Book Title: Veer Vihar Mimansa
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashiram Saraf Shivpuri

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Page 25
________________ (१४) दूसरे पृष्ठ ५७ में संवत् १५६७ का एक शिलालेख दिया गया है । उस में लिखा है कि एक मन्दिर वल्लभीपुर से नाडलाई में उखाड़ कर लाया गया । इस तथ्य को केवल लिपिबद्ध होने से तो स्वीकार नहीं 'किया जा सकता। ___ बहुधा बाद में आने वाले लोग अथवा स्तवनकार भी अपने भावावेश के कारण तथ्यों को अनुपयुक्त ढंग से उपस्थित कर जाते हैं । आबूपर्वत पर देलवाड़े में महामात्य तेजपाल द्वारा खुदाये हुए "प्रशस्तिलेख हैं । उनमें से एक पर लिखा है। श्रीतेजःपाल द्वितीयभार्या महं श्री सुहडादेव्याः श्रेयोऽर्थ एतत् 'त्रिगदेवकुलिकाखत्तकं श्रीअजितनाथचिंबं च कारितं । श्री अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह (सम्पादक-श्रीजयन्तविजय नी) पृष्ठ ११३ मन्दिर में गूढमंडप के मुख्य द्वार के दोनों ओर सुन्दर खुदाई के काम वाले ताक (गोखले) हैं। इन्हें महामात्य तेजःपाल ने अपनी द्वितीयपत्नी सुहडादेवी के कल्याण के लिये बनवाया था। इन दोनों ताको को भ्रांतिवशात देराणी-जेठाणी के नाम से पुकारते हैं और यह कहा जाता है कि एक ताक वस्तुपाल की पत्नी का है दूसरा तेजपाल की पत्नी का। इसी प्रकार श्रीवीरविजय जी ने भी अपने स्तवन में लिखा हैः देराणी जेठाणी ना गोखला ॥दु०॥ लाख अढार प्रमाण ॥ भ०॥ वस्तुपाल तेजपालनी ॥दु०॥ ए दोह कांता जाण ॥ भ०॥ श्रीतपागच्छीयपंचप्रतिक्रमणसूत्र अर्थसहित पृष्ठ ५३६ - यही दुर्दशा उपयुक्त शिलालेख की हो रही है। स्थिति यह है कि वह लेख तो १५ वों शताब्दि का हैं परन्तु बाद में श्राने वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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