Book Title: Veer Vihar Mimansa
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashiram Saraf Shivpuri

Previous | Next

Page 31
________________ ( २० ) इसके बाद ही की गई है। सामान्यरूप से इसका बहुत काल तक पालन भी किया जाता रहा । परन्तु सम्प्रति के काल में इन सीमाओं से बाहर भी साधु ने विहार करना प्रारम्भ कर दिया था । बृहत्कल्पसूत्र की उपर्युक्त टीका में भी इस ओर निर्देश किया गया हैं । भगवान के विहारस्थान ऊपर हमने भगवान के छद्मस्थकाल के विहार के सम्बन्ध में किये जाने वाले अनुमानों और कल्पनाओं का विवेचन किया है । शास्त्रों में भगवान का विहारक्रम जिस प्रकार से उल्लिखित है वह निम्नप्रकार से हैं। इस में जहां तक सम्भव हो सका है, विहार के स्थानों का भी निर्णय करने की चेष्टा की गई है १ वर्षावास विहार स्थान क्षत्रियकुण्डपुर ज्ञातखण्डवन कर्मारग्राम कोल्लागसन्निवेश मोरा सन्निवेश Jain Education International १. अस्थिकग्राम (वर्धमान गांव ) पास में वेगवती नदी मोरा सन्निवेश १. स्थाननिर्णय के लिए मुख्यरूप से इन ग्रन्थों की सहायता ली गई है - ( १ ) डिक्शनरी ग्राफ पाली प्रापर नेम्स, दो भाग, श्री जे० पी० मलल शेखरकृत ( २ ) भूगोल - भुवन कोषाङ्क (३) जियोग्राफी श्राफ ल बुद्धिज्म श्रीविमलचरण ला कृत ( ४ ) दी जर्नल ग्राफ यू० पी० हिस्टारिकल सोसायटी भाग १५, सं० २, में श्री डा० वासुदेवशरण अग्रवाल का 'दी जियोग्राफिकल कनटेन्ट श्राफ दी महामायूरी' वाला लेख (५) प्राचीन तीर्थमाला संग्रह - भाग १. सम्पादक श्री १० गुरुदेव विजयधर्मसूरि । For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44