Book Title: Yashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 355
________________ ३२७ यशस्तिलक की शब्द-सम्पत्ति मार्गायुकः (निसर्गान्मार्गायुकक्रमश्च, हिन्दी में मेठ शब्द मजदूरी करने १८६७ उत्त): मृगया कुशल, वालों के नायक के लिए प्रयुक्त होता शिकार करने में चतुर । है। यहां भी संभवतया छोटे गज. मार्जनीयदेशः (समाश्रित्य मार्जनीयं परिचारकों के मुखिया जमादार के देशमाचरितोपस्पर्शनः, ३२३।५) : लिए मेण्ठ आया है। हाथ-पैर धोने का स्थान मुण्डिका (एरण्डफलपलाण्डुमुण्डिका. मातृनन्दनः ( अमहानवमीदिनमपि डम्बरम्, ४०५।५) : शाक विशेष समातृनन्दनम्, १९७।१ उत्त०): मितद्रवः (मितद्रवखुरक्षोभित""४६५। करंज वृक्ष १) : अश्व, सोमदेव ने मितन्दु : और मातरिश्वः (विनीयमानात्मनि मातरि. मितन्द्रव दो शब्दों का प्रयोग किया त्रिनि, २५०१५) : वायु है (१४४।१)। मामः (भायसमोऽपि च मामः, ४२६। मितंपचः (मितंपचानामग्रेसरः, ४०३। ८) : श्रुतसागर ने इसका अर्थ मामा, ७) : कृपण, कंजूस । श्वसुर किया है। मां के भाई को मिहिरः (दृष्ट्वेमं मिहिरं जगत्प्रियव्यवहार में मामा कहा जाता है। करम्, ५४४।६) : मेघ । मायाकारः (स्वपरजनपरीक्षणमाया. मेघरावः (वर्षा रात्रमिव घनमेघरावम्, कार मायाकार, १९२१७ उत्त.): १९४।३ उत्त०) : मयूर, मेघों को प्रतिहार देखकर मयूर बोलता है। इसलिए मालरम (अवालमालूरमूलक'..", भाव के आधार पर मयूर को मेघराव ४०५।१): विल्व कहा है। माषः (भुंजीत माषसूपम्, ५१२।११): मैथुनिकः ( मैथुनिकः सवरकस्यास्तरउड़द . कस्य ४०३१५):श्याला, साला-पत्नी माहेयी (माहेयीदोहव्याहाराहूयमान : का भाई । मराठी में साला को 'मेहु१८५।६ उत्त०): जिस गाय को दुहते निया' कहा जाता है। समय धर्र-धर्र की आवाज होती है। मोदकम् (मोदकमन्दमठिकावलोकनात् मिण्ठः (स्यानायानेतुमीशाः पयसि. ८८१५ उत्त०) : लड्डू कृतरतीन् हस्तिनो नैव मिण्ठाः मुग्धमतिः (प्रतार्यते मुग्धमतिर्न केन, ७०।२) : गजपरिचारकों का मुखिया, १४ १७ उत्त०) : मन्द बुद्धि . जो गजों को नहलाने-धुलाने आदि का मुनिजनः (काननश्रीरिव संवरप्रचुरा काम करता था। बाण ने भी मेण्ठ मुनिजनगोचरा च, २०६.४ उत्त०) : का उल्लेख किया है (हर्ष० २०६)। तापस पक्षी . . . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org 7

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