Book Title: Veer Vihar Mimansa
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashiram Saraf Shivpuri

Previous | Next

Page 27
________________ (१६) कोई सबल प्रमाण नहीं दिया। उनसे लगभग १८०० वर्ष पूर्व मुण्डस्थल में वीरप्रभु का आगमन हुआ था यह कैसे माना जा सकता है ? वस्तुतः ऐसा प्रतीत होता है कि सूरि जी का मन्तव्य किंवदन्तियों के ऊपर आश्रित हैं। सूरिजी ने अष्टोत्तरी तीर्थमाला में लिखा है कि पुण्यराज नाम के महात्मा ने मन्दिर बनवाया था ( देखो पृष्ठ २७३)।' परन्तु मन्दिर के संवत् १४२६ के उपर्युक्त संस्कृत शिलालेख में 'महात्मा' के स्थान पर 'राजा' शब्द का प्रयोग हुश्रा है। इस शिलालेख में यह भी लिखा है कि केशीगणधर ने मन्दिर की प्रतिष्ठा की थी। इस लेख के वर्णन से यह प्रगट होता है कि जो स्थापना तीर्थमाला में की गई है, जनता को प्राकृष्ट करने के लिये उसे तोड़ा मोड़ा गया है, तथा 'महात्मा ने मन्दिर बनवाया' इसके स्थान पर 'राजा पुण्यराज ने प्रतिष्ठा करवाई तथा केशी गणधर ने प्रतिष्ठा की'-ऐसा लिख दिया गया है। इससे यही प्रमाणित होता है कि यह मन्दिर अर्वाचीन है। श्रीवीरप्रभु चौथे और पांचवें चातुर्मास के बीच लाढ देश में गये थे । कुछ लोग इसे गुजरात में मानते हैं और इसके आधार पर भगवान का गुजरात में पधारना सिद्ध करते हैं । परन्तु लाद को १. मूलपाठ इस प्रकार है:अब्बुअगिरिवरमूले मुडथलेनंदिरुक्खबहभागे। छउमत्थकाले वीरो अचलसरीरो ठिो पडिमं ॥ तो पुन्नरायनामा कोई महप्पा जिणरस भत्तीए । कारह पडिमं वरिसे सगतीसे वीरजम्माश्रो। किंचूणा अठारस वाससयाए य पवरतित्थस्स । तो मिच्छषणसमीरं धुणेमि मुडत्यले वीरं । -पंचप्रतिक्रमणसूत्र (अचलगच्छीय प्रकाशक - श्रावक शा० भीमसिंह माणिक) पृष्ठ ६६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44