Book Title: Veer Vihar Mimansa
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashiram Saraf Shivpuri

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Page 21
________________ -~-पाचीनजैनलेखसंग्रह भाग दूसरा (श्रीजिनविजय जी द्वारा सम्पादित) उपर्युक्त मूर्तियों के लेखों के वर्षों को देखते हुए यह अत्यन्त स्पष्ट हो जाता है कि उन मूर्तियों की स्थापना प्रभु की विद्यमानता में नहीं हुई थी । वस्तुतः जीवितस्वामी का अभिपाय है ऐसी प्रतिमा जो जीवित प्रतीत होती हो अथवा जीती जागती प्रतिमा से है । इसलिए नाणा, दोयाणा, नांदिया और ब्राह्मणवाड़ा में जो भी जीवितस्वामी की प्रतिमाएं है, वहां भी वस्तुतः अभिप्राय जीती जागती प्रतिमाओं से है। नाणा, दीयाणा, नांदिया और ब्राह्मणवाड़ा के अतिरिक्त महुवा (भावनगर राज्य ) में भगवान की एक प्रतिमा है जिसे जीवितस्वामी की प्रतिमा कहा गया है, इसकी स्तुति करते हुए श्री विजयपद्मसूरि जी ने लिखा है: णिवणंदिवद्धणेणं अडणवहसमाउएण जि?णं । लहुबंधवगुणणेहा-सगकरदेहप्पमाणेणं ॥ ३ ॥ जीवंते य भयंते-कारविया जेण दुरिण-पडिमाश्रो। सोहह एगा एसा-अण्णा मरुदेसमझमि ॥४॥ -श्री जैनसत्यप्रकाश (श्री महावीर-निर्वाण-विशेषांक ) क्रमांक १६-१७, पृष्ठ ३४७ अर्थात् भगवान के बड़े भाई राजा नन्दिवर्धन ने भगवान के जीते जी उन के शरीर के परिमाणानुसार दो प्रतिमाएं बनवाई। एक तो यहां (महुश्रा में) है दूसरी मरुदेश (मारवाड़) में है । इस से आगे के श्लोक में इस हेतु इन प्रतिमानों को जीवितस्वामी की प्रतिमा कहा है। . ऊपर हमने बताया है कि एक मान्यतानुसार तो जीवितस्वामी की प्रतिमाएं चार स्थानों में है। परन्तु प्राचार्यश्री केवल दो प्रतिमाओं का उस काल में होना मानते है । वस्तुतः ; ये दोनों ही मान्यतायें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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