Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02 Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषांतर अध्ययन४ ॥२९४॥ १८ प्रहारा लग्नास्तत्स्थानं दर्शय ? फलहीमल्लः पुनर्नवीभूतः श्रूयते, मत्सीमल्लाऽभिमानान्न स्वस्थानं दर्शयति; वक्ति चाहं उत्तराध्य-DEL EET पुननेवीभृतः फलहीपितरं जयामि. यन सूत्रम् । पठी तेने साथे लइ सोपारक नगरमा गयो त्यां राजानी सभामां मत्सीमल्ल साथे फलहीमल्लनी कुस्ती करावी. पहेले दिवसे ॥२९४|| 3 तो बेय सरखा उत. अट्टणमल्ढ़ें पोताने उतारे जा फलहीमलने प्रच्य के-हे पुत्र तने कये कये अंगे महार लागेल छे? तेणे पोतानां जे जे अंगो उपर प्रहार थयेला ते वां गो दीव्यां. अटगे ते ते ठेकाणे मर्दन करी तेने फरी जाणे नवो थयो होय Je तेवो बनाव्यो. अहीं मत्सीमल्लने राजाए पण पूछ्यु. तथापि तेणे अभिमानमा पहारस्थान न देखाड्यां अने बोल्यो के मने कंइज | नथी; हुँनवोज छु. फलहीतो ? तेना बापने पण जीतीश. द्वितीयदिवसे पुनयुद्धावसरे व्योरपि साम्यमेव जातं; तृतीयदिवसे मत्सीमल्लो जितः; फलहीमलेनाणेन च स्वपराभवः स्मारितः; ततो मत्सीमल्लेनान्याययुद्धेन फलहीमल्लस्य मस्तकं छिन्नं. खिन्नोहणमल्लो गत उज्जयिनीं; तत्र विमुक्तयुद्धव्यापारः स्वगृहे तिष्ठतिः परं जराकांत इति न कस्मैचित्कार्याय क्षम इति स्वजनेः पराभयते. अन्यदा। | स्वजनापमानं दृष्ट्वा तदनापृच्छयैव कौशांबी नगरी गतः. बीजे दिवसे फरी कुस्ती थइ तेमां पण चेय समान उता. त्रीजे दिवसे कुस्तीमा फलहीमल्ले यत्सीमल्लने पाड्यो; त्यारे अट्टणमो पोताना पराभवनी यादी आपी तेथी एकदम क्रोधावेशमां मत्सीमल्लें अन्याय युद्धथी फलहीमल्लनु माथु छुदी नाख्घु. आ उपरथी खिन्न थइ अट्टणमल्ल उज्जयिनी पति चाल्यो गयो. त्यां जइने मल्लनो धंधो (कुस्ती लडवानु) छोडी दइ घरमां बेसी For Private and Personal use onlyPage Navigation
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