Book Title: Veer Vihar Mimansa
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashiram Saraf Shivpuri

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Page 18
________________ सिरोही से चम्मा लौटने में लगभग १७०० से १८०० मील का मार्ग तय करना पड़ता है । विहार की दृष्टि से यह अन्तर बहुत बड़ा अन्तर हो. जाता है। बिना कारण यह मानने का कुछ अर्थ नहीं है कि सिरोही के निकट का ब्राह्मणवाडा ही ब्राह्मणगांव है जब कि सामान्य बुद्धि से यह अधिक संगत प्रतीत होता है कि नालन्दा से चम्पा १०० मील है और इसी बीच में ही ये तीनों स्थान होंगे। भगवान ने चौथा चातुर्मास पृष्ठचम्पा (चम्पा के निकट स्थान ) में किया और पांचवां भद्दिया में । यह कहा जाता है कि इसी बीच में श्री वीरप्रभु सिद्धाचलगिरि को ओर भी तीर्थयात्रा के लिये गये थे। परन्तु यह एक श्राश्चर्य का विषय है कि चौथे और पांचवें चातुर्मास के बीच जिन स्थानों में भगवान ने विहार किया था, उन में सिद्धाचलगिरि का नाम नहीं है । इसलिये यह तो असन्दिग्ध है कि इस बीच में भगवान सिद्धाचलगिरि की ओर नहीं गये । परन्तु इसके पक्ष में जो प्रमाण उपस्थित किये जाते हैं उन पर भी एक बार विचार कर लेना उपयुक्त होगा । यह कहा जाता है कि भगवान सिद्धाचलगिरि को ओर तीर्थयात्रा के लिये गये थे, इस की पुष्टि श्री वीरविजय जी के इस पद से होती है। _ 'नेम विना वीस प्रभु श्राव्या विमल गिरीद' ___ यह पद शनुजयमाहात्म्य के आधार पर रचा गया है, यह ग्रन्थ श्रीधनेश्वरसूरि द्वारा लिखा गया था । इस ग्रन्थ का रचनाकाल विक्रम संवत की तेरहवीं शताब्दि है अथवा मन्त्री वस्तुपाल के समय के बाद का है। उत्तरकाल के एक अन्य के आधार पर श्रीवीरप्रभु का सिद्धाचलगिरि की ओर जाना सिद्ध किया जाता है। जब कि इस ग्रन्थ से भी प्राचीनकाल के ग्रन्थों में भगवान का नो विहारक्रम दिया गया है उनमें इस का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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