Book Title: Yashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 353
________________ यशस्तिलक की शब्द- सम्पत्ति ( पुरुदंशोनिशाखरनखर, पुरुदंशः ४८०६ ) : बिलाव, बिल्ली । इसका प्रयोग सोमदेव ने एक से अधिक बार किया है ( पुरुदंशोदर्शनप्रकाशकेश, १६१।४ ) । पुरधूर्त: (मुग्धेषु पुरधूर्तवत्, ४२३।९ ) : शुगाल बस्त : (१८४/५ उत्त० ) : बकरा पुष्पंधयः (गलन्तीषु पुष्पंधयेषु धृतिषु, बृहती (१९५२ उत्त०) क्षुद्र वार्ताक ६८/२ ) : भ्रमर पुष्पदन्तम् ( अपहसितपुष्पदन्तं कुवलयकमलावबोधनाद्देव, ३२८।३) : चन्द्रसूर्य पुष्पशरः (१६०१७ ) : कामदेव पुष्पात्र : ( १२४ ।९ ) : कामदेव पूतनम् (अराक्षसक्षेत्रमपि सपूतनम्, १९६३ उत्त० ) : राक्षसी पूतिपुष्पफलम् (पूतिपुष्पफलदुष्टदशाविदानीं वक्षोरुहौ, १२४/५ ) : कपित्थ, कैथ पूषन् (द्यो : पूष्णा भोगिलोकौ, २३१| ४) : सूर्य पोगण्ड : (पोगण्डचाण्डालादिकादृशोक, ३३२।२) : विकलांग पौत्री (पौत्री च मुस्ताशन:, ६१ ४) ३ जंगली सुअर पताधानम् ( कमलमूलनिलीयमानपोताधानम्, २०८।६ उत्त० ) : छोटी मछली पोरोगब: ( समस्तसूपशास्त्राधिगमपाटवाय पौरोगवाय, २२२।४ उत्त० त० ) : रसोइया ३२५ फेला भुक् (फेलाभुक् प्रतिकूल:, ५११ । ३ ) : जूठनखोर, एक अन्य प्रसंग में फेला को जूठन कहा है Jain Education International (१२८|४) | बभु: ( बभुः शिखण्डतनयश्च भवेत्प्रहृष्टः, ५।११।१० ) : नकुल बृहद्भानु: (५८1१ ) : अग्नि ब्रध्नः ( ब्रघ्नदी पितिप्रबन्धाभिः, ४५।६) : सूर्य ब्रह्मचारिन् (अप्रथमाश्रममपि ब्रह्मचारिबहुलम्, १९६।१ उत्त० ) : पलाश, पलाश के लिए केवल ब्रह्मतह का भी सोमदेव ने उपयोग किया है ( ३२, २०१८ उत्त० ) । बकोट : (अवाचाटमकोटचेष्टितचकित, २०८/५ उत्त० ) : बक, बगुला बालधिः (बालधिषु च नियुक्तयमदण्डैरिव २९।१) पूंछ भण्डनम् (भण्डनोद्भटर टद्गलान्तरैः, श्वकुलभण्डनाद्भीतम्, > ११५१४, ११५/७ ) : युद्ध, झगड़ा भण्डिल : (सोऽपि भण्डिल: १९१।५ ) : कुत्ता भल्लूकः (हरिणप्रयाणभयभीत - भल्लूकनिकरम् १९८०४ उत्त० ) : श्रुतसागर ने इसका अर्थ शृगाल किया है। देशी भाषा में भालू, रीछ को कहते हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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