Book Title: Veer Vihar Mimansa Author(s): Vijayendrasuri Publisher: Kashiram Saraf ShivpuriPage 24
________________ ( १३ ) चौथी पंक्ति की समाप्ति पर लिखे गये सं० १४२६ से प्रगट है । इसी शिलालेख के आधार पर कहा जाता है कि श्रीवीरप्रभु श्राबूपर्वत पर पधारे थे । मुण्डस्थल के इस मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया गया, यह तो एक सर्वसम्मत बात है, इस का समर्थन श्री जिनविजय जी द्वारा सम्पादित प्राचीन जैन लेखसंग्रह भाग २ पृष्ठ १५८-५६ में किया गया है । जैसा कि शिलालेख में समय का निर्धारण कर दिया गया है, तथा अन्य लोगों ने भी माना है यह लेख १४२६ सम्वत् का है । इसी कारण लेख प्राचीन लिपि में न होकर देवनागरी लिपि में है । इसलिए आज से २५०० वर्ष पूर्व घटी घटना के लिए यह शिलालेख प्रामाणिक नहीं माना जा सकता । दूसरे शब्दों में यह स्पष्ट कहा जा सकता कि इस शिलालेख की खुदाई तब नहीं हुई थी जब कि श्रीवीरप्रभु जीवित थे, अथवा श्रीवीरप्रभु की विद्यमानता में यह मन्दिर बना हो ऐसा सिद्ध नहीं होता । लेख की प्राचीनता को सूचित करने के लिए सबल प्रमाण प्राप्त हुए बिना मन्दिर की प्राचीनता को स्वीकार नहीं किया जा सकता । इसी मन्दिर के रंगमण्डप में ६ चौकी के पश्चिमभाग के दांये पार्श्व में संवत् १२१६ का एक शिलालेख खुदा है, यह लेख ६ स्तम्भों पर एक ही प्रकार से लिखा गया है, उससे प्रतीत होता है कि यह मन्दिर पहले पहल सं० १२१६ में वैशाखवदि ५ सोमवार को बनवाया गया था । लेख इस प्रकार है'संवत् १२१६ वेशाखवदि ५ सोमे स्तंभलता का पिता भक्तिवशादिति ।' जासाबहुदे विनिमित्त वीसलेन यह ध्यान में रखना चाहिये कि कोई लेख प्रामाणिक हैं या नहीं । कोई बात लिखित होने से ही प्रामाणिक नहीं समझी जा सकती । इस सम्बन्ध में हमें कुछ एक दृष्टान्तों को ध्यान में रखना होगा । स्व० गुरुदेव श्रीविजयधर्मसूरि जी द्वारा संपादित ऐतिहासिक राससंग्रह भागः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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