम दूइज्जमाणे, अंतरा से विरूवरूवाणि पच्चंतिकाणि दसुगायतणाणि मिलक्खूणि अणारियाणि दुस्सण्णप्पाणि दुप्पण्णवणिज्जाणि अकालपडिबोहीणि अकालपरिभोईणि, सति लाढे विहाराए संथरमाणेहिं जणवएहिं णो विहारवत्तियाए पवज्जेज्जा गमणाए । केवली बूयाआयाणमेयं । तेणं बाला 'अयं तेणे,अयं उवचरए, अयं ततो आगते' ति कट्ट तं भिक्खुं अक्कोसेज्न वा जाव उवद्दवेज्ज वा, वत्थं पडिग्गहं कंबलं पादपुंछणं अच्छिदज्ज वा भिदज्ज वा अवहरेज वा परिट्ठवेज वा । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जंणो (?) तहप्पगाराणि विरूवरूवाणि पच्वंतियाणि दसुगायतणाणि जाव विहारवत्तियाए णो पवज्जेज्जा गमणाए। ततो संजयामेव गामाणुगाम दूइज्जेज्जा। ४७२. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे, अंतरा से अरायाणि वा जुवरायाणि वा दोरज्जाणि वा वेरज्जाणि वा विरुद्धरज्जाणि वा, सति लाढे विहाराए संथरमाणेहिं जणवएहिं णो विहारवत्तियाए पवज्जेज्जा गमणाए। केवली बूया-आयाणमेतं। ते णं बाला अयं तेणे तं चेव जाव गमणाए । ततो संजयामेव गामाणुगामं दुइज्जेज्जा । ४७३. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, अंतरा से विहं सिया, से ज्जं पुण विहं म जाणेज्जा एगाहेण वा दुयाहेण वा तियाहेण वा चउयाहेण वा पंचाहेण वा पाउणेज्जा वा णो वा पाउणेज्जा। तहप्पगारं विहं अणेगाहगमणिज्जं सति लाढे जाव गमणाए क केवली ब्रूया-आयणमेतं । अंतरा से वासे सिया पाणेसु वा पणएसु वा बीएसु वा हरिएसु वा उदएसु वा मट्टियाए वा अविद्धत्थाए। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं तहप्पगारं विहं अणेगाहगमणिज्जं जावणो गमणाए। ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेजा। ४७४. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, अंतरा सेणावासंतारिमे उदए सिया, से जं पुण णावं जाणेज्जा-असंजते भिक्खुपडियाए किणेज्ज वा, पामिच्चेज वा, णावाए वा णावपरिणाम कट्ट, थलातो वा णावं जलंसि ओगाहेज्जा, जलातो वा णावं थलंसि उक्कसेज्जा, पुण्णं वा णावं उस्सिंचेज्जा, सण्णं वा णावं उप्पीलावेज्जा, तहप्पगारं णावं उड्वगामिणिं वा अहेगामिणिं वा तिरियगामिणिं वा परं 哈乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明听听听听听听听听听听听斯$$$斯CTO. Re:555 5555555555555550श्री आगमगुणमजूषा- ३२555555555555555555555555OIOR Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ O乐乐乐乐听听听听听听听听听听听玩乐来听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐步步乐乐乐乐乐乐 FOR95555FFFFFFFF (१) आयारो - बी. सु. ३ अ. इरिया उद्देसक १,२ [३३] 1555555555555FROK जोयणमेराए अद्धजोयणमेराए वा अप्पतरे वा भुज्जतरे वा णो दुहेज्जा गमणाए। ४७५. से भिक्खू वा २ पुवामेव तिरिच्छसंपातिमं णावं जाणेज्जा, जाणित्ता से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, २ ता भंडगं पडिलेहेज्ना, २ ता एगाभोयं भंडगं करेज्जा, २ त्ता ससीसोवरियं कायं पाए य पमज्जेज्जा, २त्ता सागारं भत्तं पच्चक्खाएजा, २ ता एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा ततो संजयामेव णावं दुहेज्जा। ४७६. से भिक्खू वा २ णावं द्रुहमाणे णो णावातो पुरतो द्रुहेज्जा, णो णावाओ मग्गतो दुहेज्जा, णो णावातो मज्झतो दुहेज्जा, णो बाहाओ पगिज्झिय २ अंगुलियाए उद्दिसिय २ ओणमिय २ उण्णमिय २ णिज्झाएना। ४७७. से णं परो णावागतो णावागयं वदेज्जा आउसंतो समणा ! एतं ता तुमं णावं उक्कसाहि वा वोक्साहि वा खिवाहि वा रज्जूए वा गहाय आकसाहि। णो से तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्ना। ४७८. सेणं परोणावागतो णावागतं वदेज्जा आउसंतो समणा ! णो संचाएसि तुमं णावं उक्कसित्तए वा बोक्कसित्तए वा खिवित्तए वा रज्जूए वा गहाय आकसित्तए, आहर एयं णावाए रज्जुयं, सयं चेवं णं वयं णावं उक्कसिस्सामो वा जाव रज्जूए वा गहाय आकसिस्सामो। णो से तं परिण्णं परिजाणेज्जा, तूसिणीओ उवेहेज्जा। ४७९.सेणं परोणावागतोणावागयं वदेज्जा-आउसंतो समणा ! एतं ता तुम णावं अलित्तेण वा पिट्टेण वा वंसेण वा वलएण वा अवल्लएण वा वाहेहि। णो से तं परिणं जाव उवेहेजा। ४८०. सेणं परोणावागतोणावागयं वदेज्जा आउसंतो समणा ! एतं ता तुमं णावाए उदयं हत्थेण वा पाएण वा मत्तेण वा पडिग्गहएण वा णावाउस्सिंचणएण वा उस्सिंचाहि। णो सेतं परिणं परिजाणेज्जा ०।४८१. सेणं परोणावागतो णावागयं वएज्जा आउसंतोसमणा ! एतं ता तुम णावाए उत्तिंग हत्थेण वा पाएण वा बाहुणा वा ऊरुणा वा उदरेण वा सीसेण वा काएण वा णावाउस्सिंचणएण वा चेलेण वा मट्टियाए वा कुसपत्तएण वा कुविदण वा पिहेहि । णो से तं परिणं परिजाणेज्जा० । ४८२. से भिक्खू वा २ णावाए उत्तिंगेण उदयं आसवमाणं पेहाए, उवरुवरि णावं कज्जलावेमाणं पेहाए, णो पर उवसंकमित्तु एवं बूया आउसंतो गाहावति ! एतं ते णावाए उदयं उत्तिंगेण आसवति, उवरुवरि वा णावा कज्जलावेति । एतप्पगारं मणं वा वायं वा णो पुरतो कट्ट विहरेज्जा । अप्पुस्सुए अबहिलेस्से एगत्तिगएणं अप्पाणं वियोसेन समाधीए । ततो संजतामेव णावासंतारिमे उदए अधारियं रीएज्जा। ४८३. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वद्वेहिं समिए सहिते सदा जएज्नासि त्ति बेमि।★★★|इरियाए पढमो उद्देसओ समत्तो बीओ उद्देसओ ४८४. से णं परो णावागतो णावागयं वदेज्जा आउसंतो समणा! एतं ता तुम छत्तगं वा जाव चम्मछेदणगं वा गेण्हाहि, एताणि ता तुमं विरूवरूवाणि सत्थजायाणि धारेहि, एयंता तुमंदारगंवा दारिगं वा पज्जेहि, णो सेतं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओउवेहेज्जा। ४८५.सेणं परोणावागतेणावागतं वदेज्जा आउसंतो ! एसणं समणे णावाए भंडभारिए भवति, सेणं बाहाए गहाय णावाओ उदगंसि पक्खिवेज्जा । एतप्पगारं निग्घोसं सोचा णिसम्मा सेय चीवरधारी सिया खिप्पामेव चीवराणि उव्वेढेज वा णिव्वेढेज वा, उप्फेस वा करेज्जा । ४८६. अह पुणेवं जाणेज्जा अभिकंतकूरकम्मा खलु बाला बाहाहिं गहाय णावाओ उदगंसि पक्खिवेज्जा से पुवामेव वदेज्जा आउसंतो गाहावती ! मा मेत्तो बाहाए गहाय णावातो उदगंसि पक्खिवह, सय चेवणं अहं णावतो उदगंसि ओगाहिस्सामि । से णेवं वदंतं परो सहसा बलसा बाहाहिं गहाय णावातो उदगंसि पक्खिवेज्जा, तं णो सुमणे सिया, णो दुम्मणे सिया, णो उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा, णो तेसिं बालाणं घाताए वहाए समुद्रुज्जा । अप्पुस्सुए भाव समाहीए । ततो संजयामेव उदगंसि पवजे(पवे)ज्जा। ४८७. से भिक्खू वा २ उदगंसि पवमाणे णो हत्थेण हत्थं पादेण पादं कारण कायं आसादेज्जा । से अणासादए अणासायमाणे ततो संजयामेव उदगंसि पवेजा। ४८८. से भिक्खू वा २ उदगंसि पवमाणे णो उम्मुग्ग-णिमुग्गिय करेजा, मा मेयं उदयं कण्णेसु वा अच्छीसु वा णक्वंसि वा मुहंसि वा परियावज्जेज्जा, ततो संजयामेव उदगंसि पवेज्जा । ४८९. से भिक्खू वा २ उदगंसि पवमाणे दोब्बलिय पाउणेज्जा, खिप्पामेव उवधि विगिचेज वा विसोहेज्ज वा, णो चेवणं सातिज्जेजा। ४९०. अह पुणेवं जाणेज्जा पारए सिया उदगाओ तीरं पाउणित्तए। ततो संजयामेव उदउल्लेण वा ससणिद्वेण वा कारण दगतीरए चिट्ठज्जा। ४९१. से भिक्खू वा २ उदउल्लं वा ससणिद्धं वा कायं णो आमज्जेज वा पमज्जेज वा संलिहेज्न वा णिल्लिहेज्न वा उव्वलेज्न वा उव्वट्टेज वा आतावेज वा पयावेज वा | अह पुणेवं जाणेज्जा विगतोदए मे काए छिण्णसिणेहे। तहप्पगारं कायं आमज्जेज वा पमज्जेज्ज वा जाव Worricu555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - 3355555555555555555534OTOR Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MOTOR (१) आयारो बी. सु. ३ अ. इरिया उद्देसक २,३ [३४] फ्र पवेज्ज वा । ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा । ४९२. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्नमाणे णो परेहिं सद्धिं परिजविय २ गामाणुगामं दूइज्जेज्जा । ततो • संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा । ४९३. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, अंतरा से जंघासंतारिमे उदगे सिया, से पुव्वामेव ससीसोवरियं कायं पाए य मज्जेज्जा से पुव्वामेव ससीसोवरियं कायं पाए य पमज्जेत्ता एवं पादं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा ततो संजयामेव जंघासंतारिमे उदगे अहारियं रीएज्जा । ४९४. से भिक्खू वा २ जंघासंतारिमे उदगे अहारियं रीयमाणे णो हत्थेण हत्थं जाव अणासायमाणे ततो संजयामेव जंघासंतारिमे उदगे अहारियं रीएज्जा । ४९५. सेभिक्खू वा २ जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीयमाणे णो साथपडियाए णो परिदाहपडियाए महतिमहालयंसि उदगंसि कायं विओसेज्जा । ततो संजयामेव जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीएज्जा । ४९६. अह पुणेवं जाणेज्जा पारए सिया उदगाओ तीरं पाउणित्तए । ततो संजयामेव उदउल्लेण वा ससणिद्वेण वा काएण दगतीरए चिट्ठेज्ना । ४९७. से भिक्खू वा २ उदउल्लं वा कार्यं ससणिद्धं वा कायं णो आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा ० । अह पुणेवं जाणेज्ना विगतोदए मे काए छिण्णसिणेहे । तहप्पगारं कायं मज्जेज वा जाव यावेज्ज वा । ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा । ४९८. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे णो मट्टियागतेहिं पाएहिं हरियाणि छिदिय २ विकुज्जिय २ विफालिय २ उम्मग्गेण हरियवधाएं गच्छेज्जा 'जहेयं पाएहिं मट्टियं खिप्पामेव हरियाणि अवहरंतु' । माइद्वाणं संफासे । णो एवं करेज्जा से पुव्वामेव अप्पहरियं मग्गं पडिलेहेज्जा, २ त्ता ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा । ४९९. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्माणे अंतरा से वप्पाणि वा फलिहाणि वा पागाराणि वा तोरणाणि वा अग्गलाणि वा अग्गलपासगाणि वा गड्डाओ वा दरीओ वा सति परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, णो उज्जुयं गच्छेज्जा । केवली बूया आयाणमेयं । से तत्थ परक्कममाणे पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा, से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा रुक्खाणि वा गुच्छाणि वा गुम्माणि वा लयाओ वा वल्लीओ वा तणाणि व गाणिवा हरियाणि वा अवलंबिय २ उत्तरेज्जा, जे तत्थ पाडिपहिया उवागच्छंति ते पाणी जाएज्जा, २ त्ता ततो संजयामेव अवलंबिय २ उत्तरेज्जा । ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा । ५००. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे, अंतरा से जवसाणि वा सगडाणि वा रहाणि वा सचक्काणि वा परचक्काणि वा सेणं वा विरूवरूवं संणिविट्टं पेहाए सति परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, णो उज्जुयं गच्छेज्जा । ५०१. से णं से परो सेणागओ वदेज्जा आउसंतो ! एस णं समणे सेणाए अभिचारियं करेइ, से णं बाहाए गहाय आगसह । से णं परो बाहाहिं गहाय आगसेज्जा, तं णो सुमणे सिया जाव समाहीए। ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, ५०२. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे, अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वदेज्जा आउसंतो समणा ! केवतिए एस गामे वा जाव रायहाणी वा, केवतिया एत्थ आसा हत्थी गामपिंडोलगा मणुस्सा परिवसंति ? से बहुभत्ते बहुउदए बहुजणे बहुजवसे ? से अप्पभत्ते अप्पुदए अप्पजणे अप्पजवसे ? एतप्पगाराणि पसिणाणि पुट्ठो नो आइक्खेज्जा, एयप्पगाराणि पसिणाणि णो पुच्छेज्ना । ५०३. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वहिं समिते सहिते सदा जएज्जासि त्ति बेमि ॥ ★★★ ॥ तृतीयस्स द्वितीय उद्देशकः समाप्तः ॥ ★★★ तइओ उद्देसओ ५०४. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्माणे अंतरा से वप्पाणि वा फलिहाणि वा पागाराणि वा जाव दरीओ वा कूडागाराणि वा पासादाणि वा णूमगिहाणि वा रुक्खगिहाणि वा पव्वतगिहाणि वा रुक्खं वा चेतियकडं धूमं वा चेतियकडं आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा णो बाहाओ पगिज्झिय २ अंगुलियाए उद्दिसिय २ ओणमिय २ उण्णमिय २ णिज्झाएज्जा । ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा । ५०५. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे, अंतरा से कच्छाणि वा दवियाणि वा माणिवा वलयाणि वा गणाणि वा गहणविदुग्गाणि वा वणाणि वा वणविदुग्गाणि वा पव्वताणि वा पव्वतविदुग्गाणि वा अगडाणि वा तलागाणि वा दहाणि वा णदीओ वा वावीओ वा पोक्खरणीओ वा दीहियाओ वा गुंजालियाओ वा सराणि वा सरपंतियाणि वा सरसरपंतियाणि वा णो बाहाओ पगिज्झिय २ जाव णिज्झाएज्जा । केवल बूया आयाणमेयं । जे तत्थ मिगा वा पसुया वा पक्खी वा सरी सिवा वा सीहा वा जलचरा वा थलचरा वा खहचरा वा सत्ता ते उत्तसेज्ज वा, वित्तसेज्ज वा, वार्ड वासरणं वा कंखेज्जा, चारे ति मे अयं समणे । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं णो बाहाओ पगिज्झिय २ जाव णिज्झाएज्जा । ततो संजयामेव आयरिय-उवज्झाएहिं MOTOR श्री आगमगुणमंजूषा - ३४ 原 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROOFFFFF555 (१) आयारो - बी. सु. ३ अ. इरिया उद्देसक ३-४ अ.भासम्बाया (२५55555555%Xxyog %%%%%%%C3 9乐玉劣垢听听听听听听听听 %%%%%%%%%% %% %%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%% सद्धिंगामाणुगामं दूइज्जेज्जा। ५०६.से भिक्खू वा २ आयरिय-उवज्झाएहिं सद्धिंगामाणुगामं दूइज्जमाणे णो आयरिय-उवज्झायस्स हत्येण हत्थं जाव अणासायमाणे ततो संजयामेव आयरिय-उवज्झाएहिं सद्धि जाव दूइज्जेज्जा। ५०७. से भिक्खू वा २ आयरिय-उवज्झाएहिं सद्धिं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उबागच्छेज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वदेज्जा-आउसंतो समणा । के तुन्भे, कओ वा एह, कहिं वा गच्छिहिह ? जे तत्थ आयरिए वा उवज्झाए वा से भासेज्ज वा वियागरेज वा, आयरिय-उवज्झायस्स भासमाणस्स वा वियागरेमाणस्स वा णो अंतरा भासं करेज्जा, ततो संजयामेव आहारातिणियाए दूइज्जेज्जा । ५०८. से भिक्खू वा २ ॥ आहारातिणियं गामाणुगामं दूइज्जमाणे णो राइणियस्स हत्थेण हत्थं जाव अणासायमाणे ततो संजयामेव आहारातिणियं गामाणुगामं दूइज्जेजा। ५०९. से भिक्खू वा २ आहाराइणियं गामाणुगाम दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वदेज्जा-आउसंतो समणा ! के तुब्भे? जे तत्थ सव्वरातिणिए से भासेज्ज वा वियागरेज्ज वा, रातिणियस्स भासमाणस्स वा वियागरेमाणस्स वा णो अंतरा भासं भासेज्जा। ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्ना। ५१०.