________________
यशस्तिलक को शब्द-सम्पत्ति गाय (प्रचुरप्रसूता)।
वायः पंचजनैः, १४५।४): मनुष्य, पल्लवकः (मुनिद्रुमदलेष्विवसंकोचनो- पंच लोग चितेषु पल्लवकलोक सृपाटीपटेसु,१११२ प्रजापति (२०६।२ उत्त०): राजा उत्त०): विद्वान्
प्रचलाकिन् (उपरितनतलचलत्प्रचापलाण्डुः (पलाण्डुमुण्डिकाडम्बरम्, लाकिबालक, १९।५) : मयूर । भव. ४०५।५): प्याज
भूति ने भी प्रचलाकि का प्रयोग किया पलाशः (४८६३): राक्षस
है (उत्त० २।२९)। पलिक्नी (संख्यातीताभिः पलिक्नीभिः, प्रत्यंगम (असत्यता नीतोऽयं प्रत्यंगफल१८६२ उत्त०): गाभिन गाय
निर्देशः, १९१।२) : सामुद्रिक शास्त्र पलिशः (पलिशदेशाश्रयिणा तेन, प्रत्यवसानम् (१५०1८) :भोजन १८०।२ उत्त०) : जहाँ बैठकर मृग
प्रतारणम् (७२।२ उत्त०) : ठगना का शिकार किया जाता है उसे पलिश प्रधावधरणि (प्रधावधरणिष्विव स्रोतकहते हैं।
स्विनीषु, ६८१५): गजशिक्षा प्रदेश, पवनाशनः (१९।६) : सांप
नगर के बाहर का वह प्रदेश जहाँ पवनकन्यका (५३१।४): चमर ढोरने गजों को शिक्षित किया जाता था या वाली कृत्रिम पुत्तलियाँ
घुड़दौड़ आदि होती थी। इसका कई पश्यतोहरः (२५८१८): देखते-देखते ।
बार प्रयोग हुआ है (प्रधावधरणिषु चुग लेने वाला चोर, सुनार करिविनोदविलोकनदोहदम्, ४९५।८)। पस्त्यम् (पस्त्यभित्तिमणिधोतः, २०६। इसे करिविनयभमि भी कहते थे १): गह, सोमदेव ने पस्त्य का एक (४८२१५)। से अधिक बार प्रयोग किया है (प्रचेतः प्रधिः (घान्वन्धरारन्ध्रेष्विव प्रघिष, पस्त्यमिवाप्यजडाशयम्, ३४५६५)। ६८।५) : कुआँ पृषतः (पृषत्खुरखण्ड्यमान, २००।२ प्रणधिः (अवधोरिताधोरणप्रणिधिभिः, उत्त०): मृग, सेहुल
३०१५) : अंकुश पृषदाज्य (पृषदाज्येनाभिक्षया च समे- प्रणालम् (चन्द्रोपलप्रणालाप्रैः, २०५॥
धित महसम्, ३२४।२): ताजा घी ७) : नाली, परनाला देशी भाषा में पृषदश्वः (चापलविलासः पृषदश्वेषु, प्रचलित है । २०२।२): वायु
- प्रायोपवेशनम् (प्रायोपवेशनवासिन्यपि पंकजातम् (२८१।९): कमल कुट्टिनी, ४२९।३): संन्यास पंकिलः (१६३।४) पापी प्रवहणम् (मदीये निलये प्रवहणं पंकेज (४१६।६): कमल
कर्तव्यम्, १५०।२ उत्त०) : पंक्ति. पंचजनाः (नगनगरपामारण्यजन्मसम- भोज
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org