Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
JAN
भाषांतर JE अध्ययन
॥२९॥
EG मूलार्थ:-(संसार)-संसारने (आवरण)-पामेलो जीव (परस्स)-परने (अठ्ठा) अर्थ (च)-अथवा ( साहारणं) स्वपरने अथे (ज)-जे उत्तराध्य
(कम्म)-कृषि आदिकर्मने (करेइ) करे छे. (तस्स उ-ते पण (कम्मस्स) कर्मना (वेअकाले उदयकाळे (ते) ते (बधवा)-बधुओ पन सूत्रम्
(बधवय)बधुपणाने (न उविति =पामता नथी.
व्याख्या-संसारं समापन्नः संसारी जीवः परस्यार्थ परार्थ परनिमित्तं पुत्रमित्रकलत्रस्वांधवाद्यर्थ यत्सा॥२९९॥
धारणमुभयार्थमात्मपरनिमित्तं यत्कर्म करोति, ते मित्रपुत्रकलत्रादयः स्वबांधवास्तस्य पापकर्मफलवेदकाले विपाककाले बांधवतां बंधुभावं नोपयांति ॥ ४ ॥
अर्थः-संसारमा आपन्न आवेलो प्राणी जीव परने अर्थे अर्थात् पुत्र; मित्र, खी, वांधव इत्यादि वर्ग निमिने अथवा साधारणतया पोताने तथा परने माटे एम उभयार्थे जे कंड कर्म करे छे ते भित्र पुत्र कलवादिकमांना कोई पण ए पापकर्मनां फळ अनुभववा टाणे विपाककाळे बांधवना=बंधुभाव करतां नथी-मददे आवी शकतां नथी.
अत्राभीरीवंचककथा यथा-स्वापि ग्रामे कोऽपि वणिग्हढे क्रयविक्रयं करोति, अन्यदैकाभीरी तहे आगता, तया भणितं भो रूपकद्वयस्य मे रुतं देहि ? तेनोक्तमर्पयामि, अर्पितं तया रूपकद्रयं, तेन वगिजैकस्यैव रूपकस्य रुतं वारद्वयं तोलवित्वापित, सा जानाति मम रूपकद्रयस्य रुतं दत्तं, वचिना च सा तस्यां गतायां स चितयत्येष रूपको मया मुधा लब्धः, ततोऽहमेवमुपभुंजामि, तस्य रूपकस्य घृतखंडादिलात्वा स्वगृहे विसजित, भार्यागाः कथापितमद्य घृतपूरान् कुर्याः ? तया घृतपुराः कृताः, तावता तद्गृहे समित्रो जामाता समा
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 290