से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया आगच्छेज्जा, तेणं पाडिपाहिया एवं वदेज्जा-आउसंतो समणा ! अवियाई एतो पडिपहे पासह मणुस्संवा गोणं वा महिसं वा पसुं वा पक्खिं वा सरीसवं वा जलचरं वा, सेत्तं मे आइक्खह, दसेह । तं णो आइक्खेजा, णो दंसेज्जा, णो तस्स तं परिण्णं परिजाणेज्जा, तुसिणीए उवेहेज्जा, जाणं वा णो जाणं ति वदेज्जा । ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। ५११. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा, तेणं पाडिपहिया एवं वदेज्जा-आउसंतो समणा ! अवियाइं एत्तो पडिपहे पासह उदगपसूताणि कंदाणि वा मूलाणि वा तया णि वा पत्ता णि वा पुप्फा णि वा फला णि वा बीया णि वा हरिता णि वा उदयं वा संणिहियं अगणिं वा संणिक्खित्तं, से आइक्खह जाव दूइज्जेजा। ५१२. से भिक्खू वा गामाणुगामं दुइज्नेज्जा अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वदेज्जा आउसंतो समणा ! अवियाई एतो पडिपहे पासह जवसाणि वा जाव सेणं वा विरूवरूवं संणिविटुं, से आइक्खह जाव दूइज्जेज्जा। ५१३. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतंरा से पाडिपहिया जाव आउसंतो समणा ! केवतिए एतो गामे वा जाव रायहाणि(णी)वा ? से आइक्खह जाव दूइज्जेज्जा । ५१४. से भिक्खू वा २ गामाणुगाम दूइज्जेज्जा, अंतरा से पाडिपहिया जाव आउसंतो समणा ! केवइए एतो गामस्स वा नगरस्स वा जाव रायहाणीए वा मग्गे ? से आइक्खह तहेव जाव दूइज्जेज्जा। ५१५. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से गोणं वियालं पडिपहे पेहाए जाव चित्ताचेल्लडयं वियालं पडिपहे पेहाए, णो तेसिं भीतो उम्मग्गेणं गच्छेज्जा, णो मग्गातो मग्गं संकमज्जा, णोगहणं वा वणं वा दुग्गंवा अणुपविसेज्जा, णो रुक्खंसि दुहेज्जा, णो महतिमहालयंसि उदयंसि कायं विओसेज्जा, णो वाडं वा सरणं वा सेणं वा सत्थं वा कंज्जा , अप्पुस्सुए जाव समाहीए, ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्ना। ५१६. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, अंतरा से विहं सिया, से जं पुण विहं जाणेज्जा, इमंसि खलु विहंसि बहवे आमोसगा उवकरणपडियाए संपडिया 55 गच्छेज्जा, णो तेसिं भीओ उम्मग्गं चैव गच्छेज्जा जाव समाहीए। ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्ना। ५१७. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, अंतरा से अमोसगा संपडिया ऽऽ गच्छेज्जा, ते णं आमोसगा एवं वदेज्जा-आउसंतो समणा ! आहर एयं वत्थं वा ४, देहि, णिक्खिवाहि, तं णो देज्जा, णिक्खिवेज्जा, णो वंदिय जाएज्ज, णो अंजलिं कट्ट जाएज्जा, णो कलुणपडियाए जाएज्जा, धम्मियाए जायणाए जाएज्जा, तुसिणीयभावेण वा उवेहेना । ५१८. ते णं आमोसगा सयं करणिज्ज ति कटु अक्कोसंति वा जाव उद्दति वा, वत्थं वा ४ अच्छिदज वा जाव परिट्ठवेज वा तं णो गामसंसारियं कुज्जा, णो रायसंसारियं कुज्जा, णो परं उवसंकमित्तु बूया-आउसंतो गाहावती ! एते खलु आमोसगा उवकरणपडियाए सयं करणिज्जं ति कट्ट अक्कोसंति वा जाव परिठ्ठवेति वा । एतप्पगारं मणं वा वई वा णो पुरतो कट्ट विहरेज्जा । अप्पुस्सुए जाव समाहीए ततो संजयामेव गामाणुगाम दुइज्जेज्जा । ५१९. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वटेहिं समिते सहिते सदा जएज्जासि त्ति बेमि । । इरिया समत्ता ॥७४ चउत्थं अज्झयणं 'भासज्जाया' पढमो उद्देसओ५२०. से भिक्खू वा २ इमाइं वयिआयाराई सोच्चा णिसम्मा इमाई अणयाराइं अणायरियपुव्वाइं जाणेज्जा-जे कोहा वा वायं विउंजंति, जे माणा वा 0 patosinternation-२००९.92-mirrnercurr श्री आगमगणमजूषा- ३५ 5555555555555555555555555OOR 6 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROOF # $$$5 (१) आयारो - बी. सु. /४ अ. भासज्जाया उद्देसक १-२ [३६] KO乐乐听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐玩玩乐乐乐听听听听听听听听乐听听听听听乐乐乐乐乐乐乐格 वायं विउंजंति, जे मायाए वा वायं विउंजंति, जे लोभा वा वायं विउंजंति, जाणतो वा फरुसंवदंति, अजाणतो वा फरुसं वयंति। सव्वं चेयं सावजं वजेज्जा विवेगमायाए-2 धुवं चेयं जाणेज्जा, अधुवं चेयं जाणेज्जा असणं वा ४ लभिय, णो लभिय, भुंजिय, णो भुजिय, अदुवा आगतो अदुवा णो आगतो, अदुवा एति, अदुवा णो एति, अदुवा एहिति, अदुवा णो एहिति, एत्थ वि आगते, एत्थ वि णो आगते, एत्य वि एति, एत्थ वि णो एति, एत्थ वि एहिति, एत्थ वि णो एहिति । ५२१. अणुवीयि णिट्ठाभासी समिताए संजते भासं भासेज्जा, तंजहा एगवयणं १, दुवयणं २, बहुवयणं ३, इत्थीवयणं ४, पुरिसवयणं ५, णपुंसगक्यणं ६, अज्झत्थवयणं ७, उवणीयवयणं ८, अवणीयवयणं९, उवणीत अवणीतवयणं १०, अवणीतउवणीतवयणं ११, तीयवयणं १२, पडुप्पण्णवयणं १३, अणागयवयणं १४, पच्चक्खवयणं १५, परोक्खवयणं १६। से एगवयणं वदिस्सामीति एगवयणं वदेज्जा, जाव परोक्खवयणं वदिस्सामीति परोक्खवयणं वदेज्जा । इत्थी वेस पुमं वेस णपुंसगं वेस, एवं वा चेयं, अण्णं वा चेयं, अणुवीयि णिवाभासी समियाए संजते भासं भासेज्जा। ५२२. इच्चेयाइं आयतणाई उवातिकम्म अह भिक्खू जाणेज्जा चत्तारि भासज्जायाई, तंजहा सच्चमेगं पढमं भासजातं, बीयं मोसं, ततियं सच्चामोसं, जंणेव सच्चं णेव मोसं णेव सच्चामोसं असच्चामोसंणाम तं चउत्थं भासज्जातं । से बेमि जे य अतीताजे य पडुप्पण्णा जे य अणागया अरहंता भगवंतो सव्वे ते एताणि चेव चत्तारि भासज्जाताई भासिसु वा भासंति वा भासिस्संति वा, पण्णविंसु वा ३ । सव्वाइं च णं एयाणि अचित्ताणि वण्णमंताणि गंधमंताणि रसमंताणि फासमंताणि चयोवचइयाइं विप्परिणामधम्माइं भवंति त्ति अक्खाताई। ५२३. से भिक्खू वा २ से जं पुण जाणेज्जा पुव्वं भासा अभासा, भासिज्जमाणी भासा भासा, भासासमयवीइकंतं च णं भासिता भासा अभासा। ५२४. से भिक्खू वा २ जा य भासा सच्चा जा य भासा मोसा जा य भासा सच्चामोसा जा य भासा असच्चामोसा तहप्पगारं भासं सावज्जं सकिरियं कक्कसं कडुयं णिटुरं फरुसं अण्हयकरिं छेयणकरिं भेयणकरि परितावणकरि उद्दवणकरि भूतोवघातियं अभिकंख णो भासेज्जा । ५२५. से भिक्खू वा २ जा य भासा सच्चा सुहुमा जा य भासा असच्चामोसा तहप्पगारं भासं असावज्जं अकिरियं जाव अभूतोवघातियं अभिकंख भासेज्जा। ५२६. से भिक्खू वा २ पुमं आमंतेमाणे आमंतिते वा अपडिसुणेमाणे णो एवं वदेज्जा होले ति वा, गोले ति वा, वसुले ति वा, कुपक्खे ति वा, घडदासे ति वा, साणे ति वा, तेणे ति वा, चारिए ति वा, मायी ति वा, मुसावादी ति वा, इतियाइं तुमं, इतियाइं ते जणगा वा । एतप्पगारं भासं सावज्जं सकिरियं जाव अभिकंख णो भासेज्ना। ५२७. से भिक्खू वा २ पुमं आमंतेमाणे आमंतिते वा अपडिसुणेमाणे एवं वदेज्जा अमुगे ति वा, आउसो ति वा, आउसंतारो ति वा, सावके ति वा, उवासगे ति वा, धम्मिए ति वा, धम्मप्पिए ति वा । एतप्पगारं भासं असावजं जाव अभूतोवघातियं अभिकंख भासेज्जा। ५२८. से भिक्खू वा २ इत्थी आमंतेमाणे आमंतिते य अपडिसुणेमाणी णो एवं वदेज्जा होली ति वा, गोली ति वा, इत्थिगमेणं णेतव्वं । ५२९. से भिक्खू वा २ इत्थी आमंतेमाणे आमंतिते य अपडिसुणेमाणी एवं वदेज्जा आउसो ति वा, भगिणी ति वा, भोई ति वा भगवती ति वा, साविगे ति वा, उवासिए ति वा, धम्मिए ति वा, धम्मप्पिए ति वा । एतप्पगारं भासं असावजं जाव अभिकंख भासेज्जा। ५३०. से भिक्खू वा २ णो एवं वदेज्जा णभंदेवे ति वा, गज्जदेवे ति वा, विज्जुदेवे ति वा, पवुट्ठदेवे ति वा, णिवुट्ठदेवे ति वा, पडतु वा वासं मा वा पडतु, णिप्पज्जतु वा सासं मा वा णिप्पज्जतु, विभातु वा रयणी मा वा विभातु, उदेउ वा सूरिए मा वा उदेउ, सो वा राया जयतु मा वा जयतु । णो एयप्पयारं भासं भासेज्जा पण्णवं । ५३१. से भिक्खू वा २ अंतलिक्खे ति वा, गुज्झाणुचरिते ति वा, समुच्छिते वा, णिवइए वा पओए, वदेज्ज वा वुट्ठबलाहगे त्ति । ५३२. एयं खलु भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वटेहिं सहिएहि सया जए ज्जासि त्ति बेमि | | भासज्जायस्य चतुर्थस्य प्रथम उद्देशकः समाप्तः ॥★★★बीओ उद्देसओ ५३३. से भिक्खू वा २ जहा वेगतियाई रूवाइं पासेज्जा तहा वि ताई णो एवं वदेज्जा, 卐 तंजहा गंडी गंडी ति वा, कुठ्ठी कुठ्ठी ति वा, जाव महुमेहणी ति वा, हत्थच्छिण्णं हत्थच्छिण्णे ति वा, एवं पादच्छिण्णे ति वा, कण्णच्छिण्णे ति वा नक्कच्छिण्णे ति वा, म उदृच्छिण्णे ति वा । जे यावऽण्णे तहप्पगारा एतप्पगाराहिं भासाहि बुझ्या २ कुप्पंति माणवा ते यावि तहप्पगारा तहप्पगाराहिं भासाहिं अभिकंख णो भासेज्जा। ५३४. से भिक्खू वा २ जहा वेगतियाई रूवाइं पासेज्जा तहा वि ताई एवं वदेज्जा, तंजहा ओयंसी ओयंसी तिवा, तेयंसी तेयंसी ति वा, वच्चंसी वच्चंसी तिवा, जसंसी $乐乐玩玩乐乐玩玩乐乐玩玩乐乐 Moo 5555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा- ३६555555555555555555555555OOK Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 95 (१) आयारो बी. सु. ४ अ. भासज्जाया उद्देसक २ [३७] जसंसी ति वा, अभिरूवं अभिरूवे ति वा, पडिरूवं पडिरूवे ति वा, पासादियं पासादिए ति वा, दरिसणिज्जं दरिसणीए ति वा । जे यावऽण्णे तहप्पगारा एयप्पगाराहिं भासाहिं बुइया २ णो कुप्पंति माणवा ते यावि तहप्पगारा एतप्पगाराहिं भासाहिं अभिकख भासेज्जा । ५३५. से भिक्खू वा २ जहा वेगतियाइं रूवाइं पासेज्जा, तंजा वप्पाणि वा जाव गिहाणि वा तहा वि ताइं णो एवं वदेज्जा, तं जहा सुकडे ति वा, सुट्ट कडे ति वा, साहुकडे इ वा, कल्लाणं ति वा, करणिज्जे इ वा । एयप्यगारं भासं सावज्जं जाव णो भासेज्जा । ५३६. से भिक्खू वा २ जहा वेगइयाइं रूवाइं पासेज्जा, तं जहा वप्पाणि वा जाव गिहाणि वा तहा वि ताई एवं बदेज्जा, तंजहा आरंभकडे ति वा, सावज्जकडे ति वा, पयत्तकडे ति वा, पासादियं पासादिए ति वा, दरिसणीयं दरिसणीए ति वा, अभिरूवं अभिरूवे ति वा, पडिरूवं पडिरूवे ति वा । एतप्पगारं भासं असावज्जं जाव भासेज्जा । ५३७. से भिक्खू वा २ असणं वा ४ उवक्खडियं पेहाए तहा वि तं णो एवं वदेज्जा, तंजहा सुकडे ति वा, सुठुकडे ति वा, साहुकडे ति वा, कल्ला तिवा, करणिज्जे ति वा । एतप्पगारं भासं सावज्जं जाव णो भासेज्जा । ५३८. से भिक्खू वा २ असणं वा ४ उवक्खडियं पेहाए एवं वदेज्जा, तंजहा आरंभकडे ति वा, सावज्जकडे ति वा, पयत्तकडे ति वा, भद्दयं भद्दए ति वा, ऊसडं ऊसडे ति वा, रसियं रसिए ति वा, मणुण्णं मणुण्णे ति वा, एतप्पगारं भासं असावज्जै जाव भासेज्जा । ५३९. से भिक्खू वा २ मणुस्सं वा गोणं वा महिसं वा मिगं वा पसुं वा पक्खिं वा सरीसिवं वा जलयरं वा सत्तं परिवूढकायं पेहाए णो एवं वदेज्जा थुल्ले ति वा, पमेतिले ति वा, वट्टे ति वा, वज्झे ति वा, पादिमे ति वा । एतप्पगारं भासं सावज्जं जाव णो भासेज्जा । ५४०. से भिक्खू वा २ मणुस्सं वा जाव जलयरं वा सत्तं परिवूढकायं पेहाए एवं वदेज्जा परिवूढकाए ति वा, उवचितकाए ति वा, थिरसंघयणे ति वा, चितमंस-सोणिते ति वा, बहुपडिपुण्णइंदिए ति वा । एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव भासेज्जा । ५४१. से भिक्खू वा २ विरूवरूवाओ गाओ पेहाए णो एवं वदेज्जा, तंजहा गाओ दोज्झा ति वा, दम्मा ति वा गोरहगा, वाहिमा ति वा, रहजोग्गाति वा । एतप्पगारं भासं सावज्जं जाव णो भासेज्जा । ५४२. से भिक्खू वा २ विरूवरूवाओ गाओ पेहाए एवं वदेज्जा, तंजहा जुवंगवे ति वा, धेणू ति वा, रसवतीति वा, महव्वए ति वा, संवहणे ति वा । एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभिकख भासेज्जा । ५४३. से भिक्खू वा २ तहेव गंतुमुज्जाणाइं पव्वयाइं वणाणि वा रुक्खा महल्ला पेहाए णो एवं वदेज्जा, तंजहा पासायजोग्गा ति वा, तोरणजोग्गा ति वा, गिहजोग्गा ति वा, फलिहजोग्गा तिवा, अग्गलजोग्गा ति वा, णावाजोग्गा ति वा, उदगदोणिजोग्गा ति वा, पीढ-चंगबेर-जंगल-कुलिय-जंतलट्ठी- णाभि-गंडी - आसणजोग्गा ति वा, सयण जाण उवस्सयजोग्गा ति वा । एतप्पगारं भासं सावज्जं जाव णो भासेज्जा । ५४४. से भिक्खू वा २ तहेव गंतुमुज्जाणारं पव्वताणि वणाणि य रुक्खा महल्ल पेहाए एवं वदेज्जा, तंजहा जातिमंता ति वा, दीहट्टा वा, महालया ति वा, पयातसाला ति वा, विडिमसाला ति वा, पासादिया ति वा ४ । एतप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभिकख भासेज्जा । ५४५. से भिक्खू वा २ बहुसंभूता वणफला पेहाए तहा वि ते णो एवं वदेज्जा, तंजहा पक्काई वा, पायखज्जाई वा, वेलोतियाइं वा, टालाई वा, वेहियाई वा । एतप्पगारं भासं सावज्जं जाव णो भासेज्जा । ५४६. से भिक्खू वा २ बहुसंभूया बणफला पेहाए एवं वदेज्जा, तंजहा असंथडा ति वा, बहुणिव्वट्टिमफला ति वा, बहुसंभूया ति वा, भूतरूवा ति वा । एतप्पगारं भासं असावज्जं जाव भासेज्जा । ५४७. से भिक्खू वा २ बहुसंभूतातो ओसधीतो पेहाए तहा वि ताओ णो एवं वदेज्जा, तंजहा पक्का ति वा, पीलिया ति वा, छवीया तिवा, लाइमा तिवा, भज्जिमाति वा, बहुखज्जा ति वा । एतप्पगारं भासं सावज्जं जाव णो भासेज्जा । ५४८. से भिक्खू वा २ बहुसंभूताओ ओसहीओ पेहाए तहा वि एवं वदेज्जा, तंजहा रूढा ति वा, बहुसंभूया ति वा, थिरा ति वा, ऊसढा ति वा, गब्भिया ति वा, पसूया ति वा, ससारा ति वा । एतप्पगारं भासं असावज्जं जाव भासेज्जा । ५४९. से भिक्खू वा २ जहा वेगतियाइं सद्दाइं सुणेज्जा तहा वि ताइं णो एवं वदेज्जा, तंजहा सुसद्दे ति वा, दुसद्दे ति वा । एतप्पगारं भासं सावज्जं जाव भासेज्ना । ५५०. से भिक्खू वा २ जहा वेगतियाई सद्दाई सुणेज्जा तहा वि ताई एवं वदेज्जा, तंजहा सुसद्दं सुसद्दे ति वा, दुसद्द दुसद्दे ति वा । एतप्पगारं भासं सावज्जं जाव भासेज्जा । एवं रुवाई किण्हे ति वा ५, गंधाई सुब्भिगंधे ति वा २, रसाई तित्ताणि वा ५, फासाई कक्खडाणि वा ८ । ५५१. से भिक्खू वा २ वंता कोहं च माणं च मायं च लोभं च अणुवीयि णिट्टाभासी निसम्मभासी अतुरियभासी विवेगभासी समियाए संजते भासं भासेज्जा । ५५२. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स Dag 315 另有点长5 Roc Pivate & Personalise C s Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AGRO595 (१) आयारो - बी, सु. ४ अ. भासज्जाया उद्देसक २/५ अ. वत्थेसणा उद्देसक-१ [३८] 5455$$$$EXOR HOLIC虽明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明 वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय जसव्वछेहिं सहितेहिं सदा जएज्जासित्ति बेमि भासज्जाया चतुर्थमध्ययनं समाप्तम् ॥ ५पंचमं अज्झयणं 'वत्थेसणा' पढमो उद्देसओ X ५५३. से भिक्खू वा २ अभिकंज्जा वत्थं एसित्तए। से ज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा, तंजहा जंगियं वा भंगियं वा साणयं वा पोत्तगं वा खोमियं वा तूलकडं वा, तहप्पगारं वत्थं जे णिग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे से एगं वत्थं धारेज्जा, णो बितियं । जा णिग्गंथी सा चत्तारि संघाडीओ धारेज्जा एगं दुहत्थवित्थारं, दो तिहत्थवित्थाराओ, एणं चउहत्थवित्थारं। तहप्पगारेहिं वत्थेहिं असंविजमाणेहिं अह पच्छा एगमेगं संसीवेजा। ५५४. से भिक्खू वा २ परं अद्धजोयणमेराए वत्थपडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए। ५५५. