Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie भाषांतर अध्ययन ॥२९॥ एवीरीते धन मेळवीनेतेओ अमति कूमति गृहण करीने, अर्थात् आ लोकमां मुखनु हेतु धन विचारीने पापकर्मथी मेळवेलुं ते धन, उत्तराध्ययन सूत्रम् अंते त्याग करी, पाश-पुत्र स्त्री धन आदिक बंधन-मां प्रवर्तित जकडायला; नरके जाय छे. नरके जनार पुरुषनी साये धन कंड जतुं मथी किंतु महारंभपरिग्रहने वशवर्ति एकाकीज नरके जायछे. आ गाथामां 'जरोवणीयस्स हु णत्यि ताण' जराए मरण ॥२९२॥ | समीपें दोरी लइ जवाता मनुष्यने कोइ त्राण रक्षण आपी शकतुं नथी ' आम कछु. अत्र कथा-उज्जयिन्यां जितशत्रुनृपस्याणमल्लो वर्तते, स च प्रतिवर्ष सोपारके गत्वा सिंहगिरिराज्ञः सभायां मल्लान् विजित्य जयपताका लाति, अन्यदा राजवं चिंतितं परदेश्योऽयणमल्ला मत्सभायां जित्वा बहु द्रव्यं प्रामोति मदीयः कोऽपि मल्लो न जीयते, नैतदरं. एवं हि ममैव महत्वक्षतिर्जायते, इति मत्वा कंचित्यलवंतं मत्सिनरं दृष्ट्वा स्वमल्लंचकार, तस्य त्वरितमेव मल्लविद्याः समायाताः, मत्सीमल्लः इति नाम कृतं. तेनी कथा-उज्जयिनी नगरीमा जितशत्रुराजा आगळ अट्टणमल्ल रहेतो. ते दरवर्षे सोपारक नगरमा जतो त्यां सिंहगिरि राजानी सभामां मल्लोने जीती जयपताका लावतो एक बखते राजाए एम विचार्यु के-आ परदेशी अट्टणमल्ल मारी सभामां मल्लोने जीती घणुज द्रव्य पामे छे. मारो कोइ पण मल्ल जीततो नथी. एतो सारु नहि. आमतो माराज महत्वनी क्षति थाय छे. आम मनमा मानीने कोइ बलवान् मत्सीनरने जोइ तेने मल्ल बनाव्यो. थोडाज समयमा ते मल्लविद्यामा प्रवीण थइ गयो, तेनं 'मत्सीमल्ल' Jएवं नाम प्रसिद्ध थयु. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 290