Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir उत्तराध्ययन सूत्रम् भाषांतर अध्ययन४ ॥२९६॥ ||२९६॥ छ पश्चान्निद्रव्यं मामपमानयिव्यंति, जरापरिगतस्य मे न कश्चित् त्राणाय भविष्यति, यावदहं सावधानवलोऽस्मि ताव त्प्रवजामीति विचार्य गुरोः समीपेऽहणेन दीक्षा गृहीता इति 'जरोवणीयस्स हु नस्थि ताणं' अवाहणमालकथा समाप्ता. आटलु सांभळतां राजाए ओळख्यो जे 'आतो मारोज अट्टणमल्ल छे' थी राजाए तेनो सत्कार कर्यो; घणु द्रव्य राजाए ET तेने आप्यु. आ बखते तेना स्वजन हता ते पण तेने आम सत्कार पामेलो जोइ तेने सामा आवीने मळ्या अने मान सत्कारादिक पण करवा लाग्या. अट्टणे विचार्यु के आ बधा आ टाणे मात्र द्रव्य लोभथी मारो सत्कार करे छे, पाछलथी ज्यारे हुँ निद्रव्य | थाउं त्यारे प्रथमनी पेठे माहें अपमान करशे, जराथी घेरायेलानुं मारु कोइ रक्षण नहि करे. ज्यां सुधी हुं सावधान बळवाळो छु त्यांज प्रव्रज्या लइ लउं; एम विचारी गुरुसमीपे जइ अट्टणे दीक्षा लोधी. 'घडपण जेने मोत नजीक घसेडी जतुं होय तेने कोइ रक्षण करी शकतुं नथी' आ विषयमां आ अट्टणमल्लनी कथा समाप्त करी. तेणे' जहा संधिमुंहे गहीएँ । सकम्मुंणा किच्चइ पावकारी ॥ एवं पयो पेच्च इहं च लोएँ । कडाण कम्मणि ने मुक्खु अत्थि ॥३॥ मूलार्थ:-(जहा) जेम (पावकारी) पापकरनार (तेणे) चोर (संधिमुहें)-खातरना द्वार-छिद्रमा (गहीए) ग्रहणकरायो थको (सकम्मुणा) पोतानाज कर्मवडे (किच्चा) छेदाय छे (एव) रीते (पया)-मनुष्य (पेच्च)-परलोकमां (च) अने (इहलोए)-आ लोकमां दुःखपामे छे, (कडाण करेलां (कम्माण) कर्मोने (मुक्खु-भोगव्या शिवाय (न अत्थि)-क्षय थतो नथी. ३ . For Private and Personal Use Only

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