Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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व्याख्या-पथा स्तेनश्चौरः संधिमुखे खानद्वारे गृहीतः स्वकर्मणा, स्वकीयकृतखात्रचातुर्येण कृत्वा कृत्यते शरीरे उत्तराध्य- छिद्यते, काष्टफलके कपिशीर्षाकार उत्कीर्णखात्रसंकीर्णबारेण शरीरे विदार्यत इत्यर्थः. कीदशश्चौरः ? पापकारी. भाषांतर पन सत्रम्
JEअध्ययन४ ___ अर्थ:-जेम कोइ स्तेन चोर संघिमुखे-खातरना द्वारमा गृहीत-संकडाएलो, ते पापकारी चोर स्वकर्म-पोते करेला कर्म ॥२९७॥ खातर पाडवा माटे लाकडाना हाथा उपर जडेला कपीशीर्षबानरमथा [गिरमिट जेवा हथीयारथी खोतरीने करेला सांकडा- ॥२९७॥
द्वारमाथी जतां नीकळतां शरीरे छोलाय छे.___ अत्र दृष्टांत:-क्वचिन्नगरे कस्यचिद्व्यवहारिणः फलकरचिते गृहे केनचिचोरेण प्राकारकपिशीर्षाकृतिक्षात्रं | दत्तं, तत्र प्रविशन्नंतःस्थजागरूकगृहपतिना बहिःस्थचौरेण चाकृष्यमाणो विलपन्नेव मृतः. एवममुना दृष्टांतेन प्रजा लोकः प्रेत्य परलोके, च पुनरिहैवलोके कृत्यते पीड्यत इत्यर्थः. इह लोके च धनार्जनार्थ क्षुत्तृषाशीतातपसहनपर्वतारोहणजलधितरणनृपसेवनसंग्रामप्रहारसहनादिक्लेशेन, परभवे च विविधनरकक्षेत्रवेदनापरमाधार्मिकविनिर्मितव्यथया कृत्यत इत्यर्थः. कथं हि परलोके पीड्यते तत्र हेतुमाह-कृतानामुपार्जितानां कर्मणां मोक्षो नास्ति.
अहीं दृष्टांत कहे छे-कोइ एक नगरमा काष्ठनां पाटीयांची बनावेला कोइ शेठना घरमा कोइ चोरे भीतमां कपिशिर्षाकार JE JE खातर दीg=फाई पाडयु, पेसवा तेमां जतां अंदर जागता घरधणीए पकड्यो अने बहारथी आवी पहोंचेला ए चोरना साथीए पग
पकडी खेंचवा मांज्यो तेथी बूमो पाडतोज मरी गयो. एम आ दृष्टांतथी-प्रजा लोको मुवा पछी परलोकमां तथा आ लोकमां
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