Book Title: Veer Vihar Mimansa Author(s): Vijayendrasuri Publisher: Kashiram Saraf ShivpuriPage 26
________________ ( १५ ) १ लोग उसका सम्बन्ध जोड़ रहे हैं श्राज से २५०० वर्ष पूर्व की घटना से । इस शिलालेख को प्राचीन सिद्ध न कर सकने के कारण अब यह भी कहा जाने लगा है कि १५ वीं शताब्दि में जब मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया गया था तब प्राचीन लेख की नकल करके पुनः इसे खुदवाया गया था | परन्तु यह केवल कल्पना है, इसे पुष्ट करने के लिये कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। दूसरी बात यह है कि क्या प्राचीन लेख को पढ़ लिया गया था ? यदि प्राचीन लेख को पढ़ लिया गया था तब तो उसकी मूललिपि में क्यों नहीं नकल की गई, साथ हो यदि नकल की गई थी तो इस बाद के शिलालेख में उसका वर्णन क्यों नहीं किया गया ? इस शिलालेख को पढ़ने से यह बिल्कुल ज्ञात नहीं होता कि यह लेख कहीं से नकल किया गया है। यदि उनके पास मूल प्राचीन शिलालेख होता तो वे अवश्य उसे कहीं सुरक्षित अवस्था में लगवा देते, यों ही नष्ट न होने देते। उस प्राचीन शिलालेख से मन्दिर का गौरव बढता । वस्तुतः ऐसा तो कोई शिलालेख था ही नहीं, उसकी सृष्टि केवल कल्पना के आधार पर की गई है। बहुधा लोग स्वार्थवशात् नई मूर्त्तियां तैयार करवा के उसमें प्राचीन लेख लिख कर उन मूर्तियों को बेच देते हैं जिस से यह भ्रम सरलता से फैल सके कि ये प्राचीन मूर्त्तियां हैं। पर ऐसी मूर्तियों या लेखों के आधार पर किसी ऐतिहासिक निर्णय पर नहीं पहुँचा जा सकता जब तक कि अन्य पुष्ट प्रमाण उपलब्ध न हों । एवं इसी प्रकार की कल्पनाओं में यह भी एक है कि नांदिया के मन्दिर में शिलालेख सहित मूत्तियां मौर्यकाल की हैं। स्थल के मन्दिर के सम्बन्धमें लगभग संवत १३०० में चल गच्छीय श्रीमहेन्द्रसिंह सूरि द्वारा प्रणीत 'अष्टोत्तरी तीर्थमाला' का प्रमाण दिया जाता है और इसके आधार पर श्री वीरप्रभु का मुण्डस्थल में पधारना माना जाता है । परन्तु सूरि जी ने इस सम्बन्ध में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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