Book Title: Yoga Shastram Author(s): Subodhsuri, Ruchaksuri Publisher: Dharmbhaktipremsubodh Granthamala Prakashan Samiti View full book textPage 8
________________ योग शास्त्रम् आ. भक्ति म.जीवन ॥४॥ SARORDARNIRRORSCORRESPEE सूचन होय छे. तपथी प्रभावित थनारा दिवसोमां जन्मनार आ महापुरुष वर्धमान तप आदि तपना अणमोल प्रभाव करनारां स्थानो ठेठेर उभा करी स्वयं तपोमूर्ति बन्या हता. गृहस्थीपणामां तेमनु नाम 'मोहनलाल' पाडवामां आव्यु. खरे तेमणे गृहस्थीपणामां समग्र तपक्रिया द्वारा समी गामने तेमणे मोहित कयु हतु. त्यारपछी पवित्र संयमीजीवन अने भद्रिकपणाथी जैन शासनने पण प्रभावित कयु हतु. मोहनलाले ते कालनी व्यवहारिक केळवणी लीधी परतु सेमनी रुचि धार्मिक अभ्यासमां वधु इती. तेमणे प्रतिक्रमण स्मरण अने प्रकरणना अभ्यास कर्यो. व्यवहारिक अभ्यास पछी व्यापारवणजमां चित्त परोववा करतां तेमणे प्रतिक्रमण पौषध अने तपमा चित्त पराव्यु. छट्ट अट्ठाई विगेरे विविध तपो करी तेमणे तेमना आत्माने निर्मल बनाव्यो-भावित बनाव्यो. पवित्र थयेला मोहनलालने धार्मिकतानो रंग लाग्यो. समी शंखेश्वर राधनपुर वच्चेनु विहारक्षेत्र साथेज खुबज धार्मिकवृत्तिवाळु गाम. अटले अवर नवर पधारता विद्वान् संयमो मुनिभगवंतानो पण, तेमणे परिचय करवा मांडयो. कर्म विवरे मार्ग मोकळो कर्यो, वैराग्यनी झलक मोहनलालना हृदयमा स्फुरी अने तेना निमित्तरुप प. पू. आचार्यश्री विजय धर्मसरोश्वरजी महाराज (ते वखते प. पू. मुनिश्री धर्मविजयजी) समी पधार्या. तेमना -984-%CRO ॥४॥ B IOfeePage Navigation
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