Book Title: Vruddhi Ratnamala Author(s): Vruddhiratnamuni Publisher: Keshrisinhji Saheb View full book textPage 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्रीजिनायनमः ॥ ॥अथ स्तवन लिख्यते ॥ श्रथ निनाणु यात्रा को चोढालिया लिख्यते ॥ दोहा॥ वामा नंदनवदिये अश्वसेन कुलचंद ॥ सप्तफणे धरी सोहता सेवेसुरनरवृंद ॥१॥ जिनवर अंगे नाषिया तपजपविविधप्रकार॥ यात्रा निनाणुंसारिखोश्रवरन कोई उदार. ॥शाजनवियण सेवन करे जात्रानिनाणुं जेह ॥ विधिसहित वंदन कर शिवसुखपामेतेह ॥३॥ प्रथम पवित्रतन कीजिये धरिये निरमल ध्यान॥ नवप्रदिक्षणा दीजिये चैत्य वंदन नवजाण ॥४॥ प्रतिक्रमण राई देवसी देव वंदन त्रणवार ॥पाकोपाणी पीजिये लक्ष जपोनवकार ॥५॥ षष्टम अष्टम तप करो चढते चित्तउदार ॥ ब्रह्मचर्यव्रतपालवो जूश य्या सुविचार ॥६॥ पूजा श्रष्ट प्रकार की करिये विधि बिस्तार॥वरघोमो जलयात्रा शक्तिके अनुसार ॥७॥ गुरु मुख ज्ञान सुणी की श्राविका सुझान ॥ सणगार साध्वी संघलिया धरयो प्रजुको ध्यान ॥७॥ संघवी सेठ बहुफणा सौजाग्य नार्या सुजा For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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