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा अस्सिंपडियाए एणं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई जहा पिंडेसणाए भाणियव्वं, एवं बहवे साहम्मिया, एगं साहम्मिणिं, बहवे साहम्मिणीओ, बहवे समण-माहण तहेव पुरिसंतरकडं जधा पिडेसणाए । ५५६. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा अस्संजते भिक्खुपडियाए कीतं वा धोयं वा रत्तं वा घटुं वा मटुं वा समटुं वा संपधूवितं वा, तहप्पगारं वत्थं अपुरिसंतरकडं जाव णो पडिगाहेज्जा । अह पुणेवं जाणेज्जा पुरिसंतरकडं जाव पडिगाहेज्जा। ५५७. से भिक्खू वा २ से ज्जाइं पुण वत्थाई जाणेज्जा विरूवरूवाइं महद्धणमोल्लाई, तंजहा आईणगाणि वा सहिणाणि वा सहिणकल्लाणाणि वा आयाणि वा कायाणि वा खोमियाणि वा दुगुल्लाणि वा पट्टाणि वा मलयाणि वा पतुण्णाणि वा अंसुयाणि वा चीणंसुयाणि वा देसरागाणि वा अमिलाणि वा गज्जलाणि वा फालियाणि वा कोयवाणि वा कंबलगाणि वा पावाराणि वा, अण्णतराणि वा तहप्पगाराइं वत्थाई महद्धणमोल्लाई लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। ५५८. से भिक्खू वा २ से जं पुण आईणपाउरणाणि वत्थाणि जाणेज्जा, तंजहा उद्दाणि वा पेसाणि वा पेसलेसाणि वा किण्हमिगाईणगाणि वा णीलमिगाईणगाणि वा गोरमिगाईणगाणि वा कणगाणि वा कणगकंताणि वा कणगपट्टाणि वा कणगखइयाणि वा कणगफुसियाणि वा वग्घाणि वा विवग्याणि वा आभरणाणि वा आभरणविचित्ताणि वा अण्णतराणि वा तहप्पगाराइं आईणपाउरणाणि वत्थाणि लाभे संते णो पडिगाहेज्ना। ५५९. इच्चेयाई आययणाई उवातिकम्म अह भिक्खू जाणेज्जा चउहिं पडिमाहिं वत्थं एसित्तए। १ तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा से भिक्खू वा २ उद्दिसिय २ वत्थं जाएज्जा, तंजहा जंगियं वा भंगियं वा साणयं वा पोत्तगं वा खोमियं वा तूलकडं वा, तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देज्जा, फासुयं एसणिज्ज लाभे संते जाव पडिगाहेज्जा। २ अहावरा दोच्चा पडिमा से भिक्खू वा २ पेहाए २ वत्थं जाएज्जा, तंजहा गाहावती वा जाव कम्मकरी वा, से पुव्वामेव आलोएज्जा आउसो ति वा भइणी ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णतरं वत्थं ? तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देज्जा, फासूयं एसणिज्जं लाभे संते जाव पडिगाहेज्जा । दोच्चा पडिमा। ३ अहावरा तच्चा पडिमा से भिक्खू वा २ सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा, तंजहा अंतरिज्जगं वा उतरिज्जगंवा, तहप्पगारं वत्थं सयं वाणं जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा। तच्चा पडिमा । ४ अहावरा चउत्था पडिमा-से भिक्खू वा २ उज्झियधम्मियं वत्थं जाएज्जा जं चऽण्णे बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा णावकंखंति, तहप्पगारं उज्झियधम्मियं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देजा, फासुयं जाव पडिगाहेजा। चउत्था पडिमा। ५६०. इच्वेताणं चउण्हं पडिमाणं जहा पिडसणाए। ५६१. सिया णं एताए एसणाए एसमाणं परो वदेज्जा आउसंतो समणा !एज्जाहि तुमं मासेण वा दसरातेण वा पंचरातेण वा सुते वा सुततरे वा, तो ते वयं आउसो! अण्णतरं वत्थं दासामो । एतप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा निसम्मा से पुलवामेव आलोएज्जा आउसो ! ति वा, भगिणी ! ति वा, णो खलु मे कप्पति एतप्पगारे संगारे पडिसुणेत्तए, अभिकंखसि मे दाउं इदाणिमेव दलयाहि । ५६२. से णेवं वदंतं परो वदेज्जा आउसंतो समणा ! अणुगच्छाहि, तो ते वयं अण्णतरं वत्थं दासामो। से पुव्वामेव आलोएज्जा आउसो ! ति वा, भइणी ! ति वा, णो खलु मे कप्पति एयप्पगारे संगारवयणे पडिसुणेत्तए, अभिकंखसि मे दाउंइयाणिमेव दलयाहि । ५६३. से सेवं वदंतं परो णेत्ता वदेज्जा आउसो ! ति वा, भगिणी ! ति वा, आहरेतं वत्थं समणस्स दासामो, अवियाइं वयं पच्छा वि अप्पणो सयट्ठाए पाणाई भूताइं जीवाइं सत्ताई समारंभ समुद्दिस्स जाव चेतेस्सामो। एतप्पगारं निग्योसं सोच्चा निसम्मा तहप्पगारं वत्थं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा। ५६४. सिया णं परोणेत्ता वदेज्जा आउसो! ति वा, भइणी ! ति वा, आहर एयं वत्थं सिणाणेण वा जाव आघंसित्ता वा पघंसित्ता वा समणस्स णं दासामो। एतप्पगारं निग्धोसं सोच्चा निसम्मा से पुव्वामेव EvercosFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFF55 श्री आगमगुणमजूषा - ३८55555555FFFFFFFFF#FOOK SNOF听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听$$$$23 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) आयारो बी. सु. ५ अ. वत्थेसणा उद्देसक १-२ [३९] आलोएज्जा आउसो ! ति वा, भइणी ! ति वा, मा एतं तुमं वत्थं सिणाणेण वा जाव पघंसाहि वा, अभिकंखसि मे दातुं एमेव दलयाहि । से सेवं वदंतस्स परो सिणाणेण वा जाव घंसित्ता वा ? दलएज्जा । तहप्पगारं वत्थं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा । ५६५. से णं परो णेत्ता वदेज्जा आउसो! ति वा, भइणी ! ति वा, आहर एवं वत्थं सीओ विडे वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेता वा पधोवेता वा समणस्स णं दासामो। एयप्पगारं निग्घोसं, तहेव, नवरं मा एयं तुमं वत्थं सीओदगवियडेंण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेहि वा पधोवेहि वा । अभिकंखसि मे दातु सेसं तहेव जाव णो पडिगाहेज्जा । ५६६. से णं परो णेत्ता वदेज्जा आउसो ! ति, वा भइणी ! ति वा, आहरेतं वत्थं कंदाणि वा जाव हरियाणि वा विसोधेत्ता समणस्स णं दासामो। एतप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा निसम्मा जाव भइणी ! ति वा, मा एताणि तुमं कंदाणि वा जाव विसोहेहि, णो खलु में कप्पति एयप्पगारे वत्थे पडिगाहित्तए । ५६७. से सेवं वदंतस्स परो कंदाणि वा जाव विसोहेत्ता दलएज्जा । तहप्पगारं वत्थं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा । ५६८. सिया से परो णेत्ता वत्थं निसिरेज्जा, से पुव्वामेव आलोएज्जा आउसो! ति वा, भइणी! ति वा, तुमं चेव णं संतियं वत्थं अंतोअंतेण पडिलेहिस्सामि । केवली बूया आयाणमेयं । वत्थंते ओबद्धं सिया कुंडले वा गुणे वा हिरण्णे वा सुवण्णे वा मणी वा जाव रतणावली वा पाणे वा बीए वा हरिते वा । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं पुव्वामेव वत्थं अंतोअंतेण पहिलेहेज्जा । ५६९. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा सअंडं जाव संताणं तहप्पगारं वत्थं अफासुयं जाव णो पडिगाना । ५७०. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा अप्पंड जाव संताणगं अणलं अथिरं अधुवं अधारणिज्जं रोइज्जंतं ण रुच्चति, तहप्पगारं वत्थं फासु जाव णो पडिगाहेज्जा । ५७१. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण वत्थं जाणेज्ना अप्पंडं जाव संताणयं अलं थिरं धुवं धारणिज्जं रोइज्जतं रुच्चति, तहप्पगारं वत्थं फासु जाव पडिगाज्जा । ५७२. से भिक्खू वा २ ' णो णवए मे वत्थे' त्ति कट्टु णो बहुदेसिएण सिणाणेण वा जाव पघंसे वा । ५७३. से भिक्खू वा २ 'णो णवए में वत्थे' त्ति कट्टु णो बहुदेसिएण सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा जाव पधोएज्ज वा । ५७४. से भिक्खू वा २ ' दुब्भिगंधे मे वत्थे ' त्ति कट्टु जो बहुदेसिएण सिणा वा तव सीतोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा आलावओ । ५७५. से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्ना वत्थं आतावेत्तए वा पयावेत्तए वा, तिहप्पगारं वत्थं णो अणंतरहिताए पुढवीए णो ससणिद्धाए जाव संताणए आतावेज्ज वा पयावेज्ज वा । ५७६. से भिक्खू वा २ अभिकखेज्जा वत्थं आतावेत्तए वा पयवित्तए वा, तहप्पगारं वत्थं थूणंसि वा गिलुगंसि वा उसुयालंसि वा कामजलंसि वा अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाते दुब्बद्धे दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले णो आतावेज्ज वा पयावेज्ज वा । ५७७. से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा वत्थं आतावेत्तए वा पयावेत्तए वा, तहप्पगारं वत्थं कुलियंसि वा भित्तिसि वा सिलंसि वा लेलुंसि वा अण्णतरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाते जाव णो आतावेज्ज वा पयावेज्ज वा । ५७८. से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्ज वत्थं आतावेत्तए वा पयावेत्तए वा, तहप्पगारं वत्थं खंधंसि वा मंचंसि वा मालंसि वा पासायंसि वा हम्मियतलंसि वा अण्णतरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाते जाव णो आतावेज्ज वा पयावेज्ज वा । ५७९. से तमादाए एगतमवक्कमेज्जा, २ त्ता अहे झामथंडिल्लंसि वा जाव अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिल्लंसि पडिलेहिय २ पमज्जिय २ ततो संजयामेव वत्थं आतावेज वा पयावेज्ज वा । ५८०. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा २ सामग्गियं जं सव्वट्ठेहिं सहितेहिं सदा जज्जासि त्ति बेमि।★★★ ॥ वत्थेसणाए पढमो उद्देसओ समत्तो ॥ ★★★ बीओ उद्देसओ ५८१. से भिक्खू वा २ अहेसणिज्जाइं वत्थाई जाएज्जा, अहापरिग्गहियाइं वत्थाइं धारेज्जा, णो धोएज्जा, णो रएज्जा, णो धोतरत्ताइं वत्थाई धारेज्जा, अपलिउंचमाणे गामंतरेसु, ओमचेलिए । एतं खलु वत्थधारिस्स सामग्गियं । ५८२. से भिक्खू वा २ गाहावतिकुलं पिंडवायपडियाएं पविसिउकामे सव्वं चीवरमायाए गाहावतिकुलं पिंडवातपडियाए निक्खमेज्ज वा पविसेज्ज वा, एवं बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमिं वा गामाणुगामं वा दुइज्जेज्जा । अह पुणेवं जाणेज्जा तिव्वदेसियं वा वासं वासमाणं पेहाए, जहा पिंडेसणाए, णवरं सव्वं चीवरमायाए । ५८३. से एगतिओ मुहुत्तगं २ पाडिहारियं वत्थं जाएजा जाएगाहेण वा दु वा तियाहेण वा चउयाहेण वा पंचाहेण वा विप्पवसिय २ उवागच्छेज्जा, तहप्पगारं वत्थं णो अप्पणा गेण्हेज्जा, नो अन्नमन्नस्स देज्जा, नो पामिच्वं कुज्जा, णो वत्थेण वत्थं (त्थ ?) परिणामं करेज्जा, णो परं उवसंकमित्ता एवं वदेज्जा आउसंतो समणा ! अभिकंखसि वत्थं धारित्तए वा परिहरित्तए वा ? थिरं वा णं संतं णो पलिछिंदिय XOXO Education Interna nal 2010 03 A LEUCL5 श्री आगमगणमंजषा ३९ 550 9 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) आयारो बी. सु. ५ अ. वत्थेसणा उद्देसक १,२ / ६ अ. पाएसणा उद्देसक १ [४०] ॐॐॐॐॐॐ २ परिवेज्जा, तहप्पगारं वत्थं ससंधियं तस्स चेव निसिरेज्जा, नो णं सातिज्जेज्ना । से एगतिओ एयप्पगारं निग्घोसं सोच्चा निसम्मा 'जे भयंतारो तहप्पगाराणि वत्थाणि ससंधियाणि मुहुत्तगं २ जाव एगाहेण वा दुयाहेण वा तियाहेण वा चउयाहेण वा पंचाहेण वा विप्पवसिय २ उवागच्छंति, तहप्पगाराणि वत्याणिनो अप्पा गिण्हंति, नो अन्नमन्नस्स दलयंति, तं चेव जाव नो साइज्जति, बहुवयणेण भाणियव्वं, से हंता अहमवि मुहुत्तं पाडिहारियं वत्थं जाइत्ता जाव एगाहेण वा दुयाहेण वा तियाहेण वा चउयाहेण वा पंचाहेण वा विप्पवसिय २ उवागच्छिस्सामि, अवियाई एतं ममेव सिया, माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा । ५८४. से भिक्खू वा २ णो वणमंताइं वत्थाई विवण्णाई करेज्जा, विवण्णाई वण्णमंताई ण करेज्जा, अण्णं वा वत्थं लभिस्सामि त्ति कट्टु नो अण्णमण्णस्स देज्जा, नो पामिच्चं कुज्ना, नो वत्थे वत्थपरिणामं करेज्जा, नो परं उवसंकमित्तु एवं वदेज्जा आउसंतो समणा ! अभिकंखसि वत्थं धारित्तए वा परिहरित्तए वा ? थिरं वा णं संतं णो पलिछिदिय २ परिवेज्जा, जहा मेयं वत्थं पावगं परो मण्णइ, परं च णं अदत्तहारी पडिपहे पेहाए तस्स वत्थस्स णिदाणाय णो तेसिं भीओ उम्मगेणं गच्छेज्ना जाव अप्पुस्सुए जाव ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा । ५८५. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से विहं सिया, से ज्जं पुण विहं जाणेज्जा इमंसि खलु विहंसि बह आमोसगा वत्थपडियाए संपडिया SS गच्छेज्जा, णो तेसिं भीओ उम्मग्गेण गच्छेज्जा जाव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा । ५८६. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से आमोसगा संपडिया SS गच्छेज्ना, ते णं आमोसगा एवं वदेज्ना आउसंतो समणा ! आहरेतं वत्थं, देहि, णिक्खिवाहि, जहा रियाए, णाणत्तं वत्थपडियाए एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा २ सामग्गियं जं सव्वट्ठेहिं सहिएहिं सदा जज्जासि त्ति बेमि । ॥ वत्थेसणा समत्ता ॥ ॥ पंचममध्ययनं समाप्तं ६ छटुं अज्झयणं 'पाएसणा' पढमो उद्देसओ ५८८. से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्ना पायं एसित्तए, से ज्जं पुण पायं जाणेज्जा, तंजहा लाउयपायं वा दारुपायं वा मट्टियापायं वा, तहप्पगारं पायं जे णिग्गंथे तरुणे जाव थिरसंघयणे से एगं पायं धारेज्जा, णो बितियं । ५८९. से भिक्खू वा २ परं अद्धजोयणमेराए पापडिया णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ।। ५९०. