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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
चालुक्यवंशीय परिके सरिन् तृतीय के दान-पत्र में सोमदेव को स्याद्वादोपनिषद् का भी कर्ता कहा गया है ।५ अब तक इन ग्रन्थों का कोई पता नहीं चला। कहा नहीं जा सकता कि ये महान् ग्रन्थ-त्न काल के कराल गाल में समा गये या किसी सुनसान एवं उपेक्षित शास्त्र-भण्डार में पड़े किसी सहृदय अन्वेषक की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
सोमदेव सूरि और कन्नौज के गुर्जर प्रतिहार
नीतिवाक्यामृत की प्रशस्ति में एक और भी महत्त्वपूर्ण सूचना है। इसमें सोमदेव को 'वादीन्द्रकालानलश्रीमन्महेन्द्रदेवभट्टारकानुज'१६ लिखा है । अर्थात् प्रतिपक्षी इन्द्र के लिए काल रूपी अग्नि के समान श्री महेन्द्रदेव महाराज के लघुभ्राता। इस पद में भट्टारक शब्द का प्रयोग आदरवाची है, जिसका अर्थ महाराज या सरकार बहादुर किया जा सकता है। शेष सब स्पष्ट है। देखना यह है कि ये इन्द्र तथा महेन्द्रदेव कौन थे?
नीतिवाक्यामृत के संस्कृत टीकाकार ने लिखा है कि नीतिवाक्यामृत की रचना कान्यकुब्ज (कन्नौज) नरेश महेन्द्रदेव के आग्रह पर की गयी।१७
यशस्तिलक से भी कान्यकुब्ज नरेश महेन्द्रदेव के साथ सोमदेव का परिचय और सम्बन्ध प्रतीत होता है। यशस्तिलक के मंगल पद्य में श्लेष द्वारा कन्नौज और महेन्द्रदेव का उल्लेख किया गया है
"श्रियं कुवलयानन्दप्रसादितमहोदयः।
देवश्चन्द्रप्रभः पुष्याज्जगन्मानसवासिनीम् ॥" इस पद्य के दो अर्थ है-एक चन्द्रप्रभ के पक्ष में और दूसरा कन्नौज नरेश देव या महेन्द्रदेव के पक्ष में।
१५."अपि च यो भगवानादर्शरर मरत विद्यानां विरचयिता यशोधरचरितस्य वार्ता स्थाद्वादोपनिषदः कवि (कवयि) ता चान्येषामपि सुभाषितानाम्...।
-प्रेमी-जैन साहित्य और इतिहास, पृ० १९. १६. नीतिवाक्यामृत प्रश॰, पृ०४०६ १७. रघुवंशावस्थायि पराक्रमपालितस्य कर्णकुब्जेन महाराजश्रीमहेन्द्रदेवेन पूर्वा
चार्यकृतार्थशास्त्रदुरवबोधग्रन्थगौरवखिन्नमानसेन सुबोध ललितरूघुनीतिक क्यामृतरचनासु प्रवर्तितः।
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