Book Title: Yadi Chuk Gaye To Author(s): Mahavir Prasad Jain Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 5
________________ चूक गये तो" रखा है। आशा है पाठक इसकी गंभीरता को समझेंगे। यह स्वर्ण अवसर चूकेंगे नहीं। जिन्होंने तीनों कथा-कृतियाँ पढ़ीं हैं, उनकी सारसंक्षेप प्रस्तुत कृति के पढ़ने से तीनों पुस्तकों की पुनरावृत्ति हो जायेगी और जिन्हें समयाभाव के कारण उन पुस्तकों को पढ़ने का समय नहीं मिला, उन्हें उन पुस्तकों का सार इस कृति के माध्यम से मिल जायेगा। संभवतः इसे पढ़कर सभी कृतियों को पूरा पढ़ने की जिज्ञासा भी जग जाय। तथा इन कृतियों के पढ़ने से उनका मुक्ति पथ का पथिक बनने का भाग्य जग जाय; क्योंकि इन ज्ञान और वैराग्यवर्द्धक कृतियों में भी जिनेन्द्र की दिव्यध्वनि का और निर्ग्रन्थ पूज्य आचार्यों के ग्रन्थों का सार ही है। इन सभी दृष्टिकोणों से इस कृति का प्रकाशन उपयोगी रहेगा - ऐसा मेरा विश्वास है। मुझे आशा है कि मेरे प्रिय पाठक अन्य कृतियों की भाँति इससे भी लाभान्वित होंगे। - पण्डित रतनचन्द भारिल्ल (५) प्रस्तावना | अध्यात्मरत्नाकर पण्डित श्री रतनचन्द भारिल्ल प्रस्तुत कृति का नाम 'यदि चूक गये तो' देखकर पाठकों को यह जिज्ञासा जरूर जागृत होगी कि - "इस कृति में ऐसे कौन से अवसर चूकने की बात कही गई है, जिस कारण पूरी पुस्तक का नामकरण ही यह कर दिया गया है ? लेखक ने इस कृति में जरूर कोई ऐसी महत्वपूर्ण बातें कहीं होंगी, जरूर किसी भारी संकट से सावधानी हेतु हमारा ध्यान आकर्षित करना चाहा होगा, अतः हमें इस कृति को अवश्य आद्योपांत पढ़ना चाहिए।" यदि पाठकों के मन में यह जिज्ञासा जागृत हो गई तो निश्चिय ही इस कृति का नाम, तथा संकलनकर्तृ का श्रम सार्थक हो जायेगा । बात भी कुछ ऐसी ही है। सचमुच यह मानवपर्याय, सुकुल एवं जिनवाणी के सहज श्रवण होने का स्वर्ण अवसर चूकने योग्य नहीं है । यदि हम यह अवसर चूक गये तो हमारी जो हानि होगी उस हानि की कल्पना तो हम इस कृति के माध्यम से कर ही सकते हैं। यदि सावधान हो गये, कुछ मार्गदर्शन मिल गया तब तो भविष्य में चतुर्गति भ्रमण में प्राप्त होने वाली असहनीय वेदना से बच ही जायेंगे। अतः कम से कम एकबार इस संकलन को अवश्य पढ़ें। संभव है अनन्तकाल तक होनेवाले अनन्त दुःखों से बचने का सन्मार्ग मिल जाये, सम्यक्पुरुषार्थ जागृत हो जाये । हम मानें या न मानें; पर यह तो अकाट्य सत्य है कि - हम सब संसारी जीव अनादि काल से आज तक भूले-भटके ही हैं, तभी तो अनन्त भूतकाल से आज तक संसार सागर में गोते खा रहे हैं, अन्यथा चौरासी लाख योनियों के जन्म मरण के दुःखों से मुक्त हो गये होते न ! मनुष्य पर्याय में मानव की सबसे बड़ी कमजोरी यह रही है कि - मानकषाय की मुख्यता के कारण इसने आज तक अपनी भूल स्वीकार ही नहीं की। यह अपने 'अहं' में ही मारा गया। यह अपने अज्ञान और अहंकार के कारण यह मानता रहा कि 'ब्रह्माजी के पास जो दो अक्कलेंPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 85