Book Title: Veer Vihar Mimansa
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashiram Saraf Shivpuri

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Page 8
________________ किंचिद्-वक्तव्य अाज से लगभग ११ वर्ष पूर्व हम ने एक पुस्तिका 'वीरविहारमीमांसा' गुजराती में प्रकाशित कराई थी। उस में भगवान महावीरस्वामी के विहार के सम्बन्ध में प्रचलित धारणाओं का संक्षेप से विवेचन किया था और यह बताने का प्रयास किया था कि श्रीमहावीरस्वामी का विहार पश्चिमीदेशों में नहीं हुआ था । इतिहासप्रेमी सजनों ने इस का समुचित आदर किया, इस के लिये हम उन सजनों का धन्यवाद करते हैं । परन्तु रूढिवादी समाज की रूढि-प्रियता के कारण इस का प्रभाव तो कुछ नहीं हुआ, अपितु कुछ विरोध अवश्य हुअा। इस पर हमें कुछ आश्चर्य नहीं हुश्रा क्योंकि इतिहास तो प्रगतिशील है, वहां तो रूदि का विचार न होकर तथ्यों पर विचार किया जाता है। इसलिए यदि उस पुस्तिका का इतिहासप्रेमियों में अादर हुअा है तो यही उस पुस्तिका के लिए प्रमाणपत्र है। कुछ मित्रों ने कई एक कारणों से इस पुस्तिका की द्वितीयावृत्ति के प्रकाशन के लिए मना किया, कुछ एक मित्रों ने रूढ़िवादियों का पक्ष ले कर इस पुस्तिका की आलोचना की, कई एक ने दूसरों की संचितपूजी पर पैर जमा कर हमें ललकारा। परन्तु जिस कार्य की साधना में हम रत थे उसी में निरन्तर लगे रहे और इस समय अपने कार्य को जनता के समक्ष उपस्थित कर रहे हैं। प्रस्तुत पुस्तिका उपर्युक्त पुस्तिका की द्वितीयावृत्ति नहीं है, अपितु यह एक बार पुनः नये सिरे से लिखी गई है। बहुत से अंश इस में बढ़ा दिये गये हैं । विशेषतः श्रीमहावीरस्वामी के छद्मस्थकाल के विहार के स्थानों का निश्चय करने का प्रयत्न किया गया है। यदि सम्भव हुया तो भविष्य में भगवान के केवलज्ञान के बाद के विहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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