Book Title: Veer Vihar Mimansa Author(s): Vijayendrasuri Publisher: Kashiram Saraf ShivpuriPage 13
________________ ( २ ) श्रपितु भगवान के जन्म-स्थान को भी भूल गई । परिणामतः मूल स्थानों को छोड़ कर काल्पनिक स्थानों को वास्तविक समझा जाने लगा । इस सम्बन्ध में जो जो कल्पनाएं खड़ी की गई उन का हम यहां विवेचन करेंगे तथा सप्रमाण यथाशक्ति समाधान करेंगे, फिर मूल स्थानों को बताने का प्रयत्न करेंगे । जैन समाज में यह धारणा प्रचलित हो चली है कि श्री महावीरस्वामी गुजरात - काठियावाड़ और मारवाड़ में पधारे थे । इस धारणा के आधार पर कुछ एक तीर्थस्थानों के सम्बन्ध में यह प्रचार किया गया कि भगवान ने इन स्थानों में भी विहार किया था । काठियावाड़ में एक नगर वढवाण (शहर) है जिस के निकट भोगवा नदी बहती है, इस स्थान को अस्थिकग्राम मान लिया गया है जहां भगवान ने प्रथम वर्षावास किया था। जैनसाहित्य में इस अस्थिकग्राम के पास वेगवती नाम की एक नदी के बहने का उल्लेख है तथा इसके सम्बन्ध में कहा गया है : ग्रामोऽयमभवत्पूर्वं वर्धमानोऽभिधानतः । नद्यस्ति वेगवत्यत्र पंकिलोभयकूलभूः ॥ ८१ ॥ श्रीत्रिषष्टिशल | कापुरुषचरित्र पर्व १०, पत्र २१ तस्व य अन्तरावि समनिन्नुन्नयगम्भीरखडुविसमयवेसा श्रानाभिमेत्तसुहुमवालुगापडहत्थविसाल पुलिया महल्लचिक्खल्लापुविद्धतुच्छसलिला वेगवई नाम नई । श्रीमहावीरचरियम् (गुणचन्द्र विरचित) पत्र १५० । यह ध्यान में रखना चाहिये कि इस अस्थिकग्राम का पुराना नाम वर्धमान था । इस वर्धमान के पास जो नदी बहती है उसे उपर्युक्त दोनों उद्धरणों में कीचड़मय तथा ऊंचे नीचे गड्ढों से पूर्ण बताया गया है । वेगवती नदी का यह वर्णन काठियावाड़ की भोगवा से मेल नहीं खाता । भोंगवा नदी रेतीली है, कीचड़ श्रादि ऐसा नहीं होता कि ग्रन्थकारों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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