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण पायं जाणेज्जा अस्सिंपडियाए एवं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई जहा पिंडेसणाए चत्तारि आलावगा। पंचमो बहवे समण-माहण पगणिय २ तहेव । ५९१. से भिक्खू वा २ अस्संजए भिक्खुपडियाए बहवे समण माहण वत्थे सणाऽऽलावओ । ५९२. से भिक्खू वा २ से ज्जाइं पुण पाया जाणेज्जा विरूवरूवाइं महद्धण मोल्लाई, तंजहा अयपायाणि वा तउपायाणि वा तंबपायाणि वा सीसगपायाणि वा हिरण्णपायाणि वा सुवण्णपायाणि वा रीरियपायाणि वा हारपुडपायाणि वा मणि- काय - कंसपायाणि वा संख-सिंगपादाणि वा दंतपादाणि वा चेलपादाणि वा सेलपादाणि वा चम्पायाणि वा, अण्णयराणि वा तहप्पगाराहं विरूवरूवाइं महद्धणमोल्लाई पायाइं अफासुयाइं जाव नो पडिगाहेज्जा । ५९३. से भिक्खू वा २ से पुण पाया जाना विरूवरूवाइं महद्भणबंधणाई, तंजहा अयबंधणाणि वा जाव चम्मबंधणाणि वा, अण्णयराइं वा तहप्पगाराई महद्धणबंधणाई अफासुयाई जाव णो पडिगाहेज्ना । ५९४. इच्चेताई आयतणाई उवातिकम्म अह भिक्खू जाणेज्जा चउहिं पडिमाहिं पायं एसित्तए । १ तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा से भिक्खू वा २ उद्दिसिय २ पायं जाएज्जा, तंजहा लाउयपायं वा दारुपायं वा मट्टियापायं वा, तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा । पढमा पडिमा । २ अहावरा दोच्चा पडिमा से भिक्खू वा २ पेहाए पायं जाएज्जा, तंजहा गाहावई वा जाव कम्मकरी वा, से पुव्वामेव आलोएज्जा, आउसो ! ति वा, भगिणी ! ति वा, दाहिसि मे पत्तो अणतपाय, तंजा लाउयपायं वा ३, तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा । दोच्चा पडिमा । ३ अहावरा तच्चा पडिमा से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण पाय जाणेज्जा संगतियं वा वेजयंतियं वा, तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाव पडिगाहेज्जा । तच्चा पडिमा । ४ अहावरा चउत्था पडिमा से भिक्खू वा २ उज्झियधम्मियं पादं जाना जं चणे बहवे समण-माहण जाव वणीमगा णावकंखंति, तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा । चउत्था पडिमा । ५९५. इच्चेताणं चउन्हं परिमाणं अण्णतरं पडिमं जहा पिंडेसणाए । ५९६. से णं एताए एसणाए एसमाणं पासित्ता परो वदेज्जा आउसंतो समणा ! एज्जासि तुमं मासेण वा जहा वत्सणाए । ५९७. से णं परो णेत्ता वदेज्जा आउसो भइणी ! आहरेयं पायं, तेल्लेण वा घएण वा णवणीएण वा वसाए वा अब्भंगेत्ता वा तहेव, सिणाणादि तहेव, श्री आगमगुणमंजूषा ४० 原 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TORAC%%%%%%%%%%% (१) आयारो - बी. सु. ६ अ. पाएसणा उद्देसक रू७31.0महVाडमाए R 60555555555555555555555555555555555555555555xoY सीतोदगादि कंदादि तहेव। ५९८. से णं परोणेत्ता वदेज्जा आउसंतो समणा ! मुहुत्तगं २ अच्छाहि जाव ताव अम्हे असणं वा ४ उवकरेमु वा उवक्खडेमुवा, तो तेवयं आउसो! सपाणं सभोयणं पडिग्गहगंदासामो, तुच्छएपडिग्गहए दिण्णे समणस्सणो सुट्ठणोसाहुभवति।सेपुव्वामेव अलोएज्जा आउसो! ति वा, भइणी ! ति वा, णो खलुई मे कप्पति आधाकम्मिए असणे वा ४ भोत्तए वा पायए वा, मा उवकरेहि, मा उवक्खडेहि, अभिकंखसि मे दाउं एमेव दलयाहि । से सेवं वंदतस्स परो असणं वा ४ उवकरेत्ता उवक्खडेता सपाणं सभोयणं पडिग्गहगं दलएज्जा, तहप्पगारं पडिग्गहगं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा । ५९९. सिया परोणेत्ता पडिग्गहगं णिसिरेज्जा, से पुव्वामेव आलोएज्जा आउसो ! ति वा, भइणी ! ति वा, तुमं चेव णं संतियं पडिग्गहगं अंतोअतेणं पडिलेहिस्सामि । केवली बूया आयाणमेयं, अंतो पडिग्गहगंसि पाणाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा, अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं पुव्वामेव पडिग्गहगं अंतोअंतेणं पडिलेहेज्जा । ६००. सअंडादी सव्वे आलावगा जहा वत्थेसणाए, णाणत्तं तेल्लेण वा घएण वा णवणीएण वा वसाए वा सिणाणादि जाव अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिल्लंसि पडिलेहिय २ पमज्जिय २ ततो संजयामेव आमज्जेज वा जाव पयावेज्ज वा । ६०१. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वटेहिं सहितेहिं सदा जएज्जासि त्ति बेमि IXAXI पात्रैषणायां प्रथम उद्देशक: समाप्त: ॥★★★ बीओ उद्दसओ ६०२. से भिक्खू वा २ गाहावइकुलं पिंडवातपडियाए पविसमाणे पुव्वामेव पेहाए पडिग्गहगं, अवहट्ट पाणे, पमज्जिय रयं, ततो संजयामेव गाहावतिकुलं पिंडवातपडियाए णिक्खमेज्ज वा पविसेज वा । केवली बूया आयाणमेयं । अंतो पडिग्गहगंसि पाणे वा बीए वा रए वा परियावज्जेज्जा, अह भिक्खूणं पुव्वोवट्ठिा ४ जं पुव्वामेव पेहाए पडिग्गह, अवहट्ट पाणे, पमज्जिय रयं, ततो संजयामेव गाहावतिकुलं पिंडवायपडियाए णिक्खमेज्ज वा पविसेज वा । ६०३. से भिक्खू वा २ गाहावति जाव समाणे सिया से परो आहट्ट अंतो पडिग्गहगंसि सीओदगं परिभाएत्ता णीहट्ट दलएज्जा, तहप्पगारं पडिग्गहगं परहत्थंसि वा परपायंसि वा अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा । से य आहच्च पडिग्गाहिए सिया, खिप्पामेव उदगंसि साहरेज्जा, सपडिग्गहमायाए वणं परिट्ठवेज्जा, ससणिद्धाए वणं भूमीए नियमेज्जा।६०४. से भिक्खू वा २ उदउल्लं वा ससणिद्धं वा पडिग्गहं णो आमज्जेज वा जाव पयावेज्ज वा । अह पुणेवं जाणेज्जा विगदोदए मे पडिग्गहए छिण्णसिणेहे, तहप्पगारं पडिग्गहं ततो संजयामेव आमज्जेज वा जाव पयावेज्ज वा। ६०५. से भिक्खू वा २ गाहावतिकुलं पविसित्तुकामे सपडिग्गहमायाए गाहावतिकुलं पिंडवायपडियाए पविसेज वा णिक्खमेज वा, एवं बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा गामाणुगाम वा दूइज्जेज्जा, तिव्वदेसियादि जहा बितियाए वत्थेसणाए, णवरं एत्थ पडिग्गहो । ६०६. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वढेहिं सहितेहिं सदा जएज्जासि त्ति बेमि । पाएसणा समत्ता ।षष्ठमध्ययनम् ॥७ सत्तमं अज्झयणं 'ओग्गहपडिमा' पढमो उद्देसओ ६०७. समणे भविस्सामि अणगारे अकिंचणे अपुते अपसू परदत्तभोई पावं कम्मं णो करिस्सामि त्ति समुट्ठाए सव्वं भंते ! अदिण्णादाणं पच्चक्खामि, से अणुपविसित्ता गाम वा जाव रायहाणिं वा णेव सयं अदिण्णं गेण्हेज्जा, णेवण्णेणं अदिण्णं गेण्हावेज्जा, णेवऽण्णं अदिण्णं गेण्हतं पि समणुजाणेज्जा, जेहिं वि सद्धिं संपव्वइए तेसिंऽपियाई छत्तयं वा डंडगं वा मतयं वा जाव चम्मच्छेयणगं वा तेसिं पुव्वामेव उग्गहं अणणुण्णविय अपडिलेहिय अपमज्जिय णोगिण्हेज्ज वा पगिण्हेज्ज वा, तेसिं पुव्वामेव उग्गहं अणुण्णविय पडिलेहिय पमज्जिय तओ संजयामेव ओगिण्हेज वा पगिण्हेज वा । ६०८.से आगंतारेसु वा ४ अणुवीइ उग्गहं जाएज्जा, जे तत्थ ईसरे जे तत्थ समाहिट्ठाए ते उग्गहं अणुण्णवेज्जा-कामं खलु आउसो ! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स उग्गहे, जाव साहम्मिया, एत्ताव ताव उग्गहं गिहिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो । ६०९. से किं पुण तत्थोग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? जे तत्थ साहम्मिया संभोझ्या समणुण्णा उवागच्छेज्ना जे तेण सयमेसित्तए असणेवा ४ तेण ते साहम्मिया संभोइया समणुण्णा उवणिमंतेज्जा, णो चेवणं परपडियाए ओगिज्झिय २ उवणिमंतेजा। ६१०. से आगंतारेसु वा जाव से किं पुण तत्थोग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? जे तत्थ साहम्मिया अण्णसंभोइया समणुण्णा उवागच्छेज्जा जे तेण सयमेसित्तए पीढ़े वा फलए वा सेज्जासंथारए वा तेण ते SIG0555555555555555555555555555555555555555555555Qsons Appreniworwari- TIRTELENCELELENESELECश्री आगमगणमजषा ४१555555555555555599999hhhhhhoron Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) आयारो बी. सु. ७ अ. ओग्गहपडिमा उद्देसक १-२ [ ४२ ] फ्र साहम्मिए अण्णसंभोइए समणुण्णे उवणिमंतेज्जा, णो चेव णं परपडियाए ओगिण्हिय २ उवणिमंतेज्जा । ६११. से आगंतारेसु वा जाव से किं पुण तत्थोग्गंहसि एवोग्गहियंसि ? जे तत्थ गाहावतीण वा गाहावतिपुत्ताण वा सूई वा पिप्पलए वा कण्णसोहणए वा णहच्छेदणए वा तं अप्पणो एगस्स अट्ठाए पडिहारियं जाइत्ता णो अणमण्णस्स देज्न वा अणुपदेज्ज वा, सयं करणिज्जं ति कट्टु से तमादाए तत्थ गच्छेज्ना, २ त्ता पुव्वामेव उत्ताणए हत्थे कट्टु भूमीए वा ठवेत्त इमं खलु इमं खलु ति आलोएज्जा, णो चेवणं सयं पाणिणा परपाणिसि पच्चप्पिणेज्जा । ६१२. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उग्गहं जाणेज्जा अणंतरहिताएं पुढवीए ससणिद्धाए पुढवीए जाव संताणए, तहप्पागारं उग्गहं णो ओगिण्हेज्न वा २ । ६१३. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उग्गहं जाणेज्जा थूणंसि वा ४ जाव तहप्पगारे अंतलिक्खजाते दुब्बद्धे जाव णो उग्गहं ओगिण्हेज्न वा २ । ६१४. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उग्गहं जाणेज्जा कुलियंसि वा ४ जाव नो उग्गहं ओगिण्हेज्ज वा २ । ६१५. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उग्गहं जाणेज्जा खंधंसि वा ६, अण्णतरे वा तहप्पगारे जाव णो उग्गहं ओगिण्हेज्ज वा २ । ६१६. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उग्गहं जाणेज्जा सागारियं सागणियं सउदयं सइत्थिं सखुड्डुं सपसुभत्तपाणं णो पण्णस्स णिक्खम-पवेस जाव धम्माणुओगचिंताए, सेवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए सागारिए जाव सखुड्डपसुभत्तपाणे नो उग्गहं ओगिण्हेज्न वा २ । ६१७. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उग्गहं जाणेज्जा गाहावतिकुलस्स मज्झंमज्झेणं गंतुं पंथे (वत्थए) पडिबद्धं वा, णो पण्णस्स जाव, से एवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए णो उग्गहं ओगिण्हेज्ज वा २ । ६१८. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उग्गहं जाणेज्जा इह खलु गाहावती वा जाव कम्मकरीओ वा अन्नमन्नं अक्कोसंति वा तहेव तेल्लादि सिणाणादि सीओदगवियडादि णिगिणा ठिता जहा सेज्जाए आलावगा, णवरं उग्गहवत्तव्वता । ६१९. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण उग्गहं जाणेज्जा आइण्णं सलेक्खं णो पण्णस्स णिक्खम-पवेसाउ(ए) जाव चिंताए, तहप्पगारे उवस्सए णो उग्गहं ओगिण्हेज्ज वा २ । ६२०. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वद्वेहिं समिते सहिते सदा जएज्जासि त्ति बेमि । ॥ उग्गहपडिमा पढमो उद्देसओ समत्तो ॥ ★★★ बीओ उद्देसओ ६२१. से आगंतारेसु वा ४ अणुवीई उग्गहं जाएज्जा । जे तत्थ ईसरे जे समाधिट्ठाए ते उग्गहं अणुण्णवित्ता (ज्जा) - कामं खलु आउसो ! अहालंद अहापरिणातं सामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स उग्गहे, जाव साहम्मिया, एताव उग्गहं ओगिहिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो । ६२२. से किं पुण तत्थ उग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? जे तत्थ समणाण वा माहणाण वा दंडए वा छत्तए वा जाव चम्मछेदणए वा तं णो अंतोहिंतो बाहिं णीणेज्जा, बहियाओ वा णो अंतो पवेसेज्जा, सुत्तं वाण डिबोहेज्जा, णो तेसिं किंचि वि अप्पत्तियं पडिणीयं करेज्जा । ६२३. से भिक्खू वा २ अभिकखेज्न अंबवणं उवागच्छित्तए । जे तत्थ ईसरे जे तत्थ समाहिट्ठाए ते उग्गहं अणुजाणावेज्जा- कामं खलु जाव विहरिस्सामो से किं पुण तत्थ उग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? अह भिक्खू इच्छेज्जा अंबं भोत्तए वा पायए वा । से ज्जं पुण अंब जाणेज्जा सअंडं जाव संताणगं तहप्पगारं अंब अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा । ६२४. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण अंब जाणेज्ना अप्पंडं जाव संताणगं अतिरिच्छछिण्णं अव्वोच्छिण्णं अफासुगं जाव णो पडिगाहेज्जा । ६२५ से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण अंब जाणेज्ना अप्पंडं जाव संताणगं तिरिच्छछिण्णं वोच्छिण्णं फासुगं जाव पडिगाहेज्जा । ६२६. से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा अंबभित्तगं वा अंबपेसियं वा अंबचोयगं वा अंबसालगं वा अंबदालगं वा भोत्तए वा पायएवा, सेज्जं पुण जाणेज्जा अंबभित्तगं वा जाव अंबदालगं वा सअंडं जाव संताणगं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा । ६२७. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण जाणेज्जा अंबभित्तगं वा जाव अंबदालगं वा अप्पंडं जाव संताणगं अतिरिच्छच्छिण्णं अव्वोच्छिण्णं अफासुयं जाव नो पडिगाहेज्जा । ६२८. से ज्जं पुण जाणेज्जा अंबभित्तगं वा जाव अंबदालगं वा अप्पंडं जाव संताणगं तिरिच्छच्छिण्णं वोच्छिण्णं फासूयं जाव पडिगाहेज्जा । ६२९. से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा उच्छुवणं उवागच्छित्तए । जे तत्थ ईसरे जाव उग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? अह भिक्खू इच्छेज्ना उच्छं भोत्तए वा पातए वा, से ज्जं उच्छ्रं जाणेज्जा सअंडं जाव णो पडिगाहेज्जा । अतिरिच्छच्छिण्णं तहेव । तिरिच्छच्छिण्णे वि तहेव । ६३०. से भिक्खू वा २ अभिकखेज्जा अंतरुच्छ्रयं वा उच्छृंगडियं वा उच्छुचोयगं वा उच्छुसालगं वा उच्छुडालगं वा भोत्तए वा पात वा । से ज्जं पुण जाणेज्जा अंतरुच्छ्रयं वा जाव डालगं वा सअंडं जाव णो पडिगाहेज्जा । ६३१. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण जाणेज्जा अतरुच्छ्रयं वा जाव डालगं COOK श्री आगमगुणमंजूषा ४२ HOROS Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOO (१) आयारो बी. सु. ७ अ. ओम्गहपडिमा उद्देसक २/ बीआ चूला ८ अ. ठाणसत्तिक्कयं [४३] वा अप्पंडं जाव नो पडिगाहेज्जा, अतिरिच्छच्छिण्णं तिरिच्छच्छिण्णं तहेव । ६३२. से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा ल्हसुणवणं उवागच्छित्तए, तहेव तिणि वि आलावगा, नवरं ल्हसुणं । से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा ल्हसुणं वा ल्हसुणकंदं वा ल्हसुणचोयगं वा ल्हसुणणालगं वा भोत्तए वा पायए वा । सेज्जं पुण जाणेज्जा लहसुणं वा जाव ल्हसुणबीजं वा सअंडं जाव णो पडिगाहेज्जा । एवं अतिरिच्छच्छिण्णे वि । तिरिच्छच्छिण्णे जाव पडिगाहेज्जा । ६३३. से भिक्खू वा २ आगंतारेसु वा ४ जावोग्गहियंसि जे तत्थ गाहावतीण वा गाहावतिपुत्ताण वा इच्चेयाइं आयतणाइं उवातिकम्म अह भिक्खू जाणेज्जा इमाहिं सत्तहिं पडिमाहिं उग्गहं ओगिण्हित्तए १ तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा से आगंतारेसु वा ४ अणुवीयि उग्गहं जाएज्जा जाव विहरिस्सामो। पढमा पडिमा । २ अहावरा दोच्चा पडिमा जस्सं णं भिक्खुस्स एवं भवति ‘अहं च खलु अण्णेसिं भिक्खूणं अट्ठाए उग्गहं ओगिहिस्सामि, अण्णेसिं भिक्खूणं उग्गहे उग्गहिते उवल्लिस्सामि' । दोच्चा पडिमा । ३ अहावरा तच्चा पडिमा जस्सं भिक्खुस्स एवं भवति 'अहं च खलु अण्णेसिं भिक्खूणं अट्ठाए उग्गहं ओगिहिस्सामि, अण्णेसिं च उग्गहे उग्गहिते णो उवल्लिस्सामि' । तच्चा पडिमा । ४ अहावरा चउत्था पडिमा जस्सं णं भिक्खुस्स एवं भवति 'अहं च खलु अण्णेसिं भिक्खूणं अट्ठाए उग्गहं णो ओगिहिस्सामि, अण्णेसिं च उग्गहे उम्गहिते उवल्लिस्सामि' । चउत्था पडिमा । ५ अहावरा पंचमा पडिमा जस्सं णं भिक्खुस्स एवं भवति - 'अहं च खलु अप्पणो अट्ठाए उग्गहं ओगिहिस्सामि, णो दोण्हं, णो तिण्हं, णो चउण्हं, णो पंचण्हं' । पंचमा पडिमा । ६ अहावरा छट्टा पडिमा से भिक्खू वा २ जस्सेव उग्गहे उवल्लिएज्जा, जे तत्थ अहासमण्णा तं जहा इक्कडे वा जाव पलाले वा, तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स अलाभे उक्कडुए वा सज्जिओ वा विहरेज्जा । छट्ठा पडिमा । ७ अहावरा सत्तमा पडिमा से भिक्खू वा २ अहासंथडमेव उग्गहं जाएज्जा, तंजहा पुढविसिलं वा कट्टसिलं वा अहासंथडमेव, तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुओ वा णेसज्जिओ वा विहरेज्जा । सत्तमा पडिमा । ६३४. इच्वेतासि सत्तण्हं पडिमाणं अण्णतरिं जहा पिंडेसणाए । ६३५. सुयं मे आउसंतेणं भगवया एवमक्खायं इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं पंचविहे उग्गहे पण्णत्ते, तंजहा देविंदोग्गहे १, राओग्गहे २, गाहावतिउग्गहे ३, सागारियउग्गहे ४, साधम्मियउग्गहे ५ । ६३६. