Book Title: Yoga Shastram
Author(s): Subodhsuri, Ruchaksuri
Publisher: Dharmbhaktipremsubodh Granthamala Prakashan Samiti

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Page 9
________________ योग शास्त्रम् . भक्ति म. जीवन MORPOROPSIRROC ॥५॥ -RRORPOROREPORRORETROPPED उपदेशे मोहनलालने संयममार्गे विचारवा दृढ निश्चयी बानाव्या. मनोमंथन अने मातापितानो समजावट बाद संमति मेलवी वि. सं. १९५७ महावदि १० ना रोज समीमां सकळसंघना खूबज आशीर्वाद पूर्वक परम उल्लास साथे तेमणे भागवती प्रव्रज्या स्वीकारी अहिं प. पू. धर्मविजयजी महाराजे तेमन मुनि भक्तिविजयजी नाम पाडयुं अने बडी दीक्षा तेमनी उंझामां करवामां आवी. वि. सं. १९५७ नुं प्रथम चातुर्मास तेमणे वीरमगाममां कयु. अहिं दशकालिक तथा सारस्वत व्याकरणनो अभ्यास शरु कर्यों. वि. सं. १९५८नु चातुर्मास मांडलमां कयु, आ बे वर्ष दरमियान मुनि भक्तिविजयजीए ठीक ठीक शास्त्र अभ्यास कर्यो. मांडरना चातुर्मास दरमियान आपणा चारित्रनायकना गुरुदेव पू. धर्मविजयजी महाराजे जैनधर्मना प्रकाण्ड विद्वानो तैयार करवानु अक विद्यार्थी वर्तुळ उभु कयु. आ विद्यार्थी वर्तुळने विद्याना धाम काशीमां तैवार करवानु लक्ष्य राखी तेमणे आपणा नूतनमुनि पं. कमलविजयजी महाराजने सौंपी तेमणे काशी तरफ विहार कों. अने वि. सं. १९५९ना वैशाख सुदि ३ ना रोज काशीमां श्री यशोविजयजी जैन पाठशाळानी स्थापना करी. ___ चार वर्ष ना टुका गाळामां तैयार करेला विद्यार्थी वर्तुळमां पू. मुनिश्री भक्तिविजयजी म.ना संसारीभाइ सौभाग्यचंद. श्री बेचरदास, श्री मफतलाल, श्री गुणचंद, अने श्री नरसींदासने वि. सं. १९६३ना चैत्र वदी O CCASCORPEX ॥५॥

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