Book Title: Yoga Shastram
Author(s): Subodhsuri, Ruchaksuri
Publisher: Dharmbhaktipremsubodh Granthamala Prakashan Samiti

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Page 12
________________ P २-२-00-40- योग शास्त्रम् आ. भक्ति म. जीवन 1॥८॥ 11OIRBRBREARRAR-80% पू. आगमोद्धारक आ. सागरानंदसूरीश्वरजीए आगमवाचना शरु करेल. पू. पंन्यासजीए आ वाचनामां ओपनियुक्ति, पिंडनियुक्ति, भगवतीसूत्र अने पन्नवणाजी विगेरे सूत्रोनी यांचना लीधी. वि. सं. १९७६नुं चातुर्मास पालीताणा कोटावाळी धर्मशाळामां कयु. अर्हि आगमोद्धारक आचार्यदेव सागरानंदसूरीश्वरजीना गाढ परिचयमां आव्या. अने तेमना हृदयमां जैनशासनमां वर्तता वर्तमान पदस्थोमां तेमनु स्थान खुब लागणीभयुं हतुं. वि. सं. १९७७-१९७८ १९७९-१९८०-१९८१-१९८२-१९८३-१९८४ ना चातुर्मास अनुक्रमे मांगरोळ, वढवाण, समी, विरमगाम, भावनगर, पाटडी, वढवाण केम्प, राधनपुरना चातुर्मास करी वि० सं० १९८५ नुं चातुर्मास शाहपुर अमदावादमां कर्यु. अहि पं. भक्तिविजयजी गणीवरने पू, आगमोद्धारक आचार्यदेव साथे वधु गाढ परिचय थयो. वि. सं. १९८६नु चातुर्मास माणसा कयु:: अने अहि वर्धमान तपनी संस्थानी स्थापना करी चोमासा वाद पू. पन्यासजी महाराज बोरु पधार्या. अहिंथी पानसरनो संघ नीकळ्यो. त्यां तीर्थमाळा पहेरावी अमदावादथी साहित्य प्रदर्शनमां पधारवानी आग्रहभरी विनाति यवाथी अमदावाद पधार्या. साहित्य प्रदर्शननी पूर्णाहूति बाद खेडा थइ खंभात आव्या. खंभातमां श्री महेसाणानो संघ आव्यो अने चातुर्मास माटे आग्रहभरी चिनति करी आथी तेओश्री महेसाणा पधार्या. __ महाराजश्रीनुं व्याख्यान हमेशा वैराग्यमय रहेत. आ व्याख्यानथी मूळ मारवाडना वतनी परंतु ते वखते महेसाणामां रहेता श्री पन्नालाल अने शेषमल बन्नेना हृदयमां वैराग्यांकुर सविशेष पल्लवित ORDPRESSIRBAREILLEGEEG ॥८॥

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