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं । ॥ उग्गहपडिमा समत्ता ॥ ॥ सत्तमज्झयण ॥ ॥ समत्ता पढमचूला || 555 || बीआ चूला ॥ ८ अट्ठमं अज्झयणं 'ठाणसत्तिक्कयं' आए चलाए पढमं अज्झयणं 555 ६३७. से भिक्खू वा २ अभिकखेति ठाणं ठाइत्तए । से अणुपविसेज्जा गामं वा नगरं वा जाव संणिवेसं वा । से अणुपविसित्ता गामं वा जाव संणिवेसं वा से ज्जं पुण ठाणं जाणेज्ना सअंडं जाव मक्कडासंताणयं तं तहप्पगारं ठाणं अफासुयं अणेसणिज्जं लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । एवं सेज्जागमेण नेयव्वं जाव उदयपसूयाइं ति । ६३८. इच्चेताई आयतणाई उवातिकम्म अह भिक्खू इच्छेज्जा चउहिं पडिमाहिं ठाणं ठाइत्तए । १ तत्थिमा पढमा पडिमा अचित्तं खलु उवसज्जेज्जा, अवलंबेज्जा, कारण विप्परिकम्मादी, सवियारं ठाणं ठाइस्सामि । पढमा पडिमा । २ अहावरा दोच्चा पडिमा अचित्तं खलु उवसज्जेज्जा, अवलंबेज्जा, कारण विप्परिकम्मादी, णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि त्ति दोच्चा पडिमा । ३ अहावरा तच्चा पडिमा अचित्तं खलु उवसज्जेज्जा, अवलंबेज्जा, जो कारण विप्परिकम्मादी, णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि त्ति तच्चा पडिमा । ४ अहावरा चउत्था पडिमा अचित्तं खलु उवसज्जेज्जा, जो अवलंबेज्जा, णो कारण विप्परिकम्मादी, णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि, वोसट्टकाए वोसट्ठकेस-मंसु-लोम-णहे संणिरुद्धं वा ठाणं ठाइस्सामि त्ति चउत्था पडिमा । ६३९. इच्चेयासिं चउण्हं पडिमाणं जाव पग्गहियतरायं विहरेज्जा, णेव किंचि वि वदेज्जा । ६४०. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणिए वा जाव जएज्जासि त्ति बेमि । ★ ★ ★ ॥ ठाणसत्तिक्कयं समत्तं 1555 ९ नवमं अज्झयणं 'णिसीहिया' सत्तिक्कयं बीयाए चूलाए बीयं अज्झयण ६४१. से भिक्खू वा २ अभिकंखति णिसीहियं गमणाए । से ज्जं पुण णिसीहियं जाणेज्जा सअंडं सपाणं जाव मक्कडासंताणयं, तहप्पगारं णिसीहियं अफासुयं अणेसणिज्जं लाभे संते णो चेतिस्सामि । ६४२. से भिक्खू वा २ अभिकंखति णिसीहियं गमणाए, से ज्जं पुण निसीहियं जाणेज्जा अप्पपाणं अप्पबीयं जाव मक्कडासंताणयं तहप्पगारं णिसीहियं फासूयं एसणिज्जं लाभे संते चेतिस्सामि । एवं सेज्नागमेण णेतव्वं जाव उदयपसूयाणि त्ति । ६४३. जे तत्थ दुवग्गा वा तिवग्गा वा चउवग्गा वा पंचवग्गा वा अभिसंधारेति णिसीहियं गमणाए ते णो अण्णमण्णस्स MOTOR श्री आगमगुणमंजूषा - ४३ 原纸纸纸纸纸纸纸 Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) आयारो- बी. सु.९ अ. णिसीहिया/१० अ. उच्चार-पासवर्ण [४४] % %%%%%%%%RIOR MOR55555555555555555555555555555555555555555555555setoY कायं आलिगेज्ज वा, विलिंगेज्ज वा, चुंबेज्ज वा, दंतेहिं वा नहेहिं वा अच्छिदेज वा । ६४४. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वद्वेहिं सहिए समिए सदा जएज्जा, सेयमिणं मण्णेज्जासि त्ति बेमिका णिसीहिया'सत्तिक्कयं समत्तं द्वितीयं ।। १० दसमं अज्झयणं 'उच्चार-पासवण'सत्तिक्कओ बीयाए चूलाए तइयं अज्झयणं ६४५. से भिक्खू वा २ उच्चार-पासवणकिरियाए उब्बाहिज्जमाणे सयस्स पादपुंछणस्स असतीए ततो पच्छा साहम्मियं जाएज्जा । ६४६. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा सअंडं सपाणं जाव मक्कडासंताणयंसिरणयं), तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा। ६४७. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण थंडिलं जाणेजा अप्पपाणं अप्पबीयं जाव मक्कडासंताणयंसि(णयं) तहप्पगारंसि थंडिलंसि उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा। ६४८. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा अस्सिंपडियाए एणं साहम्मियं समुद्दिस्स, अस्सिंपडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस्स, अस्सिंपडियाए एगं साहम्मिणि समुद्दिस्स, अस्सिंपडियाए बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स, अस्सिंपडियाए बहवे समण-माहण- अतिहि-किवण- वणीमगे पगणिय २ समुहिस्स, पाणाइं ४ जाव उद्देसियं चेतेति, तहप्पगारं थंडिलं पुरिसंतरगडं वा अपुरिसंतरगडं वा जाव बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा। ६४९. से भिक्खू वा २ से जं पुण थंडिलं जाणेज्जा बहवे समण-माहण-किवण-वणीमग-अतिही समुद्दिस्स पाणाइं भूय-जीव-सत्ताई जाव उद्देसियं चेतेति, तहप्पगार थंडिलं अपुरिसंतरकडं जाव बहिया अणीहडं, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा । अह पुणेवं जाणे ज्जा पुरिसंतरकडं जाव बहिया णीहडं, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा। ६५०. से भिक्खू वा २ से जं पुण थंडिलं जाणेज्जा अस्सिंपडियाए कयं वा कारियं वा पामिच्चियं वा छन्नं वा घटुं वा मटुं वा लित्तं वा संमटुं वा संपधूवितं वा, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा । ६५१. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा इह खलु गाहावती वा गाहावतिपुत्ता वा कंदाणि वा मूलाणि या जाव हरियाणि वा अंतातो वा बाहिं णीहरंति, बाहीतो वा अंतो साहरंति, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा । ६५२. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा खंधंसि वा पीढंसि वा मंचंसि वा मालंसि वा अट्टसि वा पासादसि वा, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा।६५३. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण थंडिलं जाणे ज्जा अणंतरहिताए पुढवीए, ससणिद्धाए पुढवीए, ससरक्खाए पुढवीए, मट्टियाकडाए, चित्तमंताए सिलाए,चित्तमंताए लेलुए, कोलावासंसि वा, दारुयंसि वा जीवपतिद्वितंसि जाव मक्कडासंताणयंसि, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा।६५४. से भिक्खू वा २ से जं पुण थंडिलं जाणेज्जा इह खलु गाहावती वा गाहावतिपुत्ता वा कंदाणि वा जाव बीयाणि वा परिसाडेसुवा परिसाडेति वा परिसाडिस्संति वा, अण्णतरंसिक वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा । ६५५. से भिक्खू वा २ से जं पुण थंडिलं जाणेज्जा इह खलु गाहावती वा गाहावतीपुत्ता वा सालीणि वा वीहीणि वा मुग्गाणि वा मासाणि वा तिलाणि वा कुलत्थाणि वा जवाणि वा जवजवाणि वा पइर(रिं?)सुवा पइरंति वा पइरिस्संति वा, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा। ६५६. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा आमोयाणि वा घसाणि वा भिलुयाणि वा विज्जलाणि वा खाणुयाणि वा कडवाणि वा पगत्ताणि वा दरीणि वा पदुग्गाणि वा समाणि वा विसमाणि वा, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा । ६५७. से भिक्खू वा २ से जं पुण थंडिलं जाणेज्जा माणुसरंधणाणि वा महिसकरणाणि वा वसभकरणाणि वा अस्सकरणाणि वा कुक्कुडकरणाणि वा मक्कडकरणाणि वा लावयकरणाणि वा वट्टयकरणाणि वा तित्तिरकरणाणि वा कवोतकरणाणि वा कपिंजलकरणाणि वा अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा।६५८. से भिक्खूवा २ से ज्नं पुण थंडिलं जाणेज्जा वेहाणसट्ठाणेसुवा गद्धपट्ठट्ठाणेसुवा तरुपवडणट्ठाणेसुवा मे(म?)रुपवडणट्ठाणेसुवा विसभक्खणट्ठाणेसु वा अगणिफंडय(पक्खंदण?)ट्ठाणेसु वा, अण्णतरंसिवा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा । ६५९. से भिक्खू वा २ से जं पुण थंडिलं जाणेज्जा आरामाणि वा उज्जाणाणि वा वणाणि वा वणसंडाणि वा देवकुलाणि वा सभाणि वा पवाणि वा अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारMero55555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - ४४555555555555555555 EAGX95555555555555555555555555555555555555555555555555Ordis Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOR955555555555 (१) आयारो - बी. सु. १० अ. उच्चार-पासवर्ण / ११ अ. सहसत्तिकओ चूला - २ [४५] 559999999%ERSTORY HOSC$听听听听听听听听听听听听听听听乐乐听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐 पासवणं वोसिरेज्जा । ६६०. से भिक्खू वा २ से जं पुण थंडिलं जाणेज्जा अट्टालयाणि वा चरियाणि वा दाराणि वा गोपुराणि वा, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा । ६६१. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा-तिगाणि वा चउक्काणि वा चच्चराणि वा चउमुहाणि वा, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा । ६६२. से भिक्खू वा २ से जं पूण थंडिलं जाणेज्जा इंगालडाहेसु वा खारडाहेसु वा मडयडाहेसु वा मडयथूभियासु वा मडयचेतिएसु वा, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा। ६६३. से भिक्खू वा २ से जं पुण थंडिलं जाणेज्जा णदिआयतणेसु वा पंकायतणेसु वा ओधायतणेसु वा सेयणपहंसि वा, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा।६६४. से भिक्खू वा २ से जं पुण थंडिलं जाणेज्जा णवियासु वा मट्टियखाणियासु णवियासु वा गोप्पलेहियासु गवाणीसु वा खाणीसुवा, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि वा थंडिलंसिणो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा। ६६५. से भिक्खू वा २ से ज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा डागवच्वंसि वा सागवच्चंसि वा मूलगवच्चंसि वा हत्थुकरवच्चंसि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा। ६६६. से भिक्खू वा २ से ज्नं पुण थंडिलं जाणेज्जा असणवणंसि वा सणवणंसि वा धातइवणंसि वा केयइवणंसि वा अंबवणंसि वा असोगवणंसि वा णागवणंसि, वा पुन्नागवणंसि वा अण्णयरेसुवा तहप्पगारेसु पत्तोवएसु वा पुप्फोवएसु वा फलोवएसु वा बीओवएसु वा हरितोवएंसु वा णो उच्चार-प्रासवणं वोसिरेज्जा । ६६७. से भिक्खू वा २ सपाततं वा परपाततं वा गहाय से त्तमायाए एगंतमवक्कमे, अणावाहंसि अप्पपाणंसि जाव मक्कडासंताणयंसि अहारामंसि वा उवस्सयंति ततो संजयामेव उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा, उच्चार-पासवणं वोसिरित्ता सेत्तमायाए एगंतमवक्कमे, अणावाहसि जाव मक्कडासंताणयंसि अहारामंसि वा झामथंडिलंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि अचित्तंसि ततो संजयामेव उच्चार-पासवणं वोसिरेज्जा । ६६८. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियंजं सव्वटेहिं जाव जएज्जासि त्ति बेमि। । उच्चार-पासवणसत्तिक्कओ समत्तो तृतीयः॥ 5 एगारसमं अज्झयणं 'सद्दसत्तिक्कओ' बीयाए चूलाए चउत्थमज्झयणं ६६९. से भिक्खू वा २ मुइंगसहाणि वा नंदीसद्दाणि वा झल्लरीसद्दाणि वा अण्णतराणि वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं वितताइं सहाई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । ६७०. से भिक्खू वा २ अहावेगतियाई सद्दाइं सुणेति, तंजहा वीणासहाणि वा विवंचिसद्दाणि वा बब्बीसगसद्दाणि वा तुणयसदाणि वा पणवसद्दाणि वा तुंबवीणियसद्दाणि वा ढकुणसद्दाणि वा अण्णतराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाणि सद्दाणि तताई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्ना गमणाए। ६७१. से भिक्खू वा २ अहावेगतियाइं सद्दाइंसुणेति, तंजहा तालसहाणि वा कंसतालसहाणि वा लत्तियसहाणि वा गोहियसहाणि वा किरिकिरिसद्दाणि वा अण्णतराणि वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई तालसद्दाई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। ६७२. से भिक्खू वा २ अहोवेगतियाइं सद्दाई सुणेति, तंजहा संखसद्दाणि वा वेणुसद्दाणि वा वंससदाणि वा खरमुहिसद्दाणि वा पिरिपिरियसद्दाणि वा अण्णयराइं वा तहप्पगाराई विरूवरूवाइं सद्दाइं झुसिराइं कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। ६७३. से भिक्खू वा २ अहावेगइयाइं सद्दाइं सुणेति, तंजहा वप्पाणि वा फलिहाणि वा जाव सराणि वा सरपंतियाणि वा सरसरपंतियाणि वा अण्णतराई वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं सद्दाई कण्णसोयपडियाए णो अभिसधारेज्जा गमणाए। ६७४. से भिक्खू वा २ अहावेगतियाइं सद्दाइं सुणेइ, तंजहा कच्छाणि वा णूमाणि वा गहणाणि वा वणाणि वा वणदुग्गाणि वा पव्वयाणि वा पव्वयदुग्गाणि वा अण्णतराइं वा तहप्पगाराई विरूवरूवाइं० कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । ६७५. से भिक्खू वा २ अहावेगतियाइं सद्दाइं सुणेति, तंजहा गामाणि वा नगराणि वा निगमाणि वा रायधाणाणि वा आसम-पट्टण-सण्णिवेसाणि वा अण्णतराइं वा तहप्पगाराई० णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। ६७६. से भिक्खू वा २ अहावेगतियाइं सद्दाइंसुणेति, तंजहा आरामाणि वा उज्जाणाणि वा वणाणि वा वणसंडाणि वा देवकुलाणि वा सभाणि वा पवाणि वा अण्णतराइंवा तहप्पगाराई सद्दाइंणो अभिसंधारेज्जा गमणाए । ६७७. से भिक्खू वा २ अहावेगतियाई सद्दाइं सुणेति, तंजहा अट्टाणि वा अट्टालयाणि वा चरियाणि वा दाराणि वा गोपुराणि वा अण्णतराणि वा तहप्पगाराई सद्दाई णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। ६७८. से भिक्खू वा २ अहावेगतियाइं सद्दाइं सुणेति, तंजहा तियाणि वा चउक्काणि वा चच्चराणि वा चउमुहाणि वा Prer. c 5 55555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा - ४५55555555555555555555555FFFFOTO Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HOTOS5099 आयारा - बा. सु. ११ अ. सद्दसत्तिक्कओ उद्देसक ४/१२ अ. रूव [४६] 15555555555555OXOR अण्णतराइंवा तहप्पगाराई सद्दाईणो अभिसंधारेज्जा गमणाए। ६७९.से भिक्खूवा २ अहावेगतियाई सद्दाई सुणेति, तंजहा महिसकरणट्ठाणाणि वा वसभकरणट्ठाणाणि वा अस्सकरणट्ठाणाणि वा हत्थिकरणट्ठाणाणि वा जाव कविंजलकरणट्ठाणाणि वा अण्णतराई वा तहप्पगाराइं० नो अभिसंधारेज्जा गमणाए। ६८०. से भिक्खू वाई २अहावेगतियाइं सद्दाइं सुणेइ, तंजहा महिसजुद्धाणि वा वसभजुद्धाणि वा अस्सजुद्धाणि वा हत्थिजुद्धाणि वा जाव कविंजलजुद्धाणि वा अण्णतराई वा तहप्पगाराइं० नो अभिसंधारेज्जा गमणाए। ६८१. से भिक्खू वा २ अहावेगतियाई सद्दाइं सुणेति, तंजहा जूहियट्ठाणाणि वा हयजूहियट्ठाणाणि वा गयजूहियट्ठाणाणि वा अण्णतराईवा तहप्पगाराई० णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। ६८२. से भिक्खू वा २ जाव सुणेति, तंजहा अक्खाइयट्ठाणाणि वा माणुम्माणियट्ठाणाणि वा महयाहतनट्ट-गीत-वाइततंति-तलताल-तुडिय-पडुप्प-वाइयट्ठाणाणि वा अण्णतराइंवा तहप्पगाराइं सद्दाइंणो अभिसंधारेज्जा गमणाए। ६८३. से भिक्खूवा २ जाव सुणेति, तंजहा कलहाणि वा डिंबाणि वा डमराणि वा दोरज्जाणि वा वेरज्जाणि वा विरुद्धरज्जाणि वा अण्णतराई वा तहप्पगाराइं सद्दाई णो अभिसंधारेज्ज गमणाए। ६८४. से भिक्खू वा २ जाव सद्दाइं सुणेति, तंजहा खुड्डियं दारियं परिवुतं मंडितालंकितं निवुज्झमाणिं पेहाए, एगपुरिसं वा वहाए णीणिज्जमाणं पेहाए, अण्णतराई वा तहप्पगाराइं णो अभिसंधारेज गमणाए। ६८५. से भिक्खू वा २ अण्णतराई विरूवरूवाई महासवाइं एवं जाणेज्जा, तंजहा बहुसगडाणि वा बहुरहाणि वा बहुमिलक्खूणि वा बहुपच्चंताणि वा अण्णतराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई महासवाई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज गमणाए। ६८६. से भिक्खू वा २ अण्णतराई विरूवरूवाइंक महुस्सवाई एवं जाणेज्जा तंजहा इत्थीणि वा पुरिसाणि वा थेराणि वा डहराणि वा मज्झिमाणि वा आभरणविभूसियाणि वा गायंताणि वा वायंताणि वा णच्वंताणि वा, हसंताणि वा रमंताणि वा मोहंताणि वा विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं परिभुजंताणि वा परिभायंताणि वा विछड्डयमाणाणि वा विग्गोवयमाणाणि वा अण्णयराई है वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई महुस्सवाइं कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज गमणाए। ६८७. से भिक्खू वा २ णो इहलोइएहिं सद्देहिं णो परलोइएहिं सद्देहिं, णो सुतेहिं सद्देहिं नो असुतेहिं सद्देहिं णो दिढेहिं सद्देहिं नो अदितुहिं सद्देहिं, नो इटेहिं सद्देहिं, नो कंतेहिं सद्देहिं सज्जेज्जा, णो रज्जेज्जा, णो गिज्झेज्जा, णो मुज्झेज्जा, णो अज्झोववज्जेज्जा। ६८८. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जाव जएज्जासि त्ति बेमि ।। । सद्दसत्तिकओ चउत्थओ समत्तो॥ १२ बारसम अज्झयणं 'रूव' सत्तिक्कयं बीयाए चूलाए पंचमं अज्झयणं ६८९. से भिक्खू वा २ अहावेगइयाई रूवाइं पासति, तंजहा गंथिमाणि वा वेढिमाणि वा पूरिमाणि वा संघातिमाणि वा कट्ठकमाणि वा पोत्थकम्माणि वा चित्तकम्माणि वा मणिकम्माणि वा दंतकम्माणि वा पत्तच्छेज्जकम्माणि वा विविहाणि वा वेढिमाई अण्णतराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाइं चक्खुदंसणवडियाए णो अभिसंधारेज गमणाए। एवं नेयव्वं जहा सद्दपडिमा सव्वा वाइत्तवज्जा रूवपडिमा वि।**ll पंचमं सत्तिक्कयं समत्तं ॥★★★१३ तेरसमं अज्झयणं 'परकिरिया' सत्तिक्कओ बीयाए चलाए छट्ठमज्झयणं ६९०. परकिरियं अज्झत्थियं संसेइयं णोतं सातिए णोतं णियमे। ६९१. से से परोपादाइं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज वा, णोतं सातिएणोतं णियमे । ६९२. से से परोपादाइं संबाधेन वा पलिमद्देज्ज वा, णोतं सातिए णो तंणियमे । ६९३. से से परोपादाई फुमेज्ज वा रएज्ज वा, णोतं सातिएणोतं णियमे। ६९४. से से परोपादाई तेल्लेण वा घतेण वा वसाए वा मक्खेज वा भिलिंगेज्ज वा, णो तं सातिए णोतं णियमे । ६९५. से से परो पादाइं लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेन वा उल्लोढेज वा उव्वलेज वा, णो तं सातिए णो तं णियमे। ६९६. से से परो पादाई सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, णोतं सातिए णो तं णियमे। ६९७. से से परो पादाइं अण्णतरेण विलेवणजातेण आलिपज्ज वा विलिपेज्ज वा, णोतं सातिए णो तं नियमे । ६९८. से से परोपादाई अण्णतरेण धूवणजाएणं धूवेज्ज वा पधूवेज्ज वा, णोतं सातिए णो तं णियमे । ६९९. से से परो पादाओ खाणुयं वा कंटयं वा णीहरेज वा विसोहेज्ज वा, णो तं सातिए णो तं णियमे । ७००. से से परो पादाओ पूर्व वा सोणियं वा मणीहरेज वा विसोहेज्ज वा, णोतं सातिए णोतं णियमे । ७०१. से से परो कायं आमज्जेज वा पमज्जेज्ज वा, णो तं सातिए णो तं णियमे । ७०२. से से परो कायं संबाधेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, णो तं सातिए णो तं णियमे । ७०३. से से परो कायं तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा मक्खेज वा अभंगेज्जा बा, णो तं सातिए णोतं roros5555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - ४६555555555555555555555555OOK AC%听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听玩乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明$$ 195555555555555555555555555555555555555ft FOLIOR Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOR95555555555555(१)मायाराबास.२३ अपराकार/१४ 13(मनकारशाशनापजाIsxxxxxKRMENTS HAC%听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听国乐听听听听听听F6C नियमे । ७०४. से से परो कायं लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज वा उव्वलेन वा, णो तं सातिए णो तं नियमे । ७०५. से से परो कार्य सीतोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, णो तं सातिए णोतं णियमे। ७०६.से से परो कार्य अण्णतरेणं विलेवणजाएणं आलिपेज्ज वा विलिपज्ज वा, णो तं सातिए णो तं नियमे । ७०७. से से परो कार्य अण्णतरेण धूवणजाएण धूवेज्ज वा पधूवेज वा, णोतं सातिए णोतं नियमे। से से परो कार्य फुमेज्ज वा रएज्ज वा, णो तं सातिए णोतं णियमे ७०८. से से परो कार्यसि वणं आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, णोतं सातिए णोतं नियमे। ७०९. से से परो कार्यसि वणं संबाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, णोतं सातिए णो तं नियमे । ७१०. से से परो कार्यसि वणं तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा मक्खेज्ज वा भिलंगेज्ज वा, णोतं सातिए णोतं नियमे।७११.से से परो कायंसि वणं लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोढेज्ज वा उव्वलेज वा, णोतं सातिए णोतं णियमे। ७१२. से से परो कायंसि वणं सीतोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पधोवेज वा, णो तं सातिए णो तं नियमे । ७१३. से से परो कायंसि वणं अण्णतरेणं सत्थजाएणं अच्छिदेज वा विच्छिदेज वा, णोतं सातिए णो तं नियमे। ७१४. से से परो कायंसि वणं अण्णतरेणं सत्थजातेणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूर्य वा सोणियं वाणीहरेज वा विसोहेज वा, णोतं सातिए णोतं नियमे।७१५. से से परो कार्यसि गंडं वा अरइयं वा पुलयं वा भगंदलं वा आमज्जेज्ज वा पमज्जेज वा, णोतं सातिए णोतं नियमे । ७१६. से से परो कार्यसि गंडं वा अरइयं वा पुलयं वा भगंदलं वा संबाहेज्ज वा पलिमद्देज वा, णोतं सातिए णोतं नियमे।७१७. से से परो कार्यसि गंडं वा जाव भगंदलं वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा मक्खेज वा भिलिंगेज वा, णोतं सातिए णोतं नियमे । ७१८. से से परो कायंसि गंडं वा जाव भगंदलं वालोद्रेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोढेज्ज वा उव्वलेज वा, णोतं सातिए णोतं नियमे। ७१९. से से परो कायंसि गंडं वा जाव भगंदलं वा सीतोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पधोलेज वा, णोतं सातिए णोतं नियमे । ७२०. से से परो कार्यसि गंडं वा अरइयं वा जाव भगंदलं वा अण्णतरेणं सत्थजातेणं अच्छिदेज वा विच्छिदज वा, अन्नतरेणं सत्थजातेणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूर्व वा सोणियं वा णीहरेज वा विसोहेज्ज वा, णोतं सातिए णोतं नियमे । ७२१. से से परो कायातो सेयं वा जल्लं वाणीहरेज वा विसोहेज वा, णोतं सातिए णोतं नियमे । ७२२. से से परो अच्छिमलं वा कण्णमलं ॥ वा दंतमलं णहमलं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णोतं सातिए णोतं नियमे । ७२३. से से परो दीहाई वालाई दीहाइं रोमाइं दीहाइं भमुहाई दीहाइं कक्खरोमाई दीहाइं वत्थिरोमाई कप्पेज्ज वा, संठवेज वा, णोतं सातिए णोतं नियमे । ७२४. से से परोसीसातो लिक्खं वा जूयं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णो तं सातिए णो तं णियमे । ७२५. से से परो अंकंसि वा पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता पायाइं आमज्जेज वा पमज्जेज्ज वा, णो तं सातिए णो तं णियमे। एवं हेट्टिमो गमो पादादि भाणितव्वो। ७२६. से से परो अंकंसि वा पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता हारं वा अड्डहारं वा उरत्थं वा गेवेयं वा मउडं वा पालंबं वा सुवण्णसुत्तं वा आविधेज वा पिणिधेज वा, णोतं सातिए णो तं णियमे । ७२७. से से परो आरामंसि वा उज्जाणंसि वा णीहरित्ता वा विसोहित्ता वा पायाइं आमज्जेज वा पमज्जेज्ज वा, णो तं सातिए णोतं णियमे। एवं णेयव्वा अण्णमण्णकिरिया वि। ७२८. से से परो सुद्धणं वा वइबलेणं तेइच्छं आउट्टे, से से परो असुद्धणं वइबलेणं तेइच्छं आउट्टे, से से परो गिलाणस्स सचित्ताई कंदाणि वा मूलाणि वा तयाणि वा हरियाणि वा खणित्तु वा कड्हेत्तु वा कड्डावेत्तु वा तेइच्छं आउट्टेजा, णो तं सातिए णो तं नियमे । कडुवेयणा कट्ट वेयणा पाण-भूत-जीव-सत्ता वेदेणं वेदेति । ७२९. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वढे हिं सहिते समिते सदा जते, सेयमिणं मण्णेज्जासि त्ति बेमि ।। 5। छट्ठओ सत्तिकओ समत्तो || ** *१४ चउदसमं अज्झयणं 'अण्णमण्णकिरिया'सत्तिक्कओ बीयाए चूलाए सत्तम अज्झयणं ७३०. से भिक्खू वा २ अण्णमण्णकिरियं अज्झत्थियं संस(से?)इयं णो तं सातिए णोतं नियमे । ७३१. से अण्णमण्णे पाए आमज्जेज वा पमज्जेज्ज वा, णोतं सातिएणोतं नियमे, सेसं तं चेव । ७३२. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वदे॒हिं जाव जएज्जासि त्ति बेमिका सत्तमओ शसत्तिकओ समत्तो 1959 तइया चूला ।। १५ पण्णरसमं अज्झयणं 'भावणा' ७३३. तेणं कालेणं तेणं समएणं समण भगवं महावीरे पंचहत्थुत्तरे यावि ExerciF555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - ४७55555555555555555FFFFFFFFFFOOK NQ明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐 Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AGR9555555555 (१) आयारो - बी. स. /१५ अ. भावणा [४८]55555555555550xORK PAGR555555555555555555555555555555555555555555555555 होत्था हत्थुत्तराहिं चुते, चइत्ता गभं वक्तंते, हत्थुत्तराहिं गब्भातो गब्भं साहरिते, हत्थुत्तराहिं जाते, हत्थुत्तराहिं सव्वतो सव्वत्ताए मुंडे भवित्ता अगारातो अणगारियं पव्वइते, हत्थुत्तराहिं कसिणे पडिपुण्णे अव्वाघाते निरावरणे अणंते अणुत्तरे केवलवरणाण-दसणे समुप्पण्णे, सातिणा भगवं परिणिव्वुते । ७३४. समणे भगवं महावीरे इमाए ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए वीतिकंताए, सुसमाए समाए वीतिकंताए, सुसमदुसमाए समाए वीतिकंताए, दुसमसुसमाए समए बहुवीतिकंताए. पण्णत्तरीए वासेहिं मासेहिं य अद्धणवम सेसेहिं, जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खे आसाढ़सुद्धे तस्सणं आसाढसुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं हत्थुत्तराहिणक्खत्तेणं जोगोवगतेणं, महाविजयसिद्धत्थपुप्फुत्तरवरपुंडरीयदिसासोवत्थियवद्धमाणातो महाविमाणाओ वीसं सागरोवमाइं आउयं पालइत्ता आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं चुते, चइत्ता इह खलु जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे दाहिणड्डभरहे दाहिणकुंडपुरसंणिवेसंसि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स देवाणंदए माहणीए जालंधरायणसगोत्ताए सीहब्भवभूतेणं अप्पाणेणं कुच्छिसि गब्भं वक्कंते। समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोवगते यावि होत्था, चइस्सामि त्ति जाणति, चुए मित्ति जाणइ, चयमाणे ण जाणति, सुहुमे णं से काले पण्णत्ते। ७३५. ततो णं समणे भगवं महावीरे अणुकंपएणं देवेणं 'जीयमेयं' ति कट्ट जे से वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे आसोयबहुले तस्सणं आसोयबहुलस्स तेरसीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगोवगतेणं बासीतीहिं रातिदिएहिं वीतिकंतेहिं तेसीतिमस्स रातिदियस्स परियाए वट्टमाणे दाहिणमाहणकुंडपुरसंनिवेसातो उत्तरखत्तियकुंडपुरसंनिवेसंसि णाताणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगोत्तस्स तिसिलाए खत्तियाणीए वासिठ्ठसगोत्ताए असुभाणं पोग्गलाणं अवहारं करेत्ता सुभाणं पोग्गलाणं पक्खेवं करेत्ता कुच्छिसि गब्भं साहरति, जे वि य तिसिलाए खत्तियाणीए कुच्छिसि गब्भे तं पि य दाहिणमाहणकुंडपुरसंनिवेसंसि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स देवाणंदाए माहणीए जालंधरायणसगोत्ताए कुच्छिसि साहरति ! समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोवगते यावि होत्था, साहरिज्जिस्सामि त्ति जाणति, साहरिते मि त्ति जाणति, साहरिज्जमाणे वि जाणति समणाउसो ! ७३६. तेणं कालेणं तेणं समएणं तिसिला खत्तियाणी अह अण्णदा कदायी णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण राइंदियाणं वीतिकंताणं जे से गिम्हाणं पढ़मे मासे दोच्चे पक्खे चेत्तसुद्धे तस्स णं चेत्तसुद्धस्स तेरसीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं णक्खत्तेणं जोगोवगतेणं समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूता । ७३७. जं णं रातिं तिसिला 'खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूता तं णं राइं भवणवति-वाणमंतर-जोतिसिय-विमाणवासिदेवेहि य देवीहिं य ओवयंतेहिं य उप्पयंतेहिं य संपयंतेहिं य एगे महं दिव्वे देवुज्जोते देवसंणिवाते देवकहक्कहए उप्पिंजलगभूते यावि होत्था । ७३८. जंणं रयणिं तिसिला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोया ई अरोयं पसूता तं णं रयणिं बहवे देवा य देवीओ य एगं महं अमयवासं च गंधवासं च चुण्णवासं च पुप्फवासं च हिरण्णवासं च रयणवासं च वासिंसु । ७३९. जंणं रयणिं तिसिला खत्तियाणि समणं भगवं महावीरं अरोगा अरोगं पसूता तं णं रयणिं भवणवति-वाणमंतर-जोतिसिय-विमाणवासिणो देवा य देवीओ य समणस्स भगवतो महावीरस्स कोतुगभूइकम्माइं तित्थगराभिसेयं च करिसु।७४०. जतो णं पभिति भगवं महावीरे तिसिलाए खत्तियाणीए कुच्छिसि गब्भं आहूते ततोणं पभिति तं कुलं विपुलेणं हिरण्णेणं सुवण्णेणं धणेणं धण्णेणं माणिक्केणं मोत्तिएणं संख-सिल-प्पवालेणं अतीव अतीव परिवहति । ततो णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो एयमटुं जाणित्ता णिव्वत्तदसाहसि वोक्कंतंसि सुचिभूतंसि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेति । विपुलं असण-पाण-खाइमसाइमं उवक्खडावेत्ता मित्त-णाति-सयण-संबंधिवग्गं उवनिमंतेति । मित्त-णाति-सयण-संबंधिवग्गं उवनिमंतेत्ता बहवे समण-माहण-किवण-वणीमग-भिच्छुडग पंडरगाईण विच्छड्डेति, विग्गोवेति, विस्साणेति, दातारेसुणं दाणं पज्जाभाएंति । विच्छड्डित्ता, विग्गोवित्ता, विस्साणित्ता, दातारेसु णं दा णं पज्जाभाइत्ता, मित्तणाइ-सयण-संबंधिवग्गं भुंजावेति । मित्त-णाति-सयण-संबंधिवगं भुंजावित्ता, मित्त-णाति-सयण-संबंधिवग्गेण इमेयारूवं णामधेनं कारवेति-जतो णं पभितिं इमे कुमारे तिसिलाए खत्तियाणीए कुच्छिसि गब्भे आहूते ततो णं पभितिं इमं कुलं विपुलेणं हिरण्णेणं सुवण्णेणं धणेणं धण्णेणं माणिक्केणं मोत्तिएणं संख-सिल GS$$$$$$$乐听听听听听听听听听明听听听听听听听听听$听听听$$$$$$$$$$$$乐乐乐乐SO mero5555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - ४८55555555596oR Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ = (१) आयारो बी. सु. १५ अ. भावणा [४९ ] ******* प्पवालेणं अतीव अतीव परिवड्ढति, तो होउ णं कुमारे वद्धमाणे, तो होउ णं कुमारे वद्धमाणे । ७४१. ततो णं समणे भगवं महावीरे पंचधातिपरिवुडे, तंजहाखीरधातीए, मज्जणधातीए, मंडावणधातीए, खेल्लावणधातीए, अंकधातीए, अंकातो अंक साहरिज्नमाणे रम्मे मणिकोट्टिमतले गिरिकंदरसमल्लीणे व चंपयपायवे अहाणुपुवीए संवति । ७४२. ततो णं समणे भगवं महावीरे विण्णायपरिणय (ए?)विणियत्तबालभावे अप्पुस्सुयाइं उरालाई माणुस्सगाई पंचलक्खणाई कामभोगाई सह-फरिस - रस- रूव-गंधाई परियारेमाणे एवं चाए विहरति । ७४३. समणे भगवं महावीरे कासवगोत्तेणं, तस्स णं इमे तिन्नि नामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तंजहा अम्मापिउसंतिए वद्धमाणे, सहसम्मुइए समणे, भीमं भयभेरवं उरालं अचेलयं परीसहे सहति त्ति कट्टु देवेहिं से णामं कयं समणे भगवं महावीरे । ७४४. समणस्स णं भगवतो महावीरस्स पिता कासवगोत्तेणं । तस्स णं तिण्णि णामधेज्जा एवमाहिज्नंति, तंजहा सिद्धत्थे ति वा सेज्नसे ति वा जससे ति वा । समणस्स णं भगवतो महावीरस्स अम्मा वासिट्ठसगोत्ता। तीसे णं तिण्णि णामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तंजहा तिसिला इ वा विदेहदिण्णा इ वा पियकारिणी ति वा । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पित्तियए सुपासे कासवगोत्तेणं । समणस्स णं भगवतो महावीरस्स जेट्टे भाया णंदिवद्धणे कासवगोत्तेणं । समणस्स णं भगवतो महावीरस्स ट्ठा भी सुदंसणा कासवगोत्तेणं । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स भज्जा जसोया गोत्तेणं कोडिण्णा । समणस्स णं भगवतो महावीरस्स धूता कासवगोत्तेणं । तीसे दो नामज्जा एवमाहिज्नति तंजहा अणोज्जा ति वा पियदंसणा ति वा । समणस्स णं भगवतो महावीरस्स णत्तुई कोसियगोत्तेणं । तीसे णं दो णामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तंजहा सेसवती ति वा जसवती ति वा । ७४५. समणस्स णं भगवतो महावीरस्स अम्मापियरो पासावच्चिज्जा समणोवासगा यावि होत्था । ते णं बहूई वासाइं समणोवासगपरियागं पालयित्ता छण्हं जीवणिकायाणं सारक्खणणिमित्तं आलोइत्ता णिदित्ता गरहित्ता पडिक्कमित्ता अहारिहं उत्तरगुणं पायच्छित्ताइं पडिवज्जित्ता कुससंथारं दुरुहित्ता भत्तं पच्चक्खायंति, भत्तं पच्चक्खाइत्ता अपच्छिमाए मारणंतियाए सरीरसंलेहणाए झुसियसरीरा कालमासेणं कालं किच्चा तं सरीरं विप्पजहित्ता अच्चुते कप्पे देवत्ताए उववन्ना । ततो णं आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं चुते (ता) चइत्ता महाविदेहे वासे चरिमेणं उस्सासेणं सिज्झिस्संति, बुज्झिस्संति, मुच्चिस्संति, परिणिव्वाइस्संति, सव्वदुक्खाणं अंतं करिस्संति । ७४६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे णाते णातपुत्ते णायकुलविणिव्वत्ते विदेहे विदेहदिण्णे विदेहजच्चे विदेहसूमाले तीसं वासाइं विदेहे त्ति कट्टु अगारमज्झे वसित्ता अम्मापिऊहिं कालगतेहिं देवलोगमणुप्पत्तेहिं समत्तपइण्णे चेच्चा हिरण्णं, चेच्चा सुवण्णं, चेच्चा बलं, चेच्चा वाहणं, चेच्चा धण-कणग-रयण-संतसारसावतेज्जं, विच्छड्डित्ता विग्गोवित्ता, विस्साणित्ता, दातारेसु णं दायं पज्नाभाइत्ता, संवच्छरं दलइत्ता, जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे मग्गसिरबहुले, तस्स णं मग्गसिरबहुलस्स दसमीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं णक्खत्तेणं जोगोवगतेणं अभिनिक्खमणाभिप्पाए यावि होत्था । ७४७. संवच्छरेण होहिति अभिनिक्खमणं तु जिणवरिंदस्स । तो अत्यसंपदाणं पवत्तती पुव्वसूरातो ॥ १११ ॥ ७४८. एगा हिरण्कोडी अव अणूणया सयसहस्सा। सूरोदयमादीयं दिज्जइ जा पायरासो ति ॥ ११२ ॥ ७४९. तिण्णेव य कोडिसता अट्ठासीतिं च होति कोडीओ । असीतिं च सतसहस्सा एतं संवच्छरे दिण्णं ॥ ११३ ॥ ७५०. वेसमणकुंडलधरा देवा लोगंतिया महिड्डीया । बोहिति य तित्थकरं पण्णरससु कम्मभूमीसु ॥ १.१४ ॥ ७५१. बंभम्मि य कप्पम्मि बोद्धव्वा कण्हराइणो मज्झे । लोगंतिया विमाणा अट्ठसु वत्था असंखेज्जा ॥ ११५ ॥ ७५२. एते देवनिकाया भंगवं बोहिति जिणवरं वीरं । सव्वजगज्जीवहियं अरहं ! तित्थं पवत्तेहि ॥ ११६ ॥ ७५३. ततो णं समणस्स भगवतो महावीरस्स अभिनिक्खमणाभिप्पायं जाणित्ता भवणवति वाणमंतर - जोतिसियविमाणवासिणो देवाय देवीओ य सएहिं २ रूवेहिं सएहिं २ णेवत्थेहिं सएहिं २ चिंधेहिं सव्विड्डीए सव्वजुतीए सव्वबलसमुदएणं सयाई २ जाणविमाणाई दुरुहंति। सयाई २ जाणविमाणाइं दुरुहिता अहाबादराई पोग्गलाई परिसार्डेति । अहाबादराई पोग्गलाई परिसाडेत्ता अहासुहुमाई पोग्गलाई परियाईति । अहासुहुमाई पोग्गलाई परियाइत्ता उड्डुं उप्पयंति । उड्डुं उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए सिग्घाए चवलाए तुरियाए दिव्वाए देवगतीए अहेणं ओवतमाणा २ तिरिएणं असंखेज्नाई दीव समुद्दाई वीतिक्कममाणा २ जेणेव जंबुद्दीवे तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छिता जेणेव उत्तरखत्तियकुंडपुरसंनिवेसे तेणेव उवागच्छंति तेणेव उवागच्छित्ता जेणेव ॐ श्री आगमगुणमंजूषा ४९ LOKORY Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %%%%%%%%% $$$$$$$$$ $$$$$明明明明明明明明明明明明明垢玩垢玩垢$$5C KOR95555555555 (१) आयारो - बी. सु. १५ अ. भावणा [५०] 55555555558 है उत्तरखत्तियकुंडपुरसंणिवेसस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसाभागे तेणेव झ त्ति वेगेण ओवतिया। ७५४. ततो णं सक्के देविदे देवराया सणियं २ जाणविमाणं ठवेति । सणियं २ जाण विमाणं ठवेत्ता सणियं २ जाणविमाणातो पच्चोतरति, सणियं २ जाणविमाणाओ पच्चोत्तरित्ता एगंतमवक्कमति । एगंतमवक्कमित्ता महता वेउव्विएणं समुग्घातेणं समोहणति । महता वेउव्विएणं समुग्घातेणं समोहणित्ता एणं महं णाणामणि-कणग-रयणभत्तिचितं सुभं चारुकंतंरुवं देवच्छंदयं विउव्वति। तस्स णं देवच्छंदयस्स बहुमज्झदेसभागे एगं महं सपादपीठं सीहासणं णाणामणिकणग-रतणभत्तिचितं सुभं चारुकंतरूवं विउव्वति, २त्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, २त्ता समणं भगवं महावीरं तिखुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति । समणं भगवं महावीरं तिखुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेत्ता, समणं भगवं महावीरं वंदति, णमंसति । वंदित्ता णमंसित्ता समणं भगवं महावीरंगहाय, जेणेव देवच्छंदए तेणेव उवागच्छति । तेणेव उवागच्छित्ता सणियं २ पुरत्थाभिमुहं सीहासणे णिसीयावेति । सणियं २ पुरत्थाभिमुहं णिसीयावेत्ता, सयपाग-सहस्सपागेहिं तेल्लेहिं अब्भंगेति। सयपाग-सहस्सपागेहिं तेल्लेहिं अब्भंगेत्ता गंधकसाएहिं उल्लोलेति । सयपागसहस्सपागेहि तेल्लेहिं उल्लोलेत्ता सुद्धोदएणं मज्जावेति, २त्ता जस्स जंतपलं सयसहस्सेणं तिपडोलतित्तएणं साहिएण सरसीएण गोसीसरत्तचंदणेणं अणुलिपति, २ त्ता ईसिणिस्सासवातवोज्झं वरणगर-पट्टणुग्गतं कुसलणरपसंसितं अस्सलालपेलयं छेयायरियकणगखचितंतकम्मं हंसलक्खणं पट्टजुयलं णियंसावेति, २त्ता हारं अद्धहारं उरत्थं एगावलिं पालंबसुत्त-पट्ट-मउड-रयणमालाई आविंधावेति । आविधावेत्ता गंथिम-वेढिम-पूरिम-संघातिमेणं मल्लेणं कप्परुक्खमिव समालंकेति। समालंकेत्ता दोच्चं प्रि महता वेउव्वियसमुग्घातेणं समोहणति, २ त्ता एणं महं चंदप्पभं सिबियं सहस्सवाहिणियं विउव्वति, तंजहा ईहामिय-उसभ-तुरग-णरमकर-विहग-वाणर-कुंजर-रुरु-सरभ-चमर-सद्दू-सीह-वणलयचित्त(तं) विज्जाहरमिहुणजुगलजंतजोगजुत्तं अच्चीसहस्समालणीयं सुणिरूवितमिसमिसेंतरूवमसहस्सकलितं भिसमाणं भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेस्सं मुत्ताहडमुत्तजालंतरोयितं तवणीयपवरलंबूसपलंबंतमुत्तदामं + हारहारभूसणसमोणतं अधियपेच्छणिजं पउमलयभत्तिचित्तं असोगलयभत्तिचित्तं कुंदलयभत्तिचितं णाणालयभत्तिविरइयं सुभं चारुकं तरूवं णाणामणिपंचवण्णघण्टापडायपरिमंडितग्गसिहरं सुभं चारुकंतरूवं पासादीयं दरिसणीयं सुरूवं । ७५५, सीया उवणीया जिणवरस्स जर-मरणविप्पमुक्कस्स । ओसत्तमल्लदामा जल-थलयंदिव्वकुसुमेहिं ।।११७|| ७५६. सिबियाए मज्झयारे दिव्वं वररयणरूवचेचइयं । सीहासणं महरिहं सपादपीठं जिणवरस्स ॥११८॥ ७५७. आलइयमालमउडो भासरबोंदी वराभरणधारी । खोमयवत्थणियत्थो जस्स य मोल्लं सयसहस्सं ॥११९ ।। ७५८. छटेणं भत्तेणं अज्झवसाणेण सुंदरेण जिणो। लेस्साहि विसुझंतो आरुहई उत्तमं सीयं ॥१२०|| ७५९. सीहासणे णिविट्ठो सक्कीसाणा य दोहिं पासेहिं । वीयंति चामराहिं मणि-रयणविचित्तदंडाहिं ॥१२१|| ७६०. पुव् िउक्खित्ता माणुसेहिं साहट्ठरोमकूवेहि। पच्छा वहति देवा सुर-असुर गरुल-णागिंदा ॥१२२॥ ७६१. पुरतो सुरा वहंती असुरा पुण दाहिणम्मि पासम्मि । अवरे वहंति गरुला णागा पुण उत्तरे पासे ॥१२३।। ७६२. वणसंडं व कुसुमियं पउमसरो वा जहा सरयकाले । सोभति कुसुमभरेणं इय गगणतलं सुरगणेहिं ॥१२४।। ७६३. सिद्धत्थवणं व जहा कणियारवणं व चंपगवणं वा ।। सोभति कुसुमभरेणं इय गगणतलं सुरगणेहिं ।।१२५|| ७६४. वरपडह-भेरिझल्लरि-संखसतसहस्सिएहिं तूरेहिं । गगणयले धरणितले तूरणिणाओ परमरम्मो॥१२६।। ७६५. तत-विततं घण-झुसिरं आतोज्जं चउविहं बहुविहीयं । वाएंति तत्थ देवा बहूहिं आणट्टगसएहिं ॥१२७।। ७६६. तेणं कालेणं तेणं समएणं जे से हेमंताणं मासे पढमे पढमे पक्खे मग्गसिरबहुले, तस्स णं मग्गसिरबहूलस्स दसमीपक्खेणं, सुव्वतेणं दिवसेणं, विजएणं मुहुत्तेणं, हत्थुत्तरनक्खत्तेणं जोगोवगतेणं पाईणगामिणीए छायाए, वियत्ताए पोरुसीए, छटेणं भत्तेणं अपाणएणं, एगं साडगमायाए चंदप्पभाए सिबियाए सहस्सवाहिणीयाए सदेव-मणुया-ऽसुराए परिसाए समण्णिज्जमाणे २ उत्तरखत्तियकुंडपुरसंणिवेसस्स मज्झमज्झेणं निग्गच्छति, म २त्ता जेणेव णातसंडे उज्जाणे तेणेव उवागच्छति, २ ता ईसिं रतणिप्पमाणं अच्छोप्पेणं भूमिभागेणं सणियं २ चंदप्पभं सिबियं सहस्सवाहिणिं ठवेति, सणियं २ शू जाव ठवेत्ता सणियं २ चंदप्पभातो सिबियातो सहस्सवाहिणीओ पच्चोतरति, २त्ता सणियं २ पुरत्थाभिमुहे सीहासणे णिसीदति, २त्ता आभरणालंकारं ओमुयति। ROC555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - ५० F FFFFFFFF#####FOOK 乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听听听听听听听听听C Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) आयारो बी. सु. १५ अ. भावणा ] फ्र ततो णं वेसमणे देवे जन्नुवायपडिते समणस्स भगवतो महावीरस्स हंसलक्खणेणं पडेणं आभरणालंकारं पडिच्छति । ततो णं समणं (णे) भगवं महावीरे दाहिणेण दाहिणं वामेण वामं पंचमुट्ठियं लोयं करेति । ततो णं सक्के देविदे देवराया समणस्स भगवतो महावीरस्स जन्नुवायपडिते वइरामएणं थालेणं केसाई पडिच्छति, २ त्ता ‘अणुजाणेसि भंते!' त्ति कट्टु खीरोदं सागरं साहरति । ततो णं समणे भगवं महावीरे दाहिणेण दाहिणं वामेण वामं पंचमुट्ठियं लोयं करेत्ता सिद्धाणं णमोक्कारं करेति, २ त्ता सव्वं मे अकरणिज्जं पावं कम्मं ति कट्टु सामाइयं चरित्तं पडिवज्जइ, सामाइयं चरित्तं पडिवज्जित्ता देवपरिसं च मणुयपरिसं च आलेक्खचित्तभूतमिव ठवेति । ७६७. दिव्वो मणुस्सघोसो तुरियणिणाओ य सक्कवयणेणं । खिप्पामेव णिलुक्को जाहे पडिवज्जति चरित्तं ॥ १२८ ॥ ७६८. पडिवज्जितु चरितं अहोणिसं सव्वपाणभूतहितं । साहट्ठलोमपुलया पयता देवा णिसामेति ॥ १२९ ॥ ७६९. ततो णं समणस्स भगवतो महावीरस्स सामाइयं खाओवसमियं चरित्तं पडिवन्नस्स मणपज्जवणाणे णामं णाणे समुप्पण्णे । अड्डाइज्जेहिं दीवेहिं दोहिं य समुद्देहिं सण्णीणं पंचेदियाणं पज्जत्ताणं वियत्तमणसाणं मणोगयाई भावाइं जाणइ । जाणित्ता ततो णं समणे भगवं महावीरे पव्वइते समाणे मित्त-णाती सयण-संबंधिवग्गं पडिविसज्जेति । पडिविसज्जित्ता इमं एतारूवं अभिग्राहं अभिगिण्हति - बारस वासाई वोसट्टकाए चत्तदेहे जे केति उवसग्गा समुपज्नति, तंजहा दिव्वा वा माणुसा वा तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे समाणे सम्मं सहिस्सामि, खमिस्सामि, अधियासइस्सामि । ७७०. ततो णं समणे भगवं महावीरे इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिन्हित्ता वोसट्टकाए चत्तदेहे दिवसे मुहुत्तसेसे कम्मारगामं समणुपत्ते । ततो णं समणे भगवं महावीरे वोसट्ठ काए चत्तदेहे अणुत्तरेणं आलएणं अणुत्तरेणं विहारेणं, एवं संजमेणं पग्गहेणं संवरेणं तवेणं बंभचेरवासेणं खंतीए मुत्तीए तुट्ठीए समितीए गुत्तीए ठाणेणं कम्मेणं सुचरितफलणेव्वाणमुत्तिमम्गेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । ७७१. एवं चाते विहरमाणस्स जे केइ उवसग्गा समुप्पज्जंति दिव्वा वा माणुस्सा वा तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे समाणे अणाइले अव्वहिते अद्दीणमाणसे तिविहमण वयण कायगुत्ते सम्मं सहति खमति तितिक्खति अहियासेति । ७७२. ततो णं समणस्स भगवओ महावीरस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्स बारस वासा वीतिक्कंता, तेरसमस्स य वासस्स परियाए वट्टमाणस्स जे से गिम्हाणं दोसे मासे चउत्थे पक्खे वेसाहसुद्धे तस्स णं वेसाहसुद्धस्स दसमीपक्खेणं सुव्वतेणं दिवसेणं विजएणं मुहुत्तेणं हत्युत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगोवगतेणं पाईणगामिणी छायाए वियत्ताए पोरुसीए जंभियगामस्स णगरस्स बहिया नदीए उज्जुवालियाए उत्तरे कूले सामागस्स गाहावतिस्स कठ्ठकरणंसि वियावत्तस्स चेतियस्स . उत्तरपुरत्थिमे दिसाभागे सालरुक्खस्स अदूरसामंते उक्कुडुयस्स गोदोहियाए आयावणाए आतावेमाणस्स छट्ठेणं भत्तेणं अपाणएणं उद्धुं जाणुं अहो सिरस धम्मज्झाणोवगतस्स झाणकोट्ठोवगतस्स सुक्कज्झाणंतरियाए वट्टमाणस्स णेव्वाणे कसिणे पडिपुण्णे अव्वाहते णिरावरणे अणंते अणुत्तरे केवलवरणाण - दंसणे समुप्पण्णे । ७७३. से भगवं अरहा जिणे जाणए केवली सव्वण्णू सव्वभावदरिसी सदेव मणुया - ऽसुरस्स लोगस्स पज्जाए जाणती, तंजहा आगती गती ठती च उववायं भुत्तं पीयं कडं पडिसेवितं आविकम्मं रहोकम्मं लवियं कथितं मणोमाणसियं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावानं जाणमाणे पासमाणे एवं चाते विहरति । ७७४. जंणं दिवसं समणस्स भगवतो महावीरस्स णेव्वाणे कसिणे जाव समुप्पन्ने तं णं दिवसं भवणवइ - वाणमंतर जोतिसिय-विमाणवासिदेवेहिं य देवीहिं य ओवयंतेहिं य जाव उप्पिंजलगभूते यावि होत्था । ७७५. ततो णं समणे भगवं महावीरे उप्पन्नणाणदंसणधरे अप्पाणं च लोगं च अभिसमिक्ख पुव्वं देवा धम्ममाइक्खती, ततो पच्छा माणुसाणं । ७७६. ततो णं समणे भगवं महावीरे उप्पन्नणाणदंसणधरे गोतमादीणं समणाणं णिग्गंथाणं पंच महव्वयाई सभावणाई छज्जीवणिकायाई आइक्खति भासति परूवेति, तंजहा पुढवीकाए जाव तसकाए । ७७७. पढमं भंते ! महव्वयं 'पच्चक्खामि सव्वं पाणातिवातं । से सुहुमं वा बायरं वा तसं वा थावरं वा णेव सयं पाणातिवातं करेज्जा ३ जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणसा वयसा कायसा । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि' । ७७८. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति १ तत्थिमा पढमा भावणा- रियासमिते से णिग्गंथे, णो अणरियासमिते त्ति । केवली बूया - इरिया असमिते से णिग्गंथे पाणाई भुयाई जीवाई सत्ताइं अभिहणेज्ज वा वत्तेज्ज वा परियावेज्ज वा लेसेज्ज वा, उद्दवेज्ज वा । इरियासमिते से णिग्गंथे, जो इरियाअसमिते त्ति पढमा ॐॐॐॐॐ श्री आगमगुणमंजूषा ५१ HOKYOR [५१] Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ COLO乐乐场 ( आयारो - बी. सु. १५ अ. भावणाश भावणा। २ अहवरा दोच्चा भावणा-मणं परिजाणति से णिग्गंथे, जे य मणे पावए सावज्जे सकिरिए अण्हयकरे छेदकरे भेदकरे अधिकरणिए पादोसिए पारिताविए पाणातिवाइए भूतोवघातिए तहप्पगारं मणं णो पधारेज्जा । मणं परिजाणति से णिग्गंथे, जे य मणे अपावए त्ति दोच्चा भावणा । ३ अहावरा तच्चा भावणा वइं परिजाणति से णिग्गंथे, जा य वई पाविया सावज्जा सकिरिया भूतोवघातिया तहप्पगारं वई णो उच्चारेज्जा । जे वइं परिजाणति से णिगंथे जा य वति अपाविय त्ति तच्चा भावणा। ४ अहावरा चउत्था भावणा आयाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिते से णिग्गंथे, णो अणादाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिते । के वली बूया आदाणभंडनिक्खेवणाअसमिते से णिग्गंथे पाणाइं भूताइं जीवाइं सत्ताई अभिहणेज्ज वा जाव उद्दवेज्ज वा । तम्हा आयाणभंडणिक्खेवणासमिते से णिग्गंथे, णो अणादाणभंडणिक्खेवणासमिते त्ति चउत्था भावणा। ५ अहावरा पंचमा भावणा आलोइयपाण-भोयणभोई से णिग्गंथे, णो अणालोइयपाण-भोयणभोई । केवली बूया अणालोइयपाण-भोयणभोई से णिग्गंथे पाणाणि वा भूताणि वा जीवाणि वा सत्ताणि वा अभिहणेज्ज वा जाव उद्दवेज वा। तम्हा आलोइयपाण-भोयणभोई से णिग्गंथे, णो अणालोइयपाण-भोयणभोइ त्ति पंचमा भावणा । ७७९. एत्ताव ताव महव्वयं(ए) सम्म काएण फासिते पालिते तीरिए किट्टिते अवट्ठिते आणाए आराहिते यावि भवति । पढमे भंते ! महव्वए पाणाइवातातो वेरमणं । ७८०. अहावरं दोच्वं भंते ! महव्वयं पच्चक्खामि सव्वं मुसावायं वइदोसं । से कोहा वा लोभा वा भया वा हासा वा णेव सयं मुसं भासेज्जा, णेवऽण्णेणं मुसं भासावेज्जा, अण्णं पि मुसं भासंतं ण समणुजाणेज्जा तिविहं तिविहेणं मणसा वयसा कायसा। तस्स # भंते ! पडिक्कमामि जाव वोसिरामि । ७८१. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति १ तत्थिमा पढमा भावणा अणुवीयि भासी से णिग्गंथे, णो अणणुवीयि भासी। केवली बूया अणणुवीयि भासी से णिग्गंथे समावज्जेज मोसं वयणाए । अणुवीयि भासी से निग्गंथे, णो अणणुवीयि भासि त्ति पढमा भावणा। २ अहावरा दोच्चा भावणा-कोधं परिजाणति से निग्गंथे, णो कोधणे सिया। केवली बूया कोधपत्ते कोही समावदेज्जा मोसं वयणाए। कोधं परिजाणति से निग्गंथे, णो य कोहणाए सि य ति दोच्चा भावणा। ३ अहावरा तच्चा भावणा-लोभं परिजाणति से णिग्गंथे, णो य लोभणाए सिया। केवली बूया लोभपत्ते लोभी समावदेजा मोसं वयणाए। लोभ परिजाणति से णिग्गंथे, णो य लोभणाए सि य ति तच्चा भावणा। ४ अहावरा चउत्था भावणा -भयं परिजाणति से निग्गंथे, णो य भयभीरुए सिया। केवली बूया भयपत्ते भीरू समावदेज्जा मोसं वयणाए । भयं परिजाणति से निग्गंथे, णो य भयभीरुए सिया, चउत्था भावणा। ५ अहावरा पंचमा भावणा-हासं परिजाणति से निग्गंथे णो य हासणाए सिया। केवली बूया-हासपत्ते हासी समावदेज्जा मोसं वयणाए। हासं परिजाणति से णिग्गंथे, णो य हासणाए सिय त्ति पंचमा भावणा। 5७८२. एताव ताव दोच्चे महव्वए सम्म कारणं फासिते जाव आणाए आराहिते यावि भवति । दोच्चं भंते ! महव्वयं मुसावायातो वेरमणं | ७८३. अहावरं तच्चं भंते! ई महव्वयं 'पच्चाइक्खामि सव्वं अदिण्णादाणं । से गामे वा नगरे वा अरण्णे वा अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वाणेव सयं अदिण्णं गेण्हेज्जा, णेवण्णं अदिण्णं गेण्हावेज्जा, अण्णं पि अदिण्णं गेण्हतं ण समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए जाव वोसिरामि'। ७८४. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति १ तत्थिमा पढमा भावणा अणुवीयि मितोग्गहजाई से निग्गंथे, णो अणणुवीयि मितोग्गहजाई से णिग्गंथे। केवली बूया अणणुवीयि मितोग्गहजाई से णिग्गंथे अदिण्णं गेण्हेज्जा। अणुवीयि मितोग्गहजाई से निग्गंथे, णो अणणुवीयि मितोग्गहजाइ ति पढमा भावणा। २ अहावरा दोच्चा भावणा अणुण्णविय पाण-भोयणभोई से णिग्गंथे, णो अणणुण्णविय पाण-भोयणभोई । केवली बूया-अणणुण्णविय पाण-भोयणभोई से णिग्गंथे अदिण्णं भुजेजा। तम्हा अणुण्णविय पाण-भोयणभोई से णिग्गंथे, णो अणणुण्णविय पाण-भोयणभोइ त्ति दोच्चा भावणा। ३ अहावरा तच्चा भावणा णिग्गंथे णं उग्गहंसि उग्गहियंसि एत्ताव ताव उग्गहणसीलए सिया । केवली बूयानिग्गंथे णं उग्गहसि उग्गहियंसि एत्ताव ताव अणोग्गहणसीलो अदिण्णं ओगिण्हेज्जा, निग्गंथे णं उग्गहंसि उग्गहियंसि एत्ताव ताव उग्गहणसीलए सिय त्ति तच्चा भावणा। ४ अहावरा चउत्था भावणा-निग्गंथे णं उग्गहंसि उग्गहितंसि अभिक्खणं २ उग्गहणसीलए सिया । केवली बूया णिग्गंथे णं उग्गहंसि उग्गहितंसि TCSC级听听听听乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐GO 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听C恩 MOOf # 55555555 श्री आगमगुणमंजूषा-५२ 555 5 5FOR Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOR955555555555 (१) आयारो • बी. स. १५ अ. भावणा [१३] 历历5555555552KCE 步步步步%%%%%%%%%%%%%CC $$$$乐乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐乐乐听听乐乐乐56, अभिक्खणं २ अणोग्गहणसीले अदिण्णं गिण्हेज्जा, निग्गंथे उग्गहंसि उग्गहितंसि अभिक्खणं २ उग्गहणसीलए सिय त्ति चउत्था भावणा । ५ अहावरा पंचमा भावणा अणुवीयि मितोग्णहजाई से निग्गंथे साहम्मिएसु, णो अणणुवीयि मितोग्गहजाई। केवली बूया अणणुवीइ मितोग्गहजाई से निग्गंथे साहम्मिएसु अदिण्णं ओगिण्हेजा। फ से अणुवीयि मितोग्गहजाई से निग्गंथे साहम्मिएसु, णो अणणुवीयि मितोग्गहजाइ त्ति पंचमा भावणा । ७८५. एताव ताव तच्चे महव्वते सम्मं जाव आणाए आराहिए यावि भवति । तच्चं भंते ! महव्वयं अदिण्णादाणातो वेरमणं । ७८६. अहावरं चउत्थं भंते ! महव्वयं ‘पच्चक्खामि सव्वं मेहुणं । से दिव्वं वा माणुसंवा तिरिक्खजोणियं वाणेव सयं मेहुणं गच्छे ज्जा , तं चेव, अदिण्णादाणवत्तव्वया भाणितव्वा जाव वोसिरामि' । ७८७. तस्सिमाओपंच भावणाओ भवंति १ तत्थिमा पढमा भावणा णो णिग्गंथे अभिक्खणं २ इत्थीणं कहं कहइत्तए सिया। केवली बूया निग्गंथे णं अभिक्खणं २ इत्थीणं कहं कहेमाणे संतिभेदा संतिविभंगा संतिकेवलिपण्णत्तातो धम्मातो भंसेज्जा। णो निग्गंथे अभिक्खणं २ इत्थीणं कहं कहेइ त्तए सिय त्ति पढमा भावणा। २ अहावरा दोच्चा भावणा णो णिग्गंथे इत्थीणं मणोहराई २ इंदियाइं आलोइत्तए णिज्झाइत्तए सिया। केवली बूया निग्गंथे णं इत्थीणं मणोहराई २ इंदियाई आलोएमाणे णिज्झाएमाणे संतिभेदा संतिविभंगा जाव धम्मातो भंसेज्जा, णो णिग्गंथे इत्थीणं मणोहराई २ इंदियाई आलोइत्तए णिज्झाइत्तए सिय त्ति दोच्चा भावणा। ३ अहावरा तच्चा भावणा णो णिग्गंथे इत्थीणं पुव्वरयाई पुव्वकीलियाई सुमरित्तए सिया । केवली बूया-निग्गंथे णं इत्थीणं पुव्वरयाई पुव्वकीलियाई सरमाणे संतिभेदा जाव विभंगा जाव भंसेज्जा । णो णिग्गंथे इत्थीणं पुव्वरयाइं पुव्वकीलियाई सरित्तए सिय त्ति तच्चा भावणा। ४ अहावरा चउत्था भावणा णातिमत्तपाण-भोयणभोई से निग्गंथे, णो पणीयरसभोयणभोई। केवली बूया अतिमत्तपाण-भोयणभोई से निग्गंथे पणीयरसभोयणभोइ त्ति संतिभेदा जाव भंसेज्जा । णातिमत्तपाण-भोयणभोई से निग्गंथे, णो पणीतरसभोयणभोइ त्ति चउत्था भावणा। ५ अहावरा पंचमा भावणा-णो णिग्गंथे इत्थी-पसु-पंडगसंसत्ताइ सयणा-ऽऽसणाइं सेवित्तए सिया । केवली बूया-निग्गंथे णं इत्थी पसुपंडग-संसत्ताइं सयणा-ऽऽसणाइं सेवेमाणे संतिभेदा जाव भंसेज्जा। णो णिग्गंथे इत्थी-पसु-पंडगसंसत्ताई सयणा-ऽऽसणाई सेवित्तए सिय त्ति पंचमा भावणा। ७८८. एत्ताव ताव महव्वए सम्म कारण जाव आराधिते यावि भवति । चउत्थं भंते ! महव्वयं मेहुणातो वेरमणं । ७८९. अहावरं पंचमं भंते ! महव्वयं 'सव्वं परिग्गहं पच्चाइक्खामि । से अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा णेव सयं परिग्गहं गेण्हेज्जा, णेवऽण्णेणं परिग्गहं गेण्हावेज्जा, अण्णं वि परिग्गहं गेण्हतं ण समणुजाणेज्जा जाव वोसिरामि' । ७९०. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति १ तत्थिमा पढमा भावणा सोततोणं जीवे मणुण्णामणुण्णाइं सद्दाइं सुणेति, मणुण्णामणुणेहिं सद्देहिं णो सज्जेज्जा णो रज्जेज्जा णो गिज्झेज्जा णो मुज्झेज्ना णो अज्झोववज्जेज्जा णो विणिघायमावज्जेज्जा। केवली बूया निग्गंथेणंमणुण्णामणुण्णेहिं सद्देहिं सज्जमाणे रज्जमाणे जाव विणिघायमावज्जमाणे संतिभेदा संतिविभंगा संतिकेवलिपण्णत्तातो धम्मातो भंसेजा। ण सक्का ण सोउंसद्दा सोत्तविसयमागया। राग-दोसा उजे तत्थ ते भिक्खू परिवज्जए॥१३०|| सोततो जीवो मणुण्णामणुण्णाइं सद्दाई सुणेति, पढमा भावणा । २ अहावरा दोच्चा भावणा चक्खूतो जीवो मणुण्णामणुण्णाई ख्वाइं पासिति, मणुण्णामणुण्णेहिंरूवेहिं णोसज्जेज्जाणोरज्जेज्जाजावणोविणिघातमावज्जेजा। केवली बूया निग्गंथेणंमणुण्णामणुण्णेहिवेहिं सज्जमाणेरज्जमाणेजावसंघाविणिघा)यमावज्जमाणे संतिभेदासंतिविभंगा जावभंसेज्ना।ण सक्का रूवमदटुंचक्खूविसयमागतं। राग-दोसा उजेतत्थ ते भिक्खूपरिवज्जए॥१३१|| चक्खूतोजीवोमणुण्णामणुण्णाइंरूवाइंपासिति म त्तिदोच्चा भावणा। ३ अहावरा तच्चा भावणा घाणतो जीवो मणुण्णामणुण्णाइंगंधाइं अग्घायति, मणुण्णामणुण्णेहिं गंधेहिंणो सज्जेज्जा णो रज्जेज्जा जाव विणिघायमावज्जेज्जा। ए केवली बूया-मणुण्णामणुण्णेहिं गंधेहिं सज्जमाणे रज्जमाणे गाव विणिघायमावज्जमाणे संतिभेदा संतिविभंगा जाव भंसेज्जा । ण सक्का ण गंधमग्घाउंणासाविसयमागयं । राग दोसाउजेतत्थ ते भिक्खूपरिवज्जए॥१३२॥घाणतोजीवोमणुण्णामणुण्णाइंगंधाइंअग्घायति त्तितच्चाभावणा। ४ अहावराचउत्था भावणा-जिब्भातोजीवोमणुण्णामणुण्णाई रसाइंअस्सादेति, मणुण्णामणुण्णेहिरसेहिंणोसज्जेज्नाणोरज्जेज्जाजावणोविणिग्घातमावज्जेज्जा। केवली बूया निग्गंथेणंमणुणामणुण्णेहिरसेहिंसज्जमाणेजावविणिग्यायमावज्जमाणे 4 4555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा-१३॥555555555555555555555556NOR Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FORO555555555555 (1) आयारा - बा. सु. 15 अ. भावणा / 16 विमुत्ति चूला -4 [54] OR9555555555555555555555555555555555555555555555secog संतिभेदा जाव भंसेज्जा / ण सक्का रसमणासातुं जीहाविसयमागतं / राग-दोसा उजे तत्थ ते भिक्खू परिवज्जए॥१३३|| जीहातो जीवो मणुण्णामणुण्णाई रसाइं अस्सादेति त्ति चउत्था भावणा। 5 अहावरा पंचमा भावणा फासातो जीवो मणुण्णामणुण्णाई फासाइं पडिसंवेदेति, मणुण्णामणुण्णेहिं फासेहिंणो सज्जेज्जा, णो रज्जेज्जा, णो गिज्झेज्जा, णो मुज्झेज्जा, णो अज्झोववज्जेज्जा, णो विणिघातमावज्जेज्जा / केवली ब्रूया निग्गथे णं मणुण्णामणुण्णेहिं फासेहिं सज्जमाणे जाव विणिघातमावज्जमाणे संतिभेदा संतिविभंगा संतिकेवपण्णत्तातो धम्मातो भंसेज्जा / ण सक्का ण संवेदेतुं फासं विसयमागतं / राग-दोसा उजे तत्थ ते भिक्खू परिवज्जए॥१३४|| फासातो जीवो मणुण्णामणुण्णाइं फासाइं पडिसंवेदेति त्ति पंचमा भावणा / 791. एत्ताव ताव महव्वते सम्मं काएण फासिते पालिते तीरिते किट्टिते अवढिते आणाए आराधिते यावि भवति / पंचमं भंते ! महव्वयं परिग्गहातो वेरमणं / 792. इच्चेतेहिं महव्वतेहिं पणवीसाहि य भावणाहिं संपन्ने अणगारे अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं सम्मं कारण फसित्ता पालित्ता तीरित्ता किट्टित्ता आणाए आराहितायाविभवति।॥भावणा समत्ता॥ पञ्चदशमध्ययनंसमाप्तम्। चउत्थाचूला।।१६ सोलसमंअज्झयणं विमुत्ती 793. अणिच्चमावासमुवेति जंतुणो, पलोयए सोच्वमिदं अणुत्तरं / / विओसिरे विष्णु अगारबंधणं, अभीरु आरंभपरिम्गहं चए // 135 // 794. तहागयं भिक्खुमणंतसंजतं, अणेलिसं विष्णु चरंतमेसणं / तुदंति वायाहिं अभिद्दवंणरा, सरेहिंसंगामगयं कुंजरं॥१३६।। 795. तहप्पगारेहिंजणेहिंहीलिते, ससद्दफासा फरुसा उदीरिया। तितिक्खएणाणि अदुट्ठचेतसा, गिरि व्व वातेण ण संपवेवए॥१३७।। 796. उवेहमाणे कुसलेहिं संवसे, अकंतदुक्खा तस-थावरा दुही। अलूसए सव्वसहे महामुणी, तहा हि से सुस्समणे समाहिते॥१३८।। 797. विदूणते धम्मपयं अणुत्तरं, विणीततण्हस्स मुणिस्सझायतो। समाहियस्सऽग्गिसिहावतेयसा, तवोय पण्णाय जसोय वडती॥१३९॥ 798. दिसोदिसिंऽणंतजिणेण ताइणा, महव्वता खेमपदा पवेदिता। महागुरू निस्सयरा उदीरिता, तमं व तेऊ तिदिसं पगासगा // 140 // 799. सितेहिं भिक्खू असिते परिव्वए, असज्जमित्थीसुचएज्ज पूयणं / अणिस्सिए लोगमिणं तहा परं, ण मिज्जति कामगुणेहिं पंडिते॥१४१।। 800. तहा विमुक्कस परिण्णचारिणो, धितीमतो दुक्खखमस्स भिक्खुणो। विसुज्झती जंसि मलं पुरेकडं, समीरियं रुप्पमलं व जोतिणा / / 142 / / 801. से हु परिण्णासमयम्मि वट्टती, णिराससे उवरय मेहुणे चरे / भुजंगमे जुण्णतयं जहा चए, विमुच्चती से दुहसेज्ज माहणे // 143 / / 802. जमाहु ओहं सलिलं अपारगं, महासमुई व भुयाहिंदुत्तरं / अहेवणं परिजाणाहिं पंडिए, सेहु मुणी अंतकडे त्ति वुच्चती॥१४४॥ 803. जहा य बद्धं इह माणेवेहिं या, जहा य तेसिं तु विमोक्ख आहिते। अहा तहा बंधविमोक्ख जे विदु, से हु मुणी अंतकडे त्ति वुच्चई // 145 / / 804. इमम्मि लोए परएं य दोसु वी, ण विज्जती बंधणं जस्स किंचि वि / से हू णिरालंबणमप्पतिद्वितो, कलंकलीभावपवंच विमुच्चति ॥१४६॥त्ति बेमि।। विमुत्ती सम्मत्ता का समाप्तश्चाचार: प्रथमामङ्गसूत्रमिति // ॥अङ्कतोऽपि ग्रन्थागू 2644 // WOO明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐劣劣劣明垢货货与劣乐乐乐听听听听听网 MOf卐5555555555555) श्री आगमगुणमंजूषा-५४155555555555555$$$$$$$OORI